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हमने मैदान नहीं छोड़ा

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जीवन कहानी

हमने मैदान नहीं छोड़ा

हेरमन ब्रूडर की ज़ुबानी

मेरे सामने दो चुनाव रखे गए: फ्राँसीसी विदेशी सेना दल में पाँच साल की सेवा करुँ या फिर मोरोक्को की किसी जेल में सज़ा काटूँ। मैं इस दुविधा में कैसे फँसा, यह आपको बताना चाहूँगा।

मेरा जन्म, पहले विश्‍वयुद्ध के तीन साल पहले सन्‌ 1911 में जर्मनी के ऑपनेउ कस्बे में हुआ था। मेरे माता-पिता योज़ेफ और फ्रीडा ब्रूडर के 17 बेटे-बेटियाँ थे। मैं उनका 13वाँ बच्चा था।

सबसे पुरानी यादों में से एक यह है कि मैं अपने कस्बे की मुख्य सड़क पर सैनिक दस्ते की कदम-ताल देखने गया था। कदम-ताल के लिए बजायी जा रही जानदार धुन की तरफ मैं इतना आकर्षित हुआ कि मैं धुन बजानेवालों के पीछे-पीछे रेलवे स्टेशन पहुँच गया। वहाँ पर मैंने देखा कि पिताजी और दूसरे कई आदमी सैनिकों की वरदी पहने ट्रेन पर चढ़ रहे हैं। जैसे ही ट्रेन छूटी, प्लैटफॉर्म पर खड़ी कुछ औरतें फूट-फूटकर रोने लगीं। उसके कुछ ही समय बाद हमारे पादरी ने चर्च में एक लंबा प्रवचन सुनाया और उन चार आदमियों के नाम पढ़े जो अपनी मातृभूमि की रक्षा करते-करते शहीद हो गए थे। पादरी ने समझाया, “अब वे स्वर्ग में हैं।” मेरे पास खड़ी एक औरत बेहोश हो गयी।

रूसी सरहद पर सेवा करते वक्‍त पिताजी को टाइफॉइड हो गया। वे बहुत ही कमज़ोर हो गए और घर वापस लौट आए। उन्हें तुरंत ही स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया। पादरी ने मुझे सुझाव दिया: “कब्रिस्तान के पास एक छोटा-सा गिरजा है। वहाँ जाकर 50 बार प्रभु की प्रार्थना और 50 बार हेल मॆरी की प्रार्थना बोलो। तुम्हारे पिताजी ठीक हो जाएँगे।” मैंने उसकी बात मानी, मगर दूसरे ही दिन मेरे पिताजी चल बसे। मेरे जैसे छोटे लड़के के लिए भी युद्ध एक कड़वा अनुभव था।

मुझे सच्चाई कैसे मिली

युद्ध के समय जर्मनी में नौकरी ढूँढ़ना बहुत मुश्‍किल था। मगर फिर भी सन्‌ 1928 में स्कूल छोड़ने के बाद मुझे किसी तरह स्विट्‌ज़रलैंड के बाज़ेल में माली की नौकरी मिल गयी।

पिताजी की तरह मैं भी एक कट्टर कैथोलिक था। मेरा लक्ष्य था कि एक कैपूचिन मठवासी बनकर भारत में सेवा करूँ। जब मेरे भाई रिकार्ट को, जो उस वक्‍त तक यहोवा का साक्षी बन चुका था, यह बात पता चली तो वह खास मेरा इरादा बदलने के मकसद से स्विट्‌ज़रलैंड आया। उसने मुझे इंसानों पर, खासकर पादरियों पर भरोसा करने से खबरदार किया और सलाह दी कि मैं बाइबल पढ़ूँ और सिर्फ उसी पर भरोसा करूँ। आशंकाओं के बावजूद मैंने नया नियम हासिल किया और उसे पढ़ना शुरू किया। धीरे-धीरे मैं समझने लगा कि मेरे धार्मिक विश्‍वास बाइबल की शिक्षाओं के मुताबिक नहीं हैं।

सन्‌ 1933 में एक रविवार के दिन, जब मैं जर्मनी में रिकार्ट के घर पर था तो उसने मुझे एक शादी-शुदा जोड़े से मिलवाया जो यहोवा के साक्षी थे। जब उन्हें पता चला कि मैं बाइबल पढ़ रहा हूँ, तो उन्होंने मुझे एक बुकलेट दी जिसका शीर्षक था द क्राइसिस। * उसे पढ़ते-पढ़ते आधी रात हो गयी। तब मुझे पूरा यकीन हो गया कि मैंने सच्चाई पा ली है!

