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आज्ञाकारी होने का गुण पैदा कीजिए, अंत करीब है

आज्ञाकारी होने का गुण पैदा कीजिए, अंत करीब है

आज्ञाकारी होने का गुण पैदा कीजिए, अंत करीब है

“राज्य राज्य के लोग [शीलो की] आज्ञा मानेंगे।”उत्पत्ति 49:10, Nht.

1. (क) बीते समय में, लोगों को अकसर किस तरीके से यहोवा की आज्ञा मानने की ज़रूरत पड़ी? (ख) आज्ञा मानने के बारे में याकूब ने क्या भविष्यवाणी की?

 यहोवा की आज्ञा मानने के लिए अकसर उसके ठहराए लोगों की बात मानने की ज़रूरत पड़ी है। बीते समय में यहोवा ने स्वर्गदूतों, कुलपिताओं, न्यायियों, याजकों, भविष्यवक्‍ताओं और राजाओं को अपना प्रतिनिधि ठहराया था। इस्राएल के राजाओं का सिंहासन तो यहोवा का सिंहासन कहलाता था। (1 इतिहास 29:23) लेकिन, दुःख की बात है कि इस्राएल के बहुत-से राजाओं ने यहोवा की आज्ञा नहीं मानी, इसलिए वे खुद पर और अपनी प्रजा पर मुसीबतें ले आए। मगर जो लोग यहोवा के वफादार रहे, उन्हें उसने एक आशा दी। यहोवा ने उनसे वादा किया कि वह एक ऐसे राजा को नियुक्‍त करेगा जो कभी भ्रष्ट न होगा और जिसकी आज्ञा मानने में धर्मी लोगों को खुशी होगी। (यशायाह 9:6, 7) भविष्य में आनेवाले इस राजा के बारे में, कुलपिता याकूब ने अपनी मौत से कुछ ही समय पहले यह भविष्यवाणी की: “यहूदा से तब तक राजदण्ड न छूटेगा और न उसके पैरों के बीच से शासकीय राजदण्ड हटेगा जब तक कि शीलो न आए; और राज्य राज्य के लोग उसकी आज्ञा मानेंगे।”—उत्पत्ति 49:10, NHT.

2. “शीलो” का मतलब क्या है और उसकी शाही हुकूमत कहाँ तक होती?

2 “शीलो” एक इब्रानी शब्द है और इसका मतलब है, “वह जिसका यह है” या “उचित अधिकारी।” जी हाँ, भविष्यवाणी के मुताबिक, शीलो को शासन करने का पूरा-पूरा अधिकार विरासत में मिलता, जिसे भविष्यवाणी में राजदंड से सूचित किया गया है। और उसे लोगों को आज्ञा देने का अधिकार भी मिलता जिसे शासकीय राजदंड से दर्शाया गया है। इसके अलावा, वह सिर्फ याकूब के वंशजों पर नहीं बल्कि ‘राज्य राज्य के लोगों’ पर हुकूमत करता। यही बात यहोवा ने इब्राहीम से वादा करते वक्‍त भी बतायी: “तेरा वंश अपने शत्रुओं के नगरों का अधिकारी होगा: और पृथ्वी की सारी जातियां अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी।” (उत्पत्ति 22:17, 18) सामान्य युग 29 में यहोवा ने नासरत के यीशु का पवित्र आत्मा से अभिषेक करके उस “वंश” की साफ पहचान करायी।—लूका 3:21-23, 34; गलतियों 3:16.

यीशु का पहला राज्य

3. स्वर्ग जाने के बाद, यीशु ने कौन-सा राज्य हासिल किया?

3 यीशु ने पुनरुत्थान के बाद, स्वर्ग जाते ही राजदंड हाथ में लेकर पूरे जगत पर शासन शुरू नहीं किया। (भजन 110:1) मगर उसने एक और किस्म के “राज्य” में शासन शुरू किया जिसमें उसकी आज्ञा माननेवाली प्रजा थी। उस राज्य की पहचान कराते हुए प्रेरित पौलुस ने लिखा: “[परमेश्‍वर] ने हमें [आत्मा से अभिषिक्‍त मसीहियों को] अन्धकार के वश से छुड़ाकर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया।” (तिरछे टाइप हमारे।) (कुलुस्सियों 1:13) यह छुटकारा, सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन से मिलना शुरू हुआ जब यीशु के वफादार चेलों पर पवित्र आत्मा उँडेली गयी थी।—प्रेरितों 2:1-4; 1 पतरस 2:9.

