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कोमलता—एक महत्त्वपूर्ण मसीही गुण

कोमलता—एक महत्त्वपूर्ण मसीही गुण

कोमलता—एक महत्त्वपूर्ण मसीही गुण

“कोमलता . . . धारण करो।”कुलुस्सियों 3:12, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।

1. किस वजह से कोमलता एक अद्‌भुत गुण है?

जैसा कि कहा जाता है, हर किसी को कोमल इंसान या कोमलता से व्यवहार करनेवाले इंसान का साथ अच्छा लगता है। लेकिन दूसरी तरफ बुद्धिमान राजा सुलैमान ने यह कहा कि “कोमल वचन हड्डी को भी तोड़ डालता है।” (नीतिवचन 25:15) वाकई कोमलता ऐसा अद्‌भुत गुण है जिसमें मनोहरता और ताकत, दोनों का संगम है।

2, 3. कोमलता और पवित्र आत्मा के बीच क्या संबंध है और इस लेख में हम कौन-सी बात पर गौर करेंगे?

2 गलतियों 5:22, 23 (NW) में प्रेरित पौलुस ने ‘आत्मा के फल’ की सूची में कोमलता के गुण को भी दर्ज़ किया। न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन में जिस यूनानी शब्द के लिए “कोमलता” अनुवाद किया गया है, उसी के लिए दूसरी बाइबलों में कई बार “विनम्रता” या “सौम्यता” अनुवाद किया गया है। दरअसल ज़्यादातर दूसरी भाषाओं में इस यूनानी शब्द का हू-ब-हू अर्थवाला शब्द पाना मुश्‍किल है क्योंकि इसके मूल शब्द में न सिर्फ बाहरी सौम्यता या विनम्रता बल्कि मन की कोमलता और शालीनता का गुण भी शामिल है। यह गुण इंसान के सिर्फ व्यवहार करने के ढंग को ही नहीं बल्कि उसके सोच-विचार और उसके हृदय की स्थिति को भी दर्शाता है।

3 आइए कोमलता के अर्थ और उसके मूल्य को और अच्छी तरह समझने के लिए बाइबल से चार उदाहरणों पर गौर करें। (रोमियों 15:4) गौर करते वक्‍त हम न सिर्फ इस गुण के असल मतलब को समझेंगे, बल्कि यह भी देखेंगे कि हम कैसे इस गुण को पैदा कर सकते हैं और अपने व्यवहार में ज़ाहिर कर सकते हैं।

“परमेश्‍वर की दृष्टि में बड़ा मूल्य है”

4. हम यह कैसे जानते हैं कि यहोवा की नज़रों में कोमलता का बड़ा मूल्य है?

4 कोमलता परमेश्‍वर की आत्मा का एक फल होने के नाते हमारा इस नतीजे पर पहुँचना एकदम सही है कि यह गुण बेशक परमेश्‍वर की अद्‌भुत शख्सियत का हिस्सा है। प्रेरित पतरस ने लिखा कि “नम्र [“कोमल,” ईज़ी-टू-रीड वर्शन] और शान्त मन” का “परमेश्‍वर की दृष्टि में बड़ा मूल्य है।” (1 पतरस 3:4, NHT) तो इसमें शक नहीं कि कोमलता एक ईश्‍वरीय गुण है; जिसका मूल्य यहोवा की नज़रों में बहुत बड़ा है। यही अपने आप में सबसे बड़ा कारण है कि क्यों यहोवा के सभी सेवकों को कोमलता का गुण पैदा करने की ज़रूरत है। लेकिन सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर, इस विश्‍व के महाराजा ने कोमलता कैसे दिखायी है?

5. यहोवा की कोमलता की वजह से हमें भविष्य के लिए क्या आशा मिली है?

