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“राज्य के जोशीले प्रचारक” एक-साथ इकट्ठे होकर खुशी मनाते हैं

“राज्य के जोशीले प्रचारक” एक-साथ इकट्ठे होकर खुशी मनाते हैं

“राज्य के जोशीले प्रचारक” एक-साथ इकट्ठे होकर खुशी मनाते हैं

नैतिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं की वजह से आज दुनिया डाँवाँडोल हो रही है। मगर ऐसी खलबली के बावजूद, यहोवा के साक्षी “राज्य के जोशीले प्रचारक” ज़िला अधिवेशनों में हाज़िर हुए और उन्होंने शांति से कार्यक्रम का आनंद लिया। ये तीन दिवसीय ज़िला अधिवेशन मई 2002 से पूरी दुनिया में आयोजित किए गए।

ये अधिवेशन वाकई खुशी के मौके थे। उनमें बाइबल पर आधारित एक ऐसा कार्यक्रम पेश किया गया जो विश्‍वास मज़बूत करनेवाला था। आइए हम उस कार्यक्रम की चंद बातों पर दोबारा गौर करें।

पहले दिन के कार्यक्रम में यीशु के जोश पर रोशनी डाली गयी

अधिवेशन के पहले दिन का विषय था, “हमारे प्रभु, यीशु के जैसा जोश दिखाइए।” (यूहन्‍ना 2:17) “राज्य के प्रचारकों की हैसियत से इकट्ठा होने में आनंद मनाइए” इस भाषण में, हाज़िर सभी लोगों का दिल से स्वागत किया गया कि वे एक-दूसरे के साथ इकट्ठा होने में खुशी मनाएँ, क्योंकि खुशी हमेशा से परमेश्‍वर के लोगों के अधिवेशनों की एक खासियत रही है। (व्यवस्थाविवरण 16:15) इस भाषण के बाद सुसमाचार के चंद जोशीले प्रचारकों का इंटरव्यू लिया गया।

“यहोवा में मग्न रहो” भाषण में भजन 37:1-11 के एक-एक वचन पर चर्चा की गयी। हमें समझाया गया कि जब दुष्ट लोग अपने मंसूबों में कामयाब होते नज़र आते हैं, तो उन्हें देखकर हमें ‘कुढ़ना नहीं’ चाहिए। हो सकता है, दुष्ट हमारी बदनामी करें, मगर फिर भी यहोवा अपने ठहराए समय पर यह जग-ज़ाहिर कर देगा कि कौन सचमुच वफादारी से उसकी सेवा करते हैं। इसके बाद के भाषण का शीर्षक था, “एहसानमंद बनिए।” इसमें चर्चा की गयी कि हम परमेश्‍वर के लिए अपना आभार कैसे दिखा सकते हैं। सभी मसीहियों को चाहिए कि वे यहोवा को “स्तुतिरूपी बलिदान” चढ़ाएँ। (इब्रानियों 13:15) बेशक, हम यहोवा की सेवा में कितना समय बिताएँगे यह इन बातों पर निर्भर है कि हमारी कदरदानी कितनी गहरी है और हमारे हालात कैसे हैं।

मूल-विचार भाषण का शीर्षक था, “जोश से भरे राज्य के प्रचारक।” उसमें बताया गया कि जोश से सेवा करने में हमारे लिए सबसे बेहतरीन मिसाल, यीशु मसीह है। सन्‌ 1914 में जब स्वर्ग में राज्य स्थापित हुआ, तो यह खुशखबरी दुनिया को सुनाने के लिए सच्चे मसीहियों को भी जोशीले होने की ज़रूरत थी। इस भाषण को देनेवाले भाई ने, सन्‌ 1922 में अमरीका के सीडर पॉइंट, ओहायो में हुए अधिवेशन का ज़िक्र किया और याद दिलाया कि उस वक्‍त यह ज़ोरदार बुलावा दिया गया था: “राजा और उसके राज्य का ऐलान करो”! समय के गुज़रते परमेश्‍वर के वफादार सेवक इस कदर जोश से भर उठे कि उन्होंने सभी राष्ट्रों में जाकर राज्य के बारे में बढ़िया सच्चाइयाँ सिखायीं।

