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“और अधिक गहराई से ध्यान दें”

“और अधिक गहराई से ध्यान दें”

“और अधिक गहराई से ध्यान दें”

“हमें चाहिए कि जो कुछ हमने सुना है, उस पर और अधिक गहराई से ध्यान दें, ऐसा न हो कि हम उससे भटक जाएं।”इब्रानियों 2:1, NHT.

1. समझाइए कि ध्यान भटकने का कैसा भयानक अंजाम हो सकता है।

 हर साल अमरीका में मोटर-गाड़ियों की दुर्घटनाओं में करीब 37,000 लोग अपनी जान गँवा बैठते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर ड्राइवर, गाड़ी चलाते वक्‍त ठीक से ध्यान देते, तो ज़्यादातर जानें बच सकती थीं। गाड़ी चलाते वक्‍त कुछ ड्राइवरों का ध्यान, सड़क पर लगे चिन्हों और विज्ञापन-बोर्ड की वजह से या सॆल फोन पर बात करने की वजह से भटक जाता है। और कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें गाड़ी चलाते वक्‍त कुछ-न-कुछ खाने की आदत होती है। इन सभी हालात में ध्यान भटकने का भयानक अंजाम होता है, दुर्घटना।

2, 3. पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को क्या सलाह दी और यह सलाह क्यों बिलकुल सही थी?

2 मोटर-गाड़ी के आविष्कार से करीब 2,000 साल पहले, प्रेरित पौलुस ने ध्यान भटकने के एक और तरीके का ज़िक्र किया, जिसकी वजह से कुछ इब्रानी मसीहियों को ज़बरदस्त खतरा हो रहा था। पौलुस ने उनको समझाते वक्‍त पहले बताया कि पुनरुत्थान पाया यीशु मसीह, परमेश्‍वर के दहिने हाथ पर बैठा है यानी उसे सभी स्वर्गदूतों से ऊँचा पद दिया गया है। इसके बाद पौलुस ने कहा: “इस कारण, हमें चाहिए कि जो कुछ हमने सुना है, उस पर और अधिक गहराई से ध्यान दें, ऐसा न हो कि हम उससे भटक जाएं।”—इब्रानियों 2:1, NHT.

3 उन इब्रानी मसीहियों को यीशु के बारे में ‘सुनी बातों पर और अधिक गहराई से ध्यान देने’ की ज़रूरत क्यों थी? क्योंकि तब तक, यीशु को धरती पर से गए करीब 30 साल बीत चुके थे। और अपने स्वामी की गैर-हाज़िरी में कुछ इब्रानी मसीही, सच्चे विश्‍वास की राह से बहकने लगे थे। उनका ध्यान यहूदी धर्म की तरफ भटकने लगा था, जिससे वे निकलकर आए थे।

उन्हें ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत थी

4. कुछ इब्रानी मसीही, शायद किस वजह से यहूदी धर्म की तरफ खिंचे जा रहे थे?

4 ऐसी क्या वजह थी कि वे मसीही, यहूदी धर्म की तरफ खिंचे जा रहे थे? दरअसल, मूसा की व्यवस्था में बताए उपासना के तौर-तरीके को लोग अपनी आँखों से देख सकते थे। मिसाल के लिए, लोग याजकों को देख सकते थे और बलिदानों की गंध सूँघ सकते थे। लेकिन मसीहियत के कुछ पहलू, यहूदी धर्म से काफी अलग थे। मसीहियों का भी एक महायाजक, यीशु मसीह था लेकिन वह करीब 30 साल से धरती पर दिखायी नहीं दे रहा था। (इब्रानियों 4:14) उनका एक मंदिर भी था, मगर उसका पवित्रस्थान स्वर्ग ही था। (इब्रानियों 9:24) व्यवस्था के तहत शारीरिक खतना किया जाता था जबकि मसीहियों का ‘आत्मा में हृदय का’ खतना होता था। (रोमियों 2:29) इसलिए शायद इब्रानी मसीहियों को यह लगने लगा था कि मसीहियत, हकीकत से कोसों दूर है।

5. पौलुस ने कैसे साबित किया कि यीशु का शुरू किया गया उपासना का इंतज़ाम, व्यवस्था के इंतज़ाम से कहीं बढ़कर है?

