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“जागते रहो”!

“जागते रहो”!

“जागते रहो”!

“जो मैं तुम से कहता हूं, वही सब से कहता हूं, जागते रहो।”—मरकुस 13:37.

1, 2. (क) अपनी चीज़ों की हिफाज़त करने के बारे में एक आदमी ने क्या सबक सीखा? (ख) यीशु के बताए चोर के दृष्टांत से हम जागते रहने के बारे में क्या सीखते हैं?

क्वान ने अपनी सारी कीमती चीज़ें घर पर रखी थीं। उसने सारी चीज़ें अपने पलंग के नीचे छिपाकर रखीं, क्योंकि उसके ख्याल से वह घर की सबसे महफूज़ जगह थी। मगर एक रात जब वह और उसकी पत्नी सोए हुए थे, तो एक चोर उनके घर में घुस आया। चोर को शायद ठीक-ठीक पता था कि कीमती चीज़ें कहाँ पर हैं। इसलिए उसने धीरे से, बिना किसी आहट के सीधे पलंग के नीचे जाकर सारी-की-सारी कीमती चीज़ें चुरा लीं। यहाँ तक कि जो पैसा क्वान ने पलंग की पासवाली मेज़ की दराज़ में रखा था, उन्हें भी लेकर वह चंपत हो गया। सुबह जब क्वान की आँख खुली तो उसे पता चला कि घर में चोरी हो गयी है। क्वान ने वाकई एक कड़वा सबक सीखा जो उसे ज़िंदगी भर याद रहेगा। वह यह कि सोता हुआ इंसान कभी अपनी चीज़ों की हिफाज़त नहीं कर सकता।

2 यही बात आध्यात्मिक मामले में भी सच है। अगर हम आध्यात्मिक रूप से सोते रहें, तो हम कभी-भी अपनी आशा और अपने विश्‍वास की हिफाज़त नहीं कर पाएँगे। इसलिए पौलुस हमें उकसाता है: “हम औरों की नाईं सोते न रहें, पर जागते और सावधान रहें।” (1 थिस्सलुनीकियों 5:6) जागते रहना कितना ज़रूरी है, यह समझाने के लिए यीशु ने एक चोर का दृष्टांत दिया। वह दृष्टांत देने से पहले उसने बताया कि उसके न्यायी बनकर आने से पहले दुनिया में कैसी घटनाएँ घटेंगी। फिर उसने यह चेतावनी दी: “इसलिये जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा। परन्तु यह जान लो कि यदि घर का स्वामी जानता होता कि चोर किस पहर आएगा, तो जागता रहता; और अपने घर में सेंध लगने न देता। इसलिये तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा।” (मत्ती 24:42-44) चोर कभी बताकर नहीं आता, बल्कि वह ऐसे वक्‍त पर आने की ताक में रहता है जब किसी को उसके आने की उम्मीद न हो। ठीक उसी तरह जैसे यीशु ने कहा, इस दुनिया का अंत ‘उस घड़ी में आएगा जिसके विषय में हम सोचते भी न हों।’

“जागते रहो, विश्‍वास में स्थिर रहो”

3. यीशु ने शादी से लौटनेवाले अपने मालिक का इंतज़ार कर रहे दासों का जो दृष्टांत बताया, उससे जागते रहने की ज़रूरत के बारे में क्या पता चलता है?

3 सुसमाचार की किताब, लूका में बताया गया है कि यीशु ने मसीहियों की तुलना कुछ ऐसे दासों से की जो शादी से लौटनेवाले अपने मालिक की राह देख रहे हैं। उन्हें जागते रहना चाहिए था ताकि जब उनका मालिक आए तो वे उसका स्वागत कर सकें। कुछ ऐसी ही बात यीशु ने अपने चेलों को भी बतायी: “जिस घड़ी तुम सोचते भी नहीं, उस घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जावेगा।” (लूका 12:40) कुछ लोग जो बहुत सालों से यहोवा की सेवा करते आ रहे हैं, वे आज वक्‍त की नज़ाकत को भूल सकते हैं। यहाँ तक कि वे शायद कहें, अंत आने में अभी काफी वक्‍त है। मगर ऐसी सोच से हमारा ध्यान आध्यात्मिक बातों से हटकर ऐशो-आराम की तरफ जा सकता है। अगर हम इस तरह बहक गए तो आध्यात्मिक तौर पर सोने लगेंगे।—लूका 8:14; 21:34, 35.

