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परमेश्‍वर के वचन का निजी अध्ययन करने में खुशी पाइए

परमेश्‍वर के वचन का निजी अध्ययन करने में खुशी पाइए

परमेश्‍वर के वचन का निजी अध्ययन करने में खुशी पाइए

“मैं तेरे सब कामों पर ध्यान करूंगा, और तेरे बड़े कामों को सोचूंगा।”भजन 77:12.

1, 2. (क) हमें क्यों मनन करने के लिए समय अलग रखना चाहिए? (ख) “मनन” करने और “सोचने” का मतलब क्या है?

 यीशु मसीह के चेले होने के नाते हमें सबसे ज़्यादा इस बात की चिंता होनी चाहिए कि परमेश्‍वर के साथ हमारा रिश्‍ता कैसा है और हम किस इरादे से उसकी सेवा कर रहे हैं। लेकिन, आज ज़्यादातर लोगों की ज़िंदगी इतनी तेज़ रफ्तार से चल रही है कि वे मनन करने के लिए कभी समय नहीं निकालते। वे धन-दौलत कमाने, दुनिया भर की नयी-नयी चीज़ें खरीदने और मौज-मस्ती करने में पूरी तरह खोए हुए हैं। लेकिन हम ऐसे बेकार के कामों में उलझने से कैसे बच सकते हैं? इसके लिए चाहिए कि हम हर दिन यहोवा के कामों और उसके व्यवहार के बारे में मनन करने के लिए खास समय अलग रखें, जैसे हम हर दिन खाने-पीने और सोने जैसे ज़रूरी कामों के लिए समय अलग रखते हैं।—व्यवस्थाविवरण 8:3; मत्ती 4:4.

2 क्या आप कभी मनन करने के लिए समय निकालते हैं? मनन करने का मतलब क्या है? एक डिक्शनरी, ‘मनन’ की यह परिभाषा देती है: “किसी बात पर अपना ध्यान लगाना: सोचना।” और “सोचने” का मतलब है “किसी विषय पर विचार करना: चिंतन करना . . . खासकर शांत मन से, गंभीरता से और गहराई से सोचना या गौर करना।” मनन करना हमारे लिए क्या अहमियत रखता है?

3. एक मसीही को आध्यात्मिक उन्‍नति करने के लिए क्या करना ज़रूरी है?

3 मनन करने की बात से हमें प्रेरित पौलुस की यह सलाह याद आती है, जो उसने अपने साथी, तीमुथियुस को पत्री में लिखी थी: “जब तक मैं न आऊं, तब तक पढ़ने, और उपदेश और सिखाने में लौलीन रह। . . . उन बातों को सोचता रह और उन्हीं में अपना ध्यान लगाए रह, ताकि तेरी उन्‍नति सब पर प्रगट हो।” जी हाँ, तीमुथियुस से यह उम्मीद की गयी थी कि वह आगे और भी उन्‍नति करता जाए। और पौलुस के शब्द दिखाते हैं कि एक मसीही तभी उन्‍नति कर पाएगा, जब वह आध्यात्मिक बातों पर गहराई से सोचेगा। आज भी यही बात सच है। आध्यात्मिक उन्‍नति करने का संतोष पाने के लिए ज़रूरी है कि हम परमेश्‍वर के वचन से ताल्लुक रखनेवाली बातों पर ‘सोचते रहें’ और ‘उन्हीं में अपना ध्यान लगाए रहें।’—1 तीमुथियुस 4:13-15.

4. यहोवा के वचन पर रोज़ाना मनन करने के लिए आप किन चीज़ों की मदद ले सकते हैं?

