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‘दृढ़ और साहसी हो!’

‘दृढ़ और साहसी हो!’

‘दृढ़ और साहसी हो!’

“साहस रखो—मैंने संसार को जीत लिया है।”यूहन्‍ना 16:33, NHT.

1. कनान देश में रहनेवाले ताकतवर दुश्‍मनों का सामना करने के लिए, इस्राएलियों का हौसला कैसे बँधाया गया?

इस्राएल जाति जब वादा किए देश में कदम रखने के लिए, यरदन नदी पार करने की तैयारी कर रही थी, तब मूसा ने उनसे कहा: “दृढ़ और साहसी बनो। इन राष्ट्रों से डरो नहीं। . . . क्योंकि यहोवा तुम्हारा परमेश्‍वर तुम्हारे साथ जा रहा है।” उसके बाद एक बार फिर, मूसा ने यहोशू को अकेले में बुलाकर, उसे साहसी बनने की सलाह दी, क्योंकि इस्राएलियों को कनान देश तक ले जाने के लिए यहोशू को चुना गया था। (व्यवस्थाविवरण 31:6, 7, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) बाद में, यहोवा ने खुद यहोशू की हिम्मत बँधाते हुए उससे कहा: “तुम्हें दृढ़ और साहसी होना चाहिये . . . [तुम्हें] दृढ़ और साहसी रहना होगा।” (यहोशू 1:6, 7, 9, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) ये हौसला बढ़ानेवाले शब्द ऐन वक्‍त पर कहे गए थे। उस घड़ी, इस्राएलियों को साहसी होने की ज़रूरत थी ताकि वे अपने ताकतवर दुश्‍मनों का सामना कर सकें जो यरदन नदी के उस पार रहते थे।

2. आज हम किन हालात में जी रहे हैं, और हमें किस चीज़ की ज़रूरत है?

2 आज हम सच्चे मसीही भी वादा की गयी नयी दुनिया में बहुत जल्द कदम रखनेवाले हैं और यहोशू की तरह हमें भी साहसी होने की ज़रूरत है। (2 पतरस 3:13; प्रकाशितवाक्य 7:14) लेकिन हमारे हालात, यहोशू के दिनों के हालात से अलग हैं। यहोशू ने दुश्‍मनों से लड़ने के लिए तलवारें और भाले इस्तेमाल किए, जबकि हमारी लड़ाई आध्यात्मिक लड़ाई है, इसलिए हम कभी असली हथियारों का इस्तेमाल नहीं करते। (यशायाह 2:2-4; इफिसियों 6:11-17) इसके अलावा, वादा किए गए देश में घुसने के बाद भी यहोशू को बहुत-से घमासान युद्ध लड़ने पड़े, लेकिन हमें नयी दुनिया में जाने से पहले, यानी आज कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। आइए हम ऐसे कुछ हालात की चर्चा करें जिनमें साहस से काम लेने की ज़रूरत पड़ती है।

हमें क्यों संघर्ष करना है?

3. बाइबल, हमारे सबसे बड़े विरोधी के बारे में क्या बताती है?

3 प्रेरित यूहन्‍ना ने लिखा: “हम जानते हैं, कि हम परमेश्‍वर से हैं, और सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।” (1 यूहन्‍ना 5:19) यही सबसे बड़ी वजह है कि क्यों मसीहियों को अपना विश्‍वास बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। जब एक मसीही अपनी खराई बनाए रखता है, तो इससे काफी हद तक शैतान की हार होती है। इसलिए, शैतान “गर्जनेवाले सिंह” की तरह वफादार मसीहियों को डराने और उन्हें फाड़ खाने की ताक में रहता है। (1 पतरस 5:8) उसने अभिषिक्‍त मसीहियों और उनके साथियों के खिलाफ युद्ध छेड़ा हुआ है। (प्रकाशितवाक्य 12:17) इस युद्ध में, शैतान ऐसे इंसानों को इस्तेमाल कर रहा है जो जाने-अनजाने उसके मकसद को पूरा कर रहे हैं। शैतान और उसके सभी दूतों का डटकर मुकाबला करने के लिए हिम्मत की ज़रूरत है।

4. यीशु ने क्या चेतावनी दी, मगर सच्चे मसीहियों ने कौन-सा गुण दिखाया है?

