खुशी जिसकी कोई तुलना नहीं!
जीवन कहानी
खुशी जिसकी कोई तुलना नहीं!
रेजनल्ड वालवर्क की ज़ुबानी
“यहोवा के लिए की गयी पूरे समय की मिशनरी सेवा में हमें जो खुशी मिली, उसकी तुलना इस दुनिया की किसी भी चीज़ से नहीं की जा सकती!” मई 1994 में मेरी पत्नी की मौत के कुछ ही समय बाद, मुझे उसकी डायरी से यह छोटा-सा नोट मिला।
जब मैं, आइरीन के उन शब्दों के बारे सोचता हूँ, तो मुझे खुशियों भरे वो 37 साल याद आ जाते हैं जो हमने पेरू में मिशनरी सेवा में बिताए थे। हमारी शादी दिसंबर 1942 में हुई थी और तब से हम दोनों साथ-साथ अनमोल मसीही सेवा करते रहे और यहीं से अपनी कहानी की शुरूआत करना भी बिलकुल सही होगा।
आइरीन, इंग्लैंड के लिवर्पूल शहर में यहोवा की एक साक्षी के तौर पर पली-बढ़ी। उसकी दो बहने थीं, और पहले विश्वयुद्ध के दौरान उसके पिता की मौत हो गयी। फिर उसकी माँ ने विनटन फ्रेज़र नाम के एक आदमी से शादी कर ली, और उनका एक बेटा हुआ जिसका नाम सिड्नी था। दूसरा विश्वयुद्ध छिड़ने के कुछ समय पहले ही उनका पूरा परिवार बैंगोर, नॉर्थ वेल्स में जाकर बस गया, जहाँ 1939 में आइरीन का बपतिस्मा हुआ। इसके एक साल पहले सिड्नी का बपतिस्मा हुआ था, इसलिए दोनों ने एक-साथ वेल्स के उत्तरी तट के इलाकों में पायनियर सेवा की यानी उन दोनों ने पूरे समय का प्रचार काम किया। बैंगोर से कारनारवन तक के इलाकों में ऐन्गलसी द्वीप भी शामिल था।
उस वक्त मैं रंगकोर्न की कलीसिया में था। यह जगह लिवर्पूल से दक्षिण-पूर्वी दिशा में करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर थी। उस कलीसिया में मैं उस पद पर सेवा कर रहा था जिन्हें आज हम प्रिसाइडिंग ओवरसियर कहते हैं। एक सर्किट सम्मेलन में आइरीन ने मुझसे आकर पूछा कि क्या उसे प्रचार के लिए कुछ इलाका मिल सकता है, क्योंकि वह रंगकोर्न में अपनी शादी-शुदा बहन विरा के साथ रहने जा रही थी। अगले दो हफ्ते जब आइरीन हमारे साथ थी तो हम दोनों के बीच काफी अच्छी दोस्ती हो गयी। इसके बाद मैं कई बार उससे मिलने बैंगोर गया। एक हफ्ते के
अंत में, मैं कितना खुश था जब आइरीन ने मेरे शादी के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया!रविवार को घर लौटते ही मैं तुरंत शादी की तैयारियों में जुट गया, मगर मंगलवार को मुझे एक तार मिला। उसमें लिखा था: “मुझे माफ करना, मैं जानती हूँ कि यह तार पढ़कर आपको बहुत दुःख होगा। मैं, यह शादी नहीं कर सकती। मैं एक और पत्र भेज रहीं हूँ।” मुझे तो जैसे झटका लगा। आखिर कहाँ गलती हो गयी?
