इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

अपने निष्पक्ष परमेश्‍वर, यहोवा की मिसाल पर चलें

अपने निष्पक्ष परमेश्‍वर, यहोवा की मिसाल पर चलें

अपने निष्पक्ष परमेश्‍वर, यहोवा की मिसाल पर चलें

“परमेश्‍वर किसी का पक्ष नहीं करता।”—रोमियों 2:11.

1, 2. (क) मोटे तौर पर देखा जाए तो कनानियों के बारे में यहोवा का मकसद क्या था? (ख) यहोवा ने क्या किया और इससे कौन-से सवाल उठते हैं?

सामान्य युग पूर्व 1473 में इस्राएल जाति, मोआब के मैदानों में डेरा डाले हुई थी। उस वक्‍त जब मूसा ने इस्राएलियों को यहोवा का मकसद बताया, तो उन्होंने बड़े ध्यान से सुना। यहोवा का मकसद था कि इस्राएली, यरदन नदी पार करने के बाद वादा किए गए देश में रहनेवाली सात ताकतवर कनानी जातियों को हराएँ। यह इस्राएलियों के लिए एक बड़ी चुनौती थी! मगर उनको मूसा की इस बात से कितनी हिम्मत मिली होगी: “यहोवा, तुम्हारा परमेश्‍वर इन राष्ट्रों को तुम्हारे अधीन करेगा और तुम उन्हें हराओगे”! (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) इस्राएल को न तो उन जातियों के साथ कोई वाचा बाँधनी थी, और ना ही उन पर दया दिखानी थी, क्योंकि वह दया पाने के बिलकुल लायक नहीं थीं।—व्यवस्थाविवरण 1:1; 7:1, 2.

2 मगर इस्राएल ने जिस पहले शहर पर हमला किया, उसमें रहनेवाले एक परिवार की यहोवा ने जान बचायी। इतना ही नहीं, उसने दूसरे चार नगरों के रहनेवालों की भी हिफाज़त की। यहोवा ने उन्हें क्यों बचाया? उन कनानियों के बचाव से जुड़ी खास घटनाओं से हम यहोवा के बारे में क्या सीखते हैं? और हम यहोवा की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

यहोवा की कीर्ति सुनकर उन्होंने क्या किया

3, 4. इस्राएलियों को मिली जीत की खबरें सुनकर कनान के लोगों पर कैसा असर हुआ?

3 वादा किए गए देश में जाने से पहले जब इस्राएल जाति 40 साल तक वीराने में थी, उस दौरान यहोवा ने अपने लोगों की हिफाज़त की और वह उनकी ओर से लड़ा। वादा किए गए देश के दक्षिण की ओर, इस्राएल का मुकाबला कनानी राजा, अराद से हुआ। यहोवा की मदद से, इस्राएलियों ने अराद और उसकी प्रजा को होर्मा नाम की जगह पर हराया। (गिनती 21:1-3) बाद में इस्राएली, एदोम देश की सरहद के पास से होते हुए उत्तर की ओर, यानी मृत सागर के उत्तर-पूर्व की ओर चले गए। इस इलाके में, जहाँ पहले मोआबी रहते थे, अब एमोरी जाति रहती थी। एमोरियों के राजा, सीहोन ने इस्राएलियों को अपने देश में से होकर जाने की इजाज़त नहीं दी। इसलिए यहस नाम की जगह पर, जो शायद अर्नोन नाम नाले के उत्तर की ओर थी, इस्राएल और सीहोन के बीच युद्ध हुआ और वहाँ सीहोन मारा गया। (गिनती 21:23, 24; व्यवस्थाविवरण 2:30-33) फिर इस्राएली और भी उत्तर की ओर बाशान नाम की जगह पर गए। वहाँ भी एमोरी रहते थे और उन पर राजा ओग शासन करता था। ओग अपने भारी भरकम शरीर के बावजूद, यहोवा से मुकाबला नहीं कर पाया। वह एद्रेई में मारा गया। (गिनती 21:33-35; व्यवस्थाविवरण 3:1-3, 11) इन सारे इलाकों पर इस्राएलियों को मिली जीत, साथ ही मिस्र से उनकी यात्रा के बारे में जब कनानियों ने सुना तो उनमें से कुछ लोग बहुत प्रभावित हुए। *

4 इस्राएलियों ने, यरदन पार करने के बाद जब पहली दफा कनान देश में कदम रखा तो उन्होंने गिलगाल में अपने डेरे डाले। (यहोशू 4:9-19) उसकी कुछ ही दूरी पर शहरपनाहों से घिरा, यरीहो शहर था। वहाँ की रहनेवाली कनानी स्त्री राहाब, यहोवा के बड़े-बड़े कामों के बारे में सुनकर बहुत प्रभावित हुई और उसने पूरे विश्‍वास के साथ कदम उठाया। इसलिए, यरीहो का नाश करते वक्‍त यहोवा ने राहाब और उसके घर में रहनेवालों की जान बख्श दी।—यहोशू 2:1-13; 6:17, 18; याकूब 2:25.