पहले दिन की दोपहर को “निडर रहो, यहोवा हमारे साथ है,” विषय पर भाषण दिया गया। इसमें यह बताया गया कि परमेश्‍वर के लोग, शैतान का खास निशाना हैं। लेकिन ऐसे विरोध के बावजूद जब हम बाइबल में बताए गए और आज के बहुत-से वफादार जनों की मिसाल पर मनन करते हैं, तो हमें परीक्षाओं और प्रलोभनों का डटकर सामना करने की हिम्मत मिलती है।—यशायाह 41:10.

इसके बाद, तीन भागोंवाली एक परिचर्चा पेश की गयी। विषय था, “मीका की भविष्यवाणी यहोवा का नाम लेकर चलने के लिए हमें मज़बूत करती है।” पहले वक्‍ता ने बताया कि मीका के ज़माने में जिस तरह बदचलनी और झूठी उपासना फैली हुई थी, और लोग धन-दौलत की मोह-माया में फँस गए थे, वही हालात आज भी देखने को मिलते हैं। उसने कहा: “अगर हम एक आज्ञाकारी मन पैदा करें और इस बात का ध्यान रखें कि हमारा चालचलन पवित्र हो और हम भक्‍ति के काम करने में पूरी तरह व्यस्त रहें, साथ ही यह कभी न भूलें कि यहोवा का दिन ज़रूर आएगा, तो हम भविष्य के बारे में पक्की आशा रख सकते हैं।”—2 पतरस 3:11, 12.

इस परिचर्चा के दूसरे वक्‍ता ने बताया कि मीका ने यहूदा देश के अगुवों का किस तरह खंडन किया। वे गरीब और लाचार लोगों पर ज़ुल्म ढाया करते थे। मीका ने उनका खंडन करने के साथ-साथ यह भविष्यवाणी भी की कि सच्ची उपासना की ज़रूर फतह होगी। (मीका 4:1-5) आशा का यह संदेश वाकई ताज़गी देनेवाला है और हमने यहोवा की पवित्र आत्मा से ताकत पाकर यह ठान लिया है कि हम इसका ऐलान करेंगे। लेकिन अगर हम बीमारी या किसी और कमज़ोरी की वजह से यह काम ज़्यादा नहीं कर पाते हैं, तो ऐसे में हमें क्या नज़रिया रखना चाहिए? इस बारे में तीसरे वक्‍ता ने कहा: “यहोवा हमसे हद-से-ज़्यादा की माँग नहीं करता और उसकी माँगें ज़रूर पूरी की जा सकती हैं।” इसके बाद उसने मीका 6:8 में बतायी एक-एक बात पर चर्चा की। वह आयत कहती है: “यहोवा तुझ से इसे छोड़ और क्या चाहता है, कि तू न्याय से काम करे, और कृपा से प्रीति रखे, और अपने परमेश्‍वर के साथ नम्रता से चले?”

इस संसार के आदर्श गिरते जा रहे हैं और इसका असर मसीहियों पर भी पड़ सकता है। इसलिए हम सभी ने इस भाषण में दी गयी जानकारी से काफी फायदा पाया: “अपने हृदय की रक्षा करके पवित्रता बनाए रखें।” मिसाल के लिए, अगर हम पवित्रता बनाए रखें, तो हमारी शादी-शुदा ज़िंदगी खुशहाल होगी। मसीही होने की वजह से अनैतिक लैंगिक संबंध रखने का ख्याल तक हमारे मन में नहीं आना चाहिए।—1 कुरिन्थियों 6:18.

