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क्या मेरे बच्चे को स्कूल जाना चाहिए?

क्या मेरे बच्चे को स्कूल जाना चाहिए?

क्या मेरे बच्चे को स्कूल जाना चाहिए?

क्या आप यह कल्पना कर सकते हैं कि आप इस पेज पर लिखे शब्दों को नहीं पढ़ सकते? तब क्या जब आप अपने देश की सरकारी भाषा नहीं बोल सकते? या दुनिया के नक्शे पर अपना देश नहीं दिखा सकते? न जाने दुनिया के कितने बच्चे ऐसे ही हालात में पलकर बड़े हुए होंगे। आपके बच्चे के बारे में क्या?

क्या आपके बच्चे को स्कूल जाना चाहिए? कई देशों में बच्चों के लिए प्राइमरी और सेकेंडरी स्कूल की शिक्षा ज़रूरी होती है और अकसर यह मुफ्त में करायी जाती है। संयुक्‍त राष्ट्र बाल अधिकार समझौता कहता है कि स्कूली शिक्षा हासिल करना बच्चों का मूल अधिकार है। और मानव अधिकारों का विश्‍वव्यापी घोषणा-पत्र भी ऐसा ही मानता है। मगर कुछ देशों में स्कूल की पढ़ाई मुफ्त नहीं होती है और माता-पिता के लिए बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाना बोझ बन सकता है। आइए उन मसीही माता-पिता के नज़रिए से हम इस विषय को देखें जो अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं, चाहे वह स्कूल के ज़रिए हो या किसी और माध्यम से।

बाइबल में दिए पढ़े-लिखे लोगों के उदाहरण

बाइबल में बताए परमेश्‍वर के कई सेवकों को पढ़ना-लिखना आता था। यीशु के प्रेरित, पतरस और यूहन्‍ना, यहूदी मछुआरे थे लेकिन उन्होंने बाइबल की किताबें यूनानी भाषा में लिखीं ना कि अपनी गलीली भाषा में। * इससे साफ ज़ाहिर होता है कि उनके माता-पिता ने अपने बच्चों को बुनियादी शिक्षा दिलाने का इंतज़ाम किया था। दूसरे बाइबल लेखकों ने भी शिक्षा पायी थी, जिनमें चरवाहा दाऊद, खेती-बाड़ी करनेवाला आमोस और यीशु का सौतेला भाई यहूदा था, जो शायद बढ़ई था।

अय्यूब को पढ़ना-लिखना आता था। बाइबल में उसके नाम की किताब से मालूम पड़ता है कि उसे विज्ञान की भी कुछ जानकारी थी। शायद वह साहित्यकार भी था क्योंकि उसके शब्द जो अय्यूब की किताब में दर्ज हैं, वे काव्य शैली में लिखे गए हैं। और जैसा कि हम जानते हैं, शुरूआत के मसीही भी पढ़े-लिखे थे, क्योंकि शास्त्रों में से उनकी कुछ बातें, मिट्टी के बरतनों या उसके टुकड़ों पर लिखी पायी गयीं।

मसीहियों के लिए शिक्षा ज़रूरी है

अगर सभी मसीही परमेश्‍वर को खुश करना चाहते हैं तो उन्हें बाइबल का ज्ञान लेने में उन्‍नति करनी चाहिए। (फिलिप्पियों 1:9-11; 1 थिस्सलुनीकियों 4:1) बाइबल के साथ-साथ, बाइबल समझानेवाले प्रकाशनों का भी अच्छा इस्तेमाल करने से आध्यात्मिक उन्‍नति होती है। परमेश्‍वर ने अपना वचन लिखित रूप में दिया है इसलिए वह अपने उपासकों से यह उम्मीद रखता है कि वे कम-से-कम इतने पढ़े-लिखे हों कि उसका वचन पढ़ सकें। बाइबल को समझकर पढ़ने से उसमें दी गयी सलाह को लागू करना आसान हो जाता है। बेशक, हमें बाइबल के कुछ भागों की पूरी समझ हासिल करने और उन पर मनन करने के लिए उन्हें शायद एक से ज़्यादा बार पढ़ना पड़े।—भजन 119:104; 143:5; नीतिवचन 4:7.

