सच्ची शांति कहाँ से मिल सकती है?
सच्ची शांति कहाँ से मिल सकती है?
‘हमारे प्रभु यीशु मसीह का परमेश्वर, और पिता . . . हमारे सब क्लेशों में शान्ति देता है।’—2 कुरिन्थियों 1:3, 4.
1. ऐसे कौन-से हालात हैं जिनमें लोगों को शांति की सख्त ज़रूरत पड़ती है?
गंभीर बीमारी से एक इंसान इस कदर मायूस हो जाता है मानो उसकी ज़िंदगी में सब कुछ खत्म हो गया हो। भूकंप, आँधी-तूफान और अकाल लोगों को बरबादी की दहलीज़ पर लाकर खड़ा कर देते हैं। युद्ध की चपेट में, परिवार के लोगों की मौत हो जाती है, घर तबाह हो जाते हैं, और लोगों को अपनी जान बचाने के लिए अपना सब कुछ छोड़-छाड़कर भागना पड़ता है। अन्याय के शिकार लोगों को लगता है कि उनके लिए सारे रास्ते बंद हो चुके हैं। ऐसी विपत्तियों से गुज़रनेवाले सभी को शांति की सख्त ज़रूरत है। मगर सच्ची शांति कहाँ से मिल सकती है?
2. जो शांति यहोवा देता है, वह बेजोड़ क्यों है?
2 ऐसे कुछ लोग और संगठन हैं जो शांति देने का काम करते हैं। उनके प्यार भरे शब्दों की बहुत कदर की जाती है। वे खाना, कपड़ा और रहने की जगह का जो इंतज़ाम करते हैं, उससे कुछ समय तक लोगों की ज़रूरतें पूरी होती हैं। लेकिन सिर्फ सच्चा परमेश्वर यहोवा ही वह सब कुछ वापस ला सकता है जो खो चुका है, और सिर्फ वही ऐसे इंतज़ाम कर सकता है ताकि ये विपत्तियाँ फिर कभी ना आएँ। इसके बारे में बाइबल कहती है: “हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर, और पिता का धन्यवाद हो, जो दया का पिता, और सब प्रकार की शान्ति का परमेश्वर है। वह हमारे सब क्लेशों में शान्ति देता है; ताकि हम उस शान्ति के कारण जो परमेश्वर हमें देता है, उन्हें भी शान्ति दे सकें, जो किसी प्रकार के क्लेश में हों।” (2 कुरिन्थियों 1:3, 4) यहोवा हमें शांति कैसे देता है?
समस्याओं की जड़ तक पहुँचना
3. परमेश्वर ने शांति देने का जो इंतज़ाम किया है, वह कैसे हर समस्या की जड़ तक पहुँचता है?
3 आदम के पाप की वजह से पूरे मानव परिवार को विरासत में असिद्धता मिली है और इसी से अनगिनत समस्याएँ पैदा हुई हैं जो आखिर में इंसान को मौत के मुँह में ढकेल देती हैं। (रोमियों 5:12) “इस जगत का सरदार” शैतान यानी इब्लीस है जिसने हालात को बद-से-बदतर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। (यूहन्ना 12:31; 1 यूहन्ना 5:19) इंसान की यह दुर्दशा देखकर, यहोवा ने सिर्फ अपना दुःख ज़ाहिर नहीं किया बल्कि उसने अपने एकलौते बेटे को छुड़ौती के तौर पर देकर उद्धार का रास्ता भी खोल दिया है। यहोवा ने हमें बताया है कि अगर हम उसके बेटे पर विश्वास करेंगे, तो हम आदम के पाप के बुरे अंजामों से नजात पा सकेंगे। (यूहन्ना 3:16; 1 यूहन्ना 4:10) परमेश्वर ने यह भी भविष्यवाणी की है कि यीशु मसीह जिसे स्वर्ग और धरती का पूरा अधिकार सौंपा गया है, वह शैतान और उसकी दुष्ट व्यवस्था को पूरी तरह मिटा देगा।—मत्ती 28:18; 1 यूहन्ना 3:8; प्रकाशितवाक्य 6:2; 20:10.