4. किस बात का पक्का यकीन होने से हमारे दिल में जागते रहने के लिए ज़बरदस्त इच्छा पैदा होगी, और इस बारे में यीशु ने क्या बताया था?

4 यीशु के दृष्टांत से हम एक और सबक सीख सकते हैं। हालाँकि दासों को यह नहीं पता था कि उनका मालिक रात के किस पहर आएगा, मगर वे यह ज़रूर जानते थे कि वह किस रात आएगा। अगर वे यह सोचते कि उनका मालिक किसी और रात को आएगा, तो उन्हें उस रात जागने में मुश्‍किल होती। मगर, वे अच्छी तरह जानते थे कि उनका मालिक किस रात आएगा, इसलिए उनमें जागते रहने की ज़बरदस्त इच्छा पैदा हुई। बाइबल की भविष्यवाणियाँ साफ-साफ दिखाती हैं कि हम अंतिम समय में जी रहे हैं; मगर वह यह नहीं बतातीं कि अंत किस दिन या किस घड़ी आएगा। (मत्ती 24:36) अंत आने के बारे में हमें जो विश्‍वास है वह हमें जागते रहने में मदद देता है। लेकिन अगर हमें इस बात का पक्का यकीन हो कि यहोवा का दिन बहुत ही करीब है, तो हमारे दिल में जागते रहने की और भी ज़बरदस्त इच्छा पैदा होगी।—सपन्याह 1:14.

5. पौलुस ने जैसा उकसाया, उसके मुताबिक हम कैसे ‘जागते रह सकते हैं?’

5 पौलुस ने कुरिन्थियों को लिखी अपनी पत्री में उकसाया: “जागते रहो, विश्‍वास में स्थिर रहो।” (1 कुरिन्थियों 16:13) जी हाँ, जागते रहने और विश्‍वास में मज़बूत होने का आपस में ताल-मेल है। हम कैसे जागते रह सकते हैं? परमेश्‍वर के वचन की गहरी बातों का ज्ञान लेने के ज़रिए। (2 तीमुथियुस 3:14, 15) इसलिए निजी अध्ययन की अच्छी आदत डालने और बिना नागा सभाओं में हाज़िर होने से हमारा विश्‍वास मज़बूत होगा। परमेश्‍वर के दिन को हमेशा अपने मन में रखना हमारे विश्‍वास का एक अहम पहलू है। इसलिए अगर हम समय-समय पर बाइबल में दिए उन सबूतों पर विचार करेंगे जो दिखाते हैं कि हम इस दुनिया के अंत के बिलकुल करीब आ पहुँचे हैं, तो हम उस अंत के बारे में अहम सच्चाइयों को नहीं भूलेंगे। * दुनिया में होनेवाली उन घटनाओं पर भी ध्यान देना फायदेमंद होगा जो बाइबल की भविष्यवाणी को पूरा करती हैं। जर्मनी के एक भाई ने लिखा: “जब भी मैं युद्ध, भूकंप, हिंसा और इस पृथ्वी पर फैले प्रदूषण की खबरें सुनता हूँ, तो मुझे और पक्का यकीन होता है कि हम अंत के बहुत करीब पहुँच गए हैं।”

6. यीशु ने कैसे बताया कि समय के गुज़रते हम आध्यात्मिक रूप से ऊँघ सकते हैं?

6 मरकुस अध्याय 13 में, हम एक और घटना के बारे में पढ़ते हैं जिसमें यीशु अपने अनुयायियों को जागते रहने के लिए उकसाता है। उस अध्याय में यीशु उनके हालात की तुलना एक द्वारपाल से करता है जो दूर देश की यात्रा पर गए अपने मालिक की वापसी का इंतज़ार कर रहा है। द्वारपाल को यह नहीं पता है कि उसका मालिक किस घड़ी लौटेगा। उसे बस जागते रहना था। यीशु ने रात के चार अलग-अलग पहर का ज़िक्र किया जिनमें मालिक के आने की गुंजाइश थी। रात का चौथा पहर, करीब सुबह तीन बजे से लेकर सूरज निकलने तक होता है। इस आखिरी पहर में द्वारपाल की आसानी से आँख लग सकती थी। देखा गया है कि सैनिक भी अपने दुश्‍मन पर अचानक हमला करने के लिए इसी वक्‍त को सबसे बेहतर समझते हैं। ठीक उसी तरह, अंतिम दिन के इस आखिरी दौर में जब सारा संसार गहरी नींद में सोया पड़ा है, ऐसे में अपनी आँख खुली रखने के लिए पहले से कड़ा संघर्ष करने की ज़रूरत है। (रोमियों 13:11, 12) इसलिए यीशु ने अपने दृष्टांत में बार-बार ज़ोर देकर कहा: “देखो, जागते [रहो] . . . इसलिये जागते रहो . . . जो मैं तुम से कहता हूं, वही सब से कहता हूं, जागते रहो।”—मरकुस 13:32-37.

