जो बातें तुम ने सीखीं, उनका पालन किया करो
जो बातें तुम ने सीखीं, उनका पालन किया करो
“जो बातें तुम ने मुझ से सीखीं, और ग्रहण की, और सुनीं, और मुझ में देखीं, उन्हीं का पालन किया करो, तब परमेश्वर जो शान्ति का सोता है तुम्हारे साथ रहेगा।”—फिलिप्पियों 4:9.
1, 2. खुद को धार्मिक समझनेवाले ज़्यादातर लोगों पर क्या बाइबल का कुछ असर हो रहा है? समझाइए।
“धर्म का असर बढ़ता जा रहा है, मगर नैतिक आदर्श गिरते जा रहे हैं।” इमर्जिंग ट्रेन्ड्स नाम के अखबार में छपे इस शीर्षक ने, पूरे अमरीका में किए एक सर्वे का नतीजा संक्षिप्त में बताया। उस सर्वे से ज़ाहिर होता है कि अमरीका में, चर्च जानेवालों की गिनती बढ़ गयी है। वे लोग कहते हैं कि धर्म, उनकी ज़िंदगी में एक अहम भूमिका अदा करता है। लेकिन वही रिपोर्ट कहती है: “हालाँकि इन आँकड़ों को देखकर खुशी होती है, मगर सच तो यह है कि ज़्यादातर अमरीकी संदेह करने लगे हैं कि क्या धर्म का वाकई उनके निजी जीवन से और समाज से कोई लेना-देना है।”
2 यह हाल सिर्फ अमरीका का ही नहीं है। पूरी दुनिया में ऐसे बहुत-से लोग हैं जो बाइबल पर विश्वास करने और धार्मिक होने का दावा तो करते हैं मगर असल में अपनी ज़िंदगी पर बाइबल का कोई असर नहीं पड़ने देते। (2 तीमुथियुस 3:5) एक खोजबीन दल के अध्यक्ष ने कहा: “बाइबल के लिए आज भी हमारे दिलों में गहरा सम्मान है, लेकिन जहाँ तक समय निकालकर उसे पढ़ने, अध्ययन करने और उस पर अमल करने की बात है, आज ऐसा करनेवाला कोई नहीं मिलेगा।”
3. (क) जो लोग सच्चे मसीही बनते हैं, उन पर बाइबल कैसा असर करती है? (ख) फिलिप्पियों 4:9 में बतायी पौलुस की सलाह पर यीशु के चेले कैसे अमल करते हैं?
3 लेकिन सच्चे मसीहियों की बात कुछ और है। परमेश्वर के वचन की सलाह पर अमल करने से उनके सोच-विचार और चालचलन में बदलाव आया है। और उनके नए मनुष्यत्व को दूसरे लोग भी देख पाते हैं। (कुलुस्सियों 3:5-10) यीशु के नक्शे-कदम पर चलनेवाले ये मसीही, उन लोगों की तरह नहीं हैं जो कभी बाइबल नहीं पढ़ते और जिनकी बाइबलों पर धूल जम जाती है। इसके बजाय, प्रेरित पौलुस ने फिलिप्पी के मसीहियों से कहा था: “जो बातें तुम ने मुझ से सीखीं, और ग्रहण की, और सुनीं, और मुझ में देखीं, उन्हीं का पालन किया करो, तब परमेश्वर जो शान्ति का सोता है तुम्हारे साथ रहेगा।” (तिरछे टाइप हमारे।) (फिलिप्पियों 4:9) मसीही, परमेश्वर के वचन की सच्चाई को सिर्फ स्वीकार ही नहीं करते बल्कि वे जो सीखते हैं उस पर अमल भी करते हैं। वे घर पर, नौकरी की जगह, कलीसिया में और ज़िंदगी के बाकी सभी दायरों में, हर वक्त बाइबल की सलाह पर चलते हैं।
4. परमेश्वर के नियमों को ज़िंदगी में अमल करना इतना मुश्किल क्यों है?
