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“परमेश्‍वर के बड़े बड़े कामों” के बारे में सुनकर वे जोश से भर गए

“परमेश्‍वर के बड़े बड़े कामों” के बारे में सुनकर वे जोश से भर गए

“परमेश्‍वर के बड़े बड़े कामों” के बारे में सुनकर वे जोश से भर गए

[हम] अपनी अपनी भाषा में उन से परमेश्‍वर के बड़े बड़े कामों की चर्चा सुनते हैं।”प्रेरितों 2:11.

1, 2. सामान्य युग 33 के पिन्तेकुस्त में यरूशलेम में कौन-सी हैरतअंगेज़ घटना घटी?

 सामान्य युग 33 के साल का वसंत खत्म होने पर था। यीशु मसीह के चेले यरूशलेम में एक सुबह किसी के घर में इकट्ठे हुए थे। तब उनके साथ एक अजब घटना घटी। “एकाएक आकाश से बड़ी आंधी की सी सनसनाहट का शब्द हुआ, और उस से सारा घर जहां वे बैठे थे, गूंज गया। और उन्हें आग की सी जीभें फटती हुई दिखाई दीं; . . . और वे सब पवित्र आत्मा से भर गए, और . . . अन्य अन्य भाषा बोलने लगे।”—प्रेरितों 2:2-4, 15.

2 उस घर के सामने बड़ी तादाद में लोग इकट्ठे हो गए। उनमें दूसरे देशों में पैदा हुए कुछ यहूदी भी थे। ये “भक्‍त” यहूदी, यरूशलेम में पिन्तेकुस्त का त्योहार मनाने आए थे। वे यीशु के इन चेलों को अपनी-अपनी भाषाओं में “परमेश्‍वर के बड़े बड़े कामों” की चर्चा करते सुनकर हक्के-बक्के रह गए। वे सोचने लगे कि उनसे बात करनेवाले सभी गलील से हैं, तो फिर यह कैसे मुमकिन है कि वे अलग-अलग भाषाएँ बोल रहे थे?—प्रेरितों 2:5-8, 11.

3. प्रेरित पतरस ने पिन्तेकुस्त के लिए इकट्ठी हुई भीड़ को क्या संदेश दिया?

3 इन गलीलियों में से एक प्रेरित पतरस था। उसने बताया कि पिन्तेकुस्त के इस त्योहार के कुछ हफ्ते पहले, यीशु मसीह को अधर्मी मनुष्यों ने घात किया था। मगर, परमेश्‍वर ने अपने बेटे को मरे हुओं में से ज़िंदा किया था। जी उठने के बाद, यीशु अपने बहुत-से चेलों पर प्रकट हुआ। इन चेलों में से बहुत-से चेले उस वक्‍त पिन्तेकुस्त के त्योहार में उनके बीच मौजूद थे, जिनमें पतरस भी शामिल था। पिन्तेकुस्त से दस दिन पहले ही यीशु स्वर्ग गया। उसी ने अपने चेलों पर पवित्र आत्मा उंडेली थी। पिन्तेकुस्त का त्योहार मनाने आए उन लोगों के लिए क्या ये घटनाएँ कुछ मायने रखती थीं? हाँ, बिलकुल। यीशु की मौत से, उनके लिए पापों की माफी पाने और “पवित्र आत्मा का दान” हासिल करने का रास्ता खुल गया, मगर इसके लिए उन्हें यीशु पर विश्‍वास करना था। (प्रेरितों 2:22-24, 32, 33, 38) तो फिर, इन दर्शकों ने जब “परमेश्‍वर के बड़े बड़े कामों” की चर्चा सुनी तो क्या किया? और बाइबल का यह वृत्तांत, यहोवा के लिए हमारी सेवा को जाँचने में कैसे हमारी मदद कर सकता है?

काम में लगने का जोश!

4. सामान्य युग 33 के पिन्तेकुस्त के दिन, योएल की कौन-सी भविष्यवाणी पूरी हुई?