बाज़ेल में रहनेवाले यहोवा के साक्षियों ने मुझे स्ट्‌डीज़ इन द स्क्रिपचर्स्‌* के दो खंडों के साथ-साथ पत्रिकाएँ और दूसरे प्रकाशन भी दिए। मैं जो पढ़ रहा था उसका मुझ पर इस कदर असर हुआ कि मैंने वहाँ के पादरी से मिलकर उससे कहा कि मेरा नाम चर्च के रजिस्टर से काट दे। पादरी गुस्से से तमतमा गया और उसने मुझे चेतावनी दी कि मैं अविश्‍वासी बन जाऊँगा। पर ऐसा कतई नहीं हुआ। हकीकत तो यह थी कि ज़िंदगी में पहली बार मैं अपने अंदर सच्चा विश्‍वास पैदा कर रहा था।

उस सप्ताह के अंत में बाज़ेल के भाई सीमा पार करके फ्रांस में जाकर प्रचार करने की योजना बना रहे थे। एक भाई ने मुझे प्यार से समझाया कि मुझे इसलिए नहीं बुलाया जा रहा है क्योंकि मैंने कलीसिया के साथ अभी-अभी संगति करनी शुरू की है। पर मेरा इरादा पक्का था और मैंने इसके बारे में उस भाई को बताया। एक और प्राचीन के साथ सलाह-मशविरा करने के बाद उसने मुझे स्विट्‌ज़रलैंड में प्रचार का एक इलाका सौंपा। रविवार को दिन निकलते ही मैं अपनी साइकिल पर बाज़ेल के पासवाले एक छोटे से गाँव, के लिए निकल पड़ा। मेरे प्रचार के बैग में 4 किताबें, 28 पत्रिकाएँ और 20 ब्रोशर थे। जब मैं वहाँ पहुँचा तब ज़्यादातर गाँववाले चर्च में थे। फिर भी ग्यारह बजते-बजते मेरा प्रचार का बैग खाली हो गया।

जब मैंने भाइयों को बताया कि मैं बपतिस्मा लेना चाहता हूँ, तो उन्होंने मुझे इसकी गंभीरता समझायी और मैंने सच्चाई को कितना समझा है इसकी जाँच करने के लिए सवाल पूछे। यहोवा और उसके संगठन के लिए उनमें जो जोश और वफादारी थी, वह मेरे दिल को छू गयी। सर्दियों का मौसम था, इसलिए एक भाई ने एक प्राचीन के घर के बाथ-टब में मुझे बपतिस्मा दिया। आज भी मुझे अच्छी तरह याद है कि तब मुझे एक अनोखी किस्म की खुशी और अंदरूनी ताकत मिली जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। यह बात सन्‌ 1934 की है।

किंग्डम फार्म पर काम करना

सन्‌ 1936 में मैंने सुना कि यहोवा के साक्षियों ने बर्न से 30 किलोमीटर दूर श्‍टेफीसबर्ग कस्बे में ज़मीन ली है। मैंने वहाँ माली का काम करने की इच्छा ज़ाहिर की। मुझे कितनी खुशी हुई जब मुझे वहाँ किंग्डम फार्म में काम करने के लिए बुलाया गया। जब भी मुझे मौका मिलता था मैं फार्म में दूसरों को उनके काम में हाथ बटाँता था। बेथेल से मैंने सीखा कि मिल-जुलकर काम करना कितना ज़रूरी है।

सन्‌ 1936, मेरी बेथेल की ज़िंदगी की सबसे यादगार घटना घटी, क्योंकि तब भाई रदरफर्ड फार्म का दौरा करने आए थे। जब उन्होंने हमारे उगाए बड़े-बड़े टमाटर और अच्छी फसल देखी तो उन्होंने मुस्कराकर अपनी खुशी ज़ाहिर की। वे कितने प्यारे भाई थे!

