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मसीह, कलीसियाओं से बात करता है

मसीह, कलीसियाओं से बात करता है

मसीह, कलीसियाओं से बात करता है

“जो सातों तारे अपने दहिने हाथ में लिए हुए है, . . . वह यह कहता है।”—प्रकाशितवाक्य 2:1.

1, 2. मसीह ने एशिया माइनर की सात कलीसियाओं से जो बातें कहीं, वे हमारे लिए क्या मायने रखती हैं?

यहोवा का एकलौता पुत्र यीशु, मसीही कलीसिया का मुखिया है। और मुखिया होने के नाते वह अपने अभिषिक्‍त चेलों से बनी कलीसिया की तारीफ करता है और उनकी गलतियाँ भी सुधारता है ताकि कलीसिया बेदाग रहे। (इफिसियों 5:21-27) इसकी कई मिसालें, प्रकाशितवाक्य के अध्याय 2 और 3 में दर्ज़ हैं, जहाँ हमें एशिया माइनर की सात कलीसियाओं से कहे यीशु के ज़बरदस्त और प्यार-भरे संदेश पढ़ने को मिलते हैं।

2 प्रेरित यूहन्‍ना को सात कलीसियाओं के लिए यीशु का संदेश सुनाने से पहले, “प्रभु के दिन” का दर्शन दिखाया गया था। (प्रकाशितवाक्य 1:10) उस “दिन” की शुरूआत सन्‌ 1914 में हुई जब स्वर्ग में मसीहाई राज्य की स्थापना की गयी और इस धरती पर शैतानी संसार के अंतिम दिन शुरू हुए। इसलिए मसीह ने उन कलीसियाओं से जो बातें कहीं, वे आज इन अंतिम दिनों में भी बहुत मायने रखती हैं। उसने जिस तरह हौसला बढ़ाया और सलाह दी, उसके मुताबिक चलने से हम इस कठिन समय का डटकर सामना कर पाएँगे।—2 तीमुथियुस 3:1-5.

3. प्रेरित यूहन्‍ना के दर्शन में दिखाए गए “तारे,” “स्वर्गदूत” और ‘सोने की दीवटों’ का क्या मतलब है?

3 यूहन्‍ना ने महिमावान यीशु मसीह को “सातों तारे अपने दहिने हाथ में लिए” और “सोने की सातों दीवटों” यानी कलीसियाओं के ‘बीच में फिरते’ देखा। ‘तारे कलीसियाओं के स्वर्गदूत हैं।’ (प्रकाशितवाक्य 1:20, आर.ओ.वी.; 2:1) कभी-कभी तारे आत्मिक प्राणियों को सूचित करते हैं, मगर यहाँ पर उनकी बात नहीं हो रही है। क्योंकि आत्मिक प्राणियों को संदेश देने के लिए भला मसीह एक इंसान को क्यों इस्तेमाल करता? इसलिए ज़ाहिर है कि ये “तारे,” आत्मा से अभिषिक्‍त ओवरसियरों और अभिषिक्‍त ओवरसियरों के निकायों को सूचित करते हैं। उन्हें “स्वर्गदूत” इसलिए कहा गया है, क्योंकि वे संदेश पहुँचानेवाले दूत की भूमिका अदा करते हैं। आज धरती पर परमेश्‍वर के संगठन में काफी बढ़ोतरी हुई है, इसलिए निगरानी के लिए ‘विश्‍वास-योग्य भण्डारी’ ने यीशु की ‘अन्य भेड़ों’ में से काबिल पुरुषों को ओवरसियरों के तौर पर नियुक्‍त किया है।—लूका 12:42-44; यूहन्‍ना 10:16, NW.

4. यीशु, कलीसियाओं से जो कहता है, उस पर ध्यान देने से प्राचीनों को क्या लाभ होता है?