4 परमेश्वर के नियमों और सिद्धांतों पर अमल करना आसान नहीं है। आज हम शैतान, इब्लीस के वश में पड़े संसार में जी रहे हैं जिसे बाइबल ‘इस संसार का ईश्वर’ कहती है। (2 कुरिन्थियों 4:4; 1 यूहन्ना 5:19) इसलिए हमें ऐसी हर बात से सावधान रहना चाहिए जो हमें यहोवा परमेश्वर के लिए अपनी खराई बनाए रखने से रोक सकती है। हम खराई रखनेवाले कैसे बन सकते हैं?
‘खरी बातों के आदर्श’ पर चलते रहें
5. यीशु के इन शब्दों का मतलब क्या है: “मेरे पीछे निरंतर चलता रहे”?
5 सीखी हुई बातों को पालन करने में एक ज़रूरी बात है, सच्ची उपासना के मार्ग पर वफादारी से चलते रहना, फिर चाहे अविश्वासी हमारा कितना भी विरोध क्यों न करें। इस तरह धीरज धरने के लिए जी-तोड़ कोशिश करने की ज़रूरत है। यीशु ने कहा था: “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप का इन्कार करे और अपना क्रूस उठाए, और मेरे पीछे हो ले [“निरंतर चलता रहे,” NW]।” (मत्ती 16:24) यीशु ने ऐसा नहीं कहा था कि हमें उसके पीछे सिर्फ एक हफ्ते, एक महीने या एक साल के लिए चलना है। इसके बजाय, उसने कहा: “मेरे पीछे निरंतर चलता रहे।” उसके ये शब्द दिखाते हैं कि उसके चेले होने की ज़िम्मेदारी, ज़िंदगी के बस कुछ समय के लिए नहीं हो सकती। या उसके चेले होने का मतलब सिर्फ ऐसी भक्ति की भावना रखना नहीं जो आज है तो कल मिट जाए। सच्ची उपासना की राह में वफादारी से बने रहने का मतलब यह है कि हम उस पर चलने में धीरज के साथ डटे रहें, फिर चाहे जो भी मुश्किलें पैदा हों। यह हम कैसे कर सकते हैं?
6. खरी बातों का वह आदर्श क्या है जो पहली सदी के मसीहियों ने पौलुस से सीखा था?
6 पौलुस ने अपने सहकर्मी तीमुथियुस को यह कहकर उकसाया: “जो खरी बातें तू ने मुझ से सुनी है उन को उस विश्वास और प्रेम के साथ जो मसीह यीशु में है, अपना आदर्श बनाकर रख।” (2 तीमुथियुस 1:13) पौलुस यहाँ क्या कहना चाहता है? इस आयत में “आदर्श” के लिए इस्तेमाल किया गया यूनानी शब्द, एक कलाकार की बनायी रूप-रेखा को दर्शाता है। एक रूप-रेखा से चित्र की बारीक जानकारी तो नहीं मिल सकती मगर उससे मोटे तौर पर पता लगाया जा सकता है कि वह किस चीज़ की रूप-रेखा है। उसी तरह पौलुस ने तीमुथियुस और दूसरों को सच्चाई का जो आदर्श सिखाया, उसका मकसद हर छोटे-बड़े सवाल का जवाब देना नहीं था। लेकिन उस आदर्श से ज़रूरी मार्गदर्शन मिलता है। वह एक रूपरेखा की तरह है जिसकी मदद से नेकदिल लोग समझ सकते हैं कि यहोवा उनसे क्या चाहता है। मगर हाँ, यहोवा को खुश करने के लिए ज़रूरी है कि वे सीखी हुई बातों का पालन करके, सच्चाई के उस आदर्श पर लगातार चलते रहें।
7. मसीही, खरी बातों के आदर्श पर चलने में कैसे अटल रह सकते हैं?