4. यीशु के शुरूआती चेलों ने किन तरीकों से आज्ञा मानी और यीशु ने उनके समूह को क्या नाम दिया?

4 आत्मा से अभिषिक्‍त चेलों ने, ‘मसीह के राजदूतों’ की हैसियत से उसकी आज्ञा के मुताबिक, उन बाकी लोगों को इकट्ठा करना शुरू किया जो उनके साथ उस आत्मिक राज्य के “संगी स्वदेशी” बनते। (2 कुरिन्थियों 5:20; इफिसियों 2:19; प्रेरितों 1:8) इसके अलावा, उन्हें ‘एक ही मन और एक ही मत होकर मिले रहना’ था। (1 कुरिन्थियों 1:10) तभी वे अपने राजा, यीशु मसीह की मंज़ूरी पाते। एक समूह के तौर पर, ये अभिषिक्‍त जन “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” या एक विश्‍वासयोग्य भण्डारी वर्ग बने।—मत्ती 24:45; लूका 12:42.

परमेश्‍वर के “भण्डारी” की आज्ञा मानने से आशीषें मिलीं

5. प्राचीन समय से यहोवा ने अपने लोगों को कैसे सिखाया है?

5 यहोवा ने शुरू से ही, अपने लोगों को सिखाने के लिए शिक्षकों का इंतज़ाम किया है। उदाहरण के लिए, यहूदियों के बाबुल से लौटने के बाद, यहोवा ने उन्हें सिखाने के लिए एज्रा और दूसरे बहुत-से योग्य पुरुषों को ठहराया। उन्होंने प्रजा को न सिर्फ परमेश्‍वर की व्यवस्था पढ़कर सुनायी बल्कि व्यवस्था की “व्याख्या की” और परमेश्‍वर के वचन का ‘अभिप्राय समझाया।’—नहेमायाह 8:8, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।

6, 7. दास वर्ग ने अपने शासी निकाय के ज़रिए समय पर आध्यात्मिक भोजन कैसे मुहैया कराया है और इस दास वर्ग के अधीन रहना क्यों सही है?

6 पहली सदी के सा.यु. 49 में जब खतने के बारे में मसला उठा तो उस समय के दास वर्ग के शासी निकाय ने, प्रार्थना करके उस मामले पर विचार किया और शास्त्र के आधार पर वे एक नतीजे पर पहुँचे। फिर उन्होंने इस फैसले के बारे में पत्रियों के ज़रिए कलीसियाओं को बताया। कलीसियाओं ने उनकी हिदायतें मानीं और इसलिए परमेश्‍वर ने उन्हें भरपूर आशीषें दीं। (प्रेरितों 15:6-15, 22-29; 16:4, 5) हमारे समय में भी, विश्‍वासयोग्य दास ने अपने शासी निकाय के ज़रिए कई अहम मसलों पर सही समझ दी है जैसे मसीही निष्पक्षता, लहू की पवित्रता, ड्रग्स और तंबाकू के इस्तेमाल के बारे में। (यशायाह 2:4; प्रेरितों 21:25; 2 कुरिन्थियों 7:1) और यहोवा के लोगों ने उसके वचन और विश्‍वासयोग्य दास की आज्ञा मानी है इसलिए यहोवा ने उन्हें आशीषें दीं।

7 परमेश्‍वर के लोग दास वर्ग के अधीन रहकर, दास के स्वामी, यीशु मसीह को भी अधीनता दिखाते हैं। इस तरीके से मसीह के अधीन रहना, आज पहले से भी बहुत ज़रूरी है क्योंकि जैसे याकूब ने अपनी मौत से पहले भविष्यवाणी की थी, यीशु को आज पहले से ज़्यादा अधिकार सौंपा गया है।

शीलो, पृथ्वी का असली राजा बनता है

8. कब और कैसे, मसीह को ज़्यादा अधिकार सौंपा गया?