5 उन इब्रानी मसीहियों को, मसीह के शुरू किए गए उपासना के इंतज़ाम के बारे में एक बेहद ज़रूरी बात समझनी थी। वह यह थी कि मसीहियत में उपासना का इंतज़ाम, खासकर विश्‍वास पर आधारित है, न कि ऐसी चीज़ों पर जो दिखायी देती हैं। इसके बावजूद यह इंतज़ाम, मूसा नबी के ज़रिए दी गयी व्यवस्था के इंतज़ाम से कहीं बढ़कर था। पौलुस ने लिखा: “जब बकरों और बैलों का लोहू और कलोर की राख अपवित्र लोगों पर छिड़के जाने से शरीर की शुद्धता के लिये पवित्र करती है। तो मसीह का लोहू जिस ने अपने आप को सनातन आत्मा के द्वारा परमेश्‍वर के साम्हने निर्दोष चढ़ाया, तुम्हारे विवेक को मरे हुए कामों से क्यों न शुद्ध करेगा, ताकि तुम जीवते परमेश्‍वर की सेवा करो।” (इब्रानियों 9:13, 14) जी हाँ, यीशु मसीह के छुड़ौती बलिदान पर विश्‍वास करने से मिलनेवाली माफी, व्यवस्था के बलिदानों से मिलनेवाली माफी से कई मायनों में बढ़कर थी।—इब्रानियों 7:26-28.

6, 7. (क) किस वजह से इब्रानी मसीहियों के लिए ‘सुनी हुई बातों पर और अधिक गहराई से ध्यान देना’ बेहद ज़रूरी था? (ख) जब पौलुस ने इब्रानियों को खत लिखा, तब तक यरूशलेम के लिए कितना समय बचा था? (फुटनोट देखिए।)

6 इब्रानी मसीहियों के लिए यीशु के बारे में सुनी बातों पर ध्यान धरने की एक और वजह थी। यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि यरूशलेम नाश किया जाएगा। उसने कहा था: “वे दिन तुझ पर आएंगे, कि तेरे बैरी मोर्चा बान्धकर तुझे घेर लेंगे, और चारों ओर से तुझे दबाएंगे। और तुझे और तेरे बालकों को जो तुझ में हैं, मिट्टी में मिलाएंगे, और तुझ में पत्थर पर पत्थर भी न छोड़ेंगे; क्योंकि तू ने वह अवसर जब तुझ पर कृपा दृष्टि की गई न पहिचाना।”—लूका 19:43, 44.

7 यह नाश कब होनेवाला था? यीशु ने यह तो नहीं बताया था कि वह किस दिन या किस घड़ी होगा, लेकिन उसने यह हिदायत दी: “जब तुम यरूशलेम को सेनाओं से घिरा हुआ देखो, तो जान लेना कि उसका उजड़ जाना निकट है। तब जो यहूदिया में हों वह पहाड़ों पर भाग जाएं, और जो यरूशलेम के भीतर हों वे बाहर निकल जाएं; और जो गांवों में हों वे उस में न जाएं।” (लूका 21:20, 21) यीशु के ऐसा कहने के अगले 30 सालों के दौरान यरूशलेम के कुछ मसीही, वक्‍त की नज़ाकत को भूलने लगे थे और उनका ध्यान दूसरी चीज़ों की ओर भटक रहा था। वे मानो गाड़ी चलाते वक्‍त कहीं और देख रहे थे। अगर वे अपनी सोच ठीक नहीं करते, तो उनके लिए आफत से बचना नामुमकिन था। यरूशलेम का विनाश बड़ी तेज़ी से करीब आ रहा था, फिर चाहे उन्हें इस बात का एहसास रहा हो या नहीं! * तो पौलुस की सलाह यरूशलेम के उन मसीहियों के कानों में खतरे की घंटी की तरह बजी होगी जो आध्यात्मिक रूप से ऊँघ रहे थे।

आज “अधिक गहराई से ध्यान” देना

8. हमें परमेश्‍वर के वचन की सच्चाइयों पर “अधिक गहराई से ध्यान” क्यों देना चाहिए?

