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पहले राज्य की खोज करना—एक सुरक्षित और खुशहाल जीवन

पहले राज्य की खोज करना—एक सुरक्षित और खुशहाल जीवन

जीवन कहानी

पहले राज्य की खोज करना—एक सुरक्षित और खुशहाल जीवन

जॆथा सुनल की ज़ुबानी

नाश्‍ता करते वक्‍त हमने रेडियो पर एक घोषणा सुनी: “यहोवा के साक्षी गैर-कानूनी हैं, और उनके काम पर पाबंदी लगा दी गयी है।”

बात सन्‌ 1950 की है, हम चार जवान लड़कियाँ डॉमिनिकन रिपब्लिक में यहोवा के साक्षियों के मिशनरी के तौर पर सेवा कर रही थीं। उस वक्‍त हमारी उम्र 20 से 29 साल के बीच थी। और हमें यहाँ आए एक साल हुआ था।

असल में, मिशनरी सेवा मेरे जीवन का लक्ष्य कभी नहीं था। यह सच है कि मैं बचपन में चर्च जाती थी। मगर मेरे पिताजी ने पहले विश्‍वयुद्ध के दौरान ही चर्च जाना बंद कर दिया था। सन्‌ 1933 में जिस दिन मेरे एपिसकोपल चर्च का एक सदस्य बनने की रस्म अदा की जा रही थी, उस दिन बिशप ने बाइबल से सिर्फ एक आयत पढ़ी और फिर राजनीति पर भाषण देने लगा। इससे मेरी माँ इतनी निराश हुई कि उसने फिर कभी चर्च की दहलीज़ पर कदम नहीं रखा।

हमारा जीवन बदल गया

मेरे पिता, विलियम कार्ल और माँ, मॆरी एडम्स के पाँच बच्चे हुए। उनमें से लड़कों के नाम डॉन, जोएल, और कार्ल थे। मेरी बहन जॉय सबसे छोटी थी और मैं सबसे बड़ी। उस वक्‍त मेरी उम्र शायद 13 साल की रही होगी, जब एक दिन मैं स्कूल से आयी तो देखा कि माँ एक पुस्तिका पढ़ रही थी, जिसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया था। उस पुस्तिका का शीर्षक था, राज्य, संसार की आशा (अँग्रेज़ी)। उसने मुझसे कहा: “यही सच्चाई है।”

माँ, जो भी बाइबल से सीखती, वे हमें बताती थी। अपनी बातचीत और अपनी मिसाल के ज़रिए वह हमें यीशु की सलाह के महत्व को समझाती थी कि हम ‘पहले राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज करें’।—मत्ती 6:33.

लेकिन मुझे हर वक्‍त माँ की बातें सुनना पसंद नहीं था। एक बार मैंने उससे कहा: “देख माँ, मुझे प्रचार करना बंद कर दे, वरना मैं बरतनों को नहीं पोछूँगी।” मगर फिर भी वह बड़ी होशियारी से हमसे बात करने की कोशिश करती थी। वह हमेशा हम सब बच्चों को सभाओं के लिए क्लैरा रायन के घर ले जाती थी, उसका घर अमरीका में इलिनोइज़ के एल्महर्स्ट शहर में था, जो हमारे घर से कुछ ही दूरी पर था।

क्लैरा, पियानो बजाना भी सिखाती थी। जब हर साल उसके विद्यार्थी दूसरों के सामने अपने-अपने हुनर की प्रस्तुति करते थे कि उन्होंने कितनी प्रगति की है, तब उस मौके का फायदा उठाकर वह परमेश्‍वर के राज्य और पुनरुत्थान की आशा के बारे में उन्हें बताती थी। सात साल की उम्र से ही मैंने वायलिन बजाना सीखा था, इसी से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि मुझे संगीत में कितनी दिलचस्पी थी। इसलिए मैं भी क्लैरा की बातें सुनती थी।

