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मुश्‍किलों की जलती भट्ठी में परखा गया

मुश्‍किलों की जलती भट्ठी में परखा गया

जीवन कहानी

मुश्‍किलों की जलती भट्ठी में परखा गया

पेरक्लीज़ यानोरीस की ज़ुबानी

जेल की कोठरी में इतनी नमी थी कि मैं ठंड से ठिठुर रहा था। एक पतला-सा कंबल ओढ़े अकेले बैठा हुआ था और मेरी आँखों के सामने दो दिन पहले हुई घटना की तसवीरें उभरने लगीं। हुआ यह कि कुछ नागरिक सैनिक मेरे घर आए और वे मुझे घसीटकर वहाँ से ले गए। उस वक्‍त मेरे दो छोटे बच्चे बीमार थे। मुझे उनसे और अपनी पत्नी से जुदा कर दिया गया। मगर जब सैनिक मुझे ले जा रहे थे तो मेरी पत्नी के चेहरे पर शिकन तक नहीं आयी। मैं जिस धर्म को मानता था, उसे वह नहीं मानती थी। बाद में उसने मुझे एक पार्सल भेजा, साथ ही एक पर्ची भी जिसमें लिखा था: “मैं तुम्हारे लिए ये रोटियाँ भेज रही हूँ और दुआ करती हूँ कि तुम भी अपने बच्चों की तरह बीमार पड़ जाओ।” क्या मैं कभी ज़िंदा बचकर दोबारा अपने परिवार से मिल पाता?

यह तो मेरी ज़िंदगी की लंबी दास्तान का बस एक वाकया है। मुझे कदम-कदम पर अपने मसीही विश्‍वास के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा। कभी परिवार ने मेरा विरोध किया, तो कभी मुझे बिरादरी से बेदखल किया गया। मुझे कई कानूनी लड़ाइयाँ लड़नी पड़ीं और भयानक ज़ुल्म सहने पड़े। लेकिन मैं एक शांत स्वभाव का और परमेश्‍वर का भय माननेवाला होते हुए भी, जेल की उस बदतरीन जगह पर कैसे पहुँचा? आइए मैं आपको बताता हूँ।

एक गरीब लड़का, मगर सपना बड़ा

मेरा जन्म सन्‌ 1909 में, क्रीट द्वीप के स्टाव्रोमेनो गाँव में हुआ। उन दिनों हमारा देश युद्ध, गरीबी और अकाल जैसी विपदाओं से जूझ रहा था। कुछ समय बाद जब स्पैनिश फ्लू की बीमारी फैली, तब मैं और मेरे तीन भाई-बहन उसकी चपेट में आने से बाल-बाल बचे। मुझे अब भी याद है कि मेरे माता-पिता किस तरह हम बच्चों को कई-कई हफ्तों तक घर में बंद करके रखते थे ताकि हमें फ्लू न हो जाए।

मेरे पिता एक गरीब किसान थे और धर्म में उनकी बहुत आस्था थी, फिर भी वे खुले विचारों के थे। वे फ्रांस और मेडागास्कर शहर में रह चुके थे, इसलिए नए-नए धार्मिक विचारों से वाकिफ थे। फिर भी हमारा परिवार ग्रीक ऑर्थोडाक्स चर्च को ही मानता था। हम हर रविवार को मिस्सा में जाते थे और जब हमारे इलाके का बिशप अपने सलाना दौरे पर आता, तो हम उसे अपने घर पर ठहराते थे। मैं चर्च के गानेवालों में से एक था और मेरा ख्वाब था कि एक दिन मैं पादरी बनूँ।