8 पहली सदी के मसीहियों की तरह, आज हमें भी परमेश्‍वर के वचन की सच्चाइयों पर “अधिक गहराई से ध्यान” देने की ज़रूरत है। क्यों? क्योंकि आज भी बहुत जल्द एक विनाश आनेवाला है और यह विनाश सिर्फ एक राष्ट्र पर नहीं बल्कि पूरे संसार पर आएगा। (प्रकाशितवाक्य 11:18; 16:14, 16) बेशक, हम नहीं जानते कि यहोवा ठीक किस दिन और किस घड़ी यह कार्यवाही करेगा। (मत्ती 24:36) लेकिन आज हम अपनी आँखों से बाइबल की उन भविष्यवाणियों को पूरा होते देख रहे हैं जो साफ दिखाती हैं कि हम “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं। (2 तीमुथियुस 3:1-5) इसलिए हमें ऐसी हर बात से चौकस रहना चाहिए जिससे हमारा ध्यान भटक सकता है। हमें परमेश्‍वर के वचन पर ध्यान देने और हमेशा वक्‍त की नज़ाकत को समझने की ज़रूरत है। ऐसा करने से ही हम, ‘आनेवाली सब घटनाओं से बचने के योग्य’ बनेंगे।—लूका 21:36.

9, 10. (क) हम यह कैसे दिखा सकते हैं कि हम आध्यात्मिक बातों पर ध्यान देनेवाले हैं? (ख) परमेश्‍वर का वचन कैसे ‘हमारे पांव के लिए दीपक’ और “मार्ग के लिए उजियाला” है?

9 वक्‍त के इस नाज़ुक दौर में हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम आध्यात्मिक बातों पर “अधिक गहराई से ध्यान” दे रहे हैं? एक तरीका है, मसीही सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों में नियमित तौर पर हाज़िर होना। इसके अलावा, हमें बाइबल का खूब मन लगाकर अध्ययन करना चाहिए ताकि हम इसके रचनाकार, यहोवा के करीब आ सकें। (याकूब 4:8) अगर हम निजी अध्ययन और सभाओं के ज़रिए, यहोवा का ज्ञान हासिल करेंगे, तो हम भी उस भजनहार की तरह बनेंगे जिसने परमेश्‍वर से कहा था: “तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है।”—भजन 119:105.

10 बाइबल हमें बताती है कि भविष्य के लिए परमेश्‍वर ने क्या मकसद रखा है और इस तरह यह ‘हमारे मार्ग के लिये उजियाला’ का काम करती है। यह ‘हमारे पांव के लिये दीपक’ भी है। दूसरे शब्दों में कहें तो, जब ज़िंदगी में बड़ी-बड़ी समस्याओं से हमारा सामना होता है, तब बाइबल हमें यह समझने में मदद दे सकती है कि हमें कौन-सा कदम उठाना चाहिए। इसीलिए, जब हम मसीही भाई-बहनों के साथ सीखने के लिए इकट्ठे होते हैं या अकेले में परमेश्‍वर का वचन पढ़ते हैं, तब “अधिक गहराई से ध्यान” देना बहुत ज़रूरी है। इन इंतज़ामों से हम जो जानकारी हासिल करते हैं, उससे हम बुद्धिमान बन पाएँगे और अच्छे फैसले कर पाएँगे जिससे यहोवा का दिल खुश होगा। (नीतिवचन 27:11; यशायाह 48:17) मगर हम सभाओं में और निजी तौर पर अध्ययन करते वक्‍त, अपनी ध्यान देने की क्षमता कैसे बढ़ा सकते हैं, ताकि परमेश्‍वर के आध्यात्मिक इंतज़ामों से हमें पूरा-पूरा फायदा हो?