बहुत जल्द हम बच्चे, माँ के साथ कलीसिया की सभाओं में हाज़िर होने लगे जो शिकागो के पश्‍चिम की ओर हुआ करती थीं। वहाँ जाने के लिए हमें लंबा सफर तय करना पड़ता था, जिसके लिए हमें बस और ट्रैम में यात्रा करनी पड़ती थी। मगर, पहले राज्य की खोज करने की ट्रेनिंग का यह शुरूआती भाग था। माँ के बपतिस्मे के तीन साल बाद सन्‌ 1938 में, मैं उसके साथ शिकागो में हुए यहोवा के साक्षियों के एक अधिवेशन में गयी। यह उन 50 शहरों में से एक था जिसे इस अवसर पर रेडियो-टेलिफोन के ज़रिए जोड़ा गया था। मैंने वहाँ जो भी बातें सुनीं, वे मेरे दिल को छू गयीं।

मगर संगीत भी मेरी रग-रग में बसा हुआ था। सन्‌ 1938 में, जब मैंने हाई स्कूल पास किया तो पिताजी ने मेरे लिए शिकागो में अमरीकन कंज़रवेट्री ऑफ म्यूज़िक में पढ़ने का प्रबंध किया। इसलिए अगले दो सालों तक, मैंने संगीत की पढ़ाई की, दो ऑरकेस्ट्राओं में भाग लिया और संगीत को अपना पेशा बनाने की सोचने लगी।

हरबर्ट बटलर जो मुझे वायलिन सिखाते थे, वे यूरोप छोड़कर अमरीका आ बसे। इसलिए मैंने उन्हें शरणार्थी (अँग्रेज़ी) * नाम की एक पुस्तिका यह सोचकर दी कि शायद वे उसे पढ़ेंगे। उन्होंने उसे पढ़ा, और अगले हफ्ते मुझे वायलिन सिखाने के बाद कहा: “जॆथा, बहुत अच्छा बजाती हो और अगर तुम ऐसे ही सीखती रहीं तो हो सकता है कि तुम्हें रेडियो ऑरकेस्ट्रा में या कहीं और संगीत सिखाने की नौकरी मिल जाए।” फिर उन्होंने उसी पुस्तिका को हाथ में लेते हुए कहा: “लेकिन मेरे ख्याल से तुम्हें ज़्यादा दिलचस्पी इस काम में है। क्यों ना तुम इसी काम को अपने जीवन का पेशा बना लो?”

मैंने इसके बारे में गंभीरता से सोचा। और कंज़रवेट्री में अध्ययन जारी रखने के बजाय, मैंने माँ के न्यौते को स्वीकार किया और उसके साथ जुलाई 1940 में डिटरॉइट, मिशिगन में हुए यहोवा के साक्षियों के अधिवेशन में गयी। हम वहाँ ट्रेलर सिटी में तंबुओं में रहे। बेशक, मैं अपना वायलिन साथ ले गयी थी और मैंने अधिवेशन के ऑरकेस्ट्रा में इसे बजाया भी था। ट्रेलर सिटी में मेरी मुलाकात कई पायनियरों (पूरे समय के प्रचारकों) से हुई। वे सब बहुत खुश नज़र आ रहे थे। मैंने फैसला किया कि मैं बपतिस्मा लूँगी और पायनियर सेवा के लिए अर्ज़ी भरूँगी। फिर मैंने मदद के लिए यहोवा से प्रार्थना की ताकि मैं सारी ज़िंदगी पूरे समय की सेवा करने में लगी रहूँ।

मैंने अपने ही शहर में पायनियर सेवा शुरू कर दी। फिर, मैंने शिकागो जाकर सेवा की। सन्‌ 1943 में, मैं कॆनटॆकी चली गई। उसी साल गर्मियों में ठीक ज़िला अधिवेशन के कुछ ही समय पहले मुझे गिलियड स्कूल की दूसरी क्लास में हाज़िर होने का न्यौता मिला, जहाँ मुझे मिशनरी बनने की ट्रेनिंग दी जाती। यह क्लास सितंबर 1943 में शुरू होनेवाली थी।

