“बिना दृष्टान्त वह उन से कुछ न कहता था”
“बिना दृष्टान्त वह उन से कुछ न कहता था”
“ये सब बातें यीशु ने दृष्टान्तों में लोगों से कहीं, और बिना दृष्टान्त वह उन से कुछ न कहता था।”—मत्ती 13:34.
1, 2. (क) अच्छे दृष्टांत क्यों सालों तक याद रह जाते हैं? (ख) यीशु ने किस तरह के दृष्टांतों का इस्तेमाल किया और दृष्टांतों को इस्तेमाल करने के तरीके के बारे में कौन-से सवाल उठते हैं? (फुटनोट भी देखिए।)
क्या आपको ऐसा कोई दृष्टांत याद है, जिसे आपने सालों पहले किसी जन-भाषण में या किसी और मौके पर सुना था? अच्छे दृष्टांत बहुत समय तक याद रह जाते हैं। एक लेखक ने कहा कि दृष्टांतों की वजह से “सुननेवालों के कान मानो आँखों का काम करते हैं और सुननेवाले, बतायी जा रही बातों की मन में तसवीर बना पाते हैं।” अकसर जिस बात की हमारे मन में तसवीर बन जाए, उसे हम अच्छी तरह समझ जाते हैं और तसवीर बनाने में दृष्टांत हमारी मदद करते हैं। दृष्टांत, शब्दों में जान डाल सकते हैं और उनसे सिखाया जानेवाला सबक दिलो-दिमाग में घर कर जाता है।
2 दृष्टांत बताने में यीशु मसीह जितना निपुण था, उतना निपुण शिक्षक आज तक पैदा नहीं हुआ। यीशु ने आज से करीब दो हज़ार साल पहले जो बहुत-सी नीति-कथाएँ बतायी थीं, उन्हें आज भी लोग नहीं भूले हैं। * यीशु ने सिखाने के इस तरीके का खासकर इस्तेमाल क्यों किया? किस बात ने उसके दृष्टांतों को बहुत असरदार बनाया?
यीशु ने सिखाने में दृष्टांतों का इस्तेमाल क्यों किया
3. (क) मत्ती 13:34, 35 के मुताबिक एक वजह क्या है जिससे यीशु ने सिखाने में दृष्टांतों का इस्तेमाल किया? (ख) हम कैसे कह सकते हैं कि यहोवा सिखाने के इस तरीके को अनमोल समझता है?
3 यीशु ने दृष्टांतों का इस्तेमाल क्यों किया, इसके बारे में बाइबल दो खास वजह बताती है। पहली तो यह है कि यीशु, ने दृष्टांत बताकर एक भविष्यवाणी पूरी की। प्रेरित मत्ती ने लिखा: “ये सब बातें यीशु ने दृष्टान्तों में लोगों से कहीं, और बिना दृष्टान्त वह उन से कुछ न कहता था। कि जो वचन भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हो कि मैं दृष्टान्त कहने को अपना मुंह खोलूंगा।” (मत्ती 13:34, 35) मत्ती ने जिस “भविष्यद्वक्ता” का ज़िक्र किया, वह भजन 78:2 का रचनाकार था। उस भजनहार ने यह बात यीशु के जन्म से सदियों पहले, परमेश्वर की आत्मा की प्रेरणा से लिखा था। वाकई यह गौर करने लायक बात है, यहोवा ने सदियों पहले ही बता दिया था कि उसका बेटा दृष्टांत देकर सिखाएगा! इससे पता चलता है कि यहोवा की नज़र में भी सिखाने का यह तरीका अनमोल है!
4. दृष्टांत देने की यीशु ने क्या वजह बतायी?