5. किस बात ने गिबोनियों को होशियारी से काम लेने के लिए उकसाया?

5 इसके बाद, इस्राएली यरदन नदी के पास के निचले हिस्सों से ऊपर की ओर चढ़ते हुए, उस इलाके के बीच की पहाड़ियों की तरफ गए। वहाँ यहोशू ने यहोवा की हिदायतों के मुताबिक ऐ नगर के खिलाफ, छिपकर आक्रमण करने की रणनीति अपनाकर उसे हरा दिया। (यहोशू, अध्याय 8) जब कनानी राजाओं ने सुना कि इस्राएलियों ने कैसे एक-के-बाद-एक कई नगरों को जीत लिया है, तो उनमें से कई राजा, इस्राएलियों से लड़ने को इकट्ठे हुए। (यहोशू 9:1, 2) लेकिन पास ही में स्थित, गिबोन शहर के रहनेवाले हिव्वियों ने एक अलग रवैया दिखाया। यहोशू 9:4 कहता है कि “उन्हों ने छल किया [“होशियारी से काम लिया,” NW]।” राहाब की तरह उन्होंने भी सुना था कि यहोवा ने कैसे अपने लोगों को शानदार तरीके से मिस्र से छुड़ाया और सीहोन और ओग को हराकर उन्हें बचाया। (यहोशू 9:6-10) गिबोनियों ने जान लिया कि इस्राएलियों से लड़ना बेकार है। इसलिए उन्होंने अपनी तरफ से और पास के तीन नगरों यानी कपीरा, बेरोत, और किर्यत्यारीम की तरफ से कुछ प्रतिनिधियों को गिलगाल में यहोशू के पास भेजा। ये प्रतिनिधि, वेश बदलकर ऐसे गए मानो वे किसी दूर देश से आए हों। उनकी यह साज़िश कामयाब हो गयी। यहोशू ने उनके साथ एक वाचा बाँधी कि उनकी जाति को कोई खतरा नहीं होगा। मगर तीन दिन बाद, यहोशू और इस्राएलियों को पता चला कि गिबोनियों ने उन्हें धोखा दिया है। फिर भी वे गिबोनियों को दिए अपने वचन से नहीं मुकरे क्योंकि उन्होंने यहोवा की शपथ खायी थी कि वे अपनी वाचा नहीं तोड़ेंगे। (यहोशू 9:16-19) मगर क्या यहोवा को यह सब मंज़ूर था?

6. यहोशू ने कनानियों के साथ जो वाचा बाँधी थी, उसके बारे में यहोवा का क्या रवैया था?

6 गिबोनियों को इस्राएलियों के लिए लकड़ी काटने और पानी ढोने का काम सौंपा गया। यही काम वे यहोवा के तंबू में “उसकी वेदी” के लिए भी करते थे। (यहोशू 9:21-27) इतना ही नहीं, जब पाँच एमोरी राजाओं और उनकी सेनाओं ने गिबोनियों पर धावा बोला, तो यहोवा ने चमत्कार करके उनकी रक्षा की। उसने ओले बरसाए और इससे इतने दुश्‍मन मारे गए, जितने यहोशू के सैनिक नहीं मार पाए थे। यहाँ तक कि यहोशू के बिनती करने पर, यहोवा ने चमत्कार करके सूरज और चाँद को यूँ ही थमा दिया ताकि दुश्‍मनों का पूरी तरह खातमा हो। यहोशू ने कहा: “न तो उस से पहिले कोई ऐसा दिन हुआ और न उसके बाद, जिस में यहोवा ने किसी पुरुष की सुनी हो; क्योंकि यहोवा तो इस्राएल की ओर से लड़ता था।”—यहोशू 10:1-14.

7. पतरस की बतायी कौन-सी सच्चाई कुछेक कनानियों पर लागू हुई?

