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प्रभु का संध्या भोज आपके लिए क्या मायने रखता है?

प्रभु का संध्या भोज आपके लिए क्या मायने रखता है?

प्रभु का संध्या भोज आपके लिए क्या मायने रखता है?

“जो कोई अनुचित रीति से प्रभु की रोटी खाए, या उसके कटोरे में से पीए, वह प्रभु की देह और लोहू का अपराधी ठहरेगा।”—1 कुरिन्थियों 11:27.

1. सन्‌ 2003 में कौन-सी सबसे अहम घटना मनायी जाएगी और इसकी शुरूआत कब हुई थी?

सन्‌ 2003 की सबसे अहम घटना, अप्रैल 16 को सूर्यास्त के बाद मनायी जाएगी। यहोवा के साक्षी उस शाम यीशु की मौत का स्मारक मनाने के लिए इकट्ठे होंगे। जैसे पिछले लेख में बताया गया था, यीशु ने अपने प्रेरितों के साथ निसान 14, सा.यु. 33 को फसह का पर्व मनाने के बाद यह समारोह शुरू किया जिसे प्रभु का संध्या भोज भी कहा जाता है। स्मारक में इस्तेमाल होनेवाली अखमीरी रोटी और लाल दाखमधु, यीशु की निष्पाप देह और उसके बहाए गए लहू की निशानियाँ हैं, और सिर्फ यीशु का यह बलिदान ही, इंसान को विरासत में मिले पाप और मौत से छुटकारा दिला सकता है।—रोमियों 5:12; 6:23.

2. पहला कुरिन्थियों 11:27 में क्या चेतावनी दी गयी है?

2 स्मारक की रोटी और दाखमधु में हिस्सा लेनेवालों को रोटी और दाखमधु को आदर के साथ खाना-पीना चाहिए। प्रेरित पौलुस ने प्राचीन कुरिन्थ के मसीहियों को लिखते वक्‍त यह बात साफ-साफ समझायी, क्योंकि वहाँ प्रभु का संध्या भोज सही तरीके से नहीं मनाया जाता था। (1 कुरिन्थियों 11:20-22) पौलुस ने लिखा: “जो कोई अनुचित रीति से प्रभु की रोटी खाए, या उसके कटोरे में से पीए, वह प्रभु की देह और लोहू का अपराधी ठहरेगा।” (1 कुरिन्थियों 11:27) इन शब्दों का मतलब क्या है?

कुछ लोगों ने अनुचित रीति से स्मारक मनाया

3. प्रभु के संध्या भोज के दौरान कुरिन्थ के बहुत-से मसीही कैसे पेश आ रहे थे?

3 कुरिन्थ के कई मसीही स्मारक में अनुचित तरीके से हिस्सा ले रहे थे। उनके बीच फूट पड़ी हुई थी, एक वक्‍त ऐसा भी था कि कई लोग अपना शाम का खाना साथ लाते थे और सभा से पहले या सभा के दौरान खाते थे और अकसर हद-से-ज़्यादा खाते-पीते थे। वे न तो दिमाग से न ही आध्यात्मिक तरीके से सचेत रह पाते थे। इसलिए वे ‘प्रभु की देह और लोहू के अपराधी ठहरे।’ जिन लोगों ने शाम का खाना नहीं खाया होता था, भूख के कारण उनका ध्यान भटक जाता था। जी हाँ, स्मारक में हिस्सा लेने के लिए मौजूद बहुत-से लोगों में न तो इस घटना के लिए आदर था, ना ही वे इसकी गंभीरता को समझते थे। इसमें ताज्जुब नहीं कि वे अपने आप पर दंड लाए!—1 कुरिन्थियों 11:27-34.

4, 5. हर साल स्मारक के दौरान रोटी और दाखमधु खाने-पीनेवालों को क्यों अपनी जाँच करनी चाहिए?

4 हर साल जब स्मारक पास आता है, तो यह ज़रूरी है कि स्मारक की रोटी और दाखमधु में हिस्सा लेनेवाले सभी अपनी जाँच करें। इस सामूहिक भोज में उचित रीति से हिस्सा लेने के लिए उन्हें आध्यात्मिक रूप से मज़बूत होना चाहिए। कोई भी जो यीशु के बलिदान का निरादर या फिर तिरस्कार करेगा, वह ‘परमेश्‍वर के लोगों में से नाश किया जाएगा,’ ठीक जैसे उस इस्राएली के साथ किया जाता जो अशुद्ध अवस्था में मेलबलि से खाता था।—लैव्यव्यवस्था 7:20; इब्रानियों 10:28-31.