4 आपके लिए मनन करने का सही वक्‍त कौन-सा होगा, यह आपको अपनी और अपने परिवार की दिनचर्या के मुताबिक तय करना है। बहुत-से लोग सुबह तड़के उठकर, रोज़ाना बाइबल वचनों पर ध्यान दीजिए पुस्तिका से बाइबल की आयत पढ़ते और उस पर मनन करते हैं। और दुनिया के सभी बेथेल घरों में करीब 20,000 स्वयं-सेवक अपने दिन की शुरूआत, दिन के पाठ पर 15 मिनट की चर्चा से करते हैं। हर सुबह, इस चर्चा में हालाँकि बेथेल परिवार के चंद लोग ही व्याख्या करते हैं, मगर बाकी सभी सदस्य, जो कहा जाता है और पढ़ा जाता है उस पर ध्यान देते हैं। नौकरी करनेवाले कुछ साक्षी, अपने काम पर जाते वक्‍त सफर में यहोवा के वचन पर ध्यान देते हैं। कुछ भाषाओं में बाइबल, प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! के ऑडियो कैसेट उपलब्ध हैं इसलिए वे सफर के दौरान इन्हें सुनते हैं। बहुत-सी गृहणियाँ घर का काम-काज निपटाते वक्‍त ये कैसेट सुनती हैं। इन तरीकों से परमेश्‍वर के वचन पर ध्यान देकर वे सभी, दरअसल भजनहार आसाप की मिसाल पर चलते हैं, जिसने लिखा: “मैं याह के बड़े कामों की चर्चा करूंगा; निश्‍चय मैं तेरे प्राचीनकालवाले अद्‌भुत कामों को स्मरण करूंगा। मैं तेरे सब कामों पर ध्यान करूंगा, और तेरे बड़े कामों को सोचूंगा।”—भजन 77:11, 12.

सही नज़रिया रखना फायदेमंद होगा

5. हमें निजी अध्ययन को क्यों अहमियत देनी चाहिए?

5 आज का यह ज़माना, टीवी, वीडियो और कंप्यूटर का ज़माना है, इसलिए ज़्यादातर लोग किताबों में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। लेकिन यहोवा के साक्षियों में ऐसा रवैया हरगिज़ नहीं होना चाहिए। असल में बाइबल की पढ़ाई एक डोरी की तरह है जो हमें यहोवा के साथ बाँधती है और जिस पर हमारी ज़िंदगी टिकी हुई है। हज़ारों साल पहले मूसा के बाद यहोशू, इस्राएल का अगुवा बना। यहोवा की आशीष पाने के लिए, यहोशू को परमेश्‍वर का वचन ध्यान से पढ़ने की ज़रूरत थी। (यहोशू 1:8; भजन 1:1, 2) आज हमसे भी यही माँग की जाती है। लेकिन कुछ लोग, जो कम पढ़े-लिखे हैं, उन्हें बाइबल पढ़ना एक मुश्‍किल काम लग सकता है या फिर वे उसे एक बोझ समझ सकते हैं। तो परमेश्‍वर के वचन को पढ़ने और उसका अध्ययन करने की इच्छा पैदा करने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है? इसका जवाब हम नीतिवचन 2:1-6 में राजा सुलैमान के शब्दों में पाते हैं। कृपया अपनी बाइबल खोलें और उन आयतों को पढ़कर देखें। फिर हम साथ मिलकर उन पर चर्चा करेंगे।

6. परमेश्‍वर का ज्ञान लेने के बारे में हमारा कैसा नज़रिया होना चाहिए?

6 उन आयतों में सबसे पहले हमें यह कहकर उकसाया गया है: “हे मेरे पुत्र, यदि तू मेरे वचन ग्रहण करे, और मेरी आज्ञाओं को अपने हृदय में रख छोड़े, और बुद्धि की बात ध्यान से सुने, और समझ की बात मन लगाकर सोचे; . . ।” (नीतिवचन 2:1, 2) इन शब्दों से हम क्या सीखते हैं? यही कि परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करना, हम में से हरेक की ज़िम्मेदारी है। ध्यान दें कि यहाँ एक शर्त बतायी गयी है: “यदि तू मेरे वचन ग्रहण करे।” “यदि” शब्द पर इसलिए खास ज़ोर दिया गया है क्योंकि दुनिया के ज़्यादातर इंसान परमेश्‍वर के वचन पर ध्यान नहीं देते। अगर हम परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने में खुशी पाना चाहते हैं, तो हममें यहोवा के वचनों को ग्रहण करने की इच्छा होनी चाहिए और इन्हें ऐसा खज़ाना समझना चाहिए जिसे हम कभी खोना नहीं चाहेंगे। हमें रोज़मर्रा के कामों में ही इतना डूब नहीं जाना चाहिए कि परमेश्‍वर के वचन में हमारी दिलचस्पी कम हो जाए या फिर हम उसकी सच्चाई पर शक भी करने लगें।—रोमियों 3:3, 4.

