इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

दूसरों को यहोवा की नज़र से देखने की कोशिश कीजिए

दूसरों को यहोवा की नज़र से देखने की कोशिश कीजिए

दूसरों को यहोवा की नज़र से देखने की कोशिश कीजिए

“यहोवा का देखना मनुष्य का सा नहीं है।”1 शमूएल 16:7.

1, 2. एलीआब के बारे में यहोवा का नज़रिया शमूएल के नज़रिए से कैसे अलग था और इससे हम क्या सीख सकते हैं?

सामान्य युग पूर्व 11वीं सदी में यहोवा ने भविष्यवक्‍ता शमूएल को एक ऐसे काम के लिए भेजा जिसकी किसी को कानों-कान खबर नहीं होनी चाहिए थी। उसने भविष्यवक्‍ता से कहा कि यिशै नाम के आदमी के घर जाए, और उसके एक बेटे को इस्राएल का राजा बनने के लिए अभिषिक्‍त करे। जब शमूएल ने यिशै के पहिलौठे बेटे, एलीआब को देखा तो उसे लगा कि हो-न-हो यही वह शख्स है जिसे परमेश्‍वर ने चुना है। मगर यहोवा ने उससे कहा: “न तो उसके रूप पर दृष्टि कर, और न उसके डील की ऊंचाई पर, क्योंकि मैं ने उसे अयोग्य जाना है; क्योंकि यहोवा का देखना मनुष्य का सा नहीं है; मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है, परन्तु यहोवा की दृष्टि मन पर रहती है।” (1 शमूएल 16:6, 7) शमूएल, एलीआब को यहोवा की नज़र से न देख सका। *

2 इंसान किसी को पहचानने में गलती करे, यह कितना आम है! एक तरफ तो हम शायद ऐसे लोगों को देखकर धोखा खा जाएँ जो बाहर से बहुत अच्छे, बड़े सज्जन नज़र आते हैं, मगर अंदर से बेईमान होते हैं। दूसरी तरफ, दिल के अच्छे ऐसे लोग होते हैं जिनके साथ हम सख्ती और रुखाई से पेश आते हैं, क्योंकि उनकी कुछ आदतें हमें खीज दिलाती हैं।

3, 4. (क) अगर दो मसीहियों के बीच समस्या पैदा हो जाती है, तो उन दोनों को क्या करने की ठान लेनी चाहिए? (ख) अगर किसी मसीही भाई या बहन के साथ हमारा बहुत बड़ा झगड़ा हुआ है, तो हमें खुद से क्या सवाल पूछने चाहिए?

3 समस्या तब पैदा हो सकती है जब हम दूसरों के बारे में झट से कोई राय कायम कर लेते हैं, भले हम उन्हें बरसों से क्यों न जानते हों। मान लीजिए कि एक मसीही जो पहले आपका जिगरी दोस्त था, उससे आपका बहुत बड़ा झगड़ा हो गया है। क्या आप दोस्ती में आयी इस दरार को भरना चाहेंगे? ऐसा करने के लिए आपको किस बात से मदद मिलेगी?

4 क्यों न आप इस मसीही भाई या बहन को ध्यान से देखें और उसकी अच्छाइयों पर गौर करने की कोशिश करें? और ऐसा करते वक्‍त यीशु के ये शब्द याद रखें: “कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिस ने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले।” (यूहन्‍ना 6:44) फिर अपने आप से पूछिए: ‘यहोवा इस इंसान को अपने बेटे की तरफ खींचकर क्यों लाया है? इस इंसान में कौन-से अच्छे गुण हैं? क्या मैं इन गुणों को अनदेखा करता आ रहा हूँ या उनकी कदर नहीं करता? पहले हम दोस्त क्यों बने? इस इंसान की कौन-सी बात मुझे उसकी तरफ खींच लायी?’ शायद आपको उसके अच्छे गुण याद करने में पहले-पहल मुश्‍किल हो, खासकर अगर आप कुछ समय से उससे नाराज़ हैं। लेकिन, आप दोनों के बीच की दरार को भरने के लिए ऐसा करना ज़रूरी है। यह कैसे किया जा सकता है इसे समझाने के लिए आइए हम ऐसे दो लोगों की मिसाल लें जिन्हें अकसर उनकी खामियों के लिए याद किया जाता है। आइए उनकी अच्छाइयों पर ध्यान देने की कोशिश करें। वे हैं भविष्यवक्‍ता योना और प्रेरित पतरस।

योना पर एक निष्पक्ष नज़र

5. योना को क्या काम दिया गया था और उसने इस बारे में क्या किया?