5 पौलुस ने स्मारक की तुलना, प्राचीन इस्राएल में मेलबलि के भोज से की। उसने बताया कि इस भोज को खानेवाले, मसीह में सहभागी हैं और फिर आगे कहा: “तुम प्रभु के कटोरे, और दुष्टात्माओं के कटोरे दोनों में से नहीं पी सकते! तुम प्रभु की मेज और दुष्टात्माओं की मेज दोनों के साझी नहीं हो सकते।” (1 कुरिन्थियों 10:16-21) हर साल स्मारक के प्रतीकों को खाने-पीनेवाला इंसान, अगर किसी गंभीर पाप में पड़ जाता है, तो उसे यहोवा के सामने अपना पाप कबूल करना चाहिए और कलीसिया के प्राचीनों से आध्यात्मिक मदद माँगनी चाहिए। (नीतिवचन 28:13; याकूब 5:13-16) अगर वह सच्चा प्रायश्‍चित्त करता है और ऐसा प्रायश्‍चित्त दिखाने के लिए फल भी लाता है, तो उसका रोटी खाना और दाखमधु पीना अनुचित न होगा।—लूका 3:8.

दर्शकों के नाते आदर दिखाते हुए हाज़िर रहना

6. परमेश्‍वर ने प्रभु के संध्या भोज में हिस्सा लेने का अनोखा अवसर सिर्फ किसके लिए अलग रखा है?

6 मसीह के 1,44,000 भाइयों के साथ भलाई करनेवाले लोग, क्या प्रभु के संध्या भोज में हिस्सा ले सकते हैं? (मत्ती 25:31-40; प्रकाशितवाक्य 14:1) नहीं। यहोवा ने यह अनोखा अवसर सिर्फ उन लोगों के लिए रखा है जिन्हें उसने पवित्र आत्मा से अभिषिक्‍त किया है कि वे “मसीह के संगी वारिस” हों। (रोमियों 8:14-18; 1 यूहन्‍ना 2:20) तो फिर, उन लोगों की जगह कहाँ है जिन्हें परमेश्‍वर के राज्य के अधीन फिरदौस की गयी धरती पर सदा तक जीने की उम्मीद है? (लूका 23:43; प्रकाशितवाक्य 21:3,4) वे यीशु के संगी वारिस नहीं हैं और ना ही उन्हें स्वर्ग जाने की उम्मीद है, इसलिए वे स्मारक में बड़े आदर के साथ दर्शकों की हैसियत से हाज़िर होते हैं।—रोमियों 6:3-5.

7. पहली सदी के मसीहियों को कैसे पता होता था कि उन्हें स्मारक की रोटी और दाखमधु में हिस्सा लेना चाहिए या नहीं?

7 पहली सदी के सच्चे मसीहियों को पवित्र आत्मा से अभिषिक्‍त किया गया था। उनमें से बहुत-से अभिषिक्‍त जन, आत्मा के एक या उससे ज़्यादा चमत्कारिक वरदान इस्तेमाल कर सकते थे जैसे कि अन्य-अन्य भाषाओं में बोलना। इसलिए, इन मसीहियों के लिए यह जानना मुश्‍किल नहीं था कि वे आत्मा से अभिषिक्‍त हैं या नहीं और स्मारक के दौरान उन्हें रोटी और दाखमधु खाने-पीने चाहिए या नहीं। मगर हमारे समय में, एक इंसान अभिषिक्‍त है या नहीं यह इन ईश्‍वर-प्रेरित शब्दों के आधार पर तय किया जा सकता है: “जितने लोग परमेश्‍वर के आत्मा के चलाए चलते हैं, वे ही परमेश्‍वर के पुत्र हैं। क्योंकि तुम को दासत्व की आत्मा नहीं मिली, कि फिर भयभीत हो परन्तु लेपालकपन की आत्मा मिली है, जिस से हम हे अब्बा, हे पिता कहकर पुकारते हैं।”—रोमियों 8:14,15.

