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वफादारी से परमेश्‍वर के ठहराए हुए अधिकार के अधीन रहिए

वफादारी से परमेश्‍वर के ठहराए हुए अधिकार के अधीन रहिए

वफादारी से परमेश्‍वर के ठहराए हुए अधिकार के अधीन रहिए

“यहोवा हमारा न्यायी, यहोवा हमारा हाकिम, यहोवा हमारा राजा है।”यशायाह 33:22.

1. किन कारणों से प्राचीन इस्राएल सब देशों से अनोखा था?

 सामान्य युग पूर्व 1513 में इस्राएली, पहली बार एक जाति बनकर सामने आए। लेकिन उस वक्‍त ना तो उनका अपना कोई वतन था, ना कोई राजधानी थी, यहाँ तक कि धरती पर उनका कोई राजा भी नहीं था। इस जाति का हर निवासी पहले गुलाम था। मगर, एक और खासियत की वजह से यह जाति सब देशों से अलग थी। और वह ये कि स्वर्ग में रहनेवाला यहोवा परमेश्‍वर इस जाति का अदृश्‍य न्यायी, हाकिम और राजा था। (निर्गमन 19:5, 6; यशायाह 33:22) कोई भी देश उनकी तरह दावा नहीं कर सकता था कि परमेश्‍वर उनका राजा है!

2. इस्राएल की व्यवस्था के बारे में क्या सवाल उठता है, और इसका जवाब हमारे लिए क्यों अहमियत रखता है?

2 यहोवा, व्यवस्था और शांति का परमेश्‍वर है। इसलिए हम उम्मीद कर सकते हैं कि जिस देश पर खुद उसकी हुकूमत हो उस देश की व्यवस्था कितनी बढ़िया होगी। (1 कुरिन्थियों 14:33) इस्राएल ऐसा ही एक देश था। मगर यह कैसे हो सकता है कि स्वर्ग में रहनेवाला परमेश्‍वर जिसे हम देख नहीं सकते, वह इस धरती के किसी देश या संगठन को चलाए? यह जानने के लिए अच्छा होगा, अगर हम यह जानें कि प्राचीन इस्राएल पर यहोवा ने हुकूमत कैसे की और खासकर इस बात पर ध्यान दें कि इस्राएल के साथ परमेश्‍वर के व्यवहार से यह कैसे साफ ज़ाहिर हुआ कि वफादारी से परमेश्‍वर के ठहराए हुए अधिकार के अधीन रहना कितना ज़रूरी है।

प्राचीन इस्राएल की हुकूमत

3. यहोवा ने अपने लोगों की अगुवाई करने के लिए कौन-से कारगर इंतज़ाम किए थे?

3 हालाँकि इस्राएल का अनदेखा राजा यहोवा था, मगर उसने उन पर कुछ वफादार हाकिमों को ठहराया था ताकि वे उसकी तरफ से काम करें। ये हाकिम, घरानों के ऊपर प्रधान और पुरनिए थे और उन्हें लोगों के लिए सलाहकार और न्यायी ठहराया गया था। (निर्गमन 18:25, 26; व्यवस्थाविवरण 1:15) मगर, यह तो मुमकिन नहीं था कि ये ज़िम्मेदार हाकिम, परमेश्‍वर की मदद के बगैर हर मामले को सही-सही समझकर, बिना चूके न्याय करें। क्योंकि वे सिद्ध नहीं थे, और वे अपने जाति-भाइयों का दिल नहीं पढ़ सकते थे। फिर भी, परमेश्‍वर का भय माननेवाले न्यायी, अपने संगी विश्‍वासियों को जो सलाह देते थे वह यहोवा की व्यवस्था से होती थी और इसलिए उनके लिए फायदेमंद होती थी।—व्यवस्थाविवरण 19:15; भजन 119:97-100.

4. इस्राएल के वफादार न्यायियों को कैसे व्यवहार से दूर रहना था, और क्यों?

