क्या आपको वाकई सुसमाचार पर विश्वास है?
क्या आपको वाकई सुसमाचार पर विश्वास है?
“परमेश्वर का राज्य निकट आ गया है; मन फिराओ और सुसमाचार पर विश्वास करो।”—मरकुस 1:15.
1, 2. आप मरकुस 1:14,15 में लिखी बातों का मतलब कैसे समझाएँगे?
बात सा.यु. 30 की है। यीशु मसीह गलील में प्रचार का अपना अहम काम शुरू करता है। वह गलील के रहनेवालों को “परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार” सुनाता है और उसकी इस बात का बहुतों पर गहरा असर होता है: “समय [“नियत समय”, NW] पूरा हुआ है, और परमेश्वर का राज्य निकट आ गया है; मन फिराओ और सुसमाचार पर विश्वास करो।”—मरकुस 1:14, 15.
2 वह “नियत समय” इस बात का था कि यीशु अपनी सेवा शुरू करे और लोग एक ऐसा फैसला करें जिससे वे परमेश्वर की मंज़ूरी पा सकें। (लूका 12:54-56) उस वक्त राज्य का नियुक्त राजा यीशु, लोगों के बीच मौजूद था इसलिए कहा जा सकता था कि “परमेश्वर का राज्य निकट आ गया है।” यीशु के संदेश ने नेक दिल इंसानों पर ऐसा असर किया कि उन्होंने अपने बुरे कामों से पश्चाताप किया। मगर उन्होंने यह कैसे दिखाया कि वे “सुसमाचार पर विश्वास” करते हैं? और हम भी यह विश्वास कैसे दिखा सकते हैं?
3. क्या कदम उठाकर लोगों ने दिखाया है कि वे सुसमाचार पर विश्वास करते हैं?
3 यीशु की तरह प्रेरित पतरस ने भी लोगों को पश्चाताप करने के लिए उकसाया। सामान्य युग 33 के पिन्तेकुस्त के दिन यरूशलेम में रहनेवाले यहूदियों को भाषण देते वक्त, पतरस ने कहा: “मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले; तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे।” यह सुनकर हज़ारों लोगों ने पश्चाताप किया, बपतिस्मा लिया और वे यीशु के चेले बन गए। (प्रेरितों 2:38, 41; 4:4) सामान्य युग 36 में अन्यजातियों ने भी पश्चाताप करके वही कदम उठाए। (प्रेरितों 10:1-48) आज भी हज़ारों लोग सुसमाचार पर विश्वास रखने की वजह से अपने पापों से पश्चाताप करते, अपना जीवन परमेश्वर को समर्पित करते और बपतिस्मा लेते हैं। ऐसे लोगों ने उद्धार के सुसमाचार पर यकीन किया है और वे यीशु के छुड़ौती बलिदान पर अपना विश्वास ज़ाहिर कर रहे हैं। इसके अलावा, वे धार्मिकता की राह पर चल रहे हैं और उन्होंने परमेश्वर के राज्य के पक्ष में होने का फैसला किया है।
4. विश्वास का मतलब क्या है?
4 मगर विश्वास का मतलब क्या है? प्रेरित पौलुस ने लिखा: “विश्वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है।” (इब्रानियों 11:1) विश्वास होने पर हमें परमेश्वर के वचन में दिए वादों के बारे में इतना यकीन होता है मानो वे पूरे हो चुके हों। विश्वास की तुलना ज़मीन के ऐसे पट्टे से की जा सकती है जो इस बात का ठोस सबूत होता है कि हम फलाना ज़मीन के मालिक हैं। विश्वास एक “प्रमाण” भी है कि हमें अनदेखी बातों पर यकीन है। हमारी सोचने-समझने की काबिलीयत और कदरदानी से भरा दिल उन बातों पर यकीन पैदा करता है जो अब तक पूरी नहीं हुईं।—2 कुरिन्थियों 5:7; इफिसियों 1:18.
हमें विश्वास की ज़रूरत है!
5. विश्वास का होना क्यों इतना ज़रूरी है?