4 पवित्र आत्मा पाने के बाद, यरूशलेम में यीशु के चेलों ने बिना वक्‍त गँवाए दूसरों को उद्धार का सुसमाचार सुनाया और उस सुबह इकट्ठी हुई भीड़ से ही उन्होंने शुरूआत की। उनके प्रचार से एक खास भविष्यवाणी पूरी हुई जिसे उस घटना के आठ सौ साल पहले, पतूएल के पुत्र योएल ने लिखा था: “यहोवा के उस बड़े और भयानक दिन के आने से पहले,” “मैं सब प्राणियों पर अपना आत्मा उण्डेलूंगा; तुम्हारे बेटे-बेटियां भविष्यद्वाणी करेंगी, और तुम्हारे पुरनिये स्वप्न देखेंगे, और तुम्हारे जवान दर्शन देखेंगे। तुम्हारे दास और दासियों पर भी मैं उन दिनों में अपना आत्मा उण्डेलूंगा।”—योएल 1:1; 2:28, 29, 31; प्रेरितों 2:17, 18, 20.

5. पहली सदी के मसीहियों ने किस अर्थ में भविष्यवाणी की? (फुटनोट देखिए।)

5 क्या इसका मतलब यह था कि परमेश्‍वर, दाऊद, योएल और दबोरा की तरह भविष्यवक्‍ताओं और भविष्यवक्‍तिनों की पूरी एक पीढ़ी तैयार करता और उनके ज़रिए आनेवाली घटनाओं की भविष्यवाणी करवाता? जी नहीं। मसीही ‘बेटे-बेटियां और दास-दासियाँ’ इस अर्थ में भविष्यवाणी करते कि यहोवा की आत्मा की प्रेरणा से, उन्हें उन “बड़े बड़े कामों” का ऐलान करने के लिए उसाया जाता जो यहोवा ने अब तक किए हैं और आगे भी करेगा। इस तरह वे परमप्रधान परमेश्‍वर की तरफ से बोलनेवालों का काम करते। * मगर, भीड़ ने ये बातें सुनकर क्या किया?—इब्रानियों 1:1, 2.

6. पतरस का भाषण सुनने के बाद, भीड़ में से बहुत-से लोगों ने क्या किया?

6 पतरस की बात सुनने के बाद, भीड़ में से कई लोगों ने कार्यवाही की। उन्होंने “उसका वचन ग्रहण किया” और “बपतिस्मा लिया; और उसी दिन तीन हजार मनुष्यों के लगभग उन में मिल गए।” (प्रेरितों 2:41) इनमें से कई लोग पैदाइशी यहूदी थे और कई यहूदी मतधारक थे, इसलिए इन्हें शास्त्र की बुनियादी बातों का पहले से ज्ञान था। इस ज्ञान और पतरस से सीखी बातों पर विश्‍वास करने से, उन्हें एक आधार मिला कि “पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा” लें। (मत्ती 28:19) बपतिस्मे के बाद, “वे प्रेरितों से शिक्षा पाने . . . में लौलीन रहे।” साथ ही, उन्होंने अपने इस नए विश्‍वास को दूसरों के साथ बाँटना शुरू कर दिया। “वे प्रति दिन एक मन होकर मन्दिर में इकट्ठे होते थे, . . . और परमेश्‍वर की स्तुति करते थे, और सब लोग उन से प्रसन्‍न थे।” इस गवाही की वजह से, “जो उद्धार पाते थे, उनको प्रभु प्रति दिन उन में मिला देता था।” (प्रेरितों 2:42, 46, 47) विश्‍वास करनेवाले ये नए लोग जिन देशों में रहते थे, वहाँ जल्द ही मसीही कलीसियाएँ बनने लगीं। बेशक, कुछ हद तक ये बढ़ोतरी इस वजह से हुई कि उन्होंने अपने-अपने देश लौटकर बड़े जोश और लगन से “सुसमाचार” सुनाया।—कुलुस्सियों 1:23.