4 यीशु जानता था कि शैतान और उसके दूत सुसमाचार का विरोध करने में एड़ी चोटी का ज़ोर लगाएँगे, इसलिए उसने अपने चेलों को पहले से यह चेतावनी दी थी: “[लोग] क्लेश दिलाने के लिये तुम्हें पकड़वाएंगे, और तुम्हें मार डालेंगे और मेरे नाम के कारण सब जातियों के लोग तुम से बैर रखेंगे।” (मत्ती 24:9) ये शब्द पहली सदी के मसीहियों पर पूरे हुए और आज हमारे समय में भी पूरे हो रहे हैं। इतिहास में जिस तरह लोगों को बड़ी बेरहमी से सताया जाता था, उसी तरह आज यहोवा के कुछ साक्षियों पर बड़ी बेदर्दी से ज़ुल्म ढाए गए हैं। फिर भी, सच्चे मसीही हिम्मत नहीं हारते बल्कि बड़े साहस के साथ इन ज़ुल्मों को सहते हैं। वे जानते हैं कि “मनुष्य का भय खाना फन्दा हो जाता है,” और वे इस फंदे में हरगिज़ नहीं फँसना चाहते।—नीतिवचन 29:25.

5, 6. (क) ऐसे कौन-से हालात हैं जिनमें हमें साहस दिखाने की ज़रूरत है? (ख) जब वफादार मसीहियों के साहस की आज़माइश होती है, तब वे कैसा रवैया दिखाते हैं?

5 सिर्फ ज़ुल्म सहते वक्‍त नहीं, बल्कि ऐसे दूसरे हालात भी हैं जिनमें हमें साहस की ज़रूरत पड़ती है। कुछ प्रचारकों के लिए अजनबियों को सुसमाचार सुनाना, किसी चुनौती से कम नहीं है। स्कूल जानेवाले कुछ बच्चों को जब सबके सामने अपने देश या राष्ट्रीय झंडे का वफादार बने रहने की शपथ लेने के लिए कहा जाता है, तो उनके साहस की आज़माइश होती है। इस तरह की शपथ खाना, एक तरह से उपासना के लिए कहे गए शब्द हैं, ऐसे में मसीही बच्चों ने बड़े साहस के साथ वही करने की ठानी है जिससे परमेश्‍वर खुश होता है। उनका यह साहस देखकर हमें बहुत खुशी होती है।

6 हमें उस वक्‍त भी साहस की ज़रूरत पड़ती है जब हमारे विरोधी, मीडिया पर दबाव डालकर परमेश्‍वर के सेवकों के बारे में झूठी खबरें फैलाते हैं, या जब वे ‘कानून की आड़ में उत्पात मचाकर’ सच्ची उपासना पर पाबंदी लगाते हैं। (भजन 94:20) उदाहरण के लिए, जब हमें अखबार, रेडियो या टी.वी. से पता चलता है कि यहोवा के साक्षियों के बारे में जानकारी को तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है या सरासर झूठी रिपोर्ट दी जा रही है, तब हमें कैसा महसूस करना चाहिए? क्या हमें ताज्जुब करना चाहिए? नहीं। हमें मालूम है कि ऐसा होगा। (भजन 109:2) जब कुछ लोग इन झूठी खबरों और गलत जानकारियों पर विश्‍वास करते हैं तब भी हमें कोई हैरानी नहीं होती है, क्योंकि कोई भी “भोला तो हर एक बात को सच मानता है।” (नीतिवचन 14:15) दूसरी तरफ, वफादार मसीही अपने भाइयों के बारे में छपी हर बात पर यकीन नहीं करते और ना ही वे झूठी या गलत खबर को सच मानकर मसीही सभाओं में जाना बंद कर देते हैं, ना ही प्रचार काम में उनका जोश कम होता है और ना ही वे अपने विश्‍वास में डगमगाते हैं। इसके बजाय, वे “परमेश्‍वर के सेवकों की नाईं अपने सद्‌गुणों को प्रगट करते हैं, . . . आदर और निरादर से, दुरनाम और सुनाम से, यद्यपि [विरोधियों की नज़र में] भरमानेवालों के ऐसे मालूम होते हैं तौभी [हकीकत में] सच्चे हैं।”—2 कुरिन्थियों 6:4, 8.