7 पहली सदी में, हुमिनयुस, सिकन्दर और फिलेतुस जैसे लोग कुछ ऐसी धारणाएँ सिखा रहे थे जो ‘खरी बातों के आदर्श’ से मेल नहीं खाती थीं। (1 तीमुथियुस 1:18-20; 2 तीमुथियुस 2:16, 17) ऐसे धर्म-त्यागियों के बहकावे में आने से बचने के लिए शुरू के मसीहियों को क्या करना था? उन्हें ईश्वर-प्रेरणा से दर्ज़ लेखनों का ध्यान से अध्ययन करना और उन पर अमल करना था। पौलुस और दूसरे वफादार जनों की मिसाल पर चलनेवाले मसीही, ऐसी हर शिक्षा को पहचानकर उसे ठुकरा सके जो सच्चाई के आदर्श से मेल नहीं खाती थी। (फिलिप्पियों 3:17; इब्रानियों 5:14) वे ‘विवाद करने और शब्दों पर तर्क करने के रोग’ से पीड़ित होने के बजाय, परमेश्वर की भक्ति करने के सही मार्ग पर आगे बढ़ते रहे। (1 तीमुथियुस 6:3-6) आज जब हम भी सीखी हुई सच्चाइयों पर अमल करते हैं, तो हम शुरू के उन मसीहियों की ही मिसाल पर चलते हैं। यह देखकर हमारा विश्वास कितना मज़बूत होता है कि संसार भर में, यहोवा की सेवा करनेवाले लाखों लोग, सच्चाई के उस आदर्श पर चलने में अटल हैं जो उन्होंने सीखा था।—1 थिस्सलुनीकियों 1:2-5.
“कथा-कहानियों” को ठुकराइए
8. (क) आज शैतान हमारा विश्वास तोड़ने की कैसी कोशिश करता है? (ख) दूसरा तीमुथियुस 4:3, 4 में पौलुस ने क्या चेतावनी दी?
8 शैतान हमारी खराई तोड़ने के लिए, उन शिक्षाओं के बारे में हमारे अंदर संदेह के बीज बोने की कोशिश करता है जो हमें सिखायी गयी थीं। पहली सदी की तरह, आज भी धर्म-त्यागी और दूसरे लोग, भोले-भाले लोगों का विश्वास तोड़ने की कोशिश करते हैं। (गलतियों 2:4; 5:7, 8) इसके लिए वे कभी-कभी मीडिया के ज़रिए, यहोवा के लोगों के काम करने के तरीके और उनके इरादों के बारे में सच्चाई को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं या फिर उसके बारे में सरासर झूठ बताते हैं। पौलुस ने चेतावनी दी कि कुछ लोग ऐसी बातों में आकर सच्चाई से दूर चले जाएँगे। उसने लिखा: “ऐसा समय आएगा, कि लोग खरा उपदेश न सह सकेंगे पर कानों की खुजली के कारण अपनी अभिलाषाओं के अनुसार अपने लिये बहुतेरे उपदेशक बटोर लेंगे। और अपने कान सत्य से फेरकर कथा-कहानियों पर लगाएंगे।”—2 तीमुथियुस 4:3, 4.
9. पौलुस ने जब “कथा-कहानियों” का ज़िक्र किया तो उसका इशारा किन बातों की तरफ था?
9 पहली सदी में कुछ लोग, खरी बातों के आदर्श पर चलते रहने के बजाय, “कथा-कहानियों” में दिलचस्पी लेने लगे थे। ये कथा-कहानियाँ क्या थीं? शायद पौलुस ऐसी मनगढ़ंत कहानियों की बात कर रहा था, जैसे टोबीत * नाम की किताब में दी गयी कहानियाँ। इस किताब के बारे में झूठा दावा किया जाता है कि यह बाइबल का हिस्सा है। और शायद पौलुस सनसनीखेज़ बातों और अफवाहों का भी ज़िक्र कर रहा था। इतना ही नहीं, कुछ लोग “अपनी अभिलाषाओं के अनुसार” शायद ऐसे लोगों की बातों में आ गए, जो सिखाते थे कि परमेश्वर के स्तरों का सख्ती से पालन करना इतना ज़रूरी नहीं है या वे कलीसिया में अगुवाई करनेवालों की नुक्ताचीनी करते थे। (3 यूहन्ना 9, 10; यहूदा 4) शुरू के मसीहियों के लिए ठोकर खाने का चाहे जो भी कारण रहा हो, मगर यह बात पक्की है कि कुछ लोगों को परमेश्वर के वचन की सच्चाइयों के बजाय, झूठी बातें ही रास आयीं। इसलिए कुछ ही समय के अंदर, उन्होंने सीखी हुई बातों का पालन करना छोड़ दिया जिसकी वजह से आगे चलकर उन्हें ही आध्यात्मिक तौर पर नुकसान भुगतना पड़ा।—2 पतरस 3:15, 16.
