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दुःख-तकलीफ सहनेवालों को दिलासा

दुःख-तकलीफ सहनेवालों को दिलासा

दुःख-तकलीफ सहनेवालों को दिलासा

परमेश्‍वर इंसानों पर दुःख-तकलीफें क्यों आने देता है? सदियों से इस सवाल ने बहुत-से तत्त्वज्ञानियों और धर्मशास्त्रियों को उलझन में डाल रखा है। उनमें से कुछ दावे के साथ कहते हैं कि इन दुःख-तकलीफों का ज़िम्मेदार परमेश्‍वर ही है क्योंकि वह सर्वशक्‍तिमान है। दूसरी सदी की एक नकली मसीही किताब, द क्लेमेनटाइन होमिलीस के लेखक ने दावा किया कि परमेश्‍वर दो हाथों से दुनिया पर हुकूमत करता है। उसका “बायाँ हाथ” शैतान है और उसके ज़रिए वह लोगों को दुःख-तकलीफें और दर्द देता है जबकि अपने “दाएँ हाथ” यानी यीशु के ज़रिए उन्हें बचाता और उन पर आशीषें बरसाता है।

कुछ लोगों का मानना है कि परमेश्‍वर को दुःख-तकलीफों के लिए ज़िम्मेदार ठहराना तो दूर की बात है, वह इनकी इजाज़त भी नहीं दे सकता। ऐसे लोग इस बात से भी इनकार करते हैं कि दुःख-तकलीफ नाम की कोई चीज़ है। मॆरी बेकर एडी लिखती हैं: “बुराई बस एक भ्रम है और उसकी कोई ठोस बुनियाद नहीं है। अगर हम यह मानकर चलें कि हकीकत में पाप, बीमारी और मौत कुछ नहीं है, तो वे सब अपने आप गायब हो जाएँगे।”—विज्ञान और सेहत के साथ शास्त्रों की कुँजी, अँग्रेज़ी।

पूरे इतिहास में हुई भयंकर घटनाओं, खासकर पहले विश्‍वयुद्ध से लेकर आज तक हुए हादसों को देखकर कई लोग यह मानने लगे हैं कि दुःख-तकलीफों को दूर करना परमेश्‍वर के बस में नहीं है। यहूदी विद्वान डेविड वुल्फ सिल्वर्मन ने लिखा: “मेरे ख्याल से नात्ज़ियों के हाथों यहूदी और दूसरी जातियों के जनसंहार के बाद परमेश्‍वर को सर्वशक्‍तिमान कहना वाजिब नहीं है।” वे आगे कहते हैं: “अगर हम परमेश्‍वर को किसी तरह समझ सकते हैं तो हमें ऐसा समझना होगा कि वह भला भी है और साथ-साथ संसार में जो बुराई हो रही है उसकी भी इजाज़त देता है। और यह बात तब ही सच हो सकती है जब परमेश्‍वर सर्वशक्‍तिमान न हो।”

जब एक इंसान, बहुत बड़ी तकलीफ से गुज़र रहा होता है, तब उसे ऐसी बातों से कोई दिलासा नहीं मिलेगा जैसे कि दुःख-तकलीफों के लिए किसी-न-किसी तरह परमेश्‍वर ज़िम्मेदार है, इन्हें दूर करना उसके बस में नहीं है या दुःख-तकलीफें हकीकत नहीं बल्कि एक भ्रम हैं। और सबसे बड़ी बात तो यह है कि ये सारे दावे बाइबल में बताए परमेश्‍वर के गुणों से बिलकुल मेल नहीं खाते क्योंकि बाइबल के मुताबिक परमेश्‍वर न्यायी, शक्‍तिशाली और हमारी परवाह करनेवाला है। (अय्यूब 34:10, 12; यिर्मयाह 32:17; 1 यूहन्‍ना 4:8) तो फिर उसने दुःख-तकलीफों की इजाज़त क्यों दी, इस बारे में बाइबल क्या कहती है?

दुःख-तकलीफों की शुरूआत कैसे हुई?