फार्म पर सेवा करते हुए मुझे तीन साल से भी ज़्यादा हो गए थे। फिर एक दिन नाश्‍ते के समय एक खत पढ़ा गया जो अमरीका में यहोवा के साक्षियों के विश्‍व-मुख्यालय से आया था। उस खत में प्रचार के काम को जल्द-से-जल्द किए जाने पर ज़ोर दिया गया और दूसरे देशों में पायनियर सेवा करने की इच्छा रखनेवालों को न्यौता दिया गया। बिना किसी झिझक के मैंने अपना नाम दे दिया। मई सन्‌ 1939 को मुझे पता चला कि मुझे ब्राज़ील भेजा जा रहा है!

उन दिनों मैं किंग्डम फार्म के पास टून कलीसिया की सभाओं में जाया करता था। रविवार के दिन हम एक समूह बनाकर टून से दो घंटे साइकिल पर आल्पस इलाके में प्रचार के लिए जाते थे। मार्गारीटा श्‍टाइनर भी उस समूह में थी। अचानक मेरे दिमाग में यह खयाल आया: क्या यीशु ने अपने चेलों को दो-दो करके नहीं भेजा था? जब मैंने ऐसे ही बातों-बातों में मार्गारीटा को बताया कि मुझे ब्राज़ील में सेवा करने की नियुक्‍ति मिली है तो उसने कहा कि वह भी ऐसी जगहों में जाकर प्रचार करना चाहती है, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। इसलिए जुलाई 31,1939 को हमने शादी कर ली।

अनचाहा पड़ाव

हम सन्‌ 1939, अगस्त के आखिर में फ्रांस के लॆ हाव्र बंदरगाह से ब्राज़ील के सैन्टस बंदरगाह के लिए रवाना हुए। जहाज़ की सारी डबल बर्थ भर गयी थीं, इसलिए हमें दो अलग-अलग कैबिनों में सफर करना पड़ा। रास्ते में हमें पता चला कि ग्रेट ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी से युद्ध की घोषणा कर दी है। जहाज़ में 30 जर्मन यात्रियों ने जब यह सुना तो उन्होंने जर्मनी का राष्ट्रीय गान गाना शुरू कर दिया। इससे जहाज़ का कप्तान इतना चिढ़ गया कि उसने जहाज़ का रुख बदलकर मोरोक्को के सैफी बंदरगाह में जहाज़ रोक दिया। और जिन यात्रियों के पास जर्मन पासपोर्ट थे उन्हें पाँच मिनट के अंदर-अंदर जहाज़ से उतर जाने के लिए कहा गया। इनमें हम भी शामिल थे।

हमें एक दिन के लिए पुलिस हिरासत में रखा गया और उसके बाद एक पुरानी और खटारा बस में ठूँसकर 140 किलोमीटर दूर माराकिश की एक जेल में ले जाया गया। उसके बाद मुश्‍किलों का सिलसिला शुरू हुआ। जेल की कोठरियाँ अँधेरी और लोगों से ठसाठस भरी हुई थीं। हमारे यहाँ एक ही टॉयलेट था जो कि ज़मीन पर बना एक गड्ढा था और वह भी ज़्यादातर समय जाम रहता था। हममें से हरेक को सोने के लिए गंदी बोरियाँ दी गयीं और रात को चूहे हमारी पिंडलियों को खूब काटते थे। दिन में दो बार एक ज़ंग लगे डिब्बे में खाना दिया जाता था।

एक फौजी अफसर ने मुझे समझाया कि अगर मैं फ्रांसीसी विदेशी सेना दल में पाँच साल सेवा करने के लिए हाँ कहूँ तो मुझे आज़ाद किया जाएगा। मैंने जब इनकार किया तो इसके बदले मुझे 24 घंटे के लिए एक अंधेरी और बहुत ही गंदी और तंग जगह पर रखा गया जहाँ हवा तक नहीं आती थी। वहाँ अधिकतकर समय मैंने प्रार्थना में ही बिताया।

