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यहोवा आपकी चिंता करता है

यहोवा आपकी चिंता करता है

यहोवा आपकी चिंता करता है

“अपनी समस्त चिन्ता [परमेश्‍वर] पर डाल दो, क्योंकि वह तुम्हारी चिन्ता करता है।”1 पतरस 5:7, NHT.

1. यहोवा और शैतान के बीच एक खास फर्क क्या है?

 यहोवा और शैतान के स्वभाव में ज़मीन-आसमान का फर्क है। कोई भी व्यक्‍ति जो यहोवा के नज़दीक आता है, वह शैतान से नफरत ही करेगा। इस फर्क के बारे में एक जानी-मानी किताब में बताया गया है। बाइबल में अय्यूब की किताब में दिए शैतान के कामों के बारे में द इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका (1970) कहती है: ‘शैतान पूरी दुनिया में इधर-उधर घूमता रहता है और लोगों या उनके कामों में नुक्स निकालकर उन्हें दोषी ठहराता है; इसलिए उसका काम परमेश्‍वर से उलटा है, क्योंकि “प्रभु की दृष्टि” सारी पृथ्वी पर इसलिए फिरती रहती है ताकि अच्छाई को बल दे सके (II इति. xvi, 9)। शैतान को इस बात का पूरा यकीन नहीं है कि इंसान बिना किसी स्वार्थ के भलाई कर सकता है। इस बात की परीक्षा लेने के लिए शैतान को परमेश्‍वर से इजाज़त मिली है। मगर परमेश्‍वर ने इसके लिए भी एक सीमा तय की है।’ सचमुच, परमेश्‍वर और शैतान में कितना बड़ा फर्क है!—अय्यूब 1:6-12; 2:1-7.

2, 3. (क) अय्यूब के किस्से से कैसे पता चलता है कि “इब्‌लीस” के लिए इस्तेमाल किए गए यूनानी शब्द का मतलब उस पर बिलकुल सही बैठता है? (ख) बाइबल यह कैसे दिखाती है कि धरती पर रहनेवाले यहोवा के सेवकों पर शैतान आज भी दोष लगा रहा है?

2 “इब्‌लीस” के लिए इस्तेमाल किए गए यूनानी शब्द का मतलब है “झूठा आरोप लगानेवाला”, “बदनाम करनेवाला।” अय्यूब की किताब से पता चलता है कि शैतान ने यहोवा के वफादार सेवक अय्यूब पर यह इलज़ाम लगाया कि वह परमेश्‍वर की सेवा स्वार्थ के लिए करता है। उसने कहा: “क्या अय्यूब परमेश्‍वर का भय बिना लाभ के मानता है?” (अय्यूब 1:9) अय्यूब की किताब में दिए गए वृत्तांत से पता चलता है कि अय्यूब पर आयी सारी परीक्षाओं और तकलीफों के बावजूद, परमेश्‍वर के साथ उसका रिश्‍ता और भी मज़बूत हो गया। (अय्यूब 10:9, 12; 12:9, 10; 19:25; 27:5; 28:28) जब मुसीबतों का दौर खत्म हुआ, तो उसने परमेश्‍वर से कहा: “मैं ने कानों से तेरा समाचार सुना था, परन्तु अब मेरी आंखें तुझे देखती हैं।”—अय्यूब 42:5.

3 अय्यूब के समय के बाद क्या शैतान ने यहोवा के सेवकों पर इलज़ाम लगाना छोड़ दिया? बिलकुल नहीं। प्रकाशितवाक्य की किताब दिखाती है कि इस अंत के समय में शैतान, मसीह के अभिषिक्‍त भाइयों, साथ ही उनके वफादार साथियों पर दोष लगाने से बाज़ नहीं आया। (2 तीमुथियुस 3:12; प्रकाशितवाक्य 12:10, 17) इसलिए हम सभी सच्चे मसीहियों के लिए यह पहले से ज़्यादा ज़रूरी हो गया है कि हम खुद को यहोवा परमेश्‍वर के अधीन कर दें, जो हमारी परवाह करता है, उसकी सेवा सच्चे दिल से करें और शैतान के आरोपों को झूठा साबित करें। ऐसा करने से हम यहोवा के दिल को खुश करेंगे।—नीतिवचन 27:11.