परमेश्‍वर ने इंसानों को इसलिए नहीं बनाया था कि वे दुःख-तकलीफों की चक्की में पिसते रहें, बल्कि उसने पहले इंसानी जोड़े, आदम और हव्वा को एक सिद्ध मन और शरीर दिया था। उसने उनके लिए एक सुंदर बागीचे की रचना की जो उनका घर था और उन्हें एक ज़रूरी काम सौंपा जिसे पूरा करने पर उन्हें खुशी और संतुष्टि मिलती। (उत्पत्ति 1:27, 28, 31; 2:8) मगर हाँ, उनकी खुशी तब तक ही बरकरार रहती जब तक वे इस बात को मानकर चलते कि हुकूमत करने और अच्छे-बुरे का फैसला करने का अधिकार सिर्फ परमेश्‍वर को है। ‘भले या बुरे के ज्ञान का वृक्ष,’ परमेश्‍वर की आज्ञा को दर्शाता था। (उत्पत्ति 2:17) आदम और हव्वा उस पेड़ का फल न खाने की परमेश्‍वर की आज्ञा मानकर यह दिखा सकते थे कि वे परमेश्‍वर के अधीन रहना चाहते हैं। *

बड़े दुःख की बात है कि आदम और हव्वा ने परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़ दी। एक आत्मिक प्राणी जिसने परमेश्‍वर के खिलाफ बगावत की और जो बाद में शैतान कहलाया, उसने हव्वा को यकीन दिलाया कि परमेश्‍वर की आज्ञा मानने से उसे कोई फायदा नहीं होनेवाला। उसने कहा कि दरअसल परमेश्‍वर, हव्वा को एक कीमती चीज़ यानी आज़ादी और खुद के लिए अच्छे-बुरे का फैसला करने के हक से महरूम रख रहा है। शैतान ने दावा किया कि अगर हव्वा उस पेड़ का फल खा ले, तो ‘उसकी आंखें खुल जाएंगी और भले बुरे का ज्ञान पाकर वह परमेश्‍वर के तुल्य हो जाएगी।’ (उत्पत्ति 3:1-6; प्रकाशितवाक्य 12:9) आज़ादी की चाह में हव्वा इस कदर अंधी हो गयी कि उसने वह फल खा लिया जिसे परमेश्‍वर ने खाने से मना किया था, और बाद में आदम ने भी वही किया।

उसी दिन से आदम और हव्वा बगावत करने के अंजाम भुगतने लगे। परमेश्‍वर की हुकूमत को ठुकराने की वजह से वे ऐसी सुरक्षा और आशीषों से हाथ धो बैठे, जो परमेश्‍वर के अधीन रहने पर उन्हें मिल सकती थीं। परमेश्‍वर ने उन्हें फिरदौस से खदेड़ दिया और आदम से कहा: “भूमि तेरे कारण शापित है; तू उसकी उपज जीवन भर दु:ख के साथ खाया करेगा: और अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेगा, और अन्त में मिट्टी में मिल जाएगा।” (उत्पत्ति 3:17, 19) उसके बाद आदम और हव्वा बीमार पड़ने लगे, वे दर्द महसूस करने लगे, उनकी उम्र ढलने लगी और आखिर में मौत की नींद सो गए। इस तरह दुःख-तकलीफें, इंसान की ज़िंदगी का हिस्सा बन गयीं।—उत्पत्ति 5:29.

मसले को सुलझाना

कोई शायद पूछ सकता है, ‘क्या परमेश्‍वर आदम और हव्वा के पाप को माफ नहीं कर सकता था?’ नहीं, क्योंकि अगर परमेश्‍वर ऐसा करता, तो उनके दिल में परमेश्‍वर के अधिकार के लिए इज़्ज़त और भी कम हो जाती। साथ ही, इससे उन्हें और भी बगावत करने का बढ़ावा मिलता और तकलीफें और मुसीबतें बढ़ जातीं। (सभोपदेशक 8:11) एक और वजह यह है कि अगर परमेश्‍वर उनकी बगावत को बर्दाश्‍त कर लेता, तो वह भी उनके पाप में भागीदार होता। बाइबल का लेखक मूसा यह बात हमारे ध्यान में लाता है: “[परमेश्‍वर का] काम खरा है; और उसकी सारी गति न्याय की है। वह सच्चा ईश्‍वर है, उस में कुटिलता नहीं, वह धर्मी और सीधा है।” (व्यवस्थाविवरण 32:4) परमेश्‍वर के अपने कुछ उसूल हैं और उनके मुताबिक यह ज़रूरी था कि वह आदम और हव्वा को उनके किए की सज़ा भुगतने दे।