सभाओं में ध्यान देने की क्षमता बढ़ाना

11. कभी-कभी मसीही सभाओं में ध्यान देना क्यों मुश्‍किल हो सकता है?

11 कभी-कभी मसीही सभाओं में एक मन से सुनना बहुत मुश्‍किल हो सकता है। जब कोई बच्चा रोता है या कोई देर से आनेवाला बैठने के लिए सीट ढूँढ़ता है, या ऐसी कुछ और बात होती है, तो हमारा ध्यान बड़ी आसानी से बँट सकता है। और यह भी हो सकता है कि दिन-भर काम करने की वजह से हम थककर चूर हो जाते हों। या वक्‍ता का भाषण शायद इतना दिलचस्प न हो, इसलिए देखते-ही-देखते हम अपने खयालों में डूब जाते हैं या फिर झपकियाँ लेने लगते हैं! लेकिन इस बात को मद्देनज़र रखते हुए कि कलीसिया की सभाओं में बेहद ज़रूरी जानकारी दी जाती है, हमें ध्यान देने की अपनी क्षमता को बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए। यह हम कैसे कर सकते हैं?

12. क्या बात, सभाओं में ध्यान देना हमारे लिए आसान बना सकती है?

12 आम तौर पर, जब हम सभाओं की पहले से तैयारी करते हैं, तो ध्यान लगाकर सुनना हमारे लिए आसान हो जाता है। इसलिए क्यों न सभाओं में जाने से पहले, वहाँ चर्चा की जानेवाली जानकारी को पढ़ने के लिए थोड़ा समय अलग रखें? अगर हम हर दिन बस चंद मिनट का समय निकालें, तो हम हफ्ते की बाइबल पढ़ाई के अध्यायों में से थोड़े-थोड़े भाग पढ़ सकते हैं और उन पर मनन कर सकते हैं। अगर हम थोड़ी-बहुत योजना बनाएँ, तो हम कलीसिया के पुस्तक अध्ययन और प्रहरीदुर्ग अध्ययन की तैयारी के लिए भी समय निकाल सकते हैं। हम चाहे जैसा भी शेड्‌यूल बनाएँ, मगर एक बात तय है: पहले से तैयारी करने से, सभाओं में कान लगाकर सुनना हमारे लिए आसान रहेगा।

13. सभाओं में जो चर्चा की जाती है, उसे ध्यान से सुनने में कौन-सी बातें हमारी मदद कर सकती हैं?

13 सभाओं की अच्छी तैयारी करने के अलावा, कुछ लोग पाते हैं कि किंगडम हॉल में आगे की किसी सीट पर बैठने से वे अच्छी तरह ध्यान दे पाते हैं। दिमाग को भटकने से रोकने के और भी कई तरीके हैं, जैसे, वक्‍ता पर नज़र लगाए रखना, जब कोई आयत पढ़ी जाती है तो अपनी बाइबल खोलकर देखना और नोट्‌स लिखना। लेकिन आप ध्यान देने का चाहे जो भी तरीका अपनाएँ, सबसे ज़रूरी बात है, अपने हृदय को तैयार करना। हमें यह समझने की ज़रूरत है कि सभाओं में जाने का मकसद क्या है। अपने भाई-बहनों के साथ इकट्ठा होने की हमारी सबसे बड़ी वजह है, यहोवा की उपासना करना। (भजन 26:12; लूका 2:36, 37) सभाएँ, हमें आध्यात्मिक भोजन देने का भी एक खास ज़रिया हैं। (मत्ती 24:45-47) इसके अलावा, सभाओं में हमें एक-दूसरे को “प्रेम, और भले कामों में उस्काने” के मौके मिलते हैं।—इब्रानियों 10:24, 25.

