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‘मेरे वचन में बने रहो’

‘मेरे वचन में बने रहो’

‘मेरे वचन में बने रहो’

“यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे।”—यूहन्‍ना 8:31.

1. (क) जब यीशु स्वर्ग लौटा, तो उसने धरती पर क्या छोड़ा? (ख) हम किन सवालों पर ध्यान देंगे?

यीशु मसीह ने मसीहियत की बुनियाद डाली थी। स्वर्ग लौटने से पहले उसने धरती पर अपने हाथों से लिखी कोई किताब नहीं छोड़ी, ना उसने बड़ी-बड़ी इमारतें बनायीं और ना ही अपने लिए धन-दौलत जमा की थी। मगर उसने धरती पर अपने चेलों को छोड़ा था। साथ ही उसने ऐसी कुछ खास माँगों के बारे में भी बताया जिन्हें पूरा करने पर एक इंसान उसका चेला बन सकता है। इनमें से तीन ज़रूरी माँगों का ज़िक्र हम सुसमाचार की किताब, यूहन्‍ना में पाते हैं। वे तीन माँगे क्या हैं? उन्हें हम कैसे पूरा कर सकते हैं? और हम कैसे जान सकते हैं कि आज हम निजी तौर पर मसीह के चेले बनने के काबिल हैं? *

2. यूहन्‍ना की लिखी सुसमाचार की किताब में यीशु का चेला बनने के लिए कौन-सी ज़रूरी माँग दर्ज़ है?

2 अपनी मौत के करीब छः महीने पहले यीशु, यरूशलेम गया और वहाँ पर लोगों की भीड़ को प्रचार करने लगा जो हफ्ते-भर चलनेवाले मंडपों का पर्व मनाने के लिए आयी हुई थी। इसका नतीजा यह हुआ कि जब तक पर्व आधा खत्म हो चुका तब तक “भीड़ में से बहुतेरों ने उस पर विश्‍वास किया।” यीशु ने प्रचार करना जारी रखा, और उस पर्व के आखिर में एक बार फिर “बहुतेरों ने उस पर विश्‍वास किया।” (यूहन्‍ना 7:10, 14, 31, 37; 8:30) उसी दौरान, यीशु ने विश्‍वास करनेवाले नए जनों पर ध्यान दिया और उसका चेला बनने के लिए एक ज़रूरी माँग बतायी। इस माँग को प्रेरित यूहन्‍ना ने अपनी सुसमाचार की किताब में दर्ज़ किया है: “यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे।”—तिरछे टाइप हमारे; यूहन्‍ना 8:31.

3. ‘[यीशु के] वचन में बने रहने’ के लिए एक इंसान में कौन-सा गुण होना ज़रूरी है?

3 यीशु के उन शब्दों का मतलब यह नहीं था कि नए लोगों में विश्‍वास की कमी थी। इसके बजाय वह यह बता रहा था कि वे चाहें तो उसके सच्चे चेले साबित हो सकते हैं, बशर्ते वे उसके वचन में बने रहें और धीरज धरें। उन्होंने उसके संदेश को कबूल किया था, मगर अब उन्हें चाहिए था कि वे हमेशा उसमें बने रहें। (यूहन्‍ना 4:34; इब्रानियों 3:14) वाकई यीशु का यह मानना था कि उसके चेलों में धीरज का गुण होना बहुत ज़रूरी है। इसलिए जैसे सुसमाचार की किताब, यूहन्‍ना में दर्ज़ है, यीशु ने अपने प्रेरितों से आखिरी बातचीत के दौरान दो बार कहा: “मेरे पीछे चलते रहो।” (यूहन्‍ना 21:19, 22, NW) शुरूआत के कई मसीहियों ने बिलकुल वैसा ही किया। (2 यूहन्‍ना 4) लेकिन किस बात ने धीरज धरने में उनकी मदद की?

4. शुरूआत के मसीहियों को किस बात ने धीरज धरने में मदद दी?

