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“मत डरो, और तुम्हारा मन कच्चा न हो”

“मत डरो, और तुम्हारा मन कच्चा न हो”

“मत डरो, और तुम्हारा मन कच्चा न हो”

“मत डरो, और तुम्हारा मन कच्चा न हो; . . . यहोवा तुम्हारे साथ रहेगा।”—2 इतिहास 20:17.

1. आतंकवाद का नाम सुनते ही लोगों पर कैसा असर होता है और उनका डरना क्यों ताज्जुब की बात नहीं है?

आतंकवाद! यह एक ऐसा शब्द है जिसे सुनते ही लोगों के दिल में डर समा जाता है। वे खुद को असुरक्षित और बेसहारा महसूस करने लगते हैं। उनमें भय, दुःख और क्रोध जैसी भावनाएँ पैदा हो जाती हैं। और बहुत-से लोगों को डर है कि यह समस्या कई सालों तक खतरा बनकर मँडराती रहेगी। उनका ऐसा डरना ताज्जुब की बात नहीं है क्योंकि कुछ देश, अलग-अलग किस्म के आतंकवाद को पूरी तरह मिटाने के लिए सालों से कोशिश कर रहे हैं मगर नाकाम रहे हैं।

2. आतंकवाद के बारे में यहोवा के साक्षियों का क्या विश्‍वास है और इससे क्या सवाल उठते हैं?

2 मगर सच तो यह है कि आतंकवाद का अंत ज़रूर होगा और ऐसा मानने की ठोस वजह भी है। इस मामले में खासकर यहोवा के साक्षियों का विश्‍वास गौर करने लायक है, जो आज 234 देशों और इलाकों में पूरे जोश से प्रचार कर रहे हैं। वे यह सोचकर नहीं डरते कि आतंकवाद कभी खत्म नहीं होगा बल्कि उन्हें पक्का यकीन है कि यह समस्या दूर कर दी जाएगी और वह भी बहुत जल्द। मगर सवाल यह है कि क्या उनकी तरह यह मानना सही होगा कि आतंकवाद मिटा दिया जाएगा? कौन इस समस्या को जड़ से मिटा सकता है और कैसे? यहोवा के साक्षी क्यों इस समस्या के दूर होने की उम्मीद रखते हैं, इस बारे में जाँचना बिलकुल सही है, क्योंकि हम सभी पर किसी-न-किसी तरह की हिंसा का असर हुआ होगा।

3. किन वजहों से आज लोग दहशत में हैं और हमारे समय के बारे में पहले से क्या बताया गया था?

3 आज लोग कई वजहों से दहशत में हैं। ज़रा उन बेहिसाब लोगों के बारे में सोचिए जो ढलती उम्र की वजह से खुद की देखभाल नहीं कर पा रहे हैं और जो लाइलाज बीमारियों की वजह से कमज़ोर होते जा रहे हैं। ऐसे परिवारों को याद कीजिए जिन्हें ज़िंदगी की बुनियादी चीज़ें जुटाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। और आज ज़िंदगी का भी कोई भरोसा नहीं रह गया है! अचानक किसी दुर्घटना या विपत्ति से कब किसकी मौत हो जाए, इसका कोई ठिकाना नहीं और ऐसे हादसों से पल भर में ही हमारी पूरी दुनिया उजड़ सकती है। ऐसे डर और चिंता के अलावा, आपसी मत-भेद और ज़िंदगी की नाकामियों और निराश करनेवाले हालात की वजह से आज दुनिया का बिलकुल वैसा ही हाल है, जैसा प्रेरित पौलुस ने बताया था: ‘यह जान रख, कि अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे। क्योंकि मनुष्य अपस्वार्थी, मयारहित, क्षमारहित, दोष लगानेवाले, असंयमी, कठोर और भले के बैरी होंगे।’—2 तीमुथियुस 3:1-3.

4. दूसरे तीमुथियुस 3:1-3 में बुरे हालात का ब्यौरा देने के साथ-साथ कौन-सी अच्छी बात बतायी गयी है?