4 दृष्टांत देने की दूसरी वजह, यीशु ने खुद बतायी। वह इनका इस्तेमाल करके यह फर्क कर सकता था कि कौन उसके संदेश में दिलचस्पी रखते हैं और कौन नहीं। जब यीशु ने एक “बड़ी भीड़” को बीज बोनेवाले का दृष्टांत बताया, तो बाद में चेलों ने उससे पूछा: “तू उन से दृष्टांतों में क्यों बातें करता है?” यीशु ने जवाब दिया: “तुम को स्वर्ग के राज्य के भेदों की समझ दी गई है, पर उन को नहीं। मैं उन से दृष्टान्तों में इसलिये बातें करता हूं, कि वे देखते हुए नहीं देखते; और सुनते हुए नहीं सुनते; और नहीं समझते। और उन के विषय में यशायाह की यह भविष्यद्वाणी पूरी होती है, कि तुम कानों से तो सुनोगे, पर समझोगे नहीं; और आंखों से तो देखोगे, पर तुम्हें न सूझेगा। क्योंकि इन लोगों का मन मोटा हो गया है।”—मत्ती 13:2, 10, 11, 13-15; यशायाह 6:9, 10.
5. यीशु के दृष्टांतों ने किस तरह नम्र लोगों को घमंडियों से अलग किया?
5 यीशु के दृष्टांतों में ऐसी क्या बात थी जिससे वह लोगों में फर्क कर सकता था? कुछ दृष्टांतों का पूरा मतलब समझने के लिए सुननेवालों को उनकी तह तक पहुँचना ज़रूरी था। जो नम्र स्वभाव के थे, उन्होंने ज़्यादा जानकारी के लिए यीशु से जाकर पूछा। (मत्ती 13:36; मरकुस 4:34) इस तरह यीशु के दृष्टांतों से एक तरफ सच्चाई की तलाश करनेवालों ने सच्चाई जानी जबकि घमंडियों के लिए यह एक रहस्य बनी रही। वाकई, यीशु एक लाजवाब शिक्षक था! आइए अब हम कुछ ऐसी पहलुओं की जाँच करें जिनकी वजह से उसके दृष्टांत दमदार बने।
सिर्फ ज़रूरी जानकारी देना
6-8. (क) पहली सदी के यीशु के चेलों के पास कौन-सी सुविधा नहीं थी? (ख) कौन-सी मिसालें दिखाती हैं कि यीशु, अपने दृष्टांतों में सिर्फ वही जानकारी देता था जो ज़रूरी हो?
6 क्या आपने कभी यह कल्पना की है कि पहली सदी के चेलों के लिए, सीधे यीशु से सीखना कैसा रहा होगा? हालाँकि उन्हें सीधे यीशु से सुनने का सुनहरा मौका था, मगर उनके लिए एक मुश्किल यह थी कि उनके पास ऐसी कोई किताब नहीं थी जिसमें यीशु की कही बातें लिखी हों और वे उसे पढ़कर याद कर सकें। इसलिए उन्हें यीशु की बातें सुनते वक्त अपने दिलो-दिमाग में अच्छी तरह बिठाना पड़ता था। यीशु ने दृष्टांतों का बढ़िया तरीके से इस्तेमाल करके उनके लिए याद रखना आसान बना दिया। वह कैसे?
7 यीशु, दृष्टांतों में सिर्फ वही जानकारी देता था जो ज़रूरी हो। कोई किस्सा सुनाते वक्त उन्हें ऐसी बातें ज़रूर बताता था, जो वाकई ज़रूरी हों या खास मुद्दे पर ज़ोर देने के लिए जिनको बताना सही लगे। मिसाल के लिए, एक खोई हुई भेड़ के दृष्टांत में उसने ठीक-ठीक बताया कि चरवाहा कितनी भेड़ों को छोड़कर उस भेड़ को ढूँढ़ने गया था, मज़दूरों के दृष्टांत में उन्होंने ठीक कितने घंटे काम किया और तोड़ों के दृष्टांत में कितने-कितने तोड़े अमानत में दिए गए।—मत्ती 18:12-14; 20:1-16; 25:14-30.