7. हम किस खतरे में पड़ सकते हैं और उसको मद्देनज़र रखते हुए बाइबल हमें बार-बार कौन-सी चेतावनी देती है?

7 यीशु ने अपनी सेवा के दौरान और पुनरुत्थान पाने के बाद भी जागते रहने के लिए उकसाया। दरअसल, बाइबल के तकरीबन हर वृत्तांत में जहाँ संसार के अंत का ज़िक्र है, वहाँ जागते रहने की चेतावनी भी दी गयी है। * (लूका 12:38, 40; प्रकाशितवाक्य 3:2; 16:14-16) तो इससे बिलकुल साफ ज़ाहिर है कि आध्यात्मिक मायनों में सो जाना, असल में एक बहुत बड़ा खतरा है। इसलिए हम सभी को यीशु की चेतावनियों पर ध्यान देने की कितनी ज़रूरत है!—1 कुरिन्थियों 10:12; 1 थिस्सलुनीकियों 5:2, 6.

तीन प्रेरित जो जागते रहने से चूक गए

8. गतसमनी बाग में जब यीशु ने अपने तीन प्रेरितों को जागते रहने के लिए कहा, तो उन्होंने क्या किया?

8 जागते रहने के लिए दिल में नेक इरादे होना काफी नहीं है। यह बात हम पतरस, याकूब और यूहन्‍ना की मिसाल से देख सकते हैं। ये तीनों आध्यात्मिक बातों पर मन लगानेवाले पुरुष थे, जो पूरी वफादारी से यीशु के पीछे चले थे। उनके दिल में यीशु के लिए गहरा प्यार भी था। इन सबके बावजूद सा.यु. 33 की निसान 14 की रात को वे जागते रहने में नाकाम रहे। ऊपरी कोठरी में फसह का पर्व मनाने के बाद, जब ये तीन प्रेरित, यीशु के साथ गतसमनी बाग में गए तो उसने उनसे कहा: “मेरा जी बहुत उदास है, यहां तक कि मेरे प्राण निकला चाहते हैं: तुम यहीं ठहरो, और मेरे साथ जागते रहो।” (मत्ती 26:38) यीशु ने अकेले में जाकर तीन बार सच्चे दिल से अपने स्वर्गीय पिता से बिनती की और हर बार जब वह प्रार्थना करके अपने साथियों के पास लौटा तो उसने उन्हें सोता हुआ पाया।।—मत्ती 26:40, 43, 45.

9. तीन प्रेरित क्यों सो गए थे?

9 ये तीन वफादार पुरुष यीशु का कहना मानने से क्यों चूक गए? इसकी एक वजह यह थी कि वे थके-हारे थे। और रात भी काफी हो चुकी थी, शायद वह आधी रात के बाद का वक्‍त था और उनकी “आंखे नींद से भरी थीं।” (मत्ती 26:43) फिर भी यीशु ने कहा: “जागते रहो, और प्रार्थना करते रहो, कि तुम परीक्षा में न पड़ो: आत्मा तो तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है।”—मत्ती 26:41.

10, 11. (क) थकावट के बावजूद यीशु को किस बात ने गतसमनी बाग में जागते रहने में मदद दी? (ख) यीशु के तीनों चेलों ने जागते रहने के लिए बताए जाने के बावजूद जो किया उससे हम क्या सीख सकते हैं?

10 इसमें शक नहीं कि उस खास रात को यीशु भी बहुत थका हुआ था। वह चाहता तो सो सकता था, मगर उसने ऐसा नहीं किया। इसके बजाय, उसने अपनी गिरफ्तारी से पहले के वे आखिरी कीमती लम्हे, सच्चे दिल से परमेश्‍वर से बिनती करने में बिताए। इसके कुछ ही दिन पहले, उसने अपने शिष्यों को यह कहकर प्रार्थना करने की सलाह दी: “जागते रहो और हर समय प्रार्थना करते रहो कि तुम इन सब आनेवाली घटनाओं से बचने, और मनुष्य के पुत्र के साम्हने खड़े होने के योग्य बनो।” (लूका 21:36; इफिसियों 6:18) हमें यीशु की इस सलाह को मानना चाहिए और प्रार्थना के मामले में उसकी अच्छी मिसाल पर चलकर यहोवा से लगातार दिल से बिनती करनी चाहिए। अगर हम ऐसा करेंगे तो हम आध्यात्मिक रूप से जागते रहेंगे।