5 जब योआश का पुत्र यारोबाम II उत्तर में इस्राएल राज्य का राजा था, तब योना उस देश में भविष्यवक्‍ता की हैसियत से सेवा कर रहा था। (2 राजा 14:23-25) एक दिन, यहोवा ने योना को इस्राएल छोड़कर उस वक्‍त के शक्‍तिशाली अश्‍शूरी साम्राज्य की राजधानी नीनवे जाने का हुक्म दिया। उसे वहाँ जाकर क्या काम करना था? उस विशाल नगर के लोगों को सावधान करना था कि उनका नगर तबाह-बरबाद होनेवाला है। (योना 1:1, 2) मगर योना ने परमेश्‍वर का हुक्म नहीं माना, बल्कि वहाँ से दूर भाग गया! वह तर्शीश जानेवाले समुद्री जहाज़ पर चढ़ा और नीनवे से उलटी दिशा की ओर जाने लगा।—योना 1:3.

6. यहोवा ने नीनवे जाने के लिए योना को क्यों चुना?

6 जब आप योना के बारे में सोचते हैं तो आपके मन में क्या ख्याल आता है? क्या आप उसे परमेश्‍वर का हुक्म न माननेवाला भविष्यवक्‍ता समझते हैं? ऊपरी तौर पर देखें तो शायद हम इसी नतीजे पर पहुँचेंगे। मगर सोचिए, अगर योना शुरू से ही आज्ञा न माननेवाला होता, तो क्या यहोवा उसे भविष्यवक्‍ता ठहराता? हरगिज़ नहीं! योना में ज़रूर कुछ अच्छे गुण रहे होंगे। एक भविष्यवक्‍ता की हैसियत से उसके रिकॉर्ड पर गौर कीजिए।

7. योना, इस्राएल में मौजूद किन हालात में यहोवा की सेवा कर रहा था और यह जानने के बाद आप उसके बारे में कैसा महसूस करते हैं?

7 योना ने दरअसल एक ऐसे इलाके में लगातार मेहनत की थी, जहाँ उसकी बातों पर लगभग किसी ने भी ध्यान नहीं दिया। तकरीबन उसी समय के आसपास आमोस भविष्यवक्‍ता भी जीया था, उसने बताया कि उस वक्‍त के इस्राएली ऐशो-आराम और धन-दौलत के पुजारी थे। * उस देश में बुरे-बुरे काम हो रहे थे, मगर इस्राएलियों ने इनकी तरफ अपनी आँखें मूंद रखी थीं। (आमोस 3:13-15; 4:4; 6:4-6) ऐसे हालात के बावजूद, योना ने हिम्मत नही हारी और वह उन्हें सिखाने-समझाने की अपनी ज़िम्मेदारी वफादारी से निभाता रहा। अगर आप सुसमाचार का प्रचार करते हैं, तो आप बखूबी जानते हैं कि ऐसे लोगों से बात करना कितना मुश्‍किल होता है जो अपनी दुनिया में मस्त रहते हैं और आपके संदेश पर बिलकुल ध्यान नहीं देते। तो फिर, हम योना की कमज़ोरियों से इनकार नहीं करते, मगर हमें उसकी वफादारी और धीरज के गुण भी याद रखने चाहिए, जो उसने अविश्‍वासी इस्राएलियों को परमेश्‍वर का वचन सुनाते वक्‍त दिखाए थे।

8. नीनवे में प्रचार करने के लिए एक इस्राएली भविष्यवक्‍ता को किन-किन मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता?

