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हाई कोर्ट ने “अरारात देश” में सच्ची उपासना को समर्थन दिया

हाई कोर्ट ने “अरारात देश” में सच्ची उपासना को समर्थन दिया

हाई कोर्ट ने “अरारात देश” में सच्ची उपासना को समर्थन दिया

एक बुज़ुर्ग जो तीन बच्चों के पिता हैं, अपने देश आर्मीनीया के हाई कोर्ट के कटघरे में खड़े हैं। उनके साथ-साथ उनके दूसरे संगी विश्‍वासियों की आज़ादी भी खतरे में है। जब वे बाइबल से अपने विश्‍वास की पैरवी कर रहे थे, तो अदालत उनकी सुन रही थी। यह समझने के लिए कि कैसे इस सुनवायी के बाद उस देश में सच्ची उपासना को एक शानदार जीत मिली, आइए हम देखें कि यह जीत मिलने से पहले कौन-सी घटनाएँ घटीं।

आर्मीनीया देश, तुर्की के पूर्व में और महान कॉकेसस पहाड़ों की श्रंखला के ठीक दक्षिण की ओर पड़ता है। इस देश की आबादी 30 लाख से भी ज़्यादा है। इसकी राजधानी येरेवन से अरारात पहाड़ की दो शानदार चोटियाँ नज़र आती हैं, कहा जाता है कि जल-प्रलय के बाद नूह का जहाज़ उस पर आकर ठहर गया था।—उत्पत्ति 8:4. *

यहोवा के साक्षी 1975 से आर्मीनीया में अपना मसीही काम कर रहे हैं। सन्‌ 1919 में भूतपूर्व सोवियत संघ से आज़ाद होने के बाद, आर्मीनीया में धार्मिक मामलों के लिए एक राज्य परिषद बनायी गयी जो धार्मिक संगठनों का पंजीकरण करती थी। मगर इस परिषद ने यहोवा के साक्षियों के धर्म को पंजीकृत करने से बार-बार इंकार खासकर उनकी मसीही निष्पक्षता की वजह से किया। नतीजा यह हुआ कि सन्‌ 1991 से, वहाँ 100 से भी ज़्यादा नौजवान साक्षियों को अपराधी करार दिया गया और उनमें से ज़्यादातर लोगों को, जिन्होंने अपने बाइबल आधारित सिद्धांत की वजह से सेना में भरती होने से इंकार किया था, जेल की सज़ा काटनी पड़ी।

परिषद ने सरकारी वकील के दफ्तर से, ल्योवा मारकारियान के धार्मिक कामों की जाँच-पड़ताल करने की गुज़ारिश की। ल्योवा मारकारियान एक मसीही प्राचीन और स्थानीय एटॉमिक पावर प्लांट के ज़रिए नियुक्‍त किए गए मेहनती वकील थे। आखिरकार भाई मारकारियान को दफा 244 के तहत दोषी करार दिया गया। यह कानून सोवियत में पुराने ज़माने से क्रुसचेव के समयकाल में पारित किया गया था। इसे यहोवा के साक्षियों के काम में अड़चन पैदा करने और आखिरकार उनका और दूसरे धार्मिक समूहों का नामो-निशान मिटा डालने के मकसद से बनाया गया था।

इस कानून के मुताबिक ऐसे धार्मिक समूहों की अगुवाई करना या संगठन बनाना अपराध है, जो धार्मिक विश्‍वास का प्रचार करने की आड़ में ‘नौजवानों को ऐसी धार्मिक सभाओं में हाज़िर होने को लुभाते हैं जिसका पंजीकरण नहीं हुआ है’ और ‘जो अपने सदस्यों को देश के कर्त्तव्यों के खिलाफ जाने को उकसाते हैं।’ इसी आधार पर सरकारी वकील ने भाई को दोषी करार दिया और अपने दावे को सच साबित करने के लिए नाबालिग बच्चों की तरफ ध्यान खींचा जो उस समय सभा में मौजूद थे जब भाई मारकारियान, मेटसॉमोर शहर में सभा चला रहे थे। वकील ने यह भी आरोप लगाया कि भाई माकारियान ने अपनी कलीसिया के नौजवानों को सेना में भरती होने से ज़बरदस्ती रोका है।

