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“परमेश्‍वर के निकट आओ”

“परमेश्‍वर के निकट आओ”

“परमेश्‍वर के निकट आओ”

“परमेश्‍वर के निकट आओ, तो वह भी तुम्हारे निकट आएगा।”—याकूब 4:8.

1, 2. (क) इंसान अकसर क्या दावा करते हैं? (ख) याकूब ने क्या सलाह दी और क्यों?

 “परमेश्‍वर हमारे साथ है।” ऐसे शब्द कुछ देशों के राष्ट्रीय चिन्हों, यहाँ तक कि सैनिकों की वर्दी पर भी लिखे होते हैं। और आजकल बहुत-से सिक्कों और नोटों पर यह बात लिखी होती है: “हमारा भरोसा परमेश्‍वर पर है।” इन सब बातों से पता चलता है कि आम तौर पर लोग दावा करते हैं कि उनका परमेश्‍वर के साथ नज़दीकी रिश्‍ता है। लेकिन ज़रा सोचिए कि परमेश्‍वर के साथ वाकई एक नज़दीकी रिश्‍ता कायम रखने के लिए, क्या उसके बारे में सिर्फ बात करना और कपड़ों वगैरह पर छापकर उसका ऐलान करना काफी है?

2 बाइबल दिखाती है कि इंसान के लिए परमेश्‍वर के साथ रिश्‍ता कायम रखना ज़रूर मुमकिन है। मगर इसके लिए हमें मेहनत करनी होती है। पहली सदी में, कुछ अभिषिक्‍त मसीहियों को भी यहोवा परमेश्‍वर के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत करने की ज़रूरत पड़ी थी। कुछ मसीही, शरीर की इच्छाओं को पूरा करने लगे थे और आध्यात्मिक रूप से अशुद्ध हो गए थे, इसलिए मसीही प्राचीन, याकूब ने उन्हें चेतावनी दी। उन्हें चेतावनी देते वक्‍त उसने ज़ोरदार शब्दों में यह सलाह भी दी: “परमेश्‍वर के निकट आओ, तो वह भी तुम्हारे निकट आएगा।” (याकूब 4:1-12) “निकट आओ” कहने से याकूब का क्या मतलब था?

3, 4. (क) पहली सदी में याकूब का खत पढ़नेवालों को “परमेश्‍वर के निकट आओ,” ये शब्द पढ़ने पर क्या ध्यान आया होगा? (ख) हम क्यों भरोसा रख सकते हैं कि परमेश्‍वर के पास आना मुमकिन है?

3 याकूब का खत पढ़नेवाले बहुत-से लोग उसके लिखे शब्द “निकट आओ” से अच्छी तरह वाकिफ रहे होंगे। मूसा की व्यवस्था में याजकों को साफ-साफ हिदायत दी गयी थी कि उन्हें इस्राएली प्रजा की तरफ से यहोवा “के समीप” या निकट कैसे आना चाहिए। (निर्गमन 19:22) तो याकूब की चिट्ठी पढ़नेवालों को ध्यान आया होगा कि यहोवा के निकट आना कोई मामूली बात नहीं है। आखिर यहोवा, सारे जहान की सबसे महान हस्ती जो है!

4 दूसरी तरफ, जैसे बाइबल का अध्ययन करनेवाले एक विद्वान ने कहा, याकूब 4:8 में दी गयी “यह सलाह उम्मीद की किरण भी जगाती है।” याकूब जानता था कि शुरू से ही यहोवा ने असिद्ध इंसानों को अपने पास आने का न्यौता दिया है। (2 इतिहास 15:2) और जब यीशु ने अपना बलिदान दिया तो इंसानों के लिए यहोवा के करीब आने का रास्ता पूरी तरह खुल गया। (इफिसियों 3:11, 12) आज लाखों लोगों ने यह रास्ता अपनाया है! लेकिन हम इस सुनहरे मौके का फायदा कैसे उठा सकते हैं? यह जानने के लिए हम यहोवा परमेश्‍वर के करीब आने के तीन तरीकों पर थोड़ी चर्चा करेंगे।

परमेश्‍वर का “ज्ञान लेते” रहिए

5, 6. परमेश्‍वर का ‘ज्ञान लेते रहने’ का मतलब जानने में बालक शमूएल की मिसाल कैसे मदद देती है?