5 परमेश्‍वर ने पहले जोड़े आदम और हव्वा को साफ-साफ आज्ञा दी थी कि उन्हें भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल नहीं खाना है, लेकिन उन्होंने यह आज्ञा जानबूझकर तोड़ दी। (उत्पत्ति 2:16, 17) ऐसा करने का नतीजा यह हुआ कि उनके साथ-साथ उनकी आनेवाली पीढ़ियों को भी पाप और मौत की गुलामी सहनी पड़ी और वे परमेश्‍वर से अलग हो गए। (रोमियों 5:12) हालाँकि यहोवा के पास उन पर ऐसा न्यायदंड लाने की ठोस वजह थी, फिर भी उसने मानव परिवार को यह समझकर नहीं त्यागा कि उनके सुधरने की कोई गुंजाइश नहीं है और उनका उद्धार हो ही नहीं सकता। (भजन 130:3) इसके बजाए यहोवा ने सौम्यता और अपनी इच्छा से कोमलता दिखाते हुए, एक ऐसा इंतज़ाम किया जिसके ज़रिए इंसान उसके करीब आकर उसकी रज़ामंदी पा सकते हैं, इसके लिए उसने किसी तरह की कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं की। जी हाँ, अपने बेटे यीशु मसीह के छुड़ौती बलिदान के तोहफे के ज़रिए, यहोवा ने हमारे लिए यह मुमकिन किया कि हम उसके गौरवपूर्ण सिंहासन के सामने बिना किसी भय के या बेखटके जा सकें।—रोमियों 6:23; इब्रानियों 4:14-16; 1 यूहन्‍ना 4:9, 10, 18.

6. कैन के साथ किए बर्ताव में यहोवा की कोमलता कैसे ज़ाहिर हुई?

6 यहोवा की कोमलता, यीशु के पृथ्वी पर आने से बरसों पहले ही ज़ाहिर हो गयी थी, जब आदम के पुत्र, कैन और हाबिल ने परमेश्‍वर के लिए बलिदान चढ़ाया था। यहोवा ने कैन की भेंट ठुकरा दी, मगर हाबिल और उसकी भेंट को ‘ग्रहण किया’ क्योंकि वह देख सकता था कि उनके दिल में क्या है। वफादार हाबिल और उसके बलिदान के लिए परमेश्‍वर ने जो अनुग्रह दिखाया उसका कैन पर उलटा असर पड़ा। बाइबल कहती है, “कैन अति क्रोधित हुआ, और उसके मुँह पर उदासी छा गई।” उस वक्‍त यहोवा ने कैसा महसूस किया? कैन के इस बुरे रवैए से क्या यहोवा ने अपमानित महसूस किया? बिलकुल नहीं। उसने कोमलता से कैन से पूछा कि वह इतना क्रोधित क्यों है। यहाँ तक कि यहोवा ने कैन को समझाया कि “ग्रहण” किए जाने के लिए उसे क्या करने की ज़रूरत है। (उत्पत्ति 4:3-7) तो है न, यहोवा कोमलता का साक्षात्‌ रूप!—निर्गमन 34:6.

कोमलता आकर्षित करती और ताज़गी लाती है

7, 8. (क) हम यहोवा की कोमलता को कैसे समझ सकते हैं? (ख) मत्ती 11:27-29 के शब्द यहोवा और यीशु के बारे में क्या ज़ाहिर करते हैं?

7 यीशु मसीह के जीवन और उसकी सेवा के बारे में अध्ययन करना एक ऐसा बेहतरीन तरीका है जिससे यहोवा के अद्‌भुत गुणों को समझा जा सकता है। (यूहन्‍ना 1:18; 14:6-9) प्रचार दौरे के अपने दूसरे साल में जब यीशु गलील में था तो उसने खुराज़ीन, बैतसैदा, कफरनहूम और उसके आस-पास के इलाकों में सामर्थ के बहुत-से काम किए। लेकिन वहाँ ज़्यादातर लोग घमंडी थे, उन्हें राज्य संदेश में कोई दिलचस्पी नहीं थी और उन्होंने विश्‍वास करने से साफ इंकार कर दिया। तो यीशु ने कैसा रवैया दिखाया? हालाँकि यीशु ने साफ-साफ बता दिया था कि अगर वे विश्‍वास नहीं करेंगे तो उसका अंजाम क्या होगा, लेकिन यीशु को वहाँ के अमहाएरेट्‌स्‌ यानी दीन और मामूली इंसानों की दयनीय आध्यात्मिक हालत पर तरस भी आया।—मत्ती 9:35, 36; 11:20-24.

8 आगे चलकर यीशु जिस तरह लोगों से पेश आया उससे पता चलता है कि वह सचमुच में ‘पिता को [“अच्छी तरह,” NW] जानता’ है और उसने उसका अनुकरण भी किया। यीशु ने आम इंसानों को यह न्यौता दिया: “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे।” वाकई इन शब्दों से कुचले और सताए हुओं को कितनी सांत्वना और राहत मिली होगी! ये शब्द आज हमारे दिल को भी छू जाते हैं। अगर हम सच्चे दिल से कोमलता को धारण करें तो हम उनमें से होंगे ‘जिसे पुत्र’ अपने पिता पर ‘प्रगट करना चाहेगा।’—मत्ती 11:27-29.