यहोवा हमारी मदद करने के तरीके ढूँढ़ता है

4, 5. (क) शैतान से बिलकुल उलट, यहोवा धरती पर नज़र क्यों रखता है? (ख) अगर हम यहोवा का अनुग्रह पाना चाहते हैं, तो हमें क्या करना चाहिए?

4 शैतान किसी-न-किसी पर दोष लगाने और उसे फाड़ खाने की ताक में पूरी पृथ्वी पर फिरता रहता है। (अय्यूब 1:7, 9; 1 पतरस 5:8) लेकिन यहोवा उससे कितना अलग है। वह इसलिए लोगों पर नज़र रखता है ताकि जिन्हें उसकी शक्‍ति की ज़रूरत हो वह उनकी मदद कर सके। भविष्यवक्‍ता हनानी ने राजा आसा से कहा: “देख, यहोवा की दृष्टि सारी पृथ्वी पर इसलिये फिरती रहती है कि जिनका मन उसकी ओर निष्कपट रहता है, उनकी सहायता में वह अपना सामर्थ दिखाए।” (2 इतिहास 16:9) शैतान नफरत-भरी निगाहों से हमें जाँचता है जबकि यहोवा हमारी प्यार से देखभाल करता है। इन दोनों में कितना फर्क है!

5 यहोवा हमारी हर छोटी-से-छोटी गलती और कमज़ोरी ढूँढ़ने के लिए हम पर नज़र नहीं रखता। भजनहार ने लिखा: “हे याह, यदि तू अधर्म के कामों का लेखा ले, तो हे प्रभु कौन खड़ा रह सकेगा?” (भजन 130:3) इसका जवाब साफ है: कोई नहीं। (सभोपदेशक 7:20) अगर हम पूरे दिल से यहोवा के करीब आते हैं तो उसकी नज़र हम पर होगी, हमें दोषी ठहराने के लिए नहीं बल्कि हमारी कोशिशों पर ध्यान देने के लिए, साथ ही हमारी उन प्रार्थनाओं का जवाब देने के लिए जिनमें हम उससे माफी और मदद माँगते हैं। प्रेरित पतरस ने लिखा: “प्रभु की आंखें धर्मियों पर लगी रहती हैं, और उसके कान उन की बिनती की ओर लगे रहते हैं, परन्तु प्रभु बुराई करनेवालों के विमुख रहता है।”—1 पतरस 3:12.

6. दाऊद के किस्से से हमें क्या सांत्वना और चेतावनी मिलती है?

6 दाऊद असिद्ध था और उसने गंभीर पाप किए थे। (2 शमूएल 12:7-9) मगर उसने यहोवा के सामने अपने दिल की सारी बात बतायी और मन लगाकर प्रार्थना की और उसके करीब गया। (भजन 51:1-12, NHT, उपरिलेख) यहोवा ने दाऊद की प्रार्थना सुनी और उसे माफ कर दिया लेकिन दाऊद को अपने पाप के बुरे अंजाम भुगतने ही पड़े। (2 शमूएल 12:10-14) यह बात हमारे लिए सांत्वना और एक चेतावनी भी होनी चाहिए। यह जानकर हमें सांत्वना मिलती है कि यहोवा हमारे पापों को माफ करने के लिए तैयार है, बशर्ते कि हम सच्चा पछतावा दिखाएँ। मगर इस बात पर गंभीरता से गौर किया जाना चाहिए कि अकसर हमें अपने पापों के बुरे अंजाम भुगतने ही पड़ते हैं। (गलतियों 6:7-9) अगर हम यहोवा के करीब आना चाहते हैं, तो हमें ऐसा कोई भी काम नहीं करना चाहिए जिससे यहोवा के दिल को ठेस पहुँचे।—भजन 97:10.