5 हमारे अंदर आध्यात्मिक बातों के लिए भूख-प्यास तो पैदाइश से होती है, मगर विश्वास पैदाइशी नहीं होता। सच तो यह है कि “हर एक में विश्वास नहीं” होता। (2 थिस्सलुनीकियों 3:2) लेकिन मसीहियों में विश्वास का होना ज़रूरी है, तभी उन पर यहोवा के वादे पूरे होंगे। (इब्रानियों 6:12) पौलुस ने बहुत-से विश्वासी स्त्री-पुरुषों की मिसाल देने के बाद यह लिखा: “इस कारण जब कि गवाहों का ऐसा बड़ा बादल हम को घेरे हुए है, तो आओ, हर एक रोकनेवाली वस्तु, और उलझानेवाले पाप को दूर करके, वह दौड़ जिस में हमें दौड़ना है, धीरज से दौड़ें। और विश्वास के कर्त्ता और सिद्ध करनेवाले यीशु की ओर ताकते रहें।” (इब्रानियों 12:1, 2) “उलझानेवाला पाप” का क्या मतलब है? इसका मतलब है, विश्वास की कमी होना, यहाँ तक कि पहले जो विश्वास था, उसका भी मिट जाना। अपने विश्वास को मज़बूत बनाए रखने के लिए हमें ‘यीशु की ओर ताकते रहना’ चाहिए और उसके नक्शे-कदम पर चलना चाहिए। और यह भी ज़रूरी है कि हम अनैतिक कामों से दूर रहें, शरीर की इच्छाओं को काबू में रखें, रुपए-पैसे की लालच में न पड़ें, दुनियावी तत्त्वज्ञान और ऐसे रीति-रिवाज़ को ठुकराएँ जो बाइबल के खिलाफ हैं। (गलतियों 5:19-21; कुलुस्सियों 2:8; 1 तीमुथियुस 6:9, 10; यहूदा 3, 4) इसके अलावा, हमें मानना चाहिए कि परमेश्वर हमारे साथ है और उसके वचन में दी गयी सलाह सचमुच हमारी भलाई के लिए है।
6, 7. विश्वास के लिए प्रार्थना करना क्यों सही है?
6 ऐसी बात नहीं कि अगर हमारे अंदर विश्वास पैदा करने का अटल इरादा हो तो हम अपने बलबूते पर विश्वास पैदा करने में कामयाब हो जाएँगे। विश्वास, परमेश्वर की पवित्र आत्मा यानी उसकी सक्रिय शक्ति का एक फल है। (गलतियों 5:22, 23) तो फिर मज़बूत विश्वास पैदा करने के लिए हमें क्या करना होगा? यीशु ने कहा था: “जब तुम . . . अपने लड़केबालों को अच्छी वस्तुएं देना जानते हो, तो स्वर्गीय पिता अपने मांगनेवालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा।” (लूका 11:13) जी हाँ, हमें परमेश्वर से पवित्र आत्मा देने की बिनती करनी होगी क्योंकि पवित्र आत्मा ही हमारे अंदर ऐसा विश्वास पैदा कर सकती है जिससे कि हम मुश्किल-से-मुश्किल हालात में भी परमेश्वर की मरज़ी पूरी कर सकें।—इफिसियों 3:20.
7 परमेश्वर से यह प्रार्थना करना सही होगा कि वह हमारे विश्वास को मज़बूत करे। जब यीशु एक जवान लड़के में से दुष्टात्मा निकालने जा रहा था तब उसके पिता ने यीशु से बिनती की: “मैं विश्वास करता हूँ, मेरे अल्पविश्वास की कमी पूरी कीजिए।” (मरकुस 9:24, बुल्के बाइबल) एक बार यीशु के चेलों ने उससे कहा: “हमारा विश्वास बढ़ा।” (लूका 17:5) तो आइए अपने विश्वास को बढ़ाने के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करें और भरोसा रखें कि वह ऐसी प्रार्थनाओं का जवाब ज़रूर देता है।—1 यूहन्ना 5:14.
परमेश्वर के वचन पर विश्वास बहुत ज़रूरी
8. परमेश्वर के वचन पर विश्वास होने से हमें क्या फायदा होगा?
