प्रहरीदुर्ग—अध्ययन संस्करण 15 अगस्त, 2002 एक ऐसा संसार जिसका वफादारी के बारे में नज़रिया बिगड़ चुका है आपको किसका वफादार होना चाहिए? खुश हैं, उन्होंने पढ़ना सीख लिया! “मैं ने तुम्हें नमूना दिखा दिया है” “मेरे पीछे हो ले” सोचने-समझने की काबिलीयत से आपकी हिफाज़त कैसे हो सकती है? क्या आप अपनी खराई बनाए रखेंगे? क्या आपको याद है? पाठकों के प्रश्न “पता है, मैं आपका पैसा क्यों लौटा रही हूँ?” क्या आप चाहते हैं कि कोई आकर आपसे मिले? प्रिंट करें दूसरों को भेजें दूसरों को भेजें प्रहरीदुर्ग—अध्ययन संस्करण 15 अगस्त, 2002 प्रहरीदुर्ग—अध्ययन संस्करण 15 अगस्त, 2002 हिंदी प्रहरीदुर्ग—अध्ययन संस्करण 15 अगस्त, 2002 https://assetsnffrgf-a.akamaihd.net/assets/ct/e781f8601f/images/cvr_placeholder.jpg