मुकद्दमा शुरू होता है

जुलाई 20 सन्‌ 2001, को शुक्रवार के दिन यह मुकद्दमा शुरू हुआ। यह आमावीर ज़िले के कोर्ट में न्यायाधीश मानवेल सिमोन्यान की अध्यक्षता में शुरू हुआ। और यह अगस्त महीने तक चलता रहा। अपनी गवाही देते हुए आखिरकार इलज़ाम लगानेवाले गवाहों ने यह कबूल किया कि भाई मारकारियान के खिलाफ उन्होंने जो कुछ लिखा था, वह सब राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्रीमंडल (पहले के के.जी.बी) के कारिंदों के कहने पर लिखा था। उन्होंने ही फिर उनसे ज़बरदस्ती हस्ताक्षर करवाए थे। एक मौके पर एक स्त्री ने कबूल किया कि उसने सुरक्षा मंत्रीमंडल के एक अफसर के कहने पर यह दावा किया कि “यहोवा के साक्षी हमारी सरकार और धर्म के खिलाफ हैं।” स्त्री ने अपनी गलती मानते हुए कहा कि वह किसी भी यहोवा के साक्षी को निजी तौर पर नहीं जानती, उसने तो सिर्फ टेलीविज़न पर राष्ट्रीय कार्यक्रम में यहोवा के साक्षियों पर इलज़ाम लगाते सुना था।

जब भाई मारकारियान की बारी आयी तो उन्होंने बताया कि जो नाबालिग बच्चे यहोवा के साक्षियों की सभा में आते हैं, वे अपने माता-पिता की इज़ाज़त से आते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि सेना में भरती होना-न-होना हरेक का निजी फैसला है। सरकारी वकील जाँच-पड़ताल के लिए कई दिनों तक सवाल करते रहे। और जब भाई मारकारियान अपनी बाइबल का इस्तेमाल करते हुए बड़ी शांति से अपने विश्‍वास पर उठाए सवालों का जवाब दे रहे थे तो उस दौरान वह वकील उनके बताए वचनों की जाँच खुद अपनी बाइबल से कर रहा था।

सन्‌ 2001,18 सितंबर को न्यायाधीश ने फैसला सुनाया कि मारकारियान “दोषी नहीं” हैं और उनके काम में “किसी प्रकार का अपराध नहीं पाया” गया है। इस केस के बारे में एक सहयोगी प्रेस ने एक रिपोर्ट खुलकर छापी। उसमें यह लिखा था: “आर्मीनीया में यहोवा के साक्षियों के एक अगुवे को आज इस इलज़ाम से बाइज़्ज़त बरी किया गया कि वह लोगों का धर्म-परिवर्तन करता है और नौजवानों से सेना में भरती न होने की ज़बरदस्ती करता है। दो महीने तक मुकद्दमा चलने के बाद अदालत ने कहा कि अगुवे, ल्योवा मारकारियान के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं मिले हैं। वरना उसे पाँच साल जेल की सज़ा हो सकती थी। . . . हालाँकि आर्मीनीया की संविधान, धार्मिक स्वतंत्रता की छूट देती है, लेकिन नए समूहों के लिए पंजीकरण करवाना मुश्‍किल होता है और कानून भी आर्मीनीया के जाने-माने अपोस्टलिक चर्च के पक्ष में है।” यूरोप में सुरक्षा और सहयोग के लिए संगठन (OSCE) ने, 18 सितंबर 2001 की अपनी एक औपचारिक रिपोर्ट में लिखा: “हालाँकि OSCE ऑफिस, न्यायालय के फैसले से बेहद खुश है, मगर इस बात का दुःख प्रकट करता है कि आखिर यह मुकद्दमा दायर ही क्यों किया गया।”