यहोवा अपने लोगों को अपनी ओर खींचता है

7. यहोवा किस तरह के लोगों पर दृष्टि करता है, और वह उन्हें कैसे अपनी ओर खींचता है?

7 दाऊद ने अपने एक भजन में लिखा: “यहोवा महान है, तौभी वह नम्र मनुष्य की ओर दृष्टि करता है; परन्तु अहंकारी को दूर ही से पहिचानता है।” (भजन 138:6) उसी तरह एक और भजन कहता है: “हमारे परमेश्‍वर यहोवा के तुल्य कौन है? वह तो ऊंचे पर विराजमान है, और आकाश और पृथ्वी पर भी, दृष्टि करने के लिये झुकता है। वह कंगाल [“दीनों,” ईज़ी-टू-रीड वर्शन] को मिट्टी पर से, . . . उठाकर ऊंचा करता है।” (भजन 113:5-7) जी हाँ, सारे जहान का सर्वशक्‍तिमान सिरजनहार, पृथ्वी पर दृष्टि करने के लिए झुकता है और वह “नम्र मनुष्य”, “दीनों” को देखता है जो “उन सब घृणित कामों के कारण जो उस में किए जाते हैं, सांसें भरते और दु:ख के मारे चिल्लाते हैं।” (यहेजकेल 9:4) वह ऐसे लोगों को अपने बेटे के ज़रिए अपनी ओर खींचता है। जब यीशु धरती पर था, तो उसने कहा: “कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिस ने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले; . . . जब तक किसी को पिता की ओर से यह बरदान न दिया जाए तब तक वह मेरे पास नहीं आ सकता।”—यूहन्‍ना 6:44, 65.

8, 9. (क) हम सभी का यीशु के पास जाना ज़रूरी क्यों है? (ख) छुड़ौती के इंतज़ाम के बारे में क्या बात सबसे अनोखी है?

8 सभी इंसानों को यीशु के पास आना और उसके छुड़ौती बलिदान पर विश्‍वास करना है, क्योंकि वे जन्म से ही पापी हैं और परमेश्‍वर से दूर हैं। (यूहन्‍ना 3:36) उन्हें परमेश्‍वर के साथ मेल-मिलाप करना ज़रूरी है। (2 कुरिन्थियों 5:20) परमेश्‍वर ने इस बात का इंतज़ार नहीं किया कि पापी लोग खुद उसके पास आएँगे और उससे बिनती करेंगे कि वह कुछ ऐसा इंतज़ाम करे जिससे कि वे उसके साथ दोबारा शांति कायम कर सकें। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “परमेश्‍वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा। क्योंकि बैरी होने की दशा में तो उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्‍वर के साथ हुआ फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्यों न पाएंगे?”—रोमियों 5:8, 10.

9 परमेश्‍वर, इंसानों के साथ मेल-मिलाप कर रहा है, इस महान सच्चाई को पुख्ता करते हुए प्रेरित यूहन्‍ना ने लिखा: “जो प्रेम परमेश्‍वर हम से रखता है, वह इस से प्रगट हुआ, कि परमेश्‍वर ने अपने एकलौते पुत्र को जगत में भेजा है, कि हम उसके द्वारा जीवन पाएं। प्रेम इस में नहीं, कि हम ने परमेश्‍वर से प्रेम किया; पर इस में है, कि उस ने हम से प्रेम किया; और हमारे पापों के प्रायश्‍चित्त के लिये अपने पुत्र को भेजा।” (1 यूहन्‍ना 4:9, 10) जी हाँ, मेल-मिलाप करने के लिए पहला कदम परमेश्‍वर ने उठाया, न कि इंसानों ने। क्या आप ऐसे परमेश्‍वर की ओर खिंचे चले नहीं आते जिसने हम जैसे “पापी” इंसानों यहाँ तक कि ‘बैरियों’ के लिए इतना प्यार दिखाया?—यूहन्‍ना 3:16.