4 प्रेरित यूहन्‍ना, करीब सत्तर साल तक वफादारी से मसीह का चेला रहा था। उसने एक ज़रूरी बात बतायी जो चेलों में होनी चाहिए। उसने वफादार मसीहियों की तारीफ में कहा: “तुम बलवन्त हो, और परमेश्‍वर का वचन तुम में बना रहता है, और तुम ने उस दुष्ट पर जय पाई है।” मसीह के उन चेलों ने धीरज धरा यानी वे परमेश्‍वर के वचन में बने रहे, क्योंकि परमेश्‍वर का वचन उन में बना था। उनके दिल में वचन के लिए गहरी कदर थी। (1 यूहन्‍ना 2:14, 24) ठीक उसी तरह, आज भी ‘अन्त तक धीरज धरने के लिए’ हमें ध्यान देना चाहिए कि परमेश्‍वर का वचन हममें बना रहे। (मत्ती 24:13) यह हम कैसे कर सकते हैं? इसका जवाब हमें यीशु के एक दृष्टांत से मिल सकता है।

‘वचन को सुनना’

5. (क) यीशु ने अपने एक दृष्टांत में किन अलग-अलग किस्म की भूमि के बारे में बताया? (ख) यीशु ने अपने दृष्टांत में जिस बीज और भूमि का ज़िक्र किया, उनका मतलब क्या है?

5 यीशु ने एक बीज बोनेवाले का दृष्टांत बताया जो मत्ती, मरकुस और लूका, इन तीनों सुसमाचार की किताबों में दर्ज़ है। (मत्ती 13:1-9, 18-23; मरकुस 4:1-9, 14-20; लूका 8:4-8, 11-15) उनमें दर्ज़ वृत्तांतों को पढ़ने से आप उस दृष्टांत की एक खास बात पर गौर करेंगे। वह यह है कि एक ही किस्म का बीज अलग-अलग तरह की भूमि पर गिरता है और नतीजे भी अलग-अलग निकलते हैं। पहली किस्म की भूमि बहुत सख्त है, दूसरी किस्म की भूमि ज़्यादा गहरी नहीं है, और तीसरी में झाड़ियाँ उग आयीं हैं। मगर चौथी किस्म की भूमि इन तीनों से अलग है और इसे “अच्छी भूमि” कहा गया है। यीशु ने खुद समझाया कि बीज, परमेश्‍वर के वचन में पाया जानेवाला राज्य का संदेश है और भूमि उन लोगों को दर्शाती है जिनके दिल की हालत अलग-अलग है। यह सच है कि लोगों को दर्शानेवाली अलग-अलग किस्म की भूमि में कुछ समानताएँ हैं। मगर फिर भी, जिन लोगों को अच्छी भूमि कहा गया है, उनमें एक ऐसी खासियत है जो दूसरों में नहीं है।

6. (क) यीशु के दृष्टांत में चौथी किस्म की भूमि, बाकी तीन किस्म की भूमियों से किस तरह अलग थी और उसका क्या मतलब है? (ख) मसीह के चेलों के तौर पर धीरज धरने के लिए क्या ज़रूरी है?

6 लूका 8:12-15 में बताया गया दृष्टांत दिखाता है कि चारों किस्म के लोग ‘वचन को सुनते हैं।’ लेकिन जिनका ‘मन भला और उत्तम’ है, वे ‘वचन सुनने’ के अलावा और भी कुछ करते हैं। वे उसे “सम्भाले रहते हैं, और धीरज से फल लाते हैं।” अच्छी भूमि की मिट्टी नरम और गहरी होती है, इसलिए बीज की जड़ें एकदम गहराई तक पहुँच पाती हैं और उसकी पकड़ मज़बूत होती है। बीज का अंकुर फूटता है और बड़े होने पर उसमें फल लगते हैं। (लूका 8:8) उसी तरह अच्छे हृदयवाले लोग, परमेश्‍वर के वचन की अहमियत पहचानते हैं, और उसे अपने दिल में उतार लेते हैं। (रोमियों 10:10; 2 तीमुथियुस 2:7) इसलिए परमेश्‍वर का वचन उनमें बना रहता है। और नतीजा यह होता है कि वे धीरज के साथ फल लाते हैं। यह दिखाता है कि मसीह के चेले तभी धीरज धर पाएँगे जब वे दिल से परमेश्‍वर के वचन की कदर करेंगे। (1 तीमुथियुस 4:15) लेकिन हम परमेश्‍वर के वचन के लिए दिल में ऐसी कदर कैसे पैदा कर सकते हैं?

हृदय की हालत और गहरा मनन

7. अच्छे हृदय के साथ कौन-सा काम गहरा ताल्लुक रखता है?