7. जहाँ तक मुमकिन हो, हमें मसीही सभाओं में क्यों हाज़िर रहना और ध्यान देना चाहिए?

7 हमारी मसीही सभाओं में जब परमेश्‍वर का वचन समझाया जाता है, तब क्या हम सचमुच ‘ध्यान से सुनते’ हैं? (इफिसियों 4:20, 21) क्या हम समझ हासिल करने के लिए, बतायी जा रही बातों पर ‘मन लगाते’ हैं? भाषण देनेवाला एक भाई सिखाने में भले ही हुनरमंद न हो, फिर भी हमें उसकी बात ध्यान से सुननी चाहिए क्योंकि वह परमेश्‍वर के वचन से समझा रहा है। यहोवा की बुद्धि पर ध्यान लगाने के लिए, पहले तो ज़रूरी है कि जहाँ तक मुमकिन हो, हम सभी सभाओं में हाज़िर रहें। (नीतिवचन 18:1) सोचिए कि वे लोग कितना पछताए होंगे जो सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन, यरूशलेम में एक ऊपरी कोठरी में हुई सभा में हाज़िर नहीं हुए थे! उस सभा के दौरान जो सनसनीखेज़ घटना हुई थी, वैसी कोई घटना तो हमारी सभाओं में नहीं होती मगर हमारी सबसे खास किताब, बाइबल पर चर्चा ज़रूर की जाती है। इसलिए अगर हम सभाओं में ध्यान से सुनें और जब आयतें पढ़ी जाती हैं तब अपनी बाइबल खोलकर देखें, तो हर सभा हमारे लिए फायदेमंद साबित होगी।—प्रेरितों 2:1-4; इब्रानियों 10:24, 25.

8, 9. (क) निजी अध्ययन के लिए हमें क्या करना होगा? (ख) सोने की कीमत और परमेश्‍वर के ज्ञान की कीमत के बीच आप क्या फर्क बताएँगे?

8 बुद्धिमान राजा आगे कहता है: “और यदि तू समझ के लिए पुकारे और परख-शक्‍ति के लिए आवाज़ लगाए . . . ।” (नीतिवचन 2:3, NW) इन आयतों में हमें कैसा नज़रिया रखने के लिए उकसाया गया है? यही कि हमारे अंदर यहोवा के वचन को समझने के लिए सच्ची लगन होनी चाहिए। इन शब्दों का मतलब है कि हमारे दिल में अध्ययन करने की चाह होनी चाहिए ताकि हम समझ हासिल करें और यहोवा की मरज़ी जानें। ऐसा करने में बेशक मेहनत लगती है। यही बात हम सुलैमान के अगले शब्दों और दृष्टांत से भी सीखते हैं।—इफिसियों 5:15-17.

9 सुलैमान कहता है: “और उसको [समझ को] चान्दी की नाईं ढूंढ़े, और गुप्त धन के समान उसकी खोज में लगा रहे; . . .।” (नीतिवचन 2:4) इस आयत से हमें याद आता है कि सदियों से लोगों ने खून-पसीना एक करके सोना और चाँदी जैसी कीमती मानी जानेवाली धातुओं को हासिल किया है। सोने के लिए कुछ लोगों ने तो दूसरों की जान भी ले ली है। और दूसरों ने उसकी खोज में पूरी ज़िंदगी लगा दी है। लेकिन, देखा जाए तो सोने की असल कीमत क्या है? मान लीजिए कि आप किसी रेगिस्तान में खो गए हैं और प्यास से मर रहे हैं। ऐसे में आप क्या चाहेंगे: सोने का एक टुकड़ा या एक गिलास पानी? मगर फिर भी लोगों ने सोना हासिल करने के लिए कितना जोश दिखाया है, इसके बावजूद कि यह सिर्फ दिखावटी होता है और इसका भाव हमेशा घटता-बढ़ता रहता है! * जब सोने पर लोग इस तरह मर-मिट रहे हैं, तो फिर हमें बुद्धि और परख-शक्‍ति पाने और परमेश्‍वर और उसकी मरज़ी के बारे में समझ हासिल करने के लिए और कितना जोश दिखाना चाहिए! मगर इससे हमें क्या फायदे होंगे?—भजन 19:7-10; नीतिवचन 3:13-18.

10. परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने से हम क्या पाएँगे?

10 सुलैमान अपनी बात जारी रखते हुए कहता है: “तो तू यहोवा के भय को समझेगा, और परमेश्‍वर का ज्ञान तुझे प्राप्त होगा।” (नीतिवचन 2:5) यह जानकर कितना ताज्जुब होता है कि इस पूरे विश्‍व के मालिक और सम्राट, यहोवा “परमेश्‍वर का ज्ञान” पाना हम जैसे पापी इंसानों के लिए भी मुमकिन है! (भजन 73:28; प्रेरितों 4:24) संसार के तत्वज्ञानी और बुद्धिमान कहलानेवाले लोग, जीवन और इस विश्‍वमंडल से जुड़ी पहेलियों को बूझने में सदियों से लगे हुए हैं। मगर फिर भी वे “परमेश्‍वर का ज्ञान” पाने में नाकाम रहे हैं। क्यों? हालाँकि यह ज्ञान, हज़ारों सालों से परमेश्‍वर के वचन बाइबल में मौजूद है, फिर भी वे यह सोचकर उसे ठुकरा देते हैं कि ऐसे जटिल प्रश्‍नों का उत्तर इतना सीधा और सरल नहीं हो सकता। इसलिए वे परमेश्‍वर के वचन पर यकीन नहीं करते और उसकी समझ हासिल नहीं करते।—1 कुरिन्थियों 1:18-21.

11. निजी अध्ययन के कुछ फायदे क्या हैं?

11 सुलैमान, अध्ययन करने के लिए अब हमें एक और वजह बताता है: “बुद्धि यहोवा ही देता है; ज्ञान और समझ [“परख-शक्‍ति,” NW] की बातें उसी के मुंह से निकलती हैं।” (नीतिवचन 2:6) जो लोग बुद्धि, ज्ञान और परख-शक्‍ति पाने के लिए मेहनत करते हैं, उन्हें यहोवा खुशी-खुशी ये खज़ाने देता है। इसलिए हमें हर हाल में परमेश्‍वर के वचन का निजी अध्ययन करना चाहिए, भले ही इसके लिए मेहनत, अनुशासन और त्याग की ज़रूरत क्यों न पड़ती हो। और पुराने ज़माने के लोगों की तुलना में आज हमें कितना शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि बाइबल एक छपी हुई किताब के रूप में है! इसलिए उस समय के कुछ लोगों की तरह हमें हाथ से लिखकर इसकी कॉपियाँ बनाने की ज़रूरत नहीं है।—व्यवस्थाविवरण 17:18, 19.

यहोवा के योग्य चालचलन के लिए

12. परमेश्‍वर का ज्ञान हासिल करने में हमारा मकसद क्या होना चाहिए?

12 निजी अध्ययन करने में हमारा मकसद क्या होना चाहिए? दूसरों से बेहतर दिखना? अपने ज्ञान के भंडार का दिखावा करना? बाइबल के बड़े-बड़े विद्वान कहलाना? नहीं। हमारा मकसद है, ज़िंदगी के हर पल, यानी उठते-बैठते, चलते-फिरते, सच्चे मसीही जैसे काम करना और मसीह की तरह हमेशा दूसरों की मदद करके उन्हें विश्राम पहुँचाने के लिए तैयार रहना। (मत्ती 11:28-30) प्रेरित पौलुस ने चेतावनी दी: “ज्ञान घमण्ड उत्पन्‍न करता है, परन्तु प्रेम से उन्‍नति होती है।” (1 कुरिन्थियों 8:1) इसलिए हमें भी मूसा की तरह होना चाहिए जिसने नम्रता दिखाते हुए यहोवा से कहा था: “मुझे अपनी गति समझा दे, जिस से जब मैं तेरा ज्ञान पाऊं तब तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर बनी रहे।” (निर्गमन 33:13) जी हाँ, हमें परमेश्‍वर को खुश करने के इरादे से ज्ञान हासिल करना चाहिए, न कि दूसरों की वाहवाही पाने के लिए। हमारा मकसद है, यहोवा के योग्य चालचलन रखना और नम्रता से उसकी सेवा करना। हम इस मकसद को कैसे हासिल कर सकते हैं?