आठ दिन बाद जेल के अधिकारियों ने मुझे मार्गारीटा से मिलने की इजाज़त दी। वह बहुत कमज़ोर हो चुकी थी और उसके आँसू नहीं थम रहे थे। मैंने उसका हौसला बढ़ाने की पूरी कोशिश की। हमसे पूछ-ताछ की गयी और फिर हमें ट्रेन से कासाब्लैन्का भेजा गया जहाँ पर मार्गारीटा को रिहा कर दिया गया। मगर मुझे 180 किलोमीटर दूर, पोर्ट लीओटे (आज कनीट्रा) के शिविर में कैद रखा गया। स्विट्‌ज़रलैंड के अधिकारी ने मार्गारीटा को स्विट्‌ज़रलैंड वापस जाने की सलाह दी, मगर वह मुझे छोड़कर जाने को राज़ी नहीं हुई। मैं पोर्ट लीओटे में दो महीने तक रहा और इस दौरान मार्गारीटा, हर रोज़ कासाब्लैन्का से मुझे देखने आती और मेरे लिए खाना लाती थी।

एक साल पहले यहोवा के साक्षियों ने एक किताब रिलीज़ की थी जिसका शीर्षक था, क्रोइट्‌सट्‌सुग गेगॆन दॉस क्रिस्टेनटम (मसीहियत के खिलाफ जंग)। इसके ज़रिए वे लोगों को जताना चाहते थे कि साक्षियों का नात्ज़ी सरकार से कोई लेना-देना नहीं है। जब मैं शिविर में कैद था तब बर्न में यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर ने फ्रांस के अधिकारियों के नाम एक खत लिखा और इस किताब की एक कॉपी भी उसके साथ भेजी ताकि यह साबित हो जाए कि हम नात्ज़ी नहीं हैं। मार्गारीटा ने एक बढ़िया काम किया। वह सरकारी अधिकारियों से मिलने लगी ताकि उन्हें यकीन दिला सके कि हम बेकसूर हैं। आखिरकार सन्‌ 1939 के खत्म होते-होते हमें मोरोक्को छोड़ने की इजाज़त मिल ही गयी।

मगर ब्राज़ील जानेवाले जहाज़ पर चढ़ने के बाद ही हमें पता चला कि जर्मन पनडुब्बियाँ, अट्‌लांटिक सागर में यात्रा करनेवाले जहाज़ों को निशाना बना रही हैं और हमारा जहाज़ उनका खास निशाना है। हालाँकि हमारा जहाज़ शामाइक एक व्यापारी जहाज़ था मगर उसके सामने और पिछले भाग में तोप लगी हुई थीं। दिन के वक्‍त कप्तान जहाज़ को आड़ा-तिरछा चलाता था और लगातार गोले दागे जाते थे। रात के समय हम पूरा अंधेरा करते थे जिससे कि हमें जर्मन लोग देख ना सकें। यूरोप से रवाना हुए हमें पाँच महीने से भी ज़्यादा हो चुके थे। इसलिए आखिरकार जब हम फरवरी 6,1940 को ब्राज़ील के सैन्टस बंदरगाह पर उतरे तो हमारी खुशी का ठिकाना ना रहा!

वापस जेल में

प्रचार के लिए हमें सबसे पहले दक्षिण ब्राज़ील के रीओ ग्रैन्डी ड सूल राज्य के एक कस्बे मोन्टीनेग्रू में भेजा गया। चर्च के अधिकारियों को शायद हमारे आने की खबर पहले से ही मिल चुकी थी। हमने प्रचार में मुश्‍किल से दे घंटे ही बिताए होंगे कि पुलिस ने हमें गिरफ्तार कर लिया और हमारे सारे साहित्य, बाइबल पर आधारित फोनोग्राफ रिकॉर्डिंग, यहाँ तक कि ऊँट के चमड़े से बना हमारा सर्विस बैग भी ज़ब्त कर लिया गया, जिसे हमने मोरक्को से खरीदा था। जब हम पुलिस स्टेशन पहुँचे तो वहाँ एक पादरी और जर्मन भाषा बोलनेवाला चर्च का सेवक हमारा इंतज़ार कर रहे थे। पुलिस चीफ ने हमारे पास से भाई रदरफर्ड के कुछ भाषण के रिकार्ड भी ज़ब्त किए थे और उसने हमारे ग्रामोफोन पर एक भाषण चलाया जिसे वहाँ हाज़िर सबने सुना। भाई रदरफर्ड इधर-उधर की नहीं हाँकते थे! भाषण के दौरान जब वैटिकन का ज़िक्र आया तो पादरी का मुँह लाल हो गया और वह तुरंत बाहर निकल गया।