4 “तारे” यीशु के दाहिने हाथ में हैं यानी प्राचीन, यीशु के अधीन हैं। उन पर उसका अधिकार और अनुग्रह है, साथ ही वह उनकी हिफाज़त करता है। इसलिए प्राचीन, यीशु के सामने जवाबदेह हैं। अगर आज के प्राचीन, सात कलीसियाओं से कही यीशु की बातों को मानकर चलेंगे, तो वे उन कलीसियाओं से मिलती-जुलती समस्याओं का हल कर पाएँगे। मगर हाँ, सिर्फ प्राचीनों को ही नहीं बल्कि सभी मसीहियों को परमेश्‍वर के पुत्र की बातों पर ध्यान देने की ज़रूरत है। (मरकुस 9:7) तो फिर, यीशु ने कलीसियाओं से जो बातें कहीं, उन पर ध्यान देने से हम क्या सीख सकते हैं?

इफिसुस के स्वर्गदूत को

5. इफिसुस कैसा शहर था?

5 यीशु ने इफिसुस की कलीसिया को शाबाशी भी दी और ताड़ना भी। (प्रकाशितवाक्य 2:1-7 पढ़िए।) एशिया माइनर के पश्‍चिमी तट पर बसा इफिसुस, एक धनवान शहर था, साथ ही यह व्यापार और धर्म का केंद्र भी था। और इसमें अरतिमिस देवी का एक विशाल मंदिर था। हालाँकि इफिसुस शहर, बदचलनी, झूठे धर्म और जादूगरी से भरा पड़ा था, फिर भी जब प्रेरित पौलुस और दूसरे मसीहियों ने वहाँ प्रचार किया, तब यहोवा ने उनकी सेवा को सफल किया।—प्रेरितों, अध्याय 19.

6. आज के वफादार मसीही किस मायने में प्राचीन इफिसुस के मसीहियों जैसे हैं?

6 मसीह ने इफिसुस की कलीसिया की तारीफ करते हुए कहा: “मैं तेरे काम, और परिश्रम, और तेरा धीरज जानता हूं; और यह भी, कि तू बुरे लोगों को तो देख नहीं सकता; और जो अपने आप को प्रेरित कहते हैं, और हैं नहीं, उन्हें तू ने परखकर झूठा पाया।” आज भी यीशु के सच्चे चेलों की कलीसियाओं ने धीरज धरने, अच्छे काम और परिश्रम करने की बेहतरीन मिसाल कायम की है। वे ऐसे झूठे भाइयों को बरदाश्‍त नहीं करते, जो चाहते हैं कि उन्हें प्रेरितों का दर्जा दिया जाए। (2 कुरिन्थियों 11:13, 26) इफिसियों की तरह, आज के वफादार मसीही भी ‘बुरे लोगों को देख नहीं सकते।’ इसलिए यहोवा की उपासना की शुद्धता बनाए रखने और कलीसिया की हिफाज़त करने के लिए, वे उन धर्मत्यागियों की तरफ दोस्ती का हाथ नहीं बढ़ाते, जिन्हें अपने किए पर कोई पछतावा नहीं होता।—गलतियों 2:4, 5; 2 यूहन्‍ना 8-11.

7, 8. इफिसुस की कलीसिया में क्या गंभीर समस्या थी, और हम इस तरह की समस्या का सामना कैसे कर सकते हैं?

7 इसके बावजूद, इफिसुस के मसीहियों की एक गंभीर समस्या थी। यीशु ने कहा: “मुझे तेरे विरुद्ध यह कहना है कि तू ने अपना पहिला सा प्रेम छोड़ दिया है।” उस कलीसिया के सदस्यों को अपने अंदर यहोवा के लिए पहले जैसा प्रेम दोबारा बढ़ाने की ज़रूरत थी। (मरकुस 12:28-30; इफिसियों 2:4; 5:1, 2) हमें भी सावधान रहना चाहिए ताकि हम परमेश्‍वर के लिए अपना पहले जैसा प्यार न खो दें। (3 यूहन्‍ना 3) लेकिन अगर धन-दौलत या ऐशो-आराम की चाहत हमारे मन में घर करने लगी है, तब हम क्या कर सकते हैं? (1 तीमुथियुस 4:8; 6:9, 10) तब हमें तन-मन से परमेश्‍वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें अपने मन से इन चाहतों को निकाल फेंकने और इनकी जगह उसके लिए गहरा प्यार पैदा करने में मदद करे। साथ ही उन एहसानों के लिए कदरदानी दिखाने में भी मदद दे जो उसने और उसके बेटे ने हम पर किए हैं।—1 यूहन्‍ना 4:10, 16.