सन्‌ 1929 में, मैं पुलिस में भर्ती हो गया। मैं उत्तर यूनान के थिस्सलुनिका में ड्यूटी कर रहा था और उसी दौरान पिताजी की मौत हो गयी। मुझे सांत्वना और आध्यात्मिक ज्ञान की ज़रूरत महसूस हुई इसलिए मैंने पास के माउंट एथॉस के पुलिस बल में अपना तबादला करवा लिया, जहाँ बहुत-से मठवासी रहते थे। ऑर्थोडॉक्स ईसाई, माउंट एथॉस को “पवित्र पर्वत” मानते थे। * वहाँ मैंने चार साल काम किया और इस दौरान मैंने मठवासियों की ज़िंदगी को बहुत करीब से देखा। ऐसे में परमेश्‍वर के करीब आना तो दूर की बात थी, उल्टा यह देखकर मैं हक्का-बक्का रह जाता था कि मठवासी कैसे खुलेआम अनैतिक काम और भ्रष्टाचार करते हैं। बिशप से नीचे के पदवाले एक पादरी की मैं बहुत इज़्ज़त करता था। लेकिन जब उसने मेरे साथ अनैतिक संबंध रखने की कोशिश की तो मुझे उससे घिन आने लगी और मेरे दिल में नफरत भर गयी। इस तरह की धाँधली देखने के बाद भी मेरा यह नेक इरादा बरकरार था कि मैं पादरी बनकर परमेश्‍वर की सेवा करूँ। यहाँ तक कि मैंने यादगार के तौर पर पादरी के कपड़े पहने एक तसवीर खिंचवाई। आखिर में, मैं क्रीट लौट आया।

“वो तो एक नंबर का शैतान है!”

सन्‌ 1942 में मैंने फ्रोसीनी नाम की एक खूबसूरत लड़की से शादी की। वह एक इज़्ज़तदार परिवार से थी। शादी के बाद पादरी बनने का मेरा इरादा और पक्का हो गया, क्योंकि मेरे ससुरालवालों को धर्म पर गहरी आस्था थी। * बस मैंने फैसला कर लिया कि मैं एथेंस की एक सेमिनारी में जाकर पढ़ाई करूँगा। सन्‌ 1943 के आखिर में, मैं एथेंस जाने के लिए क्रीट के इराकलीअन बंदरगाह तो गया, मगर मैं जहाज़ पर नहीं चढ़ा। शायद इसलिए कि उस वक्‍त मुझे आध्यात्मिक ताज़गी पाने का दूसरा रास्ता मिल गया। आखिर ऐसा क्या हुआ था?

यहोवा के साक्षियों के साथ संगति करनेवाला एक जोशीला नौजवान, इमानवील लीओनूदॉकीस, कुछ सालों से पूरे क्रीट में बाइबल की सच्चाइयाँ सिखा रहा था, जो लोगों की आँखों पर से परदा हटा देती हैं। * साक्षी, परमेश्‍वर के वचन की जो सही समझ दे रहे थे, वह कुछ लोगों को इतनी भा गयी कि उन्होंने झूठा धर्म छोड़ दिया। इस तरह पास के सिटीआ शहर में जोशीले साक्षियों का एक समूह बना। मगर यह देखकर वहाँ का पादरी बहुत चिढ़ गया। वह कुछ समय तक अमरीका में रहा था और उसने खुद अपनी आँखों से देखा था कि यहोवा के साक्षी, प्रचार काम में बहुत कामयाब होते हैं। इसलिए उसने अपने इलाके से इस “विधर्म” को मिटा देने की ठान ली। उसने पुलिस को भड़काया और इससे साक्षियों पर झूठे इलज़ाम लगाकर, उन्हें घसीटते हुए जेल ले जाने और अदालत में पेश करने का सिलसिला शुरू हो गया।

एक साक्षी ने मुझे बाइबल सच्चाई सिखाने की कोशिश की, मगर उसे लगा कि मुझे सीखने में दिलचस्पी नहीं है। इसलिए उसने एक और भाई को मेरे पास भेजा, जो उससे भी तजुर्बेकार था। लेकिन मैंने इस दूसरे भाई से रूखे अंदाज़ में बात की इसलिए वह भी लौट गया। उसने अपने छोटे-से समूह से कहा: “पेरक्लीज़ कभी साक्षी नहीं बन सकता। वो तो एक नंबर का शैतान है!”