उन दिनों गर्मियों में हुए अधिवेशन के दौरान, मैं एक साक्षी बहन के घर में रुकी। उसने मुझे अपनी बेटी के सारे कपड़े दिखाए और कहा कि जो भी तुम्हें पसंद आए, ले लो। उसकी बेटी सेना में भर्ती हो गई थी और उसने अपनी माँ से अपनी सारी चीज़ें किसी को देने के लिए कहा था। मेरे लिए ये चीज़ें, यीशु के इस वादे की पूर्ति थीं: “इसलिये पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी।” (मत्ती 6:33) देखते-देखते गिलियड के पाँच महीने गुज़र गए और जनवरी 31,1944 को ग्रेजुएशन के बाद, अपनी मिशनरी सेवा शुरू करने के लिए मैं बेताबी से इंतज़ार कर रही थी।

उन्होंने भी पूरे समय की सेवा चुनी

माँ ने सन्‌ 1942 में पायनियर सेवा शुरू की थी। उस वक्‍त मेरे तीन भाई और मेरी बहन स्कूल में पढ़ रहे थे। अकसर, माँ स्कूल की छुट्टी होने के बाद उन्हें मिलती थी और वहीं से प्रचार के लिए उन्हें अपने साथ ले जाती। वह उन्हें घर के काम-काज में भी हाथ बँटाना सिखाती थी। कई बार वह खुद रात को देर तक कपड़ों को इस्त्री करती और दूसरे ज़रूरी काम निपटाती ताकि अगले दिन वह सेवा के लिए जा सके।

जनवरी 1943 में, जब मैं कॆनटॆकी में पायनियर सेवा कर रही थी, तब मेरे भाई डॉन ने भी पायनियर सेवा शुरू की। मगर इससे मेरे पिताजी खुश नहीं थे, क्योंकि वे चाहते थे कि उनकी और माँ की तरह हम सभी बच्चे भी कालेज की पढ़ाई पूरी करें। दो साल तक पायनियर सेवा करने के बाद डॉन को ब्रुकलिन, न्यू यॉर्क में यहोवा के साक्षियों के मुख्यालय में एक सदस्य होने के लिए बुलाया गया जहाँ वह अपनी पूरे समय की सेवा जारी रख सके।

जून 1943 में, जोएल ने घर पर रहते हुए ही पायनियर सेवा शुरू की थी। उस वक्‍त उसने पिताजी से एक अधिवेशन में हाज़िर होने के लिए खूब गुज़ारिश की मगर उन्होंने जाने से मना कर दिया। जोएल अपने ही इलाके में बाइबल अध्ययन पाने की पूरी कोशिश कर रहा था मगर उसे कामयाबी नहीं मिली। तो पिताजी उसके साथ, “सच्चाई तुम्हें आज़ाद करेगी” (अँग्रेज़ी) किताब से अध्ययन करने के लिए राज़ी हो गए। वे सवालों के जवाब बड़ी आसानी से देते थे, मगर किताब में लिखी बातों का सबूत बाइबल से जानने के लिए वे जोएल के पीछे पड़े रहते। इस वजह से बाइबल की सच्चाइयों को जोएल और भी अपना बना सका।

जोएल उम्मीद कर रहा था कि धर्म का प्रचारक होने की वजह से जिस तरह उसके भाई डॉन को चयनिक सेवा मंडल ने सेना में भर्ती न होने की छूट दी थी, उसी तरह उसे भी वे सैनिक बनने से मुक्‍ति दे देंगे। मगर जब मंडल ने देखा कि जोएल अच्छा-खासा तगड़ा जवान दिखता है, तो उन्होंने उसे प्रचारक का दर्जा देने से इनकार कर दिया और सेना में भर्ती होने का एक नोटिस भेजा। मगर वह सेना में भर्ती नहीं हुआ, इसलिए उसकी गिरफ्तारी का वारंट निकाला। जब एफ.बी.आई. ने उसका पता लगाया तो उसे तीन दिन के लिए कुक काउन्टी जेल में डाल दिया गया।