9. कोमलता किस गुण के साथ करीब से जुड़ा है और यीशु कैसे इसकी एक बढ़िया मिसाल है?

9 कोमलता के साथ नम्रता बहुत करीब से जुड़ी है। नम्र इंसान “मन में दीन” होते हैं। दूसरी तरफ, घमंडी इंसान खुद को बहुत बड़ा समझते हैं और इस वजह से वे दूसरों से कठोरता या रूखेपन से पेश आते हैं। (नीतिवचन 16:18,19) पृथ्वी पर अपनी सेवा के दौरान यीशु ने हमेशा नम्रता का गुण दिखाया। अपनी मौत से छः दिन पहले यीशु गधे पर सवार होकर जब यरूशलेम आया और लोग यहूदी राजा के तौर पर उसकी जयजयकार कर रहे थे तो उसका रवैया संसार के शासकों से बहुत अलग था। उसने जकर्याह की भविष्यवाणी पूरी की: “देख, तेरा राजा तेरे पास आता है; वह नम्र है और गदहे पर बैठा है; बरन लादू के बच्चे पर।” (मत्ती 21:5; जकर्याह 9:9) वफादार भविष्यवक्‍ता दानिय्येल ने दर्शन में देखा कि यहोवा राज्य करने का अधिकार अपने बेटे को सौंप रहा है। लेकिन उसके पहले की भविष्यवाणी में उसने यीशु के बारे में कहा कि वह “नम्र से नम्र पुरुष” (NHT) है। जी हाँ, कोमलता और नम्रता का आपस में क्या ही गहरा नाता है।—दानिय्येल 4:17; 7:13, 14.

10. क्यों मसीही कोमलता का मतलब निर्बलता नहीं है?

10 यहोवा और यीशु ने जो मनोहर कोमलता दिखायी है, उसकी वजह से हम उन दोनों के और भी करीब आ पाते हैं। (याकूब 4:8) लेकिन कोमलता का मतलब निर्बलता हरगिज़ नहीं है। और यह हो भी नहीं सकता! सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर, यहोवा ने बहुतायत में अपनी ज़बरदस्त उर्जा और सामर्थ दिखायी है। अधर्म के खिलाफ उसके क्रोध की ज्वाला भड़क उठती है। (यशायाह 30:27; 40:26) उसी तरह यीशु ने पूरी तरह ठान लिया था कि शैतान अर्थात्‌ इब्‌लीस चाहे उस पर कोई भी हमला क्यों न करे वह हरगिज़ समझौता नहीं करेगा। अपने दिनों के धार्मिक अगुवों के गैरकानूनी कारोबार को उसने कतई बरदाश्‍त नहीं किया। (मत्ती 4:1-11; 21:12, 13; यूहन्‍ना 2:13-17) लेकिन हम देखते हैं, जब उसके चेले किसी बात में चूक जाते थे तब वह कोमलता से उनके साथ व्यवहार करता था और उनकी खामियों को धीरज से सहता था। (मत्ती 20:20-28) कोमलता के बारे में बाइबल के एक विद्वान ने बिलकुल सही वर्णन किया: “कोमलता में फौलाद जैसी ताकत होती है।” आइए हम भी कोमलता को अपने जीवन में ज़ाहिर करें, जो एक मसीही गुण है।

अपने ज़माने का सबसे कोमल इंसान

11, 12. जिस तरीके से मूसा की परवरिश हुई है, उसे देखते हुए क्यों कहा जा सकता है कि मूसा की कोमलता बेमिसाल है?