8 मसीह ने इफिसियों को उकसाया: “चेत कर, कि तू कहां से गिरा है, और मन फिरा और पहिले के समान काम कर।” अगर वे ऐसा नहीं करेंगे, तो इसका अंजाम क्या होगा? यीशु ने कहा: “यदि तू मन न फिराएगा, तो मैं तेरे पास आकर तेरी दीवट को उस स्थान से हटा दूंगा।” अगर कलीसिया की सभी भेड़ें अपना पहला जैसा प्रेम खो दें, तो “दीवट” यानी कलीसिया ही नहीं रहेगी। इसलिए जोशीले मसीही होने के नाते आइए हम जी-जान से कलीसिया को आध्यात्मिक रूप से चमकाते रहें।—मत्ती 5:14-16.

9. किसी भी पंथ के बारे में हमें कैसा नज़रिया रखना चाहिए?

9 मगर हाँ, इफिसियों की एक बात काबिले-तारीफ है कि उन्होंने “नीकुलइयों के कामों” से घृणा की। नीकुलइयों के पंथ के बारे में प्रकाशितवाक्य की किताब में जितना लिखा है, हम बस उतना ही जानते हैं। इस पंथ की शुरूआत कब हुई, उसकी शिक्षाएँ क्या थीं और उसके लोग किन रीति-रिवाज़ों को मानते थे, इन सब बातों की हमारे पास कोई ठोस जानकारी नहीं है। फिर भी, जैसे यीशु ने इंसानों के चेले बनने की निंदा की थी, हमें भी इफिसुस के मसीहियों की मिसाल पर चलते हुए हर तरह के पंथ से घृणा करनी चाहिए।—मत्ती 23:10.

10. जो लोग आत्मा का कहना मानेंगे, उन्हें क्या इनाम मिलेगा?

10 मसीह ने कहा: “जिस के कान हों, वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है।” यीशु जब धरती पर था, तो उसने जो कुछ कहा वह परमेश्‍वर की आत्मा से प्रेरित होकर कहा था। (यशायाह 61:1; लूका 4:16-21) इसलिए आज हमें ध्यान लगाकर सुनने की ज़रूरत है कि परमेश्‍वर अपनी पवित्र आत्मा का इस्तेमाल करके यीशु के ज़रिए हमसे क्या कह रहा है। आत्मा की प्रेरणा से यीशु ने वादा किया: “जो जय पाए उसे मैं जीवन के वृक्ष में से जो परमेश्‍वर के परादीस (फिरदौस) में है खाने को दूंगा।” (NHT, फुटनोट) आत्मा का कहना माननेवाले, अभिषिक्‍त जनों को ‘परमेश्‍वर के [स्वर्गीय] फिरदौस,’ यानी यहोवा के साथ रहकर अमर जीवन बिताने का इनाम मिलेगा। इसके अलावा, “बड़ी भीड़” के लोग भी आत्मा की बात सुनते हैं, इसलिए वे धरती पर फिरदौस का लुत्फ उठाएँगे जहाँ वे “जीवन के जल की एक नदी” से पीएँगे और नदी के दोनों किनारों पर लगे “पेड़ के पत्तों” से चंगाई पाएँगे।—प्रकाशितवाक्य 7:9; 22:1, 2.