13. परमेश्‍वर का योग्य सेवक बनने के लिए एक इंसान को क्या करना ज़रूरी है?

13 पौलुस ने तीमुथियुस को सलाह दी कि परमेश्‍वर को कैसे खुश किया जा सकता है: “अपने आप को परमेश्‍वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करनेवाला ठहराने का प्रयत्न कर [“पूरा प्रयत्न करो,” नयी हिन्दी बाइबल], जो लज्जित होने न पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो।” (2 तीमुथियुस 2:15) “ठीक रीति से काम में लाता” ये शब्द यूनानी भाषा के एक संयुक्‍त क्रिया से निकले हैं जिनका असल में मतलब है, “सीधा काटना।” (किंगडम इंटरलीनियर) कुछ विद्वानों का कहना है कि इससे कुछ ऐसे कामों का खयाल आता है, जैसे सिलाई या खेती-बाड़ी का काम। एक दर्ज़ी के लिए ज़रूरी होता है कि वह कपड़े को एक नमूने के मुताबिक काटे और एक किसान को खेत में सीधे हल चलाना होता है। इस तरह के हर काम का नतीजा सीधा और सच्चा होना चाहिए। तो पौलुस यह कह रहा था कि तीमुथियुस को “पूरा प्रयत्न” करना चाहिए कि उसका चालचलन और उसकी शिक्षाएँ, बिलकुल सत्य के वचन के मुताबिक हों। तभी वह परमेश्‍वर का एक योग्य सेवक बना रहता और उसकी मंज़ूरी पाता।—1 तीमुथियुस 4:16.

14. निजी अध्ययन से हमारे व्यवहार और बातचीत में कैसा फर्क आना चाहिए?

14 पौलुस ने यही बात, कुलुस्से के मसीहियों को भी बतायी। उसने यह कहकर उकसाया कि उनका ‘चाल-चलन प्रभु के योग्य हो जिससे कि वह सब प्रकार से प्रसन्‍न हो’ और ‘उनमें हर प्रकार के भले कामों का फल लगे, और वे परमेश्‍वर की पहिचान में बढ़ते जाएँ।’ (कुलुस्सियों 1:10) इस आयत में पौलुस कहता है कि यहोवा के योग्य बने रहने के लिए ज़रूरी है कि हम ‘हर प्रकार के भले कामों का फल लाएं,’ साथ ही ‘परमेश्‍वर की पहचान में बढ़ते जाएं।’ दूसरे शब्दों में कहें तो, यहोवा के लिए सिर्फ यह मायने नहीं रखता कि हम कितना ज्ञान हासिल करते हैं बल्कि यह कि हम अपनी बातचीत और अपने व्यवहार में उसके वचन का कितनी सख्ती से पालन करते हैं। (रोमियों 2:21, 22) यह दिखाता है कि अगर हम परमेश्‍वर को खुश करना चाहते हैं, तो निजी अध्ययन से हमारे सोच-विचार और चालचलन में फर्क आना चाहिए।

15. हम कैसे अपने मन और विचारों की रक्षा करके उन्हें काबू में रख सकते हैं?

15 आज शैतान, हमारे मन में एक जंग छेड़कर हमें आध्यात्मिक रूप से बरबाद करने पर तुला हुआ है। (रोमियों 7:14-25) इसलिए हमें अपने मन और विचारों की रक्षा करनी चाहिए और उन्हें काबू में रखना चाहिए ताकि हम अपने परमेश्‍वर, यहोवा के योग्य साबित हों। इस जंग में हमारा हथियार है, ‘परमेश्‍वर का ज्ञान,’ जो “प्रत्येक विचार को बन्दी बना कर मसीह का आज्ञाकारी” बनाने की ताकत रखता है। तो रोज़ाना बाइबल का अध्ययन करने की एक और बढ़िया वजह यह है कि इससे हमें अपने दिमाग से स्वार्थी और शारीरिक विचारों को निकाल फेंकने में मदद मिलेगी।— 2 कुरिन्थियों 10:5, NHT.