हर साल “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के मार्गदर्शन में तैयार किए बहुत-से साहित्य यहोवा के लोगों को मिलते हैं। (मत्ती 24:45-47) ये साहित्य, पारिवारिक जीवन, धर्म, विज्ञान और ऐसे कई और विषयों पर चर्चा करते हैं। मगर खासतौर से ये आध्यात्मिक मामलों पर बाइबल में दी गयी सलाहों पर चर्चा करते हैं। अगर आपके बच्चों को पढ़ना नहीं आता तो वे ऐसी कई ज़रूरी जानकारी नहीं पा सकेंगे।

मानवजाति के इतिहास के बारे में सीखना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि इससे यह समझने में मदद मिलती है कि हमें परमेश्‍वर के राज्य की ज़रूरत क्यों है। भूगोल का भी थोड़ा-बहुत ज्ञान होना अच्छा है। बाइबल कई जगहों के बारे में बताती है जैसे इस्राएल, मिस्र, और यूनान। क्या आपका बच्चा इन जगहों को विश्‍व के नक्शे पर दिखा सकता है? क्या वह अपना देश खुद ढूँढ़ सकता है? अगर एक इंसान को नक्शा देखना नहीं आता है तो अपने इलाके में पूरी तरह सेवा करना भी उसके लिए मुश्‍किल हो सकता है।—2 तीमुथियुस 4:5.

कलीसिया में खास ज़िम्मेदारियाँ

मसीही प्राचीनों और सहायक सेवकों को ऐसी कई ज़िम्मेदारी मिलती हैं जिनमें पढ़ाई शामिल है। जैसे कलीसिया की सभाओं में अलग-अलग भागों की तैयारी करना। कलीसिया में उपलब्ध साहित्य और दान का हिसाब-किताब रखना। अगर बुनियादी शिक्षा न हो तो, एक व्यक्‍ति के लिए इन ज़िम्मेदारियों को अच्छी तरह निभाना मुश्‍किल हो सकता है।

संसार-भर के बेथेल घरों में कई स्वयंसेवक काम करते हैं। अगर इन स्वयंसेवकों को एक-दूसरे से अच्छी तरह बातचीत करनी है और अपने-अपने काम को पूरा करना है, जैसे साहित्य का अनुवाद करना और मशीनों की मरम्मत करना तो उन्हें अपने देश की सरकारी भाषा में पढ़ना-लिखना आना ज़रूरी है। इसलिए इसकी बुनियादी शिक्षा लेना आपके बच्चे के लिए ज़रूरी है, तभी वे आगे चलकर ऐसी ज़िम्मेदारियों को खुशी-खुशी निभा पाएँगे। ऐसी और कौन-सी वजहों से आपके बच्चे का स्कूल जाना ज़रूरी है?

गरीबी और अंधविश्‍वास

जो लोग गरीबी से जूझ रहे हैं शायद वे कुछ हालात में अपने आपको बिलकुल बेसहारा महसूस करें। दूसरी तरफ अगर थोड़ी-बहुत शिक्षा हासिल कर ली जाती है तो हम और हमारे बच्चे बेवजह के दुःखों से बच सकते हैं। ऐसे बहुत ही कम अनपढ़ लोग हैं जो किसी-न-किसी तरह से अपना गुज़ारा कर लेते हैं। नहीं तो बच्चों की यहाँ तक कि माता-पिताओं की भी मौत हो जाती है क्योंकि बीमार होने पर छोटी-सी आमदनी में इलाज कराना संभव नहीं है। जो बहुत कम पढ़े-लिखे या अनपढ़ होते हैं, ऐसे लोग ज़्यादातर कुपोषण का शिकार हो जाते हैं और उन्हें गंदे वातावरण में रहना पड़ता है। शिक्षा या फिर थोड़ा-बहुत पढ़ा-लिखा होना भी, ऐसे हालात से जूझने में एक व्यक्‍ति के लिए काफी मददगार हो सकता है।

एक पढ़ा-लिखा इंसान अंधविश्‍वास के फँदों में भी कम फँसता है। बेशक, आमतौर पर पढ़े-लिखे और अनपढ़ दोनों ही अंधविश्‍वास के शिकार होते हैं। मगर दूसरों की तुलना में अनपढ़ लोग बहुत आसानी से धोखे में आ जाते हैं और उनका फायदा उठाया जा सकता है, क्योंकि वे उन बातों को नहीं पढ़ सकते जो छल-कपट का परदाफाश करती हैं। इसलिए वे अंधविश्‍वास के दलदल में धँसते चले जाते हैं और यह विश्‍वास करने लगते हैं कि कोई तान्त्रिक, चमत्कारिक रूप से सचमुच चंगाई के काम कर सकता है।—व्यवस्थाविवरण 18:10-12; प्रकाशितवाक्य 21:8.