14. क्या बात एक सभा को सही मायनों में कामयाब बनाती है?

14 कुछ लोग शायद भाषण पेश करनेवालों की सिखाने की काबिलीयत के हिसाब से आँकें कि सभा अच्छी है या नहीं। अगर भाषण देनेवाले भाई बहुत काबिल हैं, तो उनकी नज़र में सभा बहुत अच्छी है। लेकिन अगर वे भाई इतने काबिल नहीं हैं, तो शायद उन्हें लगता है कि सभा दिलचस्प नहीं है। यह सच है कि कार्यक्रम पेश करनेवालों को, सिखाने की अच्छी कला इस्तेमाल करने और खासकर सुननेवालों के दिल तक पहुँचने के लिए अपनी तरफ से पूरी मेहनत करनी चाहिए। (1 तीमुथियुस 4:16) मगर दूसरी तरफ, सुननेवालों को हमेशा उनमें नुक्स नहीं निकालना चाहिए। हालाँकि सिखानेवालों की काबिलीयत अहमियत रखती है, मगर सिर्फ यही बात एक सभा को कामयाब नहीं बनाती। हमारी सबसे बड़ी चिंता यह नहीं होनी चाहिए कि भाषण पेश करनेवाले कितने हुनरमंद हैं बल्कि यह कि हम कितने ध्यान से सुन रहे हैं। क्या आप इस बात से सहमत नहीं हैं? जब हम सभाओं में हाज़िर होते हैं और गौर से सुनते हैं, तो हम परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक उसकी उपासना करते हैं। यही बात एक सभा को कामयाब बनाती है। अगर हम परमेश्‍वर का ज्ञान पाने के लिए उत्सुक हैं, तो सभाओं से हमें ज़रूर फायदा होगा, फिर चाहे भाग पेश करनेवाले भाइयों में सिखाने की अच्छी काबिलीयत हो या नहीं। (नीतिवचन 2:1-5) तो आइए हम ठान लें कि हम अपनी सभाओं में “अधिक गहराई से ध्यान” देने की हर हाल में कोशिश करेंगे।

निजी अध्ययन से पूरा फायदा उठाइए

15. अध्ययन और मनन करने का हमें क्या फायदा हो सकता है?

15 जब हम एकांत में बैठकर अध्ययन करते और मनन करते हैं, तब ‘अधिक गहराई से ध्यान देने’ से हमें बेहिसाब फायदे होंगे। बाइबल और मसीही साहित्य पढ़ने और उन पर मनन करने के वक्‍त हमें परमेश्‍वर के वचन की सच्चाइयों को दिल में गहराई तक बिठाने के अनमोल अवसर मिलेंगे। इससे हमारे सोचने और काम करने के तरीके पर ज़बरदस्त असर पड़ेगा। इतना ही नहीं, हमें यहोवा की मरज़ी पूरी करने में खुशी भी मिलेगी। (भजन 1:2; 40:8) इसलिए हमें ध्यान देने की अपनी क्षमता को बढ़ाने की ज़रूरत है ताकि अध्ययन से हमें अच्छा फायदा हो। अध्ययन के वक्‍त, हमारा ध्यान भटकना बहुत आसान है! छोटी-छोटी बातें, जैसे फोन बजने या किसी आहट से हमारा ध्यान आसानी से भटक सकता है। या ऐसी कोई रुकावट न होने पर भी हो सकता है कि ज़्यादा देर तक ध्यान देना हमारे स्वभाव में ही नहीं है। हम शायद आध्यात्मिक भोजन लेने के बढ़िया इरादे से अध्ययन करने बैठते तो होंगे मगर कुछ ही समय में हमारा दिमाग कहीं सैर पर निकल पड़ता होगा। परमेश्‍वर के वचन का निजी तौर पर अध्ययन करते वक्‍त हम “अधिक गहराई से ध्यान” कैसे दे सकते हैं?

