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यहोवा आज्ञाकारी लोगों को आशीषें देता और उनकी रक्षा करता है

यहोवा आज्ञाकारी लोगों को आशीषें देता और उनकी रक्षा करता है

यहोवा आज्ञाकारी लोगों को आशीषें देता और उनकी रक्षा करता है

“जो मेरी सुनेगा, वह निडर बसा रहेगा, और बेखटके सुख से रहेगा।”नीतिवचन 1:33.

1, 2. परमेश्‍वर की आज्ञा मानना क्यों ज़रूरी है? उदाहरण देकर समझाइए।

 रूई के गाले जैसे गोल-मटोल पीले-पीले चूज़े, हरी-हरी घास में दाना चुगने में मस्त हैं। वे इस बात से बिलकुल बेखबर हैं कि उनके सिर के ऊपर, आकाश में एक बाज़ मँडरा रहा है। अचानक उनकी माँ, अपने बच्चों की जान खतरे में देखकर, डर के मारे पैनी आवाज़ में उनको पुकारती है और अपने पंख फैला देती है। आवाज़ सुनते ही चूज़े दौड़कर माँ के पास चले जाते हैं और उसके पंखों तले छिप जाते हैं। बाज़ का हमला टल जाता है। * इससे हम क्या सबक सीखते हैं? आज्ञा मानने पर ही हमारी जिंदगी टिकी है।

2 यह सबक, आज खासकर मसीहियों के लिए बहुत अहमियत रखता है, क्योंकि शैतान एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाकर, परमेश्‍वर के लोगों को अपना शिकार बनाने की कोशिश कर रहा है। (प्रकाशितवाक्य 12:9, 12, 17) उसका लक्ष्य है, यहोवा के साथ हमारे रिश्‍ते को तोड़ देना ताकि हम यहोवा का अनुग्रह और हमेशा की ज़िंदगी की आशा गवाँ दें। (1 पतरस 5:8) लेकिन अगर हम परमेश्‍वर के करीब बने रहें और उसके वचन और संगठन से मिलनेवाली हिदायतों को फौरन अमल में लाएँ, तो हम यकीन रख सकते हैं कि वह हमारी रक्षा करेगा। भजनहार ने लिखा: “वह तुझे अपने पंखों की आड़ में ले लेगा, और तू उसके परों के नीचे शरण पाएगा।”—भजन 91:4.

आज्ञा न माननेवाली एक जाति, शैतान का शिकार हो जाती है

3. इस्राएल जाति के बार-बार बगावत करने का अंजाम क्या हुआ?

3 जब इस्राएल जाति, यहोवा की आज्ञाएँ मानकर चली तो यहोवा का साया उस पर बना रहा। लेकिन अफसोस कि उस जाति के लोगों ने बार-बार, अपने बनानेवाले से मुँह मोड़ लिया और वे लकड़ी और पत्थर के बने देवी-देवताओं को पूजने लगे, जबकि ये देवी-देवता ‘ऐसी व्यर्थ वस्तुएँ हैं जिन से न कुछ लाभ पहुंचेगा, और न कुछ छुटकारा हो सकता है।’ (1 शमूएल 12:21) वे सदियों तक ऐसे ही बगावत करते रहे और आखिरकार उनकी पूरी-की-पूरी जाति, सच्ची उपासना से इतनी दूर चली गयी कि उसका सही राह पर लौटना मुमकिन नहीं था। इसलिए यीशु ने बहुत दुःख के साथ कहा: “हे यरूशलेम, हे यरूशलेम; तू जो भविष्यद्वक्‍ताओं को मार डालता है, और जो तेरे पास भेजे गए, उन्हें पत्थरवाह करता है, कितनी ही बार मैं ने चाहा कि जैसे मुर्ग़ी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठे करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बालकों को इकट्ठे कर लूं, परन्तु तुम ने न चाहा। देखो, तुम्हारा घर तुम्हारे लिये उजाड़ छोड़ा जाता है।”—मत्ती 23:37, 38.

4. सामान्य युग 70 में यह कैसे ज़ाहिर हुआ कि यहोवा ने यरूशलेम को छोड़ दिया है?