परमेश्‍वर का वचन प्रबल है

7. (क) आज क्या बात सब देशों के लोगों को यहोवा के संगठन की तरफ खींच लाती है? (ख) सारी दुनिया में और अपने इलाके में आपको कैसी बढ़ोतरी होने की संभावना नज़र आती है? (फुटनोट देखिए।)

7 उन लोगों का क्या जो आज के ज़माने में परमेश्‍वर के सेवक बनना चाहते हैं? उन्हें भी ध्यान से परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करना चाहिए। जो यह अध्ययन करते हैं उन्हें मालूम पड़ता है कि यहोवा परमेश्‍वर “दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य” है। (निर्गमन 34:6; प्रेरितों 13:48) वे सीखते हैं कि यहोवा ने कैसे यीशु मसीह के ज़रिए हमारी छुड़ौती देने का प्यार-भरा इंतज़ाम किया है। कैसे यीशु का बहाया गया लहू हमारे सारे पापों को धो डालता है। (1 यूहन्‍ना 1:7) वे परमेश्‍वर के इस उद्देश्‍य के बारे में भी जानकर एहसानमंद हैं कि “धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा।” (प्रेरितों 24:15) उनके दिल में इन “बड़े बड़े कामों” को करनेवाले शख्स के लिए प्यार उमड़ आता है और वे इन अनमोल सच्चाइयों को दूसरों को बताने के लिए प्रेरित होते हैं। इसलिए वे परमेश्‍वर को समर्पण करके, बपतिस्मा लेते हैं और “परमेश्‍वर की पहिचान में बढ़ते” जाते हैं। *कुलुस्सियों 1:10ख; 2 कुरिन्थियों 5:14.

8-10. (क) एक मसीही स्त्री का अनुभव कैसे दिखाता है कि परमेश्‍वर का वचन “प्रबल” है? (ख) इस अनुभव से, यहोवा के बारे में और अपने सेवकों के साथ उसके व्यवहार के बारे में आपने क्या सीखा? (निर्गमन 4:12)

8 परमेश्‍वर के सेवक बाइबल के अध्ययन से सिर्फ ऊपरी ज्ञान हासिल नहीं करते। यह ऐसा ज्ञान है जो उनके दिल को झंझोड़ता है, उनके सोचने का तरीका बदल देता है और उनकी रग-रग में समा जाता है। (इब्रानियों 4:12) मिसाल के लिए, कमील नाम की एक स्त्री, बुज़ुर्गों की देख-रेख का काम करती थी। उसकी देख-रेख में मार्था नाम की एक स्त्री भी थी, जो यहोवा की साक्षी थी। मार्था की दिमागी हालत ठीक नहीं थी, और इस गंभीर बीमारी की वजह से यह ज़रूरी था कि हर वक्‍त कोई उस पर नज़र रखे। उसे खाना खाने, यहाँ तक कि मुँह का निवाला निगलने के लिए भी याद दिलाना पड़ता था। मगर, मार्था के दिमाग पर एक बात की ऐसी छाप पड़ चुकी थी जो मिटायी नहीं जा सकती थी। आइए देखें वह क्या थी।

9 एक दिन मार्था ने कमील को अपनी किसी परेशानी से दुःखी होकर रोते देखा। मार्था ने कमील को अपनी बाँहों में लेकर उसे अपने साथ बाइबल अध्ययन करने का बुलावा दिया। लेकिन मार्था ऐसी हालत में क्या बाइबल अध्ययन करा सकती थी? बिलकुल करा सकती थी! हालाँकि मार्था अपनी ज़्यादातर याददाश्‍त खो चुकी थी, फिर भी वह अपने महान परमेश्‍वर को नहीं भूली थी; ना ही वह उन अनमोल सच्चाइयों को भूली थी, जो उसने बाइबल से सीखी थीं। अध्ययन करते वक्‍त, मार्था कमील से हर पैराग्राफ पढ़ने, वचनों के हवाले पढ़ने, पेज के निचले हिस्से में लिखे सवाल पढ़ने और उसका जवाब देने के लिए कहती। कुछ समय तक ऐसे ही चलता रहा और मार्था की कमज़ोरी के बावजूद, कमील बाइबल का ज्ञान हासिल करती गयी। मार्था को एहसास हुआ कि कमील को उन लोगों के साथ मिलना-जुलना चाहिए जो परमेश्‍वर की सेवा करते हैं। इसलिए, उसने अपनी विद्यार्थी यानी कमील को एक पोशाक और एक जोड़ी जूते दिए, ताकि जब वह पहली बार सभा के लिए राज्यगृह में जाए तो उसके पास सलीकेदार कपड़े हों।