7 कनानी स्त्री राहाब और उसके परिवार ने, साथ ही गिबोनियों ने यहोवा का भय माना और उसके मुताबिक कदम उठाया। उनके साथ जो हुआ, उससे यह सच्चाई साफ ज़ाहिर होती है जो मसीही प्रेरित पतरस ने बाद में कही थी: “परमेश्‍वर किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।”—प्रेरितों 10:35.

इब्राहीम और इस्राएल के साथ यहोवा का व्यवहार

8, 9. इब्राहीम और इस्राएल जाति के साथ यहोवा के व्यवहार से कैसे ज़ाहिर होता है कि वह पक्षपाती नहीं है?

8 शिष्य याकूब बताता है कि परमेश्‍वर ने इब्राहीम और उसकी संतान के साथ व्यवहार करते वक्‍त उन पर कैसे करुणा की। इब्राहीम अपने विश्‍वास के कारण ही “परमेश्‍वर का मित्र” बना, न कि किसी खास जाति के होने की वजह से। (याकूब 2:23) इब्राहीम ने यहोवा के लिए जो प्यार और उस पर जो विश्‍वास दिखाया, उसकी वजह से उसकी संतान को आशीषें मिलीं। (2 इतिहास 20:7) यहोवा ने इब्राहीम से वादा किया: “मैं निश्‍चय तुझे आशीष दूंगा; और निश्‍चय तेरे वंश को आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की बाल के किनकों के समान अनगिनित करूंगा।” मगर यह भी गौर कीजिए कि अगली आयत में उसने क्या वादा किया: “पृथ्वी की सारी जातियां अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी।”—उत्पत्ति 22:17, 18; रोमियों 4:1-8.

9 यहोवा ने इस्राएलियों के साथ जिस तरह से व्यवहार किया, उससे यह हरगिज़ नहीं साबित होता कि वह पक्षपाती है, बल्कि उससे यह ज़ाहिर होता है कि उसकी आज्ञा माननेवालों की खातिर वह क्या-क्या कर सकता है। यहोवा, इस्राएलियों के साथ जिस तरह से पेश आया, वह एक मिसाल है कि यहोवा अपने वफादार सेवकों के साथ सच्चा प्यार कैसे निभाता है। हालाँकि इस्राएल यहोवा का “निज धन” था, मगर इसका यह मतलब नहीं था कि दूसरी जाति के लोगों को उसकी आशीष पाने का मौका नहीं दिया गया। (निर्गमन 19:5; व्यवस्थाविवरण 7:6-8) यह सच है कि यहोवा ने इस्राएल को मिस्र की गुलामी से मोल लिया था और उनसे कहा था: “पृथ्वी के सारे कुलों में से मैं ने केवल तुम्हीं पर मन लगाया है।” मगर उसने भविष्यवक्‍ता आमोस और दूसरों के ज़रिए यह वादा भी किया था कि वह “सब अन्यजातियों” को एक खुशहाल ज़िंदगी देगा।—आमोस 3:2; 9:11, 12; यशायाह 2:2-4.

यीशु—निष्पक्ष गुरू

10. किस तरह यीशु, अपने पिता की तरह निष्पक्ष था?

10 यीशु ने हर बात में हू-ब-हू अपने पिता यहोवा को दर्शाया और धरती पर अपनी सेवा के दौरान वह भी उसकी तरह निष्पक्ष रहा। (इब्रानियों 1:3) उस दौरान वह खासकर “इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ों को” ढूँढ़ने आया था। फिर भी वह एक सामरी स्त्री को गवाही देने से पीछे नहीं हटा, जो कुँए के पास आयी थी। (मत्ती 15:24; यूहन्‍ना 4:7-30) उसने एक सूबेदार की गुज़ारिश पर एक चमत्कार भी किया, जो शायद गैर-यहूदी था। (लूका 7:1-10) उसने परमेश्‍वर के लोगों से प्यार करने और उनकी मदद करने के साथ-साथ ये सारे काम भी किए थे। यीशु के चेलों ने भी दूर-दूर तक जाकर सब जातियों के लोगों को प्रचार किया। इस तरह यह साफ ज़ाहिर हो गया कि यहोवा की आशीष, किसी खास जाति के लोगों को नहीं बल्कि सही रवैया दिखानेवालों को मिलती है। जो दिल के सच्चे और नम्र थे और सच्चाई जानने को तरस रहे थे, उन्होंने राज्य के सुसमाचार पर यकीन किया। दूसरी तरफ, घमंडी और ढीठ लोगों ने यीशु और उसके संदेश को तुच्छ जाना। यीशु ने कहा: “हे पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु, मैं तेरा धन्यवाद करता हूं, कि तू ने इन बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा रखा, और बालकों पर प्रगट किया: हां, हे पिता, क्योंकि तुझे यही अच्छा लगा।” (लूका 10:21) जब हमारे दिल में दूसरों के लिए प्यार और विश्‍वास होगा, तो हम किसी तरह का भेद नहीं करेंगे, सबके साथ एक जैसा व्यवहार करेंगे क्योंकि हम जानते हैं कि यहोवा को यही भाता है।