यहोवा को ढूँढ़ना ज़रूरी है

10, 11. (क) हमें यहोवा को ढूँढ़ने के लिए क्या करना चाहिए? (ख) शैतान के संसार को हमें किस नज़र से देखना चाहिए?

10 बेशक यहोवा ज़बरदस्ती हमें अपने पास नहीं बुलाता। इसके बजाय हमें उसे ढूँढ़ना चाहिए ताकि “टटोलकर पा जाएं तौभी वह हम में से किसी से दूर नहीं!” (प्रेरितों 17:27) हमें इस बात का एहसास होना चाहिए कि यहोवा के पास, हमसे अधीनता की माँग करने का पूरा हक है। शिष्य याकूब ने लिखा: “इसलिये परमेश्‍वर के आधीन हो जाओ; और शैतान का साम्हना करो, तो वह तुम्हारे पास से भाग निकलेगा। परमेश्‍वर के निकट आओ, तो वह भी तुम्हारे निकट आएगा: हे पापियो, अपने हाथ शुद्ध करो; और हे दुचित्ते लोगो अपने हृदय को पवित्र करो।” (याकूब 4:7, 8) शैतान का विरोध करने और यहोवा के पक्ष में दृढ़ खड़े रहने में हमें आनाकानी नहीं करनी चाहिए।

11 इसका मतलब है कि हमें शैतान के बुरे संसार से खुद को दूर रखना है। याकूब ने भी लिखा: ‘क्या तुम नहीं जानते, कि संसार से मित्रता करना परमेश्‍वर से बैर करना है? सो जो कोई संसार का मित्र होना चाहता है, वह अपने आप को परमेश्‍वर का बैरी बनाता है।’ (याकूब 4:4) इसके विपरीत अगर हम यहोवा के दोस्त बनना चाहते हैं, तो हम यही उम्मीद कर सकते हैं कि शैतान का संसार हमसे नफरत करेगा।—यूहन्‍ना 15:19; 1 यूहन्‍ना 3:13.

12. (क) दाऊद ने कौन-से दिलासा-भरे शब्द लिखे? (ख) यहोवा ने भविष्यवक्‍ता अजर्याह के ज़रिए क्या चेतावनी दी?

12 जब शैतान का संसार किसी तरीके से हमारा विरोध करता है, तो हमें खासकर प्रार्थना के ज़रिए यहोवा से मदद माँगनी चाहिए। यहोवा ने दाऊद को कई बार मुसीबतों से बचाया। इसलिए उसके इन शब्दों से हमें दिलासा मिलता है: “जितने यहोवा को पुकारते हैं, अर्थात्‌ जितने उसको सच्चाई से पुकारते हैं, उन सभों के वह निकट रहता है। वह अपने डरवैयों की इच्छा पूरी करता है, और उनकी दोहाई सुनकर उनका उद्धार करता है। यहोवा अपने सब प्रेमियों की तो रक्षा करता, परन्तु सब दुष्टों को सत्यानाश करता है।” (भजन 145:18-20) भजन दिखाता है कि अगर हम अकेले किसी मुसीबत से गुज़र रहे हैं, तो यहोवा हमें बचा सकता है और “बड़े क्लेश” के दौरान वह अपने सभी सेवकों बचाएगा। (प्रकाशितवाक्य 7:14) अगर हम यहोवा के करीब रहेंगे, तो वह भी हमारे करीब रहेगा। “परमेश्‍वर की आत्मा” से प्रेरित होकर भविष्यवक्‍ता अजर्याह ने एक ऐसी बात कही जो आज भी सच साबित होती है: “जब तक तुम यहोवा के संग रहोगे तब तक वह तुम्हारे संग रहेगा; और यदि तुम उसकी खोज में लगे रहो, तब तो वह तुम से मिला करेगा, परन्तु यदि तुम उसको त्याग दोगे तो वह भी तुम को त्याग देगा।”—2 इतिहास 15:1, 2.