8 लेकिन, नीनवे जाकर प्रचार करने की ज़िम्मेदारी तो और भी मुश्‍किल थी। उस नगर तक पहुँचने के लिए, योना को लगभग 800 किलोमीटर का पैदल सफर तय करना था। यह सफर बहुत मुश्‍किल था और इसमें तकरीबन एक महीना लग जाता। वहाँ पहुँचने पर, योना को अश्‍शूरियों को प्रचार करना था, जो अपनी क्रूरता के लिए दूर-दूर तक मशहूर थे। वे अकसर अपनी लड़ाइयों में दुश्‍मन को बहुत वहशियाना तरीकों से तड़पाया करते थे। वे अपनी क्रूरता के कारनामों की डींगें भी मारते थे। कोई ताज्जुब नहीं कि नीनवे को “हत्यारी नगरी” कहा जाता था!—नहूम 3:1, 7.

9. जब मल्लाह ज़बरदस्त तूफान में डूबनेवाले थे, तब योना ने कौन-से गुण ज़ाहिर किए?

9 योना, यहोवा के इस हुक्म को किसी तरह टालना चाहता था और इसलिए वह एक ऐसे जहाज़ पर चढ़ गया, जो उसे नीनवे से बहुत दूर ले जाता। ऐसा होने पर भी, यहोवा ने अपने भविष्यवक्‍ता से नाराज़ होकर उसे छोड़ नहीं दिया या उस काम के लिए किसी और को नहीं चुना। इसके बजाय, यहोवा ने योना को यह एहसास दिलाया कि उसे जो काम मिला है वह कितना ज़रूरी है। परमेश्‍वर ने समुद्र में ज़बरदस्त तूफान उठाया। योना जिस जहाज़ में था वह तेज़ लहरों की मार से हिचकोले खाने लगा। निर्दोष इंसानों की जान खतरे में थी, सिर्फ इसलिए कि योना अपनी ज़िम्मेदारी से भाग रहा था! (योना 1:4) ऐसे में योना क्या करता? योना अपनी वजह से दूसरों की जान जोखिम में नहीं डालना चाहता था, इसलिए उसने जहाज़ के मल्लाहों से कहा: “मुझे उठाकर समुद्र में फेंक दो; तब समुद्र शान्त पड़ जाएगा।” (योना 1:12) जब मल्लाहों ने आखिरकार योना को समुद्र में फेंक दिया, तो योना को उम्मीद नहीं थी कि यहोवा उसे बचाएगा। (योना 1:15) फिर भी, योना, जहाज़ में मौजूद मल्लाहों की जान बचाने के लिए अपनी जान देने को तैयार था। योना के इस काम से क्या उसकी हिम्मत, नम्रता और प्यार के गुण ज़ाहिर नहीं होते?

10. तब क्या हुआ जब यहोवा ने योना को वही काम दिया जिसे छोड़कर वह भागा था?

10 आखिर में, यहोवा ने योना की जान बचा ली। क्या उस वक्‍त परमेश्‍वर ने ऐसा सोचा कि योना के इस तरह अपनी ज़िम्मेदारी से भागने की वजह से वह भविष्यवक्‍ता की हैसियत से काम करने के लायक नहीं रहा? जी नहीं, इसके बजाय यहोवा ने बड़ी दया दिखायी और प्यार से योना को दोबारा नीनवे के लोगों को प्रचार करने का काम सौंपा। जब योना नीनवे में आया, तो उसने हिम्मत से वहाँ के लोगों को बताया कि परमेश्‍वर ने उनकी दिनोंदिन बढ़ती बुराई पर ध्यान दिया है और 40 दिन के अंदर उनके नगर को तहस-नहस कर दिया जाएगा। (योना 1:2; 3:4) योना का सीधा और स्पष्ट संदेश सुनकर नीनवे के लोगों ने पश्‍चाताप किया और उनका नगर नाश नहीं हुआ।

11. किस बात से पता चलता है कि योना ने एक ज़रूरी सबक सीख लिया था?