8 यीशु ने अपना जीवन बलिदान करने से कुछ ही समय पहले अपने चेलों से कहा: “तुम्हारा मन व्याकुल न हो, तुम परमेश्वर पर विश्वास रखते हो मुझ पर भी विश्वास रखो।” (यूहन्ना 14:1) मसीही होने के नाते हमें परमेश्वर और उसके बेटे, दोनों पर विश्वास है। मगर परमेश्वर के वचन के बारे में क्या? हमें यह पूरा विश्वास होना चाहिए कि बाइबल हमारे लिए सबसे बेहतरीन सलाह और हिदायतें देती है। इस विश्वास के साथ उसका अध्ययन करने और उसमें लिखी बातों पर अमल करने से हमारी ज़िंदगी बेहतरीन बन सकती है।—इब्रानियों 4:12.
9, 10. याकूब 1:5-8 में विश्वास के बारे में जो बताया गया है, उसका आप क्या मतलब समझाएँगे?
9 असिद्ध होने की वजह से हम इंसानों की ज़िंदगी मुसीबतों से भरी होती है। लेकिन परमेश्वर के वचन पर विश्वास होने से हम उनका सामना कर पाएँगे। (अय्यूब 14:1) मान लीजिए कि हम एक परीक्षा का सामना करना नहीं जानते। ऐसे में परमेश्वर का वचन सलाह देता है कि हमें क्या करना चाहिए: “यदि तुम में से किसी को बुद्धि की घटी हो, तो परमेश्वर से मांगे, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है; और उस को दी जाएगी। पर विश्वास से मांगे, और कुछ सन्देह न करे; क्योंकि सन्देह करनेवाला समुद्र की लहर के समान है जो हवा से बहती और उछलती है। ऐसा मनुष्य यह न समझे, कि मुझे प्रभु से कुछ मिलेगा। वह व्यक्ति दुचित्ता है, और अपनी सारी बातों में चंचल है।”—याकूब 1:5-8.
10 यहोवा परमेश्वर इस बात के लिए हमारी निंदा नहीं करेगा कि हमें बुद्धि की कमी है और हम उसके लिए प्रार्थना करते हैं। इसके बजाय, वह हमें अपनी परीक्षा को एक सही नज़रिए से देखने में मदद देगा। हो सकता है कि हमारे भाई-बहन हमें ऐसी आयतें याद दिलाएँ जिनसे हमें परीक्षा का सामना करने में मदद मिले या खुद बाइबल अध्ययन करते वक्त ऐसी आयतों की तरफ हमारा ध्यान जा सकता है। या फिर यहोवा की पवित्र आत्मा किसी और तरीके से हमें मार्गदर्शन दे सकती है। अगर हम ‘विश्वास से माँगते रहें, और सन्देह न करें’ तो हमारा स्वर्गीय पिता हमें परीक्षाओं का सामना करने की बुद्धि ज़रूर देगा। लेकिन अगर हम समुद्र की लहरों की तरह होंगे जो हवा में बहती और उछलती रहती हैं, तो हम परमेश्वर से कुछ पाने की उम्मीद नहीं रख सकते। ऐसा क्यों? क्योंकि इससे यही ज़ाहिर होगा कि हम प्रार्थना करने में और दूसरी बातों में, यहाँ तक कि परमेश्वर पर विश्वास दिखाने में भी संदेह कर रहे हैं और स्थिर नहीं हैं। इसलिए हमें परमेश्वर के वचन और उससे मिलनेवाली
हिदायतों पर दृढ़ विश्वास रखना चाहिए। आइए अब हम कुछ मिसालों पर गौर करके देखें कि बाइबल कैसे हमारी मदद कर सकती है और हमें मार्गदर्शन दे सकती है।विश्वास और रोज़ी रोटी
11. हमारी रोज़ाना की ज़रूरतों के मामले में परमेश्वर के वचन पर विश्वास रखने से हमें क्या दिलासा मिलता है?