4 यह बात सा.यु. 70 में बड़े ही अफसोसजनक तरीके से ज़ाहिर हुई कि यहोवा ने विश्‍वासघाती इस्राएल को छोड़ दिया है। उस साल रोमी सेना, बाज़ की प्रतिमाओं से सजे अपने झंडे फहराती हुई यरूशलेम पर एकाएक टूट पड़ी और उसने शहर में चारों तरफ खून की नदियाँ बहा दी। उस वक्‍त यरूशलेम शहर में फसह का पर्व मनाने आए लोगों की भीड़ लगी हुई थी। मगर यहूदी अपने ढेरों बलिदानों के बावजूद परमेश्‍वर का अनुग्रह पाने में नाकाम रहे। इस तरह, शमूएल के ये शब्द दर्दनाक तरीके से सच हुए जो उसने बगावती राजा, शाऊल से कहे थे: “क्या यहोवा होमबलियों और मेलबलियों से उतना प्रसन्‍न होता है, जितना कि अपनी बात के माने जाने से प्रसन्‍न होता है? सुन, मानना तो बलि चढ़ाने से, और कान लगाना मेढ़ों की चर्बी से उत्तम है।”—1 शमूएल 15:22.

5. यहोवा, किस तरह से आज्ञा मानने की माँग करता है और हम कैसे जानते हैं कि यह मुमकिन है?

5 हालाँकि यहोवा, आज्ञा मानने पर बहुत ज़ोर देता है, फिर भी वह असिद्ध इंसानों की कमज़ोरियाँ अच्छी तरह जानता है। (भजन 130:3, 4) इसलिए वह हमसे सिर्फ इतना चाहता है कि हम सच्चे दिल के हों और विश्‍वास और प्यार भरे दिल से उसकी आज्ञा मानें और उसे नाराज़ करने से डरें। (व्यवस्थाविवरण 10:12, 13; नीतिवचन 16:6; यशायाह 43:10; मीका 6:8; रोमियों 6:17) मसीह के पहले जीनेवाले ‘गवाहों के बड़े बादल’ ने साबित कर दिखाया कि इस तरह परमेश्‍वर की आज्ञा मानना ज़रूर मुमकिन है। वे कड़ी-से-कड़ी परीक्षाओं में, यहाँ तक कि मौत का सामना करते वक्‍त भी अपनी खराई पर बने रहे। (इब्रानियों 11:36, 37; 12:1) उन्होंने वाकई यहोवा का दिल खुश किया! (नीतिवचन 27:11) मगर कुछ लोग ऐसे थे जो शुरू में तो वफादार रहे, मगर बाद में उन्होंने यहोवा की आज्ञा नहीं मानी। ऐसा ही एक पुरुष था, प्राचीन यहूदा का राजा, योआश।

बुरी संगति ने एक राजा को तबाह कर दिया

6, 7. जब तक यहोयादा ज़िंदा था, तब तक योआश कैसा राजा था?

6 जब योआश दूध-पीता बच्चा ही था, तब वह कत्ल किए जाने से बाल-बाल बचा। और जब वह सात साल का हुआ तो महायाजक यहोयादा ने उसे गुप्त जगह में से निकालने का साहस किया और उसे राजा नियुक्‍त किया। परमेश्‍वर का भय माननेवाले यहोयादा ने, योआश का पिता और सलाहकार बनकर उसे अच्छी तालीम दी इसलिए “जब तक यहोयादा याजक जीवित रहा, तब तक” यह जवान राजा “वह काम करता रहा जो यहोवा की दृष्टि में ठीक” था।—2 इतिहास 22:10–23:1, 11; 24:1, 2.

7 योआश ने जो भले काम किए, उनमें से एक यह था कि उसने यहोवा के मंदिर की मरम्मत करवायी। यह काम योआश के “दिल को प्यारा” (NW) लगा। उसने महायाजक यहोयादा को याद दिलाया कि ‘मूसा के नियम’ के मुताबिक यहूदा और यरूशलेम से मंदिर का कर वसूल किया जाना चाहिए, ताकि मरम्मत के काम का खर्च पूरा हो। यहोयादा ने, जवान राजा के दिल में ज़रूर परमेश्‍वर की व्यवस्था को पढ़ने और उसे मानने का जोश पैदा किया होगा। नतीजा यह था कि मंदिर और उसके पात्रों से जुड़ा काम जल्द-से-जल्द पूरा हुआ।—2 इतिहास 24:4, 6, 13, 14; व्यवस्थाविवरण 17:18.

8. (क) योआश के आध्यात्मिक रूप से तबाह होने की असली वजह क्या थी? (ख) राजा ने अपने बगावती रवैए की वजह से बाद में क्या किया?