5 यूहन्‍ना 17:3 में यीशु ने कहा: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्‍वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।” हमारी हिन्दी बाइबल और दूसरी बाइबलों में इस आयत का अनुवाद जिस तरह किया गया है, उनमें और न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन बाइबल में ज़रा-सा फर्क है। न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन में “जानें” के बजाय, “ज्ञान लेते रहें” अनुवाद किया गया है। बहुत-से विद्वान कहते हैं कि मूल यूनानी पाठ में इस आयत में इस्तेमाल किए गए शब्द का मतलब किसी के बारे में लगातार ज्ञान हासिल करना है, जिससे दो लोगों के बीच गहरा नाता जुड़ सकता है।

6 परमेश्‍वर को करीब से जानना, यीशु के समय के लोगों के लिए कोई नयी बात नहीं थी। मसलन, इब्रानी शास्त्र में हम पढ़ते हैं कि जब शमूएल बालक था, ‘तब तक वह यहोवा को नहीं पहचानता था।’ (1 शमूएल 3:7) क्या इसका मतलब यह है कि शमूएल, अपने परमेश्‍वर के बारे में बहुत कम जानता था? जी नहीं। उसके माता-पिता और याजकों ने उसे ज़रूर यहोवा के बारे में काफी बातें सिखायी होंगी। लेकिन एक विद्वान के मुताबिक उस आयत में इस्तेमाल किए गए इब्रानी शब्द का मतलब “सबसे अज़ीज़ दोस्त के लिए इस्तेमाल” किया जा सकता है। इससे ज़ाहिर होता है कि शमूएल बचपन में यहोवा को करीब से नहीं जानता था, जैसे कि आगे चलकर यहोवा के प्रवक्‍ता के रूप में सेवा करते वक्‍त उसे जानता। जैसे-जैसे शमूएल बड़ा होता गया, उसने सचमुच यहोवा को जाना और उसके साथ एक निजी और करीबी रिश्‍ता बनाया।—1 शमूएल 3:19, 20.

7, 8. (क) बाइबल की गूढ़ सच्चाइयों की जाँच करने से हमें क्यों घबराना नहीं चाहिए? (ख) परमेश्‍वर के वचन में दी गयी ऐसी कुछ गूढ़ सच्चाइयाँ क्या हैं जिनका हमें अध्ययन करना चाहिए?

7 क्या आप यहोवा को और करीब से जानने के लिए लगातार उसका ज्ञान ले रहे हैं? इसके लिए ज़रूरी है कि आप परमेश्‍वर से मिलनेवाले आध्यात्मिक भोजन की ‘लालसा करें।’ (1 पतरस 2:2) बाइबल की बुनियादी बातों की जानकारी से ही संतुष्ट मत होइए, बल्कि उसकी कुछ गूढ़ शिक्षाओं को भी सीखने में मेहनत कीजिए। (इब्रानियों 5:12-14) क्या आप यह सोचकर घबराते हैं कि ऐसी गूढ़ बातें समझना बहुत मुश्‍किल है? अगर आपका यह ख्याल है, तो याद रखिए कि यहोवा “महान उपदेशक” है। (यशायाह 30:20, NW) वह जानता है कि असिद्ध इंसानों को गूढ़ सच्चाइयाँ किस तरीके से बताने पर वे समझ पाएँगे। आप उसकी शिक्षाओं को समझने के लिए सच्चे दिल से जो मेहनत करेंगे, उसे वह ज़रूर सफल करेगा।—भजन 25:4.

8 क्यों न आप ‘परमेश्‍वर की कुछ गूढ़ बातों’ को खुद जाँच करके देखें? (1 कुरिन्थियों 2:10) ये ऐसे उबाऊ विषय नहीं हैं जिन्हें लेकर धर्म-विज्ञानी और पादरी लंबी-लंबी बहस करते हैं। बाइबल की गूढ़ शिक्षाओं से हमें काफी फायदा हो सकता है, क्योंकि उन पर छानबीन करने से हम अपने प्यारे पिता, यहोवा के सोच-विचारों और उसकी भावनाओं के बारे में दिलचस्प बातें सीख सकते हैं। मिसाल के लिए, छुड़ौती, “पवित्र भेद,” और ऐसी अलग-अलग वाचाएँ, जिनके ज़रिए यहोवा ने अपने लोगों को आशीष दी और अपना मकसद पूरा किया—इस तरह के कई विषयों पर खोजबीन और अध्ययन करने से हमें बहुत खुशी मिलेगी और फायदा होगा।—1 कुरिन्थियों 2:7, NW.