विरोध का पहला अनुभव

शुक्र है कि इंसानों की तरह यहोवा ने मुझे शैतान नहीं समझा। फरवरी 1945 में, मेरे भाई डिमौसथनीज़ ने मुझे एक बुकलेट दी जिसका नाम है, शोक करनेवाले सभी को सांत्वना दें (अँग्रेज़ी)। * वह कायल हो चुका था कि यहोवा के साक्षी सच्चाई सिखाते हैं। उस बुकलेट में लिखी बातों ने मेरे दिल पर गहरा असर किया। हमने तुरंत ऑर्थोडॉक्स चर्च जाना छोड़ दिया और सिटीआ में रहनेवाले साक्षियों के छोटे समूह के साथ मिल गए। हमने अपने नए विश्‍वास के बारे में अपने भाई-बहनों को भी गवाही दी। उन सभी ने सच्चाई कबूल की। मगर जैसा हमने सोचा था, झूठे धर्म को छोड़ने के मेरे फैसले की वजह से मेरी पत्नी और उसके परिवार ने मेरा बहुत विरोध किया और वे मुझसे बुरा सलूक करने लगे। कुछ समय तक मेरे ससुर ने मुझसे बात करना भी बंद कर दिया। घर में हर वक्‍त झगड़े होते थे और तनाव रहता था। इन सब मुश्‍किलों के बावजूद मई 21, 1945 को भाई मीनोस कोकीनाकीस ने मुझे और मेरे भाई डिमौसथनीज़ को बपतिस्मा दिया। *

आखिरकार, मेरा वह सपना साकार हो गया! मैंने परमेश्‍वर के एक सच्चे सेवक के तौर पर सेवा शुरू की। मुझे आज भी वह दिन याद है जब मैंने पहली बार घर-घर की सेवा में हिस्सा लिया था। मेरे बैग में 35 बुकलेट थीं और मैं अकेला बस में बैठकर एक गाँव गया। डरते-डरते मैं घर-घर जाकर प्रचार करने लगा। मगर जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ता गया, वैसे-वैसे मेरी हिम्मत बढ़ने लगी। तभी एक बौखलाया हुआ पादरी मेरे पास आया और ज़िद करने लगा कि मैं उसके साथ पुलिस थाने चलूँ। लेकिन मैंने उसकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया। बड़ी हिम्मत के साथ उसका सामना करते हुए मैंने कहा कि जब तक मैं इस गाँव के सभी लोगों से बात न कर लूँ, मैं यहाँ से निकलनेवाला नहीं। और मैंने ऐसा ही किया। उस दिन इस जीत पर मैं इतना खुश था कि मैंने बस तक का इंतज़ार नहीं किया और 15 किलोमीटर पैदल चलकर वापस घर गया।

बेरहम गिरोह के हाथों में पड़ना

सितंबर 1945 को सिटीआ में बनी नयी कलीसिया में मुझे कई ज़िम्मेदारियाँ सौंपी गयीं। उसके कुछ ही समय बाद यूनान में गृह-युद्ध शुरू हो गया। विरोधी दलों की आपसी रंजिश की वजह से वे हिंसा पर उतर आए। और हालात का नाजायज़ फायदा उठाते हुए बिशप ने वहाँ के गुरील्ला गिरोह को उकसाया कि वे यहोवा के साक्षियों का काम तमाम कर दें, फिर चाहे इसके लिए उन्हें कोई भी तरीका क्यों न अपनाना पड़े। (यूहन्‍ना 16:2) गुरील्ला समूह के लोग बस में बैठकर हमारे गाँव की तरफ आते समय इस “ईश्‍वर के काम” को अंजाम देने की अपनी योजनाओं के बारे में बात कर रहे थे। उसी बस में सफर कर रही एक दोस्ताना स्वभाववाली स्त्री ने उनकी बातें सुन ली और हमें इस बारे में खबरदार कर दिया। हम फौरन छिप गए। हमारे एक रिश्‍तेदार ने भी हमारी मदद की। इस तरह हमारी जान बच गयी।

यह तो बस मुशकिलों से भरे दौर की शुरूआत थी। साक्षियों को मारना-पीटना और डराना-धमकाना रोज़ की बात हो गयी। हमारे विरोधियों ने हमें ज़बरदस्ती दोबारा चर्च ले जाने की कोशिश की, हमारे बच्चों को बपतिस्मा देना चाहा और क्रूस का निशान बनाने के लिए हम पर दबाव डाला। एक बार, उन्होंने मेरे भाई को तब तक मारा जब तक कि उन्हें नहीं लगा कि वह मर गया। मेरी आँखों के सामने उन्होंने मेरी दो बहनों के कपड़े फाड़कर उन्हें बुरी तरह पीटा, तो मेरा कलेजा छिद गया। उसी दौरान पादरियों ने यहोवा के साक्षियों के आठ बच्चों को पकड़कर ज़बरदस्ती चर्च में बपतिस्मा दे दिया।