“छल-कपट से दूर रहिए” इस भाषण में समझाया गया कि धर्म-त्यागी लोग, बातों को जिस तरह तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं, आधा-सच और आधा-झूठ बताते और सफेद झूठ बोलते हैं, उन्हें ज़हर के बराबर समझना बुद्धिमानी होगी। (कुलुस्सियों 2:8) और हमें खुद भी यह सोचकर धोखा नहीं खाना चाहिए कि हम अपनी पापी अभिलाषाओं को पूरा करके भी बुरे अंजाम से बच सकते हैं।

पहले दिन के आखिरी भाषण का विषय था, “एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर की उपासना करें।” जब हम इस दुनिया की हालत को दिन-ब-दिन बदतर होते देखते हैं, तो हमें इस बात से कितनी खुशी होती है, साथ ही हौसला भी मिलता है कि यहोवा बहुत जल्द धार्मिकता की नयी दुनिया लाएगा! मगर उस दुनिया में कौन रहेंगे? सिर्फ वही जो यहोवा की उपासना करते हैं। इस भाषण में वक्‍ता ने बाइबल अध्ययन की एक नयी किताब रिलीज़ की जिसका नाम है, एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर की उपासना करें। यह किताब हमें, हमारे बच्चों और बाइबल विद्यार्थियों को सच्चे परमेश्‍वर की उपासना करने का लक्ष्य हासिल करने में मदद देगी। इस नयी किताब को पाकर हम फूले न समाए थे!

दूसरे दिन के कार्यक्रम ने भले कामों के लिए जोश दिखाने का बढ़ावा दिया

अधिवेशन के दूसरे दिन का विषय था, “भले काम करने में जोशीले बनिए।” (1 पतरस 3:13) पहले भाषण के वक्‍ता ने दैनिक पाठ पर चर्चा की। उसने इस बात पर ज़ोर दिया कि अगर हम बिना नागा, हर रोज़ दैनिक पाठ का गंभीरता से अध्ययन करेंगे तो हमारा जोश और भी बढ़ेगा।

उसके बाद एक परिचर्चा हुई जिसका विषय था, “राज्य के प्रचारक अपनी सेवकाई की बड़ाई करते हुए।” इस परिचर्चा के पहले भाग में बताया गया कि परमेश्‍वर के वचन को ठीक रीति से काम में लाना क्यों ज़रूरी है। (2 तीमुथियुस 2:15) अगर हम बाइबल का कुशलता से इस्तेमाल करेंगे तो यह “प्रबल” होगी, यानी इसमें लिखी बातें लोगों की ज़िंदगी पर असर करेंगी। (इब्रानियों 4:12) हमें लोगों का ध्यान बाइबल की तरफ खींचना चाहिए और इसमें लिखी बातों पर दलील पेश करके उन्हें यकीन दिलाना चाहिए। परिचर्चा के दूसरे भाग में हमें उकसाया गया कि हम दिलचस्पी दिखानेवालों के पास लगातार जाते रहें। (1 कुरिन्थियों 3:6) ऐसे सभी लोगों से फौरन वापसी भेंट करने के लिए तैयारी और हिम्मत की ज़रूरत होती है। तीसरे भाग में हमें सुझाव दिया गया कि हम जिस किसी को भी गवाही देते हैं उसके बारे में यह उम्मीद रखें कि वह भविष्य में चेला बन सकता है। साथ ही बताया गया कि पहली मुलाकात में ही बाइबल अध्ययन की पेशकश करने से हमें चेला बनाने में कामयाबी मिलेगी।

कार्यक्रम का अगला विषय था, “‘निरन्तर प्रार्थना’ क्यों करें?” बाइबल, मसीहियों को यह बढ़ावा देती है कि ज़िंदगी के हर पहलू में सलाह पाने के लिए वे परमेश्‍वर की ओर देखें। हमें अकेले में प्रार्थना करने के लिए वक्‍त निकालना चाहिए। इसके अलावा, हमें प्रार्थना में लगे रहना चाहिए क्योंकि कभी-कभी यहोवा चाहता है कि उसका जवाब पाने से पहले हम काफी समय तक प्रार्थना करें।—याकूब 4:8.