शिक्षा, सिर्फ नौकरी-पेशे के लिए नहीं

कई लोग यह सोचते हैं कि शिक्षा का खास मकसद पैसा कमाना है। मगर कुछ पढ़े-लिखे लोग ऐसे भी हैं जो बेरोज़गार हैं या इतना भी नहीं कमा पाते जिनसे उनकी आम ज़रूरतें पूरी हो सकें। इसलिए कुछ माता-पिता ऐसा सोच सकते हैं कि बच्चों को स्कूल भेजने से क्या फायदा। लेकिन स्कूल की पढ़ाई किसी को पैसा कमाने के योग्य बनाने से ज़्यादा काम आती है; यह बच्चों को एक अच्छी ज़िंदगी जीने के लायक भी बनाती है। (सभोपदेशक 7:12) अगर एक व्यक्‍ति को अपने देश की सरकारी भाषा में बोलना, और पढ़ना-लिखना आता हो तो अस्पताल में काम करनेवालों से, सरकारी अधिकारियों से, या बैंक के कर्मचारियों से लेन-देन करने में वह घबराएगा नहीं, इसके बजाए यह सब करना उसे न सिर्फ आसान लगने लगेगा बल्कि उसके लिए यह रोज़मर्रा की बात हो जाएगी।

कुछ जगहों पर, अनपढ़ बच्चों को शायद किसी के यहाँ राजगीरी करने, मछली पकड़ने, सिलाई करने, या किसी और पेशे को सीखने के लिए रख दिया जाए। किसी पेशे को सीखना अच्छी बात है, लेकिन इससे वे ठीक से पढ़ना-लिखना कभी नहीं सीखेंगे जब तक कि वे स्कूल न जाएँ। दूसरी तरफ बुनियादी शिक्षा लेने के बाद अगर वे कोई हुनर सीखते हैं, तो दूसरे कभी उनका नाजायज़ फायदा नहीं उठा पाएँगे साथ ही वे और भी खुशहाल जीवन जी सकेंगे।

यीशु नासरी एक बढ़ई था और उसने अपने दत्तक पिता यूसुफ से इस पेशे को ज़रूर सीखा होगा। (मत्ती 13:55; मरकुस 6:3) यीशु भी पढ़ा-लिखा था, क्योंकि 12 साल की उम्र में ही वह मंदिर में पढ़े-लिखे लोगों से गंभीर विषयों पर चर्चा कर पाया। (लूका 2:46, 47) यीशु के मामले में भी हम देखते हैं कि उसने हुनर सीखने के साथ-साथ दूसरी तरह की शिक्षाएँ भी हासिल कीं।

क्या बेटियों को भी शिक्षा दें?

कई बार माता-पिता अपने बेटों को तो स्कूल भेजते हैं, लेकिन बेटियों को नहीं। शायद कुछ माता-पिता सोचते हैं कि बेटियों को पढ़ाना बहुत महँगा पड़ता है और वे मानते हैं कि अगर लड़कियाँ दिन-भर घर पर रहकर काम-काज में हाथ बटाएँ तो उनकी माँ के लिए ज़्यादा फायदेमंद होगा। लेकिन बेटियों को शिक्षा न दिलायी जाए तो वे हर काम में सीमित हो जाएँगी। संयुक्‍त राष्ट्र बाल निधि (यूनिसेफ) का एक प्रकाशन इस तरह कहता है: “एक नहीं बल्कि ऐसे कई अध्ययनों से यह ज़ाहिर हो गया है कि गरीबी को मिटाने की सबसे बेहतरीन नीति है, लड़कियों को शिक्षित करना।” (गरीबी और बच्चे: सन्‌ 1990 के दशक में कम-से-कम विकसित देशों के लिए सबक) (अँग्रेज़ी) पढ़ी-लिखी लड़कियाँ जीवन की समस्याओं का सामना ज़्यादा अच्छी तरह कर सकती हैं और बुद्धिमानी से फैसले कर सकती हैं जिससे पूरे परिवार को फायदा हो सकता है।