4. (क) राहत के वादे पर हमारा यकीन मज़बूत करने के लिए यहोवा ने क्या सबूत पेश किए हैं? (ख) राहत के समय को पहचानने में यहोवा किस तरह हमारी मदद करता है?
4 परमेश्वर ने अपने वादों पर हमारा यकीन और भी मज़बूत कराने के लिए ऐसे ढेरों सबूत दर्ज़ करवाए हैं जो साबित करते हैं कि वह जो भी भविष्यवाणी करता है, ज़रूर पूरी होती है। (यहोशू 23:14) उसने बाइबल में ऐसे वृत्तांत लिखवाए हैं जिनमें बताया गया है कि कैसे उसने अपने सेवकों को ऐसे हालात से बाहर निकाला है जिनसे बच निकलना इंसान के बस की बात नहीं थी। (निर्गमन 14:4-31; 2 राजा 18:13–19:37) और यीशु मसीह के ज़रिए यहोवा ने दिखाया कि उसके मकसद में “हर प्रकार की बीमारी” से पीड़ित लोगों को चंगा करना, यहाँ तक कि मरे हुओं को दोबारा ज़िंदा करना भी शामिल है। (मत्ती 9:35; 11:3-6) लेकिन यह सब कब होगा? इसके जवाब में, बाइबल में इस पुरानी दुनिया के अंतिम दिनों का ब्यौरा दिया गया है, जिसके बाद परमेश्वर का नया आकाश और नयी पृथ्वी आएगी। जिस दौर में हम जी रहे हैं यह यीशु के दिए गए ब्यौरे पर एकदम ठीक बैठता है।—मत्ती 24:3-14; 2 तीमुथियुस 3:1-5.
दुःख से पीड़ित लोगों के लिए शांति
5. इस्राएल की हिम्मत बँधाते वक्त, यहोवा ने किस बात पर उनका ध्यान खींचा?
5 यहोवा ने जिस तरह प्राचीन इस्राएल के साथ व्यवहार किया था, उससे हम सीखते हैं कि कैसे उसने संकट के वक्त में इस्राएलियों की हिम्मत बँधायी थी। उसने उन्हें याद दिलाया कि वह किस तरह का परमेश्वर है। इससे परमेश्वर के वादों पर उनका विश्वास और भी मज़बूत हुआ। यहोवा ने अपने भविष्यवक्ताओं के ज़रिए साफ-साफ बताया कि सच्चा और जीवित परमेश्वर होने के नाते उसमें और उन मूर्तियों में ज़मीन-आसमान का फर्क है, क्योंकि मूर्तियाँ न तो अपने उपासकों की ना ही खुद की मदद कर सकती हैं। (यशायाह 41:10; 46:1; यिर्मयाह 10:2-15) यहोवा ने जब यशायाह से कहा कि “मेरी प्रजा को शान्ति दो, शान्ति!” तब उसने भविष्यवक्ता को दृष्टांतों का इस्तेमाल करने और अपनी सृष्टि के काम का ब्यौरे देने की प्रेरणा दी, ताकि वह इस बात पर ज़ोर दे सके कि एकमात्र सच्चा परमेश्वर होने के नाते यहोवा सबसे महान है।—यशायाह 40:1-31.
6. छुटकारा कब होगा, इस बारे में कभी-कभी यहोवा ने क्या बताया?