11. हम यहोवा के लिए प्यार कैसे बढ़ा सकते हैं?

11 इफिसियों ने जिस तरह यहोवा के लिए पहले जैसा प्रेम खो दिया था, अगर यही समस्या आज किसी कलीसिया में पैदा हो जाए, तब हम क्या कर सकते हैं? आइए हममें से हरेक यहोवा के प्यार भरे तौर-तरीकों और कामों पर चर्चा करें और इस तरह भाइयों के मन में यहोवा के लिए प्यार बढ़ाएँ। हम इस बात के लिए अपना आभार जता सकते हैं कि परमेश्‍वर ने हमारी खातिर अपने अज़ीज़ बेटे को छुड़ौती के तौर पर दे दिया। (यूहन्‍ना 3:16; रोमियों 5:8) जब कभी मुनासिब लगे, तब हम अपने जवाबों में और सभा का कोई भाग पेश करते वक्‍त परमेश्‍वर के प्रेम के बारे में बता सकते हैं। और मसीही सेवा में यहोवा के नाम की महिमा करके हम उसके लिए अपना प्यार दिखा सकते हैं। (भजन 145:10-13) वाकई हम अपनी बातों और कामों से, कलीसिया में यहोवा के लिए पहले जैसा प्यार दोबारा पैदा करने या उसे और भी मज़बूत करने के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं।

स्मुरना के स्वर्गदूत को

12. इतिहास से हमें स्मुरना और वहाँ के धार्मिक रीति-रिवाज़ों के बारे में क्या पता चलता है?

12 मसीह “जो प्रथम और अन्तिम है; जो मर गया था और अब” पुनरुत्थान के ज़रिए “जीवित हो गया है,” उसने स्मुरना की कलीसिया की तारीफ की। (प्रकाशितवाक्य 2:8-11 पढ़िए।) स्मुरना (अब इज़मिर, टर्की) भी एशिया माइनर के पश्‍चिमी तट पर स्थित था। यूनानियों ने इस शहर को बसाया था, मगर करीब सा.यु.पू. 580 में लिडीया के लोगों ने आकर इसे तहस-नहस कर दिया। फिर सिकंदर महान के बाद आनेवाले शासकों ने स्मुरना को दोबारा एक नयी जगह पर बसाया। और यह शहर एशिया के रोमी प्रांत का एक हिस्सा बन गया। यह एक फलता-फूलता व्यापार केंद्र था, और बढ़िया-से-बढ़िया सार्वजनिक इमारतों के लिए भी मशहूर था। इसी शहर में तिबिरियुस कैसर का एक मंदिर था जहाँ सभी इकट्ठा होकर सम्राट की उपासना करते थे। यहाँ पूजा करनेवालों से माँग की जाती थी कि वे चुटकी-भर धूप जलाएँ और कहें कि “कैसर प्रभु है।” मसीही इस माँग को पूरा नहीं कर सकते थे क्योंकि उनके लिए ‘यीशु प्रभु है।’ इसलिए उन्हें क्लेश सहना पड़ा।—रोमियों 10:9.

13. हालाँकि धन-दौलत के मामले में स्मुरना के मसीहियों के हाथ खाली थे, फिर भी वे किस मायने में अमीर थे?

13 क्लेश के अलावा, स्मुरना के मसीही तंगहाली में भी जी रहे थे। वे सम्राट की पूजा नहीं करते थे, इसलिए हो सकता है कि आर्थिक मामलों में उन पर तरह-तरह की पाबंदियाँ लगायी गयी हों। आज भी यहोवा के सेवकों को इसी तरह की परीक्षाओं से गुज़रना पड़ता है। (प्रकाशितवाक्य 13:16, 17) हालाँकि धन-दौलत के मामले में उनके हाथ खाली हैं, फिर भी जो लोग स्मुरना के मसीहियों की तरह हैं, वे आध्यात्मिक तौर पर बहुत ही अमीर हैं और यही बात सबसे ज़्यादा अहमियत रखती है!—नीतिवचन 10:22; 3 यूहन्‍ना 2.