11 अगर आज हम घोर तंगहाली या गरीबी में जी रहे हों, तो हम क्या कर सकते हैं? परमेश्वर के वचन पर विश्वास होने से हमें यह पक्की आशा है कि यहोवा हमारी रोज़ाना की ज़रूरतें पूरी करेगा और आगे चलकर नयी दुनिया में उससे प्यार करनेवाले सभी लोगों के लिए वह अच्छी चीज़ें बहुतायत में मुहैया कराएगा। (भजन 72:16; लूका 11:2, 3) यहोवा ने एक बार अकाल के वक्त अपने भविष्यवक्ता एलिय्याह के लिए जिस तरह भोजन का इंतज़ाम किया था, उस पर मनन करने से हमें हिम्मत मिलेगी। बाद में, परमेश्वर ने चमत्कार करके आटे और तेल का इंतज़ाम किया जिससे कि एक स्त्री, उसके बेटे और एलिय्याह को खाने का मुहताज नहीं होना पड़ा। (1 राजा 17:2-16) उसी तरह यरूशलेम पर बाबुल की घेराबंदी के दौरान यहोवा ने भविष्यवक्ता यिर्मयाह की ज़रूरतें पूरी की। (यिर्मयाह 37:21) हालाँकि यिर्मयाह और एलिय्याह के पास खाने-पीने को बहुत कम था, फिर भी यहोवा ने उनका पूरा खयाल रखा। आज भी यहोवा उन लोगों की देखभाल करता है जो उस पर विश्वास ज़ाहिर करते हैं।—मत्ती 6:11, 25-34.
12. विश्वास होने से हमें रोज़ी-रोटी कमाने में कैसे मदद मिलेगी?
12 यह सच है कि बाइबल के सिद्धांतों पर चलने से हम दौलतमंद तो नहीं बन जाएँगे, मगर हम दो वक्त की रोटी का ज़रूर इंतज़ाम कर पाएँगे। इसे समझने के लिए इस बात पर ध्यान दीजिए: बाइबल हमें सलाह देती है कि हम अपने काम में ईमानदार, निपुण और मेहनती हों। (नीतिवचन 22:29; सभोपदेशक 5:18, 19; इफिसियों 4:28) अच्छे कर्मचारी होने का नाम कमाना कितना फायदेमंद होगा, इसे हमें कभी कम नहीं समझना चाहिए। यहाँ तक कि जिन जगहों में अच्छी तनख्वाहवाली नौकरी पाना बहुत मुश्किल है, वहाँ भी ईमानदार, हुनरमंद और मेहनती लोगों के लिए नौकरी पाने की गुंजाइश ज़्यादा रहती है। हो सकता है कि ऐसे लोग इतने रईस न हों, मगर ऐसा भी नहीं है कि उन्हें खाने-पहनने को नहीं मिलता। इसके अलावा उन्हें इस बात की संतुष्टि भी रहती है कि वे अपनी मेहनत की रोटी खाते हैं।—2 थिस्सलुनीकियों 3:11, 12.
विश्वास हमें गम सहने में मदद देता है
13, 14. विश्वास हमें गम सहने की ताकत कैसे देता है?
13 परमेश्वर का वचन बताता है कि जब हमारे किसी अज़ीज़ की मौत हो जाती है, तो ऐसे में मातम मनाना स्वाभाविक है। जब वफादार कुलपिता इब्राहीम की पत्नी सारा गुज़र गयी, तो उसने भी शोक मनाया। (उत्पत्ति 23:2) जब दाऊद को अपने बेटे अबशालोम की मौत की खबर मिली, तो उसका कलेजा फट गया। (2 शमूएल 18:33) यहाँ तक कि जब सिद्ध इंसान यीशु को अपने दोस्त लाजर की मौत के बारे में पता चला, तो उसकी आँखें भर आयीं। (यूहन्ना 11:35, 36) जब हमारे किसी अज़ीज़ की मौत हो जाती है तो हम भी शायद पूरी तरह टूट जाएँ, लेकिन बाइबल में बताए वादों पर विश्वास होने से हम अपने दिल का दर्द सह पाएँगे।
प्रेरितों 24:15) हमें परमेश्वर के इस इंतज़ाम पर विश्वास रखना चाहिए कि वह मरे हुए अनगिनत लोगों का पुनरुत्थान करेगा। (यूहन्ना 5:28, 29) उनमें इब्राहीम और सारा, इसहाक और रिबका, याकूब और लिआ भी होंगे जो अब मौत की नींद सो रहे हैं और परमेश्वर की नयी दुनिया में जी उठने के इंतज़ार में हैं। (उत्पत्ति 49:29-32) जब हमारे अज़ीज़, मौत की नींद से जागकर धरती पर दोबारा ज़िंदगी पाएँगे तो वह क्या ही खुशी का समय होगा! (प्रकाशितवाक्य 20:11-15) उस समय के आने तक हमारा विश्वास भले ही हमें हर दुःख से राहत न पहुँचाए, मगर यह हमें परमेश्वर के हमेशा करीब रहने में मदद देगा जो हमें अपना गम सहने की ताकत देता है।—भजन 121:1-3; 2 कुरिन्थियों 1:3.