10 मार्था का ऐसा प्यार और परवाह, उसकी अच्छी मिसाल और उसका विश्‍वास कमील को भा गया। वह इस नतीजे पर पहुँची कि मार्था उसे बाइबल से जो ज्ञान सिखाना चाहती थी, उसकी अहमियत बहुत बड़ी थी, क्योंकि मार्था लगभग सबकुछ भूल चुकी थी, मगर बाइबल से सीखी हुई बातें नहीं भूली। बाद में, जब कमील का कहीं और तबादला हो गया, तो वहाँ उसे इस बात का एहसास हुआ कि अब कोई कदम उठाने का वक्‍त आ गया है। पहला मौका मिलते ही, वह राज्यगृह गयी और उसने वही कपड़े और जूते पहने जो मार्था ने उसे दिए थे। वहाँ जाकर उसने बाइबल के अध्ययन की गुज़ारिश की। कमील ने बहुत अच्छी तरक्की की और बपतिस्मा लिया।

यहोवा के कायदे-कानूनों के मुताबिक जीने का जोश

11. प्रचार का काम जोश से करने के अलावा, हम कैसे दिखा सकते हैं कि राज्य का संदेश हमारे दिल को छू गया है?

11 आज, मार्था और कमील जैसे 60 लाख से ज़्यादा यहोवा के साक्षी हैं जो सारी दुनिया में ‘राज्य का सुसमाचार’ सुना रहे हैं। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) पहली सदी के मसीहियों की तरह, वे भी “परमेश्‍वर के बड़े बड़े कामों” को देखकर दिल से एहसानमंद हैं। वे इस बात की कदर करते हैं कि उन्हें यहोवा के नाम से पहचाने जाने का सम्मान मिला है और उसने उन पर अपनी आत्मा उंडेली है। इसलिए, वे पूरी कोशिश करते हैं कि उनका “चाल-चलन प्रभु के योग्य हो, और वह [उनसे] सब प्रकार से प्रसन्‍न हो।” वे अपनी ज़िंदगी के हर पहलू में उसके स्तरों पर चलते हैं। बाकी बातों के अलावा, इसमें हमारे पहनावे और बनाव-श्रृंगार में परमेश्‍वर के स्तरों पर चलना भी शामिल है।—कुलुस्सियों 1:10क; तीतुस 2:10.

12. कपड़ों और बनाव-श्रृंगार के बारे में, 1 तीमुथियुस 2:9, 10 में साफ-साफ क्या सलाह दी गयी है?

12 जी हाँ, यहोवा ने पहनने-ओढ़ने और बनाव-श्रृंगार के बारे में स्तर ठहराए हैं। प्रेरित पौलुस ने इस मामले में परमेश्‍वर की कुछ माँगें बतायीं। “इसी प्रकार स्त्रियां भी शालीनता और सादगी के साथ उचित वस्त्रों से अपने आप को सुसज्जित करें। वे बाल गूंथने और सोने या मोतियों या बहुमूल्य वस्त्रों से नहीं, वरन्‌ अपने को भले कार्यों से संवारें जैसा कि उन स्त्रियों को शोभा देता है जो अपने आप को भक्‍तिन कहती हैं।” * इन शब्दों से हम क्या सीखते हैं?—1 तीमुथियुस 2:9, 10, NHT.

13. (क) “उचित वस्त्रों” का क्या मतलब है? (ख) हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा के स्तरों पर चलना मुश्‍किल नहीं है?