8 दूसरी तरफ, यीशु ने ऐसी गैर-ज़रूरी बातें नहीं बतायीं जिनसे दृष्टांतों का असली मुद्दा समझने में मुश्किल पैदा हो। उदाहरण के लिए, एक कठोर दास की नीति-कथा में उसने यह नहीं बताया कि वह दास 6,00,00,000 दीनार के कर्ज़ में कैसे डूब गया। यीशु माफ करने की अहमियत बता रहा था, इसलिए यह बताना ज़रूरी नहीं था कि वह दास कर्ज़दार कैसे बना। ज़रूरी बात यह थी कि उसका कर्ज़ कैसे माफ हुआ और उसने अपने साथ काम करनेवाले एक दास के साथ कैसा सलूक किया जो कि उसे बहुत कम पैसों का देनदार था। (मत्ती 18:23-35) उसी तरह, उड़ाऊ पुत्र के दृष्टांत में यीशु ने यह नहीं बताया कि छोटे बेटे ने अचानक विरासत से अपना हिस्सा क्यों माँगा और क्यों उसे उड़ा दिया। लेकिन यीशु ने इस बारे में खुलकर बताया कि जब बेटा मन फिराकर वापस घर लौटा तो उसके पिता की भावनाएँ कैसी रहीं और वह उसके साथ कैसे पेश आया। पिता के बारे में ये बातें बताना ज़रूरी था, क्योंकि इस दृष्टांत के ज़रिए यीशु यह सिखा रहा था कि यहोवा “पूरी रीति से क्षमा करता है।”—यशायाह 55:7; लूका 15:11-32.
9, 10. (क) यीशु ने अपने दृष्टांतों के किरदारों के बारे में खासकर क्या बताया? (ख) किस तरह यीशु ने उसका उपदेश सुननेवालों और बाद के लोगों के लिए, उसके दृष्टांत याद रखना आसान बना दिया?
9 दृष्टांतों के किरदारों का भी यीशु सोच-समझकर वर्णन करता था। उनके शक्ल-सूरत के बारे में लंबी-चौड़ी जानकारी देने के बजाय, वह अकसर यह बताता था कि उन्होंने क्या किया और दृष्टांत में बतायी गयी घटनाओं में वे कैसे पेश आए। मसलन, दयालु सामरी के दृष्टांत में यीशु ने उस सामरी के रंग-रूप के बारे में नहीं बताया बल्कि उसकी एक बहुत खास बात बतायी। वह यह थी कि जब उसने रास्ते पर एक यहूदी को घायल पड़ा देखा, तो कैसे तरस खाकर उसकी मदद की। यीशु ने वही जानकारी दी जो यह सिखाने के लिए ज़रूरी थी कि प्यार, सभी इंसानों से किया जाना चाहिए, सिर्फ अपनी जाति या देश के लोगों से नहीं।—लूका 10:29, 33-37.
10 यीशु, के दृष्टांतों में गैर-ज़रूरी बातें नहीं होती थीं इसलिए वे छोटी होती थीं और उनसे असली मुद्दा साफ-साफ ज़ाहिर हो जाता था। इस तरह यीशु ने बेहतरीन तरीके से दृष्टांत बताकर अपने समय के लोगों और बाद में सुसमाचार की किताबें पढ़नेवालों के लिए उसके दृष्टांत और उसमें बताए गए सबक याद रखना आसान बना दिया।
रोज़मर्रा की ज़िंदगी से ताल्लुक रखनेवाले दृष्टांत
11. यह बताने के लिए कुछ मिसाल दीजिए कि यीशु की नीति-कथाओं से पता चलता है कि उसने गलील में पलते-बढ़ते वक्त वहाँ की रोज़मर्रा की बातों पर ध्यान दिया था।
11 यीशु ऐसे दृष्टांत बताने में माहिर था, जो लोगों के रोज़मर्रा के जीवन से ताल्लुक रखते हैं। उसके कई दृष्टांतों से पता चलता है कि जब वह गलील में पल-बढ़ रहा था, तो उसने वहाँ की कई बातों पर ध्यान दिया होगा। ज़रा उसके बचपन के बारे में सोचिए। उसने अकसर देखा होगा कि उसकी माँ पिछली बार के गूँधे आटे से थोड़ा आटा लेकर उसे खमीर की तरह इस्तेमाल करके खमीरी रोटी बनाती है। (मत्ती 13:33) उसने कितनी ही बार मछुवारों को गलील सागर के साफ नीले पानी में जाल डालते देखा होगा। (मत्ती 13:47) और बाज़ार में बच्चों के खेलने का नज़ारा भी उसके लिए आम रहा होगा। (मत्ती 11:16) यीशु ने ज़िंदगी की इन आम बातों पर भी ज़रूर गौर किया होगा, इसलिए उनके बारे में उसने दृष्टांत दिए जैसे कि बीज बोना, शादी की दावत में खुशियाँ मनाना, सूरज की गरमी में खेतों का पकना, वगैरह।—मत्ती 13:3-8; 25:1-12; मरकुस 4:26-29.