4 हालाँकि यह आयत बताती है कि दुनिया की हालत बिलकुल अंधकारमय होगी, मगर यह हमारे दिलों में उम्मीद भी जगाती है। ध्यान दीजिए, आयत बताती है कि ऐसा कठिन समय, शैतान के मौजूदा दुष्ट संसार के “अन्तिम दिनों में” आएगा। यह दिखाता है कि दुःख-तकलीफों से हमारा छुटकारा बहुत करीब है और जल्द ही इस बुरे संसार की जगह परमेश्‍वर का सिद्ध राज्य अपना शासन शुरू करेगा। यह वही राज्य है जिसके लिए यीशु ने अपने चेलों को प्रार्थना करना सिखाया था। (मत्ती 6:9, 10) यह राज्य, परमेश्‍वर की स्वर्गीय सरकार है जो ‘अनन्तकाल तक नहीं टूटेगी।’ इसके बजाय जैसे भविष्यवक्‍ता दानिय्येल कहता है, ‘वह उन सब [इंसानी] राज्यों को चूर चूर करेगी, और उनका अन्त कर डालेगी; और वह सदा स्थिर रहेगी।’—दानिय्येल 2:44.

मसीही निष्पक्षता, आतंकवाद के बिलकुल खिलाफ

5. आतंकवाद का खतरा देखकर हाल ही में राष्ट्रों ने क्या किया?

5 पिछले कई दशकों से, आतंकवाद ने हज़ारों लोगों की जान ली है। सितंबर 11, 2001 को न्यू यॉर्क शहर और वॉशिंगटन, डी.सी. पर हुए हमलों के बाद से पूरी दुनिया को आतंकवाद का खतरा महसूस होने लगा है। यह देखते हुए कि आतंकवाद कितनी बड़ी समस्या बन गयी है और यह कैसे पूरी दुनिया पर कहर ढा रही है, सभी राष्ट्र उसके खिलाफ लड़ने के लिए एक-जुट हो गए। उदाहरण के लिए, समाचार रिपोर्टों के मुताबिक, दिसंबर 4, 2001 को “पचपन यूरोपी, उत्तर अमरीकी और मध्य एशियाई देशों के विदेश मंत्रियों ने सर्वसम्मति से एक योजना को स्वीकार किया।” यह योजना इसलिए तैयार की गयी थी ताकि आतंकवाद को मिटाने के लिए वे संगठित होकर कार्यवाही करें। अमरीका के एक उच्च अधिकारी ने मंत्रियों के उठाए इस कदम की तारीफ करते हुए कहा कि इससे आतंकवाद के खिलाफ जंग में “नए सिरे से तेज़ी” आएगी। और देखते-ही-देखते, लाखों लोग एक ऐसे संघर्ष में शामिल हो गए जिसे द न्यू यॉर्क टाइम्स मैगज़ीन “एक महायुद्ध की शुरूआत कहती है।” आतंकवाद को मिटाने की ये कोशिशें कितनी सफल होंगी, यह तो वक्‍त ही बताएगा। मगर फिलहाल, ऐसी लड़ाई के बुरे अंजामों के बारे में सोचकर बहुत-से लोगों में डर और चिंता पैदा हो गयी है। लेकिन यहोवा पर भरोसा रखनेवालों में यह डर बिलकुल नहीं है।

6. (क) कभी-कभी लोग, यहोवा के साक्षियों की मसीही निष्पक्षता को क्यों समझ नहीं पाते? (ख) राजनीति के संबंध में यीशु ने अपने चेलों के लिए कौन-सी मिसाल कायम की?

6 यहोवा के साक्षी, राजनीति में निष्पक्ष रहने के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते हैं। साक्षियों की इस निष्पक्षता को बहुत-से लोग, शांति के वक्‍त तो मंज़ूर करते हैं मगर नाज़ुक हालात के पैदा होने पर वे एतराज़ करने लगते हैं। मसलन, जब किसी देश में युद्ध छिड़ जाता है तो भय और चिंता की वजह से लोगों में देश-भक्‍ति की भावना ज़ोर पकड़ने लगती है। ऐसे वक्‍त पर जब साक्षी, बाकियों के साथ राष्ट्रीय आंदोलनों में हिस्सा नहीं लेते तो लोग उनके इस अटल फैसले को समझना मुश्‍किल पाते हैं। मगर, सच्चे मसीही जानते हैं कि उन्हें यीशु की इस आज्ञा को मानना चाहिए कि वे ‘संसार के न’ हों। (यूहन्‍ना 15:19; 17:14-16; 18:36; याकूब 4:4) इस आज्ञा को मानने के लिए ज़रूरी है कि वे राजनीतिक या सामाजिक मामलों में किसी का पक्ष न लें। इस मामले में खुद यीशु ने एक मिसाल कायम की। वह चाहता तो अपने ज़माने में दुनिया की हालत को काफी हद तक सुधार सकता था क्योंकि उसमें सिद्ध बुद्धि और लाजवाब काबिलीयतें थीं। मगर उसने ऐसा नहीं किया, उसने राजनीति में हिस्सा लेने से साफ इनकार कर दिया। उसकी सेवा की शुरूआत में, जब शैतान ने उसके सामने जगत के सभी राज्यों पर अधिकार देने का प्रस्ताव रखा तो उसने ठुकरा दिया। बाद में, जब लोगों ने उसकी मरज़ी जाने बगैर उसे राजा बनाना चाहा, तो उसे हरगिज़ मंज़ूर नहीं था, वह उनसे दूर चला गया।—मत्ती 4:8-10; यूहन्‍ना 6:14, 15.