“आध्यात्मिक बातचीत से उन्‍नति होती है,” इस भाषण में हमें उकसाया गया कि हमें बात करने की अपनी काबिलीयत का इस तरह इस्तेमाल करना चाहिए जिससे खुद हमें और दूसरों को भी फायदा पहुँचे। (फिलिप्पियों 4:8) शादी-शुदा जोड़ों के आपस में और माता-पिता और बच्चों के बीच रोज़ाना थोड़ी-बहुत आध्यात्मिक बातचीत की ज़रूरत है। इसलिए परिवारों को कोशिश करनी चाहिए कि वे दिन में कम-से-कम एक बार साथ बैठकर भोजन करें। तब वे ऐसी बातचीत कर पाएँगे जिससे एक-दूसरे की उन्‍नति हो।

सुबह के कार्यक्रम की समाप्ति में यह उत्साह बढ़ानेवाला भाषण पेश किया गया: “समर्पण और बपतिस्मा कैसे उद्धार दिलाता है।” बपतिस्मे के लिए तैयार लोगों ने यह कदम उठाने से पहले ज्ञान हासिल किया, विश्‍वास दिखाया, पश्‍चाताप किया, बुरे कामों को छोड़ा और फिर अपना जीवन परमेश्‍वर को समर्पित किया था। वक्‍ता ने बताया कि बपतिस्मा लेने के बाद भी उन्हें आध्यात्मिक रूप से तरक्की करते जाना है, अपना जोश और बढ़िया चालचलन बनाए रखना है।—फिलिप्पियों 2:15, 16.

उस दिन की दोपहर को “विनम्र बनिए और अपनी आँख निर्मल रखिए,” भाषण में दो मुख्य मुद्दों पर ज़ोर दिया गया। विनम्र होने का मतलब है कि हम अपनी हदें पहचानें और ध्यान रखें कि परमेश्‍वर के सामने हमारी क्या हैसियत है। विनम्रता से हमें अपनी आँख “निर्मल” रखने यानी अपनी नज़र भौतिक चीज़ों के बजाय परमेश्‍वर के राज्य पर रखने में मदद मिलती है। अगर हम ऐसा करते हैं तो हमें चिंता करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि यहोवा हमारी ज़रूरतें पूरी करेगा।—मत्ती 6:22-24, 33, 34.

अगले वक्‍ता का विषय था, “दुःख के समय यहोवा पर पूरा भरोसा रखिए।” इसमें वक्‍ता ने समझाया कि हमें ऐसा क्यों करना चाहिए। हम अपनी खामियों और आर्थिक समस्याओं या खराब सेहत की वजह से आनेवाली मुश्‍किलों और दूसरी समस्याओं का कैसे सामना कर सकते हैं? इसके लिए हमें यहोवा से बिनती करनी चाहिए कि वह हमें सोच-समझकर काम करने की बुद्धि दे और हमें दूसरों से भी मदद लेनी चाहिए। मुसीबतों के वक्‍त डर के मारे सुध-बुध खो बैठने या हताश हो जाने के बजाय हमें परमेश्‍वर के वचन को पढ़कर उस पर अपना भरोसा बढ़ाना चाहिए।—रोमियों 8:35-39.

अधिवेशन की आखिरी परिचर्चा का विषय था, “तरह-तरह की परीक्षाओं से हमारे विश्‍वास का परखा जाना।” इसके पहले भाग में हमें बताया गया कि सभी सच्चे मसीही ज़ुल्म के शिकार होते हैं। हमारे अत्याचार सहने से दूसरों को गवाही मिलती है, हमारा विश्‍वास मज़बूत होता है और हमें परमेश्‍वर के लिए अपनी वफादारी दिखाने का मौका मिलता है। यह सच है कि हम अपनी ज़िंदगी को बेवजह खतरे में नहीं डालते, पर साथ ही हम अत्याचार से बचने के लिए ऐसा कुछ नहीं करते जो बाइबल के खिलाफ हो।—1 पतरस 3:16.