11. शुरू की मसीही कलीसिया में सभी जातियों को कैसे बराबर का दर्जा दिया गया था?

11 शुरू की मसीही कलीसिया में यहूदियों और गैर-यहूदियों, दोनों को बराबर का दर्जा दिया गया था। पौलुस ने कहा: “महिमा और आदर और कल्याण हर एक को मिलेगा, जो भला करता है, पहिले यहूदी को फिर यूनानी को। क्योंकि परमेश्‍वर किसी का पक्ष नहीं करता।” * (रोमियों 2:10, 11) यहोवा की कृपा से फायदा पाना, लोगों की जाति पर नहीं बल्कि इस बात पर निर्भर था कि वे यहोवा के बारे में और उसके बेटे यीशु के छुड़ौती बलिदान से मिलनेवाली आशीषों के बारे में सीखने पर कैसा रवैया दिखाते। (यूहन्‍ना 3:16, 36) पौलुस ने लिखा: “वह यहूदी नहीं, जो प्रगट में यहूदी है; और न वह खतना है, जो प्रगट में है, और देह में है। पर यहूदी वही है, जो मन में है; और खतना वही है, जो हृदय का और आत्मा में है; न कि लेख का।” इसके बाद, वह शब्द “यहूदी” (जिसका मतलब है, “यहूदा का” यानी प्रशंसा पानेवाला) का बड़ी समझदारी से इस्तेमाल करते हुए कहता है: “ऐसे की प्रशंसा मनुष्यों की ओर से नहीं, परन्तु परमेश्‍वर की ओर से होती है।” (रोमियों 2:28, 29) यहोवा, प्रशंसा करने में कोई पक्षपात नहीं करता। क्या हम उसकी मिसाल पर चलते हैं?

12. प्रकाशितवाक्य 7:9 कौन-सी आशा देता है और यह आशा किसे दी गयी है?

12 बाद में प्रेरित यूहन्‍ना ने एक दर्शन में 1,44,000 वफादार अभिषिक्‍त मसीहियों को एक आत्मिक जाति के रूप में देखा। वे “इस्राएल की सन्तानों के सब गोत्रों में से” थे और उन पर “मुहर दी गई” थी। इसके बाद यूहन्‍ना ने एक “बड़ी भीड़” को देखा जो ‘हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से थी और श्‍वेत वस्त्र पहिने और अपने हाथों में खजूर की डालियां लिए हुए सिंहासन के साम्हने और मेम्ने के साम्हने खड़ी थी।’ (प्रकाशितवाक्य 7:4, 9) यह दिखाता है कि आज की मसीही कलीसिया का भाग बनने का मौका हर जाति और भाषा के लोगों को दिया गया है। और वे आनेवाले “बड़े क्लेश” से ज़िंदा बचने और नयी दुनिया में “जीवन रूपी जल के सोतों” से पीने की आशा रख सकते हैं।—प्रकाशितवाक्य 7:14-17.

निष्पक्ष होने के अच्छे नतीजे

13-15. (क) हम अपने मन से जाति-भाषा का भेद कैसे निकाल सकते हैं? (ख) दोस्ताना होने के फायदे बताने के लिए कुछ उदाहरण दीजिए।

13 जैसे एक अच्छा पिता अपने बच्चों को बखूबी जानता है, उसी तरह यहोवा हमें बखूबी जानता है। हमें भी दूसरों को समझने के लिए उनके रहन-सहन और उनकी संस्कृति को जानने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसा करने से हमारे बीच का भेद-भाव फीका पड़ जाता है, जाति को लेकर जो फासले हैं, वे मिट जाते हैं, प्यार और दोस्ती का बंधन मज़बूत होता है। और आपसी एकता बढ़ती है। (1 कुरिन्थियों 9:19-23) इसकी एक बढ़िया मिसाल उन मिशनरियों ने पेश की है जो विदेश जाकर परमेश्‍वर की सेवा करते हैं। मिशनरी, जिस देश में सेवा करते हैं वहाँ के लोगों में दिलचस्पी लेते हैं इसलिए वे थोड़े ही समय में वहाँ की कलीसियाओं में अच्छी तरह घुल-मिल जाते हैं।—फिलिप्पियों 2:4.