7, 8. (क) राजनीति में साक्षियों के निष्पक्ष रहने का क्या मतलब नहीं है और ऐसा क्यों कहा जा सकता है? (ख) रोमियों 13:1, 2 में किस तरह, सरकारों के खिलाफ हिंसा के कामों में शरीक होने की निंदा की गयी है?

7 यहोवा के साक्षियों की निष्पक्षता का यह मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि वे हिंसा के कामों को बढ़ावा देते हैं या उन्हें गलत नहीं ठहराते। अगर वे ऐसे कामों को मंज़ूरी दें, तो उनका यह दावा गलत होगा कि वे ‘प्रेम और शान्ति के दाता परमेश्‍वर’ के सेवक हैं। (2 कुरिन्थियों 13:11) उन्होंने हिंसा के बारे में यहोवा का नज़रिया जाना है। भजनहार ने लिखा: “यहोवा धर्मी को परखता है, परन्तु वह उन से जो दुष्ट हैं और उपद्रव से प्रीति रखते हैं अपनी आत्मा में घृणा करता है।” (भजन 11:5) साक्षी, यीशु की इस बात से भी वाकिफ हैं जो उसने प्रेरित पतरस से कही थी: “अपनी तलवार काठी में रख ले क्योंकि जो तलवार चलाते हैं, वे सब तलवार से नाश किए जाएंगे।”—मत्ती 26:52.

8 इतिहास साफ-साफ दिखाता है कि झूठे मसीहियों ने अकसर “तलवार” चलायी है, मगर यहोवा के साक्षियों ने ऐसा कभी नहीं किया है। वे ऐसे हर काम से दूर रहते हैं। साक्षी, रोमियों 13:1,2 में दर्ज़ इस आज्ञा को वफादारी से मानते हैं: “हर एक व्यक्‍ति प्रधान अधिकारियों [सरकारी शासकों] के आधीन रहे; क्योंकि कोई अधिकार ऐसा नहीं, जो परमेश्‍वर की ओर से न हो; और जो अधिकार हैं, वे परमेश्‍वर के ठहराए हुए हैं। इस से जो कोई अधिकार का विरोध करता है, वह परमेश्‍वर की विधि का साम्हना करता है, और साम्हना करनेवाले दण्ड पाएंगे।”

9. किन दो तरीकों से यहोवा के साक्षी आतंकवाद के खिलाफ लड़ते हैं?

9 लेकिन यह देखते हुए कि आतंकवाद इतनी तबाही मचा रहा है, क्या यहोवा के साक्षियों को भी इसे मिटाने के लिए कुछ कार्यवाही नहीं करनी चाहिए? बेशक उन्हें करनी चाहिए और वे कर भी रहे हैं। सबसे पहले तो वे खुद हर तरह के आतंकवादी कामों से दूर रहते हैं। इसके अलावा, वे लोगों को मसीही उसूल सिखाते हैं जिन पर चलने से वे किसी भी तरह की हिंसा करना छोड़ देंगे। * पिछले साल, साक्षियों ने लोगों को मसीही जीवन के बारे में सिखाने में 1,20,23,81,302 घंटे बिताए। उनकी यह सारी मेहनत बेकार नहीं गयी क्योंकि 2,65,469 लोगों ने यहोवा के साक्षियों के तौर पर बपतिस्मा लिया और इस तरह सरेआम ज़ाहिर किया कि वे हिंसा से पूरी तरह नफरत करते हैं।

10. इस संसार से हिंसा के मिटाए जाने के बारे में क्या कहा जा सकता है?