इस परिचर्चा के दूसरे वक्‍ता ने निष्पक्षता से संबंधित कुछ सवालों के जवाब दिए। शुरूआत के मसीही युद्ध में किसी भी तरह से हिस्सा नहीं लेते थे, क्योंकि वे जानते थे कि उन्हें सबसे बढ़कर परमेश्‍वर के वफादार होना है। ठीक उसी तरह आज यहोवा के साक्षी भी यह सिद्धांत मानने में अटल हैं: “तुम संसार के नहीं।” (यूहन्‍ना 15:19) हमारी निष्पक्षता की परीक्षा कभी-भी हो सकती है, इसलिए परिवार के सदस्यों को चाहिए कि वे इस बारे में बाइबल के सिद्धांतों पर चर्चा करने के लिए समय तय करें। जैसे तीसरे भाषण में बताया गया था, शैतान का लक्ष्य हमारी जान लेने से ज़्यादा हम पर ऐसे दबाव डालना है कि हम अपनी वफादारी से मुकर जाएँ। जब हम लगातार लोगों के ताने, अनैतिक काम करने के दबावों, मानसिक दुःख और बीमारियों का सामना करते हुए धीरज धरते हैं, तो इससे यहोवा की महिमा होती है।

उस दिन के आखिरी भाषण का शीर्षक एक प्यार-भरा न्यौता था: “यहोवा के करीब आइए”। जब हम यहोवा के खास गुणों को अच्छी तरह समझते हैं, तब हम उसकी तरफ खिंचे चले आते हैं। वह अपनी असीम शक्‍ति का इस्तेमाल करके अपने लोगों की हिफाज़त करता है, खासकर आध्यात्मिक रूप से। उसका न्याय कठोर नहीं है, बल्कि यह गुण उसे प्रेरित करता है कि वह धार्मिकता के काम करनेवाले हर इंसान को हमेशा की ज़िंदगी पाने का मौका दे। परमेश्‍वर की बुद्धि इस बात से ज़ाहिर होती है कि उसने बाइबल लिखवाने के लिए असिद्ध इंसानों का इस्तेमाल किया। परमेश्‍वर का प्रेम उसका सबसे प्यारा गुण है। प्रेम ने ही उसे उकसाया कि वह यीशु मसीह के ज़रिए इंसानों के उद्धार का इंतज़ाम करे। (यूहन्‍ना 3:16) वक्‍ता ने अपने भाषण के आखिर में एक नयी किताब ड्रॉ क्लोस टू जेहोवा रिलीज़ की। इसमें दी गयी जानकारी वाकई दिल को छू जाती है!

तीसरे दिन के कार्यक्रम में भले कामों के लिए सरगर्म होने पर ध्यान दिया गया

अधिवेशन के तीसरे दिन के कार्यक्रम का विषय था, “ऐसे लोग जो भले कामों में सरगर्म हैं।” (तीतुस 2:14) उस दिन सबसे पहले दिखाया गया कि कैसे एक परिवार दैनिक पाठ की चर्चा करता है। इस तरह कार्यक्रम की एक बढ़िया शुरूआत हुई। उसके बाद एक भाषण दिया गया जिसका विषय था, “क्या आपका भरोसा यहोवा पर है?” संसार के लोग अपनी बुद्धि और ताकत के बलबूते काम करते हैं, लेकिन ऐसा करके वे गलत चीज़ पर भरोसा कर रहे हैं। मगर यहोवा के सेवक उनसे बिलकुल अलग हैं, वे मुसीबतों के बावजूद साहस के साथ और खुशी-खुशी यहोवा पर भरोसा रखते हैं।—भजन 46:1-3, 7-11.