8 याकूब ने अपनी भविष्यवाणी में बताया कि “राज्य राज्य के लोग” शीलो की आज्ञा मानेंगे। इससे साफ पता चलता है कि मसीह, सिर्फ आत्मिक इस्राएल पर शासन नहीं करता। उसके शासन की सरहद कहाँ तक होती? इसका जवाब, प्रकाशितवाक्य 11:15, 16 देता है: “जगत का राज्य हमारे प्रभु का, और उसके मसीह का हो गया और वह युगानुयुग राज्य करेगा।” (तिरछे टाइप हमारे।) बाइबल दिखाती है कि यीशु ने यह अधिकार, भविष्यवाणी में बताए “सात काल” या ‘अन्य जातियों के समय’ के अंत में यानी सन्‌ 1914 में पाया। * (दानिय्येल 4:16, 17; लूका 21:24) उस साल यीशु, मसीहाई राज्य का राजा बना और उसकी अदृश्‍य “उपस्थिति”(NW) शुरू हुई। तब से ‘[उसके] शत्रुओं के बीच शासन करने’ का समय भी शुरू हो गया।—मत्ती 24:3; भजन 110:2.

9. यीशु ने राज्य हासिल करने के बाद क्या किया और इसका सभी इंसानों पर और खासकर उसके चेलों पर क्या असर पड़ा?

9 राजा बनने के बाद यीशु ने सबसे पहले शैतान को, जो बगावत का साक्षात्‌ रूप है, साथ ही उसके पिशाचों को “पृथ्वी पर गिरा दिया।” तब से ये दुष्ट आत्मिक प्राणी न सिर्फ इंसानों पर पहले से ज़्यादा कहर ढा रहे हैं, बल्कि उन्होंने संसार में ऐसा माहौल पैदा किया है, जिसकी वजह से यहोवा की आज्ञा मानना बहुत मुश्‍किल हो गया है। (प्रकाशितवाक्य 12:7-12; 2 तीमुथियुस 3:1-5) और इस आत्मिक युद्ध में शैतान का खास निशाना, ‘परमेश्‍वर की आज्ञा माननेवाले और यीशु की गवाही देने पर स्थिर रहनेवाले’ अभिषिक्‍त जन और उनके साथी, ‘अन्य भेड़’ हैं।—प्रकाशितवाक्य 12:17; यूहन्‍ना 10:16, NW.

10. बाइबल की किन भविष्यवाणियों का पूरा होना यह गारंटी देता है कि सच्चे मसीहियों के खिलाफ युद्ध में शैतान की हार तय है?

10 इस युद्ध में शैतान की हार तय है क्योंकि आज ‘प्रभु का दिन’ चल रहा है और यीशु को “अपनी जीत पूरी करने” (NW)से कोई नहीं रोक सकता। (प्रकाशितवाक्य 1:10; 6:2) उदाहरण के लिए, वह ज़रूर निश्‍चित करेगा कि 1,44,000 आत्मिक इस्राएलियों पर अंतिम मुहर लगायी जाए। इसके अलावा, वह उस “बड़ी भीड़” की भी रक्षा करेगा जो ‘हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से निकली है और जिसे कोई गिन नहीं सकता।’ (प्रकाशितवाक्य 7:1-4, 9, 14-16) इस समूह के लोग अपने अभिषिक्‍त साथियों की तरह स्वर्ग तो नहीं जाएँगे, मगर यीशु की आज्ञा माननेवाली प्रजा बनकर धरती पर जीएँगे। (दानिय्येल 7:13,14) उनका आज धरती पर मौजूद रहना अपने आप में एक ठोस सबूत है कि शीलो सचमुच ‘जगत के राज्य’ पर शासन कर रहा है।—प्रकाशितवाक्य 11:15.

‘सुसमाचार को मानने’ का यही समय है

11, 12. (क) मौजूदा संसार के अंत से सिर्फ कौन ज़िंदा बचेंगे? (ख) जिन लोगों में “संसार की आत्मा” समा जाती है, उनमें कैसे गुण पैदा होते हैं?