10 इसके अलावा, यहोवा के साक्षी जानते हैं कि वे अपने बलबूते पर कभी बुराई को नहीं मिटा सकते। उनका पूरा भरोसा उसी पर है जो बुराई को मिटाने की ताकत रखता है। वह है, यहोवा परमेश्‍वर। (भजन 83:18) इंसान चाहे कितने ही नेक इरादों से कोशिश करें, मगर वे कभी हिंसा को नहीं मिटा सकते। ईश्‍वर-प्रेरणा से बाइबल के एक लेखक ने आज के इन “अन्तिम दिनों” के बारे में हमें चेतावनी दी और कहा: “दुष्ट, और बहकानेवाले धोखा देते हुए, और धोखा खाते हुए, बिगड़ते चले जाएंगे।” (2 तीमुथियुस 3:1, 13) इस आयत के मुताबिक, इंसान बुराई के खिलाफ जंग में कभी नहीं जीत सकते। लेकिन जहाँ तक यहोवा की बात है, हम उस पर भरोसा रख सकते हैं कि वह हिंसा को जड़ से मिटा देगा।—भजन 37:1, 2, 9-11; नीतिवचन 24:19, 20; यशायाह 60:18.

जल्द होनेवाले हमले के बावजूद निडर

11. यहोवा ने हिंसा को मिटाने के लिए अब तक कौन-से कदम उठाए हैं?

11 शांति का परमेश्‍वर यहोवा, हिंसा से नफरत करता है। इसीलिए उसने हिंसा की असल जड़, शैतान का नाश करने के लिए कदम उठाए हैं। दरअसल, यहोवा ने प्रधान स्वर्गदूत, मीकाईल यानी उसके ठहराए नए राजा, मसीह यीशु के हाथों शैतान को हार का मुँह दिखा दिया है। इसका वर्णन करते हुए बाइबल कहती है: “स्वर्ग पर लड़ाई हुई, मीकाईल और उसके स्वर्गदूत अजगर से लड़ने को निकले, और अजगर और उसके दूत उस से लड़े। परन्तु प्रबल न हुए, और स्वर्ग में उन के लिये फिर जगह न रही। और वह बड़ा अजगर अर्थात्‌ वही पुराना सांप, जो इब्‌लीस और शैतान कहलाता है, और सारे संसार का भरमानेवाला है, पृथ्वी पर गिरा दिया गया; और उसके दूत उसके साथ गिरा दिए गए।”—प्रकाशितवाक्य 12:7-9.

12, 13. (क) सन्‌ 1914 के बारे में कौन-सी बात खास है? (ख) परमेश्‍वर के राज्य की पैरवी करनेवालों के बारे में यहेजकेल की भविष्यवाणी क्या कहती है?

12 बाइबल में बताए घटनाओं के क्रम और दुनिया में पैदा हुए हालात से साबित होता है कि स्वर्ग में वह युद्ध सन्‌ 1914 में हुआ था। तब से दुनिया के हालात बदतर होते गए हैं। इसकी वजह बताते हुए प्रकाशितवाक्य 12:12 कहता है: “इस कारण, हे स्वर्गो, और उन में के रहनेवालो मगन हो; हे पृथ्वी, और समुद्र, तुम पर हाय! क्योंकि शैतान बड़े क्रोध के साथ तुम्हारे पास उतर आया है; क्योंकि जानता है, कि उसका थोड़ा ही समय और बाकी है।”

13 तो हम समझ सकते हैं कि शैतान का क्रोध खासकर परमेश्‍वर के अभिषिक्‍त उपासकों और उनके साथी, ‘अन्य भेड़ों’ पर क्यों भड़का हुआ है। (यूहन्‍ना 10:16, NW; प्रकाशितवाक्य 12:17) जल्द ही यह विरोध अपनी चरम-सीमा पर पहुँचेगा जब इब्‌लीस उन सभी पर चौतरफा हमला करेगा जो परमेश्‍वर के स्थापित राज्य की पैरवी करते और उस पर भरोसा रखते हैं। यहेजकेल, अध्याय 38 में इस ज़बरदस्त हमले को “मागोग देश के गोग” का हमला कहा गया है।

14. बीते समय में यहोवा के साक्षियों की किस तरह हिफाज़त की गयी थी मगर क्या उनके साथ हमेशा ऐसा होगा?