8 दुःख की बात है कि योआश ने हमेशा यहोवा की आज्ञा नहीं मानी। क्यों? परमेश्‍वर का वचन हमें बताता है: “यहोयादा के मरने के बाद यहूदा के हाकिमों ने राजा के पास जाकर उसे दण्डवत की, और राजा ने उनकी मानी। तब वे अपने पितरों के परमेश्‍वर यहोवा का भवन छोड़कर अशेरों और मूरतों की उपासना करने लगे। सो उनके ऐसे दोषी होने के कारण परमेश्‍वर का क्रोध यहूदा और यरूशलेम पर भड़का।” यहूदा के हाकिमों की बुरी संगति की वजह से योआश ने परमेश्‍वर के भविष्यवक्‍ताओं की बात को भी अनसुना कर दिया। यहाँ तक कि जब यहोयादा के बेटे, जकर्याह भविष्यवक्‍ता ने निडर होकर योआश और उसकी प्रजा को उनकी बगावत के लिए फटकारा तो योआश ने पश्‍चाताप करने के बजाय, जकर्याह को पत्थरवाह करके मरवा डाला। सचमुच वह कितना कठोर और बागी बन गया! इन सारी करतूतों की वजह यह थी कि वह बुरे साथियों के बहकावे में आ गया था।—2 इतिहास 24:17-22; 1 कुरिन्थियों 15:33.

9. योआश और उसके हाकिमों को आखिर में जो सिला मिला, वह कैसे दिखाता है कि बगावत करना बेवकूफी है?

9 जब योआश, यहोवा से मुकर गया तो उसका और उसके दुष्ट साथियों यानी हाकिमों का क्या हुआ? अराम देश की एक सेना ने, जो बस “थोड़े ही पुरुषों” की थी, यहूदा पर चढ़ाई की और “प्रजा में से सब हाकिमों को नाश किया।” उन हमलावरों ने राजा योआश पर ज़बरदस्ती की कि वह अपनी संपत्ति और पवित्रस्थान में रखा सोना और चाँदी भी उनके हवाले कर दे। योआश की जान तो बच गयी मगर वह बहुत कमज़ोर और बीमार हो गया। फिर कुछ समय बाद, उसी के कुछ सेवकों ने साज़िश रचकर उसका खून कर दिया। (2 इतिहास 24:23-25; 2 राजा 12:17, 18) इस्राएल से कहे यहोवा के ये वचन कितने सच हैं: “यदि तू अपने परमेश्‍वर यहोवा की बात न सुने, और उसकी सारी आज्ञाओं और विधियों के पालने में . . . चौकसी नहीं करेगा, तो ये सब शाप तुझ पर आ पड़ेंगे”!—व्यवस्थाविवरण 28:15.

आज्ञा मानने से एक सेक्रेटरी की जान बची

10, 11. (क) यहोवा ने बारूक को जो सलाह दी, उस पर ध्यान देना हमारे लिए क्यों फायदेमंद रहेगा? (ख) यहोवा ने बारूक को क्या सलाह दी?

10 क्या आप कभी-कभी इस बात से निराश हो जाते हैं कि प्रचार में ज़्यादातर लोग सुसमाचार में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाते? क्या आप कभी-कभी ऐसे लोगों से थोड़े-बहुत जलते हैं जो बहुत अमीर हैं और अपनी अभिलाषाओं को बेरोक-टोक पूरा करते हैं? अगर हाँ, तो आप यिर्मयाह के सेक्रेटरी, बारूक की मिसाल पर गहराई से सोचिए और यह भी ध्यान दीजिए कि यहोवा ने उसकी मदद करने के लिए उसे क्या सलाह दी।

11 बारूक, एक भविष्यवाणी लिख रहा था कि तभी यहोवा ने उसे कुछ सलाह दी। क्यों? क्योंकि बारूक, अपनी ज़िंदगी के हालात से खुश नहीं था और परमेश्‍वर की सेवा करने के खास सम्मान से भी बढ़कर कुछ हासिल करना चाहता था। जब यहोवा ने देखा कि बारूक का रवैया बदल गया है, तो उसने साफ शब्दों में, मगर प्यार से उसे यह सलाह दी: “क्या तू अपने लिये बड़ाई खोज रहा है? उसे मत खोज; क्योंकि . . . मैं सारे मनुष्यों पर विपत्ति डालूंगा; परन्तु जहां कहीं तू जाएगा वहां मैं तेरा प्राण बचाकर तुझे जीवित रखूंगा।”—यिर्मयाह 36:4; 45:5.

