प्रहरीदुर्ग—अध्ययन संस्करण 1 जनवरी, 2003 ‘परमेश्वर, आखिर तूने ऐसा क्यों होने दिया?’ दुःख-तकलीफ सहनेवालों को दिलासा आज, पहले से कहीं ज़्यादा जागते रहो! “जागते रहो”! उस पर्ची ने तो मेरी ज़िंदगी की कायापलट कर दी! उसे अपनी लगन का फल मिला सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाने में, क्या बात हमारी मदद कर सकती है? पाठकों के प्रश्न “तुमने बिलकुल सही कहा, ज़िंदगी वाकई खुशनुमा है!” क्या आप चाहते हैं कि कोई आकर आपसे मिले? प्रिंट करें दूसरों को भेजें दूसरों को भेजें प्रहरीदुर्ग—अध्ययन संस्करण 1 जनवरी, 2003 प्रहरीदुर्ग—अध्ययन संस्करण 1 जनवरी, 2003 हिंदी प्रहरीदुर्ग—अध्ययन संस्करण 1 जनवरी, 2003 https://assetsnffrgf-a.akamaihd.net/assets/ct/1add6d1d93/images/cvr_placeholder.jpg