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आपका बच्चा कैसा इंसान बनेगा, यह संयोग पर मत छोड़िए!

आपका बच्चा कैसा इंसान बनेगा, यह संयोग पर मत छोड़िए!

आपका बच्चा कैसा इंसान बनेगा, यह संयोग पर मत छोड़िए!

मिट्टी का लोंदा दिखने में किसी काम का नहीं लगता, मगर वही लोंदा अगर किसी हुनरमंद कुम्हार के हाथ आ जाए, तो वह उसे ढालकर एक खूबसूरत बर्तन तैयार कर सकता है। ऐसे कारीगर बहुत कम मिलते हैं, जो मामूली मिट्टी से सुंदर और उपयोगी चीज़ें बना लेते हैं। प्याले, थालियों, खाना बनाने के बर्तनों, मर्तबानों और गुलदस्तों के लिए समाज हज़ारों सालों से, कुम्हार पर ही निर्भर रहा है।

माता-पिता भी जब अपने बच्चों के चरित्र को ढालकर उन्हें अच्छा इंसान बनने में मदद देते हैं, तो समाज को बहुत फायदा होता है। बाइबल बताती है कि हममें से हरेक “मिट्टी” की तरह है और परमेश्‍वर ने बच्चों को सही आकार में ढालने की अहम ज़िम्मेदारी माता-पिता को सौंपी है। (अय्यूब 33:6; उत्पत्ति 18:19) जैसे मिट्टी का एक खूबसूरत बर्तन तैयार करना कोई आसान काम नहीं है, वैसे ही एक बच्चे की परवरिश करके उसे एक भरोसेमंद और समझदार इंसान बनाना भी आसान नहीं है। ऐसा बदलाव इत्तफाक से नहीं आता।

हमारे बच्चों की शख्सियत को ढालने में कई चीज़ों का ज़बरदस्त असर होता है। दुःख की बात है कि इनमें से कुछ चीज़ों का उन पर बुरा असर पड़ता है। इसलिए समझदार माता-पिता इस बात को संयोग पर नहीं छोड़ते कि उनका बच्चा बड़ा होकर कैसा इंसान बनेगा। इसके बजाय, वे बच्चे को ‘उसी मार्ग की शिक्षा देते हैं जिस में उसको चलना चाहिये’ ताकि वे भरोसा रख सकें कि “वह बुढ़ापे में भी उस से न हटेगा।”—नीतिवचन 22:6.

बच्चे की परवरिश करना एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है और इसमें कई साल लग जाते हैं। इन सालों के दौरान, जो मसीही माता-पिता बुद्धिमान हैं, वे वक्‍त निकालकर अपने बच्चे को ऐसी नुकसानदेह बातों से दूर रखेंगे जिनका उसके दिल पर बुरा असर हो सकता है। उनका प्यार पूरी तरह परखा जाएगा जब वे बच्चों को “मसीही परवरिश में जैसा उचित है वैसा उपदेश देंगे और उन्हें सुधारेंगे।” (इफिसियों 6:4, द न्यू इंग्लिश बाइबल) अगर माता-पिता बच्चों को यह तालीम छुटपन से ही दें, तो बेशक उनका काम आसान हो जाएगा।

छुटपन से शुरू करना

कुम्हार मुलायम मिट्टी से बर्तन बनाना ज़्यादा पसंद करते हैं क्योंकि उसे किसी भी आकार में ढालना आसान होता है, साथ ही यह मिट्टी इतनी सख्त भी होती है कि आकार देने पर वह वैसी-की-वैसी ही बनी रहती है। मिट्टी से गंदगी निकालने के बाद, छः महीने के अंदर ही कुम्हार उसे ढालना पसंद करते हैं। उसी तरह, माता-पिता के लिए भी बच्चों के दिल को ढालने का सबसे बेहतर समय वही होगा जब वे मुलायम हों यानी उनकी बात सुनने को राज़ी हों क्योंकि तब वे उन्हें आसानी से ढाल सकेंगे।

