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सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाने में, क्या बात हमारी मदद कर सकती है?

सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाने में, क्या बात हमारी मदद कर सकती है?

सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाने में, क्या बात हमारी मदद कर सकती है?

एक बार, अखबारों में नाटकों की आलोचना करनेवाला एक आदमी एक नाटक देखने गया। उसे वह नाटक कुछ खास पसंद नहीं आया और उसने उसके बारे में यूँ लिखा: “अगर आपको बेमतलब की या कोई घिसीपिटी चीज़ देखने का मन कर रहा हो तो आपको यह नाटक ज़रूर देखना चाहिए।” लेकिन उस नाटक को आयोजित करनेवालों ने एक विज्ञापन छापा जिसमें उसी आलोचक के शब्दों का इस तरह हवाला दिया गया: “आपको यह नाटक ज़रूर देखना चाहिए।” इस विज्ञापन में तो उस आलोचक के शब्दों को हू-ब-हू पेश किया गया, मगर उन्हें संदर्भ से बाहर निकालकर पेश किया गया, यानी उसके शुरू के कुछ शब्दों को छोड़कर लिखा गया। और इस तरह आलोचक की राय की एक गलत तसवीर पेश की गयी।

यह उदाहरण साफ दिखाता है कि हर बात या वाक्य का संदर्भ कितना मायने रखता है। अगर शब्दों को उसके संदर्भ से निकालकर पेश किया जाए, तो उनका बिलकुल गलत मतलब निकल सकता है। शैतान ने ऐसा ही किया था, जब उसने यीशु को गुमराह करने के लिए बाइबल की आयतों को तोड़-मरोड़कर उनका हवाला दिया। (मत्ती 4:1-11) लेकिन अगर हम किसी बात या जानकारी के संदर्भ पर गौर करते हैं तो हमें उसके बारे में और भी सही समझ मिलती है। इसलिए जब हम बाइबल की किसी आयत का अध्ययन करते हैं, तो हमेशा यह देखना सही होगा कि उस आयत के संदर्भ या उसकी आस-पास की आयतों में क्या जानकारी दी गयी है। ऐसा करने से हम और भी अच्छी तरह समझ पाएँगे कि लेखक किस विषय पर बात कर रहा था।

सावधानी बरतिए

संदर्भ का मतलब किसी खास शब्द या पैराग्राफ के पहले या बाद में लिखी या कही गयी बातें हैं। आम तौर पर इन बातों से यह ज़ाहिर होता है कि उस शब्द या पैराग्राफ का मतलब क्या है। संदर्भ का मतलब, किसी घटना, परिस्थिति से जुड़ी सच्चाइयाँ या उससे जुड़े हालात भी हो सकते हैं। तीमुथियुस को लिखे पौलुस के शब्दों से हमें यह जानने को मिलता है कि किस खास वजह से हमें किसी भी आयत के संदर्भ पर गौर करना चाहिए। पौलुस ने लिखा: “अपने आप को परमेश्‍वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करनेवाला ठहराने का प्रयत्न कर, जो लज्जित होने न पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो।” (2 तीमुथियुस 2:15) परमेश्‍वर के वचन का सही इस्तेमाल करने के लिए यह ज़रूरी है कि हम उसे अच्छी तरह समझें और फिर उसके बारे में दूसरों को खुलकर और सही-सही समझाएँ। ऐसा हम तभी करेंगे जब हमारे दिल में, बाइबल के रचनाकार यहोवा के लिए आदर होगा। और संदर्भ पर गौर करने से हमें यहोवा के लिए आदर पैदा करने में भी काफी मदद मिलेगी।

तीमुथियुस के नाम दूसरी पत्री का संदर्भ

मिसाल के तौर पर, आइए हम बाइबल की किताब, दूसरे तीमुथियुस पर गौर करें। * सबसे पहले, हम इसके संदर्भ को जानने के लिए कुछ ऐसे सवाल पूछ सकते हैं: तीमुथियुस के नाम दूसरी पत्री को किसने लिखा? उसे कब लिखा गया? उसे किन हालात में लिखा गया? इन सवालों के बाद हम पूछ सकते हैं, “तीमुथियुस” के हालात कैसे थे, जिसके नाम पर इस किताब का नाम रखा गया है? इस किताब में दी गयी जानकारी की उसे क्यों ज़रूरत थी? इन सवालों के जवाब मालूम करने से हम और भी अच्छी तरह जान पाएँगे कि इस किताब में दी गयी जानकारी कितनी अनमोल है और इससे आज हमें कैसे फायदा हो सकता है।