4 मगर, एक न्यायी के लिए सिर्फ व्यवस्था का ज्ञान होना काफी नहीं था। ये पुरनिए असिद्ध थे, इसलिए उन्हें हमेशा सावधान रहना था कि वे कभी अपने अंदर स्वार्थ, पक्षपात और लोभ जैसी गलत भावनाएँ पैदा न होने दें, जिससे उनका न्याय बिगड़े। मूसा ने उनसे कहा: “न्याय करते समय किसी का पक्ष न करना; जैसे बड़े की वैसे ही छोटे मनुष्य की भी सुनना; किसी का मुंह देखकर न डरना, क्योंकि न्याय परमेश्‍वर का काम है।” (तिरछे टाइप हमारे।) जी हाँ, इस्राएल के न्यायी परमेश्‍वर की तरफ से न्याय कर रहे थे। सचमुच, यहोवा की तरफ से न्याय करना कितनी बड़ी ज़िम्मेदारी और सम्मान की बात थी!—व्यवस्थाविवरण 1:16, 17.

5. यहोवा ने अपने लोगों का ध्यान रखने के लिए, न्यायी ठहराने के अलावा और क्या इंतज़ाम किए?

5 यहोवा ने अपने लोगों की आध्यात्मिक ज़रूरतों का ध्यान रखने के लिए और भी कई इंतज़ाम किए। वादा किए गए देश में पहुँचने से पहले ही, इस्राएलियों को यहोवा ने आज्ञा दी कि एक निवासस्थान बनाएँ, जो शुद्ध उपासना का केंद्र होता। उसने उनके लिए याजकवर्ग का भी इंतज़ाम किया, जो लोगों को यहोवा की व्यवस्था सिखाता, जानवरों के बलिदान चढ़ाता और सुबह-शाम धूप जलाता। परमेश्‍वर ने मूसा के बड़े भाई, हारून को इस्राएल का पहला महायाजक ठहराया और हारून के काम में उसका हाथ बँटाने के लिए उसके बेटों को नियुक्‍त किया।—निर्गमन 28:1; गिनती 3:10; 2 इतिहास 13:10, 11.

6, 7. (क) याजकों और याजकवर्ग से जुदा लेवियों के बीच क्या रिश्‍ता था? (ख) लेवियों को अलग-अलग किस्म के काम सौंपे गए थे, इस बात से हम क्या सबक सीखते हैं? (कुलुस्सियों 3:23)

6 इस्राएल में याजकों की गिनती बहुत कम थी, जबकि उन पर लाखों लोगों की आध्यात्मिक ज़रूरतें पूरी करने की बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी थी। इसलिए, उनकी मदद करने के लिए लेवी गोत्र के और भी लोग उन्हें दिए गए। यहोवा ने मूसा से कहा: “तू लेवियों को हारून और उसके पुत्रों को सौंप दे; और वे इस्राएलियों की ओर से हारून को सम्पूर्ण रीति से अर्पण किए हुए हों।”—गिनती 3:9, 39.

7 लेवी के गोत्र में बहुत अच्छी व्यवस्था थी। वे तीन परिवारों के हिसाब से बाँटे गए थे, गेर्शोनी, कहाती और मरारी, और इन सभी को अलग-अलग काम सौंपे गए थे। (गिनती 3:14-17, 23-37) ऐसा लग सकता था कि कुछ लेवियों का काम दूसरे लेवियों से ज़्यादा अहमियत रखता है, मगर सभी कामों की अपनी-अपनी अहमियत थी। कहाती लेवियों का काम इस किस्म का था कि उन्हें वाचा के पवित्र संदूक और निवासस्थान की दूसरी सजावट की चीज़ों के आसपास रहना था। मगर, सिर्फ कहात वंश के लेवियों को ही नहीं, बल्कि हर लेवी को परमेश्‍वर की सेवा में बेहतरीन आशीषें और ज़िम्मेदारियाँ मिली थीं। (गिनती 1:51, 53) लेकिन अफसोस कि कुछ लेवियों ने अपनी इन आशीषों की कदर नहीं जानी। परमेश्‍वर के ठहराए अधिकार के वफादारी से अधीन रहने और जो आशीषें उन्हें मिली थीं उनसे खुश होने के बजाय उनमें घमंड, ऊँचा रुतबा हासिल करने का जुनून और जलन पैदा हो गयी। ऐसा ही एक लेवी था, कोरह।

“अब क्या तुम याजक-पद के भी अभिलाषी हो गए हो?”