14, 15. अभिषिक्‍त जन, प्रकाशितवाक्य 2:10 से क्या दिलासा पा सकते हैं?

14 स्मुरना के ज़्यादातर यहूदी “शैतान की सभा” थे, क्योंकि उन्होंने ऐसे रीति-रिवाज़ों को मानना नहीं छोड़ा जो शास्त्र के खिलाफ थे। इसके अलावा, उन्होंने परमेश्‍वर के पुत्र को ठुकरा दिया और उसके आत्मा से अभिषिक्‍त चेलों की निंदा की। (रोमियों 2:28, 29) मगर अभिषिक्‍त जनों को मसीह के अगले शब्दों से क्या ही दिलासा मिल सकता है! वह कहता है: “जो दुख तुझ को झेलने होंगे, उन से मत डर: क्योंकि देखो, शैतान तुम में से कितनों को जेलखाने में डालने पर है ताकि तुम परखे जाओ; और तुम्हें दस दिन तक क्लेश उठाना होगा: प्राण देने तक विश्‍वासी रह; तो मैं तुझे जीवन का मुकुट दूंगा।”—प्रकाशितवाक्य 2:10.

15 यीशु ने यहोवा की हुकूमत का पक्ष लिया और इसके लिए वह मरने से भी नहीं डरा। (फिलिप्पियों 2:5-8) आज शैतान ने बचे हुए अभिषिक्‍त जनों के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है, फिर भी एक समूह के तौर पर वे क्लेश सहने, कैद होने, यहाँ तक कि दर्दनाक मौत मरने से नहीं डरते। (प्रकाशितवाक्य 12:17) वे संसार पर विजय पानेवाले साबित होंगे। प्राचीन समय में, अन्यजातियों के खेलों में विजेताओं को फूलों से सजे मुकुट पहनाए जाते थे, जो कुछ समय बाद मुरझा जाते। लेकिन इससे बिलकुल अलग मसीह, पुनरुत्थान पाए अभिषिक्‍त मसीहियों से वादा करता है कि उन्हें स्वर्ग में अमर प्राणियों के तौर पर “जीवन का मुकुट” दिया जाएगा। है ना यह एक नायाब तोहफा!

16. अगर आज हम प्राचीन स्मुरना जैसी किसी कलीसिया में हैं, तो हमें अपना ध्यान किस मसले पर जमाए रखने की ज़रूरत है?

16 हमारी आशा चाहे स्वर्ग में जीने की हो या इस धरती पर, अगर आज हम प्राचीन स्मुरना जैसी ही एक कलीसिया में हैं, तब क्या? तब आइए हम अपने भाई-बहनों का ध्यान अहम मसले पर लगाए रखने में मदद करें कि यहोवा क्यों हम पर अत्याचार होने की इजाज़त देता है। वह अहम मसला है, पूरे विश्‍व पर हुकूमत करने के अधिकार का। यहोवा का हर साक्षी जो खराई बनाए रखता है, वह शैतान को झूठा साबित करता है और यह भी दिखाता है कि सताए जाने पर भी एक इंसान परमेश्‍वर की हुकूमत के पक्ष में अडिग खड़ा रह सकता है। (नीतिवचन 27:11) दूसरे मसीहियों को ज़ुल्म सहते वक्‍त धीरज धरने का बढ़ावा देते रहिए और इस तरह “[यहोवा के] साम्हने पवित्रता [“वफादारी,” NW] और धार्मिकता से जीवन भर,” जी हाँ, हमेशा-हमेशा के लिए “निडर रहकर उस की सेवा करते” रहने का सुअवसर पाइए।—लूका 1:68, 69, 74, 75.

पिरगमुन के स्वर्गदूत को

17, 18. पिरगमुन, किस तरह की उपासना का केंद्र था, और ऐसी उपासना से इनकार करने का क्या अंजाम हो सकता था?