बाल विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चा आठ महीने का होते-होते अपनी मातृ-भाषा पहचानने लगता है, अपने माता-पिता के साथ उसका एक नज़दीकी बंधन बंध जाता है, कई बातों को समझने और अपने चारों तरफ की दुनिया के बारे में जानने लगता है। इसलिए छुटपन ही उसके हृदय को ढालने का सही वक्‍त है। अगर तीमुथियुस की तरह आपका बच्चा भी ‘बालकपन से पवित्र शास्त्र जान’ ले, तो उसका कितना भला होगा!—2 तीमुथियुस 3:15. *

बच्चों में माता-पिता की नकल करने की आदत होती है। वे उनकी आवाज़, बातों और इशारों की नकल करते हैं। इतना ही नहीं, जब माता-पिता प्यार, दया और करुणा जैसे गुण दिखाते हैं, तो वे इन गुणों को भी सीखते हैं। अगर माता-पिता यहोवा के नियमों के मुताबिक बच्चों को तालीम देना चाहते हैं, तो सबसे पहले उन्हें खुद यहोवा के नियम अपने दिल में बिठाने चाहिए। अगर उनके दिल में यहोवा के नियमों के लिए गहरी कदरदानी होगी, तो वे यहोवा और उसके वचन के बारे में अपने बच्चों से लगातार बातचीत करेंगे। बाइबल माता-पिता को ज़ोर देकर कहती है: “घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते, उठते, इनकी चर्चा किया करना।” (व्यवस्थाविवरण 6:6, 7) फ्रान्थीस्को और रोसा बताते हैं कि वे अपने दो नन्हे-मुन्‍नों के साथ ऐसा कैसे करते हैं। *

“रोज़ाना होनेवाली आम बातचीत के अलावा, हम हर रोज़, हरेक बच्चे के साथ कम-से-कम 15 मिनट बात करते हैं। अगर हम देखते हैं कि बच्चा किसी समस्या का सामना कर रहा है, तो हम उनसे बातचीत करने में और ज़्यादा वक्‍त बिताते हैं। और वाकई हम पाते हैं कि कुछ समस्याएँ हैं जिन्हें सुलझाना ज़रूरी है। मिसाल के लिए, कुछ ही समय पहले की बात है, एक दिन हमारा पाँच साल का बेटा स्कूल से लौटकर हमसे कहने लगा कि मैं यहोवा को नहीं मानता। शायद स्कूल के किसी साथी ने उसका मज़ाक उड़ाया और कहा था कि परमेश्‍वर है ही नहीं।”

इन माता-पिता को एहसास हुआ कि बच्चों में यह विश्‍वास पैदा करना ज़रूरी है कि उनका एक सिरजनहार है। सृष्टि की अलग-अलग चीज़ें जो बच्चों का मन मोह लेती हैं उन्हीं की मदद से उनमें यह विश्‍वास पैदा किया जा सकता है। जानवरों को अपने हाथ से सहलाने, जंगली फूल तोड़ने, समुद्र के किनारे की रेत पर खेलने में बच्चों को बड़ा मज़ा आता है! ऐसे वक्‍त पर माता-पिता उन्हें समझा सकते हैं कि ये सारी चीज़ें, सिरजनहार के बारे में क्या बताती हैं। (भजन 100:3; 104:24, 25) यहोवा की सृष्टि के लिए उनके दिल में जो श्रद्धा और आदर की भावना पैदा होगी, वह ज़िंदगी भर कायम रह सकती है। (भजन 111:2, 10) यहोवा की सृष्टि के बारे में ऐसी समझ हासिल करने के साथ-साथ, बच्चे के दिल में परमेश्‍वर को खुश करने की इच्छा और उसे नाराज़ करने का डर पैदा होगा। इसी से बच्चे को ‘बुराई करने से बचे रहने’ की प्रेरणा मिलेगी।—नीतिवचन 16:6.