7 गौर कीजिए कि बाइबल में बार-बार अच्छे हृदय या मन के साथ किस काम को जोड़ा गया है। “धर्मी मन में सोचता है कि क्या उत्तर दूं। (नीतिवचन 15:28) “मेरे मुंह के वचन ओर मेरे हृदय का ध्यान तेरे सम्मुख ग्रहण योग्य हों, हे यहोवा परमेश्‍वर, मेरी चट्टान और मेरे उद्धार करनेवाले!” (भजन 19:14) “मेरे हृदय का चिन्तन समझ ही होगा।”—सभी तिरछे टाइप हमारे; भजन 49:3, NHT.

8. (क) बाइबल पढ़ते वक्‍त, हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं? (ख) परमेश्‍वर के वचन पर जब हम प्रार्थना के साथ-साथ मनन करते हैं, तब हमें क्या फायदे मिलते हैं? (‘सत्य में स्थिर किए गए’ बक्स की जानकारी भी शामिल कीजिए।)

8 बाइबल के इन लेखकों की तरह हमें भी परमेश्‍वर के वचन और उसके कामों के लिए कदर दिखाते और प्रार्थना करते हुए मनन करना चाहिए। बाइबल और बाइबल पर आधारित साहित्य पढ़ते वक्‍त हमें ऐसे पर्यटकों की तरह नहीं होना चाहिए जो वक्‍त कम होने की वजह से फटाफट एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं, दिखनेवाली हर चीज़ की फोटो खींचते हैं, मगर रुककर किसी नज़ारे का मज़ा नहीं लेते। इसके बजाय, जब हम बाइबल का अध्ययन करते हैं, तो हमें एक आयत को पढ़ने के बाद कुछ देर के लिए उस पर मनन करना चाहिए। * जब हम परमेश्‍वर के वचन में पढ़ी हुई बात पर शांत मन से ध्यान करते हैं, तो उसका असर हमारे दिल पर पड़ता है। इस तरह का अध्ययन हमारी भावनाओं को छू जाता है और हमारी सोच को ढालता है। फिर हममें प्रार्थना के ज़रिए परमेश्‍वर से अपने दिल की बात कहने की प्रेरणा जागती है। इस तरह यहोवा के साथ हमारा रिश्‍ता और भी मज़बूत होता है और परमेश्‍वर के लिए हमारा प्यार, हमें मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात में भी यीशु के नक्शे-कदम पर चलने के लिए उकसाता है। (मत्ती 10:22) इससे साफ ज़ाहिर होता है कि अंत तक वफादार रहने के लिए परमेश्‍वर की बातों पर मनन करना बेहद ज़रूरी है।—लूका 21:19.

9. हम क्या कर सकते हैं ताकि हमारा हृदय हमेशा परमेश्‍वर के वचन को कबूल करने के लिए तैयार हो?

9 यीशु के दृष्टांत से यह भी पता चलता है कि परमेश्‍वर के वचन के बीज के बढ़ने में कुछ रुकावटें आती हैं। इसलिए वफादार चेले बनने के लिए हमें (1) उन रुकावटों को पहचानना होगा जिनको दृष्टांत में खराब मिट्टी कहा गया है। फिर (2) उन्हें सुधारने या उनसे दूर रहने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। ऐसा करने से हम अपने हृदय को हमेशा सही हालत में रख पाएँगे ताकि इसमें राज्य का बीज आसानी से जड़ पकड़े और फल लाए।

“मार्ग के किनारे”—ज़िंदगी की भाग-दौड़ में डूबे रहना

10. यीशु के दृष्टांत में बतायी पहली किस्म की भूमि का ब्यौरा दीजिए, और उसका मतलब समझाइए।