7. अपने दिल की जाँच करने के लिए हमें खुद से कौन-से सवाल पूछने चाहिए?

7 पौलुस ने तीमुथियुस को लिखते हुए कहा: “परमेश्‍वर ने हमें भय की नहीं पर सामर्थ, . . . की आत्मा दी है। इसलिये हमारे प्रभु की गवाही से, . . . लज्जित न हो।” (2 तीमुथियुस 1:7, 8; मरकुस 8:38) इन शब्दों को पढ़ने के बाद हम खुद से पूछ सकते हैं: ‘क्या मैं अपने धर्म के विश्‍वासों से लज्जित हूँ, या मैं हिम्मतवाला हूँ? नौकरी की जगह पर (या स्कूल में) क्या मैं सभी को बताता हूँ कि मैं यहोवा का एक साक्षी हूँ, या अपनी इस पहचान को छिपाने की कोशिश करता हूँ? क्या मैं इस बात से शर्मिंदा हूँ कि मैं दूसरों से अलग हूँ, या मुझे इस बात का गर्व है कि यहोवा के साथ मेरे रिश्‍ते की वजह से मैं दूसरों से अलग नज़र आता हूँ?’ अगर कोई सुसमाचार सुनाने में या फिर अपने किसी ऐसे विश्‍वास के बारे में बताने से डरता है जिसे ज़्यादातर लोग पसंद नहीं करते, तो उसे यहोशू को दी गयी यहोवा की सलाह याद करनी चाहिए: “तुम्हें दृढ़ और साहसी होना चाहिये!” यह कभी मत भूलिए कि यह बात अहम नहीं कि हमारे साथ काम करनेवाले या साथ पढ़नेवाले हमारे बारे में क्या सोचते हैं, बल्कि यह बात अहमियत रखती है कि यहोवा और यीशु मसीह की हमारे बारे में क्या राय है।—गलतियों 1:10.

हम और भी साहसी कैसे बन सकते हैं

8, 9. (क) एक अवसर पर, पहली सदी के मसीहियों की हिम्मत कैसे परखी गयी? (ख) जब पतरस और यूहन्‍ना को धमकाया गया, तो उन्होंने क्या किया, और उन्हें और उनके भाइयों को क्या अनुभव हुआ?

8 इन मुश्‍किलों के दौर में, हम और भी साहसी कैसे बन सकते हैं जिससे कि हम अपनी खराई बनाए रख सकें? पहली सदी के मसीहियों ने अपनी हिम्मत बढ़ाने के लिए क्या किया? ज़रा इस घटना पर गौर कीजिए कि जब यरूशलेम के महायाजकों और पुरनियों ने पतरस और यूहन्‍ना को यह आज्ञा दी कि वे यीशु के नाम से प्रचार करना बंद कर दें, तब क्या हुआ। दोनों चेलों ने साफ इनकार कर दिया। फिर उन्हें धमकी देकर छोड़ दिया गया। छूटने के बाद, वे अपने भाइयों से मिल गए और सबने एक-साथ यह प्रार्थना की: “हे प्रभु [यहोवा], उनकी धमकियों पर ध्यान दे और अपने सेवकों को निर्भयता के साथ ‘तेरे वचन’ सुनाने की शक्‍ति दे।” (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) (प्रेरितों 4:13-29) यहोवा ने उनकी प्रार्थना सुन ली और अपनी पवित्र आत्मा भेजकर उन्हें मज़बूत किया। और जैसे यहूदी अगुवों को बाद में कबूल करना पड़ा कि उन्होंने अपनी शिक्षाओं से ‘सारा यरूशलेम भर दिया।’—प्रेरितों 5:28.