उसके अगले दिन ही मुझे आइरीन का पत्र मिला। उसने मुझे बताया की वह यॉर्कशायर के उपनगर हौर्सफोर्थ में हिल्डा पैजॆट के साथ पायनियर सेवा करने जा रही है। * उसने आगे बताया कि एक साल पहले उसने वादा किया था कि जहाँ भी प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत होगी, अगर उससे वहाँ जाने के लिए पूछा गया तो वह ज़रूर जाएगी। उसने लिखा: “यह मेरे लिए, यहोवा से मन्नत मानने के बराबर था और मुझे लगता है कि मुझे अपना यह वादा ज़रूर पूरा करना चाहिए क्योंकि यह मैंने आपको जानने से पहले किया था।” मैं बहुत दुःखी था मगर यहोवा के लिए उसकी वफादारी मुझे भा गयी और मैंने जवाब में एक तार भेजा: “तुम जाओ। मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगा।”
जब आइरीन यॉर्कशायर में थी तब उसे तीन महीने की कैद हो गयी थी क्योंकि उसने अपने मसीही सिद्धांतों की वजह से युद्ध को बढ़ावा देने की कोशिशों में हिस्सा लेने से इनकार किया था। मगर फिर अठारह महीने बाद यानी दिसंबर 1942 में हमने शादी कर ली।
मेरे बचपन के दिन
सन् 1919 में मेरी माँ ने स्टडीज़ इन द स्क्रिपचर्स का एक सॆट खरीदा। * मेरे पिता ने बिलकुल सही कहा था कि मेरी माँ ने इससे पहले कभी कोई किताब नहीं पढ़ी थी। मगर, फिर भी मेरी माँ ने इन खंडों को बाइबल के साथ ध्यान से अध्ययन करने की ठान ली। उसने ऐसा ही किया और सन् 1920 में बपतिस्मा लिया।
मेरी माँ हम चारों बच्चों को जिनमें मैं, मेरी दो बहनें ग्वेन और आइवी और मेरे भाई ऐलेक को सच्चाई में बड़ा कर सकीं क्योंकि पिता का नरम-स्वभाव होने की वजह से उन्होंने कभी मेरी माँ के किसी काम पर कोई पाबंदी नहीं लगायी। लिवर्पूल से स्टैनली रॉजर्स और दूसरे वफादार साक्षी बाइबल पर आधारित भाषण देने रंगकोर्न आए, जहाँ बहुत जल्द एक नयी कलीसिया बन गयी। हमारा परिवार, कलीसिया के साथ आध्यात्मिक रूप से फलने-फूलने लगा।
ग्वेन, चर्च ऑफ इंग्लैंड की स्थायी सदस्य बनने की क्लासों में जाती थी, मगर माँ के साथ मिलकर बाइबल का अध्ययन करना शुरू करने के बाद उसने इन क्लासों में जाना छोड़ दिया। तब वहाँ का पादरी, हमारे यहाँ पूछने आया कि ग्वेन अब क्लासों में क्यों नहीं आ रही। ग्वेन ने इतने सवाल पूछे कि वह उनका जवाब ठीक तरह से नहीं दे पाया। ग्वेन ने उससे प्रभु की प्रार्थना का अर्थ पूछा मगर वह नहीं बता पाया तब ग्वेन ने ही उसका मतलब उसे समझाया! आखिर में, उसने 1 कुरिन्थियों 10:21 का हवाला देते हुए साफ कह दिया कि अब से वह ‘दोनों मेज़ों के साझी’ नहीं हो सकती। हमारे घर से जाते वक्त पादरी ने कहा कि वह ग्वेन के लिए प्रार्थना करेगा और उसके सवालों का जवाब देने लौटेगा, मगर वह कभी नहीं लौटा। बपतिस्मे के बाद, ग्वेन जल्द ही पूरे समय की प्रचारक बन गयी।
बच्चे और जवानों की परवाह करने में हमारी कलीसिया एक अच्छी मिसाल थी। मुझे आज भी याद है जब मैं सात साल का था उस वक्त दूसरी कलीसिया से एक प्राचीन ने आकर एक भाषण दिया था। उसके बाद उस प्राचीन ने मुझसे बात की। मैंने उसे बताया कि मैं आजकल इब्राहीम के बारे में पढ़ रहा हूँ कि वह कैसे अपने बेटे, इसहाक की बलि चढ़ाने के लिए तैयार हुआ था। फिर उस प्राचीन ने मुझसे कहा: “अब प्लैटफॉर्म के किनारे खड़े होकर वह सब मुझे बताओ।” मैं तो मारे खुशी के उछल पड़ा जब पहली बार मैंने अपना “जन भाषण” पेश किया!