11 योना की सोच अब भी सही नहीं थी। इसलिए रोज़मर्रा ज़िंदगी से एक मिसाल देकर, यहोवा ने बड़े धैर्य से योना को यह समझाना चाहा कि वह इंसान का सिर्फ बाहरी रूप नहीं देखता, बल्कि उसके दिल को जाँचता है। (योना 4:5-11) योना ने यह ज़रूरी सबक सीख लिया, इसका सबूत हमें उसी की लिखी किताब से मिलता है जिसमें उसने बिना कुछ छिपाए सारा हाल लिखा है। उसने अपनी खामियों के बारे में एक-एक बात लिखी, जो आम तौर पर बताते हुए इंसान शर्मिंदा महसूस करता है। यह भी योना की नम्रता का एक और सबूत है। अपनी गलती मानने के लिए भी तो हिम्मत की ज़रूरत होती है!

12. (क) हम कैसे जानते हैं कि यीशु भी लोगों को उसी नज़र से देखता है जैसे यहोवा देखता है? (ख) हम जिन लोगों को सुसमाचार सुनाते हैं उनके बारे में कैसा नज़रिया रखने का हमें बढ़ावा दिया गया है? (पेज 18 पर बक्स देखिए।)

12 सदियों बाद, यीशु मसीह ने योना की ज़िंदगी में हुई एक घटना का ज़िक्र करते हुए एक अच्छी बात कही थी। उसने कहा: “जैसे योना तीन दिन और तीन रात विशाल मच्छ के पेट में रहा, उसी प्रकार मनुष्य का पुत्र भी तीन दिन और तीन रात पृथ्वी के गर्भ में रहेगा।” (मत्ती 12:40, NHT) जब योना का पुनरुत्थान होगा, तो उसे भी पता चलेगा कि यीशु ने कब्र में पड़े रहने के अपने वक्‍त की तुलना इस भविष्यवक्‍ता की ज़िंदगी के उस अंधियारे दौर से की जब वह एक बड़ी मछली के पेट में कैद था और कुछ नहीं कर सकता था। क्या हमें इस बात की खुशी नहीं कि हमारा परमेश्‍वर अपने सेवकों को गलती करने पर ठुकरा नहीं देता? भजनहार ने लिखा: “जैसे पिता अपने बालकों पर दया करता है, वैसे ही यहोवा अपने डरवैयों पर दया करता है। क्योंकि वह हमारी सृष्टि जानता है; और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही हैं।” (भजन 103:13, 14) दरअसल, यही “मिट्टी” जो कि आज के असिद्ध इंसान हैं, परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा के बल पर बड़े-बड़े काम कर सकते हैं!

पतरस के बारे में सही नज़रिया

13. पतरस की कौन-सी खामियाँ सबसे पहले हमारे मन में आ सकती हैं, मगर यीशु ने उसे प्रेरित क्यों चुना?

13 अब आइए कुछ देर के लिए दूसरी मिसाल, यानी प्रेरित पतरस की मिसाल पर गौर करें। अगर आपसे पूछा जाए कि आप पतरस के स्वभाव के बारे में क्या कहेंगे, तो क्या आप फौरन उसे उतावला, और अपनी हद में न रहनेवाला इंसान कहेंगे? कभी-कभी पतरस के स्वभाव में बेशक ऐसी बुराइयाँ नज़र आयीं। मगर सोचिए, क्या यीशु पतरस को अपने 12 प्रेरितों में इसलिए शामिल करता अगर वह उतावला या अपनी हद में न रहनेवाला इंसान होता? (लूका 6:12-14) हरगिज़ नहीं! यीशु ने इन खामियों को अनदेखा करके पतरस के अच्छे गुणों पर ध्यान दिया।

14. (क) पतरस का सबसे पहले और बिना किसी झिझक के बोलने की क्या वजह हो सकती है? (ख) पतरस बार-बार सवाल पूछता था, इसके लिए हमें क्यों एहसानमंद होना चाहिए?