12. इस दुनिया में अपने लिए ‘बड़ाई खोजने’ से हमें क्यों बचकर रहना चाहिए?

12 यहोवा के इन शब्दों से क्या आप देख सकते हैं कि यहोवा, इस नेक पुरुष की दिल से भलाई चाहता था, क्योंकि उसने यिर्मयाह के साथ मिलकर पूरी वफादारी और हिम्मत से यहोवा की सेवा की थी? आज भी, यहोवा अपने उन सेवकों की दिल से परवाह करता है जिनका मन संसार की तरफ खिंचा जा रहा है, या यूँ कहें कि जिन्हें दूर के ढोल सुहावने लगने लगे हैं? ऐसे लोगों की सोच सुधारने के लिए, आध्यात्मिक रूप से काबिल भाई उन्हें सलाह देते हैं। और खुशी की बात है कि उनमें से बहुतों ने बारूक की तरह अपना रवैया बदल दिया है। (लूका 15:4-7) जी हाँ, हम सभी इस बात को समझें कि जो इस दुनिया में अपने लिए ‘बड़ाई खोजते’ हैं, उनका भविष्य अंधकारमय है। उन्हें संसार से सच्ची खुशी तो मिलेगी ही नहीं, और सबसे दुःख की बात यह है कि बहुत जल्द संसार और उसकी अभिलाषाओं के साथ वे भी मिट जाएँगे।—मत्ती 6:19, 20; 1 यूहन्‍ना 2:15-17.

13. बारूक के वृत्तांत से हम नम्रता के बारे में क्या सबक सीखते हैं?

13 बारूक के वृत्तांत से हम नम्रता के बारे में भी एक बढ़िया सबक सीखते हैं। गौर कीजिए कि यहोवा ने बारूक को खुद सलाह नहीं दी बल्कि उसने यिर्मयाह के ज़रिए अपनी बात बतायी। (यिर्मयाह 45:1, 2) बेशक बारूक, यिर्मयाह की कमज़ोरियों और खामियों के बारे में अच्छी तरह जानता होगा। फिर भी, उसने घमंड से फूलकर यिर्मयाह की बात को ठुकराया नहीं बल्कि नम्रता दिखायी और यह समझा कि असल में उसे सलाह देनेवाला यहोवा है। (2 इतिहास 26:3, 4, 16; नीतिवचन 18:12; 19:20) हम भी जब ‘अनजाने में कोई गलत कदम उठाते’ (NW) हैं और हमें परमेश्‍वर के वचन से ज़रूरी सलाह दी जाती है, तो आइए हम बारूक की तरह प्रौढ़ता, आध्यात्मिक समझ और नम्रता दिखाएँ।—गलतियों 6:1.

14. जो लोग हमारी अगुवाई करते हैं, उनकी आज्ञा मानने में क्यों हमारी भलाई है?

14 हमारे अंदर नम्रता का गुण होने से, सलाह देनेवाले का काम भी आसान हो जाएगा। इब्रानियों 13:17 कहता है: “अपने अगुवों की मानो; और उन के आधीन रहो, क्योंकि वे उन की नाईं तुम्हारे प्राणों के लिये जागते रहते, जिन्हें लेखा देना पड़ेगा, कि वे यह काम आनन्द से करें, न कि ठंडी सांस ले लेकर, क्योंकि इस दशा में तुम्हें कुछ लाभ नहीं।” प्राचीन कितनी ही बार, गिड़गिड़ाकर यहोवा से बिनती करते हैं कि झुंड की चरवाही करते वक्‍त, सलाह देने का यह मुश्‍किल काम करने के लिए वह उन्हें साहस, बुद्धि और समझ-बूझ दे। आइए हम “ऐसे मनुष्यों का आदर” करें।—1 कुरिन्थियों 16:18, NHT.

15. (क) यिर्मयाह ने बारूक पर अपना भरोसा कैसे ज़ाहिर किया? (ख) नम्र होकर आज्ञा मानने की वजह से बारूक को क्या प्रतिफल मिला?