सैंटा मारीआ के बिशप की गुज़ारिश पर पुलिस ने हमें रीओ ग्रैन्डी ड सूल की राजधानी, पोर्टो अलेग्रा में भेज दिया। बहुत जल्द मार्गारीटा को आज़ाद किया गया और वह मदद के लिए स्विट्‌ज़रलैंड के अधिकारियों के पास गयी। अधिकारियों ने उसे सुझाव दिया कि वह स्विट्‌ज़रलैंड लौट जाए। एक बार फिर मार्गारीटा मुझे छोड़ने के लिए राज़ी नहीं हुई। उसने हमेशा मेरा वफादारी से साथ निभाया है। तीस दिन बाद मुझसे पूछ-ताछ की गयी और मुझे रिहा कर दिया गया। पुलिस ने हमारे सामने यह चुनाव रखा: या तो दस दिन के अंदर राज्य से चले जाएँ या “अंजाम भुगतें।” विश्‍व-मुख्यालय के कहने पर हम रियो दे जेनेरो के लिए रवाना हुए।

“कृपया यह कार्ड पढ़िए”

ब्राज़ील के क्षेत्र में हुई इस खराब शुरूआत के बावजूद भी हम कितने खुश थे! आखिर हम ज़िंदा जो बच गए, हमारे बैग दोबारा साहित्य से भरे थे और हमारे सामने प्रचार करने के लिए पूरा रियो दे जेनेरो था। मगर हमें तो पुर्तगाली भाषा बहुत कम आती थी तो फिर हम प्रचार कैसे करते? टॆस्टमनी कार्ड के ज़रिए। प्रचार में सबसे पहले हमने पुर्तगाली भाषा में यह कहना सीखा, “पोर फोवोर लेआ एस्टकारटेउन” (“कृपया यह कार्ड पढ़िए”)। और इस कार्ड से हमें क्या ही बढ़िया कामयाबी मिली! एक ही महीने में हमने 1,000 से ज़्यादा किताबें बाँटीं। जिन लोगों ने हमसे बाइबल के साहित्य लिए उनमें से बहुतों ने बाद में सच्चाई को अपना लिया। सच कहूँ तो हमसे ज़्यादा हमारे साहित्य ने बढ़िया गवाही दी। इससे मुझे एक बात अच्छी तरह समझ में आ गयी कि दिलचस्पी दिखानेवालों के हाथों में हमारे साहित्य पहुँचाना कितना ज़रूरी है।

उस वक्‍त रियो दे जेनेरो, ब्राज़ील की राजधानी थी और हमारे संदेश को खासकर सरकारी अधिकारियों ने अच्छी तरह सुना। मुझे वित्त मंत्री और सशस्त्र सेना मंत्री को गवाही देने का अनोखा अवसर मिला। इन मौकों पर मुझे यह बिलकुल साफ नज़र आ रहा था कि यहोवा की आत्मा काम कर रही है।

एक बार, रियो के नगर चौक पर प्रचार करते समय मैं एक भवन में घुस गया। मैंने देखा कि मेरे चारों ओर काले कपड़े पहने हुए कुछ लोग खड़े हैं। मुझे लगा जैसे मैं किसी की अंत्येष्टि में पहुँच गया हूँ। मैं एक सज्जन के पास गया और उन्हें टेस्टमनी कार्ड दिया। थोड़ी देर बाद मुझे पता चला कि वहाँ किसी का अंतिम संस्कार नहीं हो रहा था। वह भवन असल में पैलेस ऑफ जस्टिस था और जिस वक्‍त मैं अंदर घुसा, वहाँ एक मुकद्दमे की कार्यवाही चल रही थी और जिस सज्जन से मैं बात कर रहा था वे जज थे। जज ने हँसते हुए पहरेदारों को मुझ पर कोई कार्यवाही नहीं करने का इशारा किया। उसके बाद उन्होंने चिल्ड्रन * किताब मुझसे ली और दान भी दिया। बाहर जाते समय एक पहरेदार ने मुझे दीवार पर साफ शब्दों में लिखा एक नोटिस दिखाया: प्रोएबीडा आ एनट्राडा दे पेसोआस एस्ट्रान्यास (बिना इजाज़त के किसी को भी अंदर जाना मना है)।