13 पौलुस के शब्द दिखाते हैं कि मसीहियों को ‘उचित वस्त्रों से अपने आप को सुसज्जित करना’ चाहिए। उनका पहनना-ओढ़ना या बनाव-श्रृंगार खराब नहीं होना चाहिए। दरअसल, ऐसे उचित स्तर पर चलना किसी के लिए मुश्‍किल नहीं है, उनके लिए भी नहीं जो गरीब हैं। बस उन्हें इस बात का ध्यान रखना है कि उनके कपड़े साफ-सुथरे और पहनने लायक हों। मिसाल के लिए, दक्षिण अमरीका के एक देश में हर साल साक्षी, ज़िला अधिवेशन में हाज़िर होने के लिए जंगलों में कई-कई किलोमीटर चलते हैं और फिर कई घंटे नाव से सफर करते हैं। सफर के दौरान अकसर कोई नदी में गिर जाता है जिससे उसके कपड़े गीले हो जाते हैं या किसी झाड़ी में फँसकर उनके कपड़े फट जाते हैं। इसलिए जब ये भाई-बहन, अधिवेशन की जगह पर पहुँचते हैं तो उनकी और उनके कपड़ों की हालत बहुत खराब होती है। ये भाई वक्‍त निकालकर टूटे हुए बटन टाँकते हैं, उधड़ी हुई ज़िप लगाते हैं और अधिवेशन में पहननेवाले कपड़ों को धोकर इस्तिरी करते हैं। यहोवा की मेज़ से खाने के इस न्यौते की वे दिलो-जान से कदर करते हैं, इसलिए वे इसके मुताबिक कपड़े पहनना पसंद करते हैं।

14. (क) “शालीनता और सादगी” से कपड़े पहनने का क्या मतलब है? (ख) ‘परमेश्‍वर के भक्‍त’ कहलानेवाले हम लोगों का पहनावा कैसा होना चाहिए?

14 पौलुस ने आगे कहा कि हमारा पहनावा ऐसा होना चाहिए जिससे “शालीनता और सादगी” झलके। इसका मतलब है कि हमारे पहनावे और बनाव-श्रृंगार में तड़क-भड़क नहीं होनी चाहिए, न ही हमारे कपड़े इतने छोटे और भद्दे होने चाहिए जिससे हमारा शरीर अच्छी तरह न ढक सके, न ही ऐसे कि फैशन के चक्कर में सारी हदें पार कर जाएँ। यही नहीं, हमारा पहनावा ऐसा होना चाहिए जिससे नज़र आए कि हम परमेश्‍वर के ‘भक्‍त’ हैं। क्या यह हमें सोचने पर मजबूर नहीं कर देता? इसका मतलब यह नहीं कि हम सिर्फ कलीसिया की सभाओं के लिए मुनासिब कपड़े पहनें और उसके बाद दूसरे मौकों पर लापरवाह हो जाएँ। हमारे बनाव-श्रृंगार से हमेशा यह ज़ाहिर होना चाहिए कि हम परमेश्‍वर के भक्‍त हैं, और हर वक्‍त इज़्ज़त से पेश आते हैं क्योंकि हम चौबीसों घंटे मसीही और परमेश्‍वर के सेवक हैं। यह कहने की ज़रूरत नहीं कि जब हम काम पर हैं या स्कूल में हैं तो उसी हिसाब से कपड़े पहनेंगे। ऐसे में भी हमारे कपड़ों से शालीनता और गरिमा नज़र आनी चाहिए। अगर हमारा पहनावा ऐसा है जिससे हर वक्‍त परमेश्‍वर पर हमारा विश्‍वास नज़र आता है, तो हम कहीं भी मौका मिलने पर गवाही देंगे और अपने हुलिए की वजह से शर्म महसूस नहीं करेंगे।—1 पतरस 3:15.

‘संसार से प्रेम न रखो’

15, 16. (क) यह क्यों ज़रूरी है कि कपड़ों और बनाव-श्रृंगार के मामले में हम संसार के जैसे न बनें? (1 यूहन्‍ना 5:19) (ख) किस कारण से हमें कपड़ों और बनाव-श्रृंगार के नए-नए फैशन से दूर रहना चाहिए, जिसमें हमारा ही फायदा है?