9, 10. (क) घमंड क्यों खतरनाक है, और इससे दूर रहने में क्या बात हमारी मदद करेगी? (ख) यहोवा का ज्ञान पाने पर हमें नम्र क्यों होना चाहिए?

9 जैसे-जैसे गूढ़ आध्यात्मिक सच्चाइयों के बारे में आपका ज्ञान बढ़ता जाएगा, आपको एक खतरे से सावधान रहना होगा। वह है, घमंड। (1 कुरिन्थियों 8:1) घमंड बहुत खतरनाक है, क्योंकि यह इंसानों को परमेश्‍वर से दूर कर देता है। (नीतिवचन 16:5; याकूब 4:6) याद रखें कि किसी भी इंसान का अपने ज्ञान पर घमंड करना जायज़ नहीं है। उदाहरण के लिए, एक किताब में हाल ही में हुई विज्ञान की तरक्कियों का जायज़ा लिया गया और उसकी प्रस्तावना में यह कहा गया: “हम जितनी ज़्यादा जानकारी पाते हैं, उतना ही हमारा एहसास गहरा होता है कि हम कुछ नहीं जानते। . . . हमें और भी इतनी सारी बातें सीखनी हैं कि अब तक हमने जो सीखा, वह न के बराबर है।” ऐसी नम्रता दिखाने के लिए वाकई तारीफ की जानी चाहिए। जब लोग इंसानी ज्ञान पर इतनी नम्रता दिखाते हैं तो हमें परमेश्‍वर का ज्ञान पाने पर और कितना नम्र होना चाहिए, क्योंकि यह ज्ञान तो सबसे श्रेष्ठ है। मगर हमें नम्र क्यों होना चाहिए?

10 यहोवा के बारे में बाइबल में दिए कुछ वाक्यों पर ध्यान दीजिए। “तेरे विचार बहुत गंभीर हैं।” (भजन 92:5, NHT) “[यहोवा की] बुद्धि अपरम्पार है।” (भजन 147:5) “[यहोवा की] बुद्धि अगम है।” (यशायाह 40:28) “परमेश्‍वर का धन और बुद्धि और ज्ञान क्या ही गंभीर है!” (रोमियों 11:33) इन आयतों से ज़ाहिर होता है कि हम यहोवा के बारे में कभी-भी सब कुछ नहीं जान पाएँगे। (सभोपदेशक 3:11) उसने आज तक हमें बहुत-सी अनमोल बातें सिखायी हैं, मगर फिर भी अनंतकाल तक हमारे सीखने के लिए ढेरों नयी-नयी बातें होंगी। उनके बारे में जानकारी हासिल करने की आशा से ही क्या हम उमंग से नहीं भर जाते और क्या उससे हमारे अंदर नम्रता नहीं पैदा होती? तो जैसे-जैसे हम यहोवा के बारे में ज्ञान पाते जाएँगे, क्यों न हम उसका इस्तेमाल करके यहोवा के और भी करीब आएँ और दूसरों को भी ऐसा करने में मदद दें। मगर कभी-भी अपने ज्ञान के ज़रिए खुद को दूसरों से ऊँचा उठाने की कोशिश न करें।—मत्ती 23:12; लूका 9:48.

अपने कामों से यहोवा के लिए प्रेम दिखाइए

11, 12. (क) यहोवा के बारे में हम जो ज्ञान पाते हैं, उसका हम पर कैसा असर होना चाहिए? (ख) परमेश्‍वर के लिए एक इंसान का प्रेम सच्चा है या नहीं, यह कैसे ज़ाहिर होगा?