6 कई मौकों पर, यहोवा ने शांति देने के लिए एक निर्धारित समय बताया कि उसके लोगों का छुटकारा जल्द होगा या उसमें वक्त लगेगा। जब मिस्र से छुटकारे का समय निकट आ रहा था, तब यहोवा ने अत्याचार सह रहे इस्राएलियों से कहा: “एक और विपत्ति मैं फ़िरौन और मिस्र देश पर डालता हूं, उसके पश्चात् वह तुम लोगों को वहां से जाने देगा।” (निर्गमन 11:1) जब राजा यहोशापात के दिनों में तीन जातियों ने मिलकर यहूदा पर हमला किया, तब यहोवा ने अपने लोगों से कहा कि वह “कल” उनकी तरफ से कार्यवाही करेगा। (2 इतिहास 20:1-4, 14-17) दूसरे मौके पर, यशायाह ने बाबुल से इस्राएल के छुटकारे की भविष्यवाणी लगभग 200 साल पहले लिखी थी। इसके बारे में और जानकारी, छुटकारे के करीब 100 साल पहले यिर्मयाह के ज़रिए दी गयी थी। जब छुटकारे का समय नज़दीक आया, तो इन भविष्यवाणियों से परमेश्वर के सेवकों का कितना हौसला बढ़ा होगा!—यशायाह 44:26–45:3; यिर्मयाह 25:11-14.
7. छुटकारे के वादों में अकसर क्या शामिल होता था, और इसका इस्राएल के वफादार लोगों पर क्या असर हुआ?
7 गौर करने लायक बात यह है कि परमेश्वर के लोगों को जिन वादों से शांति दी गयी थी, उनमें अकसर मसीहा के बारे में जानकारी होती थी। (यशायाह 53:1-12) पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस जानकारी ने परीक्षाओं की कई घड़ियों में वफादार लोगों को आशा दी है। लूका 2:25 में हम पढ़ते हैं: “देखो, यरूशलेम में शमौन नाम एक मनुष्य था, और वह मनुष्य धर्मी और भक्त था; और इस्राएल की शान्ति [या, दिलासा; दरअसल, मसीहा के आने] की बाट जोह रहा था, और पवित्र आत्मा उस पर था।” शमौन, शास्त्र में मसीहा के बारे दी गयी आशा के बारे में जानता था और उसके पूरा होने की बाट जोहते रहने का उसकी ज़िंदगी पर गहरा असर हुआ। उसे नहीं मालूम था कि यह सब कैसे पूरा होगा और ना ही वह अपने जीते-जी भविष्यवाणी में बताए उद्धार को देख सका, मगर जब उसने उस व्यक्ति को पहचान लिया जिसके ज़रिए परमेश्वर “उद्धार” करनेवाला था, तब वह खुशी से फूला न समाया।—लूका 2:30.
मसीह के ज़रिए शांति
8. लोगों को मदद की जैसी उम्मीद थी, यीशु ने वैसी मदद क्यों नहीं दी?
8 जब यीशु इस धरती पर अपनी सेवा कर रहा था, तब उसने लोगों की हमेशा उस तरह मदद नहीं की जैसी वह उम्मीद करते थे। कुछ लोग ऐसे मसीहा की आस लगाए हुए थे जो उन्हें रोमी साम्राज्य के जुए से आज़ाद कराता जिसके अधीन रहते-रहते उनका दम घुटने लगा था। मगर यीशु ने किसी क्रांति में हिस्सा नहीं लिया, बल्कि उसने लोगों से कहा: “जो कैसर का है, वह कैसर को . . . दो।” (मत्ती 22:21) परमेश्वर का मकसद लोगों को सिर्फ किसी राजनैतिक सरकार से आज़ाद कराना नहीं था। लोग यीशु मसीह को राजा बनाना चाहते थे, मगर उसने बताया कि वह ‘बहुतों की छुड़ौती के लिये अपने प्राण देगा।’ (मत्ती 20:28; यूहन्ना 6:15) उसके राजा बनने का समय नहीं आया था और राज करने का अधिकार सिर्फ यहोवा उसे देता, न कि असंतुष्ट जनता।
9. (क) यीशु ने शांति के किस संदेश का ऐलान किया? (ख) इस संदेश का, लोगों के हालात से क्या नाता था, यह समझाने के लिए यीशु ने क्या किया? (ग) यीशु की सेवा ने किस बात की बुनियाद डाली?