ज़्यादातर छोटे बच्चों में हर बात जानने की ललक होती है और वे नयी बातें जल्दी सीख भी जाते हैं, मगर आज्ञा मानना वे इतनी आसानी से नहीं सीखते। (भजन 51:5) वे कभी-कभी अपनी ज़िद्द पर अड़ जाते हैं या अपनी हर माँग पूरी करवाना चाहते हैं। ऐसा करने की उन्हें आदत न पड़ जाए, इसके लिए माता-पिताओं को बच्चों के साथ सख्ती बरतने, धीरज से पेश आने और उन्हें अनुशासन देने की ज़रूरत है। (इफिसियों 6:4) फिलिस और पॉल अपने पाँच बच्चों के साथ इसी तरह पेश आए और उनकी परवरिश करने में उन्हें अच्छे नतीजे मिले।

फिलिस कहती है: “वैसे तो हर बच्चे का स्वभाव अलग-अलग था, मगर मनमानी करने में सब-के-सब एक-से थे। उन्हें यह समझाना बहुत मुश्‍किल था कि जब किसी बात के लिए ‘ना’ कहा जाए तो उसका मतलब ‘ना’ ही होता है। मगर आखिरकार वे समझ गए।” फिलिस का पति, पॉल कहता है: “जो बच्चे थोड़े बड़े थे और समझ सकते थे, उनको हम कारण देकर समझाते थे कि हमने कोई फैसला क्यों किया। हम हमेशा उनके साथ प्यार से पेश आने की कोशिश करते थे, मगर हमने उनको यह भी सिखाया कि हम माता-पिता को परमेश्‍वर ने जो अधिकार दिया है, उसका उन्हें आदर करना चाहिए।”

हम देख चुके हैं कि बच्चों को छुटपन में कुछ समस्याएँ हो सकती हैं। मगर ज़्यादातर माता-पिता पाते हैं कि जब बच्चे किशोरावस्था में होते हैं, तब उन्हें ज़्यादा गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है, क्योंकि एक तो उन्हें इस उम्र में कोई तजुर्बा नहीं होता, दूसरे कई तरह की परीक्षाएँ उनके सामने आती हैं।

एक किशोर के दिल तक पहुँचना

एक कुम्हार को चाहिए कि वह मिट्टी को तभी ढाले जब वह गीली हो। मिट्टी को ज़्यादा समय तक गीला रखने के लिए वह उसमें पानी मिलाता है ताकि उसकी नमी बनी रहे और उसे किसी भी आकार में ढाला जा सके। उसी तरह, माता-पिताओं को चाहिए कि वे अपने किशोर बच्चे के दिल को सख्त होने से बचाने के लिए कड़ी मेहनत करें। ऐसा करने में उनका सबसे खास औज़ार है, बाइबल। यह उन्हें अपने बच्चे को “समझाने और सुधारने, . . . और हर एक भले काम के लिये तत्पर” करने में मदद देता है।—2 तीमुथियुस 3:15-17.

बच्चा, छुटपन में जितनी आसानी से माँ-बाप का कहना मानता है, उतनी आसानी से वह शायद किशोरावस्था में न माने। किशोर लड़के-लड़कियाँ, अपने हमउम्र साथियों की बात ज़्यादा सुनते हैं, इसलिए वे अपने दिल की हर बात माता-पिता को खुलकर बताने से कतराते हैं। माता-पिता और बच्चों के बीच के रिश्‍ते में अब एक नया दौर शुरू होता है जिसे कामयाबी से पार करने के लिए बहुत ज़्यादा सब्र और कुशलता की ज़रूरत होती है। किशोरावस्था के दौरान बच्चे के शरीर और उसकी भावनाओं में बदलाव आने लगते हैं। अब वह अपने फैसले खुद करने लगता है और भविष्य के लिए ऐसे लक्ष्य रखता है जिनका असर उसकी बाकी की ज़िंदगी पर होगा। (2 तीमुथियुस 2:22) चुनौतियों से भरे इस दौर में, किशोर बच्चे पर ऐसा दबाव आता है जिसका उसके दिल पर बहुत बुरा असर हो सकता है। वह है, अपने हमउम्र साथियों से आनेवाला दबाव।