सन् 1931 में, 15 साल की उम्र में मेरा बपतिस्मा हुआ। उसी साल मेरी माँ चल बसी और मैंने स्कूल की पढ़ाई छोड़ दी ताकि अप्रेंटिस के तौर पर बिजली मिस्त्री का काम सीख सकूँ। सन् 1936 में रिकॉर्ड किए बाइबल के भाषणों को फोनोग्राफ के ज़रिए सड़कों पर सुनाया जाता था। एक बुज़ुर्ग बहन ने मेरे भाई को और मुझे इस काम में शामिल होने के लिए उकसाया। इसलिए ऐलेक और मैं साइकिल खरीदने लिवर्पूल गए। साइकिल के साथ हमने अलग से एक साइडकार (पहियों पर चलनेवाला डिब्बा) बनवायी जिसमें हम अपने फोनोग्राफ को ले जाते थे। उस साइडकार के पीछे, दो मीटर लंबे टेलीस्कोप जैसी नली पर एक लाउडस्पीकर लगाया जाता था। इस नली में कई हिस्से जुड़े होते थे जिसे खींचकर लंबा किया जा सकता था। मेकैनिक ने कहा कि उसने कभी-भी ऐसा यंत्र नहीं बनाया था। मगर वह अच्छी तरह काम
करता था! बड़े जोश के साथ हमने अपने पूरे इलाके में फोनोग्राफ के ज़रिए संदेश सुनाया। हम उस बुज़ुर्ग बहन के बहुत आभारी हैं जिसने हमारा उत्साह बढ़ाया, इसके अलावा हमें सेवा करने के जो खास सम्मान मिले उनके लिए भी हम बहुत शुक्रगुज़ार हैं।दूसरा विश्वयुद्ध—परीक्षा की घड़ी
जब विश्वयुद्ध छिड़ने के आसार नज़र आ रहे थे, तब मैं और स्टैनली रॉजर्स, लंदन के रॉयल अलबर्ट हॉल में सितंबर 11,1938 को दिए जानेवाले जन भाषण के बारे में घोषणा करने में लगे हुए थे। उस भाषण का विषय था, “वास्तविकता का सामना कीजिए।” फिर मैं इस भाषण की एक पुस्तिका और अगले साल छपी फासिस्टवाद या स्वतंत्रता, नाम की पुस्तिका बाँटने के काम में हिस्सा लेने लगा। दोनों पुस्तिकाओं में, हिटलर के अधीन जर्मनी की तानाशाही सरकार की महत्वाकांक्षाओं का परदाफाश किया गया था। अब तक मैं रंगकोर्न में प्रचार काम के लिए मशहूर हो गया था और इसके लिए लोग मेरी इज़्ज़त भी करते थे। दरअसल, मैं परमेश्वर के कामों में हरदम आगे रहता था इसलिए मेरे लिए यह आगे चलकर बहुत ही फायदेमंद रहा।
जिस कंपनी के लिए मैं काम कर रहा था उसे शहर की सीमा पर स्थित एक नए कारखाने में बिजली के तार लगाने का ठेका मिला था। जब मुझे पता चला कि उस कारखाने में युद्ध के लिए हाथियार बनाए जाएँगे तो मैंने वहाँ काम करने से साफ इनकार कर दिया। हालाँकि मेरे मालिकों को यह अच्छा नहीं लगा लेकिन मेरे फोरमैन ने मेरे पक्ष में बात की और मुझे दूसरा काम दिया। बाद में मुझे पता चला कि उसकी एक आंटी भी एक यहोवा की साक्षी थी।