पिताजी ने हमारे घर को गिरवी रखकर, उसकी ज़मानत करवाई। उसके बाद, ऐसी ही मुसीबत में फँसे दूसरे जवान साक्षियों की भी पिताजी ने मदद की। ऐसे अन्याय की वजह से मेरे पिताजी बहुत नाराज़ थे, इसलिए वे जोएल के साथ वॉशिंगटन, डी. सी. गए और वहाँ पता लगाया कि इस मुकदमे की अपील हो सकती है या नहीं। आखिरकार जोएल को प्रचारक का दर्जा दिया गया और उसका मुकदमा खारिज कर दिया। जहाँ मैं मिशनरी सेवा कर रही थी पिताजी ने वहाँ मुझे खत में लिखा, “इस जीत का श्रेय सिर्फ यहोवा को ही जाना चाहिए!” अगस्त 1946 के अंत में जोएल को भी ब्रुकलिन के मुख्यालय में एक सदस्य के तौर पर सेवा करने के लिए बुलाया गया।

सन्‌ 1947 की शुरूआत में, स्कूल की पढ़ाई खत्म करने से पहले, कार्ल ने कई बार स्कूल की छुट्टियों में पायनियर सेवा की। और पढ़ाई खत्म करने के बाद उसने रेग्यूलर पायनियर सेवा शुरू कर दी। दूसरी जगह जाकर अपनी पायनियर सेवा करने से पहले कुछ वक्‍त तक कार्ल ने पिताजी के बिज़नेस में उनका हाथ बँटाया, क्योंकि उनकी तबियत ठीक नहीं रहती थी। सन्‌ 1947 के अंत में कार्ल भी ब्रुकलिन मुख्यालय में डॉन और जोएल के साथ बेथेल परिवार के सदस्य के तौर पर सेवा करने लगा।

जब जॉय ने स्कूल की पढ़ाई खत्म की तो उसने भी पायनियर सेवा शुरू कर दी। फिर सन्‌ 1951 में, उसने भी अपने भाइयों के साथ-साथ बेथेल सेवा शुरू कर दी। उसने वहाँ बेथेल के कमरों की देख-रेख और पत्रिकाओं के अभिदान विभाग में भी काम किया। सन्‌ 1955 में उसने बेथेल परिवार के एक सदस्य रॉजर मॉरगन से शादी कर ली। करीब सात साल बाद, खुद का परिवार बसाने की इच्छा से उन्होंने बेथेल छोड़ दिया। फिर समय के चलते उन्होंने दो बच्चों को बड़ा किया और वे भी यहोवा की सेवा कर रहे हैं।

जब सभी बच्चे पूरे समय की सेवा कर रहे थे, तब माँ ने पिताजी का हौसला बढ़ाया जिसकी उन्हें ज़रूरत थी। इसका नतीजा यह हुआ कि उन्होंने भी अपना जीवन यहोवा को समर्पित करके सन्‌ 1952 में बपतिस्मा ले लिया। हालाँकि बीमार रहने की वजह से वे ज़्यादा नहीं कर पाते थे। मगर अपने बपतिस्मे से पंद्रह साल तक यानी अपनी आखिरी साँस तक वे प्रचार करने के अलग-अलग और बहुत ही बढ़िया तरीके अपनाकर दूसरों को सुसमाचार सुनाने में काबिल साबित हुए।

पिताजी की बीमारी की वजह से माँ ने कुछ समय तक पायनियर सेवा छोड़ दी थी, मगर उसके बाद अपनी मृत्यु तक उन्होंने पायनियर सेवा जारी रखी। उसके पास कभी भी कार नहीं थी और ना ही वह साइकिल चलाती थी। उसका कद काफी कम था, और वह सभी जगह पैदल जाती थी। कई बार तो वह दूर-दराज़ इलाकों में भी दूसरों को बाइबल अध्ययन कराने जाती थी।

मिशनरी क्षेत्र में

गिलियड से ग्रेजुएशन करने के बाद, जब तक हमारे दूसरे देश जाने की कागज़ी कार्यवाही पूरी नहीं हो गई तब तक हममें से कुछ लोगों ने एक साल तक न्यू यॉर्क शहर के उत्तर की एक कलीसिया में पायनियर सेवा की। आखिरकार सन्‌ 1945 में, हम अपने मिशनरी काम के लिए क्यूबा रवाना हो गए, और धीरे-धीरे हमने अपनी ज़िंदगी को वहाँ के रहन-सहन के मुताबिक ढाल लिया। हमें वहाँ प्रचार करने के अच्छे नतीजे मिले और बहुत जल्द हम बहुत-से लोगों के साथ बाइबल अध्ययन कर रहे थे। कई सालों तक हमने वहाँ सेवा की। फिर हमें इस काम के लिए डॉमिनिकन रिपब्लिक भेज दिया गया। एक दिन, मुझे एक स्त्री मिली जिसने मुझे अपनी ग्राहक, सूज़ान ऐनफ्रवै से मिलने का आग्रह किया। सूज़ान ऐनफ्रवै फ्रांस की रहनेवाली थी और उसे बाइबल समझने में मदद चाहिए थी।