14 कई बार पतरस बाकी प्रेरितों की तरफ से बोलता था। इस वजह से कुछ लोगों को लग सकता है कि उसे अपनी मर्यादा का एहसास नहीं था। मगर क्या ज़रूरी है कि ऐसा ही हो? कुछ लोगों का कहना है कि पतरस बाकी प्रेरितों से, मुमकिन है यीशु से भी उम्र में बड़ा था। अगर ऐसा है, तो इससे पता चल सकता है कि क्यों अकसर पतरस सबसे पहले बोलता था। (मत्ती 16:22) मगर, एक और वजह पर गौर करना ज़रूरी है। पतरस आध्यात्मिक बातों पर मन लगानेवाला इंसान था। वह ज्ञान का भूखा था इसलिए सवाल पूछता था। इन सवालों से हमें भी फायदा हुआ है। यीशु ने पतरस के सवालों का जवाब देने के लिए ऐसी कई अनमोल बातें कहीं जो बाइबल में हमारे लिए दर्ज़ हैं। मिसाल के लिए, यीशु ने ‘विश्‍वास-योग्य भण्डारी’ के बारे में जो कहा वह पतरस के सवाल का जवाब था। (लूका 12:41-44) और गौर कीजिए कि पतरस ने कैसे यह सवाल पूछा: “हम तो सब कुछ छोड़ के तेरे पीछे हो लिए हैं: तो हमें क्या मिलेगा?” इस सवाल की वजह से यीशु ने हौसला बढ़ानेवाला यह वादा किया: “जिस किसी ने घरों या भाइयों या बहिनों या पिता या माता या लड़केबालों या खेतों को मेरे नाम के लिये छोड़ दिया है, उस को सौ गुना मिलेगा: और वह अनन्त जीवन का अधिकारी होगा।”—मत्ती 15:15; 18:21, 22; 19:27-29.

15. यह क्यों कहा जा सकता है कि पतरस सचमुच में वफादार था?

15 पतरस में एक और बढ़िया गुण था—वह वफादार था। जब यीशु की कुछ शिक्षाएँ समझ में न आने के कारण, कई चेलों ने उसका साथ छोड़ दिया तो पतरस ही था जो 12 प्रेरितों की तरफ से बोला: “हे प्रभु हम किस के पास जाएं? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं।” (यूहन्‍ना 6:66-68) ये शब्द सुनकर यीशु का दिल कैसे गदगद हो उठा होगा! बाद में, जब भीड़ उनके स्वामी को गिरफ्तार करने आयी, तो ज़्यादातर प्रेरित भाग खड़े हुए। मगर, पतरस ने थोड़ी दूरी पर रहकर भीड़ का पीछा किया और महायाजक के आँगन में भी घुस आया। कायरता नहीं, बल्कि उसकी हिम्मत उसे वहाँ तक ले आयी थी। जब यीशु से पूछताछ की जा रही थी, तब पतरस कुछ यहूदियों के साथ खड़ा हो गया जो तापने के लिए आग के चारों ओर खड़े थे। महायाजक के एक नौकर ने उसे पहचान लिया और उस पर यीशु का साथी होने का इलज़ाम लगाया। माना कि तब पतरस ने अपने स्वामी को पहचानने से इनकार कर दिया था, मगर हम यह न भूलें कि पतरस की वफादारी और यीशु के लिए उसकी चिंता ही उसे इन खतरनाक हालात में खींच लायी थी। ज़्यादातर प्रेरितों में तो ऐसे हालात का सामना करने तक की हिम्मत नहीं थी।—यूहन्‍ना 18:15-27.

16. हमने योना और पतरस के अच्छे गुणों पर किस खास वजह से ध्यान दिया है?

16 पतरस के अच्छे गुण उसकी खामियों से कहीं ज़्यादा हैं। यही बात योना के बारे में भी सच है। आम तौर पर हम पतरस और योना के अच्छे गुणों पर ध्यान नहीं देते। मगर यहाँ जिस तरह उनकी अच्छाइयों को उजागर किया गया है, वैसे ही हमें भी अपने भाई-बहनों की अच्छाइयों पर ध्यान देने की आदत डालनी चाहिए। ऐसा करने से हम उनके साथ अच्छा रिश्‍ता कायम कर पाएँगे। इसकी सख्त ज़रूरत क्यों है?

आज इस सबक पर अमल करना

17, 18. (क) मसीहियों के बीच अनबन क्यों पैदा हो सकती है? (ख) अपने मसीही भाई-बहनों के बीच पैदा होनेवाले तनाव को दूर करने में बाइबल की कौन-सी सलाह हमारी मदद कर सकती है?