एक जवान किस तरह सही मायनों में अपनी ज़िंदगी में कामयाब हो सकता है? इसका जवाब “नौजवानो—यहोवा के संगठन के साथ मिलकर भविष्य के लिए योजना बनाइए” भाषण में दिया गया। अगर एक जवान पैसा कमाने, दुनिया-भर की चीज़ें बटोरने और शानो-शौकत के पीछे भागने लगे, तो वह सच्ची कामयाबी नहीं पा सकता। हमारा सिरजनहार जवानों को बड़े प्यार से उकसाता है कि वे अपनी जवानी में उसे याद करें। वक्‍ता ने कुछ ऐसे भाई-बहनों का इंटरव्यू लिया जिन्होंने कच्ची उम्र में ही मसीही सेवा में कड़ी मेहनत की। उनकी बातों से हमने महसूस किया कि ऐसा करके वे कितने खुश हैं। इस भाषण में एक नया ट्रैक्ट रिलीज़ किया गया, नौजवानो—आप अपनी ज़िंदगी का क्या करेंगे? इसमें दी गयी सलाह बहुत ही फायदेमंद है! यह ट्रैक्ट जवान साक्षियों की मदद करने के लिए तैयार किया गया है ताकि वे यहोवा के संगठन के साथ रहकर हमेशा की ज़िंदगी के लिए बुनियाद डालें।

इसके बाद एक बहुत ही दिलचस्प बाइबल ड्रामा पेश किया गया जिसका शीर्षक था, “मुसीबतों के दौर में निडर खड़े रहो।” उस ड्रामे में यिर्मयाह की ज़िंदगी की एक झलक पेश की गयी कि कैसे उसने जवानी से लेकर यरूशलेम के नाश तक, एक लंबे अरसे यहोवा की सेवा की। उस दौरान उसने यरूशलेम के नाश के बारे में पूरे जोश से भविष्यवाणी की थी। शुरू-शुरू में यिर्मयाह ने सोचा कि वह यहोवा से मिला काम करने के काबिल नहीं है, मगर फिर भी उसने विरोध के बावजूद उसे पूरा किया और यहोवा ने उसे नाश से बचाया।—यिर्मयाह 1:8, 18, 19.

ड्रामे के बाद इस विषय पर भाषण दिया गया: “यिर्मयाह की तरह बनिए—निडर होकर परमेश्‍वर का वचन सुनाइए।” आज के ज़माने में राज्य के प्रचारकों के बारे में अकसर अफवाहें फैलायी जाती हैं और उनको बदनाम करने के इरादे से झूठा प्रौपोगैंडा किया जाता है। (भजन 109:1-3) मगर फिर भी हम यिर्मयाह की तरह परमेश्‍वर के वचन के मुताबिक चलने में खुशी पाने के ज़रिए निराशा पर काबू पा सकते हैं। और हमें इस बात का पूरा यकीन है कि जो हमारे खिलाफ लड़ते हैं, वे हरगिज़ कामयाब नहीं होंगे।

जन भाषण का विषय, “इस संसार का दृश्‍य बदल रहा है” आज के वक्‍त के मुताबिक बिलकुल सही था। हमारे ज़माने में एक-से-एक हैरतअंगेज़ बदलाव हुए हैं। बाइबल में पहले से बताया गया था कि ऐसे हालात पैदा होंगे और “शान्ति और सुरक्षा” की पुकार भी उठेगी और उसके बाद परमेश्‍वर के न्याय करने का भयानक दिन आएगा। (1 थिस्सलुनीकियों 5:3, NHT) परमेश्‍वर का भयानक दिन दुनिया में बहुत बढ़िया बदलाव लाएगा यानी युद्ध, अपराध, हिंसा और यहाँ तक कि बीमारियों का नामो-निशान मिटा देगा। इसलिए आज का यह समय इस संसार पर भरोसा रखने का नहीं, बल्कि परमेश्‍वर की भक्‍ति करने और अपना चालचलन पवित्र बनाए रखने का है।