इलज़ाम लगाना जारी

इसके बावजूद सरकारी वकीलों ने फिर से अपील की, जिसकी वजह से मुकद्दमा और चार महीने तक चला। मुकद्दमे की शुरूआत में जब भाई मारकारियान की गवाही देने की बारी आयी तो पैनल के एक जज ने उससे सबसे पहला सवाल पूछा। लेकिन भाई मारकारियान ने जैसे ही जवाब देना शुरू किया, चेयरमैन ने बीच में टोकते हुए भाई का विरोध किया। इसके बाद उसने भाई मारकारियान को एक भी सवाल का जवाब देने नहीं दिया। बिना कोई कारण बताए उसने रिकॉर्ड में से ज़्यादातर सवाल निकाल दिए जो बचाव पक्ष के वकील ने भाई से पूछे थे। अदालत में साक्षी-विरोधी धर्म के कई कट्टरवादी लोग भी बैठे थे, जो मुकद्दमे के दौरान भाई मारकारियान को बार-बार गालियाँ दे रहे थे। सत्र खत्म होने के बाद टेलीविज़न पर इस मुकद्दमे के बारे में बहुत-सी झूठी और उल्टी-सीधी खबरें प्रसारित की गयीं, मसलन यह कहा गया कि भाई मारकारियान ने खुद अपनी गलती कबूल कर ली है।

अभी मुकद्दमा आधा ही खत्म हुआ था कि तीन जजों के पैनल की चेयरमैन ने सबको धार्मिक मामले के लिए राज्य परिषद की तरफ से एक पत्र दिखाते हुए हक्का-बक्का कर दिया। उसमें यह हुक्मनामा था कि अदालत को भाई मारकारियान के खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए। इससे उस मुकद्दमे में मौजूद अंतर्राष्ट्रीय दर्शक भी हैरत में पड़ गए क्योंकि आर्मीनीया ने यूरोपीय परिषद की सदस्यता के लिए जब अर्ज़ी दी थी, तो उसमें उस देश ने यह स्वीकार किया था कि उसका फर्ज़ “यह निश्‍चित करना है कि सभी चर्च या धार्मिक समाज, खासकर जिन्हें ‘गैर-पारंपरिक’ माना जाता है, वे बिना किसी भेदभाव के अपने धर्म का पालन कर सकें।”

अगले हफ्ते के लिए जैसे यह मुकद्दमा आगे बढ़ा, माहौल और भी गर्म हो गया। विरोधी, साक्षियों को कोर्ट के बाहर और अंदर भी खूब सताने लगे और उन पर हमला करने लगे। साक्षी स्त्रियों को पिंडली की हड्डी पर ठोकर मारी जाती थी। एक बार जब एक साक्षी पर हमला किया गया और उसने कोई बदला नहीं लिया, तो पीछे से उसकी रीढ़ की हड्डी पर हमला किया गया जिसकी वजह से उसे अस्पताल में भरती करवाना पड़ा।

इस दरमियान इस मुकद्दमे के लिए एक नए जज को नियुक्‍त किया गया। दर्शकों में से कई लोगों ने बचाव पक्ष के वकील को डराने-धमकाने की कोशिश की, लेकिन यह नया चेयरमैन माहौल को अच्छी तरह काबू में रख पाया। जब एक महिला, बचाव पक्ष के वकील को चिल्ला-चिल्लाकर धमकियाँ दे रही थी तो चेयरमैन ने पुलिस को हुक्म दिया कि उसे कोर्ट से बाहर कर दिया जाए।

आर्मीनीया की सबसे ऊँची अदालत तक

आखिरकार 7 मार्च 2002 में इस अदालत ने, पिछली अदालत के फैसले का समर्थन किया। दिलचस्पी की बात है कि न्यायालय का फैसला सुनाने के एक दिन पहले धार्मिक मामलों के लिए राज्य परिषद को भंग किया गया था। लेकिन एक बार फिर विरोधियों ने इस फैसले के खिलाफ अपील की और इस बार आर्मीनीया की सबसे ऊँची अदालत—कसेशन के कोर्ट में। सरकारी वकीलों ने अब इस अदालत से माँग की कि वह “अपराध के फैसले के केस को लौटा दे” ताकि दोबारा मुकद्दमा लड़ा जा सके।