एक किशोर बच्चे पर साथियों का दबाव किसी एक बड़ी घटना से अचानक नहीं आता। इसके बजाय, उसके साथियों की बातों का और हालात का उस पर धीरे-धीरे असर होने लगता है और एक वक्‍त ऐसा आता है कि वह जिन बातों को सही और ज़रूरी समझता है, उन पर से उसका विश्‍वास उठने लगता है। साथियों की ये बातें और हालात, बहुत-से किशोर बच्चों में मौजूद एक कमज़ोरी पर प्रहार करते हैं। इन बच्चों के दिल में यह डर बैठा होता है कि कहीं उनके यार-दोस्त उन्हें ठुकरा न दें। एक किशोर अपने बारे में हद-से-ज़्यादा सोचता है और दूसरों की मंज़ूरी पाना चाहता है, इसलिए वह “संसार में की वस्तुओं” को चाहने लगता है जिनके पीछे दूसरे जवान भागते हैं।—1 यूहन्‍ना 2:15-17; रोमियों 12:2.

और-तो-और, असिद्ध मन में उठनेवाली ख्वाहिशें भी यही एहसास दिलाती है कि उनके साथी जो कहते हैं वह सही है। दोस्तों की ऐसी बातें मन को अच्छी लगने लगती हैं, जैसे “ऐश करो” और “जो जी चाहे वही करो।” मारीया बताती है कि उसके साथ क्या हुआ: “मैं ऐसे साथियों की बातों में आ गयी जो मानते थे कि जवानों को ज़िंदगी का पूरा-पूरा लुत्फ उठाने का हक है, अंजाम चाहे जो भी हो। मैं अपने दोस्तों की तरह बनना चाहती थी, इसलिए मैं भी ऐसे-ऐसे काम कर बैठी जिनका बहुत बुरा अंजाम हो सकता था।” एक माता या पिता होने के नाते, आप ज़रूर अपने किशोर बच्चे को ऐसे दबावों का सामना करने में मदद देना चाहेंगे। मगर आप यह कैसे कर सकते हैं?

अपनी बातों और अपने व्यवहार से बच्चे को बार-बार यकीन दिलाइए कि आपको उसकी परवाह है। यह जानने की कोशिश कीजिए कि अपने आस-पास होनेवाली बातों के बारे में वह कैसा महसूस करता है, उसकी समस्याओं को समझने की कोशिश कीजिए, क्योंकि ये समस्याएँ शायद उन समस्याओं से काफी गंभीर होंगी जिनका सामना आपने अपने स्कूल के ज़माने में किया होगा। खासकर किशोरावस्था में बच्चे को चाहिए कि वह आपको एक ऐसा दोस्त समझे जिसे वह अपने दिल की बात कह सके। (नीतिवचन 20:5) उसके हाव-भाव या उसका मिजाज़ देखकर आप बता सकते हैं कि क्या वह मायूस है या किसी उलझन में है। भले ही वह अपनी परेशानी आपको न बताए, फिर भी ऐसी निशानियाँ देखकर उसकी मदद कीजिए और ‘उसके मन को शान्ति’ दीजिए।—कुलुस्सियों 2:2.

लेकिन जो बातें सही हैं, उनके मामले में माता-पिता को अटल रहना चाहिए और समझौता नहीं करना चाहिए। बहुत-से माता-पिताओं ने पाया है कि कई बार बच्चे जो चाहते हैं वह माता-पिता की मरज़ी से मेल नहीं खाता। ऐसे में अगर माता-पिता ने बहुत सोच-समझकर फैसला लिया है, तो वहाँ उन्हें झुकना नहीं चाहिए। दूसरी तरफ, अगर बच्चे को प्यार से अनुशासन देने की ज़रूरत पड़े, तो पहले समस्या को ठीक-ठीक समझिए और फिर तय कीजिए कि आप किस तरीके से उसे अनुशासन देंगे।—नीतिवचन 18:13.