12, 13. गेहूँ और जंगली बीज की नीति-कथा कैसे दिखाती है कि यीशु अपने आस-पास के माहौल से वाकिफ था?
12 तो इसमें ताज्जुब नहीं कि यीशु के कई दृष्टांतों में रोज़मर्रा की ज़िंदगी की बातों का खूब ज़िक्र मिलता है। इसलिए दृष्टांतों का इस्तेमाल करने की यीशु की कला को अच्छी तरह समझने के लिए यह जाँचना ज़रूरी है कि उसकी बातें, उसका उपदेश सुननेवाले यहूदियों के लिए क्या अर्थ रखती थीं। चलिए हम ऐसी दो मिसालों पर गौर करें।
13 पहली नीति-कथा, गेहूँ और जंगली बीज की है। इसमें यीशु ने एक आदमी के बारे में बताया कि उसने अपने खेत में अच्छे किस्म के गेहूँ के बीज बोए थे, मगर रात को उसके “बैरी” ने आकर खेत में जंगली बीज बो दिए। यीशु ने दुश्मनी दिखाने के इसी काम की मिसाल क्यों दी? याद रखिए कि यीशु ने यह दृष्टांत, गलील सागर के किनारे सिखाते वक्त बताया था और सबूतों के मुताबिक गलीलवासियों का खास पेशा खेती-बाड़ी था। एक किसान के लिए इससे बड़ा नुकसान और क्या हो सकता है कि एक दुश्मन चोरी-छिपे आकर उसके खेत में जंगली बीज बो दे? उस ज़माने के सरकारी कानूनों से पता चलता है कि उन दिनों ऐसे अपराध हुआ करते थे। क्या इससे यह साफ पता नहीं चलता कि यीशु ने एक ऐसी घटना की मिसाल दी जिसे उसके सुननेवाले आसानी से समझ सकते थे?—मत्ती 13:1, 2, 24-30.
14. दयालु सामरी के दृष्टांत में यह बात गौर करने लायक क्यों है कि यीशु ने अपनी बात समझाने के लिए “यरूशलेम से यरीहो को” जानेवाले रास्ते का ही ज़िक्र किया?
14 दूसरी नीति-कथा दयालु सामरी की है। यीशु ने किस्सा इस तरह शुरू की: “एक मनुष्य यरूशलेम से यरीहो को जा रहा था, कि डाकुओं ने घेरकर उसके कपड़े उतार लिए, और मारपीटकर उसे अधमूआ छोड़कर चले गए।” (लूका 10:30) गौरतलब है कि यीशु ने अपनी बात समझाने के लिए, “यरूशलेम से यरीहो को” जानेवाले रास्ते का ज़िक्र किया। यीशु ने यह नीति-कथा यहूदिया में बताया था, इसलिए ज़ाहिर है कि उसके सुननेवाले इस रास्ते से वाकिफ रहे होंगे। यह रास्ता बहुत जोखिम-भरा था, खासकर एक अकेले मुसाफिर के लिए। और रास्ता बहुत घुमावदार और टेढ़ा-मेढ़ा था और सुनसान पहाड़ी इलाके से होकर जाता था, इसलिए वहाँ डाकुओं के लिए छिपकर हमला करने के बहुत-से अड्डे थे।
15. दयालु पड़ोसी के दृष्टांत में याजक और लेवी के कतराकर जाने की बात को क्यों सही नहीं ठहराया जा सकता?