बंदरगाह एक और क्षेत्र था जहाँ पर हमें कई अच्छे नतीजे मिले। एक बार मेरी मुलाकात एक नाविक से हुई जिसने समुद्री यात्रा पर निकलने से पहले मुझसे कुछ किताबें लीं। बाद में एक सम्मेलन में दोबारा हमारी मुलाकात हुई। उसका पूरा परिवार सच्चाई में आ चुका था और वह भी अच्छी तरक्की कर रहा था। यह देखकर हमें बेहद खुशी हुई।

मगर हमें समस्याओं का भी सामना करना पड़ा। जैसे कि हमारा छः महीने का वीज़ा खत्म हो गया और हमारे सामने ऐसी परिस्थिति आ गयी कि हमें देश छोड़कर जाना पड़ता। हमने इस बारे में विश्‍व-मुख्यालय को खत लिखा और उसके जवाब में भाई रदरफर्ड ने हमें एक प्यार-भरा खत भेजा जिसमें उन्होंने हमें लगे रहने के लिए उकसाया और साथ ही हमें क्या करना है उसकी सलाह भी दी। हमारी ख्वाहिश भी यही थी कि हम ब्राज़ील में ही रहे। आखिरकार सन्‌ 1945 में हमें एक वकील की मदद से हमेशा यहाँ रहने का वीज़ा मिल गया।

एक लंबे समय का काम

वीज़ा मिलने से पहले सन्‌ 1941 में हमारा बेटा योनातान पैदा हुआ, सन्‌ 1943 में रूत और सन्‌ 1945 में एस्टर पैदा हुई। हमारे बढ़ते परिवार की देखभाल के लिए मुझे नौकरी करनी पड़ी। मगर मार्गारीटा हमारे तीसरे बच्चे के पैदा होने तक पूरे-समय की सेवा करती रही।

शुरू से ही हमारा पूरा परिवार साथ मिलकर शहर के चौराहों, रेलवे स्टेशनों, सड़कों और बिजनेस की जगहों पर प्रचार करता था। शनिवार की रात हम एक-साथ प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! बाँटते थे। और ऐसे मौकों पर हमें खासकर बड़ी खुशी मिलती थी।

घर पर हरेक बच्चे को हर दिन के लिए कुछ काम सौंपे गए थे। जैसे योनातान का काम स्टोव और रसोईघर को साफ रखना था। लड़कियों को, रेफ्रिजिरेटर साफ करना, आँगन में झाड़ू लगाना और हमारे जूते पॉलिश करने थे। इससे वे ढंग से काम करने और खुद पहल करना सीख गए। आज हमारे बच्चे मेहनती हैं, और अपने-अपने घरों और चीज़ों की अच्छी देखभाल करते हैं। यह सब देखकर मेरे और मार्गारीटा के दिल को कितनी खुशी मिलती है।

हम बच्चों से यह भी उम्मीद करते थे कि वे सभाओं में अदब से पेश आएँ। इसलिए सभा शुरू होने से पहले वे एक-एक गिलास पानी पीते और टॉयलेट जाते थे। सभाओं में योनातान मेरी बायीं तरफ और रूत मेरी दायीं तरफ बैठती थी, उसके बाद मार्गारिटा और उसकी दायीं तरफ एस्टर। इसकी वजह से उन्हें कार्यक्रम पर ध्यान देने और छोटी उम्र से ही आध्यात्मिक आहार लेने में मदद मिली।

यहोवा ने हमारी कोशिशों को आशीषों से नवाज़ा है। हमारे सभी बच्चे वफादारी से यहोवा की सेवा में लगे हैं और प्रचार काम में खुशी-खुशी भाग लेते हैं। फिलहाल योनातान रियो दे जेनेरो के नोवू मेअर कलीसिया में एक प्राचीन है।