14 पौलुस ने कहा: ‘मैं परमेश्वर से आशा रखता हूं कि धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा।’ (विश्वास, हताश लोगों का हौसला बढ़ाता है
15, 16. (क) हम क्यों कह सकते हैं कि विश्वास दिखानेवालों का हताश होना कोई अनोखी बात नहीं है? (ख) हताशा पर काबू पाने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
15 बाइबल दिखाती है कि परमेश्वर पर विश्वास करनेवालों को हताशा का भी सामना करना पड़ सकता है। जब अय्यूब कठिन परीक्षाओं से गुज़र रहा था तब उसे ऐसा लगा कि परमेश्वर ने उसे छोड़ दिया। (अय्यूब 29:2-5) यरूशलेम और उसके दीवारों का खस्ताहाल देखकर नहेमायाह बहुत दुःखी हो गया। (नहेमायाह 2:1-3) यीशु को जानने से इनकार करने के बाद पतरस इतना मायूस हो गया कि वह “फूट फूट कर रोने लगा।” (लूका 22:62) और पौलुस ने थिस्सलुनीका की कलीसिया के मसीहियों को उकसाया कि वे ‘हताश प्राणियों को सांत्वना दें।’ (1 थिस्सलुनीकियों 5:14, NW) तो आज भी परमेश्वर पर विश्वास रखनेवालों के लिए हताश होना कोई अनोखी बात नहीं है। मगर हम हताशा की भावना से कैसे उभर सकते हैं?
16 जब हम पर एक-साथ कई मुसीबतें टूट पड़ती हैं, तो हम हताश हो सकते हैं। ऐसे में यह समझने के बजाय कि हम पर कोई बड़ी आफत आ गयी है, अच्छा होगा अगर हम बाइबल के सिद्धांतों पर अमल करते हुए एक-एक समस्या का हल करने की कोशिश करें। इससे हताशा की भावना थोड़ी कम हो सकती है। इसके अलावा, काम-काज में संतुलन बनाए रखना और भरपूर आराम लेना भी मददगार हो सकता है। चाहे जो भी हो एक बात तो पक्की है: परमेश्वर और उसके वचन पर विश्वास रखने से हम आध्यात्मिक रूप से मज़बूत बने रहेंगे क्योंकि विश्वास हमें पक्का यकीन दिलाता है कि यहोवा सचमुच हमारी परवाह करता है।
17. हम कैसे जानते हैं कि यहोवा हमारी परवाह करता है?
17 पतरस हमें यह दिलासा देता है: “परमेश्वर के बलवन्त हाथ के नीचे दीनता से रहो, जिस से वह तुम्हें उचित समय पर बढ़ाए। और अपनी सारी चिन्ता उसी पर डाल दो, क्योंकि उस को तुम्हारा ध्यान है।” (1 पतरस 5:6, 7) भजनहार ने अपने गीत में कहा: “यहोवा सब गिरते हुओं को संभालता है, और सब झुके हुओं को सीधा खड़ा करता है।” (भजन 145:14) इन बातों पर हमें पूरा यकीन करना चाहिए क्योंकि ये परमेश्वर के वचन में दर्ज़ हैं। भले ही हमें हताशा से पूरी तरह राहत न मिले, मगर यह जानकर हमारा विश्वास कितना मज़बूत होता है कि हम अपनी चिंताओं का सारा बोझ स्वर्ग में रहनेवाले अपने प्यारे पिता पर डाल सकते हैं!
विश्वास और दूसरी परीक्षाएँ
18, 19. किस तरह विश्वास हमें अपनी बीमारी को सहने और अपने बीमार भाई-बहनों को दिलासा देने में मदद देता है?