15 “यरूशलेम से यरीहो को” जानेवाले रास्ते के बारे में एक और दिलचस्प बात है। उस किस्से के मुताबिक, सबसे पहले एक याजक और उसके बाद एक लेवी भी उस रास्ते से गुज़रा, लेकिन उनमें से एक ने भी रुककर उस घायल आदमी की मदद नहीं की। (लूका 10:31, 32) याजक, यरूशलेम के मंदिर में सेवा करते थे और लेवी उनकी मदद किया करते थे। बहुत-से याजक और लेवी, जब मंदिर में सेवा नहीं करते, तो यरीहो में रहते थे, क्योंकि वह यरूशलेम से सिर्फ 23 किलोमीटर दूर था। इसलिए वे उस रास्ते से कभी-कभी ज़रूर आते-जाते होंगे। इस बात पर भी ध्यान दीजिए कि वे “यरूशलेम से” यानी मंदिर से दूर जा रहे थे। * (तिरछे टाइप हमारे।) इसलिए उनके कतराकर जाने को सही ठहराते हुए कोई यह नहीं कह सकता कि ‘वे उस घायल आदमी को छोड़कर इसलिए चले गए, क्योंकि उन्हें वह मरा हुआ लगा था। अगर वे उसकी लाश को छूते, तो वे थोड़े समय के लिए मंदिर में सेवा नहीं कर सकते थे।’ (लैव्यव्यवस्था 21:1; गिनती 19:11, 16) क्या इससे साफ ज़ाहिर नहीं है कि यीशु उन बातों का दृष्टांत देता था जो लोगों के लिए जानी-पहचानी होती थीं?
परमेश्वर की सृष्टि के दृष्टांत
16. यह ताज्जुब की बात क्यों नहीं है कि यीशु को सृष्टि के बारे में अच्छी जानकारी थी?
16 यीशु के कई दृष्टांतों और नीति-कथाओं से पता चलता है कि वह पेड़-पौधों, जीव-जन्तुओं और बदलते मौसम से अच्छी तरह वाकिफ था। (मत्ती 6:26, 28-30; 16:2, 3) उसे यह सारी जानकारी कहाँ से मिली? गलील में पलते-बढ़ते वक्त उसे ज़रूर यहोवा की सृष्टि को गौर से देखने का बढ़िया मौका मिला होगा। इसके अलावा, यीशु “सारी सृष्टि में पहलौठा” है और यहोवा ने सब वस्तुओं को बनाने के लिए उसे एक “कारीगर” की तरह इस्तेमाल किया था। (कुलुस्सियों 1:15, 16; नीतिवचन 8:30, 31) तो क्या यह कोई ताज्जुब की बात है कि उसे सृष्टि के बारे में अच्छी जानकारी थी? चलिए देखें कि उसने सिखाते वक्त इस ज्ञान का कैसे बखूबी इस्तेमाल किया।
17, 18. (क) यूहन्ना के दसवें अध्याय में दिए यीशु के शब्द कैसे दिखाते हैं कि वह भेड़ों की आदतों से अच्छी तरह वाकिफ था? (ख) बाइबल के देशों का दौरा करनेवालों ने चरवाहों और उनकी भेड़ों के बीच कैसा बंधन देखा?
17 यीशु ने ऐसे कई दृष्टांत बताए जो हमारे दिल को छू जाते हैं। ऐसा ही एक दृष्टांत, यूहन्ना के दसवें अध्याय में दिया गया है। इस दृष्टांत में उसने चेलों के साथ अपने रिश्ते की तुलना, एक चरवाहे और उसकी भेड़ों के बीच के रिश्ते से की। यीशु के शब्दों से पता चलता है कि वह घरेलू भेड़ों की आदतों से अच्छी तरह वाकिफ था। उसने कहा कि भेड़ें, चरवाहे के पीछे-पीछे चलती हैं और वहीं जाती हैं, जहाँ वह उन्हें ले जाता है। (यूहन्ना 10:2-4) बाइबल के देशों का दौरा करनेवालों ने देखा कि भेड़ों और चरवाहों के बीच एक अनोखा बंधन होता है। उन्नीसवीं सदी के प्रकृतिविज्ञानी एच. बी. ट्रिस्ट्राम ने बताया: “मैंने एक बार एक चरवाहे को अपनी भेड़ों के साथ खेलते हुए देखा। उसने भेड़ों से दूर भागने का नाटक किया; तब भेड़ें उसके पीछे-पीछे भागकर गयीं और उन्होंने उसे जा घेरा . . . आखिरकार, झुंड की सारी भेड़ें, चरवाहे के चारों तरफ घेरा बनाकर कूदने-फाँदने लगीं।”