परमेश्‍वर ने बगावत का रवैया फैलानेवाले अदृश्‍य प्राणी शैतान के साथ-साथ पहले इंसानी जोड़े को तुरंत खत्म क्यों नहीं कर डाला? आखिर, उसके पास ताकत तो थी ही। अगर उस वक्‍त वह ऐसा करता, तो आदम और हव्वा से ऐसी संतान पैदा नहीं होती जिन्हें विरासत में मुसीबतें और मौत हासिल होती। लेकिन इस तरह ताकत दिखाने से यह हरगिज़ साबित नहीं होता कि अपने बुद्धिमान प्राणियों पर शासन करने का अधिकार सिर्फ परमेश्‍वर को है। इसके अलावा, आदम और हव्वा बेऔलाद ही मर जाते। और इससे यही साबित होता कि परमेश्‍वर अपना यह मकसद पूरा करने में नाकाम हो गया है कि पूरी धरती आदम और हव्वा की सिद्ध संतानों से भर जाए। (उत्पत्ति 1:28) और “परमेश्‍वर इंसानों की तरह नहीं है . . . [परमेश्‍वर] जो वादा करता है, उसे पूरा करता है; वह जो कहता है, पूरा होता है।”—गिनती 23:19, टूडेज़ इंग्लिश वर्शन।

यहोवा परमबुद्धिमान है इसलिए उसने सोच-समझकर ही फैसला किया है कि वह उनकी बगावत को एक तय किए समय तक चलते रहने की इजाज़त देगा। इस तरह बगावत करनेवालों को मोहलत देने से उन्हें यह देखने का पूरा मौका मिलता कि परमेश्‍वर से आज़ाद होने का क्या बुरा अंजाम हो सकता है। इतिहास साफ साबित कर देता कि इंसान को परमेश्‍वर के मार्गदर्शन की वाकई ज़रूरत है और कि परमेश्‍वर की हुकूमत इंसान और शैतान की हूकूमत से श्रेष्ठ है। इसके साथ-साथ परमेश्‍वर ने कुछ ऐसे काम भी किए हैं जिससे कि धरती पर उसका असली मकसद पूरा हो। उसने वादा किया कि एक “वंश” या “नस्ल” (किताब-ए-मुकद्दस) आएगी जो ‘शैतान के सिर को कुचल डालेगी।’ ऐसा करके वह हमेशा के लिए शैतान की बगावत और उसके बुरे अंजामों का नामो-निशान मिटा डालेगा।—उत्पत्ति 3:15.

वादा किया गया वह वंश यीशु मसीह था। पहले यूहन्‍ना 3:8 में हम पढ़ते हैं: “परमेश्‍वर का पुत्र इसलिए प्रगट हुआ, कि शैतान के कामों को नाश करे।” इसके लिए उसने अपना सिद्ध मानव जीवन बलिदान करके छुड़ौती की कीमत अदा की ताकि आदम की संतान, विरासत में मिले पाप और मौत की कैद से आज़ाद हो सके। (यूहन्‍ना 1:29; 1 तीमुथियुस 2:5, 6) जो यीशु के बलिदान पर सच्चे दिल से विश्‍वास करते हैं, उनसे यह वादा किया जाता है कि उन्हें दुःख-तकलीफों से हमेशा-हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा। (यूहन्‍ना 3:16; प्रकाशितवाक्य 7:17) मगर यह होगा कब?

दुःख-तकलीफों का अंत

परमेश्‍वर के अधिकार को ठुकराने की वजह से इंसान बेहिसाब तकलीफों का शिकार हो गया। इसलिए यह सही होता कि परमेश्‍वर एक खास इंतज़ाम करता जिसके ज़रिए वह अपना अधिकार इस्तेमाल करके इंसान की तकलीफों को दूर करे और धरती के बारे में अपना शुरूआती मकसद पूरा करे। परमेश्‍वर ने एक ऐसा ही इंतज़ाम किया है और उसके बारे में यीशु ने अपने चेलों को प्रार्थना करना सिखाया: “हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; . . . तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।”—तिरछे टाइप हमारे; मत्ती 6:9, 10.

परमेश्‍वर ने इंसानों को अपनी हुकूमत चलाने की जो मोहलत दी है, वह बस खत्म होने वाली है। बाइबल की भविष्यवाणी के मुताबिक परमेश्‍वर का राज्य सन्‌ 1914 में स्वर्ग में स्थापित हो चुका है और उसका राजा यीशु मसीह है। * यह राज्य बहुत जल्द सभी इंसानी सरकारों का सर्वनाश कर देगा।—दानिय्येल 2:44.