सन्‌ 1949 में, मेरी माँ चल बसी। एक बार फिर पादरी हाथ धोकर हमारे पीछे पड़ गया। उसने हम पर झूठा इलज़ाम लगाया कि हमने अपनी माँ का अंतिम-संस्कार करने के लिए कानूनी माँगे पूरी नहीं की। मुझ पर मुकद्दमा चलाया गया मगर अदालत ने मुझे बाइज़्ज़त बरी कर दिया। इससे एक बहुत बढ़िया गवाही हुई, क्योंकि मुकद्दमे की शुरूआत में कहे गए शब्दों में यहोवा का नाम शामिल था। हमारे दुश्‍मनों को लगा कि “हमारी अक्ल तभी ठिकाने लगेगी” जब हमें गिरफ्तार कर लिया जाएगा और देश से निकालकर कारावास की सज़ा दी जाएगी। अप्रैल 1949 में वे अपने इस मंसूबे में भी कामयाब हो गए।

आग की भट्ठी में

मेरे साथ-साथ दो और भाइयों को गिरफ्तार किया गया। जब मुझे अपने इलाके के पुलिस थाने में रखा गया, तब मेरी पत्नी ने मेरी खोज-खबर तक नहीं ली। हमें सबसे पहले इराकलीअन जेल में रखा गया। जैसा मैंने शुरू में बताया मैं बिलकुल अकेला और मायूस था। मेरे घर में मेरी जवान पत्नी थी जो साक्षी नहीं थी और दो छोटे-छोटे बच्चे थे। ऐसे में मैंने यहोवा से गिड़गिड़ाकर बिनती की। इब्रानियों 13:5 में लिखी परमेश्‍वर की बात मेरे दिमाग में आयी: “मैं तुझे कभी न छोड़ूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा।” मुझे एहसास हुआ कि यहोवा पर पूरा भरोसा रखने में ही बुद्धिमानी है।—नीतिवचन 3:5.

हमें पता चला कि हम सबको यूनान के अटिका तट से दूर एक बंजर द्वीप, माक्रोनिसोस के कारावास में रखा जाएगा। माक्रोनिसोस का नाम सुनते ही लोगों की जान सूख जाती थी क्योंकि वो जेल, कैदियों पर बेरहमी से ज़ुल्म ढाने और उनसे गुलामी करवाकर उनका खून-पसीना चूसने के लिए मशहूर था। जेल जाते वक्‍त हम पाइरीअस में रुके। वहाँ हमारे कुछ मसीही भाई-बहन जहाज़ में चढ़े और उन्होंने हमें गले लगाया। इसलिए हथकड़ियों से बँधे होने के बावजूद हमारी बहुत हिम्मत बढ़ी।—प्रेरितों 28:14, 15.

माक्रोनिसोस जेल की ज़िंदगी वाकई खौफनाक थी। वहाँ के सैनिक सुबह से लेकर रात तक कैदियों के संग जानवरों-सा सलूक करते थे। बहुत-से कैदी जो साक्षी नहीं थे, पागल हो गए, कइयों की मौत हो गयी और बहुत सारे कैदियों को मार-पीटकर अपंग बना दिया गया। रात के वक्‍त जब कैदियों को तड़पाया जाता था तो हमें उनके चीखने-चिल्लाने और कराहने की आवाज़ सुनाई देती थी। रात में ऐसी कड़ाके की ठंड पड़ती थी कि मेरे पतले-से कंबल से मुझे बस नाम के लिए राहत मिलती थी।

धीरे-धीरे जेल में सभी, यहोवा के साक्षियों को जानने लगे, क्योंकि रोज़ाना सुबह हाज़िरी लेते वक्‍त हमें इसी नाम से बुलाया जाता था। इसलिए हमें दूसरों को गवाही देने के कई मौके मिले। मुझे एक राजनीतिक कैदी को बपतिस्मा देने का भी मौका मिला, जिसने इतनी अच्छी तरक्की की कि अपना जीवन यहोवा को समर्पित कर दिया था!