11 प्रेरित पौलुस ने ज्ञान और प्रेम के बीच एक नाता बताया जो कि बिलकुल सही है। उसने लिखा: “मैं यह प्रार्थना करता हूं, कि तुम्हारा प्रेम, ज्ञान और सब प्रकार के विवेक सहित और भी बढ़ता जाए।” (फिलिप्पियों 1:9) यहोवा और उसके उद्देश्‍यों के बारे में सीखनेवाली हर अनमोल सच्चाई से अपने स्वर्गीय पिता के लिए हमारा प्यार गहरा होना चाहिए, न कि हमें घमंड से फूल जाना चाहिए।

12 परमेश्‍वर से प्रेम रखने का दावा करनेवाले ज़्यादातर लोग सच्चे दिल से उसे प्रेम नहीं करते। हो सकता है, उनके दिल में परमेश्‍वर के लिए गहरी श्रद्धा हो। अगर ऐसी भावनाएँ, सही ज्ञान के मुताबिक हों तो यह अच्छी बात है और वाकई सराहने योग्य भी है। लेकिन परमेश्‍वर के लिए ऐसी श्रद्धा रखना और उसके लिए सच्चा प्रेम होना एक ही बात नहीं है। ऐसा क्यों? ध्यान दीजिए कि बाइबल, परमेश्‍वर के लिए सच्चे प्रेम की क्या परिभाषा देती है: “परमेश्‍वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें।” (1 यूहन्‍ना 5:3) यहोवा के लिए हमारा प्रेम तभी सच्चा होगा, जब हम उसकी आज्ञाएँ मानकर उसे ज़ाहिर करेंगे।

13. यहोवा का भय, उसके लिए अपना प्रेम दिखाने में कैसे हमारी मदद करेगा?

13 अगर हमारे दिल में यहोवा के लिए भय यानी उसके लिए गहरी श्रद्धा और आदर है, तो हम उसकी आज्ञाएँ मानेंगे। ऐसा भय हममें तभी पैदा होगा जब हम उसके बारे में ज्ञान लेंगे—उसकी असीम पवित्रता, महिमा, शक्‍ति, न्याय, बुद्धि और प्रेम के बारे में सीखेंगे। यहोवा के करीब आने के लिए ऐसा भय होना ज़रूरी है। भजन 25:14 (NW) कहता है: ‘यहोवा के साथ करीबी रिश्‍ता वे ही बना सकते हैं, जो उसका भय मानते हैं।’ जब हम ऐसा कोई भी काम करने से डरेंगे जिससे हमारा प्यारा पिता, यहोवा नाराज़ हो सकता है, तभी हम उसके करीब आ सकेंगे। परमेश्‍वर का भय नीतिवचन 3:6 में बतायी बुद्धिमानी-भरी सलाह को मानने के लिए हमें उकसाएगा: “उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।” इसका मतलब क्या है?

14, 15. (क) हमें हर रोज़ किस तरह के फैसले करने पड़ते हैं? (ख) हम ऐसे फैसले कैसे कर सकते हैं जिनसे ज़ाहिर हो कि हम परमेश्‍वर का भय माननेवाले हैं?

14 हर दिन आपको कई फैसले लेने पड़ते हैं, जिनमें कुछ छोटे होते हैं तो कुछ बड़े। मिसाल के लिए, आपको सोचना पड़ता है कि आप अपने साथ काम करनेवालों, स्कूल के साथियों और पड़ोसियों से किस तरह के विषयों पर बातचीत करेंगे? (लूका 6:45) आपको जो काम सौंपा जाता है, उसे क्या आप सच्ची लगन के साथ पूरा करेंगे या फिर बस खानापूर्ति के लिए कम-से-कम मेहनत करके उसे निपटा देंगे? (कुलुस्सियों 3:23) क्या आप ऐसे लोगों के साथ ज़्यादा मेल-जोल रखेंगे जो यहोवा से बहुत कम प्यार करते हैं या ज़रा भी प्यार नहीं करते, या क्या आप आध्यात्मिक बातों पर मन लगानेवालों के साथ अपनी दोस्ती गहरी करना चाहेंगे? (नीतिवचन 13:20) परमेश्‍वर के राज्य को बढ़ावा देने के लिए आप क्या करेंगे, फिर चाहे वह छोटे-छोटे तरीकों से ही क्यों न हो? (मत्ती 6:33) यहाँ हर मुद्दे के साथ दी गयी आयतों में बताए सिद्धांतों और उनके जैसे दूसरे सिद्धांतों के मुताबिक अगर आप हर रोज़ फैसला करें तो यह दिखाएगा कि आप वाकई ‘सब कामों’ में यहोवा को स्मरण कर रहे हैं।