सूज़ान यहूदी थी, और जब हिटलर ने फ्रांस पर कब्ज़ा किया, तब उसका पति, सूज़ान और अपने दो बच्चों को दूसरे देश ले गया। सूज़ान जो सीख रही थी, बहुत जल्द वह दूसरों के साथ बाँटने लगी। उसने सबसे पहले उस स्त्री से जाकर बातचीत की जिसने मुझे सूज़ान से मिलने के लिए कहा था, फिर उसने फ्रांस की एक सहेली के साथ बात की जिसका नाम ब्लान्श था। उन दोनों ने सच्चाई में अच्छी तरक्की की और बपतिस्मा ले लिया।

सूज़ान ने मुझसे पूछा: “मैं अपने बच्चों की मदद कैसे कर सकती हूँ?” उसका बेटा मॆडिकल की पढ़ाई कर रहा था और बेटी बैले नाच सीख रही थी और उसकी यह तमन्‍ना थी कि वह न्यू यॉर्क में रेडियो सिटी म्यूज़िक हॉल में नाचे। सूज़ान ने अपने दोनों बच्चों के लिए प्रहरीदुर्ग और सजग होइए (अँग्रेज़ी) पत्रिकाओं का अभिदान करवाया। इसकी वजह से, उसका बेटा और उसकी पत्नी, साथ ही उसकी पत्नी की जुड़वा बहन साक्षी बन गए। सूज़ान, यहोवा के साक्षियों में जो दिलचस्पी ले रही थी उसकी वजह से उसके पति, लूई को चिंता होने लगी, क्योंकि अब तक डॉमिनिकन रिपब्लिक की सरकार ने हमारे काम पर पाबंदी लगा दी थी। मगर बाद में, जब पूरा परिवार अमरीका जाकर बस गया, तो आखिर में वह भी एक साक्षी बन गया।

पाबंदी अब भी, मगर सेवा ज़ारी

सन्‌ 1949 में डॉमिनिकन रिपब्लिक में अभी आए कुछ ही वक्‍त बीता था कि वहाँ यहोवा के साक्षियों के काम पर पाबंदी लगा दी गई। उसके बावजूद हमने मनुष्यों के बजाय परमेश्‍वर की आज्ञा मानने की ठान ली थी। (प्रेरितों 5:29) हमने परमेश्‍वर के राज्य का प्रचार करने के ज़रिए, पहले उसके राज्य की खोज करना जारी रखा, जैसा कि यीशु ने अपने चेलों को करने के लिए कहा था। (मत्ती 24:14) मगर हाँ, हमने ‘साँपों की नाईं बुद्धिमान और कबूतरों की नाईं भोला’ बनना सीखा और प्रचार काम करते रहे। (मत्ती 10:16) उदाहरण के लिए, इस काम में मेरा वायलिन काफी मददगार साबित हुआ। जब भी मैं बाइबल अध्ययन के लिए जाती तो उसे साथ ले जाती थी। हालाँकि मेरे विद्यार्थियों ने वायलिन बजाना तो नहीं सीखा मगर कई परिवार यहोवा के साक्षी बन गए!