दूसरे तीमुथियुस की किताब की शुरूआती आयतों से पता चलता है कि यह तीमुथियुस के नाम प्रेरित पौलुस की लिखी एक पत्री है। दूसरी आयतों से मालूम होता है कि पौलुस ने यह पत्री तब लिखी जब वह सुसमाचार सुनाने की वजह से कैद में था। बहुत-से लोग पौलुस को छोड़ चुके थे, इसलिए उसे लग रहा था कि उसकी ज़िंदगी की आखिरी घड़ी आ पहुँची है। (2 तीमुथियुस 1:15, 16; 2:8-10; 4:6-8) इसलिए हम कह सकते हैं कि उसने यह किताब सा.यु. 65 के करीब रोम में दूसरी बार कैद में रहते वक्‍त लिखी होगी। शायद उसके फौरन बाद सम्राट नीरो ने उसे मौत की सज़ा सुना दी।

यह है दूसरे तीमुथियुस की किताब का संदर्भ। फिर भी, गौर करनेवाली एक बात यह है कि पौलुस ने तीमुथियुस को लिखी इस पत्री में अपनी तकलीफों की शिकायत नहीं की। इसके बजाय, उसने अपने साथी तीमुथियुस को आनेवाले कठिन समयों की चेतावनी दी और उसे उकसाया कि वह किसी भी बात से अपना ध्यान न भटकने दे। उसने उसका हौसला बढ़ाया कि वह “बलवन्त” होता जाए और पौलुस की हिदायतें दूसरों को भी बताए। इसका नतीजा यह होगा कि वे दूसरों की मदद करने के और भी काबिल बनेंगे। (2 तीमुथियुस 2:1-7) तकलीफों के दौर से गुज़रते वक्‍त भी बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की फिक्र करने की क्या ही बेहतरीन मिसाल! और उसकी सलाह आज हमारे लिए भी कितनी फायदेमंद है!

पौलुस ने तीमुथियुस को “प्रिय पुत्र” कहा। (2 तीमुथियुस 1:2) मसीही यूनानी शास्त्र में अकसर जवान तीमुथियुस का ज़िक्र पौलुस के एक वफादार साथी के तौर पर किया गया है। (प्रेरितों 16:1-5; रोमियों 16:21; 1 कुरिन्थियों 4:17) जब पौलुस ने तीमुथियुस को यह खत लिखा, तब उसकी उम्र शायद तीस से ऊपर थी, फिर भी, उसे जवान ही माना गया। (1 तीमुथियुस 4:12) तब तक उसने वफादार बने रहने का अच्छा नाम कमाया, शायद उसने करीब 14 साल तक ‘पौलुस के साथ परिश्रम’ किया। (फिलिप्पियों 2:19-22) हालाँकि उस वक्‍त तीमुथियुस जवान ही था, फिर भी पौलुस ने उसे दूसरे प्राचीनों को यह सलाह देने की ज़िम्मेदारी सौंपी कि वे ‘शब्दों पर तर्क-वितर्क न करें,’ बल्कि विश्‍वास और धीरज जैसे अहम मसलों पर ज़्यादा ध्यान दें। (2 तीमुथियुस 2:14) तीमुथियुस को, कलीसिया में ओवरसियर और सहायक सेवक नियुक्‍त करने का भी अधिकार दिया गया था। (1 तीमुथियुस 5:22) लेकिन लगता है कि वह अपने अधिकार का इस्तेमाल करने से थोड़ा हिचकिचाता था।—2 तीमुथियुस 1:6, 7.

इस जवान प्राचीन के सामने कुछ गंभीर चुनौतियाँ आयीं। एक तो यह थी कि कलीसिया में हुमिनयुस और फिलेतुस नाम के दो आदमी, यह सिखाकर ‘कितनों के विश्‍वास को उलट पुलट कर रहे थे’ कि “पुनरुत्थान हो चुका है।” (2 तीमुथियुस 2:17, 18) वे मानते थे कि सिर्फ एक ही पुनरुत्थान है और वह है आध्यात्मिक मायनो में पुनरुत्थान जो कि मसीहियों के लिए पहले से हो चुका है। वे शायद संदर्भ पर गौर किए बिना पौलुस के इन शब्दों का हवाला दे रहे थे कि मसीही अपने पापों में मरे हुए थे, मगर परमेश्‍वर की आत्मा के ज़रिए जिलाए गए। (इफिसियों 2:1-6) पौलुस ने धर्म-त्याग के इस तरह बढ़ने के बारे में पहले से चेतावनी दी थी। उसने लिखा: “ऐसा समय आएगा, कि लोग खरा उपदेश न सह सकेंगे . . . और अपने कान सत्य से फेरकर कथा-कहानियों पर लगाएंगे।” (2 तीमुथियुस 4:3, 4) समय से पहले दी गयी इस चेतावनी से तीमुथियुस ने जाना कि उसे प्रेरित की सलाह पर तुरंत अमल करने की सख्त ज़रूरत है।