15 इसका मतलब यह है कि अपना हर फैसला करते वक्‍त हमें खुद से यह पूछना होगा: ‘यहोवा मुझसे क्या करने की उम्मीद करता है? क्या फैसला करने पर वह ज़्यादा खुश होगा?’ (नीतिवचन 27:11) इस तरीके से यहोवा का भय दिखाना, उसके लिए प्रेम ज़ाहिर करने का एक उम्दा तरीका है। परमेश्‍वर का भय हमें आध्यात्मिक, नैतिक और शारीरिक रूप से शुद्ध बने रहने की भी प्रेरणा देगा। याद रखें कि जिस आयत में याकूब ने मसीहियों से “परमेश्‍वर के निकट” आने का आग्रह किया उसी आयत में उसने यह सलाह भी दी: “हे पापियो, अपने हाथ शुद्ध करो; और हे दुचित्ते लोगो अपने हृदय को पवित्र करो।”—याकूब 4:8.

16. यहोवा को देने के ज़रिए हम कभी-भी क्या नहीं कर सकते, मगर हम हमेशा क्या ज़ाहिर कर सकते हैं?

16 बेशक, यहोवा के लिए प्रेम दिखाने का मतलब सिर्फ बुराई से दूर रहना नहीं है। प्रेम हमें भले काम करने के लिए भी उकसाता है। मसलन, यहोवा ने हम पर जो अनगिनत उपकार किए हैं उसके लिए हम एहसान कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं? याकूब ने लिखा: “हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से है, और ज्योतियों के पिता की ओर से मिलता है।” (याकूब 1:17) यह सच है कि जब हम अपनी संपत्ति में से कुछ यहोवा को देते हैं, तो हम उसके खज़ाने में बढ़ोतरी नहीं करते। आखिर, पूरे विश्‍व में जितनी भी संपत्ति और साधन हैं, उन सभी का मालिक वही तो है! (भजन 50:12) और जब हम अपना समय और अपनी ताकत यहोवा की सेवा में लगाते हैं, तो हम उस पर कोई मेहरबानी नहीं कर रहे होते, मानो हमारे बगैर उसका काम नहीं हो सकता। अगर हम परमेश्‍वर के राज्य की खुशखबरी सुनाने से इनकार कर दें, तो वह पत्थरों से भी बुलवा सकता है! तो फिर क्यों हमें अपनी संपत्ति, अपना समय और अपनी ताकत यहोवा के लिए इस्तेमाल करनी चाहिए? खास तौर से यह दिखाने के लिए कि हम यहोवा को अपने पूरे हृदय, प्राण, मन और शक्‍ति से प्यार करते हैं।—मरकुस 12:29, 30.

17. यहोवा को खुशी-खुशी देने के लिए क्या बात हमें उकसाएगी?

17 हम यहोवा को जो भी देते हैं उसे खुशी-खुशी देना चाहिए, क्योंकि “परमेश्‍वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम रखता है।” (2 कुरिन्थियों 9:7) व्यवस्थाविवरण 16:17 में बताया सिद्धांत हमें खुशी से दान देने के लिए उकसाएगा: “सब पुरुष अपनी अपनी पूंजी, और उस आशीष के अनुसार जो तेरे परमेश्‍वर यहोवा ने तुझ को दी हो, दिया करें।” जब हम विचार करते हैं कि यहोवा ने हमें कैसी अपरंपार आशीषें दी हैं, तो हमारे अंदर भी उसे प्रसन्‍नता और उदारता से देने की इच्छा पैदा होती है। जब हम ऐसी भावना के साथ उसे देते हैं, तो यहोवा का दिल खुश होता है, ठीक जैसे माता-पिता को अपने दुलारे बच्चे के हाथ से एक छोटा तोहफा पाने पर खुशी होती है। इस तरह से यहोवा के लिए अपना प्रेम दिखाना हमें उसके और भी करीब लाएगा।

प्रार्थना के ज़रिए यहोवा से नज़दीकी रिश्‍ता बनाइए

18. अपनी प्रार्थनाओं का दर्जा बढ़ाने के बारे में विचार करना क्यों सही होगा?