हमारे काम पर पाबंदी लगने के बाद, मुझे, मॆरी ऐनयौल, सोफी सोविऐक और एडिथ मॉर्गन, हम चारों लड़कियों को सैन फ्रांसिसको डी माकोरीस के मिशनरी होम से राजधानी, सानटो डोमिंगो के मिशनरी होम में भेज दिया गया जो वहाँ का शाखा दफ्तर था। मगर हर महीने मैं उसी शहर में संगीत सिखाने जाया करती थी जहाँ पहले हमें भेजा गया था। जाते वक्‍त मैं अपने वायलिन केस में अपने मसीही भाइयों के लिए आध्यात्मिक भोजन ले जाती थी और लौटते वक्‍त उनके प्रचार काम की रिपोर्ट ले आती थी।

सैन फ्रांसिसको डी माकोरीस में निष्पक्ष रहने की खातिर भाइयों को सैंटियागो की जेल में डाल दिया गया। वहाँ मुझे उनके लिए पैसे और अगर हो सके तो उनके लिए बाइबलें ले जाने को कहा गया और लौटते वक्‍त उनके परिवार के लिए उनकी खबर लानी थी। जब सैंटियागो जेल के पहरेदार, मेरे बगल में रखे वायलिन केस को देखते तो पूछते “वह किस लिए लायी हो?” तब मैं उनसे कहती: “उनका जी बहलाने के लिए।”

मैं उनके लिए कई गाने बजाती थी, जिनमें एक गाना एक साक्षी ने लिखा था जब वह नात्ज़ी यातना शिविर में था। उस गीत का नंबर, यहोवा के साक्षियों की गीत किताब (अँग्रेज़ी) में 29 है। मैं इस गाने को इसलिए बजाती थी ताकि हमारे कैदी भाई इसे गाना सीख लें।

मुझे पता चला कि कई साक्षियों को डॉमिनिकन रिपब्लिक के तानाशाह, ट्रूहीयो के खेत में भेज दिया गया है। और मुझे बताया गया था कि यह खेत, बस के रास्ते से थोड़ा हटकर है। इसलिए करीब बारह बजे, मैं बस से उतरकर वहाँ जाने का रास्ता पूछने लगी। तब एक छोटी-सी दुकान के मालिक ने मुझे इशारा करते हुए बताया कि वह खेत इन पहाड़ों के पीछे है और उसने मुझे अपना घोड़ा दिया और रास्ता बताने के लिए एक लड़के को मेरे साथ भेजने का बंदोबस्त किया। मगर उसकी एक शर्त थी कि उसके घोड़े के बदले मुझे अपना वायलिन उसके पास गिरवी रखना था।

उन पहाड़ों के पीछे हमें एक नदी पार करनी थी। हमने घोड़े पर ही बैठकर नदी पार की। वहाँ हमने तोतों का एक झुंड देखा जिनके हरे और सतरंगे नज़र आनेवाले नीले पंख सूरज की रोशनी में चमक रहे थे। यह क्या ही शानदार नज़ारा था! मैंने प्रार्थना की: “यहोवा इन्हें इतना खूबसूरत बनाने के लिए तेरा बहुत-बहुत शुक्रिया।” आखिरकार शाम के चार बजे हम उस खेत में पहुँचे। जो सैनिक वहाँ निगरानी कर रहा था, उसने कदरदानी दिखाते हुए मुझे भाइयों से बात करने दी और उनके लिए मैं जो भी लायी थी, जिसमें एक छोटी-सी बाइबल भी थी, वह उन्हें देने के लिए मुझे इज़ाज़त दे दी।

लौटते समय मैं यहोवा से प्रार्थना करती रही क्योंकि अंधेरा हो चुका था। और जब हम उस दुकान पर पहुँचे तो बारिश में पूरी तरह भीग चुके थे। आखिरी बस भी जा चुकी थी, तो मैंने दुकानदार को रास्ते से गुज़र रहे एक ट्रक को रोकने के लिए कहा। उस ट्रक में दो आदमी थे, क्या इन दोनों के साथ मेरा अकेले ट्रक में जाना ठीक था? उनमें से एक ने मुझसे पूछा: “क्या आप सोफी को जानती हैं? उसने मेरी छोटी बहन के साथ अध्ययन किया है।” मुझे विश्‍वास हो गया कि यहोवा ने मेरी प्रार्थना का जवाब दे दिया! उन्होंने मुझे सुरक्षित सान्टो डोमिंगो तक पहुँचा दिया।