8. मत्ती के 13वें अध्याय में “गेहूं” कौन है और “जंगली दाने” कौन हैं?

8 पहली सदी के बाद की सदियों में, सच्चे अभिषिक्‍त मसीही खेत में “गेहूं” की तरह बढ़े हैं और उनके साथ-साथ “जंगली दाने” या झूठे मसीही भी फले-फूले हैं। (मत्ती 13:24-30, 36-43) सन्‌ 1870 के बाद के सालों के दौरान, “गेहूं” साफ दिखायी देने लगा और कुछ साल बाद अभिषिक्‍त मसीही ओवरसियरों से कहा गया: “जो लोग [स्मारक के लिए] इकट्ठा होते हैं, प्राचीनों को उनके सामने ये शर्तें रखनी चाहिए,—(1) [मसीह के] लहू पर विश्‍वास; और (2) प्रभु और उसकी सेवा के लिए आखिरी सांस तक समर्पित। जो इस मनसा के हैं और इसलिए समर्पित हैं, वे उन्हें प्रभु की मौत को याद करने का बुलावा देंगे।”—स्टडीज़ इन द स्क्रिप्चर्स्‌, भाग 6, द न्यू क्रीएशन, पेज 473. *

‘अन्य भेड़ों’ को ढूँढ़ना

9. सन्‌ 1935 में कैसे “बड़ी भीड़” की पहचान साफ बतायी गयी, और स्मारक में रोटी और दाखमधु खाने-पीनेवाले कुछ लोगों पर इसका क्या असर हुआ?

9 कुछ समय के बाद, यहोवा के संगठन ने मसीह के अभिषिक्‍त चेलों के अलावा दूसरों पर भी ध्यान देना शुरू किया। इस मामले में एक बहुत बड़ी घटना सन्‌ 1935 में घटी। इससे पहले, परमेश्‍वर के लोग मानते थे कि प्रकाशितवाक्य 7:9 की “बड़ी भीड़,” दूसरा और कम दर्जे का आत्मिक वर्ग है जो स्वर्ग में पुनरुत्थान पाए 1,44,000 अभिषिक्‍त जनों के साथ होगा—वे मसीह की दुल्हन के साथ उसकी सहेलियों की तरह होंगे। (भजन 45:14,15; प्रकाशितवाक्य 7:4; 21:2,9) मगर मई 31,1935 को, अमरीका के वाशिंगटन, डी.सी. में हुए एक अधिवेशन के भाषण में बाइबल से यह समझाया गया कि “बड़ी भीड़” वे ‘अन्य भेड़’ हैं जो अंत के समय के दौरान धरती पर जीवित रहती हैं। (यूहन्‍ना 10:16, NW) उस अधिवेशन के बाद, कुछ लोग जो पहले स्मारक में रोटी और दाखमधु खाते-पीते थे, उन्होंने इसे खाना-पीना बंद कर दिया क्योंकि उन्हें यह एहसास हुआ कि उनकी आशा इसी धरती पर जीने की है, न कि स्वर्ग जाने की।

10. आज की ‘अन्य भेड़ों’ के भविष्य के लिए उम्मीद और उनकी ज़िम्मेदारियों के बारे में आप कैसे समझाएँगे?

10 खासकर सन्‌ 1935 से ऐसे लोगों की खोज की जाने लगी जो ‘अन्य भेड़ों’ में शामिल हैं, मसीह के छुड़ौती बलिदान पर विश्‍वास करते हैं, परमेश्‍वर को अपना जीवन समर्पण करते हैं और राज्य प्रचार करने के काम में अभिषिक्‍त जनों के “छोटे झुण्ड” की मदद करते हैं। (लूका 12:32) ये अन्य भेड़ इस धरती पर सदा के लिए जीने की उम्मीद करती हैं। उनकी भविष्य की इस उम्मीद को छोड़ बाकी सभी बातों में वे, राज्य के वारिसों की तरह हैं जिनमें से कुछ अब भी धरती पर मौजूद हैं। प्राचीन इस्राएल में परदेशी यहोवा की उपासना करते थे और व्यवस्था का पालन करते थे, उसी तरह आज की अन्य भेड़ मसीही सेवा में ज़िम्मेदारियाँ निभाती हैं, जैसे कि आत्मिक इस्राएल के सदस्यों के साथ मिलकर सुसमाचार का प्रचार करना। (गलतियों 6:16) लेकिन, इस्राएल में जिस तरह कोई परदेशी, राजा या याजक नहीं बन सकता था, उसी तरह अन्य भेड़ में से कोई भी स्वर्गीय राज्य में राज नहीं कर सकता या याजक की हैसियत से सेवा नहीं कर सकता।—व्यवस्थाविवरण 17:15.