11 अनंत जीवन पाने की इच्छा रखनेवाले सभी लोगों को चाहिए कि वे आज्ञा मानना सीखें क्योंकि बाइबल साफ शब्दों में बताती है कि “जो परमेश्‍वर को नहीं पहचानते, और हमारे प्रभु यीशु के सुसमाचार को नहीं मानते,” वे परमेश्‍वर के पलटा लेने के दिन से नहीं बचेंगे। (2 थिस्सलुनीकियों 1:8) लेकिन, आज संसार में चारों तरफ बुरा माहौल होने और बाइबल के नियमों और उसूलों के खिलाफ बगावत का रवैया होने की वजह से, सुसमाचार की आज्ञा मानना हमारे लिए मुश्‍किल हो जाता है।

12 परमेश्‍वर के खिलाफ बगावत करने के इस रवैए को बाइबल, “संसार की आत्मा” कहती है। (1 कुरिन्थियों 2:12) इस आत्मा का लोगों पर कैसा असर पड़ता है, इस बारे में प्रेरित पौलुस ने पहली सदी में इफिसुस के मसीहियों को लिखा: “तुम पहिले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात्‌ उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न माननेवालों में कार्य्य करता है। इन में हम भी सब के सब पहिले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे, और शरीर, और मन की मनसाएं पूरी करते थे, और और लोगों के समान स्वभाव ही से क्रोध की सन्तान थे।”—इफिसियों 2:2, 3.

13. मसीही, संसार की आत्मा का विरोध करने में कैसे कामयाब हो सकते हैं और ऐसा करने से उन्हें क्या फायदे होंगे?

13 खुशी की बात है कि इफिसुस के मसीही, हमेशा आज्ञा न मानने की आत्मा के दास नहीं बने रहे। बल्कि परमेश्‍वर की आज्ञा माननेवाली संतान बने क्योंकि उन्होंने खुद को परमेश्‍वर की आत्मा के अधीन किया और उसके बढ़िया फल बहुतायत में पैदा किए। (गलतियों 5:22, 23) उसी तरह आज भी परमेश्‍वर की आत्मा, जो विश्‍व की सबसे ज़बरदस्त ताकत है, लाखों लोगों को यहोवा की आज्ञा मानने में मदद दे रही है। इसलिए वे “अन्त तक पूरी आशा” रख सकते हैं।—इब्रानियों 6:11; जकर्याह 4:6.

14. अंतिम दिनों में जीनेवाले सभी मसीहियों को, यीशु ने उन समस्याओं के बारे में कैसे चिताया जिनसे उनके आज्ञाकारी होने की परीक्षा होगी?

14 यह भी मत भूलिए कि हमारी मदद करने के लिए, शक्‍तिशाली शीलो हमारे साथ है। वह और उसका पिता, किसी भी दुश्‍मन को, फिर चाहे वह कोई दुष्टात्मा हो या इंसान, इस कदर हम पर परीक्षाएँ नहीं लाने देंगे कि हम सह न पाएँ और यहोवा की आज्ञा तोड़ दें। (1 कुरिन्थियों 10:13) दरअसल, यीशु ने आत्मिक लड़ाई में हमारी मदद करने के लिए हमें जता दिया है कि इन अंतिम दिनों के दौरान, हमें किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। इसका ज़िक्र उसने सात पत्रियों में किया और ये पत्रियाँ, उसने प्रेरित यूहन्‍ना को एक दर्शन में दीं। (प्रकाशितवाक्य 1:10, 11) बेशक, उन पत्रियों में यूहन्‍ना के समय के मसीहियों के लिए ज़रूरी सलाह दी गयी थीं, लेकिन वे सलाह खासकर, सन्‌ 1914 से शुरू होनेवाले “प्रभु के दिन” पर लागू होती हैं। तो उन पत्रियों में दिए संदेश पर ध्यान देना, हमारे लिए कितना फायदेमंद होगा! *