18 जब हम अकेले में प्रार्थना करते हैं तो हमें अपने स्वर्गीय पिता से अपने दिल की बात कहने, उसे अपनी गुप्त बातें बताने का अनमोल अवसर मिलता है। (फिलिप्पियों 4:6) प्रार्थना, परमेश्‍वर के करीब आने का एक खास ज़रिया है, इसलिए कभी-कभी यह जाँचना सही होगा कि हमारी प्रार्थनाओं का दर्जा कैसा है। ज़रूरी नहीं कि प्रार्थना में हम बढ़िया-से-बढ़िया शब्द इस्तेमाल करें और एक सिलसिलेवार ढंग से ही अपनी बात कहें। इसके बजाय, यह ज़रूरी है कि हमारी हर बात दिल से निकले। हम अपनी प्रार्थनाओं में सुधार कैसे कर सकते हैं?

19, 20. प्रार्थना करने से पहले हमें क्यों मनन करना चाहिए, और किस तरह के विषयों पर मनन करना ठीक रहेगा?

19 हम प्रार्थना करने से पहले सोच सकते हैं कि हम किन-किन बातों के बारे में प्रार्थना करेंगे। पहले से सोचने पर हम यहोवा से अपनी बात ठीक-ठीक कहेंगे और जो भी कहेंगे वह मतलब से भरा होगा। और हम बार-बार उन्हीं बातों को नहीं दोहराएँगे जो प्रार्थना के वक्‍त यूँ ही हमारी ज़बान पर आ जाती हैं। (नीतिवचन 15:28, 29) यीशु ने आदर्श प्रार्थना में जिन विषयों का ज़िक्र किया, उन पर हम मनन कर सकते हैं और फिर सोच सकते हैं कि कैसे वे हमारे हालात से ताल्लुक रखते हैं। (मत्ती 6:9-13) मिसाल के लिए, हम खुद से पूछ सकते हैं कि पृथ्वी पर यहोवा की इच्छा पूरी होने में हम अपनी तरफ से क्या करना चाहते हैं? क्या हम यहोवा से कह सकते हैं कि हम उसकी सेवा में अपना भरसक करना चाहते हैं और उसने हमें जो भी ज़िम्मेदारी सौंपी है, उसे पूरा करने में वह हमारी मदद करे? क्या हमें रोज़ी-रोटी कमाने की चिंता खाए जा रही है? किन पापों के लिए हमें माफी की ज़रूरत है और खासकर किन लोगों की गलतियों को सहकर उन्हें माफ करने की इच्छा हममें होनी चाहिए? किस तरह की बुराइयों में फँसने का खतरा हमारे सामने है और क्या हम समझते हैं कि उनका विरोध करने के लिए हमें यहोवा से मदद की सख्त ज़रूरत है?

20 इसके अलावा, हम ऐसे लोगों के बारे में भी सोच सकते हैं जिन्हें यहोवा की मदद की खास ज़रूरत है। (2 कुरिन्थियों 1:11) साथ ही, हमें यहोवा को धन्यवाद देना भी नहीं भूलना चाहिए। अगर हम धन्यवाद देने के बारे में सोचें तो हमें हर दिन यहोवा की अपार भलाई के लिए उसका धन्यवाद करने और उसकी स्तुति करने के बहुत-से कारण मिलेंगे। (व्यवस्थाविवरण 8:10; लूका 10:21) यहोवा को धन्यवाद देने का एक और फायदा यह है कि हम ज़िंदगी के बारे में एक अच्छा नज़रिया रखेंगे और उसके लिए एहसानमंद होंगे।

21. बाइबल में दर्ज़ किन मिसालों का अध्ययन करने से हम अपनी प्रार्थनाओं को बेहतरीन बना सकते हैं?