यीशु ने धरती पर थोड़े समय की अपनी सेवा के दौरान उन आशीषों की एक झलक दिखायी जो परमेश्‍वर के आनेवाले राज्य के ज़रिए मिलेंगी। सुसमाचार की किताबें बताती हैं कि यीशु ने गरीबों के साथ-साथ उन लोगों पर भी तरस खाया जिन्हें समाज में तुच्छ समझा जाता था। उसने बीमारों को चंगा किया, भूखों को रोटी दी और मरे हुओं को ज़िंदा किया। यहाँ तक कि प्राकृतिक शक्‍तियाँ भी उसका हुक्म मानती थीं। (मत्ती 11:5; मरकुस 4:37-39; लूका 9:11-16) ज़रा कल्पना कीजिए कि जब यीशु अपनी छुड़ौती बलिदान के फायदों का इस्तेमाल आज्ञा माननेवाले तमाम इंसानों के लिए करेगा, तो क्या ही बढ़िया नतीजा होगा! बाइबल वादा करती है कि मसीह के राज्य के ज़रिए परमेश्‍वर “[इंसान] की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी।”—प्रकाशितवाक्य 21:4.

दुःख-तकलीफ में पड़े लोगों के लिए दिलासा

यह जानकार हमें कितनी हिम्मत मिलती है कि हमसे प्यार करनेवाला, सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर यहोवा हमारी परवाह करता है और वह बहुत जल्द इंसानों को राहत पहुँचाने के लिए कदम उठाएगा! अगर एक इंसान को गंभीर बीमारी है, तो वह बिना आनाकानी के अपना इलाज करवाएगा, फिर चाहे इस इलाज में उसे कितना भी दर्द क्यों न हो। ठीक उसी तरह जब हम यह समझ लेंगे कि परमेश्‍वर मामलों को इस तरह सुलझाएगा जिससे हमें हमेशा-हमेशा की आशीषें मिलेंगी, तो आज की तकलीफें सहना, हमारे लिए आसान होगा।

रिकार्डो जिसका ज़िक्र पहले लेख में किया गया है, उसे बाइबल के वादों से दिलासा मिला। वह बताता है “मेरी पत्नी के गुज़रने के बाद मैं किसी से भी मिलना नहीं चाहता था, बस सबसे दूर अकेला रहना चाहता था। मगर कुछ ही समय बाद मुझे एहसास हुआ कि ऐसा करने से मेरी पत्नी वापस तो नहीं आएगी, इसके बदले मेरी मानसिक हालत और खराब होती चली जाएगी।” रिकार्डो ने अपनी इच्छा के सामने हार मानने के बजाय मसीही सभाओं में जाना और दूसरों को बाइबल का संदेश सुनाना जारी रखा। वह बताता है: “जब मैं छोटी-छोटी बातों के लिए भी प्रार्थना करता हूँ, तो वह उसका जवाब देता है। इससे मैं खुद को यहोवा के और करीब महसूस करता हूँ। परमेश्‍वर मुझसे प्यार करता है, इसी बात ने मुझे ज़िंदगी की सबसे बड़ी परीक्षा का सामना करने की हिम्मत दी।” वह कबूल करता है: “मुझे आज भी उसकी बहुत याद आती है, मगर अब मुझे पक्का यकीन है कि यहोवा हम पर जो भी तकलीफ आने देता है, उससे हमें हमेशा का नुकसान नहीं होगा।”

क्या आप रिकार्डो और उसके जैसे लाखों लोगों की तरह उस वक्‍त जीने की आशा रखते हैं जब आज की ये सारी दुःख-तकलीफें “स्मरण न रहेंगी और सोच विचार में भी न आएंगी”? (यशायाह 65:17) अगर आप बाइबल की इस सलाह को मानते हैं: “यहोवा [की] खोज में रहो, जब तक वह निकट है तब तक उसे पुकारो,” तो आप परमेश्‍वर के राज्य में मिलनेवाली आशीषों को पाने का पक्का भरोसा रख सकते हैं।—यशायाह 55:6.

इसलिए परमेश्‍वर के वचन की पढ़ाई और उसके अध्ययन को अपनी ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत दीजिए। परमेश्‍वर और उसके भेजे, यीशु मसीह को जानिए। परमेश्‍वर के सिद्धांतों के मुताबिक जीने की कोशिश कीजिए और इस तरह दिखाइए कि आप परमेश्‍वर की हुकूमत के अधीन रहना चाहते हैं। इस तरह की ज़िंदगी जीने से आपको खुशी मिलेगी, फिर चाहे आपको परीक्षाओं का भी सामना क्यों न करना पड़े। और भविष्य में आप ऐसी दुनिया में जी सकेंगे जहाँ किसी भी तरह की दुःख-तकलीफ नहीं होगी।—यूहन्‍ना 17:3.