सन्‌ 1953 में न्यू यॉर्क के यैंकी स्टेडियम में हुए यहोवा के साक्षियों के अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में डॉमिनिकन रिपब्लिक से आए लोगों में, मैं भी थी। मेरा पूरा परिवार वहाँ मौजूद था जिसमें मेरे पिताजी भी थे। डॉमिनिकन रिपब्लिक में प्रचार काम में कैसे प्रगति हो रही है, इसके बारे में एक रिपोर्ट के बाद, मेरी मिशनरी साथी मॆरी ऐनयौल और मेरा कार्यक्रम में एक छोटा-सा भाग था जिसमें हमने यह प्रदर्शन करके दिखाया कि पाबंदी के समय हमने प्रचार काम कैसे किया।

सफरी काम से मिली खास खुशी

उसी साल की गर्मियों में, मेरी मुलाकात रूडॉल्फ सुनल से हुई जिनसे अगले साल मेरी शादी हो गई। उनका परिवार, पहले विश्‍वयुद्ध के कुछ ही समय बाद ऐलेघनी, पॆन्सिलवेनिया में साक्षी बन गया था। दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान मसीही निष्पक्षता की वजह से मेरे पति को कुछ समय तक जेल हो गई और फिर वे ब्रुकलिन न्यू यॉर्क में बेथेल सेवा के लिए चले गए। हमारे विवाह के कुछ समय बाद ही, उन्हें सफरी ओवरसियर के तौर पर कलीसियाओं का दौरा करने के लिए न्यौता दिया गया। उसके अगले 18 सालों तक, मैंने सर्किट काम में उनका साथ दिया।

हम सर्किट काम के सिलसिले में बहुत-सी जगह गए, जिनमें से कुछ हैं, पॆन्सिलवेनिया, पश्‍चिम वर्जिनिया, न्यू हैम्पशाइर और मैसाचूसेट्‌स। हम अकसर अपने मसीही भाइयों के घर पर ही ठहरते थे। खासकर उन्हें अच्छी तरह जानना और उनके साथ यहोवा की सेवा करने से हमें बेहद खुशी मिलती थी। जो प्रेम दिखाया जाता और जिस तरह से हमारी खातिरदारी की जाती वह हरदम गर्मजोशी और सच्चे दिल से होती थी। जोएल ने मेरी पुरानी मिशनरी साथी, मॆरी ऐनयौल से शादी कर ली जिसके बाद, उन्होंने पॆन्सिलवेनिया और मिशिगन की कलीसियाओं में तीन साल सफरी काम में बिताए। उसके बाद सन्‌ 1958 में, जोएल को एक बार फिर, बेथेल परिवार का सदस्य बनने के लिए बुलाया गया इस बार मॆरी के साथ।

कार्ल, सात साल तक बेथेल में रहा फिर उसे कुछ महीनों के लिए सर्किट काम के लिए भेज दिया गया ताकि वह थोड़ा और अनुभव हासिल कर ले। फिर वह गिलियड स्कूल का एक शिक्षक बन गया। सन्‌ 1963 में उसने बॉबी से शादी कर ली, जो अक्टूबर 2002 में अपनी मौत तक बेथेल में वफादारी से सेवा करती रही।

डॉन कई सालों तक बेथेल में रहा, उस दौरान उसने समय-समय पर दूसरे देशों की यात्रा की, ताकि वह शाखा दफ्तरों और मिशनरी इलाकों में काम कर रहे भाइयों की सेवा करे। उसके इस काम की वजह से वह पूर्वी देशों, अफ्रीका, यूरोप और अमरीका के कई भागों तक यात्रा कर चुका है। डॉन की वफादार पत्नी डेलोरेस अकसर उसके साथ सफर करती है।

हमारे हालात बदल गए

मेरे पिता लंबे अरसे तक बीमार रहे, उसके बाद उनकी मौत हो गयी। मगर मरने से पहले उन्होंने मुझसे कहा कि यहोवा की सेवा करने के हम सभी के चुनाव से वह बेहद खुश थे। उन्होंने यह भी कहा कि अगर हम उनकी इच्छा के मुताबिक कालेज की पढ़ाई करते, तो शायद ही हमें वे सब आशीषें मिलतीं जो आज हम सब ने पायी हैं। अब मैंने माँ को उसके सामान बाँधने में मदद की ताकि वह मेरी बहन जॉय के घर के पास जाकर रह सके। उसके बाद मैं और मेरे पति ने न्यू इंगलैंड में पायनियर काम स्वीकार किए। ऐसा करने से हम उनकी माँ के करीब रहने लगे, जिन्हें उस वक्‍त हमारी मदद की ज़रूरत थी। उनकी माँ की मौत के बाद, मेरी माँ ने हमारे साथ करीब 13 साल गुज़ारे। फिर जनवरी 18,1987 में 93 वर्ष की उम्र में उन्होंने पृथ्वी पर अपना जीवन खत्म किया।