9 आइए अब हम इस घटना की करीबी से जाँच करें। जब यहूदी अगुवों ने यीशु के चेलों को डराया-धमकाया, तो चेलों ने उनके दबाव में आकर प्रचार करना बंद नहीं किया। इसके बजाय, उन्होंने परमेश्‍वर से प्रार्थना की कि वह उन्हें प्रचार करते रहने की हिम्मत दे। फिर उन्होंने उस प्रार्थना के मुताबिक कदम उठाए और यहोवा ने अपनी आत्मा भेजकर उनके हौसले बुलंद किए। उनका अनुभव दिखाता है कि ज़ुल्म सहनेवाले मसीहियों पर पौलुस की लिखी बात कितनी अच्छी तरह लागू होती है, जो उसने कुछ साल बाद दूसरे हालात में लिखी थी। पौलुस ने लिखा: “जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।”—फिलिप्पियों 4:13.

10. यिर्मयाह की मिसाल उन लोगों की कैसे मदद कर सकती है, जो स्वभाव से शर्मीले हैं?

10 लेकिन मान लीजिए कि एक व्यक्‍ति स्वभाव से ही शर्मीला है। तो जब उसका कड़ा विरोध किया जाएगा, तब क्या वह साहस के साथ यहोवा की सेवा कर पाएगा? क्यों नहीं, ज़रूर कर पाएगा। जवान यिर्मयाह को ही लीजिए। जब यहोवा ने उसे एक भविष्यवक्‍ता के तौर पर चुना, तब उसने कहा: “मैं लड़का ही हूं।” उसके जवाब से साफ पता चलता है कि वह खुद को भविष्यवक्‍ता के काम के लायक नहीं समझता था। फिर भी, यहोवा ने उसे हिम्मत दिलाते हुए कहा: “मत कह कि मैं लड़का हूं; क्योंकि जिस किसी के पास मैं तुझे भेजूं वहां तू जाएगा, और जो कुछ मैं तुझे आज्ञा दूं वही तू कहेगा। तू उनके मुख को देखकर मत डर, क्योंकि तुझे छुड़ाने के लिये मैं तेरे साथ हूं।” (यिर्मयाह 1:6-10) यिर्मयाह ने यहोवा पर पूरा भरोसा किया और इसका नतीजा यह हुआ कि यहोवा से मिली ताकत से उसका सारा डर गायब हो गया और वह इस्राएल में एक लाजवाब और निडर साक्षी बना।

11. किस बात की मदद से मसीही, यिर्मयाह की तरह दिलेर बन सकते हैं?

11 आज अभिषिक्‍त मसीहियों को भी यिर्मयाह के जैसा काम सौंपा गया है। वे ‘अन्य भेड़ों’ की “बड़ी भीड़” का साथ पाकर यहोवा के मकसदों का ऐलान करने में लगे हुए हैं, फिर चाहे लोग उनकी बातों को अनसुना कर दें, उनकी खिल्ली उड़ाएँ या उन्हें सताएँ। (यूहन्‍ना 10:16, NW; प्रकाशितवाक्य 7:9) उनका हौसला यिर्मयाह से कहे यहोवा के इन शब्दों से बढ़ता है: “मत डर।” वे कभी नहीं भूलते कि परमेश्‍वर ही ने उन्हें यह काम सौंपा है और जो संदेश वे सुना रहे हैं, वह भी परमेश्‍वर का है।—2 कुरिन्थियों 2:17.

साहसी लोगों की मिसाल पर चलिए

12. साहस दिखाने में यीशु क्यों एक उम्दा मिसाल है, और उसने अपने चेलों को क्या बढ़ावा दिया?