इसके बाद अधिवेशन के हफ्ते के प्रहरीदुर्ग अध्ययन का सारांश बताया गया। और फिर अधिवेशन का आखिरी भाषण दिया गया जिसका शीर्षक था, “राज्य के जोशीले प्रचारकों की हैसियत से भले कामों में बढ़ते जाइए।” वक्‍ता ने बताया कि अधिवेशन के कार्यक्रम ने किस तरह हमें आध्यात्मिक कामों के लिए जोश दिलाया और यहोवा पर पूरा भरोसा रखने का बढ़ावा दिया। भाषण के अंत में हमें उकसाया गया कि हम शुद्धता बनाए रखें, प्रेम दिखाएँ और परमेश्‍वर के राज्य का ऐलान जोश से करते रहें।—1 पतरस 2:12.

“राज्य के जोशीले प्रचारक” ज़िला अधिवेशन में आध्यात्मिक आशीषें पाकर, हम नहेमायाह के दिनों के यहोवा के सेवकों की तरह खुशी-खुशी अपने घर लौटे। (नहेमायाह 8:12) क्या इस अधिवेशन ने आपके दिल को खुशी से नहीं भर दिया और आपमें यह इरादा पैदा नहीं किया कि आप पूरे जोश से राज्य का ऐलान करते रहें?

[पेज 23 पर बक्स/तसवीर]

अध्ययन के लिए एक नयी किताब!

अधिवेशन के पहले दिन के कार्यक्रम के अंत में एक नयी किताब रिलीज़ की गयी। उसका नाम है, एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर की उपासना करें। यह सुनकर हाज़िर लोगों को बहुत खुशी हुई। यह किताब उन लोगों के साथ अध्ययन करने के लिए तैयार की गयी है जिनका ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है किताब से अध्ययन पूरा हो गया है। यह नयी किताब ऐसे लोगों के विश्‍वास को वाकई मज़बूत करेगी जो ‘अनंत जीवन के लिए सही मन रखते’ हैं।—प्रेरितों 13:48, NW.

[चित्र का श्रेय]

किताब के आवरण पर तसवीर: U.S. Navy photo

[पेज 24 पर बक्स]

परमेश्‍वर के करीब आने के लिए मदद

अधिवेशन के दूसरे दिन के कार्यक्रम के आखिरी वक्‍ता ने एक नयी किताब ड्रॉ क्लोस टू जेहोवा के रिलीज़ होने की घोषणा की। इस किताब में ऐसे चार मुख्य भाग हैं जिनमें यहोवा के चार खास गुणों यानी शक्‍ति, न्याय, बुद्धि और प्रेम की चर्चा की गयी है। हर भाग के एक अध्याय में यह समझाया गया है कि यीशु मसीह ने अपनी जीती-जागती मिसाल से परमेश्‍वर के ये गुण कैसे दिखाए। इस नयी किताब का खास मकसद, हमें और हमारे बाइबल विद्यार्थियों को यहोवा परमेश्‍वर के साथ एक नज़दीकी और मज़बूत रिश्‍ता बनाने में मदद देना है।

[पेज 26 पर बक्स/तसवीरें]

जवानों के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शन

अधिवेशन के तीसरे दिन की एक विशेष बात यह थी कि उस दिन एक खास ट्रैक्ट रिलीज़ की गयी। उसका विषय है, नौजवानो—आप अपनी ज़िंदगी का क्या करेंगे? यह नया ट्रैक्ट, जवान साक्षियों को अपने भविष्य के बारे में सही फैसले करने में मदद देने के लिए तैयार किया गया है। यह उन्हें बाइबल के आधार पर सलाह देता है कि वे हमेशा-हमेशा के लिए यहोवा की सेवा को अपना करियर बनाएँ।