10. आज के समय में फैलनेवाली कुछ कथा-कहानियाँ क्या हैं और यूहन्ना ने क्या चेतावनी दी?
10 आज अगर हम कथा-कहानियों की तरफ गुमराह होने से बचना चाहते हैं तो हमें ध्यान देना ज़रूरी है कि हम किस तरह की बातें पढ़ते और देखते हैं। इस मामले में हमें सही चुनाव करना चाहिए। मिसाल के लिए, मीडिया अकसर अनैतिक चालचलन का बढ़ावा देता है। बहुत-से लोग परमेश्वर के वजूद पर शक करते हैं या फिर नास्तिकवाद को बढ़ावा देते हैं। जो बाइबल को परमेश्वर का वचन नहीं मानते, वे बाइबल में लिखी घटनाओं और इसके दूसरे पहलुओं का इंसानी नज़रिए से अध्ययन करके, बाइबल के इस दावे का मज़ाक उड़ाते हैं कि यह परमेश्वर की प्रेरणा से लिखी गयी है। और आज के समय के धर्म-त्यागी, मसीहियों का विश्वास तोड़ने के लिए लगातार संदेह के बीज बोने की कोशिश करते हैं। पहली सदी में भी ऐसा ही खतरा फैला था, इसलिए प्रेरित यूहन्ना ने चेतावनी दी: “हे प्रियो, हर एक आत्मा की प्रतीति न करो: बरन आत्माओं को परखो, कि वे परमेश्वर की ओर से हैं कि नहीं; क्योंकि बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता जगत में निकल खड़े हुए हैं।” (1 यूहन्ना 4:1) इसलिए हमें चौकस रहने की ज़रूरत है।
11. हम विश्वास में हैं या नहीं, इसे परखने का एक तरीका क्या है?
11 इसी सिलसिले में पौलुस ने लिखा: “अपने आप को परखो, कि विश्वास में हो कि नहीं।” (2 कुरिन्थियों 13:5) वह प्रेरित हमें उकसाता है कि हम हमेशा खुद को परखते रहें कि हम, सभी मसीही शिक्षाओं पर चल रहे हैं या नहीं। अगर हम ऐसे लोगों की बातों की तरफ खिंचे जा रहे हैं जो परमेश्वर के संगठन के इंतज़ामों से खुश नहीं हैं, तो हमें प्रार्थना करके खुद की जाँच करनी चाहिए। (भजन 139:23, 24) क्या यहोवा के लोगों में नुक्स निकालना हमारी आदत बन चुकी है? अगर हाँ, तो इसकी वजह क्या है? क्या किसी की बातों या व्यवहार से हमारे मन को चोट पहुँची है? अगर ऐसा है, तो क्या हम उस मामले के बारे में सही नज़रिया रखते हैं? इस संसार में हम पर जो भी क्लेश आता है, वह बस कुछ ही समय के लिए है। (2 कुरिन्थियों 4:17) अगर कलीसिया में हम किसी तरह की परीक्षा का सामना करते हैं, तो भी हम भला परमेश्वर की सेवा करना क्यों छोड़ें? अगर हम किसी बात को लेकर दुःखी हैं, तो क्या सबसे बेहतर उपाय यह नहीं होगा कि हम मामले को सुलझाने के लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश करें और बाकी सब यहोवा के हाथ में छोड़ दें?—भजन 4:4; नीतिवचन 3:5, 6; इफिसियों 4:26.