15 यहोवा की सलाह पाने के बाद, बारूक ने अपना रवैया बदल दिया। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि बाद में यिर्मयाह ने उसे एक चुनौती-भरा काम सौंपा। बारूक को बताया गया कि वह मंदिर में जाकर वही न्यायदंड का संदेश पढ़कर सुनाए जो उसने यिर्मयाह के मुँह से सुनकर लिखा था। क्या बारूक ने यह आज्ञा मानी? जी हाँ, ‘यिर्मयाह भविष्यद्वक्‍ता की इस आज्ञा के अनुसार बारूक ने पढ़कर सुनाया।’ यहाँ तक कि उसने वह संदेश, यरूशलेम के हाकिमों को भी पढ़कर सुनाया जबकि इसके लिए बहुत हिम्मत की ज़रूरत थी। (यिर्मयाह 36:1-6, 8, 14, 15) इसके करीब 18 साल बाद, जब बाबुलियों ने आकर यरूशलेम पर कब्ज़ा किया, तब बारूक की जान बख्श दी गयी क्योंकि उसने यहोवा की चेतावनी मानकर, अपने लिए ‘बड़ाई खोजना’ छोड़ दिया था। उस वक्‍त बारूक का दिल, यहोवा के लिए एहसान से कितना भर गया होगा!—यिर्मयाह 39:1, 2, 11, 12; 43:6.

घेराबंदी के दौरान, आज्ञा मानने से जानें बचीं

16. सा.यु.पू. 607 में बाबुलियों के हमले के दौरान, यहोवा ने यरूशलेम में रहनेवाले यहूदियों पर कैसे दया दिखायी?

16 सामान्य युग पूर्व 607 में जब यरूशलेम का विनाश हुआ, तो उस वक्‍त भी यह बात ज़ाहिर हुई कि परमेश्‍वर, आज्ञा माननेवालों पर दया करता है। जब उस शहर पर की गयी घेराबंदी, अपनी चरम-सीमा पर पहुँच गयी, तो यहोवा ने यहूदियों से कहा: “देखो, मैं तुम्हारे साम्हने जीवन का मार्ग और मृत्यु का मार्ग भी बताता हूं। जो कोई इस नगर में रहे वह तलवार, महंगी और मरी से मरेगा; परन्तु जो कोई निकलकर उन कसदियों के पास जो तुम को घेर रहे हैं भाग जाए वह जीवित रहेगा, और उसका प्राण बचेगा।” (यिर्मयाह 21:8, 9) हालाँकि यरूशलेम के निवासी, नाश के लायक थे फिर भी यहोवा ने उन लोगों पर दया दिखायी, जिन्होंने उस आखिरी घड़ी में उसकी आज्ञा मानी। *

17. (क) जब यहोवा ने यिर्मयाह को आज्ञा दी कि वह यहूदियों को ‘कसदियों के पास भागने’ के लिए कहे, तो किन दो तरीकों से यह यिर्मयाह के लिए एक परीक्षा की घड़ी थी? (ख) यिर्मयाह ने जिस तरह निडर होकर आज्ञा मानी, उससे हम क्या सीख सकते हैं?

17 यिर्मयाह के लिए यह एक परीक्षा की घड़ी थी कि क्या वह यहोवा की आज्ञा मानकर, यहूदियों को बताएगा कि वे खुद को बाबुलियों के हवाले कर दें। इस परीक्षा की एक वजह यह थी कि यिर्मयाह को यहोवा के नाम के लिए बहुत जोश था। इसलिए शायद वह सोच सकता था कि अगर यहूदी, आत्म-समर्पण करेंगे तो दुश्‍मन, जीत का श्रेय अपनी बेजान मूरतों को देंगे और इससे यहोवा के नाम की निंदा होगी। और ऐसा होना उसे हरगिज़ मंज़ूर नहीं था। (यिर्मयाह 50:2, 11; विलापगीत 2:16) दूसरी बात, यिर्मयाह जानता था कि लोगों को आत्म-समर्पण करने के लिए कहना खतरा मोल लेना है क्योंकि इससे कई लोग उसे गद्दार समझकर उसकी जान के दुश्‍मन बन जाएँगे। इन वजह से यिर्मयाह चाहता तो पीछे हट सकता था मगर उसने निडर होकर यहोवा की आज्ञा मानी और लोगों को उसका संदेश सुनाया। (यिर्मयाह 38:4, 17, 18) यिर्मयाह की तरह आज हम भी लोगों को एक ऐसा संदेश सुना रहे हैं जिसे वे पसंद नहीं करते। यह वही संदेश है जिसे सुनाने की वजह से यीशु ठुकराया गया था। (यशायाह 53:3; मत्ती 24:9) इसलिए हम ‘मनुष्य का भय न खाएँ’ मगर यिर्मयाह की तरह यहोवा पर पूरा भरोसा रखें और निडर होकर उसकी आज्ञा मानें।—नीतिवचन 29:25.