11. एक इंसान के समर्पण की तारीख का, भविष्य के लिए उसकी उम्मीद पर क्या असर हो सकता है?

11 तो फिर, 1930 के बाद के दशक के आते-आते, यह ज़ाहिर होने लगा था कि मोटे तौर पर स्वर्गीय आशा रखनेवालों का चुनाव हो चुका है। अब कई दशकों से अन्य भेड़ों की खोज जारी है जिनकी उम्मीद इस धरती पर जीने की है। अगर एक अभिषिक्‍त जन वफादार नहीं रहता, तो मुमकिन है कि 1,44,000 जनों में उसकी जगह भरने के लिए, अन्य भेड़ों में से किसी ऐसे इंसान को बुलावा दिया जाए जो लंबे समय से परमेश्‍वर की सेवा वफादारी से कर रहा है।

आशा को समझने में गलती क्यों?

12. किन हालात में एक इंसान को स्मारक की रोटी और दाखमधु में हिस्सा लेना छोड़ देना चाहिए और क्यों?

12 अभिषिक्‍त मसीहियों को पूरा-पूरा यकीन है कि उन्हें स्वर्ग जाने का बुलावा मिला है। उन लोगों का क्या जिन्हें यह बुलावा नहीं दिया गया, मगर वे स्मारक में रोटी और दाखमधु खाते-पीते हैं? अब जब उन्हें यह पता चलता है कि उनकी आशा स्वर्ग जाने की नहीं है, तो बेशक उनका विवेक उन्हें मजबूर करेगा कि रोटी और दाखमधु में हिस्सा लेना छोड़ दें। परमेश्‍वर का अनुग्रह ऐसे इंसान पर नहीं होगा जो यह जानते हुए भी कि स्वर्ग जाने का उसे बुलावा नहीं है, अपने आपको स्वर्गीय राजा और याजक कहलाए। (रोमियों 9:16; प्रकाशितवाक्य 20:6) यहोवा ने लेवी कोरह को, हारून का याजकपद हथियाने की कोशिश करने के लिए मौत की सज़ा दी। (निर्गमन 28:1; गिनती 16:4-11, 31-35) अगर किसी मसीही भाई या बहन को यह एहसास होता है कि उसने स्मारक में रोटी और दाखमधु में हिस्सा लिया है, जबकि उसे नहीं लेना चाहिए था, तो उसे इनमें हिस्सा लेना छोड़ देना चाहिए और नम्र होकर यहोवा से माफी माँगनी चाहिए।—भजन 19:13.

13, 14. कुछ लोग यह गलत धारणा क्यों बना लेते हैं कि उन्हें स्वर्ग जाने का बुलावा है?

13 कुछ लोग यह गलत धारणा क्यों बना लेते हैं कि उन्हें स्वर्ग जाने का बुलावा है? हो सकता है कि पति या पत्नी की मौत का सदमा या कोई और हादसा कुछ लोगों को इतना निराश कर देता है कि वे इस धरती पर जीना नहीं चाहते। या शायद उनका एक करीबी दोस्त अभिषिक्‍त जन होने का दावा करता है और वे भी उसी उम्मीद को पाने की लालसा करते हैं। बेशक, परमेश्‍वर ने इस खास सम्मान के लिए इंसानों को चुनने का काम किसी और को नहीं दिया है। और राज्य के वारिसों को अभिषिक्‍त करने के लिए वह उन्हें ऐसी आवाज़ें नहीं सुनाता जो उन्हें बताएँ कि वे अभिषिक्‍त किए गए हैं।

14 झूठे धर्म सिखाते हैं कि सभी अच्छे लोग स्वर्ग जाते हैं। इस वजह से भी बहुत-से लोगों को यह लगता है कि उन्हें स्वर्ग का बुलावा है। इसलिए, हमें ध्यान रखना है कि हम पहले के गलत विचारों या ऐसी दूसरी बातों के भुलावे में ना आ जाएँ। मिसाल के लिए, कुछ लोग शायद अपने आप से पूछ सकते हैं: ‘क्या मैं ऐसी दवाइयाँ लेता हूँ जिनका मेरी भावनाओं पर असर होता है? क्या मैं इतना जज़्बाती हूँ कि खुद को अभिषिक्‍त जन समझने की भूल कर बैठूँ?’