9 यीशु ने जो शांति दी, वह ‘परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार’ के रूप में थी। यीशु जहाँ भी गया, वहाँ उसने यही संदेश सुनाया। (लूका 4:43) उसने ज़ोर देकर बताया कि उसके संदेश का लोगों की हर दिन की समस्याओं से क्या नाता है। इसके लिए उसने अपने कामों से दिखाया कि मसीहाई राजा होने के नाते वह पूरी मानवजाति के लिए क्या करेगा। उसने लोगों की आँखों की रोशनी और बोलने की शक्ति लौटा दी (मत्ती 12:22; मरकुस 10:51,52), अपंग लोगों को चंगा किया (मरकुस 2:3-12), घिनौनी बीमारियों से पीड़ित साथी इस्राएलियों को शुद्ध किया (लूका 5:12, 13), और दूसरी दुःखदायक बीमारियों से उन्हें राहत दिलायी। (मरकुस 5:25-29) इस तरह उसने दुःख-तकलीफ झेलनेवालों को जीने का एक नया मकसद दिया। इसके अलावा, यीशु ने मातम मना रहे परिवारों को राहत पहुँचाने के लिए उनके बच्चों का पुनरुत्थान किया। (लूका 7:11-15; 8:49-56) उसने दिखाया कि उसके पास भयानक तूफान पर काबू करने और बड़ी भीड़ की भूख मिटाने की काबिलीयत है। (मरकुस 4:37-41; 8:2-9) इसके अलावा, यीशु ने ज़िंदगी के ऐसे उसूल सिखाए जिनकी मदद से लोग असरदार तरीके से समस्याओं का हल कर सकते थे और जो उनके दिलों में मसीहा के धार्मिक शासन की आशा जलाए रखते। इस तरह अपनी सेवा के दौरान, उसने ना सिर्फ उन लोगों को शांति दी जो विश्वास के साथ उसकी बातें सुन रहे थे, बल्कि वह बुनियाद भी डाली जिसकी वजह से आनेवाले हज़ारों सालों के दौरान लोगों को शांति मिलती।
10. यीशु के बलिदान की वजह से क्या-क्या फायदे मिले हैं?
10 यीशु का अपना जीवन बलिदान के रूप में देने और स्वर्ग में पुनरुत्थान किए जाने के 60 से भी ज़्यादा साल बाद, प्रेरित यूहन्ना ने ईश्वर-प्रेरणा से यह लिखा: “हे मेरे बालको, मैं ये बातें तुम्हें इसलिये लिखता हूं, कि तुम पाप न करो; और यदि कोई पाप करे, तो पिता के पास हमारा एक सहायक है, अर्थात् धार्मिक यीशु मसीह। और वही हमारे पापों का प्रायश्चित्त है: और केवल हमारे ही नहीं, बरन सारे जगत के पापों का भी।” (1 यूहन्ना 2:1, 2) यीशु के सिद्ध जीवन के बलिदान के अनेक फायदों से हमें बहुत दिलासा मिलता है। हम पापों की माफी, एक शुद्ध विवेक, परमेश्वर के साथ एक अच्छा रिश्ता, और हमेशा की ज़िंदगी की आशा रख सकते हैं।—यूहन्ना 14:6; रोमियों 6:23; इब्रानियों 9:24-28; 1 पतरस 3:21.
शांति देनेवाली, पवित्र आत्मा
11. अपनी मौत से पहले यीशु ने कौन-से एक और इंतज़ाम का वादा किया?