18 भेड़ें अपने चरवाहे के पीछे-पीछे क्यों जाती हैं? यीशु ने कहा: “क्योंकि वे उसका शब्द पहचानती हैं।” (यूहन्ना 10:4) क्या भेड़ें सचमुच अपने चरवाहे की आवाज़ पहचानती हैं? जॉर्ज ए. स्मिथ ने अपनी किताब द हिस्टॉरिकल जियोग्राफी ऑफ द होली लैंड में एक नज़ारा बयान किया जिसे उन्होंने अपनी आँखों से देखा था: “हम कभी-कभी दोपहर के वक्त यहूदिया के किसी कुँए के पास आराम करते थे। वहाँ तीन-चार चरवाहे अपनी भेड़ों के झुंड को पानी पिलाने लाते थे। सारे झुंड एक-दूसरे से मिल जाते थे और उन्हें देखकर हम सोच में पड़ जाते थे कि चरवाहे अपने-अपने झुंड की भेड़ों को अलग कैसे करेंगे। लेकिन जब भेड़ों का पानी पीना और कूदना-फाँदना खत्म हो जाता, तो चरवाहे एक-एक करके घाटी की अलग-अलग दिशाओं में जाते और हरेक अपने अनोखे तरीके से आवाज़ देता; तब भीड़ में से हर झुंड की भेड़ें निकलकर अपने-अपने चरवाहे के पास चली जाती थीं, और सारे झुंड उसी तरतीब से लौट जाते जैसे वे पानी पीने आए थे।” यीशु ने अपनी बात समझाने के लिए वाकई उम्दा दृष्टांत दिया। हम भी अगर उसकी शिक्षाओं को जानेंगे और उनको मानेंगे और उसकी दिखायी राह पर चलेंगे, तो “अच्छा चरवाहा” प्यार से हमारी देखभाल करेगा।—यूहन्ना 10:11.
जानी-मानी घटनाओं से दृष्टांत
19. किस तरह एक झूठी शिक्षा को गलत साबित करने के लिए यीशु ने एक ऐसे हादसे का हवाला दिया जिसे सब जानते थे?
19 असरदार दृष्टांत, ऐसे अनुभव या मिसाल भी हो सकती हैं जिनसे कोई सबक सीखा जा सकता है। एक अवसर पर, यीशु ने हाल की एक घटना का हवाला देकर इस झूठी धारणा का खंडन किया कि दुर्घटनाएँ ऐसे लोगों के साथ होती हैं जो उनके लायक हैं। उसने कहा: “क्या तुम समझते हो, कि वे अठारह जन जिन पर शीलोह का गुम्मट गिरा, और वे दब कर मर गए: यरूशलेम के और सब रहनेवालों से अधिक अपराधी थे?” (लूका 13:4) यीशु ने ज़बरदस्त दलील देकर इस बात को गलत साबित किया कि वही होता है जो भाग्य में लिखा होता है। वे अठारह लोग इसलिए नहीं मरे, क्योंकि उनके किसी पाप की वजह से परमेश्वर का क्रोध उन पर भड़क उठा था। इसके बजाय, उनकी मौत बस समय और संयोग से हुआ एक हादसा थी। (सभोपदेशक 9:11) इस तरह यीशु ने एक झूठी शिक्षा को गलत साबित करने के लिए एक ऐसे हादसे का हवाला दिया जिसे सभी जानते थे।
20, 21. (क) फरीसियों ने यीशु के चेलों की निंदा क्यों की? (ख) यीशु ने बाइबल के किस वृत्तांत का हवाला देकर साबित किया कि यहोवा यह हरगिज़ नहीं चाहता कि सब्त के नियम का इतनी सख्ती से पालन किया जाए? (ग) अगले लेख में किस बात पर चर्चा की जाएगी?