15, 16. कुछ लोगों का इस नतीजे पर पहुँचना कि वे अभिषिक्‍त हैं, क्यों गलत है?

15 कुछ लोग खुद से यह पूछ सकते हैं: ‘क्या मैं दूसरों से बड़ा होना चाहता हूँ? क्या मैं उस अधिकार की लालसा करता हूँ, जो भविष्य में या अब भी मसीह के संगी वारिसों को मिलता है?’ पहली सदी में जब राज्य के वारिसों को बुलावा दिया गया, तो उनमें से कई ऐसे थे जो कलीसिया में ज़िम्मेदारी के पदों पर नहीं थे। और जिन्हें स्वर्ग का बुलावा दिया जाता है, वे दूसरों से बड़े होने की कोशिश नहीं करते या अभिषिक्‍त होने के बारे में डींग नहीं मारते। वे नम्र रहते हैं, क्योंकि “मसीह का मन” जिनमें है उनसे यही उम्मीद की जाती है।—1 कुरिन्थियों 2:16.

16 कुछ लोग बाइबल का काफी ज्ञान हासिल कर लेने पर इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि उन्हें स्वर्गीय जीवन का बुलावा है। मगर आत्मा से अभिषिक्‍त होने से किसी को बढ़िया समझ हासिल नहीं होती, क्योंकि पौलुस को कुछ अभिषिक्‍त मसीहियों को कई बातें सिखानी पड़ीं और ताड़ना देनी पड़ी। (1 कुरिन्थियों 3:1-3; इब्रानियों 5:11-14) परमेश्‍वर ने अपने लोगों को आध्यात्मिक भोजन देने का एक इंतज़ाम ठहराया है। (मत्ती 24:45-47) इसलिए किसी को ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि अभिषिक्‍त मसीही होने की वजह से उसे, धरती पर जीने की आशा रखनेवालों से ज़्यादा अच्छी समझ और बुद्धि है। बाइबल के बारे में उठाए गए सवालों के जवाब देने, गवाही देने या बाइबल से भाषण देने की कुशलता से यह ज़ाहिर नहीं होता कि आप आत्मा से अभिषिक्‍त हैं। इन बातों में, धरती पर जीने की उम्मीद रखनेवाले मसीही भी काफी हुनरमंद हैं।

17. आत्मा से अभिषेक किया जाना, क्या बात पर और किस पर निर्भर करता है?

17 अगर एक भाई या बहन यह जानना चाहता है कि उसे स्वर्ग का बुलावा है या नहीं, तो एक प्राचीन या दूसरा अनुभवी मसीही उसके साथ इस बारे में चर्चा कर सकता है। लेकिन, इंसान यह फैसला नहीं कर सकता कि किसी दूसरे इंसान को स्वर्ग का बुलावा है या नहीं। जिसे स्वर्ग का बुलावा मिला है उसे अपनी इस आशा के बारे में दूसरों से पूछने की ज़रूरत नहीं है। अभिषिक्‍त जनों ने “नाशमान नहीं पर अविनाशी बीज से परमेश्‍वर के जीवते और सदा ठहरनेवाले वचन के द्वारा नया जन्म पाया है।” (1 पतरस 1:23) अपनी आत्मा और अपने वचन से परमेश्‍वर यह “बीज” बोता है जिससे वह इंसान एक “नई सृष्टि” बन जाता है, और उसे स्वर्ग जाने की उम्मीद मिलती है। (2 कुरिन्थियों 5:17) और यहोवा उसका चुनाव करता है। अभिषेक करना, “न तो चाहने वाले पर और न दौड़-धूप करने वाले पर निर्भर है, परन्तु [यह] परमेश्‍वर पर” निर्भर करता है। (रोमियों 9:16, NHT) तो फिर, एक इंसान कैसे यकीन के साथ बोल सकता है कि उसे स्वर्ग का बुलावा है?