16. (क) निजी तौर पर अध्ययन करने के लिए समय निकालना हमारे लिए क्यों ज़रूरी है? (ख) आपने परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने के लिए कैसा शेड्‌यूल बनाया है?

16 अध्ययन के लिए एक शेड्‌यूल बनाने के साथ-साथ उसके लिए एक सही माहौल चुनना बेहद ज़रूरी है। हममें से ज़्यादातर लोगों के लिए एकांत समय ढूँढ़ निकालना बहुत मुश्‍किल है। हमें ऐसा लग सकता है कि हम ज़िंदगी की दौड़-धूप और तेज़ रफ्तार में बहे जा रहे हैं। और हम बिलकुल एक तिनके की तरह हों जिसे कोई किनारा नहीं मिलता और नदी की धारा में बहता जाता है। लेकिन हमें अपने आप किनारा नहीं मिल जाएगा, हमें संघर्ष करना होगा। सिर्फ हाथ-पर-हाथ रखे रहने से, पढ़ने या अध्ययन करने का वक्‍त खुद-ब-खुद नहीं निकल आता। इसलिए हमें हालात को अपने काबू में करना होगा और एकांत में अध्ययन करने का वक्‍त निकालना ही होगा। (इफिसियों 5:15, 16) कुछ लोग सवेरे, थोड़ा समय निकालते हैं क्योंकि तब उनके ध्यान भटकने की गुंजाइश कम रहती है। कुछ को शाम का वक्‍त बेहतर लगता है। हम चाहे जब भी वक्‍त निकालें मगर असल मुद्दा यह है कि हम परमेश्‍वर और उसके बेटे के बारे में सही ज्ञान पाने की सख्त ज़रूरत को कभी नज़रअंदाज़ न करें। (यूहन्‍ना 17:3) तो आइए हम निजी तौर पर अध्ययन करने का एक शेड्‌यूल बनाएँ और उसका सख्ती से पालन करें।

17. मनन करने का मतलब क्या है और इससे हमें क्या फायदा हो सकता है?

17 मनन करने यानी अध्ययन से सीखी बातों पर गहराई से सोचने की अहमियत पर चाहे जितना भी ज़ोर दिया जाए, कम है। मनन करने से हम किताब के पन्‍नों पर लिखे परमेश्‍वर के विचारों को, दिल में उतार पाते हैं। मनन करने से हम यह समझ पाते हैं कि हम बाइबल की सलाह पर कैसे अमल कर सकते हैं। इस तरह हम ‘वचन पर चलनेवाले बनते हैं, केवल सुननेवाले ही नहीं।’ (याकूब 1:22-25) इसके अलावा, अध्ययन के वक्‍त मनन करने से हम यहोवा के गुणों पर गहराई से सोच सकते हैं और यह समझ पाते हैं कि हम जो पढ़ रहे हैं उसमें यहोवा के गुणों के बारे में क्या बताया गया है। इसलिए मनन करने का फायदा यह है कि हम यहोवा के और भी करीब आते हैं।

18. मनन से पूरा फायदा उठाने के लिए क्या-क्या करना ज़रूरी है?

18 अध्ययन और मनन से पूरा-पूरा फायदा पाने के लिए ज़रूरी है कि हम अपने दिमाग को ऐसी हर बात से दूर रखें जो ध्यान लगाने में रुकावट पैदा कर सकती है। मनन करते वक्‍त दिमाग में नयी जानकारी भरने के लिए, ज़रूरी है कि हम दिमाग को ज़िंदगी की चिंताओं से दूर रखें। यह सच है कि इसके लिए हमें एकांत में समय निकालने की ज़रूरत है, मगर अध्ययन और मनन के ज़रिए जब हम आध्यात्मिक भोजन लेते और परमेश्‍वर के वचन से सच्चाई का जल पीते हैं, तो मन को कितना विश्राम मिलता है!