11 बेशक, यीशु अच्छी तरह जानता था कि वह बहुत जल्द गिरफ्तार होनेवाला है और उसे मौत की सज़ा दी जाएगी, जबकि उसके शिष्य यह नहीं समझ पाए थे। यीशु को पता था कि उसे काठ पर लटकाकर एक दर्दनाक मौत दी जाएगी और यह उसकी परीक्षाओं की इंतहा होगी। हालाँकि यीशु ने अपने प्रेरितों को इन सब बातों की चेतावनी दी थी, मगर वे उसकी बातों का मतलब नहीं समझ पाए थे। इसलिए वे सो गए जबकि यीशु प्रार्थना करता रहा। (मरकुस 14:27-31; लूका 22:15-18) माना कि प्रेरितों की तरह हमारा शरीर भी कमज़ोर है, और परमेश्‍वर के मकसद के बारे में ऐसी कई बातें हैं जिन्हें हम अब तक नहीं जानते। फिर भी, अगर हम वक्‍त की नज़ाकत को ना पहचानें, तो हम आध्यात्मिक रूप से सो जाएँगे। इसलिए हमें चौकन्‍ना रहने की ज़रूरत है ताकि हमें नींद न आने लगे।

तीन खास गुण

12. पौलुस के मुताबिक जागते रहने के लिए किन तीन गुणों को हमें अपने अंदर बढ़ाना है?

12 वक्‍त की नज़ाकत को हमेशा ध्यान मे रखने के लिए हम क्या कर सकते हैं? हमने पहले ही देखा है कि प्रार्थना करना और यहोवा के दिन को ध्यान में रखना कितना ज़रूरी है। इसके अलावा, पौलुस ने ऐसे तीन गुण बताए जिन्हें हमें अपने अंदर बढ़ाना है। वह कहता है: “पर हम जो दिन के हैं, विश्‍वास और प्रेम की झिलम पहिनकर और उद्धार की आशा का टोप पहिनकर सावधान रहें।” (1 थिस्सलुनीकियों 5:8) आइए देखें कि आध्यात्मिक रूप से जागते रहने में विश्‍वास, आशा और प्रेम कैसे हमारी मदद कर सकते हैं।

13. विश्‍वास हमें जागते रहने में कैसे मदद देता है?

13 हमें इस बात का पक्का विश्‍वास होना चाहिए कि यहोवा अस्तित्त्व में है और वह “अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है।” (इब्रानियों 11:6) अंत के बारे में यीशु की भविष्यवाणी पहली सदी में एक छोटे पैमाने पर पूरी हुई थी। इससे हमारा यह विश्‍वास बढ़ता है कि उस भविष्यवाणी की बड़ी पूर्ति हमारे समय में ज़रूर होगी। और हमारा विश्‍वास हमें यहोवा के दिन का बेसब्री से इंतज़ार करने के लिए उकसाता है क्योंकि हमें यकीन है कि “[दर्शन की वह भविष्यवाणी] निश्‍चय पूरी होगी, उस में देर न होगी।”—हबक्कूक 2:3.

14. हमारे जागते रहने के लिए आशा क्यों ज़रूरी है?

14 हमारे पास जो पक्की आशा है, वह ‘हमारे प्राण के लिए लंगर’ की तरह है। यह हमें मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात में भी धीरज धरने का हौसला देती है, भले ही हमें परमेश्‍वर के वादों के पूरा होने का लंबे समय तक इंतज़ार क्यों न करना पड़े। (इब्रानियों 6:18, 19) मार्गारेट जो एक अभिषिक्‍त बहन है और उसकी उम्र 90 साल से ज़्यादा है। उसे बपतिस्मा पाए 70 साल बीत चुके हैं। वह कहती है: “मेरे पति को कैंसर था और सन्‌ 1963 में जब वे अपनी ज़िंदगी की आखरी साँसे गिन रहे थे, तो मैंने सोचा कि अगर संसार का अंत जल्दी आ जाता तो कितना अच्छा होता। मगर अब मुझे एहसास होता है कि उस वक्‍त मैं सिर्फ अपने बारे में ही सोच रही थी। तब हमें ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि संसार-भर में किस हद तक [प्रचार का] यह काम फैलेगा। आज भी ऐसी कई जगह हैं जहाँ यह काम बस शुरू ही हुआ है। इसलिए मुझे खुशी है कि यहोवा ने धीरज दिखाया।” प्रेरित पौलुस ने हमें यकीन दिलाया: “धीरज से परखा हुआ चरित्र निकलता है। परखा हुआ चरित्र आशा को जन्म देता है। और आशा हमें निराश नहीं होने देती।”—रोमियों 5:3-5, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।