उन्हें क्यों यकीन है

18. परमेश्‍वर की आत्मा, अभिषिक्‍त जनों की आत्मा के साथ गवाही कैसे देती है?

18 परमेश्‍वर की आत्मा की गवाही, अभिषिक्‍त जनों को यह यकीन दिलाती है कि उनका भविष्य स्वर्ग में जीने का है। पौलुस ने लिखा: “तुम को . . . लेपालकपन की आत्मा मिली है, जिस से हम हे अब्बा, हे पिता कहकर पुकारते हैं। आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है, कि हम परमेश्‍वर की सन्तान हैं। और यदि सन्तान हैं, तो वारिस भी, बरन परमेश्‍वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं, जब कि हम उसके साथ दुख उठाएं कि उसके साथ महिमा भी पाएं।” (रोमियों 8:15-17) पवित्र आत्मा के असर से, अभिषिक्‍त जनों की अंतरात्मा या प्रबल भावना उन्हें उकसाती है कि शास्त्र में यहोवा की आत्मिक संतानों के बारे में जो बताया है वह खुद पर लागू करें। (1 यूहन्‍ना 3:2) परमेश्‍वर की आत्मा उन्हें यह एहसास दिलाती है कि वे परमेश्‍वर के पुत्र हैं और उनके मन में एक अनोखी आशा जगाती है। (गलतियों 4:6, 7) जी हाँ, सिद्ध इंसानों का इस धरती पर अपने परिवार और दोस्तों के संग सदा के लिए जीना सचमुच बड़ी बेजोड़ आशीष है, मगर परमेश्‍वर ने अभिषिक्‍त जनों को यह आशा नहीं दी। अपनी आत्मा के ज़रिए, परमेश्‍वर ने उनके अंदर स्वर्ग में जीने की ऐसी पक्की आशा जगायी है कि वे उसकी खातिर धरती पर अपने सभी रिश्‍तों-नातों और दूसरी आशीषों को छोड़ने के लिए तैयार होते हैं।—2 कुरिन्थियों 5:1-5, 8; 2 पतरस 1:13, 14.

19. एक अभिषिक्‍त मसीही की ज़िंदगी में नयी वाचा की क्या अहमियत है?

19 अभिषिक्‍त मसीहियों को स्वर्ग जाने की अपनी आशा के बारे में और नयी वाचा में शामिल किए जाने के बारे में पूरा यकीन है। यीशु ने स्मारक की शुरूआत करते वक्‍त इस वाचा का ज़िक्र किया: “यह कटोरा मेरे उस लोहू में जो तुम्हारे लिये बहाया जाता है नई वाचा है।” (लूका 22:20) इस वाचा में एक तरफ यहोवा परमेश्‍वर है और दूसरी तरफ अभिषिक्‍त जन। (यिर्मयाह 31:31-34; इब्रानियों 12:22-24) यीशु इस वाचा का मध्यस्थ है। मसीह के बहाए लहू से यह नयी वाचा कार्य करने लगी और इसके तहत न सिर्फ यहूदियों में से बल्कि अन्यजातियों से भी यहोवा के नाम के लिए लोग चुने गए और उन्हें इब्राहीम के “वंश” का हिस्सा बनाया गया। (गलतियों 3:26-29; प्रेरितों 15:14) यह “सनातन वाचा” सभी आत्मिक इस्राएलियों को इस काबिल बनाती है कि वे पुनरुत्थान पाकर स्वर्ग में अमर जीवन पाएँ।—इब्रानियों 13:20.

20. अभिषिक्‍त जनों को मसीह के साथ किस वाचा में शामिल किया जाता है?

20 अभिषिक्‍त जनों को अपनी आशा का पक्का यकीन है। उन्हें एक और वाचा में शामिल किया गया है, यह है राज्य की वाचा। मसीह के साथ उनके सहभागी होने के बारे में, यीशु ने कहा: “तुम वह हो, जो मेरी परीक्षाओं में लगातार मेरे साथ रहे। और जैसे मेरे पिता ने मेरे लिये एक राज्य ठहराया [“राज्य की वाचा बाँधी,” NW] है, वैसे ही मैं भी तुम्हारे लिये ठहराता [“तुम्हारे साथ वाचा बाँधता,” NW] हूं।” (लूका 22:28-30) मसीह और उसके साथी राजाओं के बीच की यह वाचा सदा तक कार्य करती रहेगी।—प्रकाशितवाक्य 22:5.