कारावास के दौरान मैं अपनी प्यारी पत्नी को खत लिखता रहा मगर उसका एक भी जवाबी खत नहीं आया। फिर भी मैंने उसे खत लिखना नहीं छोड़ा। अपने खतों में उसे दिलासा देता और यकीन दिलाता रहा कि सब्र करो, यह कुछ ही समय की बात है, फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा और हमारी खुशियाँ लौट आएँगी।

इस दौरान और भी भाइयों को इस जेल में लाया गया और इससे साक्षियों की गिनती बढ़ गयी। मैं वहाँ के ऑफिस में काम करता था, इसलिए उस कैंप के कमांडिग कर्नल से मेरी जान-पहचान हो गयी। वह साक्षियों की इज़्ज़त करता था, इसलिए मैंने हिम्मत जुटाकर उससे पूछा कि क्या हम अपने एथेंस के ऑफिस से कुछ साहित्य मँगवा सकते हैं। उसने कहा, “हरगिज़ नहीं।” फिर वह बोला: “मगर क्यों न एथेंस में रहनेवाले तुम्हारे लोग साहित्य का एक बैगेज बनाएँ और उस पर मेरा नाम लिखकर यहाँ भेजें?” मुझे तो यह सुनकर अपने कानों पर विश्‍वास ही नहीं हुआ! कुछ दिन बाद जब हम इस द्वीप में आयी नाव से सामान उतार रहे थे, तो एक पुलिसवाले ने कर्नल को सलामी देकर कहा: “सर, आपका बैगेज आ गया है।” कर्नल ने पूछा: “कौन-सा बैगेज?” अच्छा हुआ उस वक्‍त मैं वहीं पास में खड़ा था और मैंने उनकी बात सुन ली। मैंने धीरे से कर्नल के कान में कहा: “शायद वह बैगेज हमारा है जो आपके कहने पर आपके नाम पर भेजा गया है।” ऐसे ही कई तरीकों से ज़रिए यहोवा ने हम तक आध्यात्मिक भोजन पहुँचाकर हमारी अच्छी देखभाल की।

अचानक मिली आशीष, फिर और भी मुसीबतें

सन्‌ 1950 के आखिर में मुझे जेल से रिहा कर दिया गया। जब मैं घर लौटा, तो सूखकर काँटा हो चुका था, बहुत ही कमज़ोर हो गया और मेरा पूरा शरीर पीला पड़ गया था। मुझे यह भी पता नहीं था कि मेरे घर लौटने से परिवार में सभी को खुशी होगी या नहीं। अपनी पत्नी और बच्चों को फिर से देखकर मैं कितना खुश था! और-तो-और, मैं यह देखकर हैरान रह गया कि अब फ्रोसिनी के दिल में मेरे लिए नफरत नहीं थी। जेल से मैं जो खत उसे लिखता था, उनका उस पर गहरा असर हुआ। मेरे धीरज और लगन ने फ्रोसिनी के दिल को छू लिया। फिर कुछ समय बाद, मैंने हमारे बीच पैदा हुई दरार को भरने के लिए उसके साथ काफी देर तक बातचीत की। उसने बाइबल अध्ययन करना कबूल किया और यहोवा और उसके वादों पर विश्‍वास करने लगी। सन्‌ 1952 में मेरी ज़िंदगी का सबसे खुशी का दिन आया, जब मैंने अपनी पत्नी को बपतिस्मा दिया, जो अपना जीवन यहोवा को समर्पित करके उसकी सेवक बन गयी थी!