17 पिरगमुन की कलीसिया को शाबाशी भी दी गयी और उसे सुधारा भी गया था। (प्रकाशितवाक्य 2:12-17 पढ़िए।) पिरगमुन, स्मुरना से करीब 80 किलोमीटर दूर उत्तर की तरफ था। यह शहर झूठे धर्म में पूरी तरह डूबा हुआ था। ऐसा लगता है कि कसदी मजाई (ज्योतिषी) बाबुल से भागकर यहाँ बस गए थे। बीमार लोगों की भीड़-की-भीड़ पिरगमुन में झूठे देवता, अस्क्लीपिअस के मशहूर मंदिर में आती थी जिसे चंगाई और दवा का देवता समझा जाता था। पिरगमुन के एक मंदिर में कैसर ऑगूस्तुस की उपासना की जाती थी, इसलिए यह शहर रोमी “साम्राज्य की शुरूआत के दौर में, सम्राट की उपासना करनेवाले पंथ का मुख्य केंद्र” कहा जाता था।—इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका, 1959, भाग 17, पेज 507.

18 पिरगमुन में यूनानी देवता, ज़ियस की एक वेदी भी थी। इसके अलावा, इस शहर में इंसानों को भगवान का दर्जा देकर उनकी पूजा की जाती थी, जिसकी शुरूआत के पीछे इब्‌लीस का बड़ा हाथ है। तभी तो कहा गया था कि पिरगमुन की कलीसिया ऐसी जगह पर है जहाँ “शैतान का सिंहासन है”! यहोवा की हुकूमत का समर्थन करनेवाला जो इंसान सम्राट की उपासना करने से इनकार करता था, उसे मौत की सज़ा हो सकती थी। संसार आज भी, इब्‌लीस की मुट्ठी में है और अब राष्ट्रीय चिन्हों को पूजा जाता है। (1 यूहन्‍ना 5:19) पहली सदी से लेकर आज तक बहुत-से वफादार मसीही शहीद हुए हैं, जैसे एक के बारे में यीशु ने कहा: ‘मेरा विश्‍वासयोग्य साक्षी अन्तिपास, जिसे तुम्हारे मध्य मारा गया।’ (आर.ओ.वी.) सचमुच, यहोवा और यीशु मसीह अपने इन वफादार सेवकों को कभी नहीं भूलेंगे।—1 यूहन्‍ना 5:21.

19. बिलाम ने क्या किया था, और सभी मसीहियों को किस बात से सावधान रहना चाहिए?

19 मसीह ने “बिलाम की शिक्षा” का भी ज़िक्र किया। बिलाम एक झूठा भविष्यवक्‍ता था, जिसने धन-दौलत के लालच में आकर इस्राएलियों को शाप देने की कोशिश की। जब यहोवा ने उसके शाप को आशीर्वाद में बदल दिया, तब उसने मोआब के राजा बालाक के साथ मिलकर एक साज़िश रची। उन्होंने बहुत-से इस्राएलियों को मूर्तिपूजा और लैंगिक अनैतिकता में फाँसने के लिए जाल बिछाया और कामयाब भी रहे। मगर पीनहास धार्मिकता के लिए दृढ़ खड़ा रहा और उसने बिलाम की साज़िश के खिलाफ कार्यवाही की। आज के मसीही प्राचीनों को भी पीनहास की मिसाल पर चलना चाहिए। (गिनती 22:1–25:15; 2 पतरस 2:15, 16; यहूदा 11) दरअसल, सभी मसीहियों को सावधान रहना चाहिए कि मूर्तिपूजा और लैंगिक अनैतिकता से कलीसिया दूषित ना हो जाए।—यहूदा 3, 4.

20. अगर किसी मसीही के मन में धर्मत्यागियों के विचार पनप रहे हैं, तो उसे क्या कदम उठाने की ज़रूरत है?