11 अपने जीवन का बलिदान देने से पहले की शाम, यीशु ने अपने प्रेरितों के साथ वक्त बिताया। उसी दौरान उसने बताया कि उसके पिता ने उन्हें दिलासा देने का एक और इंतज़ाम किया है। यीशु ने कहा: “मैं पिता से बिनती करूंगा, और वह तुम्हें एक और सहायक [शांति देनेवाला; यूनानी, पाराक्लीटौस] देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे। अर्थात् सत्य का आत्मा।” यीशु ने उन्हें भरोसा दिलाया: “सहायक अर्थात् पवित्र आत्मा . . . तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैं ने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा।” (यूहन्ना 14:16, 17, 26) पवित्र आत्मा ने उन्हें असल में कैसे शांति दी?
12. पवित्र आत्मा ने यीशु के चेलों को याद दिलाने में जो भूमिका निभायी है, उससे बहुतों का हौसला कैसे बढ़ता है?
12 यीशु ने अपने प्रेरितों को ज़बरदस्त शिक्षा दी थी। प्रेरित बेशक यीशु के साथ अपना अनुभव ज़िंदगी भर याद रखते, मगर यीशु ने ठीक-ठीक जो कहा, क्या वे उसे भी याद रख पाते? क्या उनकी असिद्ध याददाश्त की वजह से वे अहम हिदायतों को भूल जाते? यीशु ने उन्हें भरोसा दिलाया था कि पवित्र आत्मा उन्हें ‘वह सब स्मरण कराएगा जो कुछ उसने उनसे कहा था।’ इसलिए यीशु की मौत के करीब आठ साल बाद, मत्ती, सुसमाचार की पहली किताब लिख पाया जिसमें उसने दिल को छू लेनेवाले पहाड़ी उपदेश, राज्य के बारे में ढेरों दृष्टांत, और उसकी उपस्थिति के चिन्ह की बारीकियाँ दर्ज़ कीं। और 50 से भी ज़्यादा साल बाद, प्रेरित यूहन्ना ने ऐसा भरोसेमंद वृत्तांत लिखा जिसमें धरती पर यीशु के आखिरी दिनों की विस्तार से जानकारी दी गयी है। परमेश्वर की प्रेरणा से लिखी इन किताबों को पढ़कर हमारे दिनों में भी लोगों का कितना हौसला बढ़ता है!
13. शुरूआती मसीहियों के लिए पवित्र आत्मा किस तरह एक शिक्षक थी?
13 पवित्र आत्मा ने यीशु की कही बात याद दिलाने से बढ़कर काम किया है। उसने चेलों को सिखाया है और परमेश्वर के मकसद की पूरी समझ हासिल करने में उनका मार्गदर्शन किया है। जब यीशु अपने चेलों के साथ था, तब उसने कुछ ऐसी बातें बतायी थीं जो वे पूरी तरह समझ नहीं पाए थे। लेकिन बाद में, पवित्र आत्मा के उकसाए जाने पर यूहन्ना, पतरस, याकूब, यहूदा और पौलुस उन घटनाओं को समझा पाए जो परमेश्वर के मकसद की पूर्ति में आगे घटीं। इस तरह एक शिक्षक के तौर पर पवित्र आत्मा ने बहुत ही अहम तरीके से चेलों को यकीन दिलाया कि परमेश्वर उनका मार्गदर्शन कर रहा है।
14. पवित्र आत्मा ने किन तरीकों से यहोवा के लोगों की मदद की है?
14 पवित्र आत्मा का यह अनोखा वरदान, यह भी साफ समझने में हमारी मदद करता है कि परमेश्वर ने पैदाइशी इस्राएल को त्यागकर, मसीही कलीसिया पर अपना अनुग्रह किया है। (इब्रानियों 2:4) लोगों की ज़िंदगी में उस आत्मा के फलों को देख पाना भी एक अहम पहलू है जिससे यीशु के सच्चे चेलों की पहचान होती है। (यूहन्ना 13:35; गलतियों 5:22-24) इसके अलावा आत्मा, कलीसिया के सदस्यों की हिम्मत भी बँधाती ताकि वे निडरता और साहस के साथ गवाही दे सकें।—प्रेरितों 4:31.