12 अपने अंदर साहस बढ़ाने के लिए एक और मदद उपलब्ध है। वह है, उन लोगों की मिसाल पर मनन करना जो यिर्मयाह की तरह साहसी थे। (भजन 77:12) यीशु की मिसाल लीजिए। धरती पर अपनी सेवा के दौरान जब शैतान ने उसे गलत काम करने के लिए लुभाया और जब यहूदी अगुवों ने उसका कड़ा विरोध किया, तब उसने जिस हिम्मत और साहस के साथ उनका सामना किया, वह वाकई काबिले-तारीफ है। (लूका 4:1-13; 20:19-47) जी हाँ, यहोवा की शक्‍ति से यीशु इतना बलवंत हो गया कि कोई भी चीज़ उसके विश्‍वास को डगमगा नहीं सकती थी। और अपनी मौत के कुछ ही समय पहले उसने अपने चेलों से कहा: “संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु साहस रखो—मैंने संसार को जीत लिया है।” (यूहन्‍ना 16:33, NHT; 17:16) अगर यीशु के चेले उसके नक्शे-कदम पर चलते, तो वे भी संसार पर जीत हासिल करते। (1 यूहन्‍ना 2:6; प्रकाशितवाक्य 2:7, 11, 17, 26) मगर इसके लिए उन्हें ‘साहस रखना’ था।

13. पौलुस ने फिलिप्पी के भाई-बहनों को क्या बढ़ावा दिया?

13 यीशु की मौत के कुछ साल बाद, पौलुस और सीलास को फिलिप्पी के जेल में डाल दिया गया। उसके कुछ समय बाद, पौलुस ने फिलिप्पी की कलीसिया के भाई-बहनों को यह बढ़ावा दिया कि वे ‘एक ही आत्मा में स्थिर बने रहें, और एक चित्त होकर सुसमाचार के विश्‍वास के लिये परिश्रम करते रहें। और किसी बात में विरोधियों से भय नहीं खाएँ।’ इस सलाह के मुताबिक चलते रहने का हौसला दिलाने के लिए पौलुस ने आगे कहा: “यह [मसीहियों का सताया जाना] उन [सतानेवालों] के लिये विनाश का स्पष्ट चिन्ह है, परन्तु तुम्हारे लिये उद्धार का, और यह परमेश्‍वर की ओर से है। क्योंकि मसीह के कारण तुम पर यह अनुग्रह हुआ, कि न केवल उस पर विश्‍वास करो पर उसके लिये दुख भी उठाओ।”—फिलिप्पियों 1:27-29.

14. पौलुस के साहस का रोम के भाइयों पर क्या असर हुआ?

14 जब पौलुस ने फिलिप्पी की कलीसिया के नाम यह पत्री लिखी, तब वह दूसरी बार जेल में था और इस दफा वह रोम में कैद था। फिर भी, वह साहस के साथ दूसरों को प्रचार करता रहा। इसका नतीजा क्या हुआ? उसने लिखा: “कैसरी राज्य की सारी पलटन और शेष सब लोगों में यह प्रगट हो गया है कि मैं मसीह के लिये कैद हूं। और प्रभु में जो भाई हैं, उन में से बहुधा मेरे कैद होने के कारण, हियाव बान्ध कर, परमेश्‍वर का वचन निधड़क सुनाने का और भी हियाव करते हैं।”—फिलिप्पियों 1:13, 14.

15. विश्‍वास की बढ़िया मिसालें हमें कहाँ मिल सकती हैं जो हमें साहसी बनने के लिए मज़बूत करेंगी?

15 पौलुस की मिसाल से हमें काफी साहस मिलता है। उसी तरह हमें आज के ज़माने के मसीहियों से भी बहुत साहस मिलता है जिन्होंने तानाशाह सरकार या फिर पादरियों की हुकूमत के अधीन देशों में रहकर ज़ुल्म सहे हैं। इन मसीहियों में से बहुतों की जीवन-कहानियाँ, प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! पत्रिकाओं, साथ ही इयरबुक ऑफ जेहोवाज़ विटनॆसॆस में आयी हैं। जब आप उनकी कहानियाँ पढ़ते हैं तो याद रखिए कि वे भी हमारी तरह आम इंसान हैं; मगर यहोवा से असीम सामर्थ पाकर वे मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात में धीरज धर पाए हैं। हम इस बात का पूरा यकीन रख सकते हैं कि आगे चलकर, ज़रूरत की घड़ी में यहोवा हमें भी ज़रूर वही असीम सामर्थ देगा।

हमारे साहस से यहोवा खुश होता है और उसकी महिमा होती है

16, 17. आज हम अपने अंदर साहस कैसे पैदा कर सकते हैं?