मेरे साथ काम करनेवाले एक कर्मचारी ने मेरा हौसला बढ़ाते हुए कहा: “रेज तुमने बिलकुल वही किया जो बाइबल पर आधारित काम करनेवाले एक इंसान को करना चाहिए। फिर भी, मैं बहुत सावधान था क्योंकि मेरे साथ काम करनेवाले ज़्यादातर लोग मेरे लिए मुसीबत खड़ी करना चाहते थे।
जून 1940 में, लिवर्पूल की अदालत ने स्वीकार किया कि वह मसीही सिद्धांत के मुताबिक, युद्ध में भाग न लेनेवाले के तौर पर मेरा पंजीकरण करेगी। मगर एक शर्त पर कि मुझे बिजली मिस्त्री के तौर पर काम करते रहना होगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि इससे मुझे मसीही सेवा करते रहने में मदद मिली।
पूरे समय की सेवा में
जब युद्ध खत्म होनेवाला था, तो मैंने अपना काम छोड़कर अपनी पत्नी आइरीन के साथ पूरे समय की सेवा करने का फैसला किया। सन् 1946 में मैंने पाँच मीटर लंबा ट्रेलर-घर बनाया और अगले साल हमें, ग्लॉसेसटरशाइर के एक गाँव, ऐलवस्टन में प्रचार के लिए भेजा गया। इसके बाद हमने साईरनसेसटर और बाथ शहर में भी पायनियरिंग की। सन् 1951 में मुझे दक्षिणी वेल्स की कलीसियाओं में सफरी ओवरसियर के तौर पर दौरा करने का न्यौता मिला। मगर दो साल में ही हम मिशनरी सेवा की ट्रेनिंग के लिए वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड रवाना हो गए।
इस स्कूल की 21वीं क्लास न्यू यॉर्क के उत्तरी भाग, साउथ लैंसिंग में रखी गयी थी। हमारा ग्रेजुएशन सन् 1953 में न्यू यॉर्क शहर में आयोजित सम्मेलन में हुआ जिसका विषय था ‘नयी
दुनिया का समाज।’ ग्रेजुएशन के दिन तक हमें नहीं मालूम था कि मिशनरी के तौर पर हमें कहाँ भेजा जाएगा। जब हमें पता चला कि हमें पेरू भेजा जा रहा तो हम खुशी से फूले न समाए। क्यों? क्योंकि उस वक्त आइरीन का सौतेला भाई, सिड्नी फ्रेज़र और उसकी पत्नी मार्गरेट, गिलियड की 19वीं क्लास से ग्रेजुएशन होने के बाद लीमा के शाखा दफ्तर में सेवा कर रहे थे। उन्हें वहाँ एक साल से ज़्यादा हो गया था।वीज़ा तैयार होने तक, हमने ब्रुकलिन बेथेल में कुछ समय तक काम किया। मगर जल्द ही हम लीमा के लिए रवाना हो गए। हमें मिशनरी सेवा के लिए दस जगहों में से सबसे पहली जगह जहाँ भेजा गया वह थी कयाओ, जो पेरू का मुख्य बंदरगाह था और लीमा के ठीक पश्चिम की ओर स्थित था। हालाँकि हमने स्पैनिश भाषा की कुछ बुनियादी बातें सीख ली थीं, मगर तब तक मैं और आइरीन उस भाषा में बातचीत नहीं कर सकते थे। तो हम अपना काम कैसे कर पाते?