यहोवा हमारे लिए एक असल शख्स होना चाहिए

13. क्या करने के ज़रिए हम दिखाते हैं कि यहोवा हमारे लिए एक असल शख्स है?

13 प्रेरित पौलुस ने मूसा के बारे में लिखा कि “वह अनदेखे को मानो देखता हुआ दृढ़ रहा।” (इब्रानियों 11:27) यह सच है कि मूसा ने यहोवा को सचमुच नहीं देखा था। (निर्गमन 33:20) मगर यहोवा उसके लिए इतना असल था कि मानो उसने सचमुच में उसे देखा हो। उसी तरह परीक्षाओं के दौर से गुज़रने के बाद अय्यूब अपनी विश्‍वास की आँखों से और अच्छी तरह देख पाया कि यहोवा एक ऐसा परमेश्‍वर है, जो अपने वफादार सेवकों को परीक्षाओं से गुज़रने तो देता है, मगर उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ता। (अय्यूब 42:5) नूह और हनोक के बारे में कहा जाता है कि वे ‘परमेश्‍वर के साथ-साथ चले।’ वे परमेश्‍वर को खुश करने और उसकी आज्ञाओं को मानने के ज़रिए ऐसा कर पाए। (उत्पत्ति 5:22-24; 6:9, 22; इब्रानियों 11:5, 7) अगर हम भी हनोक, नूह, अय्यूब और मूसा की तरह यहोवा को एक असल शख्स मानते हैं, तो हम अपने सारे कामों में “उसी को स्मरण” करेंगे और “वह [हमारे] लिये सीधा मार्ग निकालेगा।”—नीतिवचन 3:5, 6.

14. यहोवा से ‘लिपटे रहने’ का क्या मतलब है?

14 जब इस्राएली वादा किए गए देश में जाने ही वाले थे, उस वक्‍त मूसा ने उन्हें यह सलाह दी: “तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा के पीछे चलना, और उसका भय मानना, और उसकी आज्ञाओं पर चलना, और उसका वचन मानना, और उसकी सेवा करना, और उसी से लिपटे रहना।” (व्यवस्थाविवरण 13:4) उन्हें यहोवा के पीछे-पीछे चलना था, उसका भय मानना था, उसकी आज्ञाओं पर चलना था और उससे लिपटे रहना था। यहाँ जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “लिपटे रहना” किया गया है उसके बारे में एक बाइबल विद्वान कहते हैं कि उस “भाषा में यह शब्द एक बहुत ही नज़दीकी और अटूट रिश्‍ते को दर्शाता है।” भजनहार ने कहा: “यहोवा अपने भक्‍तों पर अपने भेद खोलता है।” (भजन 25:14, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) हम यहोवा के साथ ऐसा ही अनमोल और नज़दीकी रिश्‍ता कायम कर सकते हैं, बशर्ते हम उसे एक असल शख्स समझें और उससे इतना प्यार करें कि हम उसके दिल को किसी भी तरह से ठेस न पहुँचाएँ।—भजन 19:9-14.

क्या आपको यहोवा की चिंता का एहसास है?

15, 16. (क) भजन 34 कैसे दिखाता है कि यहोवा को हमारी चिंता है? (ख) यहोवा ने हमारी खातिर जो भले काम किए गए हैं उन्हें याद करना अगर हमारे लिए मुश्‍किल होता है, तो हमें क्या करना चाहिए?