17 आज अमीर-गरीब, पढ़े-लिखे या अनपढ़ और सभी जातियों के आदमी, औरत और बच्चे एक-साथ मिलकर यहोवा की सेवा कर रहे हैं। (प्रकाशितवाक्य 7:9, 10) मसीही कलीसिया में हम वाकई कितने तरह के लोगों से मिलते हैं! हम एक-दूसरे के इतने करीब रहकर परमेश्‍वर की सेवा करते हैं, इसलिए कभी-कभी हमारे बीच मन-मुटाव पनप सकते हैं।—रोमियों 12:10; फिलिप्पियों 2:3.

18 हालाँकि अपने भाइयों की कमियाँ हमें साफ नज़र आती हैं, मगर हम उन पर बहुत ज़्यादा ध्यान नहीं देते। हम यहोवा के जैसे होने की कोशिश करते हैं, जिसके बारे में भजनहार ने गीत में कहा: “हे याह, यदि तू अधर्म के कामों का लेखा ले, तो हे प्रभु कौन खड़ा रह सकेगा?” (भजन 130:3) भाइयों की खामियों पर ध्यान देने के बजाय, जिनके कारण हमारे बीच फूट पैदा हो सकती है, हम ‘उन बातों में लगे रहते हैं जो शांति को बढ़ाती हैं और जिनसे एक दूसरे को आत्मिक बढ़ोतरी में सहायता मिलती है।’ (रोमियों 14:19, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) हमारी यही कोशिश रहती है कि इंसानों को उस नज़र से देखें जैसे यहोवा उन्हें देखता है, उनकी कमियों को नज़रअंदाज़ करें और अच्छाइयों पर ज़्यादा ध्यान दें। जब हम ऐसा करते हैं तो ‘एक दूसरे की सह लेने’ में हमें मदद मिलती है।—कुलुस्सियों 3:13.

19. झगड़ों को सुलझाने के लिए एक मसीही जो व्यावहारिक कदम उठा सकता है, उनके बारे में बताइए।

19 अगर ऐसी कोई गलतफहमी पैदा हो जिन्हें आप नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते और जो आपको लगातार परेशान करती है, तब आपको क्या करना चाहिए? (भजन 4:4) क्या यह गलतफहमी आपके और किसी भाई के बीच है? तो क्यों न मामले को सुलझाने की कोशिश करें? (उत्पत्ति 32:13-15) पहले प्रार्थना में यहोवा से मदद माँगिए। फिर उस इंसान की अच्छाइयों को ध्यान में रखते हुए, ‘ज्ञान से उत्पन्‍न होनेवाली नम्रता’ के साथ उससे मिलिए। (याकूब 3:13) उस भाई से कहिए कि आप सुलह करना चाहते हैं। ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखी इस सलाह को याद रखिए: “हर एक मनुष्य सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीरा और क्रोध में धीमा हो।” (याकूब 1:19) “क्रोध में धीमा” होने की सलाह से पता चलता है कि दूसरा इंसान जो करेगा या कहेगा उससे शायद आपका गुस्सा भड़क उठे। अगर ऐसा होता है, तो यहोवा से बिनती कीजिए कि वह संयम रखने में आपकी मदद करे। (गलतियों 5:22, 23) अपने भाई को बोलने का मौका दीजिए कि उसे क्या शिकायत है और उसकी बात ध्यान से सुनिए। अगर वह कुछ ऐसा भी कहे जो आपके हिसाब से सही नहीं है, फिर भी आप उसकी पूरी बात सुन लीजिए, बीच में मत टोकिए। उसका नज़रिया शायद गलत हो, मगर वह जो सोचता है और महसूस करता है, वही कह रहा है और आपको उसकी बात अनसुनी नहीं करनी चाहिए। आप उसकी नज़र से समस्या को देखने की कोशिश कीजिए। इसका यह भी मतलब है कि आप खुद को अपने भाई की आँखों से देखने की कोशिश कीजिए।—नीतिवचन 18:17.

20. जब गलतफहमियाँ दूर की जाती हैं, तो आपस में समझौता करने के लिए कौन-से कदम उठाने चाहिए?