प्रचार में तकलीफें और उसके फायदे
गिलियड में हमें बताया गया था कि माँ अपने बच्चे को भाषा नहीं सिखाती है, बल्कि बच्चा, माँ को बोलते हुए सुनकर सीखता है। इसलिए हमें सलाह दी गयी थी: “तुरंत प्रचार काम की शुरूआत कीजिए और लोगों से भाषा सीखिए। वे आपको सिखाएँगे।” मैं वहाँ की नयी भाषा को समझने लगा और बात करने में मुझे जो भी दिक्कत आती थी उसे सुलझाने लगा। हमारे पहुँचने के दो हफ्ते बाद ही जब मुझे कयाओ कलीसिया का प्रिसाइडिंग ओवरसियर नियुक्त किया गया तो आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि मुझे कैसा महसूस हुआ होगा! मैं सिड्नी फ्रेज़र को मिलने गया, उसने भी मुझे वही सलाह दी जो हमें गिलियड में दी गयी थी कि कलीसिया में और अपने इलाके के लोगों से ज़्यादा-से-ज़्यादा मेल-जोल रखिए। मैंने इस सलाह पर अमल करने की ठान ली।
एक शनिवार की सुबह, मैं एक बढ़ई से उसकी दुकान पर मिला। उसने कहा: “मैं अपना काम करता रहूँगा मगर आप कृपया बैठकर मुझसे बात कीजिए।” मैंने उससे कहा, ठीक है मैं आपसे बात करूँगा मगर मेरी एक शर्त है: “जब भी मैं भाषा में कोई गलती करूँ तो कृपया आप मुझे सही कीजिए। मैं बिलकुल बुरा नहीं मानूँगा।” वह हँस पड़ा और मेरी गुज़ारिश मान ली। मैं हफ्ते में दो बार उसके पास जाता था और मैं समझ गया कि मुझसे जो करने के लिए कहा गया था, वह नयी भाषा से वाकिफ होने का एक बढ़िया तरीका है।
मिशनरी सेवा के लिए हमें दूसरी जगह भेजा गया, उस शहर का नाम था ईका। इत्तफाक से वहाँ भी, मेरी मुलाकात एक बढ़ई से हुई और मैंने उसे समझाया कि कयाओ में जो बढ़ई था उसके साथ मैंने क्या इंतज़ाम किया था। वह भी मुझे वैसी ही मदद करने के लिए राज़ी हो गया। इस वजह से मेरी स्पैनिश भाषा काफी सुधरती गयी। मगर अच्छी तरह बोलने में मुझे तीन साल लग गए। यह व्यक्ति हमेशा व्यस्त रहता था। मगर मैं वचनों को पढ़कर उनका मतलब समझाने के ज़रिए उसके साथ बाइबल अध्ययन कर लेता था। एक हफ्ते जब मैं उसे मिलने गया तो उसके मालिक ने कहा कि वह लीमा चला गया है जहाँ उसे एक नयी नौकरी मिल गयी है। कुछ समय बाद, जब मैं और आइरीन एक अधिवेशन के लिए लीमा गए तो एक बार फिर हमारी मुलाकात इस व्यक्ति से हुई। जब हमें इस बात का पता चला, तो हमें बहुत खुशी हुई कि उसने वहाँ के साक्षियों से संपर्क किया ताकि वह अपना अध्ययन जारी रख सके और अब वह और उसका पूरा परिवार, यहोवा के समर्पित सेवक बन गए हैं!
एक कलीसिया में, हमें पता चला कि एक जवान जोड़ा बिना शादी किए एक-साथ रहता है, मगर उनका बपतिस्मा हो चुका है। जब हमने इस बारे में उन्हें बाइबल के सिद्धांत बताए तो उन्होंने अपनी शादी को कानूनी तौर पंजीकृत करने का फैसला किया। ऐसा करके वे बपतिस्मा पाए हुए साक्षी होने के योग्य बन जाते। इसलिए मैंने उनकी शादी पंजीकृत करवाने के लिए उन्हें टाउन हॉल ले जाने का इंतज़ाम किया। मगर एक समस्या खड़ी हो गयी, उनके चार बच्चे थे और उनमें से किसी का भी पंजीकरण नहीं हुआ था जो कि एक कानूनी माँग थी। स्वाभाविक है कि अब हम इस सोच में पड़े थे कि न जाने मेयर क्या कार्यवाही करेगा। मगर मेयर ने कहा: “तुम्हारे दोस्त, यहोवा के साक्षी वाकई अच्छे लोग हैं और क्योंकि उन्होंने यह पक्का इंतज़ाम किया है कि तुम कानूनी तौर पर शादी करो, इसलिए उनकी बदौलत हर बच्चे के लिए जो कोर्ट ऑडर जारी किया जाना चाहिए, मैं वह नहीं करूँगा। और उनके पंजीकरण के लिए मैं एक पाई नहीं लूँगा।” हमने मेयर का बहुत शुक्रिया अदा किया क्योंकि इस जवान जोड़े का परिवार बहुत गरीब था और किसी भी तरह का ज़ुर्माना भरना, उनके लिए एक भारी बोझ बन सकता था!