12. बिरीयावासियों ने हमारे लिए क्या बढ़िया मिसाल रखी?
12 निजी अध्ययन से और कलीसिया की सभाओं से, हम जो सीखते हैं उसकी नुक्ताचीनी करने के बजाय, आइए हम उसके बारे में आध्यात्मिक तौर पर एक सही नज़रिया बनाए रखें। (1 कुरिन्थियों 2:14, 15) और परमेश्वर के वचन पर शक करने के बजाय, अक्लमंदी इसी में है कि हम पहली सदी के बिरीयावासियों के जैसा बनें, जो शास्त्र की गहराई से जाँच करते थे! (प्रेरितों 17:10, 11) इसके बाद, सीखनेवाली बातों के मुताबिक काम करें, कथा-कहानियों को ठुकराएँ और सच्चाई से लगे रहें।
13. हम किस तरह अनजाने में कथा-कहानियाँ फैला सकते हैं?
13 एक और किस्म की कथा-कहानी है जिससे हमें खबरदार रहना है। आजकल बहुत-सी सनसनीखेज़ खबरें फैलायी जा रही हैं और इसके लिए अकसर ई-मेल का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे किस्सों से सावधान रहना हमारे लिए अक्लमंदी होगी, खासकर ऐसी खबरों से जिनके बारे में हमें नहीं मालूम कि वे कहाँ से शुरू हुईं। अगर कलीसिया में अच्छा नाम रखनेवाले एक मसीही ने आपको कोई अनुभव या किस्सा भेजा है, तो भी इस बात की गारंटी नहीं कि उसे उस खबर की सच्चाई ठीक-ठीक पता है! इसीलिए हमारे पास जिन घटनाओं वगैरह की सच्चाई के बारे में सबूत नहीं हैं, उनकी खबर दूसरों को भेजने से हमें सावधान रहना चाहिए। बेशक हम ‘अभक्ति की कथा-कहानियाँ’ या ‘अशुद्ध कहानियाँ’ दूसरों तक नहीं पहुँचाना चाहेंगे। (1 तीमुथियुस 4:7, NHT) इसके अलावा, हमें एक-दूसरे से सच बोलने की आज्ञा दी गयी है, इसलिए अक्लमंदी इसी में होगी कि हम ऐसी हर बात से दूर रहें जिसकी वजह से हम अनजाने में झूठ फैला सकते हैं।—इफिसियों 4:25.
सच्चाई के मुताबिक चलने के फायदे
14. परमेश्वर के वचन से सीखी बातों पर चलने से क्या फायदे होंगे?
14 निजी तौर पर बाइबल के अध्ययन से और मसीही सभाओं से हम जो सीखते हैं, उस पर अमल करने से हमें बहुत फायदे होंगे। एक फायदा यह है कि हमारे मसीही भाई-बहनों के साथ हमारा रिश्ता बेहतर होगा। (गलतियों 6:10) बाइबल के उसूलों पर चलने से हमारे मिज़ाज पर भी अच्छा असर होगा। (भजन 19:8) इसके अलावा, सीखी बातों पर अमल करने से हम “परमेश्वर के उपदेश को शोभा” देंगे और शायद हमें देखकर दूसरे भी सच्ची उपासना की तरफ खिंचे चले आएँ।—तीतुस 2:6-10.
15. (क) एक जवान लड़की ने कैसे हिम्मत जुटाकर स्कूल में गवाही दी? (ख) इस अनुभव से आपने क्या सीखा?