सन्‌ 1955 में हमने एक अभियान चलाया जिसमें, कौन “जगत के लिए उजियाला है”—ईसाईजगत या मसीहियत? (अँग्रेज़ी) नाम की बुकलेट हर पादरी को देने की योजना बनायी। मुझे और कई भाई-बहनों को हिरासत में लिया गया और हमें अदालत में पेश किया गया। यहोवा के साक्षियों के खिलाफ इतने मुकद्दमे दर्ज़ थे कि उन सबकी सुनवायी के लिए अदालत को अलग-से एक वक्‍त रखना पड़ा। उस दिन पूरे प्राँत के सभी कानूनी संगठन वहाँ मौजूद थे और अदालत पादरियों से खचाखच भरी हुई थी। इलाके का बिशप गलियारे में घबराहट के मारे आगे-पीछे चहल-कदमी कर रहा था। एक पादरी ने मुझ पर धर्म बदलने का मुकद्दमा दायर किया था। जज ने उससे पूछा: “क्या तुम्हारा विश्‍वास इतना कमज़ोर है कि बस एक ब्रोशर के पढ़ने से तुम अपना धर्म बदल दोगे?” यह सुनकर पादरी की बोलती बंद हो गयी। मुझे बाइज़्ज़त बरी कर दिया गया। लेकिन कुछ भाइयों को छः महीने की कैद हुई।

उसके बाद के सालों में हमें कई बार गिरफ्तार किया गया और अदालत में हमारे खिलाफ मुकद्दमे बढ़ते गए। साक्षियों के वकीलों को काफी दौड़-धूप करनी पड़ती थी। मुझे 17 बार अदालत में पेश होना पड़ा। इन सारे विरोध के बावजूद हमने नियमित तौर पर प्रचार करना जारी रखा। हमने इस चुनौती को खुशी-खुशी कबूल किया और धधकती आग जैसी परीक्षाओं ने हमारे विश्‍वास को पहले से ज़्यादा मज़बूत कर दिया।—याकूब 1:2, 3.

नयी ज़िम्मेदारियाँ और चुनौतियाँ

सन्‌ 1957 में, हम एथेंस में जाकर बस गए। वहाँ जाने के कुछ ही समय बाद मुझे एक नयी कलीसिया में सेवा करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी। मेरी पत्नी ने मेरा पूरा साथ दिया, इसलिए हम अपना जीवन बिलकुल सादा रख सके और हमेशा आध्यात्मिक बातों को अहमियत दे सके। इस तरह हम अपना ज़्यादा-से-ज़्यादा समय प्रचार काम में लगा पाते थे। पिछले कुछ सालों के दौरान, हमें ऐसी कई कलीसियाओं में जाने के लिए कहा गया जहाँ भाई-बहनों को मदद की ज़रूरत थी।

सन्‌ 1963 में जब मेरा बेटा 21 साल का हुआ, तब उसे कानून की माँग के मुताबिक सेना में भरती होना था। हमारे बहुत-से भाइयों को जब सेना में भरती होने के लिए कहा गया तो उन्होंने निष्पक्ष रहने के अपने फैसले की वजह से ऐसा करने से इनकार कर दिया। उन्हें बहुत बुरी तरह मारा-पीटा गया, उनका मज़ाक उड़ाया गया और उनकी बेइज़्ज़ती की गयी। मेरे बेटे को भी इन सब मुश्‍किलों से गुज़रना पड़ा। इसलिए मैंने उसे माक्रोनिसोस जेल का वह कंबल दिया ताकि उसे पहले के खराई रखनेवाले साक्षियों की मिसाल पर चलने का हौसला मिले। आम तौर पर उन भाइयों का कोर्ट मार्शल किया जाता था और उन्हें दो से चार साल की सज़ा दी जाती थी। उनकी रिहाई के बाद उन्हें फिर से सज़ा सुनायी गयी। धर्म का एक सेवक होने के नाते मुझे अलग-अलग जेलों में जाने की छूट थी, इसलिए कुछ हद तक मैं अपने बेटे और दूसरे वफादार साक्षियों से मिल पाता था। मेरे बेटे ने छः से ज़्यादा साल तक जेल की सज़ा काटी।

यहोवा ने हमें सँभाला

यूनान में अपनी पसंद के धर्म को मानने की आज़ादी दिए जाने के बाद मुझे रोड्‌ज़ द्वीप में कुछ समय के लिए स्पेशल पायनियर सेवा करने का मौका मिला। फिर सन्‌ 1986 में क्रीट के सिटीआ शहर में मदद की ज़रूरत पैदा हुई, जहाँ मैंने मसीही सेवा शुरू की थी। जब मुझे वहाँ सेवा करने के लिए कहा गया, तो मैं बहुत खुश हुआ क्योंकि मुझे वहाँ के उन अज़ीज़ भाई-बहनों से साथ मिलकर दोबारा काम करने का मौका मिला जिन्हें मैं जवानी के समय से जानता था।