15 इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि यहोवा हमेशा अपने वफादार सेवकों की देखभाल करता है मगर शैतान चाहता है कि हम इस बात को भूल जाएँ। यह उसकी एक धूर्त चाल है। इस्राएल के राजा दाऊद को अच्छी तरह मालूम था कि यहोवा का भुजबल उसकी हिफाज़त ज़रूर करेगा। जब उसकी ज़िंदगी में एक खतरनाक मोड़ आया तब भी उसने परमेश्‍वर पर ऐसा ही भरोसा दिखाया। एक बार जब उसे मजबूरन गत के राजा आकीश के सामने पागलपन का नाटक करना पड़ा, तो उस दौरान उसने एक गीत, एक बेहद ही खूबसूरत भजन लिखा। उस भजन में विश्‍वास से भरे ये शब्द पाए जाते हैं: “मेरे साथ यहोवा की बड़ाई करो, और आओ हम मिलकर उसके नाम की स्तुति करें! मैं यहोवा के पास गया, तब उस ने मेरी सुन ली, और मुझे पूरी रीति से निर्भय किया। यहोवा के डरवैयों के चारों ओर उसका दूत छावनी किए हुए उनको बचाता है। परखकर देखो कि यहोवा कैसा भला है! क्या ही धन्य है वह पुरुष जो उसकी शरण लेता है। यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्धार करता है। धर्मी पर बहुत सी विपत्तियां पड़ती तो हैं, परन्तु यहोवा उसको उन सब से मुक्‍त करता है।”—भजन 34:3, 4, 7, 8, 18, 19; 1 शमूएल 21:10-15.

16 क्या आपको यहोवा की रक्षा करने की ताकत पर पूरा भरोसा है? क्या आपने उसके स्वर्गदूतों की हिफाज़त महसूस की है? क्या आपने खुद यहोवा परमेश्‍वर को परखकर देखा है और पाया है कि वह भला है? क्या आप याद कर सकते हैं कि पिछली बार कब आपने महसूस किया कि यहोवा ने आपके साथ सचमुच भलाई की है? ज़रा याद करने की कोशिश कीजिए। क्या यह उस वक्‍त की बात है, जब प्रचार में आखिरी घर पहुँचते-पहुँचते आपको लग रहा था कि अब आपसे और नहीं होगा, और तभी उस घरमालिक के साथ आपकी बढ़िया बातचीत हुई? क्या तब आपने याद से यहोवा को प्रार्थना में धन्यवाद दिया क्योंकि उसने आपको ज़्यादा ताकत और आशीष दी। (2 कुरिन्थियों 4:7) अगर आपको हाल में हुई कोई बात याद नहीं आ रही हो जिसमें यहोवा ने आपके साथ भलाई की है तो आप एक सप्ताह, एक साल या उससे भी पहले की बातें याद करने की कोशिश कर सकते हैं। ऐसे में आप यहोवा के और करीब जाने की जी-तोड़ कोशिश कीजिए और देखिए कि वह कैसे आपको राह दिखाता है? प्रेरित पतरस ने मसीहियों को सलाह दी: “परमेश्‍वर के बलवन्त हाथ के नीचे दीनता से रहो, . . . और अपनी सारी चिन्ता उसी पर डाल दो, क्योंकि उस को तुम्हारा ध्यान है।” (1 पतरस 5:6, 7) सचमुच आपको यह देखकर ताज्जुब होगा कि वह आपकी कितनी चिन्ता करता है!—भजन 73:28.

यहोवा को ढूँढ़ते रहिए

17. यहोवा को ढूँढ़ते रहने के लिए हमें क्या करना ज़रूरी है?

