प्रहरीदुर्ग—अध्ययन संस्करण 1 सितंबर, 2002 सुख-दुःख में साथ देनेवाले पड़ोसी कहाँ गए? अच्छे पड़ोसी सचमुच एक अनमोल देन हैं ‘उस प्रकार किसी मनुष्य ने अब तक ऐसी बातें नहीं कीं’ “बिना दृष्टान्त वह उन से कुछ न कहता था” महान शिक्षक की मिसाल पर चलिए “मैं कुछ भी नहीं बदलना चाहूँगी!” हमें परीक्षाओं को किस नज़र से देखना चाहिए? ‘दिल खोलकर एक दूसरे को क्षमा करो’ क्या आप चाहते हैं कि कोई आकर आपसे मिले? प्रिंट करें दूसरों को भेजें दूसरों को भेजें प्रहरीदुर्ग—अध्ययन संस्करण 1 सितंबर, 2002 प्रहरीदुर्ग—अध्ययन संस्करण 1 सितंबर, 2002 हिंदी प्रहरीदुर्ग—अध्ययन संस्करण 1 सितंबर, 2002 https://assetsnffrgf-a.akamaihd.net/assets/ct/d8f8c0370e/images/cvr_placeholder.jpg