16 साहसी इंसान वह है जो सच्चाई और धार्मिकता के लिए अटल खड़ा रहता है। और अगर वह अंदर से सहमा होने पर भी विश्‍वास में दृढ़ खड़ा रहता है, तो यह और भी साहस की बात है। दरअसल, कोई भी मसीही साहस और हिम्मत पैदा कर सकता है, मगर इसके लिए ज़रूरी है कि वह दिल से यहोवा की मरज़ी पूरी करने की चाहत रखे, वफादार रहने का पक्का इरादा कर ले, हर घड़ी परमेश्‍वर पर भरोसा रखे और हमेशा याद रखे कि यहोवा ने पहले भी उसके जैसे अनगिनित लोगों की हिम्मत बढ़ायी है। इसके अलावा, जब हमें एहसास होता है कि हमारे साहस से यहोवा खुश होता है और उसकी महिमा होती है, तब अपने विश्‍वास को मज़बूत बनाए रखने का हमारा इरादा और भी पक्का हो जाता है। लोग चाहे हमारा मज़ाक उड़ाएँ या इससे भी बुरा सलूक करें, हम यह सब झेलने को तैयार हैं, क्योंकि हम दिलो-जान से यहोवा को प्यार करते हैं।—1 यूहन्‍ना 2:5; 4:18.

17 हमेशा याद रखिए कि जब हम अपने विश्‍वास की खातिर ज़ुल्म सहते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि हमने कोई पाप किया है। (1 पतरस 3:17) हम पर तकलीफें इसलिए आती हैं, क्योंकि हम यहोवा की हुकूमत के पैरोकार हैं, सबके साथ भलाई करते हैं और इस संसार का भाग नहीं हैं। इस बारे में प्रेरित पतरस ने कहा: “यदि भला काम करके दुख उठाते हो और धीरज धरते हो, तो यह परमेश्‍वर को भाता है।” पतरस ने यह भी कहा: “जो परमेश्‍वर की इच्छा के अनुसार दुख उठाते हैं, वे भलाई करते हुए, अपने अपने प्राण को विश्‍वासयोग्य सृजनहार के हाथ में सौंप दें।” (1 पतरस 2:20; 4:19) जी हाँ, जब हम विश्‍वास दिखाते हैं तो इससे हमारे प्यारे परमेश्‍वर यहोवा का दिल खुश होता है और उसकी महिमा होती है। साहसी बनने के लिए यह क्या ही ज़बरदस्त वजह है!

अधिकारियों से बात करना

18, 19. जब हम निडर होकर एक जज के सामने बात करते हैं, तो दरअसल हम उसे किस का संदेश सुनाते हैं?

18 जब यीशु ने अपने चेलों को बताया कि उन्हें सताया जाएगा, तब उसने यह भी कहा था: “[लोग] तुम्हें महा सभाओं में सौंपेंगे, और अपनी पंचायतों में तुम्हें कोड़े मारेंगे। तुम मेरे लिये हाकिमों और राजाओं के साम्हने उन पर, और अन्यजातियों पर गवाह होने के लिये पहुंचाए जाओगे।” (मत्ती 10:17, 18) जब हम पर झूठा इलज़ाम लगाकर किसी जज या शासक के सामने लाया जाता है, तब उससे बात करने के लिए साहस की ज़रूरत होती है। ऐसे में अगर हम निडर होकर उसे गवाही देंगे, तो हम मुश्‍किल में होते हुए भी एक ज़रूरी काम पूरा करेंगे। इस मायने में हम न्याय करनेवालों तक यहोवा के ये शब्द पहुँचाते हैं, जो भजन 2 में दर्ज़ है: “अब, हे राजाओं, बुद्धिमान बनो; हे पृथ्वी के न्यायियों, यह उपदेश ग्रहण करो [“चेतावनी पर ध्यान दो,” NHT]। डरते हुए यहोवा की उपासना करो।” (भजन 2:10, 11) जब अदालत में यहोवा के साक्षियों के माथे झूठा इलज़ाम मढ़ दिया जाता है, तो अकसर जजों ने उनके पक्ष में फैसला सुनाकर उनकी उपासना करने की आज़ादी का समर्थन किया है। इसके लिए हम उनके आभारी हैं। मगर कुछ ऐसे भी जज हैं, जिन्होंने विरोधियों की बातों में आकर साक्षियों के खिलाफ फैसला सुनाया है। बाइबल की आयत ऐसे जजों को कहती है: “चेतावनी पर ध्यान दो।”