15. अगर हमें लगता है कि हम एक लंबे अरसे से इंतज़ार करते आ रहे हैं, तो ऐसे में प्रेम हमें अपने काम में लगे रहने के लिए कैसे उकसाता है?

15 मसीही प्रेम एक बेमिसाल गुण है, क्योंकि हम जो कुछ भी करते हैं वह प्रेम की वजह से ही करते हैं। हमें यहोवा से प्रेम है इसीलिए हम उसकी सेवा करते हैं, और इस बात की परवाह नहीं करते कि उसके कार्यवाही करने का समय कौन-सा है। हम लोगों से भी प्यार करते हैं, और यही वजह है कि हम उन्हें राज्य का सुसमाचार सुनाते हैं। परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक अगर हमें यह काम ज़्यादा वक्‍त तक करना पड़े, और हमें लोगों के पास बार-बार जाना पड़े तब भी हम प्यार की खातिर प्रचार करना जारी रखेंगे। जैसा कि पौलुस ने लिखा था कि “विश्‍वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थाई हैं, पर इन सब में सब से बड़ा प्रेम है।” (1 कुरिन्थियों 13:13) प्रेम हमें धीरज धरने और जागते रहने में मदद देता है। “[प्रेम] सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है। प्रेम कभी टलता नहीं।”—1 कुरिन्थियों 13:7, 8.

“जो कुछ तेरे पास है, उसे थामे रह”

16. अपने हाथ ढीले करने के बजाय हमें कौन-सा रवैया दिखाना चाहिए?

16 आज हम एक बहुत ही नाज़ुक मोड़ पर जी रहे हैं जब संसार में होनेवाली घटनाएँ हमें बार-बार याद दिलाती हैं कि हम अंतिम दिनों के एकदम आखिरी दौर में आ पहुँचे हैं। (2 तीमुथियुस 3:1-5) यह हाथ ढीले करने का वक्‍त नहीं, बल्कि ‘हमारे पास जो कुछ है उसे थामे रहने’ का वक्‍त है। (प्रकाशितवाक्य 3:11) तो ‘प्रार्थना के लिए सचेत रहकर’ और विश्‍वास, आशा और प्रेम बढ़ाकर हम यह दिखाएँ कि हम हर तरह की परीक्षा का सामना करने के लिए तैयार हैं। (1 पतरस 4:7) हमारे पास प्रभु के काम में करने को बहुत कुछ है। परमेश्‍वर की भक्‍ति के कामों में लगे रहने से हम जागते रहेंगे।—2 पतरस 3:11.

17. (क) समय-समय पर जब हमें लगता है कि हमारी आशा पूरी नहीं हो रही है, तो हमें क्यों निराश नहीं होना चाहिए? (पेज 21 पर बक्स देखिए।) (ख) हम यहोवा की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं, और ऐसा करनेवाले कौन-सी आशीषें पाएँगे?

17 यिर्मयाह ने लिखा, “यहोवा मेरा भाग है, इस कारण मैं उस में आशा रखूंगा। जो यहोवा की बाट जोहते और उसके पास जाते हैं, उनके लिये यहोवा भला है। यहोवा से उद्धार पाने की आशा रखकर चुपचाप रहना भला है।” (विलापगीत 3:24-26) हममें से कुछ लोगों ने यहोवा से मिलनेवाले उद्धार के इंतज़ार में बहुत कम समय बिताया है, मगर कुछ लोगों के तो बरसों बीत गए हैं। फिर भी हमेशा-हमेशा तक जीने की आशा के सामने इंतज़ार में बीता समय तो मानो कुछ भी नहीं है! (2 कुरिन्थियों 4:16-18) यहोवा के तय किए गए वक्‍त का इंतज़ार करते समय हम ज़रूरी मसीही गुणों को बढ़ा सकते हैं और दूसरों को यहोवा के धीरज से फायदा उठाने में मदद दे सकते हैं। साथ ही, सच्चाई को अपनाने में उनकी मदद कर सकते हैं। तो फिर आइए हम सब जागते रहें! यहोवा की मिसाल पर चलकर धीरज दिखाएँ। उसने हमें जो आशा दी है, उसके लिए उसका एहसान मानें। और जब हम पूरी वफादारी के साथ जागते रहेंगे, तो अंनत जीवन की आशा पर हमारी पकड़ और मज़बूत होती जाएगी। तब भविष्यवाणी में दिए वादे हम पर ज़रूर पूरे होंगे: “[यहोवा] तुझे बढ़ाकर पृथ्वी का अधिकारी कर देगा; जब दुष्ट काट डाले जाएंगे, तब तू देखेगा।”—भजन 37:34.