निष्क्रिय होने, अनैतिक चालचलन और धन के लोभ से खबरदार

15. इफिसुस की कलीसिया जिस समस्या से पीड़ित थी, उससे हमें क्यों बचना चाहिए और यह हम कैसे कर सकते हैं? (2 पतरस 1:5-8)

15 यीशु की पहली पत्री, इफिसुस की कलीसिया के नाम थी। पत्री में सबसे पहले यीशु ने उस कलीसिया के धीरज की सराहना की। फिर उसने कहा: “पर मुझे तेरे विरुद्ध यह कहना है कि तू ने अपना पहिला सा प्रेम छोड़ दिया है।” (प्रकाशितवाक्य 2:1-4) आज भी कुछ मसीही, जो पहले गर्मजोशी से परमेश्‍वर की सेवा करते थे, अब परमेश्‍वर के लिए उनका प्यार ठंडा हो गया है। ऐसे में एक मसीही का परमेश्‍वर के साथ रिश्‍ता कमज़ोर पड़ सकता है और इसलिए जल्द-से-जल्द उसे कदम उठाने की ज़रूरत है। परमेश्‍वर के लिए पहले जैसा प्रेम दोबारा कैसे बढ़ाया जा सकता है? नियमित तौर पर बाइबल का अध्ययन करने, सभाओं में जाने, प्रार्थना और मनन करने के ज़रिए। (1 यूहन्‍ना 5:3) इसके लिए “यत्न” तो करना पड़ेगा मगर इसके फायदे भी ज़रूर मिलेंगे। (2 पतरस 1:5-8) अगर ईमानदारी से खुद की जाँच करने पर आप पाते हैं कि परमेश्‍वर के लिए आपका प्यार वाकई ठंडा पड़ गया है, तो हालात को सुधारने के लिए यीशु की आज्ञा के मुताबिक फौरन यह कदम उठाइए: “चेत कर, कि तू कहां से गिरा है, और मन फिरा और पहिले के समान काम कर।”—प्रकाशितवाक्य 2:5.

16. पिरगमुन और थुआतीरा की कलीसियाओं को, आध्यात्मिक तौर पर क्या-क्या खतरे हो रहे थे, और यीशु ने उन्हें जो सलाह दी, वह आज हमारे लिए भी क्यों मायने रखती है?

16 पिरगमुन और थुआतीरा के मसीहियों की खराई, धीरज और जोश के लिए उनकी तारीफ की गयी। (प्रकाशितवाक्य 2:12, 13, 18, 19) मगर वे कुछ ऐसे लोगों के बहकावे में आ गए थे जिनमें बिलाम और ईज़बेल जैसा दुष्ट रवैया था। बिलाम ने लैंगिक अनैतिकता को और ईज़बेल ने इस्राएल में बाल उपासना को बढ़ावा देकर लोगों को भ्रष्ट कर दिया था। (गिनती 31:16; 1 राजा 16:30, 31; प्रकाशितवाक्य 2:14, 16, 20-23) लेकिन “प्रभु के दिन” यानी हमारे समय के बारे में क्या? क्या आज भी लोगों को भ्रष्ट किया जा रहा है? बेशक, तभी तो आज सबसे ज़्यादा, अनैतिकता की वजह से ही लोग परमेश्‍वर के संगठन से बहिष्कृत किए जा रहे हैं। तो यह कितना ज़रूरी है कि हम, कलीसिया के और बाहर के उन सभी लोगों से दूर रहें जो अनैतिक चालचलन को बढ़ावा देते हैं! (1 कुरिन्थियों 5:9-11; 15:33) जो लोग शीलो की आज्ञा माननेवाली प्रजा बनना चाहते हैं, वे गलत किस्म के मनोरंजन से, साथ ही किताबों में और इंटरनॆट पर अश्‍लील तसवीर देखने से भी दूर रहेंगे।—आमोस 5:15; मत्ती 5:28, 29.

17. सरदीस और लौदीकिया के मसीही खुद को क्या समझते थे मगर यीशु ने उन्हें किस नज़र से देखा?