10 पहले किस्म की भूमि है, “मार्ग के किनारे” की भूमि। वहाँ पर गिरनेवाले बीज को “रौंदा” जाता है। (लूका 8:5) जो रास्ता किसी खेत के बीच से होकर जाता है, उसकी मिट्टी बहुत सख्त होती है, क्योंकि उस पर हमेशा लोगों का आना-जाना रहता है। (मरकुस 2:23) उसी तरह आज लोग इस संसार की भाग-दौड़ में अपना सारा समय और अपनी ताकत खर्च कर देते हैं जिससे कि उन्हें परमेश्‍वर के वचन के लिए गहरी कदरदानी पैदा करने की ज़रा भी फुरसत नहीं मिलती। वे वचन को सुनते तो हैं, मगर उस पर मनन नहीं करते। इसलिए उनका हृदय सख्त हो जाता है और वचन का उनके हृदय पर कोई असर नहीं होता। इससे पहले कि उनके दिल में वचन के लिए प्यार पैदा हो, “शैतान आकर उन के मन से वचन उठा ले जाता है, कि कहीं ऐसा न हो कि वे विश्‍वास करके उद्धार पाएं।” (लूका 8:12) क्या इससे बचा जा सकता है?

11. हम अपने हृदय को सख्त ज़मीन की तरह बनने से कैसे बचा सकते हैं?

11 अपने हृदय को मार्ग के किनारे की भूमि की तरह सख्त और बंजर बनने से बचाने के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है। जो ज़मीन रौंदी गयी है और सख्त हो गयी है, उसे नरम और उपजाऊ बनाने के लिए उस पर हल जोतना ज़रूरी होता है, साथ ही लोगों के आने-जाने के लिए कोई दूसरा रास्ता तैयार करना होता है। उसी तरह समय निकालकर परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने और उस पर मनन करने से हमारा हृदय अच्छा और उपजाऊ ज़मीन के जैसा बन सकता है। ज़रूरी बात यह है कि हमें रोज़ाना ज़िंदगी की हर छोटी-मोटी बातों में नहीं डूबे रहना चाहिए। (लूका 12:13-15) इसके बदले, हमें ज़िंदगी में “उत्तम से उत्तम बातों” पर मनन करने के लिए समय निकालना चाहिए।—फिलिप्पियों 1:9-11.

“चट्टान पर”—डर का हावी होना

12. यीशु के दृष्टांत में बतायी गयी दूसरी किस्म की भूमि में उगनेवाले अंकुर के मुरझा जाने की असली वजह क्या है?

12 दूसरी किस्म की भूमि यानी चट्टान पर गिरनेवाला बीज, पहली किस्म की भूमि पर गिरे बीज की तरह ज़मीन के ऊपर ही पड़ा नहीं रहता। उसमें जड़ें निकलती हैं और अंकुर भी फूटता है। मगर जब सूरज की गर्मी उस पर पड़ती है तो अंकुर सूखकर मुरझा जाता है। लेकिन इस अहम बात पर ध्यान दीजिए। अंकुर के मुरझा जाने का असली कारण सूरज की गर्मी नहीं है। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि अच्छी भूमि पर उगनेवाले पौधे पर भी सूरज की गर्मी पड़ती है, मगर वह मुरझाता नहीं बल्कि फलता-फूलता है। तो चट्टान पर उगनेवाले अंकुर के मुरझा जाने की वजह क्या है? यीशु ने कारण बताया कि अंकुर, “नमी” और “गहरी मिट्टी न मिलने के कारण” मुरझा जाता है। (लूका 8:6, NHT; मत्ती 13:5, 6) मिट्टी की ऊपरी परत के नीचे “चट्टान” यानी चट्टानी परत होती है, और यही परत बीज की जड़ों को ज़मीन की गहराई तक जाने से रोकती है। ऐसे में बीज को ना तो ज़मीन से नमी मिलती है और ना ही वह अडिग खड़ा रह पाता है। इस तरह भूमि गहरी न होने की वजह से अंकुर मुरझा जाता है।

13. कौन उस भूमि की तरह हैं जिसकी गहराई कम है और वे जो रवैया दिखाते हैं, उसकी असली वजह क्या है?