20 पिरगमुन की कलीसिया भारी खतरे में थी, क्योंकि उसने अपने बीच ऐसे लोगों को रहने दिया था “जो नीकुलइयों की शिक्षा को मानते” थे। मसीह ने कलीसिया से साफ-साफ कहा: “मन फिरा, नहीं तो मैं तेरे पास शीघ्र ही आकर, अपने मुख की तलवार से उन के साथ लड़ूंगा।” पंथ बनानेवाले आध्यात्मिक अर्थ में मसीहियों को नुकसान पहुँचाना चाहते हैं। और जो कलीसिया में फूट पैदा करने और अलग-अलग पंथ बनाने से बाज़ नहीं आते, वे किसी भी हाल में परमेश्‍वर के राज्य में दाखिल नहीं हो पाएँगे। (रोमियों 16:17, 18; 1 कुरिन्थियों 1:10; गलतियों 5:19-21) अगर किसी मसीही के मन में धर्मत्यागियों के विचार पनप रहे हैं और वह उन्हें फैलाना चाहता है, तो खबरदार! उसे मसीह की चेतावनी पर कान लगाने की ज़रूरत है। अगर वह नाश से बचना चाहता है, तो उसे पश्‍चाताप करना होगा और आध्यात्मिक मदद के लिए कलीसिया के प्राचीनों के पास जाना होगा। (याकूब 5:13-18) उसे अभी, इसी वक्‍त कदम उठाना होगा, क्योंकि यीशु न्यायदंड देने के लिए फौरन आ रहा है।

21, 22. कौन “गुप्त मन्‍ना” खाएँगे, और इसका मतलब क्या है?

21 वफादार अभिषिक्‍त मसीहियों और उनके सच्चे साथियों को आनेवाले न्यायदंड से घबराने की ज़रूरत नहीं। अगर उनमें से हरेक जन उस सलाह को मानेगा जो यीशु, परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा के निर्देशन में दे रहा है, तो उन्हें भविष्य में ज़रूर आशीषें मिलेंगी। मिसाल के लिए, संसार पर विजयी होनेवाले अभिषिक्‍त जनों को “गुप्त मन्‍ना” खाने का न्यौता मिलेगा और उन्हें “एक श्‍वेत पत्थर” दिया जाएगा जिस पर “एक नया नाम” (NHT) लिखा होगा।

22 जब इस्राएली 40 साल के दौरान वीराने में भटक रहे थे, तब परमेश्‍वर ने उनका पेट भरने के लिए उन्हें मन्‍ना दिया था। इस “रोटी” (NHT) में से कुछ हिस्से को सोने के एक पात्र में डालकर वाचा के संदूक के अंदर रखा गया था। इस तरह मन्‍ना को मिलापवाले तंबू के परमपवित्र-स्थान में छिपाकर रखा गया, जहाँ यहोवा की मौजूदगी दिखाने के लिए एक चमत्कारिक रोशनी दमकती थी। (निर्गमन 16:14, 15, 23, 26, 33; 26:34; इब्रानियों 9:3, 4) किसी को भी गुप्त मन्‍ना खाने की इजाज़त नहीं थी। लेकिन जब यीशु के अभिषिक्‍त चेलों का पुनरुत्थान होगा और उन्हें अमर जीवन मिलेगा, तो यह एक तरह से “गुप्त मन्‍ना” खाने के बराबर होगा।—1 कुरिन्थियों 15:53-57.

23. “श्‍वेत पत्थर” और “नया नाम” किस बात को सूचित करता है?