तीमुथियुस के नाम दूसरी पत्री आज भी फायदेमंद

अभी तक हमने देखा कि पौलुस ने कम-से-कम तीन कारणों से दूसरे तीमुथियुस की पत्री लिखी: (1) वह जानता था कि उसके जीवन की आखिरी घड़ी नज़दीक आ चुकी है, इसलिए वह उस वक्‍त के लिए तीमुथियुस को तैयार करने में लग गया जब वह उसकी मदद करने के लिए नहीं रहेगा। (2) वह चाहता था कि तीमुथियुस इस काबिल बने कि वह अपनी देखरेख में रहनेवाली कलीसियाओं की धर्म-त्याग और दूसरे बुरे प्रभावों से हिफाज़त कर सके। (3) वह तीमुथियुस को उकसाना चाहता था कि वह यहोवा की सेवा में लगा रहे और झूठी शिक्षाओं के खिलाफ डटे रहने के लिए शास्त्र के सही ज्ञान पर भरोसा करे।

दूसरे तीमुथियुस की किताब का संदर्भ जानने से इस किताब की अहमियत हमारे लिए और बढ़ जाती है। आज भी हुमिनयुस और फिलेतुस जैसे धर्म-त्यागी हैं, जो खुद के विचारों को फैलाकर हमारे विश्‍वास को तोड़ना चाहते हैं। इसके अलावा, पौलुस ने जिन ‘कठिन समयों’ की भविष्यवाणी की थी वे आज हमारे चारों तरफ नज़र आ रहे हैं। कई लोगों ने पौलुस की इस चेतावनी को पूरा होते हुए देखा है: “जितने मसीह यीशु में भक्‍ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएंगे।” (2 तीमुथियुस 3:1, 12) ऐसे में हम दृढ़ कैसे खड़े रह सकते हैं? तीमुथियुस की तरह हमें भी उन लोगों की सलाह को मानना चाहिए जिन्होंने सालों से यहोवा की सेवा की है। और निजी अध्ययन, प्रार्थना और मसीही संगति के ज़रिए हम यहोवा का अपार अनुग्रह पाकर ‘बलवन्त हो सकते हैं।’ इसके अलावा, सही ज्ञान की ताकत पर पूरा यकीन रखते हुए हम पौलुस की इस सलाह को मान सकते है: ‘जो खरी बातें तू ने मुझसे सुनी हैं उन को अपना आदर्श बनाकर रख।’—2 तीमुथियुस 1:13.

“खरी बातें”

पौलुस ने जिन ‘खरी बातों’ का ज़िक्र किया, वे क्या हैं? उसने इन शब्दों का इस्तेमाल सच्ची मसीही शिक्षा के लिए किया। तीमुथियुस को लिखी अपनी पहली पत्री में पौलुस ने समझाया कि ‘खरी बातें’ असल में ‘हमारे प्रभु यीशु मसीह की बातें’ हैं। (1 तीमुथियुस 6:3) इन खरी बातों को मानकर चलने से एक व्यक्‍ति समझदार बनता है, उसका मिजाज़ प्यार-भरा होता है और वह दूसरों के लिए लिहाज़ दिखाता है। यीशु की सेवा और शिक्षाएँ पूरी बाइबल में दी गयी शिक्षाओं से मेल खाती हैं, इसलिए ‘खरी बातों’ का मतलब पूरी बाइबल में दी गयी शिक्षाएँ भी हो सकता है।

सभी प्राचीनों की तरह, तीमुथियुस के लिए भी खरी बातें एक “अच्छी अमानत” थी, जिनकी उसे हिफाज़त करनी थी। (2 तीमुथियुस 1:13, 14, किताब-ए-मुकद्दस) तीमुथियुस को ‘वचन का प्रचार करना था; समय और असमय तैयार रहना, सब प्रकार की सहनशीलता, और शिक्षा के साथ उलाहना देना, और डांटना, और समझाना था।’ (2 तीमुथियुस 4:2) अगर हम यह समझ लें कि तीमुथियुस के दिनों में धर्म-त्यागियों की शिक्षाएँ किस तरह फैलती जा रही थीं, तो हम इस बात की कदर कर पाएँगे कि क्यों पौलुस ने खरी बातों के बारे में जल्द-से-जल्द सिखाने पर ज़ोर दिया। और हम यह भी समझ पाएँगे कि क्यों तीमुथियुस को झुंड की हिफाज़त करने के लिए ‘उलाहना देना, डाँटना और समझाना था।’