इस बार पैनल में छः जज थे जिसके चेयरमैन थे महेर काच्हॉट्रयान। इन सभी की बैठक 19 अप्रैल 2002 को हुई। एक सरकारी वकील ने जब अपनी बात शुरू की तो एकदम आग-बबूला होकर कहने लगा कि पहली दो अदालतें, भाई मारकारियान को दोषी ठहराने में नाकाम साबित हुई हैं। लेकिन इस बार पासा पलटा और उसी को टोकते हुए चारों जजों ने सवालों की बौछार कर दी। एक जज ने तो उस वकील को फटकारते हुए कहा कि वकील ने प्रचार काम और यहोवा के साक्षियों के पंजीकरण न होने की बात कहकर, अदालत को भाई मारकारियान के खिलाफ गुमराह किया है, जबकि यह दफा 244 के तहत अपराध था ही नहीं। फिर जज ने वकील के काम के बारे में कहा कि उसने इस मसले में भाई को “अपराध का केस बनाकर सताया” है। दूसरे जज ने अलग-अलग यूरोपीय कोर्ट केसों का ज़िक्र किया, जिसमें यहोवा के साक्षियों को “जाने-माने धर्म” के तौर पर पहचाना गया है और मानव अधिकारों के लिए यूरोपीय संविधान के मुताबिक उसकी रक्षा करना सबका फर्ज़ बनता है। इस दौरान अदालत में बैठा एक पादरी, ज़ोर से चिल्लाकर कहने लगा कि यहोवा के साक्षी देश का बँटवारा कर रहे हैं। तब अदालत ने उसे चुपचाप बैठने का हुक्म दिया।

इसके बाद जजों ने ल्योवा मारकारियान को दर्शकों में से बाहर आने को कहा। यह इस हाई कोर्ट में पहली बार कुछ अनोखी घटना थी। भाई मारकारियान ने बहुत अच्छी तरह गवाही दी कि यहोवा के साक्षी अलग-अलग मामलों में किन मसीही सिद्धांतों को लागू करते हैं। (मरकुस 13:9) फिर थोड़े-से विचार-विमर्श के बाद कोर्ट खारिज़ हुआ और सभी ने एकमत होकर भाई के “दोषमुक्‍त” होने का न्यायिक फैसला सुनाया। भाई मारकारियान को सबके सामने रिहा कर दिया गया। कोर्ट ने अपना लिखित फैसला इस तरह सुनाया: “मौजूदा कानून के मुताबिक [ल्योवा मारकारियान का] यह काम अपराध की श्रेणी में नहीं आता और उस पर लगाया इलज़ाम आर्मीनीया के संविधान की दफा 23 और यूरोपीय संविधान की दफा 9 के खिलाफ है।”

फैसले का असर

अगर सरकारी वकील जीत जाते तो इससे उन्हें पूरे आर्मीनीया में, सभी कलीसियाओं के प्राचीनों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने का मौका मिल जाता। लेकिन कोर्ट ने जो साफ-साफ फैसला सुनाया है, उससे हम उम्मीद करते हैं कि अब ऐसी परेशानी नहीं आएगी। इसके अलावा, अगर फैसला साक्षियों के खिलाफ सुनाया जाता तो उन्हें यहोवा के साक्षियों का पंजीकरण न करने का बहाना भी मिल जाता। हम अदालत के फैसले के लिए शुक्रगुज़ार हैं कि उसने इस बहाने को अड़चन बनने से रोक दिया।

अब समय ही बताएगा कि इस देश के 7,000 से भी ज़्यादा साक्षियों को पंजीकरण कराने का मौका मिलेगा या नहीं। मगर इस दरमियान भी सच्ची उपासना की लौ रोशन है और “अरारात देश” में अभी भी प्रगति हो रही है।

[फुटनोट]

^ पैरा. 3 यह एक कारण है कि जो आर्मीनीया के लोग अपने देश का नाम अरारात पहाड़ से जोड़ते हैं। पुराने ज़माने में आर्मीनीया एक बहुत बड़ा राज्य था जिसमें यह पहाड़ भी शामिल था। यही वजह है कि बाइबल का यूनानी सॆप्टुआजिंट अनुवाद यशायाह 37:38 में “अरारात देश” को “आर्मीनीया” देश कहता है। अरारात पहाड़ अब तुर्की देश में पड़ता है, जो इसकी पूर्वी सीमा पर है।

[पेज 12 पर तसवीर]

ल्योवा मारकारियान मुकद्दमे के दौरान

[पेज 13 पर तसवीर]

भाई मारकारियान और उनका परिवार