11 अब हम तीसरी मिसाल मूसा पर गौर करेंगे। बाइबल बताती है कि वह “पृथ्वी भर के रहने वाले सब मनुष्यों से बहुत अधिक नम्र [“कोमल,” NW] स्वभाव का था।” (गिनती 12:3) यह बात उसके बारे में परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखी गयी है। मूसा अपने खास कोमल स्वभाव की वजह से ही यहोवा के निर्देशनों पर चल सका।

12 मूसा की परवरिश कुछ अनोखे ढंग से हुई थी। यहोवा ने यह निश्‍चित किया था कि वह वफादार इब्री माता-पिता के इस बेटे को उस समय हो रहे विश्‍वासघात और हत्या के दौर में सुरक्षित रखेगा। बचपन में मूसा अपनी माँ के साथ रहा जिसने बड़ी सावधानी से उसे सच्चे परमेश्‍वर, यहोवा के बारे में सिखाया। बाद में उसे एक ऐसे माहौल में ले जाया गया जो उसके घर के माहौल से बिलकुल अलग था। मसीहियत के लिए शहीद हुए स्तिफनुस ने लिखा, “मूसा को मिसरियों की सारी विद्या पढ़ाई गई।” और असल में “[मूसा] बातों और कामों में सामर्थी था।” (प्रेरितों 7:22) लेकिन उस समय मूसा का विश्‍वास ज़ाहिर हुआ जब फिरौन के गुलामों पर ठहराए अधिकारी उसके भाइयों के साथ ढेरों अन्याय कर रहे थे। जब उसने देखा कि एक मिस्री एक इब्री पर हाथ उठा रहा है, तो उसने उस मिस्री की हत्या कर दी, जिसकी वजह से उसे मिस्र छोड़कर मिद्यान देश भागना पड़ा।—निर्गमन 1:15, 16; 2:1-15; इब्रानियों 11:24, 25.

13. मिद्यान में 40 साल गुज़ारने का मूसा पर कैसा असर हुआ?

13 चालीस की उम्र में आकर मूसा को जंगल में अपना गुज़ारा करना पड़ा। वहाँ मिद्यान में वह रूएल की सात बेटियों से मिला, जहाँ उसने जल भरके उनके पिता की भेड़-बकरियों के बड़े झुंड को पानी पिलाया। घर लौटने पर लड़कियों ने बड़ी खुशी से रूएल को सारा किस्सा सुनाया कि कैसे “एक मिस्री पुरुष” ने उन्हें उन चरवाहों के हाथ से छुड़ाया जो बहुत सता रहे थे। फिर रूएल के कहने पर मूसा उनके परिवार के साथ रहने लगा। हालाँकि मूसा बड़े ही मुश्‍किल दौर से गुज़रा, फिर भी वह कठोर इंसान नहीं बना, और ना ही उसने नए माहौल में अपने-आपको ढालने से इंकार किया। यहोवा की इच्छा पूरी करने की चाहत उसमें बरकरार थी। अगले चालीस साल, उसने रूएल की भेड़ों की रखवाली की, सिप्पोरा से शादी करके अपने बेटों का पालन-पोषण किया। उस दौरान मूसा खुद में उन गुणों को पैदा करके उन्हें निखार सका जो आगे उसकी शख्सियत की एक पहचान बनी। जी हाँ, मूसा ने मुश्‍किल हालात से गुज़रकर कोमलता का गुण सीखा था।—निर्गमन 2:16-22; प्रेरितों 7:29, 30.

14. जब मूसा इस्राएलियों का अगुवा था, उस समय हुई एक घटना के बारे में बताइए जिससे मूसा की कोमलता ज़ाहिर हुई?

14 जब मूसा को इस्राएल जाति का अगुवा बनाया गया, उस समय भी उसकी कोमलता का गुण साफ नज़र आया। एक बार एक नौजवान ने मूसा को खबर दी कि एलदाद और मेदाद छावनी में नबी के तौर पर भविष्यवाणी कर रहे हैं, जबकि वे उस समय मौजूद नहीं थे जिस समय यहोवा ने उन 70 पुरनियों पर अपनी आत्मा उँडेली थी जो मूसा के सहायक के तौर पर काम करते। इसलिए यहोशू ने कहा: “मेरे स्वामी मूसा, उनको रोक दे।” तब मूसा ने कोमलता से यह कहा: “क्या तू मेरे कारण जलता है? भला होता कि यहोवा की सारी प्रजा के लोग नबी होते, और यहोवा अपना आत्मा उन सभों में समवा देता!” (गिनती 11:26-29) कोमलता की वजह से उठनेवाला तनाव वहीं खत्म हो गया।

15. जबकि मूसा एक असिद्ध इंसान था फिर भी हमें क्यों उसके उदाहरण पर चलना चाहिए?