8. (क) कोरह कौन था? (ख) किस वजह से शायद कोरह, याजकवर्ग के इंतज़ाम को इंसान का इंतज़ाम समझने लगा?

8 कोरह, लेवी के घराने का प्रधान नहीं था, न ही वह कहातियों के परिवारों का मूलपुरुष था। (गिनती 3:30, 32) मगर, वह इस्राएल का एक इज़्ज़तदार प्रधान ज़रूर था। काम के सिलसिले में कोरह का, हारून और उसके बेटों से काफी मिलना-जुलना रहा होगा। (गिनती 4:18, 19) कोरह ने इन लोगों की कमियाँ देखकर मन-ही-मन सोचा होगा: ‘इसमें कोई शक नहीं कि ये याजक खुद असिद्ध हैं, फिर भी मुझसे माँग की जाती है कि मैं इनके अधीन रहूँ! कुछ ही समय पहले की तो बात है जब हारून ने सोने का बछड़ा बनाया था। उस बछड़े की पूजा करके हमारे लोग मूर्तिपूजा के फंदे में फँस गए। अब मूसा का वही भाई हारून महायाजक के पद पर सेवा कर रहा है! ये पक्षपात नहीं तो और क्या है! और हारून के बेटे, नादाब और अबीहू भी तो कुछ कम नहीं थे! परमेश्‍वर की सेवा में उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारियों को इस कदर तुच्छ जाना कि यहोवा ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया!’ * (निर्गमन 32:1-5; लैव्यव्यवस्था 10:1, 2) कोरह ने चाहे जो भी सोचा हो, एक बात साफ ज़ाहिर है कि वह याजकवर्ग के इंतज़ाम को इंसान का ठहराया इंतज़ाम समझने लगा था। इस वजह से उसने मूसा और हारून के खिलाफ और आखिरकार यहोवा के खिलाफ विद्रोह किया।—1 शमूएल 15:23; याकूब 1:14, 15.

9, 10. कोरह और उसके साथियों ने मूसा पर क्या इलज़ाम लगाया, और उन्हें ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए था?

9 कोरह का अपने लोगों में रुतबा था, इसलिए जिन लोगों का रवैया उसके जैसा था उन्हें अपनी तरफ खींचने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई। दातान और अबीराम के साथ मिलकर, कोरह ने 250 लोगों को अपनी तरफ कर लिया और ये सभी मंडली के प्रधान थे। वे मिलकर मूसा और हारून के पास आए और उनसे कहा: “सारी मण्डली का एक एक मनुष्य पवित्र है, और यहोवा उनके मध्य में रहता है; इसलिये तुम यहोवा की मण्डली में ऊंचे पदवाले क्यों बन बैठे हो?”—गिनती 16:1-3.

10 बीती हुई एक घटना को ध्यान में रखते हुए, इन बागियों को मूसा के अधिकार पर सवाल नहीं उठाना चाहिए था। कुछ समय पहले की ही बात थी, जब हारून और मरियम ने भी यही किया था। उन्होंने भी ठीक कोरह की तरह ही सोचा था! गिनती 12:1, 2 के मुताबिक उन्होंने सवाल किया था: “क्या यहोवा ने केवल मूसा ही के साथ बातें की हैं? क्या उस ने हम से भी बातें नहीं कीं?” यहोवा उनकी बात सुन रहा था। उसने मूसा, हारून और मरियम को मिलापवाले तंबू के द्वार पर आने को कहा, ताकि वह बता सके कि उसने किसे अगुवा ठहराया है। और फिर, यहोवा ने साफ-साफ शब्दों में कहा: “यदि तुम में कोई नबी हो, तो उस पर मैं यहोवा दर्शन के द्वारा अपने आप को प्रगट करूंगा, वा स्वप्न में उस से बातें करूंगा। परन्तु मेरा दास मूसा ऐसा नहीं है; वह तो मेरे सब घरानों में विश्‍वास योग्य है।” इसके बाद, यहोवा ने मरियम को दंड दिया और वह कुछ समय के लिए कोढ़ी हो गयी।—गिनती 12:4-7, 10.

11. कोरह के मामले में मूसा ने क्या किया?