अपने परिवार में, मैं सबसे बुज़ुर्ग हूँ और यह मेरे लिए वाकई खुशी की बात है कि आज मेरे नाते-रिश्‍तेदारों में से 70 जन वफादारी से यहोवा की सेवा कर रहे हैं। इतना ही नहीं, यह गिनती दिन-पर-दिन बढ़ती जा रही है। उनमें से कई प्राचीन हैं, तो कई सहायक सेवक, पायनियर, बेथेल सेवक और सफरी ओवरसियर भी हैं। अट्ठावन से भी ज़्यादा सालों तक मेरे विश्‍वास को परीक्षाओं की जलती भट्ठी में तपाया गया है। अब मेरी उम्र 93 साल है और जब मैं अपनी गुज़री ज़िंदगी के बारे में सोचता हूँ तो परमेश्‍वर की सेवा करने का मुझे ज़रा भी पछतावा नहीं होता। उसने मुझे अपने इस प्यार-भरे न्यौते को स्वीकार करने की ताकत दी: “हे मेरे पुत्र, अपना मन मेरी ओर लगा, और तेरी दृष्टि मेरे चालचलन पर लगी रहे।”—नीतिवचन 23:26.

[फुटनोट]

^ पैरा. 9 दिसंबर 1, 1999 की प्रहरीदुर्ग के पेज 30-1 देखिए।

^ पैरा. 11 ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च के पादरियों को शादी करने की इजाज़त है।

^ पैरा. 12 इमानवील लीओनूदॉकीस की जीवन कहानी, सितंबर 1, 1999 की प्रहरीदुर्ग के पेज 25-9 पर दी गयी है।

^ पैरा. 15 इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया, मगर यह बुकलेट अब नहीं छापी जाती है।

^ पैरा. 15 भाई मीनोस कोकीनाकीस के मामले में जो कानूनी जीत हासिल हुई, उसके बारे में सितंबर 1, 1993 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) के पेज 27-31 देखिए।

[पेज 27 पर बक्स]

माक्रोनिसोस एक खौफनाक द्वीप

सन्‌ 1947 से 1957 तक, दस साल के लिए मुझे माक्रोनिसोस द्वीप में रखा गया जो बंजर और वीरान था। वहाँ पर 1,00,000 से ज़्यादा कैदी थे। कैदियों में ऐसे बहुत-से वफादार साक्षी भी थे जिनको अपनी मसीही निष्पक्षता की वजह से वहाँ भेजा गया था। इन सबको देश-निकाले की सज़ा देने के पीछे ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च के पादरियों का हाथ था। उन्होंने साक्षियों पर समाजवादी होने का झूठा इलज़ाम लगाया।

माक्रोनिसोस में कैदियों को “सुधारने” का जो तरीका अपनाया जाता था, उसके बारे में यूनानी एन्साइक्लोपीडिया पापीरोस लैरूस ब्रिटैनिका कहती है: “कैदियों को बड़ी बेदर्दी से तड़पाया जाता, . . . वहाँ के हालात इतने बदतर थे कि वे किसी भी इंसान के रहने लायक नहीं थे और वहाँ के पहरेदार, कैदियों के साथ जानवरों-सा सलूक करते थे, . . . यह यूनान के इतिहास पर लगा एक बदनुमा दाग है।”

कुछ साक्षियों से कहा गया कि अगर उन्होंने अपने धार्मिक विश्‍वासों को नहीं त्यागा, तो उन्हें कभी रिहा नहीं किया जाएगा। मगर साक्षियों ने अपनी खराई बनाए रखी। इतना ही नहीं, कुछ राजनीतिक कैदियों ने साक्षियों के साथ-साथ रहने की वजह से बाइबल सच्चाई को अपना लिया।

[पेज 27 पर तसवीर]

माक्रोनिसोस द्वीप पर जेल की सज़ा काटते वक्‍त, मीनोस कोकीनाकीस (दाएँ से तीसरा) और मैं (बाएँ से चौथा)

[पेज 29 पर तसवीर]

अपने साक्षी भाई के साथ क्रीट के सिटीआ शहर में प्रचार करते हुए, जहाँ मैंने जवानी में सेवा की थी