[फुटनोट]

^ पैरा. 5 जनवरी 15, 2000 की प्रहरीदुर्ग के पेज 12-13 पर छः सबूत दिए गए हैं जो दिखाते हैं कि हम “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं। उन सबूतों पर दोबारा गौर करना फायदेमंद होगा।—2 तीमुथियुस 3:1.

^ पैरा. 7 भाषा-विज्ञानी डब्लयू. ई. वाइन बताते हैं कि “जागते रहो,” शब्द के लिए इस्तेमाल की गयी यूनानी क्रिया का शाब्दिक अर्थ है, ‘नींद भगाना’ और यह “बस जागे रहना नहीं बल्कि किसी मकसद से चौकन्‍ना रहना है।”

आप क्या जवाब देंगे?

• इस बात पर हम अपना विश्‍वास कैसे मज़बूत कर सकते हैं कि इस दुनिया का अंत नज़दीक है?

• पतरस, याकूब और यूहन्‍ना की मिसाल से हम क्या सीख सकते हैं?

• आध्यात्मिक मायनो में जागते रहने के लिए कौन-से तीन गुण हमारी मदद करेंगे?

• ‘जो कुछ हमारे पास है उसे थामे रहने’ का क्यों यह सही वक्‍त है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 21 पर बक्स/तसवीर]

‘धन्य है वह, जो प्रतिक्षा करेगा।’—दानिय्येल 12:12, बुल्के बाइबिल

मान लीजिए की एक पहरेदार को शक है कि एक चोर उस मकान में घुस सकता है, जिसका वह पहरा दे रहा है। रात होने पर पहरेदार ऐसी हर आहट को कान लगाकर सुनता है जिससे चोर के आने का अंदेशा हो सकता है। घंटों तक वह अपने आँख-कान खुले रखता है। पेड़ों से टकराती हुई तेज़ हवा की या बिल्ली के कुछ गिराने जैसी आवाज़ों से वह आसानी से धोखा खा सकता है।—लूका 12:39, 40.

उसी तरह हम भी जो “प्रभु यीशु मसीह के प्रगट होने की बाट जोहते” हैं, धोखा खा सकते हैं। (1 कुरिन्थियों 1:7) प्रेरितों ने सोचा कि यीशु अपने पुनरुत्थान के तुरंत बाद “इस्राएल को राज्य फेर देगा।” (प्रेरितों 1:6) सालों बाद, थिस्सलुनीके के मसीहियों को यह याद दिलाना पड़ा कि यीशु की उपस्थिति भविष्य में होनेवाली है। (2 थिस्सलुनीकियों 2:3, 8) यहोवा के दिन के आने की झूठी चेतावनियों से, शुरूआत के मसीहियों ने न तो धोखा खाया और न ही जीवन के मार्ग हटे।—मत्ती 7:13.

आज हमें भी लग सकता है कि दुनिया का अंत होने में देरी हो रही है, मगर ऐसा सोचकर ना तो हमें निराश होना चाहिए, और न ही ऊँघना चाहिए। एक चौकन्‍ना पहरेदार तरह-तरह की आवाज़ों से धोखा खा सकता है, मगर फिर भी उसे जागते रहना है! क्योंकि यही उसका काम है। मसीहियों के बारे में भी यह बात सच है।

[पेज 18 पर तसवीर]

क्या आपको पूरा यकीन है कि यहोवा का दिन बस आने ही वाला है?

[पेज 19 पर तसवीरें]

सभाएँ, प्रार्थना और अध्ययन की अच्छी आदतें हमें जागते रहने में मदद देती हैं

[पेज 22 पर तसवीर]

मार्गारेट की तरह आइए हम भी धीरज रखें और जागते रहने के लिए काम करते रहें