21 अपनी प्रार्थनाओं को बेहतर बनाने में अध्ययन भी हमारी मदद करेगा। परमेश्‍वर के वचन में कई वफादार स्त्री-पुरुषों की बेहतरीन प्रार्थनाएँ दर्ज़ हैं। उदाहरण के लिए, शायद हम किसी बड़ी समस्या से घिरे हुए हैं जो हमें अंदर-ही-अंदर खाए जा रही है और हम यह सोचकर डरते भी हैं कि उससे हम पर और हमारे अज़ीज़ों पर कोई आफत न आ पड़े। ऐसे में हम याकूब के बारे में पढ़ सकते हैं। जब उसका भाई एसाव, बदले की आग से जलता हुआ, उससे मिलने आ रहा था तब याकूब ने जो प्रार्थना की, उसका अध्ययन करना हमारे लिए मददगार होगा। (उत्पत्ति 32:9-12) या फिर हम राजा आसा की प्रार्थना का अध्ययन कर सकते हैं कि जब कूशियों के लगभग 10 लाख सैनिक, परमेश्‍वर के लोगों पर खतरा बने हुए थे तब उसने कैसे अपनी समस्या यहोवा को बतायी। (2 इतिहास 14:11, 12) या मान लीजिए हम किसी ऐसी मुसीबत में पड़ जाते हैं जिससे परमेश्‍वर के नेक नाम पर कलंक लग सकता है। तब एलिय्याह के बारे में पढ़ना अच्छा होगा कि कर्मेल पर्वत पर बाल के पूजकों के सामने उसने क्या प्रार्थना की थी। उसी तरह नहेमायाह ने यरूशलेम की बदहाली देखकर जो प्रार्थना की, वह भी गौर करने लायक है। (1 राजा 18:36, 37; नहेमायाह 1:4-11) ऐसी प्रार्थनाओं को पढ़ने और उन पर मनन करने से हमारा विश्‍वास मज़बूत होगा और हम सीखेंगे कि हम जिन समस्याओं के बोझ तले दबे हुए हैं, उन्हें किस तरीके से यहोवा को बताना बेहतर होगा।

22. सन्‌ 2003 का सालाना वचन क्या है और उस पूरे साल के दौरान हम समय-समय पर खुद से क्या पूछ सकते हैं?

22 “परमेश्‍वर के निकट आओ,” याकूब की इस सलाह को मानना ही ज़िंदगी का सबसे खास लक्ष्य है और परमेश्‍वर के करीब आना ही सबसे बड़े सम्मान की बात है। (याकूब 4:8) आइए हम परमेश्‍वर के बारे में अपना ज्ञान लगातार बढ़ाकर, उसके लिए अपना प्रेम ज़्यादा-से-ज़्यादा दिखाकर और अपनी प्रार्थनाओं में उसके साथ नज़दीकी रिश्‍ता जोड़कर उसके निकट आएँ। सन्‌ 2003 के पूरे साल के दौरान, जब हम याकूब 4:8 को सालाना वचन के तौर पर याद रखेंगे, तब हम समय-समय पर खुद की जाँच करते रहें कि क्या हम वाकई यहोवा के करीब आ रहे हैं। लेकिन उस आयत के बाद के हिस्से के बारे में क्या? किस अर्थ में यहोवा आपके “निकट आएगा” और आपको आशीषें देगा? इस बारे में अगले लेख में चर्चा की जाएगी।

क्या आपको याद है?

• यहोवा के करीब आने की बात हमें क्यों गंभीरता से लेनी चाहिए?

• यहोवा का ज्ञान लेने के बारे में हम कौन-से लक्ष्य रख सकते हैं?

• हम यह कैसे दिखा सकते हैं कि हम सच्चे दिल से यहोवा को प्यार करते हैं?

• हम प्रार्थना में कैसे यहोवा के और भी करीब आ सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 12 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

सन्‌ 2003 का सालाना वचन है: “परमेश्‍वर के निकट आओ, तो वह भी तुम्हारे निकट आएगा।”—याकूब 4:8.

[पेज 9 पर तसवीर]

शमूएल जैसे-जैसे बड़ा होता गया, उसने यहोवा को करीब से जाना

[पेज 12 पर तसवीर]

कर्मेल पर्वत पर एलिय्याह ने जो प्रार्थना की, वह हमारे लिए एक अच्छी मिसाल है