बाद में, ब्रुकलिन में यहोवा के साक्षियों के मुख्यालय से एलबर्ट डी. श्रोडर हमसे मिलने आए, और उन्होंने लीमा के दूसरे भाग में मिशनरियों के लिए एक नया घर बनाने का सुझाव दिया। तो आइरीन और मैं साथ में अमरीका से दो और बहनें जिनका नाम था फ्रांसेस और एलिज़बेथ गुड और कनाडा से एक शादी-शुदा जोड़ा, हम सब सान बोरहा ज़िले में रहने लगे। दो-तीन सालों में ही हमने एक और बढ़ती हुई कलीसिया को स्थापित किया।
मध्य पहाड़ी इलाकों में 3,000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित वांकाईओ शहर में सेवा करते वक्त, हमने वहाँ की कलीसिया के 80 साक्षियों के साथ संगति की। वहाँ मैं उस देश में बननेवाले दूसरे किंगडम हॉल के निमार्ण काम में शामिल था। मुझे यहोवा के साक्षियों के कानूनी प्रतिनिधि के तौर पर नियुक्त किया गया, क्योंकि हमने जो ज़मीन खरीदी थी, उस पर हमारा कानूनी हक साबित करने के लिए हमें तीन बार अदालत जाना पड़ा। ऐसी कार्यवाहियों के साथ उन शुरूआती सालों में कई वफादार मिशनरियों के बड़े पैमाने पर चेला बनाने के काम ने ऐसी ठोस बुनियाद डाली, जिसकी वजह से आज पेरू में बहुत ही अच्छी बढ़ोतरी हुई है। सन् 1953 में साक्षियों की संख्या 283 थी और वह बढ़कर आज 83,000 से भी ज़्यादा हो गयी है।
एक दुःख-भरी रवानगी
हम जितने भी मिशनरी घरों में रहे, वहाँ के दूसरे सभी मिशनरियों के साथ हमने बढ़िया संगति का भरपूर आनंद लिया। ज़्यादातर घरों में, मुझे होम ओवरसियर के तौर पर सेवा करने का सम्मान मिला। हर सोमवार की सुबह हम सब इकट्ठा होकर उस हफ्ते में किए जानेवाले कामों और घर की देख-भाल के कामों को बाँटने के बारे में बात करते। हम सभी को इस बात का एहसास था कि प्रचार काम करना सबसे ज़रूरी था और इसी को ध्यान में रखते हुए हम सब एक-जुट होकर काम करते थे। जब मैं इस बात को याद करता हूँ तो मुझे खुशी होती है कि हमारे किसी भी घर में कभी कोई बड़ा झगड़ा नहीं हुआ।
आखिर में जहाँ हमें प्रचार के लिए भेजा गया था वह लीमा शहर का उपनगर ब्रेन्या था। यह एक प्यारी कलीसिया थी जिसमें 70 साक्षी थे, और इसकी संख्या जब 100 से ज़्यादा हो गयी तो एक और कलीसिया पालोमीन्या स्थापित की गयी। इसी वक्त आइरीन बीमार पड़ गयी। मैंने पहले गौर किया कि वह जो कहती थी कभी-कभी वह उसे याद नहीं रहता, और कई बार वह घर का रास्ता भूल जाती थी। हालाँकि उसका अच्छे-से इलाज करवाया गया, मगर धीरे-धीरे उसकी हालत बिगड़ती गयी।