समझ हासिल करने में मदद

16. जब यहोवा हमें सिखाता है, तब उससे फायदा पाने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

16 यहोवा की शिक्षा, हमें आध्यात्मिक तरीके से और रोज़मर्रा जीवन में भी फायदे दिलाती है। यहोवा की शिक्षा, ऐसा धार्मिक ज्ञान नहीं जो नीरस हो और रोज़ की ज़िंदगी के लिए किसी काम का न हो। इसलिए लिखा है: “मैं ही तेरा परमेश्‍वर यहोवा हूं जो तुझे तेरे लाभ के लिये शिक्षा देता हूं, और जिस मार्ग से तुझे जाना है उसी मार्ग पर तुझे ले चलता हूं।” (यशायाह 48:17) यहोवा कैसे हमें अपने मार्ग पर ले चलता है ताकि हमें फायदा हो? एक इंतज़ाम तो यह है कि उसने हमें पवित्र बाइबल दी है जिसे उसने अपनी प्रेरणा से लिखवाया है। यही हमारी सबसे खास किताब है जिससे हम हमेशा सलाह लेते हैं। इसलिए जब हम मसीही सभाओं में होते हैं, तो हमें ध्यान से सुनने के साथ-साथ, बाइबल खोलकर पढ़ी जा रही आयतों को भी देखना चाहिए। इससे हमें क्या फायदे होंगे, यह हम प्रेरितों की किताब के आठवें अध्याय में दर्ज़ कूशी खोजे की घटना से देख सकते हैं।

17. कूशी खोजे के साथ क्या घटना घटी और इससे हम क्या सीखते हैं?

17 उस घटना में बताए कूशी खोजे ने यहूदी धर्म अपनाया था। वह सच्चे दिल से परमेश्‍वर को मानता था और शास्त्र का अध्ययन करता था। जब वह रथ पर सफर करते वक्‍त यशायाह का ग्रंथ पढ़ रहा था, तो फिलिप्पुस उसके पास भागकर आया और उसने पूछा: “तू जो पढ़ रहा है क्या उसे समझता भी है?” तब खोजे ने क्या कहा? “जब तक कोई मुझे न समझाए तो मैं क्योंकर समझूं? और उस ने फिलिप्पुस से बिनती की, कि चढ़कर मेरे पास बैठ।” तब फिलिप्पुस ने पवित्र आत्मा की मदद से खोजे को समझाया कि वह यशायाह की जो भविष्यवाणी पढ़ रहा था उसका मतलब क्या है। (प्रेरितों 8:27-35) इस घटना से हम क्या सीखते हैं? यही कि निजी तौर पर बाइबल की पढ़ाई करना काफी नहीं है। यहोवा, अपनी आत्मा के ज़रिए विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास को इस्तेमाल करता है ताकि वह हमें सही वक्‍त पर उसके वचन को समझने में मदद दे। यह कैसे किया जाता है?—मत्ती 24:45-47; लूका 12:42.

18. विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास कैसे हमारी मदद करता है?

18 हालाँकि दास वर्ग को “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान” कहा गया है, मगर यीशु ने यह नहीं कहा कि यह दास कभी कोई गलती नहीं करेगा। वफादार अभिषिक्‍त भाइयों का यह समूह भी असिद्ध मसीहियों से ही बना है। इसलिए उनके इरादे चाहे कितने ही नेक क्यों न हों, फिर भी उनसे गलतियाँ हो सकती हैं, जैसे पहली सदी के दास वर्ग के पुरुषों से भी हुई थीं। (प्रेरितों 10:9-15; गलतियों 2:8, 11-14) लेकिन उनकी नीयत बिलकुल साफ है, और यहोवा उन्हीं के ज़रिए हमें बाइबल की समझ देनेवाली किताबें देता है ताकि परमेश्‍वर के वचन और उसके वादों पर हमारा भरोसा मज़बूत हो। उस दास ने निजी अध्ययन के लिए कई इंतज़ाम किए हैं, और उनमें सबसे खास है न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन ऑफ द होली स्क्रिप्चर्स्‌। आज यह पूरी बाइबल या इसका एक भाग 42 भाषाओं में उपलब्ध है और इसके अलग-अलग संस्करणों की 11 करोड़ 40 लाख कॉपियाँ छापी गयी हैं। हम अपने अध्ययन में इसका इस्तेमाल करके कैसे फायदा पा सकते हैं?—2 तीमुथियुस 3:14-17.