15 लेकिन एक अवसर पर ज़रूर मूसा में कोमलता की कमी नज़र आयी। कादेश के पास मरीबा में, वह यहोवा के किए चमत्कार का श्रेय उसे देने से चूक गया था। (गिनती 20:1, 9-13) हालाँकि मूसा भी एक असिद्ध इंसान था, लेकिन उसके अटल विश्‍वास ने पूरी ज़िंदगी उसे सँभाला और उसका कोमल स्वभाव आज भी हमें आकर्षित करता है।—इब्रानियों 11:23-28.

कठोरता बनाम कोमलता

16, 17. नाबाल और अबीगैल के वृत्तांत से हमें कौन-सी चेतावनी मिलती है?

16 परमेश्‍वर के भविष्यवक्‍ता शमूएल की मौत के कुछ समय बाद, दाऊद के दिनों में हुई एक घटना से हमें चेतावनी मिलती है। यह वृत्तांत एक शादी-शुदा जोड़े नाबाल और उसकी पत्नी अबीगैल का है। दोनों में क्या ही ज़मीन-आसमान का फर्क था! अबीगैल “बुद्धिमान” थी मगर उसका पति “कठोर, और बुरे बुरे काम करनेवाला था।” दाऊद के आदमियों ने नाबाल की भेड़-बकरियों के बड़े झुंड की चोरों से हिफाज़त की थी, इसलिए दाऊद ने उन्हें नाबाल के पास भोजन-पानी लाने के लिए भेजा। मगर नाबाल ने बड़ी रूखाई से साफ इंकार कर दिया। दाऊद का क्रोध भड़कना वाजिब था और इसलिए वह अपने आदमियों के साथ तलवार लिए उससे लड़ने के लिए निकल पड़ा।—1 शमूएल 25:2-13.

17 जब अबीगैल को इस बात की खबर मिली तो वह तुरंत रोटी, दाखमधु, मांस, किशमिश और अंजीरों की टिकिया लेकर दाऊद से मिलने निकल पड़ी। उसने दाऊद से गिड़गिड़ाकर कहा: “हे मेरे प्रभु, यह अपराध मेरे ही सिर पर हो। तेरी दासी तुझ से कुछ कहना चाहती है, और तू अपनी दासी की बातों को सुन ले।” अबीगैल की इस कोमल याचना की वजह से दाऊद का दिल पसीज गया। उसकी बात सुनने के बाद दाऊद ने कहा: “इस्राएल का परमेश्‍वर यहोवा धन्य है, जिस ने आज के दिन मुझ से भेंट करने के लिये तुझे भेजा है! और तेरा विवेक धन्य है, और तू आप भी धन्य है, कि तू ने मुझे आज के दिन खून करने और अपना पलटा आप लेने से रोक लिया है।” (1 शमूएल 25:18, 24, 32, 33) नाबाल की कठोरता ने आखिर उसे मौत का मुँह दिखा दिया। अबीगैल को अपने अच्छे गुणों की वजह से अंत में दाऊद की पत्नी बनने का सम्मान मिला। उसने जिस तरह से कोमलता दिखायी, वह आज यहोवा के सभी सेवकों के लिए एक मिसाल है।—1 शमूएल 25:36-42.

कोमलता का पीछा करो

18, 19. (क) जब हम कोमलता धारण करते हैं तो कौन-से बदलाव साफ नज़र आने लगते हैं? (ख) क्या बात हमें अपनी जाँच-परख अच्छी तरह करने में मदद दे सकती है?

18 तो मतलब यह हुआ कि इंसान में कोमलता का गुण होना बहुत ज़रूरी है। यह दूसरों के साथ सिर्फ अच्छी तरह से पेश आने से बढ़कर है; यह एक अच्छे स्वभाव की खासियत है जिससे दूसरों को ताज़गी मिलती है। पहले शायद रूखाई से बात करने या निदर्यता से पेश आने की हमारी आदत रही हो। लेकिन बाइबल से सच्चाई सीखने के बाद हमने बदलाव किए और हम मनभावने इंसान बने। पौलुस ऐसे बदलाव की बात कर रहा था जब उसने संगी मसीहियों से आग्रह किया: “सहानुभूति, दया, नम्रता, कोमलता और धीरज को धारण करो।” (कुलुस्सियों 3:12, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) बाइबल ऐसे बदलाव की तुलना इस तरह करती है, मानो भेड़िए, चीते, शेर, भालू, और नाग जैसे जंगली और खूँखार जानवरों का स्वभाव बदलकर मेमने, बकरी के बच्चे, बछड़े और गाय जैसे शांत स्वभाववाले जानवरों की तरह हो जाना। (यशायाह 11:6-9; 65:25) शख्सियत में यह बदलाव वाकई अनोखा है जिसे देखनेवाले हैरान रह जाएँ। लेकिन हम ऐसे बदलाव का श्रेय परमेश्‍वर की आत्मा के कामों को देते हैं जिसमें कोमलता का अद्‌भुत फल शामिल है।