13 दृष्टांत के इस भाग में उन लोगों का ज़िक्र है जो “आनन्द से वचन को ग्रहण तो करते हैं,” पर सिर्फ “थोड़ी देर तक” जोश के साथ यीशु के नक्शे-कदम पर चलते हैं। (लूका 8:13) जब “क्लेश या उपद्रव” की कड़कती धूप उन पर पड़ती है, तो वे इतने डर जाते हैं कि उनकी खुशी छिन जाती है, वे हिम्मत हार बैठते हैं और यीशु के चेलों के तौर पर उसके पीछे चलना छोड़ देते हैं। (मत्ती 13:21) मगर उनके डर की असली वजह विरोध नहीं है। क्योंकि मसीह के ऐसे लाखों चेले हैं जो तरह-तरह के क्लेश सहते हुए भी वफादार रहे हैं। (2 कुरिन्थियों 2:4; 7:5) उनके डर जाने और सच्चाई को छोड़ देने की असली वजह उनका दिल है जो पत्थर जैसा बन गया है। उनका यह पत्थर-दिल उन्हें आध्यात्मिक बातों और ऐसे दूसरे विषयों पर गहराई से मनन नहीं करने देता जिनसे उन्‍नति होती है। नतीजा यही होता है कि उनके दिल में यहोवा और उसके वचन के लिए सिर्फ ऊपरी तौर पर कदर पैदा होती है और वे इतने कमज़ोर होते हैं कि विरोध का सामना नहीं कर पाते। ऐसे अंजाम से बचने के लिए एक इंसान क्या कर सकता है?

14. एक इंसान का हृदय ऐसी भूमि न बने जिसकी गहराई कम हो, इसके लिए उसे क्या करना चाहिए?

14 एक इंसान को सावधानी बरतने की ज़रूरत है कि उसके दिल में नफरत, स्वार्थ या ऐसी कुछ भावनाएँ गहराई से न बस जाएँ, वरना ये चट्टान की तरह बाधाएँ खड़ी कर देंगी। अगर ये बाधाएँ उसके दिल में पहले से ही मौजूद हैं, तो परमेश्‍वर के वचन की ताकत से उन्हें उखाड़कर फेंका जा सकता है। (यिर्मयाह 23:29; इफिसियों 4:22; इब्रानियों 4:12) उसके बाद प्रार्थना के साथ मनन करने से उस व्यक्‍ति के दिल की गहराई तक ‘वचन बोया जाएगा।’ (याकूब 1:21) इससे हताशा का सामना करने की ताकत मिलेगी और परीक्षाओं के बावजूद वफादार बने रहने की हिम्मत भी मिलेगी।

“झाड़ियों के बीच”—दिल का बँटना

15. (क) यीशु की बतायी तीसरी किस्म की भूमि पर हमें क्यों खासतौर पर ध्यान देना चाहिए? (ख) आखिरकार तीसरी किस्म की भूमि में क्या होता है, और क्यों?

15 तीसरी किस्म की झाड़ियोंवाली भूमि पर हमें खासकर ध्यान देने की ज़रूरत है, क्योंकि इसमें और अच्छी भूमि में कुछ बातें मिलती-जुलती हैं। अच्छी भूमि की तरह, इसमें भी बीज जड़ पकड़ता है और उगने लगता है। शुरू-शुरू में इन दोनों किस्म की ज़मीन में पौधा एक ही तरीके से बढ़ता है। मगर कुछ समय बाद, तीसरी किस्म की भूमि में ऐसे हालात पैदा होते हैं कि उसमें उगनेवाला पौधा आखिरकार दबोच लिया जाता है। दरअसल यह भूमि झाड़ियों से भर जाती है। और जब नाज़ुक पौधा धीरे-धीरे बढ़ने लगता है, तो उसे ‘बढ़ती झाड़ियों’ के साथ मुकाबला करना पड़ता है। कुछ समय तक दोनों के बीच आहार, रोशनी और जगह के लिए खींचा-तानी चलती है, मगर आखिर में जीत झाड़ियों की होती है जो पौधे को ‘दबा लेती’ हैं।—लूका 8:7.

16. (क) किस तरह के लोग झाडियोंवाली भूमि की तरह हैं? (ख) सुसमाचार की तीनों किताबों के मुताबिक झाड़ियाँ किस बात को दर्शाती हैं?—फुटनोट देखिए।