पश्‍चिम अफ्रीका के एक देश, बेनिन में शिशुओं की मौत की दर पर एक अध्ययन किया गया। इसके मुताबिक अनपढ़ माताओं के एक समूह में देखा गया है कि 1,000 में से 167 बच्चे पाँच साल से कम उम्र में ही मर जाते हैं जबकि जिन माताओं ने सेकेंडरी स्कूल की शिक्षा हासिल की है, उनके समूह में सिर्फ 38 बच्चों की मौत होती है। यूनिसेफ आखिर में यह निष्कर्ष निकालता है: “बेनिन में शिशुओं की मौत की दर पता लगाने का आधार है शिक्षा का स्तर। और ऐसा ही दूसरे देशों में भी है। ठीक इसी तरह से यह पूरी दुनिया में किया जाता है।” इसका मतलब है कि बेटियों को शिक्षा दिलाने के कई फायदे होते हैं।

क्या साक्षरता की क्लासों में जाना काफी है?

जहाँ ज़रूरत है, वहाँ यहोवा के साक्षी कलीसियाओं के उन सदस्यों को पढ़ना-लिखना सिखाते हैं जो अनपढ़ हैं। * यह ज़रूरी इंतज़ाम अकसर उनकी स्थानीय भाषा में किए जाते हैं, जिससे लोग आसानी से पढ़-लिख सकते हैं। क्या ये क्लासें, स्कूल की जगह ले सकती हैं? अगर आपके यहाँ स्कूल मौजूद हैं तब भी क्या कलीसिया से उम्मीद की जानी चाहिए कि वे आपके बच्चे के लिए साक्षरता क्लास चलाएँ?

हाँलाकि यहोवा के साक्षियों की कलीसिया के ज़रिए पढ़ने-लिखने की साक्षरता क्लासों के इंतज़ाम से परवाह झलकती है। मगर ये ऐसे बालिगों के लिए हैं जिन्हें किसी मजबूरी के कारण बचपन में कभी स्कूली शिक्षा हासिल नहीं हुई। हो सकता है, उनके माता-पिता पढ़ने-लिखने की अहमियत को न जानते हों या उनके यहाँ कोई स्कूल ही न रहा हो। ऐसों को कलीसिया की साक्षरता क्लासों में पढ़ाने में मदद दी जा सकती है। मगर ये क्लासें आम स्कूली शिक्षा के बदले में नहीं हैं और ना ही इन्हें इस तरह तैयार किया गया है कि इनके ज़रिए बुनियादी शिक्षा दी जा सके। विज्ञान, गणित, और इतिहास जैसे विषय, इन क्लासों में नहीं पढ़ाए जाते। मगर हो सकता है कि ये विषय नियमित रूप से चलाए जानेवाले स्कूलों के पाठ्यक्रमों में शामिल हों।

अफ्रीका में पढ़ाई-लिखाई की ज़्यादातर क्लासें वहाँ के लोगों की अपनी भाषा में ही चलायी जाती हैं, उस देश की सरकारी भाषा में बहुत कम चलाई जाती हैं। मगर स्कूल की शिक्षा अकसर सरकारी भाषा में ही दी जाती है। इससे बच्चों को और भी कई फायदे होते हैं क्योंकि देश की सरकारी भाषा में और ज़्यादा किताबें और पढ़ने के लिए कई दूसरी चीज़ें भी मौजूद होती हैं। जबकि एक बच्चा स्कूल जाने के साथ-साथ कलीसिया के ज़रिए चलायी गयी क्लासों में शिक्षा हासिल कर सकता है, मगर ये उसकी स्कूली शिक्षा का स्थान नहीं ले सकती। इसलिए अगर बच्चों को उनकी स्कूली शिक्षा दिलाना मुनासिब हो, तो क्या ऐसा करना ठीक नहीं होगा?