19. (क) निजी अध्ययन के वक्‍त ध्यान देने की अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए कुछ लोगों ने क्या किया है? (ख) अध्ययन करने के बारे में हमारा लक्ष्य क्या होना चाहिए और इस ज़रूरी काम से हमें क्या फायदे हो सकते हैं?

19 अगर हमारी ध्यान देने की क्षमता बहुत कम है और कुछ देर अध्ययन करने के बाद, हमारा दिमाग कहीं और भटकने लगता है तब क्या? कुछ लोगों ने पाया है कि शुरू में थोड़े-थोड़े समय तक अध्ययन करने, फिर धीरे-धीरे अध्ययन के समय को बढ़ाने से ध्यान देने की उनकी क्षमता बढ़ी है। हमें फटाफट अध्ययन करने के बजाय, उसमें काफी वक्‍त बिताने का लक्ष्य रखना चाहिए। हम जिस विषय पर अध्ययन करते हैं, उसमें हमें गहरी दिलचस्पी पैदा करनी चाहिए। और अपने विषय पर ज़्यादा खोजबीन करने के लिए हम विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास से मिलनेवाली ढेर सारी जानकारी का इस्तेमाल कर सकते हैं। इस तरह “परमेश्‍वर की गूढ़ बातें” जाँचने से हमें बेशुमार फायदे मिल सकते हैं। (1 कुरिन्थियों 2:10) साथ ही, परमेश्‍वर के बारे में हमारा ज्ञान बढ़ेगा और हमारी ज्ञानेंद्रियाँ पक्की होती जाएँगी। (इब्रानियों 5:14) अगर हम परमेश्‍वर के वचन का गहराई से अध्ययन करनेवाले हैं, तो हम “औरों को भी सिखाने के योग्य” होंगे।—2 तीमुथियुस 2:2.

20. हम कैसे यहोवा परमेश्‍वर के साथ एक करीबी रिश्‍ता बना सकते और उसे कायम रख सकते हैं?

20 मसीही सभाओं में हाज़िर होने और निजी तौर पर अध्ययन करने से हमें यहोवा के साथ करीबी रिश्‍ता बनाने और उसे कायम रखने में बहुत मदद मिलेगी। उस भजनहार का ज़रूर यही अनुभव रहा होगा, जिसने परमेश्‍वर से कहा था: “अहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है।” (भजन 119:97) तो आइए हम नियमित तौर पर सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों में हाज़िर होने में अपना भरसक करें। साथ ही, बाइबल का अध्ययन करने और मनन करने के लिए समय निकालें। इस तरह परमेश्‍वर के वचन पर “अधिक गहराई से ध्यान” देने से हमें ढेरों फायदे होंगे।

[फुटनोट]

^ इब्रानियों के नाम पत्री शायद सा.यु. 61 में लिखी गयी थी। अगर यह तभी लिखा गया था, तो सिर्फ पाँच साल बाद, सेस्टियस गैलस की सेना ने यरूशलेम को घेर लिया। फिर कुछ ही समय बाद वह सेना, यरूशलेम छोड़कर चली गयी। तब जो मसीही आध्यात्मिक रूप से जागे हुए थे, उन्हें वहाँ से भागने का मौका मिला। फिर उसके चार साल बाद, जनरल टाइटस की अगुवाई में रोमी सेना ने आकर उस शहर को फूँक दिया।

क्या आपको याद है?

• कुछ इब्रानी मसीही, सच्चे विश्‍वास की राह से क्यों बहकने लगे थे?

• हम मसीही सभाओं में शुरू से आखिर तक कैसे ध्यान से सुन सकते हैं?

• बाइबल के निजी अध्ययन और मनन से फायदा पाने में क्या बात हमारी मदद करेगी?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 11 पर तसवीर]

यरूशलेम पर बहुत जल्द विनाश आनेवाला था, इसलिए इब्रानी मसीहियों को जागते रहने की ज़रूरत थी

[पेज 13 पर तसवीर]

माता-पिता अपने बच्चों को मसीही सभाओं से फायदा उठाना सिखा सकते हैं