15 यहोवा के साक्षियों में ऐसे बहुत-से जवान भी हैं जो बाइबल और मसीही साहित्य के निजी अध्ययन से और लगातार कलीसिया की सभाओं से सीखी बातों पर अमल करते हैं। उनके बढ़िया चालचलन से स्कूल में टीचरों और विद्यार्थियों को ज़बरदस्त गवाही मिलती है। (1 पतरस 2:12) अमरीका की रहनेवाली 13 साल की लड़की, लॆसली इसकी एक मिसाल है। वह कबूल करती है कि उसे अपने विश्वास के बारे में स्कूल के साथियों को गवाही देना अकसर मुश्किल लगता था। लेकिन एक दिन सब कुछ बदल गया। “क्लास में यह चर्चा हो रही थी कि लोग कैसे अपनी-अपनी चीज़ें ज़बरदस्ती बेचने की कोशिश करते हैं। तभी एक लड़की ने अपना हाथ खड़ा करके कहा कि यहोवा के साक्षी भी ऐसा ही करते हैं।” एक साक्षी होने के नाते, लॆसली ने यह सुनकर क्या किया? वह कहती है, “मैंने अपने विश्वास के पक्ष में गवाही दी, और मेरी बात सुनकर ज़रूर सभी दंग रह गए होंगे क्योंकि मैं अकसर स्कूल में खामोश रहती हूँ।” लॆसली के इस तरह हिम्मत दिखाने का नतीजा क्या हुआ? वह कहती है: “मैं उस लड़की को एक ब्रोशर और ट्रैक्ट दे पायी क्योंकि उसने मुझसे और भी कई सवाल पूछे थे।” जब जवान लोग सीखी हुई बातों पर चलते हैं और हिम्मत जुटाकर स्कूल में गवाही देते हैं, तो यहोवा कितना खुश होता होगा!—नीतिवचन 27:11; इब्रानियों 6:10.
16. थियोक्रैटिक मिनिस्ट्री स्कूल से एक जवान साक्षी को कैसे फायदा हुआ?
16 एक और मिसाल, एलीज़बेथ की है। जब वह सात साल की थी, तब से लेकर प्राथमिक स्कूल के सभी सालों में, जब भी थियोक्रैटिक मिनिस्ट्री स्कूल में उसका कोई भाग होता, तो वह अपने टीचरों को किंगडम हॉल आने का न्यौता देती थी। अगर कोई टीचर आ नहीं सकता/सकती, तो एलीज़बेथ स्कूल खत्म होने के बाद, रुककर अपना भाग टीचर के सामने पेश करती थी। हाई स्कूल के आखिरी साल में एलीज़बेथ ने थियोक्रैटिक मिनिस्ट्री स्कूल के फायदों पर दस पन्नों की एक रिपोर्ट लिखी और उसे चार टीचरों के सामने पेश किया। उसे थियोक्रैटिक मिनिस्ट्री स्कूल के भाग का एक नमूना पेश करने के लिए भी कहा गया। उस भाग के लिए उसने यह विषय चुना: “परमेश्वर ने बुराई को क्यों रहने दिया है?” एलीज़बेथ को यहोवा के साक्षियों के थियोक्रैटिक मिनिस्ट्री स्कूल में दी जानेवाली तालीम से वाकई फायदा हुआ है। उसके जैसे और भी बहुत-से जवान मसीही हैं जो यहोवा के वचन से सीखी बातों पर चलकर उसकी स्तुति करते हैं।
17, 18. (क) बाइबल, ईमानदारी के बारे में क्या सलाह देती है? (ख) एक यहोवा के साक्षी की ईमानदारी का, एक आदमी पर क्या असर हुआ?
17 बाइबल, मसीहियों को सलाह देती है कि वे सब बातों में ईमानदारी दिखाएँ। (इब्रानियों 13:18) बेईमानी करने से दूसरों के साथ और खासकर यहोवा के साथ हमारा रिश्ता टूट सकता है। (नीतिवचन 12:22) हमारी ईमानदारी से साबित होता है कि हम जो सीखते हैं, उस पर चलते भी हैं और इस वजह से बहुतों के दिल में यहोवा के साक्षियों के लिए सम्मान बढ़ा है।
18 फिलिप नाम के एक फौजी के साथ हुई घटना पर गौर कीजिए। वह दस्तखत किया हुआ एक ब्लैंक चॆक खो बैठा और यह उसने तभी जाना जब उसे चॆक वापस मिला। वह चॆक, एक यहोवा के साक्षी को मिला था। फिलिप को उस चॆक के साथ एक पर्ची मिली जिस पर लिखा था कि भेजनेवाले के धार्मिक विश्वास ने ही उसे चॆक लौटाने की प्रेरणा दी। यह देखकर फिलिप दंग रह गया। उसने कहा: “वे चाहते तो मेरे 4,32,000 रुपए लेकर मुझे पूरी तरह लूट सकते थे!” इससे पहले एक बार जब चर्च में उसकी टोपी चोरी हो गयी तो वह बहुत निराश हो गया था। उसकी टोपी ज़रूर किसी जान-पहचानवाले ने ही चुरा ली थी जबकि इस बार एक अजनबी ने उसे लाखों रुपए का चॆक लौटा दिया! ईमानदार मसीही सचमुच, यहोवा परमेश्वर की शान बढ़ाते हैं!