17 यीशु ने सरदीस की कलीसिया के बस चंद लोगों की तारीफ की। जबकि उसने पूरी कलीसिया का खंडन करते हुए कहा कि वह जीवित तो ‘कहलाती’ है मगर आध्यात्मिक तौर पर इतनी निष्क्रिय हो चुकी है कि उसकी नज़रों में बिलकुल ‘मरी’ हुई है। सुसमाचार को मानना, उस कलीसिया के लिए बस एक ढर्रा बन चुका था। वाकई, यीशु ने कितने कड़े शब्दों में उसकी निंदा की! (प्रकाशितवाक्य 3:1-3) लौदीकिया की कलीसिया का भी वैसा ही हाल था। वह अपनी धन-संपत्ति पर घमंड करते हुए कहती थी कि “मैं धनी हूं।” लेकिन मसीह की नज़र में वह ‘अभागी, तुच्छ, कंगाल, अन्धी और नंगी’ थी।—प्रकाशितवाक्य 3:14-17.

18. एक मसीही, परमेश्‍वर की नज़रों में आध्यात्मिक तौर पर गुनगुना होने से कैसे बच सकता है?

18 आज के समय में भी कुछ मसीही, जो पहले वफादार थे, उनमें अब आज्ञा न मानने का रवैया पैदा हो गया है। शायद इसकी वजह यह है कि उन्होंने संसार की आत्मा का विरोध नहीं किया है। इसलिए वे समय की गंभीरता भूलने लगे हैं और आध्यात्मिक रूप से गुनगुने हो गए हैं यानी बाइबल अध्ययन, प्रार्थना, मसीही सभाओं और सेवकाई के मामले में लापरवाह हो गए हैं। (2 पतरस 3:3, 4, 11, 12) ऐसे लोगों के लिए बेहद ज़रूरी है कि वे मसीह की आज्ञा के मुताबिक, अपना सब कुछ लगाकर आध्यात्मिक धन हासिल करें, जी हाँ, मसीह से “आग में ताया हुआ सोना मोल” लें। (प्रकाशितवाक्य 3:18) अगर हम इस सच्चे धन को हासिल करेंगे तो हम ‘भले कामों में धनी बनेंगे; और उदार और सहायता देने में तत्पर होंगे।’ यह अनमोल आध्यात्मिक धन पाने के लिए मेहनत करके हम ‘आगे के लिये एक अच्छी नेव डालते हैं कि सत्य जीवन को वश में कर लें।’—1 तीमुथियुस 6:17-19.

आज्ञाकारी होने के लिए सराहना

19. यीशु ने स्मुरना और फिलदिलफिया के मसीहियों की तारीफ में क्या कहा और उन्हें क्या बढ़ावा दिया?

19 स्मुरना और फिलदिलफिया की कलीसियाओं ने आज्ञा मानने में एक बढ़िया मिसाल कायम की। इसलिए यीशु ने उनको लिखी पत्रियों में कोई ताड़ना नहीं दी। स्मुरना के मसीहियों से उसने कहा: “मैं तेरे क्लेश और दरिद्रता को जानता हूं; (परन्तु तू धनी है)।” (प्रकाशितवाक्य 2:9) वे लौदीकिया के उन लोगों से कितने अलग थे, जो अपने सांसारिक धन पर घमंड करते थे मगर असल में कंगाल थे! बेशक, इब्‌लीस ऐसे लोगों को देखकर खुश नहीं हुआ होगा जो वफादार थे और मसीह की आज्ञा मानते थे। इसलिए यीशु ने यह चेतावनी दी: “जो दुख तुझ को झेलने होंगे, उन से मत डर: क्योंकि देखो, शैतान तुम में से कितनों को जेलखाने में डालने पर है ताकि तुम परखे जाओ; और तुम्हें दस दिन तक क्लेश उठाना होगा: प्राण देने तक विश्‍वासी रह; तो मैं तुझे जीवन का मुकुट दूंगा।” (प्रकाशितवाक्य 2:10) उसी तरह, यीशु ने फिलदिलफिया के लोगों की तारीफ करते हुए कहा: “तू ने मेरे वचन [आज्ञा] का पालन किया है और मेरे नाम का इन्कार नहीं किया। मैं शीघ्र ही आनेवाला हूं; जो कुछ तेरे पास है, उसे थामे रह, कि कोई तेरा मुकुट छीन न ले।”—प्रकाशितवाक्य 3:8, 11.