11 कोरह और उसके साथियों को इस घटना के बारे में ज़रूर पता होगा। इसलिए, उनके पास बगावत करने का कोई भी बहाना नहीं था। फिर भी, मूसा ने बड़े धैर्य से उन्हें समझाने-बुझाने की कोशिश की। मूसा ने उनसे बिनती की कि उन्हें जो ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है, वे उसकी अहमियत समझें। उसने कहा: “क्या यह तुमको छोटी बात मालूम होती है कि इस्राएल के परमेश्‍वर ने इस्राएल की मण्डली में से तुमको अलग किया कि तुमको अपने समीप लाए?” वाकई, यह कोई “छोटी बात” नहीं थी! लेवियों के पास पहले से ही कितनी बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ थीं। इससे ज़्यादा वे क्या कामना कर सकते थे? मूसा ने आगे जो कहा उससे उन लेवियों के दिल की बात सामने आयी: “अब क्या तुम याजक-पद के भी अभिलाषी हो गए हो?” * (गिनती 12:3; 16:9, 10, NHT) तो फिर, यहोवा के ठहराए हुए अधिकार के खिलाफ इस बगावत के बारे में उसने क्या किया?

इस्राएल का न्यायी फैसला करता है

12. इस्राएल को अगर परमेश्‍वर के साथ अच्छा रिश्‍ता कायम रखना था, तो उसे क्या करना था?

12 यहोवा ने इस्राएल को व्यवस्था देते वक्‍त कहा था कि अगर वे उसकी आज्ञा मानेंगे तो वे उसकी “पवित्र जाति” ठहरेंगे, और तब तक पवित्र रहेंगे जब तक वे यहोवा के इंतज़ाम के मुताबिक काम करेंगे। (निर्गमन 19:5, 6) अब जबकि बागी खुलेआम बगावत पर उतारू थे, तो वक्‍त आ गया था कि इस्राएल का न्यायी और हाकिम कार्यवाही करे! मूसा ने कोरह से कहा: “कल तू अपनी सारी मण्डली को साथ लेकर हारून के साथ यहोवा के साम्हने हाज़िर होना; और तुम सब अपना अपना धूपदान लेकर उन में धूप देना, फिर अपना अपना धूपदान जो सब समेत अढ़ाई सौ होंगे यहोवा के साम्हने ले जाना; विशेष करके तू और हारून अपना अपना धूपदान ले जाना।”—गिनती 16:16, 17.

13. (क) यहोवा के सामने धूप चढ़ाकर बागी कैसे अपनी हद पार कर गए? (ख) यहोवा ने उन बागियों का क्या हश्र किया?

13 परमेश्‍वर की व्यवस्था के मुताबिक धूप जलाने का काम सिर्फ याजकों को दिया गया था। याजकवर्ग से जुदा इन लेवियों ने जब सुना कि उन्हें यहोवा के सामने धूप जलाना है, तो इसके ख्याल से ही उनके होश ठिकाने आ जाने चाहिए थे। (निर्गमन 30:7; गिनती 4:16) मगर कोरह और उसके साथियों को होश कहाँ! अगले दिन, उसने “सारी मण्डली को [मूसा और हारून के] विरुद्ध मिलापवाले तम्बू के द्वार पर इकट्ठा कर लिया।” बाइबल आगे कहती है: “तब यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, उस मण्डली के बीच में से अलग हो जाओ। कि मैं उन्हें पल भर में भस्म कर डालूं।” मगर मूसा और हारून ने यहोवा से बिनती की कि वह सब लोगों की जान न ले। यहोवा ने उनकी बिनती सुनी। जहाँ तक कोरह और उसके साथियों की बात थी, “तब यहोवा के पास से आग निकली, और उन अढ़ाई सौ धूप चढ़ानेवालों को भस्म कर डाला।”—गिनती 16:19-22, 35. *

14. यहोवा ने इस्राएल की मंडली के खिलाफ सख्त कार्यवाही क्यों की?