गोग के हमले के वक्‍त आज्ञा मानना

18. यहोवा के लोग, उसकी आज्ञा मानेंगे या नहीं, इसकी भविष्य में कैसे परीक्षा होगी?

18 जल्द ही, शैतान की पूरी दुनिया अब तक के सबसे “भारी क्लेश” में नाश कर दी जाएगी। (मत्ती 24:21) बेशक, उस क्लेश से पहले और उस दौरान भी, परमेश्‍वर के लोगों को बड़ी-बड़ी परीक्षाओं से गुज़रना पड़ेगा और तब यह परखा जाएगा कि क्या वे यहोवा पर विश्‍वास रखते और उसकी आज्ञा मानते हैं। मसलन, बाइबल कहती है कि शैतान, “मागोग देश के गोग” की हैसियत से यहोवा के सेवकों पर चौतरफा हमला करेगा। इस हमले के लिए, वह अपनी सेना को तैयार करेगा जिसके बारे में बताया गया है कि वह “बड़ी भीड़ और बलवन्त सेना” है और ‘भूमि पर छा जानेवाले बादल’ के समान है। (यहेजकेल 38:2, 14-16) उनकी तुलना में, परमेश्‍वर के लोगों की संख्या न के बराबर होगी और उनके पास कोई हथियार नहीं होगा। मगर यहोवा के लोग उसके “पंखों” तले शरण पाएँगे, जिन्हें वह आज्ञा माननेवालों की हिफाज़त करने के लिए फैलाता है।

19, 20. (क) जब इस्राएली लाल सागर के पास थे, तब उनके लिए आज्ञा मानना क्यों बहुत ज़रूरी था? (ख) लाल सागर की घटना के बारे में प्रार्थना करके गहराई से विचार करने से हमें क्या फायदा होगा?

19 यह हालात हमें, मिस्र से इस्राएलियों की यात्रा की याद दिलाता है। मिस्र पर दस भयानक विपत्तियाँ लाने के बाद, यहोवा अपने लोगों को वादा किए गए देश की ओर जानेवाले छोटे रास्ते से नहीं ले गया। इसके बजाय, वह उन्हें लाल सागर के रास्ते से ले गया जबकि वहाँ दुश्‍मन उनको आसानी से दबोच सकते थे। युद्ध की रणनीति के हिसाब से देखा जाए तो उनका उस रास्ते से जाना घातक साबित हो सकता था। अगर आप इस्राएलियों में से एक होते तो क्या आप मूसा के ज़रिए मिली यहोवा की आज्ञा मानकर पूरे भरोसे के साथ लाल सागर के रास्ते पर ही निकल पड़ते, यह जानने के बावजूद कि वादा किया गया देश, लाल सागर की दूसरी दिशा में है?—निर्गमन 14:1-4.

20 जब हम निर्गमन के अध्याय 14 का बाकी हिस्सा पढ़ते हैं तो हम पाते हैं कि कैसे यहोवा ने अपनी शक्‍ति का शानदार प्रदर्शन करके अपनी प्रजा की रक्षा की। अगर हम समय निकालकर ऐसी घटनाओं का अध्ययन करें और मनन करें, तो हमारा विश्‍वास कितना मज़बूत होगा! (2 पतरस 2:9) और ऐसा मज़बूत विश्‍वास होने पर, यहोवा की आज्ञा मानने का हमारा इरादा और भी पक्का होगा, फिर चाहे उसकी आज्ञाएँ इंसान की समझ के मुताबिक सही न भी लगें। (नीतिवचन 3:5, 6) इसलिए खुद से पूछिए: ‘क्या मैं पूरी लगन से बाइबल का अध्ययन करने, प्रार्थना और मनन करने, साथ ही परमेश्‍वर के लोगों के साथ नियमित तौर पर इकट्ठा होने के ज़रिए अपने विश्‍वास को मज़बूत कर रहा हूँ?’—इब्रानियों 10:24, 25; 12:1-3.