सन्‌ 1970 तक हमारे सभी बच्चों ने शादी करके अपना-अपना घर बसा लिया था, इसलिए मैंने और मार्गारीटा ने फैसला किया कि हम ऐसी जगह जाकर सेवा करेंगे जहाँ ज़्यादा प्रचारकों की ज़रूरत है। हम सबसे पहले मीना ज़हराइस राज्य के पोसूस दी कालदास शहर में गए। वहाँ पर उस वक्‍त 19 राज्य प्रचारकों का एक छोटा समूह था। जब मैंने पहली बार उनकी सभा की जगह देखी तो मेरा दिल भर आया। वे एक तहखाने में सभाएँ चला रहे थे जिसमें खिड़कियाँ नहीं थीं और उस जगह को मरम्मत की सख्त ज़रूरत थी। हमने तुरंत ही दूसरी जगह ढूँढ़नी शुरू कर दी जो राज्यगृह के लिए ठीक हो और हमें बहुत जल्द एक बढ़िया जगह में एक सुंदर इमारत मिली। इससे क्या ही फर्क पड़ा! साढ़े चार साल बाद प्रचारकों की संख्या बढ़कर 155 हो गयी। सन्‌ 1989 में हम रियो दे जेनेरो के आरारूआमा शहर में गए और वहाँ हमने नौ साल तक सेवा की। इस दौरान हमने वहाँ दो नयी कलीसियाएँ बनते देखीं।

अपने काम में डटे रहने की आशीषें

सन्‌ 1998 में सेहत ठीक ना रहने की वजह से और बच्चों के करीब रहने की चाहत से हम रियो दे जेनेरो के साउन गोनसालू शहर में जाकर बस गए। मैं वहाँ की कलीसिया में अब भी एक प्राचीन की ज़िम्मेदारी निभाता हूँ। हम बिना नागा प्रचार काम में भाग लेने के लिए अपना भरसक करते हैं। मार्गारीटा को पास की एक सुपरमार्केट में लोगों को प्रचार करने में मज़ा आता है। और यह कलीसिया की मेहरबानी है कि हमें प्रचार करने के लिए घर के पास के कुछ इलाके दिए जिसकी वजह से हमारी सेहत जितना साथ देती है उतना हम प्रचार में निकल पाते हैं।

मार्गारीटा और मैं 60 साल से भी ज़्यादा समय से यहोवा के समर्पित सेवक रह चुके हैं। हमारा यह खुद का तजुर्बा है कि “न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ, न ऊंचाई, न गहिराई और न कोई और सृष्टि, हमें परमेश्‍वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी।” (रोमियों 8:38, 39) अपनी आँखों के सामने ‘अन्य भेड़ों’ को इकट्ठे होते देखना कितनी खुशी की बात है, जिनको धरती पर परमेश्‍वर की सुंदर सृष्टि के बीच हमेशा की ज़िंदगी जीने की आशा है! (यूहन्‍ना 10:16, NW) जब हम सन्‌ 1940 में रियो दे जेनेरो आए थे तो यहाँ सिर्फ एक कलीसिया थी और उसमें 28 प्रचारक थे। आज यहाँ करीब 250 कलीसियाएँ हैं और 20,000 से भी अधिक राज्य के प्रचारक हैं।

हमारे सामने ऐसे कई मौके आए जब हम यूरोप में अपने परिवार के पास लौट सकते थे। मगर हमें एहसास हुआ कि यहोवा चाहता है कि हम ब्राज़ील में रहकर ही उसकी सेवा करें। हमें खुशी है कि हमें जहाँ भेजा गया हम वहीं बने रहे!

[फुटनोट]

^ इन्हें यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है मगर अब इनकी छपाई नहीं होती।

^ इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया, मगर अब इसकी छपाई नहीं होती।

[पेज 21 पर तसवीर]

1930 के दशक के आखिर में श्‍टेफीसबर्ग, स्विट्‌ज़रलैंड में किंगडम फार्म पर (मैं एकदम बायीं ओर खड़ा हूँ)

[पेज 23 पर तसवीर]

सन्‌ 1939 में, हमारी शादी के कुछ ही वक्‍त पहले

[पेज 23 पर तसवीर]

1940 के दशक में कसाब्लैन्का

[पेज 23 पर तसवीर]

पूरा परिवार प्रचार में

[पेज 24 पर तसवीर]

आज भी लगातार प्रचार में भाग लेते हुए