दुःख की बात है कि सन् 1990 में मुझे वापस इंग्लैंड लौटने का इंतज़ाम करना पड़ा। जहाँ मेरी बहन आइवी ने हमें अपने घर में रहने की जगह दी। उसके चार साल बाद, 81 साल की उम्र में आइरीन चल बसी। मैं अब भी पूरे समय की सेवा कर रहा हूँ और मेरे अपने ही शहर में तीन कलीसियाएँ हैं जिनमें से एक कलीसिया में मैं प्राचीन के तौर पर सेवा कर रहा हूँ। कभी-कभार मैं मैनचैस्टर जाकर वहाँ के स्पैनिश ग्रूप के भाइयों का हौसला बढ़ाता हूँ।
हाल ही में मेरे साथ, दिल छू जानेवाला अनुभव हुआ जिसकी शुरूआत कई सालों पहले हुई थी, जब मैं घर-घर जाकर अपने फोनोग्राफ पर पाँच मिनट के भाषण बजाया करता था। मुझे अच्छी तरह याद है कि एक घर में स्कूल जानेवाली लड़की दरवाज़े पर अपनी माँ के पीछे खड़ी होकर, उस संदेश को सुन रही थी।
आखिर में यह लड़की कनाडा जाकर बस गयी। मेरी एक दोस्त जो आज भी रंगकोर्न में रहती है और अब एक साक्षी है, उस लड़की के साथ उसने पत्र के ज़रिए संपर्क रखा। उस लड़की ने हाल में लिखा कि दो साक्षी उससे मिलने आयी थीं और उन्होंने जो बातें कहीं, उससे अचानक वह बातें याद आयीं जो उसने फोनोग्राफ पर पाँच मिनट के भाषण में सुनी थीं। वह जान गयी कि यही सच्चाई है और अब वह यहोवा की एक समर्पित सेवक है। उसने चिट्ठी में उस जवान लड़के को भी धन्यवाद देने के लिए कहा जो उसकी माँ के घर पर 60 साल से भी पहले आया था! सचमुच हम नहीं कह सकते कि सच्चाई के बीज कहाँ जड़ पकड़ेंगे और बढ़ेंगे।—सभोपदेशक 11:6.
जी हाँ, मैं यहोवा की अनमोल सेवा में बितायी ज़िंदगी के बारे में एहसान-भरे दिल से याद करता हूँ। सन् 1931 में जब से मेरा बपतिस्मा हुआ है, मैंने कभी-भी यहोवा के लोगों के एक भी सम्मेलन में जाना नहीं छोड़ा है। हालाँकि, हमारे खुद के अपने बच्चे नहीं हुए, मगर मुझे इस बात की खुशी है कि आध्यात्मिक तौर पर मेरे 150 बेटे-बेटियाँ हैं। सब-के-सब हमारे स्वर्गीय पिता, यहोवा की सेवा कर रहे हैं। जैसा मेरी प्यारी पत्नी ने ज़ाहिर किया, हमारी सेवाओं के खास अवसरों की वजह से वाकई हमें ऐसी खुशी मिली जिसकी कोई तुलना नहीं!
[फुटनोट]
^ पैरा. 9 “अपने माता-पिता के पदचिन्हों पर चलना,” हिल्डा पैजॆट की जीवन कहानी अक्टूबर 1, 1995 की प्रहरीदुर्ग, पेज 19-24 में प्रकाशित हुई थी।
^ पैरा. 12 इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।
[पेज 24 पर तसवीर]
उन्नीसवीं सदी की शुरूआत में मेरी माँ
[पेज 24, 25 पर तसवीर]
बायीं: 1940, इंग्लैंड के लीड्स शहर में हिल्डा पैजॆट, मैं, आइरीन और जॉय्स राओली
[पेज 25 पर तसवीर]
ऊपर: मैं और आइरीन हमारे ट्रेलर घर के सामने
[पेज 27 पर तसवीर]
सन् 1952, कार्डिफ, वेल्स में जन भाषण का ऐलान करते हुए