अकसर जब जान-पहचानवाले मेरी माँ की तारीफ करते कि उन्होंने कितनी अच्छी तरह हम सभी बच्चों को यहोवा से प्यार करना और उसकी सेवा करना सिखाकर बड़ा किया है, तो वह विनम्रता से जवाब देती: “मुझे तो सिर्फ ‘अच्छी भूमि’ में काम करने का मौका मिला है।” (मत्ती 13:23) हम बच्चों के लिए यह क्या ही आशीष थी कि हमें परमेश्‍वर से भय माननेवाले माता-पिता मिले जिन्होंने जोश और नम्रता का हमारे लिए एक अच्छा उदाहरण रखा!

राज्य अभी-भी पहले स्थान पर

हम परमेश्‍वर के राज्य को अपनी ज़िंदगी में पहला स्थान देते आएँ हैं, और अपनी चीज़ें दूसरों के साथ बाँटने की यीशु की सलाह भी मानने की कोशिश की है। (लूका 6:38; 14:12-14) बदले में यहोवा ने हमारी ज़रूरतों को उदारता से पूरा किया। हमारा जीवन सुरक्षित और खुशहाल रहा है।

रूडी और मेरा संगीत के लिए प्यार अभी भी खत्म नहीं हुआ है। कभी-कभी शाम को, जब ऐसे ही संगीत से प्यार रखनेवाले हमारे घर आते हैं तो हम सब मिलकर अपने वादनों को बजाते हैं और यह एक बहुत ही सुखद समय होता है। मगर संगीत मेरा पेशा नहीं है। यह मेरे जीवन को आनंदित करने का सिर्फ एक पहलू है। आज जब मैं और मेरे पति हमारी पायनियर सेवा के फल यानी उन लोगों को देखते हैं जिन्हें सच्चाई में आने में हमने मदद दी है, तो हमें बेहद खुशी होती है।

फिलहाल मेरी सेहत से जुड़ी बहुत-सी समस्याएँ हैं, मगर इनके बावजूद मैं यह कह सकती हूँ कि पूरे समय की सेवा में हमने जो 60 से भी ज़्यादा साल बिताए हैं, उन सालों में हमारी ज़िंदगी बहुत ही खुशहाल और सुरक्षित रही है। हर सुबह जब मैं उठती हूँ तो यहोवा को धन्यवाद देती हूँ कि उसने सालों पहले मेरी प्रार्थना को सुना, जब मैंने पूरे समय की सेवा शुरू की थी। और अब भी मैं सोचती हूँ कि ‘आज, मैं पहले राज्य की खोज कैसे कर सकती हूँ?’

[फुटनोट]

^ पैरा. 14 इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है, मगर अब इसकी छपाई नहीं होती।

[पेज 24 पर तसवीर]

सन्‌ 1948 में हमारा परिवार (बाएँ से दाएँ): जॉय, डॉन, माँ, जोएल, कार्ल, मैं, और पिताजी

[पेज 25 पर तसवीर]

माँ ने जोश के साथ सेवा करने में एक मिसाल कायम की

[पेज 26 पर तसवीर]

करीब 50 साल बाद आज कार्ल, डॉन, जोएल, जॉय, और मैं

[पेज 27 पर तसवीर]

बाएँ से दाएँ: मैं, मॆरी ऐनयौल, सोफी सोविऐक, और एडिथ मॉर्गन मिशनरियों के तौर पर डॉमिनिकन रिपब्लिक में

[पेज 28 पर तसवीर]

सन्‌ 1953 में, मॆरी (बाएँ) के साथ यैंकी स्टेडियम में

[पेज 29 पर तसवीर]

अपने पति के साथ, जब वे सर्किट काम में थे