14 हैरानी की बात तो यह है कि जिन इस्राएलियों ने देखा कि यहोवा ने इन बागियों को क्या सज़ा दी, उन्होंने इस घटना से कोई सबक नहीं सीखा। “दूसरे दिन इस्राएलियों की सारी मण्डली यह कहकर मूसा और हारून पर बुड़बुड़ाने लगी, कि यहोवा की प्रजा को तुम ने मार डाला है।” ये इस्राएली उन विद्रोहियों की तरफदारी कर रहे थे! आखिरकार, एक वक्‍त ऐसा आया जब यहोवा की बरदाश्‍त की हद खत्म हो गयी। अब यहोवा इन लोगों को बख्शने के लिए किसी की बिनती सुनने को तैयार नहीं था, मूसा और हारून की भी नहीं। यहोवा ने आज्ञा न माननेवालों में मरी फैलायी और “जो कोरह के सङग भागी होकर मर गए थे, उन्हें छोड़ जो लोग इस मरी से मर गए वे चौदह हज़ार सात सौ थे।”—गिनती 16:41-49.

15. (क) इस्राएलियों को मूसा और हारून की अगुवाई क्यों बिना किसी झिझक स्वीकार करनी चाहिए थी? (ख) इस घटना से आपने यहोवा के बारे में क्या सीखा है?

15 इन सभी लोगों ने बेकार ही अपनी जान गवाँयी। काश! उन्होंने अक्ल का इस्तेमाल किया होता। वे खुद से ये सवाल पूछ सकते थे: ‘कौन अपनी जान पर खेलकर उन्हें छुड़ाने के लिए फिरौन के सामने गए थे? कौन थे जिन्होंने इस्राएलियों को आज़ाद करने की माँग की थी? और इस्राएल के छुटकारे के बाद किस इंसान को अकेला होरेब पर्वत पर चढ़ने और परमेश्‍वर के स्वर्गदूत के साथ आमने-सामने बातचीत करने के लिए कहा गया था?’ बेशक मूसा और हारून ने अब तक जो किया था, वह यहोवा के लिए उनकी वफादारी और लोगों के लिए उनके प्यार का सबूत था। (निर्गमन 10:28; 19:24; 24:12-15) उन बागियों को मौत के घाट उतारने में यहोवा को खुशी नहीं हुई। लेकिन, जब यह बात साफ हो गयी कि लोग बगावत करने से बाज़ नहीं आएँगे, तो उसे सख्त कार्यवाही करनी ही पड़ी। (यहेजकेल 33:11) ये सारी घटनाएँ आज हमारे लिए बहुत मायने रखती हैं। क्यों?

आज परमेश्‍वर के ज़रिए को पहचानना

16. (क) किन सबूतों से पहली सदी के यहूदियों को यकीन हो जाना चाहिए था कि यीशु, यहोवा का भेजा हुआ है? (ख) यहोवा ने लेवी वंश के याजकवर्ग को हटाकर उसकी जगह किसे ठहराया और ऐसा क्यों किया?

16 आज एक नयी “जाति” मौजूद है जिसका अनदेखा न्यायी, हाकिम और राजा यहोवा है। (मत्ती 21:43) यह “जाति” सा.यु. पहली सदी में वजूद में आयी थी। उस वक्‍त तक, मूसा के दिनों के निवासस्थान की जगह यरूशलेम के शानदार मंदिर ने ले ली थी, जहाँ लेवी अब भी सेवा करते थे। (लूका 1:5, 8, 9) मगर, सा.यु. 29 में, एक और आत्मिक मंदिर, वजूद में आया और इसका महायाजक, यीशु मसीह था। (इब्रानियों 9:9, 11) परमेश्‍वर के ठहराए अधिकार के बारे में एक बार फिर सवाल उठा। यहोवा इस नयी “जाति” को राह दिखाने के लिए किसे इस्तेमाल करेगा? यीशु ने यह साबित कर दिखाया कि वह हर हाल में परमेश्‍वर का वफादार रहेगा। वह लोगों से भी प्यार करता था। उसने कई चमत्कार किए। मगर अपने ढीठ पूर्वजों की तरह ही, ज़्यादातर लेवियों ने यीशु को कबूल नहीं किया। (मत्ती 26:63-68; प्रेरितों 4:5, 6, 18; 5:17) आखिरकार, यहोवा ने लेवी वंश के याजकवर्ग को हटाकर, उसकी जगह एक अलग किस्म के याजकवर्ग को ठहराया जो राजाओं से बना था। यह राजकीय याजकवर्ग आज भी काम कर रहा है।

17. (क) आज राजकीय याजकवर्ग में कौन हैं? (ख) यहोवा इस याजकवर्ग को कैसे इस्तेमाल करता है?