15 पहला यूहन्‍ना 2:15, 16 भी हमें पहनावे और बनाव-श्रृंगार के मामले में सही सलाह देता है। वहाँ लिखा है: “तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो: यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उस में पिता का प्रेम नहीं है। क्योंकि जो कुछ संसार में है, अर्थात्‌ शरीर की अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड, वह पिता की ओर से नहीं, परन्तु संसार ही की ओर से है।”

16 यह सलाह हमारे वक्‍त के लिए कितनी सही है! आज के ज़माने में, लोग अपने साथियों के कहने में आकर क्या कुछ नहीं कर जाते। मगर हमें ध्यान रखना है कि हम कपड़े पहनने के मामले में संसार के इशारों पर न नाचें। हाल के सालों में कपड़े पहनने और बनने-सँवरने के स्टाइल गिरते जा रहे हैं। यहाँ तक कि बिज़नेस करनेवालों और पेशेवर लोगों के कपड़े पहनने का तरीका भी ऐसा है जो मसीहियों के लिए हमेशा एक अच्छी मिसाल नहीं होता। यह एक और वजह है कि क्यों हमारे लिए हर वक्‍त इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है कि “इस संसार के सदृश न” बनें; और परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक जीने से “सब बातों में हमारे उद्धारकर्त्ता परमेश्‍वर के उपदेश को शोभा दें।”—रोमियों 12:2; तीतुस 2:10.

17. (क) कपड़े खरीदते वक्‍त या स्टाइल चुनते वक्‍त हमें किन सवालों पर गौर करना चाहिए? (ख) परिवार के मुखिया को क्यों अपने परिवार के कपड़ों और बनाव-श्रृंगार पर ध्यान देना चाहिए?

17 कपड़ा खरीदने का फैसला करने से पहले, अकलमंदी इसी में होगी कि आप खुद से ये सवाल पूछें: ‘इस स्टाइल का कपड़ा मुझे क्यों अच्छा लगता है? क्या यह मनोरंजन की किसी जानी-मानी हस्ती का स्टाइल है—जिसे मैं पसंद करता/करती हूँ? क्या यह स्टाइल किसी सड़क-छाप गैंग के लोगों का है, या किसी ऐसे समूह का है जो बगावत करने और किसी के अधीन न होने की भावना को बढ़ावा देते हैं?’ हमें कपड़े की भी अच्छी तरह जाँच करनी चाहिए। अगर कोई ड्रेस या स्कर्ट है, तो इसकी लंबाई कितनी है? इसका आकार कैसा है और पहनने पर कैसा दिखेगा? क्या यह कपड़ा पहनने लायक है, क्या इससे शालीनता और गरिमा नज़र आएगी या क्या यह इतना चुस्त या बेढंगा है कि शरीर के अंगों को छिपाने के बजाय इन्हें उभारेगा? खुद से पूछिए, ‘यह कपड़ा पहनने से क्या मैं किसी के ठोकर खाने का कारण बनूँगा/बनूँगी?’ (2 कुरिन्थियों 6:3, 4) हमें इस बारे में चिंता क्यों करनी चाहिए? क्योंकि बाइबल कहती है: “मसीह ने [भी] अपने आप को प्रसन्‍न नहीं किया।” (रोमियों 15:3) मसीही परिवार के मुखियाओं को परिवार के लोगों के कपड़ों और बनाव-श्रृंगार पर ध्यान देना चाहिए। जिस महिमावान परमेश्‍वर की वे उपासना करते हैं, उसके लिए आदर दिखाते हुए, जब ज़रूरी हो तब परिवार के मुखिया अपने परिवार को सख्ती और प्यार से सलाह देने में पीछे नहीं हटेंगे।—याकूब 3:13.

18. किस वजह से आप अपने कपड़ों और बनाव-श्रृंगार पर अच्छी तरह ध्यान देंगे?

18 हमारा संदेश यहोवा का संदेश है, और गरिमा और पवित्रता का सार यहोवा ही है। (यशायाह 6:3) बाइबल हमसे आग्रह करती है कि “प्रिय, बालको” के नाते हम उसके जैसे बनें। (इफिसियों 5:1) हमारे पहनने-ओढ़ने से या तो हमारे स्वर्गीय पिता की महिमा होगी या फिर उसके नाम पर कलंक लगेगा। बेशक, हमारी यही तमन्‍ना है कि वह हमसे खुश हो!—नीतिवचन 27:11.