माता-पिताओं की एक ज़िम्मेदारी

वे पुरुष जो कलीसिया की अध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करते हैं उन्हें एक उत्तम मसीही उदाहरण रखना चाहिए। उन्हें अपने घराने और बच्चों के लिए एक “अच्छा” प्रबन्धकर्ता होना चाहिए। (1 तीमुथियुस 3:4, 12) “अच्छा” प्रबंधकर्ता होने का मतलब यह है बच्चों को मदद की जाए कि भविष्य में वे बेसहारा ना हो जाएँ इसके लिए उसे अपनी भरसक कोशिश करनी चाहिए।

परमेश्‍वर ने मसीही माता-पिताओं को एक बहुत भारी ज़िम्मेदारी सौंपी है। उन्हें परमेश्‍वर के वचन के मुताबिक अपने बच्चों की परवरिश करनी है और ‘शिक्षा पाने में प्रीति रखनेवाला’ बनने में मदद देनी है। (नीतिवचन 12:1; 22:6; इफिसियों 6:4) प्रेरित पौलुस ने लिखा: “पर यदि कोई अपनों की और निज करके अपने घराने की चिन्ता न करे, तो वह विश्‍वास से मुकर गया है, और अविश्‍वासी से भी बुरा बन गया है।” (1 तीमुथियुस 5:8) अपने बच्चों को उचित शिक्षा भी दिलाना ज़रूरी है।

कभी-कभी स्कूल व्यवस्था सही न होने की वजह से बच्चों की पढ़ाई-लिखाई ठीक से नहीं हो पाती। ऐसा शायद इसलिए हो क्योंकि शायद स्कूलों में हद-से-ज़्यादा बच्चे भर दिए जाते हों, भरपूर धनराशि न हो, या ऐसे नाखुश शिक्षक हों जिन्हें कम तनखाह मिलती हो। इसलिए माता-पिताओं के लिए यह बेहद ज़रूरी है कि बच्चे जो स्कूल में सीख रहे हैं, उसमें पूरी दिलचस्पी लें। स्कूल के टीचरों से वाकिफ होना समझदारी होगी खास तौर पर तब जब बच्चा स्कूल जाना शुरू ही करता है। माता-पिता को टीचरों से सलाह-मशविरा भी करना चाहिए कि उनके बच्चे, कैसे बेहतर विद्यार्थी बन सकते हैं। इस तरह टीचर महसूस करेंगे कि उनकी भी कोई अहमियत है और वे बच्चों की पढ़ाई की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए और ज़्यादा मेहनत करेंगे।

बच्चे के विकास में शिक्षा बहुत अहम भूमिका निभाती है। नीतिवचन 10:14 कहता है: “बुद्धिमान लोग ज्ञान को रख छोड़ते हैं।” खासकर बाइबल का ज्ञान हासिल करने के बारे में यह बात सोलह आने सच है। यहोवा के लोग चाहे जवान हों या बुज़ुर्ग, सभी के पास अच्छा ज्ञान होना चाहिए ताकि वे दूसरों को आध्यात्मिक रूप से ‘परमेश्‍वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करनेवाला ठहराने का प्रयत्न करें, जो लज्जित होने न पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाते हों।’ (2 तीमुथियुस 2:15; 1 तीमुथियुस 4:15) तो, फिर, क्या आपके बच्चों को स्कूल जाना चाहिए? बेशक आपका जवाब हाँ, होगा। फिर भी काफी कुछ आपके देश में जो कारगर है उस पर निर्भर करता है। मगर मसीही माता-पिताओं को इस और भी ज़रूरी सवाल का जवाब देना है, ‘क्या मेरे बच्चों को शिक्षा हासिल करनी चाहिए?’ चाहे आप कहीं भी क्यों ना रहते हों, क्या आप नहीं मानते कि आपका जवाब, हाँ में ही होना चाहिए?