17 आज इस राजकीय याजकवर्ग में कौन हैं? प्रेरित पतरस ने ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखी अपनी पहली पत्री में इसका जवाब दिया। मसीह की देह में शामिल अभिषिक्‍तों को पतरस ने लिखा: “तुम एक चुना हुआ वंश, राजकीय याजकों का समाज, एक पवित्र प्रजा, और परमेश्‍वर की निज सम्पत्ति हो, जिस से तुम उसके महान्‌ गुणों को प्रकट करो जिसने तुम्हें अंधकार से अपनी अद्‌भुत ज्योति में बुलाया है।” (1 पतरस 2:9, NHT) इन शब्दों से साफ देखा जा सकता है कि यीशु के अभिषिक्‍त चेलों का समूह, इस ‘राजकीय याजकों के समाज’ या वर्ग का हिस्सा है, जिसे पतरस ने “पवित्र प्रजा” कहा। यहोवा इनके ज़रिए अपने लोगों को सिखाता है और आध्यात्मिक मामलों में राह दिखाता है।—मत्ती 24:45-47.

18. नियुक्‍त प्राचीनों और राजकीय याजकवर्ग के बीच क्या ताल्लुक है?

18 इस राजकीय याजकवर्ग के प्रतिनिधि, नियुक्‍त प्राचीन हैं जो सारी पृथ्वी पर यहोवा के लोगों की कलीसियाओं में भारी ज़िम्मेदारियाँ सँभालते हैं। ये भाई चाहे अभिषिक्‍त हों या न हों, हमें इन भाइयों की इज़्ज़त करनी चाहिए और उनके काम में दिल से मदद करनी चाहिए। क्यों? क्योंकि यहोवा ने अपनी पवित्र आत्मा के ज़रिए, इन प्राचीनों को इनके पद पर ठहराया है। (इब्रानियों 13:7, 17) लेकिन यह कैसे हो सकता है?

19. यह क्यों कहा जा सकता है कि प्राचीनों को पवित्र आत्मा ने नियुक्‍त किया है?

19 ये प्राचीन, परमेश्‍वर की आत्मा की प्रेरणा से लिखे गए वचन में दी गयी माँगों को पूरा करते हैं। (1 तीमुथियुस 3:1-7; तीतुस 1:5-9) इसलिए यह कहना बिलकुल सही होगा कि उन्हें पवित्र आत्मा ने नियुक्‍त किया है। (प्रेरितों 20:28) इन प्राचीनों को परमेश्‍वर के वचन का अच्छा ज्ञान होना चाहिए। जिस महान न्यायी ने उन्हें ठहराया है, उसकी तरह प्राचीनों को भी ऐसी हर बात से घृणा करनी चाहिए जिससे न्याय में पक्षपात की बू आती हो।—व्यवस्थाविवरण 10:17, 18.

20. हमारे मेहनती प्राचीनों के बारे में आपको क्या बात अच्छी लगती है?

20 अपने मेहनती प्राचीनों के अधिकार पर उँगली उठाने के बजाय, हम उनकी दिल से कदर करते हैं! बरसों से वफादार रहकर सेवा करने का उन्होंने जो रिकॉर्ड कायम किया है, उससे वाकई हमारा भरोसा बढ़ता है। वे बिना नागा कलीसिया की सभाओं की तैयारी करते हैं और सभाएँ चलाते हैं, हमारे साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर ‘राज्य का सुसमाचार’ प्रचार करते हैं और जब हमें ज़रूरत हो तो बाइबल से सलाह भी देते हैं। (मत्ती 24:14; इब्रानियों 10:23, 25; 1 पतरस 5:2) जब हम बीमार होते हैं, तो वे हमसे मिलने आते हैं और जब हम दुःखी होते हैं तो हमें दिलासा देते हैं। वे वफादारी और निःस्वार्थ भावना से राज्य के काम को बढ़ाते हैं। यहोवा की आत्मा उन पर है; वह उनसे खुश है।—गलतियों 5:22, 23.