20 यीशु ने सिखाते वक्त, उदाहरण के तौर पर बाइबल के वृत्तांतों का इस्तेमाल भी किया। उस वाकये को याद कीजिए, जब सब्त के दिन, यीशु के चेले खेतों से बालें तोड़कर खाते हैं तो फरीसी उनकी निंदा करते हैं। सच्चाई तो यह है कि चेलों ने परमेश्वर का नहीं बल्कि फरीसियों का नियम तोड़ा था, जिन्होंने ढेर सारे छोटे-छोटे कायदे-कानून बना दिए थे कि सब्त के दिन कौन-कौन-सा काम करना मना है। यीशु ने 1 शमूएल 21:3-6 में लिखी घटना का हवाला देकर समझाया कि परमेश्वर यह हरगिज़ नहीं चाहता कि सब्त के नियम का इतनी सख्ती से पालन किया जाए। वह घटना थी, जब दाऊद और उसके आदमी भूखे थे, तो वे मिलापवाले तंबू के पास गए और उन्होंने भेंट की उन रोटियों को खाया जिन्हें हटाकर नयी रोटियाँ रखी गईं थीं। आम तौर पर ये पुरानी रोटियाँ याजकों के खाने के लिए अलग रखी जाती थीं। लेकिन दाऊद और उसके आदमियों के हालात ऐसे थे कि उन रोटियों को खाने की वजह से उनकी निंदा नहीं की गयी। गौर करनेवाली बात यह भी है कि पूरी बाइबल में सिर्फ यही एक घटना है जिसमें पुरानी रोटियों को ऐसे लोगों ने खाया जो याजक नहीं थे। यीशु को ठीक-ठीक मालूम था कि किस वक्त पर उस घटना का हवाला दिया जाना चाहिए और ज़ाहिर है कि उसकी बात सुननेवाले, यहूदी भी उस घटना से अच्छी तरह वाकिफ थे।—मत्ती 12:1-8.
21 सचमुच, यीशु एक महान शिक्षक था! उसकी सिखाने की बेजोड़ काबिलीयत देखकर हम वाकई दंग रह जाते हैं। वह अहम सच्चाइयाँ इस तरीके से सिखाता था कि लोग उन्हें बड़ी आसानी से समझ जाते थे। लेकिन आज हम सिखाते वक्त उसकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? इस बात की चर्चा अगले लेख में की जाएगी।
[फुटनोट]
^ यीशु ने कई तरह के दृष्टांत दिए, जैसे उसने उदाहरण दिए, तुलनाएँ और समानताएँ बतायीं। वह नीति-कथाएँ बताकर सिखाने के लिए काफी मशहूर था। नीति-कथा “एक छोटा किस्सा होता है जो अकसर कल्पना पर आधारित होता है और उससे एक नैतिक शिक्षा या आध्यात्मिक सच्चाई सीखने को मिलती है।”
^ यरूशलेम, यरीहो से भी ऊँचाई पर था। इसलिए जैसे दृष्टांत में बताया गया है, “यरूशलेम से यरीहो” जाते वक्त एक मुसाफिर, “नीचे की ओर” (NW) जाता।
क्या आपको याद है?
• यीशु, दृष्टांत बताकर क्यों सिखाता था?
• कौन-सा उदाहरण दिखाता है कि यीशु ऐसे दृष्टांत बताता था जिन्हें पहली सदी के लोग आसानी से समझ सकते थे?
• यीशु ने दृष्टांत बताने के लिए, सृष्टि के बारे में अपने ज्ञान का कैसे बढ़िया इस्तेमाल किया?
• यीशु ने उन हादसों का इस्तेमाल करके कैसे सिखाया जिनसे लोग वाकिफ थे?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 15 पर तसवीरें]
यीशु ने एक ऐसे दास का दृष्टांत दिया जिसने एक छोटा-सा कर्ज़ माफ नहीं किया और एक ऐसे पिता का जिसने अपने बेटे को माफ कर दिया जबकि उसने विरासत का अपना पूरा हिस्सा उड़ा दिया
[पेज 16 पर तसवीर]
दयालु सामरी की नीति-कथा बताकर यीशु क्या समझाना चाहता था?
[पेज 17 पर तसवीर]
क्या भेड़ें सचमुच अपने चरवाहे की आवाज़ पहचानती हैं?