[फुटनोट]

^ पैरा. 7 द जेरूसलेम बाइबल में, उत्पत्ति 2:17 का फुटनोट कहता है, “भले और बुरे के ज्ञान” का मतलब “क्या अच्छा है और क्या बुरा . . . उसका फैसला करने और उसके मुताबिक जीने का हक है। यह एक दावा है कि उन्हें परमेश्‍वर से पूरी तरह आज़ाद होकर जीने का हक है। इस हक का इस्तेमाल करके इंसान यह कबूल करने से इनकार करता है कि उसे परमेश्‍वर ने बनाया है।” फुटनोट आगे बताता है: “पहला पाप दरअसल परमेश्‍वर की हुकूमत के खिलाफ एक चुनौती था।”

^ पैरा. 17 सन्‌ 1914 से संबंधित भविष्यवाणियों के बारे में ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है किताब के अध्याय 10 और 11 में खुलकर समझाया गया है। इस किताब को यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

[पेज 6, 7 पर बक्स]

हम दुःख-तकलीफों का सामना कैसे कर सकते हैं?

“अपनी सारी चिन्ता [परमेश्‍वर] पर डाल दो।” (1 पतरस 5:7) जब हम किसी दुःख-तकलीफ से गुज़रते हैं या अपने किसी अज़ीज़ को दुःख-तकलीफ में तड़पते देखते हैं, तो यह लाज़िमी है कि हम उधेड़-बुन में पड़ जाते हैं, हमें गुस्सा आता है और लगता है मानो किसी को हमारी परवाह नहीं। ऐसे में हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, क्योंकि यहोवा हमारे जज़्बात समझता है। (निर्गमन 3:7; यशायाह 63:9) प्राचीन समय के वफादार लोगों की तरह हम भी यहोवा को अपने दिल का हाल बता सकते हैं और हमारे मन में जो भी चिंताएँ और शक हैं, उनके बारे में उसे खुलकर बता सकते हैं। (निर्गमन 5:22; अय्यूब 10:1-3; यिर्मयाह 14:19; हबक्कूक 1:13) यहोवा शायद कोई चमत्कार करके हमारी तकलीफें दूर न करे, मगर जब हम दिल से बिनती करते हैं, तो वह हमें समस्याओं से जूझने के लिए बुद्धि और ताकत दे सकता है।—याकूब 1:5, 6.

“जब तुम दर्दनाक परीक्षा का सामना करते हो तो हैरान मत हो मानो तुम्हारे साथ कोई अनोखी बात हो रही है।” (1 पतरस 4:12, न्यू इंटरनेशनल वर्शन) हालाँकि इस आयत में पतरस, सुसमाचार की खातिर सताए जाने की बात कर रहा है, मगर उसके शब्दों को हर तरह की तकलीफों पर बखूबी लागू किया जा सकता है, जिनका सामना शायद एक मसीही को करना पड़े। जैसे ज़िंदगी की बुनियादी ज़रूरतें पूरी नहीं कर पाना, बीमार पड़ना या अपने किसी अज़ीज़ की मौत का गम सहना। बाइबल कहती है कि हम सब “समय और संयोग के वश में” हैं। (सभोपदेशक 9:11) और आजकल दुनिया में हर इंसान को ऐसे हालात से गुज़रना पड़ता है। अगर हम यह याद रखेंगे, तो हम दुःख-तकलीफों और अचानक आनेवाली मुसीबतों का सामना कर पाएँगे। (1 पतरस 5:9) खासकर हमें इस बात से तसल्ली मिलेगी कि “यहोवा की आंखें धर्मियों पर लगी रहती हैं, और उसके कान भी उनकी दोहाई की ओर लगे रहते हैं।”—भजन 34:15; नीतिवचन 15:3; 1 पतरस 3:12.

“आशा में आनन्दित रहो।” (रोमियों 12:12) अपने बीते हुए सुनहरे पलों के बारे में सोचने के बजाय, हम इस बात पर मनन कर सकते हैं कि परमेश्‍वर कैसे सारी दुःख-तकलीफों का नामो-निशान मिटाने का अपना वादा पूरा करेगा। (सभोपदेशक 7:10) ऐसी पक्की आशा हमारी हिफाज़त करेगी, ठीक जैसे कि एक टोप हमारे सिर की हिफाज़त करता है। इसी आशा की बदौलत, हमारे लिए मुसीबत की मार सहना आसान हो सकता है। साथ ही, यह हमें धीरज धरने में भी मदद देगी ताकि दुःख-तकलीफों से हमें मानसिक, भावात्मक या आध्यात्मिक तरीके से हमेशा का नुकसान न हो।—1 थिस्सलुनीकियों 5:8.

[पेज 5 पर तसवीर]

आदम और हव्वा ने परमेश्‍वर की हुकूमत को ठुकरा दिया

[पेज 7 पर तसवीर]

परमेश्‍वर एक ऐसी दुनिया लाने का वादा करता है जिसमें दुःख-तकलीफें नहीं होंगी