21. प्राचीनों को किस बात का ध्यान रखना चाहिए और क्यों?

21 बेशक हमारे प्राचीन सिद्ध नहीं हैं। उन्हें अपनी हद का एहसास रहता है, और इसलिए जो झुंड परमेश्‍वर ने उन्हें ‘सौंपा’ है, उस पर वे अधिकार नहीं जताते। इसके बजाय, वे खुद को ‘अपने भाइयों के आनन्द के लिए उनके सहकर्मी’ मानते हैं। (1 पतरस 5:3; 2 कुरिन्थियों 1:24, NHT) नम्र, मेहनती प्राचीन यहोवा से प्रेम करते हैं, और जानते हैं कि वे उसके जैसे होने की जितनी कोशिश करेंगे, उतना ही वे कलीसिया की भलाई के लिए काम कर सकेंगे। इस बात को मन में रखते हुए, वे लगातार कोशिश करते हैं कि वे प्रेम, करुणा और धीरज जैसे ईश्‍वरीय गुण ज़ाहिर करें।

22. कोरह के वृत्तांत पर गौर करने से कैसे इस पृथ्वी पर यहोवा के संगठन में आपका विश्‍वास मज़बूत हुआ है?

22 हम कितने खुश हैं कि यहोवा हमारा अनदेखा राजा है, यीशु मसीह हमारा महायाजक है, राजकीय याजकवर्ग के अभिषिक्‍त जन हमारे शिक्षक हैं और वफादार मसीही प्राचीन हमारे सलाहकार हैं! यह सच है कि इंसान जिस संगठन को चलाता है वह संगठन सिद्ध तो नहीं हो सकता, फिर भी हमें खुशी है कि हम अपने ऐसे वफादार भाई-बहनों के साथ परमेश्‍वर की सेवा कर पा रहे हैं जो खुशी-खुशी परमेश्‍वर के ठहराए अधिकार के अधीन रहते हैं!

[फुटनोट]

^ हारून के दो और बेटों, एलीआजर और ईतामार ने यहोवा की सेवा करने में अच्छी मिसाल कायम की।—लैव्यव्यवस्था 10:6.

^ कोरह के साथ साज़िश रचनेवाले, दातान और अबीराम, रूबेन के गोत्र से थे। इसलिए, कहा जा सकता है कि उनमें याजक-पद हासिल करने का लालच नहीं था। मगर उनकी बगावत की वजह यह थी कि वे मूसा की अगुवाई से खुश नहीं थे और उस वक्‍त तक, वादा किए हुए देश में पहुँचने की उनकी उम्मीद भी पूरी नहीं हुई थी।—गिनती 16:12-14.

^ कुलपिताओं के ज़माने में, हर परिवार का मुखिया अपनी पत्नी और बच्चों की तरफ से परमेश्‍वर के सामने खड़ा होता था, यहाँ तक कि उनकी तरफ से बलिदान भी चढ़ाता था। (उत्पत्ति 8:20; 46:1; अय्यूब 1:5) मगर जब व्यवस्था शुरू की गयी, तब यहोवा ने हारून के घराने के आदमियों को याजक ठहराया और उन्हीं को बलिदान चढ़ाने का काम दिया गया था। ज़ाहिर है कि ये 250 बागी इस बदलाव को मानने के लिए तैयार नहीं थे।

आपने क्या सीखा?

• यहोवा ने इस्राएलियों का ध्यान रखने के लिए कौन-से प्यार-भरे इंतज़ाम किए थे?

• मूसा और हारून के खिलाफ कोरह के बगावत करने की क्यों कोई ठोस वजह नहीं थी?

• यहोवा ने बागियों को जो सिला दिया, उससे हम क्या सबक सीखते हैं?

• आज हम यहोवा के इंतज़ामों के लिए कदरदानी कैसे दिखा सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 9 पर तसवीर]

यहोवा की सेवा में किसी भी काम को क्या आप एक आशीष समझते हैं?

[पेज 10 पर तसवीर]

“इसलिये तुम यहोवा की मण्डली में ऊंचे पदवाले क्यों बन बैठे हो?”

[पेज 13 पर तसवीर]

नियुक्‍त प्राचीन, राजकीय याजकवर्ग के प्रतिनिधि हैं