स्मारक का मौसम—खुशियों का समाँ

21. स्मारक के मौसम से हम कैसे बढ़िया फायदे हासिल कर सकते हैं?

21 स्मारक के मौसम में हमें ढेरों आशीषें मिलती हैं। हम इस अवधि के दौरान ठहरायी गयी बाइबल पढ़ाई से फायदा पा सकते हैं। यह खासकर प्रार्थना में लगे रहने, इस धरती पर यीशु के जीवन और उसकी मौत पर मनन करने और राज्य का प्रचार करने के लिए बढ़िया समय है। (भजन 77:12; फिलिप्पियों 4:6, 7) जब स्मारक मनाया जाता है तो हमें याद दिलाया जाता है कि परमेश्‍वर और मसीह ने हमसे कितना प्यार किया और उनका यह प्यार यीशु के छुड़ौती बलिदान से साफ दिखायी देता है। (मत्ती 20:28; यूहन्‍ना 3:16) इस इंतज़ाम से हमारे अंदर उम्मीद जागती है, हमें दिलासा मिलता है और मसीह के जैसा जीवन जीने का हमारा इरादा और पक्का होता है। (निर्गमन 34:6; इब्रानियों 12:3) स्मारक से यहोवा के सेवकों के नाते, अपने समर्पण के मुताबिक जीने और उसके प्यारे बेटे के नक्शे-कदम पर वफादारी से चलने का हमारा इरादा मज़बूत होना चाहिए।

22. परमेश्‍वर ने इंसान को कौन-सा सबसे बड़ा वरदान दिया है और इसके लिए कदरदानी दिखाने का एक तरीका क्या है?

22 यहोवा ने हमें कितने अच्छे वरदान दिए हैं! (याकूब 1:17) हम उसके वचन से सलाह, उसकी आत्मा से मदद पा सकते हैं और हमारी आशा सदा तक जीने की है। यहोवा का सबसे बड़ा वरदान, यीशु का बलिदान है जिससे अभिषिक्‍त जनों और बाकी सभी विश्‍वास करनेवालों के पापों का प्रायश्‍चित्त होता है। (1 यूहन्‍ना 2:1, 2) तो फिर, यीशु की मौत आपके लिए क्या मायने रखती है? क्या आप, अप्रैल 16, 2003 को सूर्यास्त के बाद प्रभु का संध्या भोज मनाने के लिए इकट्ठे होंगे और इस तरह इस बलिदान के लिए अपनी एहसानमंदी दिखाएँगे?

[फुटनोट]

^ पैरा. 8 यहोवा के साक्षियों ने यह किताब प्रकाशित की है, मगर अब यह नहीं छापी जाती।

आपके जवाब क्या हैं?

• किसे स्मारक की रोटी और दाखमधु में से खाना-पीना चाहिए?

• प्रभु के संध्या भोज में ‘अन्य भेड़’ आदर के साथ, क्यों सिर्फ दर्शकों की हैसियत से हाज़िर होंगे?

• अभिषिक्‍त मसीही कैसे जानते हैं कि उन्हें मसीह की मौत के स्मारक में रोटी और दाखमधु खाना-पीना चाहिए या नहीं?

• स्मारक का मौसम क्या करने का बढ़ियासमय है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 18 पर ग्राफ/तसवीरें]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

स्मारक की हाज़िरी

लाखों में

15,597,746

150

140

13,147,201

130

120

110

100

90

80

70

60

50

4,925,643

40

30

20

10

878,303

63,146

1935 1955 1975 1995 2002

[पेज 18 पर तसवीर]

क्या आप इस साल प्रभु के संध्या भोज के लिए हाज़िर होंगे?

[पेज 21 पर तसवीरें]

स्मारक का मौसम, बाइबल की ज़्यादा पढ़ाई करने और राज्य के प्रचार में ज़्यादा हिस्सा लेने का बढ़िया समय है