19. दूसरों को “परमेश्‍वर के बड़े बड़े कामों” के बारे में बताने से क्या फायदे मिलते हैं?

19 आपने “परमेश्‍वर के [जिन] बड़े बड़े कामों” के बारे में सीखा है, उनके बारे में आप क्या महसूस करते हैं? सचमुच, हमारे लिए कितनी बड़ी आशीष है कि हमने सच्चाई सीखी है! हम यीशु के बहाए लहू पर विश्‍वास करते हैं, इसलिए हमें अपने पापों की माफी मिली है। (प्रेरितों 2:38) नतीजा यह है कि हमें परमेश्‍वर के सामने बोलने की आज़ादी है। हम उन लोगों की तरह मौत से नहीं डरते, जिन्हें कोई आशा नहीं है। इसके बजाय, हमें यीशु ने यकीन दिलाया है कि एक दिन “जितने कब्रों में हैं, उसका शब्द सुनकर निकलेंगे।” (यूहन्‍ना 5:28, 29) यहोवा ने हम पर ये सब बातें ज़ाहिर करके बड़ी मेहरबानी की है। इतना ही नहीं, उसने अपनी आत्मा हम पर उंडेली है। इन सभी अच्छे वरदानों के लिए अगर हम उसके एहसानमंद हैं तो हम उसके ऊँचे आदर्शों का आदर करेंगे, पूरे जोश से उसकी स्तुति करेंगे और दूसरों को इन “बड़े बड़े कामों” के बारे में बताएँगे।

[फुटनोट]

^ जब यहोवा ने अपने लोगों की तरफ से बोलने के लिए मूसा और हारून को नियुक्‍त किया, तब उसने मूसा से कहा: “मैं तुझे फ़िरौन के लिये परमेश्‍वर सा ठहराता हूं; और तेरा भाई हारून तेरा नबी ठहरेगा।” (तिरछे टाइप हमारे।) (निर्गमन 7:1) हारून भविष्य बतानेवाला नबी नहीं था। बल्कि वह मूसा का प्रवक्‍ता था यानी उसकी तरफ से बोलने का काम करता था और इस अर्थ में वह उसका नबी ठहरा।

^ मार्च 28, 2002 को मनाए गए प्रभु के संध्या भोज के सालाना पर्व के लिए बड़ी तादाद में लोग इकट्ठा हुए। इनमें से लाखों ऐसे लोग हैं जिन्होंने अब तक यहोवा की सेवा करने की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर नहीं ली है। हमारी दुआ है कि सच्चाई में दिलचस्पी लेनेवाले इन लोगों का दिल इन्हें उकसाए कि सुसमाचार के प्रचारक बनने के सम्मान को हासिल करने के लिए वे जी-जान से मेहनत करें।

^ हालाँकि पौलुस के शब्द, मसीही स्त्रियों को कहे गए थे, मगर यही सिद्धांत मसीही पुरुषों और नौजवानों पर भी लागू होते हैं।

आप क्या जवाब देंगे?

• लोगों ने सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त में किन “बड़े बड़े कामों” की चर्चा सुनी थी और यह सब सुनकर उन्होंने क्या किया?

• एक इंसान, यीशु मसीह का चेला कैसे बनता है और चेलों के लिए क्या-क्या करना ज़रूरी है?

• यह क्यों ज़रूरी है कि हम अपने कपड़ों और बनाव-श्रृंगार पर ध्यान दें?

• कोई कपड़ा या स्टाइल पहनने लायक है या नहीं, यह तय करते वक्‍त किन बातों पर ध्यान देना ज़रूरी है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 15 पर तसवीर]

पतरस ने ऐलान किया कि यीशु को मरे हुओं में से जिलाया गया है

[पेज 17 पर तसवीरें]

क्या आपके पहनावे और बनाव-श्रृंगार से आपके परमेश्‍वर की महिमा होती है?

[पेज 18 पर तसवीरें]

मसीही माता-पिता को अपने परिवार के लोगों के कपड़ों और बनाव-श्रृंगार पर ध्यान देना चाहिए