20. किस तरह आज लाखों लोगों ने यीशु के वचन का पालन किया है और वह भी किन हालात में?

20 सन्‌ 1914 से शुरू हुए “प्रभु के दिन” में, वफादार अभिषिक्‍त शेष जनों ने और अन्य भेड़ वर्ग के उनके साथियों ने, जिनकी संख्या अब लाखों में है, पूरे जोश के साथ प्रचार किया और अपनी खराई बनाए रखी है। इस तरह उन्होंने यीशु के वचन का पालन किया है। उनमें से कुछ लोगों ने पहली सदी में जीनेवाले अपने भाइयों की तरह, मसीह की आज्ञा मानने के कारण बहुत दुःख सहा। कुछ ने तो जेलों और नज़रबंदी शिविरों में भी यातनाएँ सहीं। और दूसरों ने धन-दौलत और लोभ से भरे संसार में रहते हुए भी यीशु की आज्ञा के मुताबिक अपनी “आंख निर्मल” बनाए रखी। (मत्ती 6:22, 23) जी हाँ, सच्चे मसीही, हर तरह के माहौल और हालात में आज्ञा मानकर, यहोवा का मन आनंदित करते हैं।—नीतिवचन 27:11.

21. (क) दास वर्ग अपनी किस आध्यात्मिक ज़िम्मेदारी को निभाता रहेगा? (ख) हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम सचमुच शीलो की आज्ञा मानना चाहते हैं?

21 आज जब बड़े क्लेश का समय करीब आ रहा है, “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” हमेशा की तरह अपने इस फैसले पर अटल है कि वह अपने स्वामी, मसीह की आज्ञाओं को मानता रहेगा। मसीह की आज्ञाओं में से एक यह है कि दास, परमेश्‍वर के घराने के लिए वक्‍त के हिसाब से ज़रूरी आध्यात्मिक भोजन तैयार करके उसे मुहैया कराए। इसलिए आइए हम यहोवा के शानदार संगठन और उससे मिलनेवाले आध्यात्मिक भोजन की हमेशा कदर करते रहें। ऐसा करके हम दिखाएँगे कि हम शीलो के अधीन रहते हैं जो आज्ञा माननेवाली अपनी सारी प्रजा को हमेशा की ज़िंदगी का प्रतिफल देगा।—मत्ती 24:45-47; 25:40; यूहन्‍ना 5:22-24.

[फुटनोट]

^ “सात काल” के बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए किताब, ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है का अध्याय 10 देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

^ उन सातों पत्रियों की ब्योरेदार जानकारी के लिए, कृपया रॆवलेशन—इट्‌स ग्रैंड क्लाइमैक्स एट हैंड! किताब के पेज 33 से देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

क्या आपको याद है?

• याकूब ने अपनी मौत से पहले जो भविष्यवाणी की थी, उसे पूरा करने में यीशु क्या भूमिका अदा करता?

• हम यीशु को शीलो के तौर पर कैसे कबूल करते हैं और हमें किस आत्मा से दूर रहना चाहिए?

• प्रकाशितवाक्य की किताब में सात कलीसियाओं को लिखी पत्रियों में क्या सलाह दी गयी है जो हमारे दिनों पर भी लागू होती है?

• किन तरीकों से हम प्राचीन स्मुरना और फिलदिलफिया के लोगों की मिसाल पर चल सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 18 पर तसवीरें]

यहोवा अपने लोगों को आशीष देता है क्योंकि वे वफादार “भण्डारी” की आज्ञा मानते हैं

[पेज 19 पर तसवीर]

शैतान के दबाव की वजह से, परमेश्‍वर की आज्ञा मानना एक चुनौती बन जाता है

[पेज 21 पर तसवीरें]

यहोवा के साथ एक मज़बूत रिश्‍ता होने से हम उसकी आज्ञाओं का पालन कर सकेंगे