20 जब आपके बोलने की बारी आती है, तो मीठी बोली बोलिए। (कुलुस्सियों 4:6) अपने भाई को बताइए कि आपको उसकी कौन-सी बात अच्छी लगती है। अगर आपने कोई ऐसा काम किया है जिससे गलतफहमी पैदा हुई है, तो उसके लिए माफी माँगिए। नम्रता के साथ की गयी इस कोशिश से अगर आप अपने भाई को पा लेते हैं, तो यहोवा का धन्यवाद कीजिए। अगर ऐसा नहीं होता, तो सुलह करने के दूसरे मौकों की तलाश में रहिए साथ ही यहोवा से मदद माँगते रहिए।—रोमियों 12:18.

21. इस चर्चा से, दूसरों को यहोवा की नज़र से देखने में आपको कैसी मदद मिली है?

21 यहोवा अपने हर सेवक से प्यार करता है। हमारी असिद्धताओं के बावजूद वह हम सभी को अपनी सेवा में इस्तेमाल करना चाहता है। अपने भाई-बहनों के लिए हमारा प्यार और बढ़ेगा, जब हम यह जानेंगे कि यहोवा उन्हें किस नज़र से देखता है। अगर किसी मसीही भाई के लिए हमारे दिल में प्यार की लौ बुझ चुकी है, तो उसे फिर से जलाया जा सकता है। हमें कितनी बड़ी आशीष मिलेगी अगर हम दूसरों के बारे में अच्छा ही सोचने का पक्का इरादा कर लें, जी हाँ उन्हें यहोवा की नज़र से देखें!

[फुटनोट]

^ पैरा. 1 बाद में यह ज़ाहिर हो गया कि रूपवान एलीआब इस्राएल का राजा होने के काबिल नहीं था। जब गोलियत ने इस्राएलियों को उसके साथ लड़ने के लिए ललकारा, तो बाकी इस्राएली पुरुषों की तरह एलीआब भी डर के मारे थर-थर काँपने लगा।—1 शमूएल 17:11, 28-30.

^ पैरा. 7 यारोबाम II ने शायद कई बड़ी लड़ाइयों में जीत हासिल की और इस्राएल के उन इलाकों पर फिर से कब्ज़ा कर लिया जो उनके हाथ से निकल गए थे। इन इलाकों से शायद उन्हें नज़राना भी मिलने लगा, इसलिए यारोबाम II के राज में उत्तर में इस्राएल राज्य की धन-दौलत बहुत बढ़ गयी थी।—2 शमूएल 8:6; 2 राजा 14:23-28; 2 इतिहास 8:3, 4; आमोस 6:2.

आप कैसे जवाब देंगे?

• यहोवा अपने वफादार सेवकों की खामियों को किस नज़र से देखता है?

• योना और पतरस के कौन-कौन-से अच्छे गुण आप बता सकते हैं?

• आप अपने मसीही भाइयों के बारे में कैसा नज़रिया रखने की ठान चुके हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 18 पर बक्स]

सोचिए कि परमेश्‍वर दूसरों को किस नज़र से देखता है

जब आप बाइबल में योना की कहानी पर मनन करते हैं, तो जिन लोगों को आप हमेशा सुसमाचार सुनाते हैं, क्या उन्हें दोबारा एक अलग नज़र से देखने की ज़रूरत महसूस करते हैं? आपको शायद ऐसा लगे कि प्राचीन इस्राएलियों की तरह, ये लोग अपनी दुनिया में मस्त हैं, और आपके संदेश पर ध्यान नहीं देते या शायद परमेश्‍वर के संदेश का विरोध भी करते हैं। फिर भी परमेश्‍वर यहोवा की नज़र में वे कैसे हैं? यहाँ तक कि कुछ लोग इस संसार की जानी-मानी हस्तियाँ हैं, शायद वे भी एक दिन यहोवा की ओर फिरें, ठीक जैसे योना के प्रचार करने पर नीनवे के राजा ने प्रायश्‍चित्त किया था।—योना 3:6,7.

[पेज 15 पर तसवीर]

क्या आप दूसरों को यहोवा की नज़र से देखते हैं?

[पेज 16, 17 पर तसवीर]

योना के साथ जो हुआ उसके बारे में यीशु ने एक अच्छी बात कही