आपने जो सीखा, उस पर लगातार अमल करते रहिए
19, 20. हम बाइबल से जो सीखते हैं, उसके मुताबिक काम करने से कैसे फायदा पाएँगे?
19 जो लोग परमेश्वर के वचन से सीखी बातों पर चलते हैं, उन्हें बेहिसाब फायदे मिलते हैं। शिष्य याकूब ने लिखा: “जो व्यक्ति स्वतंत्रता की सिद्ध व्यवस्था पर ध्यान करता रहता है, वह अपने काम में इसलिये आशीष पाएगा कि सुनकर भूलता नहीं, पर वैसा ही काम करता है।” (याकूब 1:25) जी हाँ, अगर हम शास्त्र से सीखनेवाली बातों के मुताबिक काम करेंगे, तो हमें सच्ची खुशी मिलेगी और ज़िंदगी के मुश्किलों का हम अच्छी तरह सामना कर पाएँगे। सबसे बढ़कर, हमें यहोवा की आशीष मिलेगी और हम हमेशा की ज़िंदगी पाने की आशा रख सकेंगे!—नीतिवचन 10:22; 1 तीमुथियुस 6:6.
20 इसलिए, हर हाल में परमेश्वर के वचन का अध्ययन करते रहिए। यहोवा की उपासना करनेवालों के साथ लगातार मसीही सभाओं में हाज़िर होइए और वहाँ दी जानेवाली जानकारी को ध्यान से सुनिए। आप जो सीखते हैं, उस पर अमल कीजिए, और ऐसा हमेशा करते रहिए। तब ‘परमेश्वर जो शान्ति का सोता है आपके साथ रहेगा।’—फिलिप्पियों 4:9.
[फुटनोट]
^ टोबीत नाम की किताब शायद सा.यु.पू. तीसरी सदी में लिखी गयी थी। इसमें, टोबीयाह नाम के एक यहूदी का झूठा किस्सा लिखा है और अंधविश्वास की बातें भरी पड़ी हैं। बताया जाता है कि टोबीयाह के पास एक दैत्य मछली के हृदय, पित्त और कलेजे का इस्तेमाल करके बीमारों को चंगा करने और भूत भगाने की शक्ति थी।
क्या आपको याद है?
• ‘खरी बातों का आदर्श’ क्या है और हम उस पर चलने में कैसे अटल रह सकते हैं?
• किन “कथा-कहानियों” को हमें ठुकरा देना चाहिए?
• जो लोग, परमेश्वर के वचन से सीखी बातों पर चलते हैं, उन्हें क्या फायदे मिलते हैं?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 17 पर तसवीर]
शुरू के मसीही, धर्म-त्यागियों के बहकावे में आने से कैसे बच सकते थे?
[पेज 18 पर तसवीरें]
मीडिया, इंटरनॆट और आज के धर्म-त्यागी संदेह के बीज बो सकते हैं
[पेज 19 पर तसवीर]
जिन खबरों की सच्चाई के सबूत नहीं हैं, उन्हें फैलाना अक्लमंदी नहीं होगी
[पेज 20 पर तसवीरें]
यहोवा के साक्षी, परमेश्वर के वचन से जो सीखते हैं, उसे काम की जगह, स्कूल में और दूसरी जगहों पर अमल करते हैं