कलीसिया के अंदर से भी परीक्षाएँ

मिट्टी से बना एक बर्तन शायद दिखने में लगे कि उसका इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन अगर उसे भट्ठे में पकाया न जाए तो जिन द्रव्यों को रखने के लिए वह बनाया गया है उन्हीं से वह खराब हो सकता है। बाइबल कहती है कि ज़िंदगी में आनेवाली परीक्षाएँ और तकलीफें भी भट्ठे की आग जैसी होती हैं, क्योंकि उनसे गुज़रने पर ही ज़ाहिर होता है कि असल में हम कैसे इंसान हैं। बेशक, बाइबल खासकर हमारे विश्‍वास की परीक्षाओं के बारे में बात करती है, मगर मोटे तौर पर यही बात दूसरी परीक्षाओं पर भी लागू होती है। (याकूब 1:2-4) और हैरानी की बात है कि जवानों पर कलीसिया के अंदर से ही कुछ कड़ी परीक्षाएँ आ सकती हैं।

आपका किशोर बच्चा दिखने में भले ही आध्यात्मिक रूप से तंदरुस्त लगे, मगर हो सकता है, उसके मन में अलग-अलग विचारों के बीच युद्ध चल रहा हो। (1 राजा 18:21) उदाहरण के लिए, मेगन पर ऐसे जवानों के दुनियावी विचारों का असर होने लगा, जो किंगडम हॉल में आया करते थे:

“मुझ पर कुछ ऐसे जवानों का असर होने लगा जो मानते थे कि सच्ची मसीहियत में कोई मज़ा नहीं है और मौज-मस्ती करने में यह बहुत बड़ी अड़चन है। वे कुछ इस तरह की बातें किया करते थे: ‘अठारह का होते ही, मैं सच्चाई छोड़ दूँगा।’ या ‘न जाने कब इस सच्चाई से मेरी जान छूटेगी।’ और जो बच्चे उनकी बातों से सहमत नहीं होते, उनसे वे दूर ही रहते थे और पवित्र लोग कहकर उनका मज़ाक उड़ाते थे।”

एक गंदी मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है, उसी तरह एक या दो जवानों का गलत रवैया ही बाकी जवानों को भड़काने के लिए काफी है। अकसर होता यह है कि एक टोली में ज़्यादातर लोग जो करते हैं, बाकी भी वही करते हैं। बेवकूफी के कामों से और अपनी बहादुरी का दिखावा करने की होड़ में, नौजवान अकसर समझदारी और अदब-कायदे को भूल जाते हैं। अफसोस कि बहुत-से देशों में मसीही जवानों ने, दूसरे जवानों की देखा-देखी ऐसे काम किए कि खुद को मुसीबत में डाल लिया।

यह सच है कि किशोर लड़के-लड़कियों को कुछ हद तक मन बहलाने और मौज-मस्ती करने के लिए दूसरों का साथ चाहिए होता है। माता-पिता होने के नाते आप उनकी यह ज़रूरत कैसे पूरी कर सकते हैं? उनके मनोरंजन के इंतज़ाम के बारे में गंभीरता से सोचिए और परिवार के साथ मिलकर या दूसरे जवानों और बड़ों को भी शामिल करके कुछ दिलचस्प कार्यक्रम तैयार कीजिए। अपने बच्चे के दोस्तों के बारे में जानिए। उनसे वाकिफ होने के लिए उन्हें अपने यहाँ खाने पर बुलाइए या उनके साथ शाम बिताइए। (रोमियों 12:13) अपने बच्चे को कोई अच्छा काम सीखने का बढ़ावा दीजिए, जैसे कोई साज़ बजाना, कोई भाषा या कला सीखना। ज़्यादातर ऐसे हुनर, वह घर के सुरक्षित माहौल में ही रहकर सीख सकता है।