17 हमें यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को लगातार मज़बूत करते रहना है। यीशु ने अपने पिता से प्रार्थना में कहा: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्‍वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।” (यूहन्‍ना 17:3) यहोवा और उसके बेटे के बारे में ज्ञान हासिल करने के लिए हमें निरंतर मेहनत करने की ज़रूरत है। हमें “परमेश्‍वर की गूढ़ बातें” समझने के लिए प्रार्थना और पवित्र आत्मा की मदद चाहिए। (1 कुरिन्थियों 2:10; लूका 11:13) हमें “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के मार्गदर्शन की भी ज़रूरत है जिससे कि हमारा मन “समय पर” दिए गए आध्यात्मिक भोजन से तृप्त रहे। (मत्ती 24:45) इस ज़रिए का इस्तेमाल करके यहोवा ने हमें सलाह दी है कि हम उसके वचन को रोज़ाना पढ़ें, मसीही सभाओं में नियमित रूप से हाज़िर हों और दिलो-जान से ‘राज्य का सुसमाचार’ प्रचार करें। (मत्ती 24:14) यह सब करने से हम दिखाएँगे कि हम यहोवा परमेश्‍वर को ढूँढ़ रहे हैं जिसको हमारी चिंता है।

18, 19. (क) हमें क्या करने की ठान लेनी चाहिए? (ख) अगर हम शैतान के खिलाफ दृढ़ खड़े रहेंगे और यहोवा को ढूँढ़ते रहेंगे तो हमें क्या आशीष मिलेगी?

18 यहोवा के लोगों पर चारों तरफ से उत्पीड़न, विरोध और दबाव लाने के लिए शैतान अपनी पूरी ताकत लगा रहा है। वह हमारी शांति को भंग करना चाहता है और परमेश्‍वर के साथ हमारे अच्छे रिश्‍ते को तोड़ना चाहता है। वह नहीं चाहता कि हम नेकदिल इंसानों को ढूँढ़ने का जो काम हमें सौंपा गया है, उसमें हम लगे रहें और उन्हें पूरे विश्‍व पर हुकूमत करने के मसले में यहोवा का पक्ष लेने में मदद दें। मगर हमें ठान लेना चाहिए कि हम हर हाल में यहोवा के वफादार बने रहेंगे। और यह भरोसा रखना चाहिए कि यहोवा हमें बुराई से बचाएगा। अगर हम परमेश्‍वर के वचन के मार्गदर्शन में चलेंगे और धरती पर उसके संगठन के साथ-साथ जोश से काम करेंगे तो हम इस बात का पूरा यकीन रख सकते हैं कि वह हमें कभी नहीं छोड़ेगा।—यशायाह 41:8-13.

19 तो फिर आइए हम सब शैतान और उसकी धूर्त युक्‍तियों के खिलाफ दृढ़ खड़े रहें। और हमेशा हमारे अज़ीज़ परमेश्‍वर, यहोवा को ढूँढ़ते रहें जो हमें ‘स्थिर और बलवन्त करने से’ कभी नहीं चूकेगा। (1 पतरस 5:8-11) इस तरह हम ‘अपने आप को परमेश्‍वर के प्रेम में बनाए रखेंगे; और अनन्त जीवन के लिए हमारे प्रभु यीशु मसीह की दया की आशा देखते रहेंगे।’—यहूदा 21.

आप क्या जवाब देंगे?

• “इब्‌लीस” के लिए इस्तेमाल किए गए यूनानी शब्द का क्या मतलब है और इब्‌लीस अपने नाम के मुताबिक किस तरह काम करता है?

• धरती के लोगों पर नज़र रखने के मामले में यहोवा और शैतान में क्या फर्क है?

• यहोवा के पास आने के लिए एक व्यक्‍ति का छुड़ौती पर विश्‍वास करना क्यों ज़रूरी है?

• यहोवा से ‘लिपटे रहने’ का क्या मतलब है और हम किस तरह उसे ढूँढ़ते रह सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 15 पर तसवीर]

अपनी परीक्षाओं के बावजूद अय्यूब ने जाना कि यहोवा को उसकी चिंता है

[पेज 16 पर तसवीरें]

रोज़ाना बाइबल पढ़ने, नियमित रूप से मसीही सभाओं में हाज़िर होने और प्रचार काम में जोश के साथ हिस्सा लेने से हमें याद रहता है कि यहोवा हमारी चिंता करता है