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एक ऐसा संसार जिसका वफादारी के बारे में नज़रिया बिगड़ चुका है

एक ऐसा संसार जिसका वफादारी के बारे में नज़रिया बिगड़ चुका है

एक ऐसा संसार जिसका वफादारी के बारे में नज़रिया बिगड़ चुका है

एक शुक्रवार की शाम को टेल अवीव, इस्राएल में एक जवान नाइट क्लब के बाहर इंतज़ार कर रहे कुछ जवानों के साथ हो लिया। उसके कुछ पल बाद भीड़ में एक बहुत बड़ा धमाका हुआ।

एक और आत्मघाती हमलावर ने अपनी जान दे दी, साथ ही दूसरे 19 जवानों की बड़ी क्रूरता से जान ले ली। बाद में एक चिकित्सक ने संवाददाताओं को बताया: “नौजवानों के शरीर के चिथड़े-चिथड़े होकर इधर-उधर छितर गए थे। मैंने अपनी ज़िंदगी में ऐसा खौफनाक मंज़र कभी नहीं देखा।”

द लैन्सॆट पत्रिका में थर्स्टन ब्रूइन ने लिखा: “वफादारी . . . , जैसे गुण जिनको सभी पसंद करते हैं, इनकी वजह से युद्धों के शुरू होने की गुंजाइश ज़्यादा होती है और यही गुण युद्धों के खत्म होने में रुकावट होते हैं।” जी हाँ, ईसाईजगत के धर्म-युद्ध हों या नात्ज़ी जर्मनी की पूरी व्यवस्था के साथ किया गया जनसंहार, इंसान का इतिहास वफादारी के नाम पर बहाए गए खून से रंगा हुआ है।

बेवफाई के शिकार लोगों की बढ़ती संख्या

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आँख मूँदकर वफादारी दिखाने का जुनून तबाही की वजह हो सकती है, मगर दूसरी तरफ वफादारी की कमी होने से समाज टूटकर बिखर सकता है। वफादारी का मतलब है: किसी इंसान या किसी काम के प्रति निष्ठा दिखाना और जिसमें यह गुण होता है वह इंसान, अटल इरादे के साथ वफादार बना रहता है, तब भी जब उसे दगा देने या बेवफाई करने के लिए ललचाया जाता है। जहाँ एक तरफ लोग ऐसी वफादारी की सराहना करते हैं, वहीं समाज की बुनियाद ही इस गुण की कमी से खोखली होती जा रही है। जी हाँ, परिवारों में ही वफादारी की भारी कमी है। तलाक की दर आज आसमान छू रही है। इसको बढ़ावा देनेवाली कई बातें हैं जैसे कि खुदगर्ज़ी की भावना, रोज़मर्रा ज़िंदगी के तनाव और शादी में लैंगिक संबंधों के मामले में तेज़ी से बढ़ती बेवफाई। जैसे टेल अवीव की बम दुर्घटना में हुआ, इसके शिकार भी बेकसूर नौजवान ही होते हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक: “जब माँ-बाप के बीच तलाक होता है या वे अलग हो जाते हैं, उनमें से कोई एक ही परिवार की देख-रेख करता है, तो इसका बच्चे की शिक्षा पर काफी बुरा असर पड़ता है।” जहाँ माँ अकेले ही अपने लड़कों की परवरिश करती है, वहाँ इस बात का ज़्यादा खतरा रहता है कि वे अच्छी तरह पढ़ेंगे-लिखेंगे नहीं, आत्म-हत्या कर लेंगे या फिर कम उम्र में अपराधी बन जाएँगे। अमरीका में हर साल दस लाख बच्चों के माता-पिता तलाक लेते हैं। और किसी भी साल में जितने बच्चे पैदा होते हैं उनमें से आधे बच्चों की उम्र 18 साल होने तक मुमकिन है कि उनके माता-पिता का तलाक हो गया होगा। आँकड़े दिखाते हैं कि संसार के दूसरे हिस्सों में भी नौजवान ऐसे ही दर्दनाक हालात से गुज़र रहे हैं।

क्या वफादार रहना मुमकिन नहीं?

जिन रिश्‍ते-नातों में हमेशा से वफादारी दिखायी जाती है, अब वहाँ भी बेवफाई घर कर गयी है। इसलिए राजा दाऊद के शब्द बिलकुल सही मालूम पड़ते हैं: “हे परमेश्‍वर बचा ले, क्योंकि एक भी भक्‍त नहीं रहा; मनुष्यों में से विश्‍वासयोग्य लोग मर मिटे हैं।” (भजन 12:1) पूरी दुनिया में वफादारी की ऐसी कमी क्यों है? टाइम पत्रिका में रॉजर रोज़नब्लाट लिखते हैं: “वफादारी का स्तर बहुत ही उम्दा स्तर है, मगर हम इंसानों के अंदर इतना डर, स्वार्थ, ऊँचा उठने का जुनून और खुद पर भरोसा न होने की भावना है कि कमज़ोर इंसान से वफादार होने की उम्मीद करना आसमान से तारे तोड़ लाने के बराबर है, यह मुमकिन है ही नहीं।” हम जिस वक्‍त में जी रहे हैं, उसके बारे में बाइबल खुलकर बताती है: ‘आदमी ख़ुदग़र्ज़, दिली मुहब्बत से ख़ाली, दग़ाबाज़ होंगे।’—2 तीमुथियुस 3:1-5, हिन्दुस्तानी बाइबिल।

इस बात को ध्यान में रखते हुए कि वफादारी दिखाने या न दिखाने की इंसान की सोच और उसके कामों पर कैसा ज़बरदस्त असर पड़ता है, हम अपने आप से पूछ सकते हैं, ‘असल में हमारी वफा का हकदार कौन है?’ गौर कीजिए कि अगला लेख इस सवाल के बारे में क्या कहता है।

[पेज 3 पर चित्र का श्रेय]

ऊपर की तसवीर: © AFP/CORBIS