14 जब से शैतान को स्वर्ग से खदेड़ दिया गया है, तब से अकसर कुछ राजनीतिक तत्वों ने उसके हमले से परमेश्‍वर के लोगों की हिफाज़त की है, जैसा कि प्रकाशितवाक्य 12:15,16 में लाक्षणिक शब्दों में बताया गया है। लेकिन, बाइबल बताती है कि यहोवा पर भरोसा रखनेवालों पर जब शैतान अपना आखिरी हमला करेगा, तब कोई भी इंसानी संगठन उनकी रक्षा नहीं करेगा। क्या इस वजह से मसीहियों को अपना मन कच्चा करना चाहिए? बिलकुल नहीं!

15, 16. (क) यहोशापात के दिनों में यहोवा ने अपनी प्रजा की हिम्मत बँधाते हुए जो कहा, उससे मसीहियों को कैसी आशा मिलती है? (ख) यहोशापात और उसकी प्रजा ने आज के यहोवा के सेवकों के लिए कौन-सी मिसाल कायम की?

15 उस वक्‍त परमेश्‍वर ज़रूर अपने लोगों की रक्षा करेगा, ठीक जैसे उसने राजा यहोशापात के दिनों में, उसका प्रतिनिधित्व करनेवाली जाति की रक्षा की थी। हम पढ़ते हैं: “हे सब यहूदियो, हे यरूशलेम के रहनेवालो, हे राजा यहोशापात, तुम सब ध्यान दो; यहोवा तुम से यों कहता है, तुम इस बड़ी भीड़ से मत डरो और तुम्हारा मन कच्चा न हो; क्योंकि युद्ध तुम्हारा नहीं, परमेश्‍वर का है। . . . इस लड़ाई में तुम्हें लड़ना न होगा; हे यहूदा, और हे यरूशलेम, ठहरे रहना, और खड़े रहकर यहोवा की ओर से अपना बचाव देखना। मत डरो, और तुम्हारा मन कच्चा न हो; कल उनका साम्हना करने को चलना और यहोवा तुम्हारे साथ रहेगा।”—2 इतिहास 20:15-17.

16 यहूदा के लोगों को विश्‍वास दिलाया गया था कि उन्हें लड़ने की ज़रूरत नहीं होगी। उसी तरह भविष्य में जब परमेश्‍वर के लोगों पर मागोग देश का गोग हमला करेगा, तब वे भी अपने बचाव के लिए हथियार नहीं उठाएँगे। इसके बजाय वे ‘खड़े रहकर यहोवा की ओर से अपना बचाव देखेंगे।’ बेशक, खड़े रहने का मतलब यह नहीं कि वे बस हाथ-पर-हाथ रखकर देखते रहेंगे। यहोशापात के दिनों में भी परमेश्‍वर के लोग बस चुपचाप खड़े नहीं थे। उन्होंने क्या किया, इसके बारे में हम पढ़ते हैं: “तब यहोशापात भूमि की ओर मुंह करके झुका और सब यहूदियों और यरूशलेम के निवासियों ने यहोवा के साम्हने गिरके यहोवा को दण्डवत किया। . . . तब [यहोशापात ने] प्रजा के साथ सम्मति करके कितनों को ठहराया, जो कि पवित्रता से शोभायमान होकर हथियारबन्दों के आगे आगे चलते हुए यहोवा के गीत गाएं, और यह कहते हुए उसकी स्तुति करें, कि यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि उसकी करुणा सदा की है।” (2 इतिहास 20:18-21) जी हाँ, दुश्‍मन के हमले का सामना करते वक्‍त भी इस्राएली, यहोवा की जय-जयकार करते रहे। जब गोग, यहोवा के साक्षियों पर हमला करेगा तब वे उन्हीं की मिसाल पर चलेंगे।

17, 18. (क) आज यहोवा के साक्षियों ने कैसे दिखाया है कि वे गोग के हमले का सामना करने के लिए डटकर तैयार हैं? (ख) हाल ही में मसीही जवानों को क्या चितौनी दी गयी?