23 रोमी अदालतों में काले पत्थर का मतलब था कि एक इंसान सज़ा के लायक है जबकि श्‍वेत या सफेद पत्थर का मतलब था कि वह बेगुनाह है। इसलिए विजयी अभिषिक्‍त मसीहियों को “एक श्‍वेत पत्थर” देने का अर्थ है कि यीशु ने उनका न्याय करके उन्हें निर्दोष, पवित्र और शुद्ध करार दिया है। इसके अलावा, रोम के लोग किसी खास खेल या अवसर में हाज़िर होने के लिए भी पत्थर को एक टिकट के तौर पर इस्तेमाल करते थे, इसलिए “श्‍वेत पत्थर” का यह भी अर्थ हो सकता है कि मेम्ने की शादी में अभिषिक्‍त जनों को स्वर्ग में दाखिल होने की इजाज़त दी जाएगी। (प्रकाशितवाक्य 19:7-9) “नया नाम” उस सम्मान को ज़ाहिर करता है जो अभिषिक्‍त जनों को स्वर्गीय राज्य में यीशु के संगी वारिस होने पर मिलता। बेशक, इन सारी बातों से यहोवा की सेवा कर रहे अभिषिक्‍त जनों का कितना हौसला बढ़ता है! और-तो-और, इन बातों से उनके साथियों का भी हौसला बढ़ता है जिन्हें इसी धरती पर फिरदौस में जीने की आशा है।

24. धर्मत्याग के मामले में हमारा रवैया कैसा होना चाहिए?

24 यह याद रखना अक्लमंदी होगी कि पिरगमुन कलीसिया में धर्मत्यागियों का खतरा था। अगर यही खतरा हमारी कलीसिया की आध्यात्मिकता को जोखिम में डाल रहा है, तो हमें धर्मत्यागियों की शिक्षाओं को पूरी तरह ठुकरा देना चाहिए और सच्चाई में चलते रहना चाहिए। (यूहन्‍ना 8:32, 44; 3 यूहन्‍ना 4) झूठे शिक्षक, यहाँ तक कि धर्मत्यागियों के विचार रखनेवाले एक-दो लोग भी, पूरी कलीसिया को भ्रष्ट कर सकते हैं। इसलिए हमें धर्मत्याग के खिलाफ दृढ़ खड़े रहने की ज़रूरत है और कभी-भी दुष्ट के बहकावे में आकर सच्चाई से नहीं मुकरना चाहिए।—गलतियों 5:7-12; 2 यूहन्‍ना 8-11.

25. अगले लेख में किन कलीसियाओं के बारे में चर्चा की जाएगी जिन्हें मसीह के संदेश दिए गए थे?

25 महिमावान यीशु मसीह ने एशिया माइनर की सात कलीसियाओं में से तीन कलीसियाओं की जिस तरीके से सराहना की और उन्हें जो बेहतरीन सलाह दी, वह वाकई हमें सोचने पर मजबूर कर देता है! लेकिन पवित्र आत्मा के निर्देशन में यीशु को, बाकी चार कलीसियाओं को अभी-भी बहुत कुछ कहना है। अगले लेख में थुआतीरा, सरदीस, फिलेदिलफिया और लौदीकिया को दिए संदेश के बारे में चर्चा की जाएगी।

आप क्या जवाब देंगे?

• कलीसियाओं से कही मसीह की बातों पर हमें क्यों ध्यान देना चाहिए?

• कलीसिया में यहोवा के लिए पहले जैसा प्रेम दोबारा पैदा करने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

• यह कैसे कहा जा सकता है कि प्राचीन स्मुरना के मसीही गरीब होने के बावजूद सचमुच अमीर थे?

• पिरगमुन कलीसिया के हालात पर गौर करने के बाद, हमें धर्मत्यागियों के विचारों के बारे में कैसा नज़रिया रखना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 10 पर नक्शा]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

यूनान

एशिया माइनर

इफिसुस

स्मुरना

पिरगमुन

थुआतीरा

सरदीस

फिलेदिलफिया

लौदीकिया

[पेज 12 पर तसवीर]

“बड़ी भीड़” धरती पर फिरदौस का लुत्फ उठाएगी

[पेज 13 पर तसवीरें]

सताए जाने के बावजूद मसीही संसार पर विजयी होंगे