16 झाड़ियोंवाली भूमि किन लोगों को दर्शाती है? यीशु बताता है: “जो झाड़ियों में गिरा, सो वे हैं, जो सुनते हैं, पर होते होते चिन्ता और धन और जीवन के सुख विलास में फंस जाते हैं [“पूरी तरह दब जाते हैं,” NW], और उन का फल नहीं पकता।” (लूका 8:14) जिस तरह भूमि पर बोया गया बीज और झाड़ियाँ, दोनों एक-साथ बढ़ते हैं, उसी तरह कुछ लोग अपने दिल में परमेश्‍वर के वचन और “सुख विलास” दोनों के लिए जगह बनाते हैं। परमेश्‍वर के वचन की सच्चाई उनके दिल में बोयी जाती है, मगर जब उनका मन सुख-विलास की तरफ खिंचने लगता है, तब सच्चाई और सुख-विलास के बीच खींचा-तानी शुरू हो जाती है। और उनका लाक्षणिक हृदय बँट जाता है। (लूका 9:57-62) इस वजह से वे परमेश्‍वर के वचन पर प्रार्थना के साथ, सही तरह से मनन करने के लिए वक्‍त नहीं निकाल पाते। परमेश्‍वर के वचन की बातों को अपने दिल में पूरी तरह बसा नहीं पाते और इस तरह धीरज धरने के लिए ज़रूरी कदर पैदा नहीं कर पाते। धीरे-धीरे वे अपने आध्यात्मिक लक्ष्यों को भूलकर, दूसरे लक्ष्यों के पीछे इस कदर भागने लगते हैं कि उनके आध्यात्मिक लक्ष्य ‘पूरी तरह दब जाते हैं।’ * वाकई जो पूरे दिल से यहोवा से प्रेम नहीं करते, उनका क्या ही बुरा अंजाम!—मत्ती 6:24; 22:37.

17. यीशु के दृष्टांत में बतायी गयी लाक्षणिक झाड़ियों से नहीं दबने के लिए हमें अपनी ज़िंदगी में कौन-से चुनाव करने होंगे?

17 भौतिक चीज़ों के बदले आध्यात्मिक बातों को पहला स्थान देने से हम इस दुनिया की दुःख-तकलीफों और सुख-विलास को खुद पर हावी नहीं होने देंगे। (मत्ती 6:31-33; लूका 21:34-36) हमें कभी-भी बाइबल पढ़ने और उस पर मनन करने की आदत को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। अगर हम अपनी तरफ से ज़िंदगी को सादा रखने की पूरी कोशिश करेंगे, तो हमें प्रार्थना के साथ-साथ मनन करने के लिए और ज़्यादा वक्‍त मिलेगा। (1 तीमुथियुस 6:6-8) परमेश्‍वर के जिन सेवकों ने ऐसा किया है, उन्होंने मानो भूमि से झाड़ियों को उखाड़ फेंका है ताकि फलदार पौधों को पोषण, रोशनी और बढ़ने के लिए जगह मिले। इसलिए उन्होंने यहोवा की आशीषें पायी हैं। छब्बीस साल की सेन्ड्रा कहती है: “सच्चाई में आने के बाद मुझे जो-जो आशीषें मिली हैं, उनके बारे में मनन करने पर मुझे एहसास होता है कि उनके सामने संसार की चीज़ें कुछ भी नहीं हैं!—भजन 84:11.

18. हम किस तरह परमेश्‍वर के वचन में बने रह सकते हैं और मसीहियों के तौर पर धीरज धर सकते हैं?

18 तो फिर यह बिलकुल साफ है कि छोटे-बड़े, हम सभी तब तक परमेश्‍वर के वचन में बने रहेंगे और मसीह के चेलों के तौर पर धीरज धरेंगे जब तक परमेश्‍वर का वचन हमारे दिल में बना रहेगा। आइए हम ठान लें कि हम अपनी लाक्षणिक ज़मीन यानी हृदय को कभी-भी सख्त, कम गहरी या झाड़ियों से भरी नहीं होने देंगे। इसके बजाए उसे नरम और गहरी रखेंगे। ऐसा करने से हम परमेश्‍वर के वचन को अपने अंदर पूरी तरह समा पाएँगे और ‘धीरज से फल ला पाएँगे।’—लूका 8:15.

[फुटनोट]

^ पैरा. 1 इस लेख में हम पहली माँग के बारे में चर्चा करेंगे। बाकी दो माँगों की चर्चा अगले दो लेखों में की जाएगी।

^ पैरा. 8 बाइबल के किसी भाग को पढ़ने के बाद उस पर प्रार्थना के साथ मनन करने के लिए, आप खुद से कुछ ऐसे सवाल पूछ सकते हैं: ‘क्या इस भाग में यहोवा के एक या उससे ज़्यादा गुणों के बारे में पता चलता है? यह जानकारी किस तरह बाइबल के मूल-विषय से जुड़ी है? मैं इस जानकारी को अपनी ज़िंदगी में कैसे लागू कर सकता हूँ या इससे दूसरों की कैसे मदद कर सकता हूँ?’