भारी दबाव में मदद
15. (क) गुज़रे कल और आज के मसीहियों को किन दबावों का सामना करना पड़ा है? (ख) जो दूसरों की हिम्मत बँधाते हैं, कभी-कभी उनकी हिम्मत बढ़ाने की ज़रूरत क्यों पड़ सकती है?
15 हर कोई जो यहोवा की भक्ति करता है और उसका वफादार रहता है, उसे किसी-न-किसी तरीके से ज़रूर सताया जाता है। (2 तीमुथियुस 3:12) मगर, बहुत-से मसीहियों ने हद-से-ज़्यादा दबाव का सामना किया है। हमारे ज़माने के कुछ मसीहियों पर तो भीड़-की-भीड़ टूट पड़ी, साथ ही उन्हें यातना शिविरों, जेलों और लेबर कैंपों में डाला गया जहाँ की हालत इतनी बदतर होती थी कि उसे इंसान के रहने लायक नहीं कहा जा सकता। ज़ुल्म ढाने में सरकारें सबसे आगे रही हैं या फिर उन्होंने दंगा मचानेवाले लोगों को हिंसा या फसाद करने की छूट दे दी। और-तो-और, मसीहियों ने स्वास्थ्य और परिवार को लेकर गंभीर समस्याओं का सामना किया है। एक प्रौढ़ मसीही पर भी दबाव आ सकता है जिसने एक-के-बाद-एक कई संगी भाई-बहनों को मुश्किलों का सामना करने में मदद दी हो। ऐसे मामलों में जो दूसरों की हिम्मत बँधाते हैं, उन्हें खुद की हिम्मत बँधाए जाने की सख्त ज़रूरत पड़ सकती है।
16. जब दाऊद भारी दबाव में था, तो उसे क्या मदद मिली?
16 जब शाऊल हाथ धोकर दाऊद की जान के पीछे पड़ा था, तब दाऊद मदद के लिए परमेश्वर के आगे गिड़गिड़ाया: “हे परमेश्वर, मेरी प्रार्थना सुन ले; . . . मैं तेरे पंखों के तले शरण लिए रहूंगा।” (भजन 54:2, 4; 57:1) क्या दाऊद को मदद मिली? जी हाँ। उस दौरान, यहोवा ने भविष्यवक्ता गाद और एब्यातार याजक के ज़रिए दाऊद को मार्गदर्शन दिया और उसने नौजवान दाऊद की हिम्मत बँधाने के लिए शाऊल के बेटे, योनातान का इस्तेमाल किया। (1 शमूएल 22:1, 5; 23:9-13, 16-18) इतना ही नहीं, यहोवा ने पलिश्तियों को देश पर चढ़ाई करने दी ताकि शाऊल का ध्यान भटक जाए और वह दाऊद का पीछा करना छोड़ दे।—1 शमूएल 23:27, 28.
17. ज़बरदस्त दबाव से गुज़रते वक्त यीशु मदद के लिए किसके पास गया?
17 जब धरती पर यीशु मसीह का समय पूरा होने का वक्त आया, तो वह भी ज़बरदस्त दबाव में था। वह अच्छी तरह जानता था कि उसके आचरण का उसके स्वर्गीय पिता के नाम पर क्या असर पड़ेगा, और पूरी मानवजाति का भविष्य भी उस पर निर्भर है। उसने तन-मन से बिनती की, यहाँ तक कि “अत्यन्त संकट में व्याकुल” हो गया। परमेश्वर ने तुरंत उसकी प्रार्थना सुनी और उसे सहारा दिया जिसकी उसे उस मुश्किल की घड़ी में सख्त ज़रूरत थी।—लूका 22:41-44.
18. जिन शुरूआती मसीहियों को बुरी तरह सताया गया, उन्हें परमेश्वर ने क्या दिलासा दिया?