18 ऐसे वक्त पर भी हमारे विश्वास की कड़ी परीक्षा हो सकती है जब हम या हमारा कोई अज़ीज़ गंभीर रूप से बीमार पड़ जाता है। हालाँकि बाइबल में ऐसा कोई ज़िक्र नहीं है कि यहोवा ने इपफ्रुदीतुस, तीमुथियुस और त्रुफिमुस जैसे मसीहियों की बीमारियों फिलिप्पियों 2:25-30; 1 तीमुथियुस 5:23; 2 तीमुथियुस 4:20) इसके अलावा ‘कंगाल की सुधि रखनेवाले’ इंसान के बारे में भजनहार ने अपने गीत में कहा: “जब वह व्याधि के मारे सेज पर पड़ा हो, तब यहोवा उसे सम्भालेगा; तू रोग में उसके पूरे बिछौने को उलटकर ठीक करेगा।” (भजन 41:1-3) भजनहार के ये शब्द हमें बीमार भाई-बहनों को सांत्वना देने में कैसे मदद दे सकते हैं?
को चमत्कार करके दूर कर दिया, मगर हम कह सकते हैं कि यहोवा ने उन्हें अपनी तकलीफ सहने की शक्ति ज़रूर दी होगी। (19 जो भाई-बहन बीमार हैं उनकी आध्यात्मिक रूप से मदद करने का एक तरीका है, उनके साथ मिलकर प्रार्थना करना और अपनी प्रार्थनाओं में उन्हें याद करना। हम परमेश्वर से यह तो नहीं माँगेंगे कि वह कोई चमत्कार करके उनकी बीमारी दूर कर दे, मगर हम यह बिनती कर सकते हैं कि वह उन्हें अपनी तकलीफों को सहने का हौसला दे और मायूसी की घड़ी में मज़बूत बने रहने के लिए आध्यात्मिक शक्ति दे। यहोवा उनको ज़रूर सँभालेगा और आनेवाले उस समय की आशा से उनका विश्वास मज़बूत होगा जब “कोई निवासी न कहेगा कि मैं रोगी हूं।” (यशायाह 33:24) यह जानकर दिल को कितनी राहत मिलती है कि पुनरुत्थान पाए यीशु मसीह और परमेश्वर के राज्य के ज़रिए, आज्ञा माननेवाले इंसानों को पाप, बीमारी और मृत्यु से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा! भविष्य में मिलनेवाली इन शानदार आशीषों के लिए हम यहोवा का एहसान मानते हैं जो ‘हमारे सब रोगों को चंगा करेगा।’—भजन 103:1-3; प्रकाशितवाक्य 21:1-5.
20. हम क्यों कह सकते हैं कि विश्वास हमें बुढ़ापे में आनेवाले ‘विपत्ति के दिनों’ का सामना करने में भी मदद दे सकता है?
20 विश्वास हमें बुढ़ापे में आनेवाले ‘विपत्ति के दिनों’ का भी सामना करने में मदद देता है, जब हमारी सेहत बिगड़ने लगती है और हम कमज़ोर होने लगते हैं। (सभोपदेशक 12:1-7) इसलिए हमारे बुज़ुर्ग भाई-बहन भी उस उम्रदराज़ भजनहार की तरह प्रार्थना कर सकते हैं जिसने अपने भजन में कहा था: “हे प्रभु यहोवा . . . बुढ़ापे के समय मेरा त्याग न कर; जब मेरा बल घटे तब मुझ को छोड़ न दे।” (भजन 71:5,9) इस भजनहार की तरह आज हमारे बहुत-से बुज़ुर्ग भाई-बहन यहोवा से मदद की ज़रूरत महसूस करते हैं जो बरसों से यहोवा की सेवा करते आ रहे हैं। वे अपने विश्वास की वजह से इस बात का पूरा यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमेशा उन्हें अपनी बाहों में पनाह देगा और कभी नहीं त्यागेगा।—व्यवस्थाविवरण 33:27.
परमेश्वर के वचन पर अपना विश्वास बनाए रखिए
21, 22. हममें विश्वास होने से यहोवा के साथ हमारा रिश्ता कैसा होगा?