19 एक बार जब हम ज़रूरी बदलाव करके यहोवा को अपना जीवन समर्पित करते हैं तो क्या इसका मतलब यह हुआ कि आगे से हमें कोमल स्वभाव के लिए प्रयास करने की ज़रूरत नहीं? ऐसा हरगिज़ नहीं है। नए कपड़ों को साफ-सुथरा और अच्छी हालत में रखने के लिए लगातार उन पर ध्यान देने की ज़रूरत होती है। उसी तरह हमें भी अपनी जाँच-परख करने के लिए परमेश्‍वर के वचन का ध्यान से अध्ययन करने और उसमें दिए उदाहरणों पर मनन करने से मदद मिलेगी। तो परमेश्‍वर के प्रेरित वचन का आइना आपके बारे में क्या बयान करता है?—याकूब 1:23-25.

20. कोमलता दिखाने में हम कैसे कामयाब हो सकते हैं?

20 लोगों में अलग-अलग गुण होते हैं जिसकी वजह से उनका मिज़ाज़ भी अलग-अलग होता है। हालाँकि परमेश्‍वर के कुछ सेवकों के लिए कोमलता का गुण दिखाना आसान होता है, तो कुछ के लिए बहुत मुश्‍किल होता है। फिर भी, इसमें कोई शक नहीं कि सभी मसीहियों को परमेश्‍वर की आत्मा का फल, जिसमें कोमलता भी एक है दिखाना ज़रूरी है। पौलुस ने प्यार से तीमुथियुस को सलाह दी: “धर्म, भक्‍ति, विश्‍वास, प्रेम, धीरज और नम्रता [“कोमलता,” NW] का पीछा कर।” (1 तीमुथियुस 6:11) शब्द “पीछा,” मेहनत करने की बात को सूचित करता है। एक बाइबल इसे यूँ अनुवाद करती है, ‘अपना हृदय लगा।’ (जे. बी. फिलिप्स का न्यू टेस्टामैंट इन मॉर्डन इंग्लिश) अगर आप परमेश्‍वर के वचन में दिए बेहतरीन उदाहरणों पर मनन करें तो वे आपके जीवन का भी हिस्सा बन जाएँगे मानो उन्हें आपके अंदर रोप दिया गया हो। फिर वे आपको ढालेंगे और मार्गदर्शित करेंगे।—याकूब 1:21.

21. (क) हमें कोमलता का पीछा क्यों करना है? (ख) अगले लेख में किस बात पर चर्चा की जाएगी?

21 हम दूसरों के साथ जिस तरह से पेश आते हैं, वह बताएगा कि हम कोमलता के गुण को कितनी हद तक दिखा रहे हैं। “तुम में ज्ञानवान और समझदार कौन है?” शिष्य याकूब ने पूछा। “जो ऐसा हो वह अपने कामों को अच्छे चालचलन से उस नम्रता [“कोमलता,” NW] सहित प्रगट करे जो ज्ञान से उत्पन्‍न होती है।” (याकूब 3:13) हम कैसे इस मसीही गुण को अपने घर, मसीही सेवा और कलीसिया में दिखा सकते हैं? अगले लेख में हम कुछ मार्गदर्शन पाएँगे जो हमारी मदद कर सकते हैं।

फिर से विचार कीजिए

• आपने इनके उदाहरण से कोमलता के बारे में क्या सीखा?

• यहोवा?

• यीशु?

• मूसा?

• अबीगैल?

• कोमलता का पीछा करना क्यों ज़रूरी है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 16 पर तसवीर]

यहोवा ने हाबिल की भेंट क्यों स्वीकार की?

[पेज 17 पर तसवीर]

यीशु ने दिखाया कि कोमलता और नम्रता का आपस में गहरा नाता है

[पेज 18 पर तसवीर]

मूसा ने कोमलता की एक बढ़िया मिसाल पेश की