18 पहली सदी की मसीही कलीसिया बनते ही मसीहियों को इतनी क्रूरता से सताया जाने लगा कि यरूशलेम से प्रेरितों को छोड़ बाकी सब-के-सब तितर-बितर हो गए। स्त्री-पुरुषों को उनके घरों से घसीटकर ले जाया गया। ऐसे इब्रानियों 10:34; इफिसियों 1:18-20) जैसे-जैसे उन्होंने प्रचार करना जारी रखा, वे देख पाए कि परमेश्वर की आत्मा उनके साथ है, और इस अनुभव ने उन्हें और भी आनंद दिया।—मत्ती 5:11, 12; प्रेरितों 8:1-40.
में, परमेश्वर ने उन्हें क्या दिलासा दिया? अपने वचन से उन्हें यकीन दिलाया कि उनके पास “एक और भी उत्तम और सर्वदा ठहरनेवाली संपत्ति है।” (19. हालाँकि पौलुस को बेरहमी से सताया गया, फिर भी परमेश्वर ने उसे जो दिलासा दिया उसके बारे में उसने कैसा महसूस किया?
19 कुछ समय बाद, शाऊल (पौलुस) जो एक ज़माने में बेदर्दी से मसीहियों को सताया करता था, खुद ज़ुल्मों का शिकार हो गया, क्योंकि वह एक मसीही बन चुका था। साईप्रस द्वीप में एक टोन्हा करनेवाले ने, कपट और झूठी अफवाहों का सहारा लेकर पौलुस की सेवा को रोकने की कोशिश की। गलतिया में, पौलुस पर पत्थरवाह किया गया और उसे मरा हुआ समझकर छोड़ दिया गया। (प्रेरितों 13:8-10; 14:19) मकिदुनिया में उसे बेत से मारा गया। (प्रेरितों 16:22, 23) इफिसियों में हिंसक भीड़ का सामना करने के बाद उसने लिखा: “[हम] ऐसे भारी बोझ से दब गए थे, जो हमारी सामर्थ से बाहर था, यहां तक कि हम जीवन से भी हाथ धो बैठे थे। बरन हम ने अपने मन में समझ लिया था, कि हम पर मृत्यु की आज्ञा हो चुकी है।” (2 कुरिन्थियों 1:8, 9) मगर फिर उसी चिट्ठी में, पौलुस ने दिलासे भरे वे शब्द लिखे जिसका हवाला इस लेख के पैराग्राफ दो में दिया गया है।—2 कुरिन्थियों 1:3, 4.
20. हम अगले लेख में किस विषय पर चर्चा करेंगे?
20 आप इस तरह की शांति दूसरों को कैसे दे सकते हैं? आज हमारे दिनों में ऐसे बहुत-से लोग हैं जिन्हें शांति की सख्त ज़रूरत है। वे या तो हज़ारों लोगों पर आयी कोई विपत्ति की खबर सुनकर दुःखी होते हैं, या फिर खुद पर आयी किसी मुसीबत से मायूस हो जाते हैं। इन दोनों मामलों में हम लोगों को शांति कैसे दे सकते हैं, इस पर हम अगले लेख में चर्चा करेंगे।
क्या आपको याद है?
• परमेश्वर जो शांति देता है, वही क्यों अनमोल है?
• मसीह के ज़रिए क्या शांति दी गयी है?
• पवित्र आत्मा कैसे शांति देनेवाली साबित हुई?
• जब परमेश्वर के सेवक भारी दबाव से गुज़र रहे थे, तब यहोवा ने कैसा दिलासा दिया, इसकी मिसाल दीजिए।
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 15 पर तसवीरें]
बाइबल दिखाती है कि यहोवा ने अपने लोगों को छुटकारा दिलाकर उन्हें शांति दी
[पेज 16 पर तसवीरें]
यीशु ने सिखाने, चंगा करने और मरे हुओं को दोबारा ज़िंदा करने के ज़रिए शांति दी
[पेज 18 पर तसवीर]
यीशु को स्वर्ग से मदद मिली