मगर तीमुथियुस को किन लोगों के पास जाकर वचन का प्रचार करना था? संदर्भ दिखाता है कि तीमुथियुस एक प्राचीन था, तो फिर उसे मसीही कलीसिया को ही यह वचन प्रचार करना था। विरोधी उस पर दबाव डालते, फिर भी तीमुथियुस को अपना आध्यात्मिक संतुलन बनाए रखना था और हिम्मत के साथ परमेश्‍वर के वचन की घोषणा करनी थी। उसे इंसानी तत्त्वज्ञान, खुद के विचारों या बेकार की अटकलों का प्रचार नहीं करना था। यह सच है कि जो बुराई करने में लगे थे, तीमुथियुस को उनके विरोध का सामना करना पड़ता। (2 तीमुथियुस 1:6-8; 2:1-3, 23-26; 3:14, 15) इसके बावजूद अगर तीमुथियुस, पौलुस की सलाह मानता तो वह भी पौलुस की तरह धर्म-त्याग को रोकनेवाली एक दीवार बनकर खड़ा रहता।—प्रेरितों 20:25-32.

क्या वचन का प्रचार करने के बारे में पौलुस की सलाह, कलीसिया के बाहरवालों को प्रचार करने पर भी लागू होती है? जी हाँ, संदर्भ दिखाता है कि यह वाकई लागू होती है। पौलुस ने आगे कहा: “पर तू सब बातों में सावधान रह, दुख उठा, सुसमाचार प्रचार का काम कर और अपनी सेवा को पूरा कर।” (2 तीमुथियुस 4:5) अविश्‍वासियों को उद्धार की खुशखबरी सुनाना, मसीही सेवा का सबसे अहम पहलू है। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) और जिस तरह कलीसिया में परमेश्‍वर का वचन “असमय” भी प्रचार किया जाता है, ठीक उसी तरह हम कलीसिया के बाहर भी मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात में वचन को प्रचार करने में लगे रहते हैं।—1 थिस्सलुनीकियों 1:6.

परमेश्‍वर का प्रेरित वचन ही हमारे प्रचार और सिखाने के काम की बुनियाद है। हमें बाइबल पर पूरा-पूरा भरोसा है। पौलुस ने तीमुथियुस को बताया: “हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है।” (2 तीमुथियुस 3:16) अकसर इन शब्दों का हवाला यह साबित करने के लिए दिया जाता है कि बाइबल, परमेश्‍वर का प्रेरित वचन है। मगर इनको लिखने के पीछे पौलुस का मकसद क्या था?

पौलुस एक प्राचीन से बात कर रहा था जिस पर कलीसिया में ‘उपदेश देने, समझाने, सुधारने और धर्म की शिक्षा देने’ की भारी ज़िम्मेदारी थी। इसलिए वह तीमुथियुस को याद दिला रहा था कि वह परमेश्‍वर के वचन की बुद्धि पर भरोसा करे जिसकी उसे बालकपन से शिक्षा दी गयी थी। तीमुथियुस जैसे प्राचीनों को कभी-कभी गलत काम करनेवालों को सुधारने के लिए ताड़ना देने की ज़रूरत पड़ती है। ऐसा करते वक्‍त उन्हें हमेशा बाइबल की मदद लेनी चाहिए। इसके अलावा, क्योंकि बाइबल परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखी गयी है, इसलिए उसके आधार पर दी जानेवाली ताड़ना असल में परमेश्‍वर की तरफ से है। जो कोई बाइबल से दी जानेवाली ताड़ना को ठुकराता है, वह असल में किसी इंसान के विचारों को नहीं बल्कि यहोवा की सलाह को ठुकरा रहा है।

दूसरे तीमुथियुस की किताब में परमेश्‍वर के ज्ञान का कितना बड़ा भंडार है! और संदर्भ को मन में रखकर इसमें दी गयी सलाहों की जाँच करने से, उनके बारे में हमारी समझ और भी गहरी होती है! इस लेख में हमने सिर्फ इस किताब पर सरसरी नज़र डाली है, इस किताब में तो परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखी और भी बहुत-सी बढ़िया जानकारी है। मगर यह इस बात को समझने के लिए काफी है कि जब हम बाइबल पढ़ते हैं तो उसके संदर्भ पर गौर करना कितना मददगार है। ऐसा करने से वाकई हम ‘सत्य के वचन’ को ठीक रीति से काम में लाएँगे।

[फुटनोट]

^ पैरा. 7 ज़्यादा जानकारी के लिए इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्‌ का भाग 2, पेज 1105-8 देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

[पेज 27 पर तसवीर]

पौलुस ने चाहा कि तीमुथियुस इस काबिल बन जाए कि वह कलीसियाओं की हिफाज़त करे

[पेज 30 पर तसवीर]

पौलुस ने तीमुथियुस को याद दिलाया कि वह परमेश्‍वर के वचन में दी गयी बुद्धि पर भरोसा रखे