स्कूल जाना खतरे से बचा सकता है

स्कूल की पढ़ाई भी एक किशोर की मदद करती है कि मनोरंजन को हद-से-ज़्यादा अहमियत न दे। एक बड़े स्कूल में 20 साल तक प्रशासक रह चुकी लॉली का कहना है: “मैंने साक्षियों के बहुत-से बच्चों को स्कूल की पढ़ाई पूरी करते देखा है। साक्षियों के ज़्यादातर बच्चों का बर्ताव काबिले-तारीफ था, मगर उनके कुछ बच्चों में और बाकी विद्यार्थियों में कोई खास फर्क नहीं था। जो बच्चे दूसरों के लिए बढ़िया मिसाल थे, वे सभी मन लगाकर पढ़ाई करते थे। मैं माता-पिता को बार-बार यही सलाह दूँगी कि वे अपने बच्चों की पढ़ाई में पूरी दिलचस्पी लें, उनकी तरक्की पर ध्यान दें, उनके टीचरों को जानें और बच्चों को यकीन दिलाएँ कि स्कूल में अच्छा नाम कमाना और अच्छे नंबर लाना बहुत मायने रखता है। ऐसी मदद पाकर हो सकता है कि कुछ बच्चे पढ़ाई में अव्वल हों, मगर बाकी भी अच्छे नंबर ला सकते हैं और टीचरों की नज़र में इज़्ज़त कमा सकते हैं।”

स्कूल की पढ़ाई किशोर बच्चों को आध्यात्मिक रूप से तरक्की करने में भी मदद दे सकती है। यह उन्हें अध्ययन करने की अच्छी आदतें पैदा करना, दिमाग को सही काम में लगाना सिखाएगी, और ज़िम्मेदारी का एहसास दिलाएगी। स्कूल में वे अच्छी तरह पढ़ने और विचारों को समझने की जो काबिलीयत हासिल करेंगे, उससे वे परमेश्‍वर के वचन का अच्छी तरह अध्ययन कर पाएँगे और उसके सिखानेवाले बनेंगे। (नहेमायाह 8:8) जब वे स्कूल की पढ़ाई और आध्यात्मिक कामों में व्यस्त रहेंगे, तो मनोरंजन को सिर्फ उतनी अहमियत देंगे जितना कि सही है।

आपके और यहोवा के लिए सम्मान की वजह

पुराने ज़माने के यूनान में बहुत-से गुलदस्तों पर कुम्हार के और उस पर सजावट करनेवाले के हस्ताक्षर होते थे। उसी तरह, परिवार में बच्चों की शख्सियत को ढालने में दो जनों का हाथ होता है। बच्चे के मन को ढालने में माता और पिता दोनों हिस्सा लेते हैं और लाक्षणिक तौर पर देखें तो बच्चे पर दोनों के “हस्ताक्षर” होते हैं। एक हुनरमंद कुम्हार और/या सजावट करनेवाले की तरह, आप भी जब अपने बच्चे को एक कामयाब और मनभावना इंसान बनाने के लिए मेहनत करेंगे तो उसका नतीजा देखकर आप गर्व महसूस करेंगे।—नीतिवचन 23:24, 25.

बच्चे की परवरिश करने की इस महान ज़िम्मेदारी को निभाने में आप कितने कामयाब होंगे, यह काफी हद तक इस पर निर्भर करता है कि आप अपने बच्चे का दिल किस हद तक ढाल पाए हैं। उम्मीद है कि आप भी अपने बच्चे के बारे में कुछ ऐसा कह पाएँगे: “उसके परमेश्‍वर की व्यवस्था उसके हृदय में बनी रहती है, उसके पैर नहीं फिसलते।” (भजन 37:31) बच्चे की शख्सियत को ढालना कोई मामूली बात नहीं कि आप उसे संयोग पर छोड़ दें।

[फुटनोट]

^ पैरा. 8 कुछ माता-पिता अपने नए जन्मे शिशु को बाइबल पढ़कर सुनाते हैं। माता-पिता की कोमल और प्यार-भरी आवाज़ और इस अनुभव से मिलनेवाला सुख, बच्चे के दिल में पढ़ाई के लिए ऐसी दिलचस्पी पैदा करेगा जो उसमें ज़िंदगी भर बनी रहेगी।

^ पैरा. 9 कुछ नाम बदल दिए गए हैं।