19. न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन ऑफ द होली स्क्रिप्चर्स्‌—विद रॆफ्रॆंसॆज़ की कुछ खासियतें क्या हैं जो निजी अध्ययन में हमारी मदद कर सकती हैं?

19 उदाहरण के लिए न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन ऑफ द होली स्क्रिप्चर्स्‌—विद रॆफ्रॆंसॆज़ बाइबल पर गौर कीजिए। इसमें क्रॉस-रेफ्रेन्स, फुटनोट, “बाइबल वड्‌र्स इंडैक्स्ड” और “फुटनोट वड्‌र्स इंडैक्स्ड” के रूप में एक छोटा-सा कॅनकॉर्डन्स, साथ ही 43 विषयों पर विस्तार से जानकारी देनेवाले अपैंडिक्स, और नक्शे और चार्ट दिए गए हैं। इसमें एक “इंट्रोडक्शन” या परिचय भी है जो बताता है कि इस अनोखे बाइबल अनुवाद को तैयार करने में कितनी सारी किताबों वगैरह का इस्तेमाल किया गया था। अगर यह बाइबल किसी ऐसी भाषा में मौजूद है जो आप जानते हैं, तो उसकी इन सभी खासियतों से वाकिफ होइए और उनका इस्तेमाल कीजिए। हम चाहे किसी भी अनुवाद का इस्तेमाल करें, मगर बाइबल ही हमारे अध्ययन की सबसे ज़रूरी किताब है। और न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन एक ऐसा अनुवाद है जिसमें परमेश्‍वर के नाम को अहमियत दी गयी है और उसके राज्य पर खास रोशनी डाली गयी है।—भजन 149:1-9; दानिय्येल 2:44; मत्ती 6:9, 10.

20. निजी अध्ययन के बारे में अब हमें किन सवालों के जवाब जानने ज़रूरी हैं?

20 अब शायद हम पूछें: ‘बाइबल को समझने के लिए हमें और कैसी मदद की ज़रूरत है? हम निजी अध्ययन के लिए समय कैसे तय कर सकते हैं? हम अपने अध्ययन को और भी फायदेमंद कैसे बना सकते हैं? हमारे अध्ययन का दूसरों पर क्या असर होना चाहिए?’ ये सारी बातें हमारी आध्यात्मिक उन्‍नति के लिए बेहद ज़रूरी हैं और इन पर अगले लेख में चर्चा की जाएगी।

[फुटनोट]

^ सन्‌ 1979 से सोने की कीमत में बहुत ज़्यादा उतार-चढ़ाव आया है। सन्‌ 1980 में इसकी कीमत प्रति ग्राम 27.40 डॉलर थी जबकि 1999 में यह घटकर प्रति ग्राम 8.10 डॉलर हो गयी।

क्या आपको याद है?

• “मनन” करने और “सोचने” का मतलब क्या है?

• परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने के बारे में हमें कैसा महसूस करना चाहिए?

• निजी अध्ययन करने में हमारा मकसद क्या होना चाहिए?

• बाइबल की समझ पाने के लिए हमें किन चीज़ों से मदद मिलती है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 15 पर तसवीर]

बेथेल परिवार के सदस्य हर दिन की शुरूआत, बाइबल की एक आयत पर चर्चा से करते हैं और इससे वे आध्यात्मिक रूप से मज़बूत होते हैं

[पेज 15 पर तसवीरें]

सफर के दौरान, बाइबल कैसेट सुनकर हम अपने कीमती समय का अच्छा इस्तेमाल कर सकते हैं

[पेज 16 पर तसवीर]

लोगों ने सोना हासिल करने के लिए खून-पसीना एक कर दिया है। आप परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने के लिए कितनी मेहनत करते हैं?

[चित्र का श्रेय]

Courtesy of California State Parks, 2002

[पेज 17 पर तसवीरें]

बाइबल ऐसा खज़ाना है जो हमेशा की ज़िंदगी दिला सकता है