19 जज को यह बात याद रखनी चाहिए कि यहोवा परमेश्‍वर का कानून ही दुनिया का सबसे बड़ा कानून है। साथ ही, कि हर इंसान यहाँ तक कि वे जज भी यहोवा और यीशु मसीह के सामने जवाबदेह हैं। (रोमियों 14:10) जहाँ तक हमारी बात है, चाहे इंसानी जज हमें इंसाफ दिलाए या न दिलाए, हमें साहसी होना चाहिए क्योंकि यहोवा हमारे साथ है। बाइबल कहती है: “धन्य हैं वे जिनका भरोसा उस पर है।”—भजन 2:12.

20. जब हमें सताया और बदनाम किया जाता है, तब भी हम क्यों खुश रहते हैं?

20 यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश में कहा: “धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें, और सताएं और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें। आनन्दित और मगन होना क्योंकि तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा फल है इसलिये कि उन्हों ने उन भविष्यद्वक्‍ताओं को जो तुम से पहिले थे इसी रीति से सताया था।” (मत्ती 5:11, 12) माना कि ज़ुल्म सहने में किसी तरह की खुशी नहीं मिलती, लेकिन सताए जाने पर, यहाँ तक कि मीडिया के ज़रिए हमारे बारे में झूठी खबरें फैलाए जाने के बावजूद जब हम अपने विश्‍वास में दृढ़ खड़े रहते हैं, तो इससे हमें बड़ी खुशी होती है। हमारे दृढ़ खड़े रहने का मतलब होता है कि यहोवा हमसे खुश है और हमें इसका प्रतिफल ज़रूर मिलेगा। हमारा साहसी होना, यह दिखाता है कि हमारा विश्‍वास सच्चा है और इससे हमें यह भी आश्‍वासन मिलता है कि हम पर परमेश्‍वर का अनुग्रह है। वाकई इससे साफ ज़ाहिर होता है कि हम यहोवा पर पूरा-पूरा भरोसा रखते हैं। और जैसे हम अगले लेख में चर्चा करेंगे कि ऐसा भरोसा मसीहियों के लिए बेहद ज़रूरी है।

आपने क्या सीखा है?

• ऐसे कौन-से हालात पैदा हो सकते हैं जिनमें हमें साहस दिखाने की ज़रूरत पड़े?

• हम साहस का गुण कैसे पैदा कर सकते हैं?

• कुछ लोगों के नाम बताइए जो साहस दिखाने में बढ़िया मिसाल हैं।

• हम क्यों साहस दिखाना चाहते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 9 पर तसवीरें]

जर्मनी की सीमोन आर्नोल्ड (अब सीमोन लीबस्टर), मलावी की विडास मडोना और यूक्रेन के लिडीया और ऑलेक्सी कुरदास ने साहस दिखाया और उस दुष्ट का विरोध किया

[पेज 10 पर तसवीरें]

हम सुसमाचार से लज्जित नहीं होते

[पेज 11 पर तसवीर]

कैद में रहने के बावजूद पौलुस ने जो साहस दिखाया, उससे सुसमाचार को बढ़ावा देने में काफी मदद मिली

[पेज 12 पर तसवीर]

अगर हम जज के सामने बाइबल के आधार पर अपने विश्‍वास की सफाई देते हैं, तो हम उन्हें एक बहुत ही ज़रूरी संदेश सुनाते हैं