17 गोग का हमला होने तक और उस हमले के शुरू होने के बाद भी, यहोवा के साक्षी परमेश्‍वर के राज्य की पैरवी करते रहेंगे। वे हिम्मत और हिफाज़त पाने के लिए अपनी कलीसियाओं के साथ संगति करना जारी रखेंगे, जिनकी गिनती आज 94,600 से ज़्यादा है। (यशायाह 26:20) तो आज निडरता के साथ यहोवा की स्तुति करने का क्या ही बढ़िया मौका है! जी हाँ, यह देखते हुए कि गोग का हमला बहुत जल्द होनेवाला है, यहोवा के लोग डर के मारे पीछे नहीं हटते, बल्कि उनमें और भी जोश भर आया है कि यहोवा की स्तुति करने में वे अपना भरसक करते रहें।—भजन 146:2.

18 साक्षियों की इस हिम्मत की एक बढ़िया मिसाल यह है कि संसार भर में रहनेवाले हज़ारों जवानों ने पूरे समय की सेवा शुरू की है। ज़िंदगी को इस तरह इस्तेमाल करने में कितनी अक्लमंदी है, इसे ज़ाहिर करने के लिए सन्‌ 2002 के ज़िला अधिवेशनों में यह ट्रैक्ट रिलीज़ किया गया: नौजवानो—आप अपनी ज़िंदगी का क्या करेंगे? समय-समय पर दी जानेवाली इन चितौनियों के लिए, छोटे-बड़े सभी मसीही एहसानमंद हैं।—भजन 119:14, 24, 99, 119, 129, 146.

19, 20. (क) मसीहियों को डरने या अपना मन कच्चा करने की ज़रूरत क्यों नहीं है? (ख) अगले अध्ययन लेख से क्या फायदा होगा?

19 संसार के हालात चाहे जैसे भी हों, मसीहियों को डरना या अपना मन कच्चा नहीं करना चाहिए। वे जानते हैं कि यहोवा का राज्य, जल्द ही हर किस्म की हिंसा का नामोनिशान मिटा देगा। उन्हें इस बात से भी सांत्वना मिलती है कि पुनरुत्थान से उन अनगिनत लोगों को दोबारा जीवन मिलेगा जो हिंसा की वारदातों में मारे गए हैं। पुनरुत्थान पाने के बाद, कुछ लोगों को पहली बार यहोवा के बारे में सीखने का मौका मिलेगा तो दूसरे, यहोवा के समर्पित लोगों के नाते अपनी सेवा जारी रख पाएँगे।—प्रेरितों 24:15.

20 सच्चे मसीही होने की वजह से हम समझते हैं कि मसीही निष्पक्षता बनाए रखना कितना ज़रूरी है और हमने ऐसा करने की ठान ली है। हम उस शानदार दिन को देखने की आशा अपने दिल में संजोए हुए हैं जब हम ‘खड़े रहकर यहोवा की ओर से अपना बचाव देखेंगे।’ हमारे इस विश्‍वास को अगला लेख और भी मज़बूत करेगा क्योंकि उसमें हम आज की उन घटनाओं के बारे में देखेंगे जिनसे हमें गहरी समझ मिलती है कि बाइबल की भविष्यवाणियाँ कैसे पूरी हो रही हैं।

[फुटनोट]

^ पैरा. 9 साक्षी बनने के लिए जिन्होंने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया था, ऐसे लोगों की मिसालों के लिए सजग होइए! के ये अंक देखिए: जनवरी 8, 2000, पेज 18; अप्रैल-जून 2003, पेज 14; और प्रहरीदुर्ग के ये अंक देखिए: जनवरी 1, 1996, पेज 5; अगस्त 1, 1998, पेज 5.

क्या आप समझा सकते हैं?

• आज बहुत-से लोग ऐसा क्यों सोचते हैं कि भविष्य अंधकारमय होगा?

• यहोवा के साक्षी, किस बिनाह पर एक अच्छे भविष्य की उम्मीद करते हैं?

• हर किस्म की हिंसा को फैलानेवाले के संबंध में यहोवा ने अब तक क्या कार्यवाही की है?

• हमें गोग के हमले से डरने की ज़रूरत क्यों नहीं है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 12 पर चित्र का श्रेय]

UN PHOTO 186226/M. Grafman

[पेज 13 पर तसवीर]

मसीही निष्पक्षता कायम रखने में यीशु ने बिलकुल सही मिसाल पेश की

[पेज 16 पर तसवीर]

हज़ारों जवान साक्षियों ने खुशी-खुशी पूरे समय की सेवा शुरू की है