[फुटनोट]

^ पैरा. 5 उनकी मातृभाषा, अरामी या इब्रानी भाषा से निकली गलीली भाषा थी। यहोवा के साक्षियों की प्रकाशित, इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स का खंड 1, पेज 144-6 देखिए।

^ पैरा. 25 दिसंबर 22, 2000, की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) का पेज 8 और 9 देखिए।

[पेज 12, 13 पर बक्स/तसवीर]

अगर स्कूल जाना नामुमकिन हो

कुछ हालात में शायद स्कूल जाना मुमकिन न हो। उदाहरण के लिए पत्रिका शरणार्थी (अँग्रेज़ी) में बताया गया है कि शरणार्थी शिविरों में पाँच में से सिर्फ एक योग्य बच्चा स्कूल जा पाता है। कुछ हालात में टीचरों की हड़ताल की वजह से लंबे समय तक स्थानीय स्कूल बंद हो जाते हैं। कुछ जगहों पर स्कूल या तो बहुत दूर होते हैं या बिलकुल ही नहीं होते। मसीहियों को सताए जाने की वजह से भी उनके बच्चों को स्कूल से बेदखल किया जाता है।

आप अपने बच्चों की इन हालात में कैसे मदद कर सकते हैं? अगर आपके कई बच्चे हैं और आप ऐसे इलाके में रहते हैं जहाँ सभी बच्चों को स्कूल भेजना आपको बहुत महँगा पड़ेगा तो क्या किया जा सकता है? क्या आप इतने पैसे का इंतज़ाम कर सकते हैं ताकि आप अपने बच्चों में से एक या दो को स्कूल में दाखिल करा सकें? क्या आप ऐसा उन्हें बिना आध्यात्मिक खतरों में डालते हुए कर सकते हैं? अगर हाँ, तो जो बच्चे पढ़ रहे हैं वे आपके दूसरों बच्चों को भी पढ़ा सकेंगे।

कुछ देशों में, घर पर ही पढ़ाई की जाती है। * वहाँ माता-पिता समय निकालकर कुछ घंटे अपने बच्चों को पढ़ना-लिखना सिखाते हैं। कुलपिताओं के वक्‍त, माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ाने में काफी कामयाब थे। याकूब के बेटे यूसुफ को मिली माता-पिता की अच्छी शिक्षा की वजह से वह छोटी उम्र में ही दूसरों पर निगरानी रखने में काफी कामयाब हुआ।

शरणार्थी शिविर में शिक्षा के लिए कोई स्कूल या कार्यक्रम का इंतज़ाम होना मुश्‍किल हो सकता है। मगर माता-पिता, यहोवा के साक्षियों के साहित्य को शिक्षा देने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। उदाहरण के लिए बाइबल कहानियों की मेरी पुस्तक, छोटे बच्चों को पढ़ाने के लिए मददगार साबित हो सकती है। पत्रिका सजग होइए! में अलग-अलग विषयों पर लेख छापे जाते हैं। जीवन—इसकी शुरूआत कैसे हुई? विकास से या सृष्टि से? (अँग्रेज़ी) इस किताब से विज्ञान के बारे में शिक्षा दी सकती है। इयरबुक ऑफ जेहोवाज़ विटनॆसॆस में दुनिया का एक छोटा नक्शा दिया गया है और यह अलग-अलग देशों की जीवनशैली और प्रचार काम के बारे में बताता है।

जो शिक्षा बच्चों को दी जानी है उसे अच्छी तरह तैयार करके उनकी समझ के मुताबिक दी जाए तो बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है। अगर बच्चे पढ़ना और सीखना ज़ारी रखते हैं तो बाद में जब उन्हें स्कूल की शिक्षा हासिल करने का मौका मिलता है तो उनके लिए अपनी स्कूली पढ़ाई करना और भी आसान हो जाएगा। अगर आप पहल करने के साथ-साथ कोशिश भी करेंगे तो आप अपने बच्चे को अच्छी तरह शिक्षित कर सकते हैं और ऐसा करने से वाकई बहुत ही अच्छे फल मिलेंगे!

[फुटनोट]

^ पैरा. 40 अप्रैल 8, 1993 की सजग होइए (अँग्रेज़ी) के पेज 9-12 पर दिए लेख “घर में पढ़ाई—यह क्या आपके लिए है?” देखिए।

[तसवीर]

जहाँ आप रहते हैं अगर वहाँ आपके बच्चे स्कूल नहीं जा सकते तो क्या किया जा सकता है?