^ पैरा. 16 सुसमाचार की तीनों किताबों के मुताबिक, यीशु के दृष्टांत में बताया गया बीज, इस दुनिया के दुःख-तकलीफों और सुख-विलास से दब जाता है: “संसार की चिन्ता”, “धन का धोखा”, “वस्तुओं का लोभ”, और “जीवन के सुख विलास।”—मरकुस 4:19; मत्ती 13:22; लूका 8:14; यिर्मयाह 4:3, 4.

आपके जवाब क्या हैं?

• ‘यीशु के वचन में बने रहना,’ हमारे लिए क्यों ज़रूरी है?

• हमें क्या करना होगा ताकि परमेश्‍वर का वचन हमारे हृदय में बना रहे?

• यीशु ने जिन चार किस्म की भूमि के बारे में बताया था वे किन-किन लोगों को दर्शाती हैं?

• परमेश्‍वर के वचन पर मनन करने के लिए आप कैसे समय निकाल सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 10 पर बक्स/तसवीर]

‘सत्य में स्थिर किए गए’

जो लंबे समय से मसीह के चेले हैं, वे साल-दर-साल साबित करते हैं कि वे ‘सत्य में स्थिर किए गए हैं।’ (2 पतरस 1:12, NHT) क्या बात उन्हें धीरज धरने में मदद देती है? ज़रा ध्यान दीजिए कि कुछ लोगों ने इसके बारे में क्या कहा।

“दिन के आखिर में, मैं बाइबल का एक हिस्सा पढ़ती हूँ और परमेश्‍वर से प्रार्थना करती हूँ। उसके बाद, मैं पढ़ी हुई बातों के बारे में सोचती हूँ।”—जीन, जिसका बपतिस्मा सन्‌ 1939 में हुआ।

“यहोवा इतना महान होने के बावजूद हमसे बेहद प्यार करता है, इस बात पर मनन करने से मैं खुद को सुरक्षित महसूस करती हूँ और इससे मुझे यहोवा का वफादार बने रहने की ताकत मिलती है।”—पट्रिशा, जिसका बपतिस्मा सन्‌ 1946 में हुआ।

“बाइबल अध्ययन करने की अच्छी आदत डालने और ‘परमेश्‍वर की गूढ़ बातों’ को अपने मन में पूरी तरह उतारने की वजह से, मैं अब तक यहोवा की सेवा कर रही हूँ।”—1 कुरिन्थियों 2:10; ऐन्‍ना, जिसका बपतिस्मा सन्‌ 1939 में हुआ।

“मैं अपने हृदय और इरादों की जाँच करने के मकसद से बाइबल और बाइबल को समझानेवाले साहित्य पढ़ती हूँ।”—ज़ेल्डा, जिसका बपतिस्मा सन्‌ 1943 में हुआ।

“जब मैं सैर पर निकलता हूँ, तब चलते-चलते यहोवा से बात करता हूँ और उसे अपने दिल की बात बताता हूँ। सच कहूँ तो ये घड़ियाँ मेरे लिए सबसे अनमोल होती हैं।”—रैल्फ, जिसका बपतिस्मा सन्‌ 1947 में हुआ।

“मैं दिन की शुरूआत रोज़ाना के बाइबल पाठ और बाइबल का एक हिस्सा पढ़कर करती हूँ। ऐसा करने से मुझे दिन-भर मनन करने के लिए एक नया विचार मिलता है।”—मॆरी, जिसका बपतिस्मा सन्‌ 1935 में हुआ।

“बाइबल की किसी किताब की आयत-दर-आयत चर्चा करना, मेरे लिए एक टॉनिक की तरह है, जो मेरे अंदर जोश भर देता है।”—डेनियल, जिसका बपतिस्मा सन्‌ 1946 में हुआ।

आप किस वक्‍त, प्रार्थना के साथ परमेश्‍वर के वचन पर मनन करते हैं?—दानिय्येल 6:10ख; मरकुस 1:35; प्रेरितों 10:9.

[पेज 13 पर तसवीर]

आध्यात्मिक बातों को पहला स्थान देने के ज़रिए हम ‘धीरज के साथ फल ला सकते हैं’