आज्ञा मानने से आशा मिलती है

21. जो लोग यहोवा की आज्ञा मानते हैं, उन्हें आज और भविष्य में कौन-सी आशीषें मिलेंगी?

21 जो लोग, ज़िंदगी के हर कदम पर यहोवा की आज्ञा मानते हैं, उन पर आज भी नीतिवचन 1:33 में कही बात पूरी होती है: “जो मेरी सुनेगा, वह निडर बसा रहेगा, और बेखटके सुख से रहेगा।” सांत्वना देनेवाले ये शब्द, यहोवा के पलटा लेने के दिन में क्या ही शानदार तरीके से पूरे होंगे! यहाँ तक कि यीशु ने अपने चेलों से कहा था: “जब ये बातें होने लगें, तो सीधे होकर अपने सिर ऊपर उठाना; क्योंकि तुम्हारा छुटकारा निकट होगा।” (लूका 21:28) इसमें कोई शक नहीं कि सिर्फ वे लोग ही पूरे यकीन के साथ यीशु के इन शब्दों को अमल में लाएँगे, जो यहोवा की आज्ञा मानते हैं।—मत्ती 7:21.

22. (क) यहोवा के लोग क्यों हिम्मत रख सकते हैं? (ख) अगले लेख में किन बातों पर चर्चा की जाएगी?

22 यहोवा के लोगों के लिए भरोसा रखने की एक और वजह यह है कि “प्रभु यहोवा अपने दास भविष्यद्वक्‍ताओं पर अपना मर्म बिना प्रगट किए कुछ भी न करेगा।” (आमोस 3:7) यह सच है कि बीते समयों की तरह आज यहोवा ने भविष्यवक्‍ताओं को नहीं ठहराया है; मगर उसने एक विश्‍वासयोग्य दास वर्ग का इंतज़ाम किया है ताकि वह परमेश्‍वर के घराने को समय पर आध्यात्मिक भोजन देता रहे। (मत्ती 24:45-47) तो यह कितना ज़रूरी है कि हम हमेशा उस “दास” की आज्ञा मानें। जैसा कि अगले लेख में बताया जाएगा, उस “दास” की आज्ञा मानना यही दिखाता है कि हम उसके मालिक यीशु की आज्ञा मानते हैं। यीशु ही वह शख्स है जिसकी ‘राज्य राज्य के लोगों को आज्ञा माननी है।’—उत्पत्ति 49:10, NHT.

[फुटनोट]

^ हालाँकि मुर्गी को अकसर डरपोक कहा जाता है, मगर पशु-पक्षियों की रक्षा करनेवाले एक संगठन का प्रकाशन कहता है: “मुर्गी, अपने चूज़ों को खतरे से बचाने के लिए जान की बाज़ी तक लगा देती है।”

^ यिर्मयाह 38:19 दिखाता है कि बहुत-से यहूदी, कसदियों के पास “भाग गए।” उनकी जान तो बख्श दी गयी मगर उन्हें बंदी बनाकर ले जाया गया। उन्होंने यिर्मयाह की सलाह पर ही, खुद को बाबुलियों के हवाले किया या नहीं, इस बारे में बाइबल कुछ नहीं कहती। लेकिन उनका ज़िंदा बचना दिखाता है कि भविष्यवक्‍ता के शब्द सच निकले।

क्या आपको याद है?

• बार-बार यहोवा की आज्ञा तोड़ने का इस्राएलियों को क्या सिला मिला?

• शुरूआत में और बाद में, राजा योआश की ज़िंदगी पर सोहबत का क्या असर पड़ा?

• बारूक से हम कौन-से सबक सीखते हैं?

• यह जानने के बावजूद कि इस संसार का बहुत जल्द नाश होनेवाला है, यहोवा की आज्ञा माननेवालों को डरने की ज़रूरत क्यों नहीं है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 13 पर तसवीर]

जवान योआश को जब तक यहोयादा से नसीहत मिलती रही, तब तक उसने यहोवा की आज्ञा मानी

[पेज 15 पर तसवीर]

बुरे साथियों का योआश पर इतना ज़बरदस्त असर हुआ कि उसने परमेश्‍वर के भविष्यवक्‍ता को मरवा डाला

[पेज 16 पर तसवीर]

क्या आप यहोवा के आज्ञाकारी होते और उद्धार करने की उसकी विस्मयकारी शक्‍ति देखते?