21 सुसमाचार और परमेश्वर के वचन की तमाम बातों पर विश्वास रखने से हम दिन-ब-दिन यहोवा के और करीब आते रहेंगे। (याकूब 4:8) यह सच है कि यहोवा पूरे जहान का महाराजा और मालिक है, मगर वह हमारा सिरजनहार और पिता भी है। (यशायाह 64:8; मत्ती 6:9; प्रेरितों 4:24) भजनहार ने गाया: “तू मेरा पिता है, मेरा ईश्वर और मेरे बचने की चट्टान है।” (भजन 89:26) अगर हम यहोवा पर और उसकी प्रेरणा से लिखे वचन पर विश्वास ज़ाहिर करेंगे, तो वह हमारे लिए भी “बचने की चट्टान” बनेगा। सोचिए तो, यह हमारे लिए कितने गर्व की बात है!
22 यहोवा, आत्मा से अभिषिक्त मसीहियों और धरती पर जीने की आशा रखनेवाले उनके साथियों का भी पिता है। (रोमियों 8:15) जो लोग हमारे स्वर्गीय पिता पर विश्वास रखते हैं उन्हें कभी निराश नहीं होना पड़ेगा। दाऊद ने कहा था: “मेरे माता-पिता ने तो मुझे छोड़ दिया है, परन्तु यहोवा मुझे सम्भाल लेगा।” (भजन 27:10) और-तो-और, हमसे यह भी वादा किया गया है कि ‘यहोवा अपने बड़े नाम के कारण अपनी प्रजा को न तजेगा।’—1 शमूएल 12:22.
23. यहोवा के साथ एक अटूट रिश्ता बनाए रखने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
23 मगर यहोवा के साथ एक अटूट रिश्ता बनाए रखने के लिए यह ज़रूरी है कि हम सुसमाचार पर विश्वास करें और बाइबल को परमेश्वर का वचन मानें जैसा कि वह वाकई में है। (1 थिस्सलुनीकियों 2:13) यहोवा पर हमें पूरा-पूरा विश्वास रखना चाहिए और उसके वचन से मिलनेवाले मार्गदर्शन पर चलना चाहिए। (भजन 119:105; नीतिवचन 3:5,6) यहोवा की करुणा, उसकी दया और मदद पाने का भरोसा रखते हुए जब हम उससे प्रार्थना करेंगे, तो हमारा विश्वास बढ़ता जाएगा।
24. रोमियों 14:8 में हमें सांत्वना देने के लिए क्या कहा गया है?
24 यहोवा पर विश्वास होने की वजह से ही हमने अपना जीवन हमेशा-हमेशा के लिए उसे समर्पित कर दिया है। अगर हमारा विश्वास मज़बूत हो तो मरने के बाद भी हम परमेश्वर के समर्पित सेवकों में गिने जाएँगे क्योंकि हमारे पास पुनरुत्थान की आशा है। जी हाँ, “हम जीएं या मरें, हम प्रभु [यहोवा] ही के हैं।” (रोमियों 14:8) इस बात से हमें कितनी सांत्वना मिलती है! तो फिर आइए हम इसे मन में रखते हुए परमेश्वर के वचन पर भरोसा कायम रखें और हमेशा सुसमाचार पर विश्वास करें।
आपका जवाब क्या होगा?
• विश्वास का मतलब क्या है और हममें यह गुण होना क्यों ज़रूरी है?
• सुसमाचार पर और परमेश्वर के वचन की तमाम बातों पर विश्वास करना क्यों ज़रूरी है?
• विश्वास हमें तरह-तरह की परीक्षाओं का सामना करने में कैसे मदद देता है?
• अपना विश्वास बनाए रखने में कौनसी बात हमारी मदद करेगी?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 12 पर तसवीरें]
यहोवा ने यिर्मयाह और एल्लियाह की देखभाल की क्योंकि उन्होंने विश्वास दिखाया
[पेज 13 पर तसवीरें]
अय्यूब, पतरस और नहेमायाह का विश्वास मज़बूत था
[पेज 15 पर तसवीरें]
यहोवा के साथ अटूट रिश्ता बनाए रखने के लिए ज़रूरी है कि हम सुसमाचार पर विश्वास रखें