14 आज कई देशों में निष्पक्ष होने के बढ़िया नतीजे देखे जा सकते हैं। इथियोपिया का रहनेवाला आकलीलू, जब ब्रिटेन की राजधानी, लंदन में जा बसा तो उसने वहाँ खुद को बहुत अकेला पाया। यह देखकर उसे और भी अकेलापन महसूस हुआ कि वहाँ के लोग दूसरे देशों के लोगों के साथ बेरुखी से पेश आते हैं, जैसा यूरोप के ज़्यादातर बड़े-बड़े शहरों में आम है। लेकिन जब आकलीलू, यहोवा के साक्षियों के किंगडम हॉल में एक मसीही सभा के लिए हाज़िर हुआ तो उसने वहाँ बिलकुल अलग माहौल पाया! वहाँ हाज़िर लोगों ने प्यार से उसका स्वागत किया और कुछ ही समय में उसे वहाँ अपनापन लगने लगा। उसने सिरजनहार के बारे में अपनी समझ और कदरदानी बढ़ाने में अच्छी तरक्की की। जल्द ही वह अपने इलाके में राज्य की खुशखबरी सुनाने के काम में हिस्सा लेने लगा। एक दिन जब प्रचार में आकलीलू के साथी ने उससे पूछा कि अब वह कौन-से लक्ष्य हासिल करना चाहता है तो वह फट से बोला कि वह एक ऐसी कलीसिया का हिस्सा बनना चाहता है जो उसकी भाषा यानी ऎमहैरिक बोलती हो। जब यह बात उसके प्रांत की अँग्रेज़ी कलीसिया के प्राचीनों को पता चली तो वे खुश हुए और उन्होंने फौरन आकलीलू की मातृ-भाषा में जन-भाषण का इंतज़ाम किया। उस भाषण के लिए जब लोगों को निमंत्रण दिया गया तो बहुत-से परदेसी और वहाँ के रहनेवाले भी आए। इस तरह ब्रिटेन में ऎमहैरिक भाषा में रखी गयी पहली जन-सभा कामयाब हुई। आज उस इलाके में रहनेवाले इथियोपिया के लोग और ऎमहैरिक भाषा बोलनेवाले दूसरे लोग, ऎमहैरिक कलीसिया में सेवा कर रहे हैं और वहाँ अच्छी बढ़ोतरी हो रही है। वहाँ के बहुत-से लोगों ने पाया है कि यहोवा की तरफ होने का फैसला करने और इसकी निशानी के तौर पर मसीही बपतिस्मा लेने से उन्हें कोई भी चीज़ नहीं रोक सकती।—प्रेरितों 8:26-36.

15 लोगों के तौर-तरीकों और उनकी संस्कृति में फर्क होता है। मगर ऐसी बातों से कोई किसी से बड़ा या छोटा नहीं बन जाता। माल्टा द्वीप के रहनेवाले साक्षियों ने जब अपने यहाँ यहोवा के नए समर्पित सेवकों को बपतिस्मा लेते देखा तो उन्होंने खुलकर अपनी खुशी ज़ाहिर की। और वही नज़ारा देखकर ब्रिटेन से आए भाई-बहनों की आँखों में खुशी के आँसू भर आए। इस तरह माल्टा और ब्रिटेन, दोनों जगहों के भाई-बहनों ने अपनी भावनाएँ ज़ाहिर कीं मगर उनका तरीका अलग था। और यहोवा के लिए उनका गहरा प्रेम, उन्हें एक-दूसरे के और करीब लाया।—भजन 133:1; कुलुस्सियों 3:14.

भेद-भाव दूर करना

16-18. एक ऐसा अनुभव बताइए जो दिखाता है कि मसीही कलीसिया में भेद-भाव कैसे दूर किया जा सकता है।

16 यहोवा और अपने मसीही भाइयों के लिए जब हमारा प्यार गहरा होता जाएगा, तो हम दूसरों के बारे में सही नज़रिया रखने में यहोवा की मिसाल पर और अच्छी तरह चल पाएँगे। अगर पहले हमारे दिल में किसी देश, जाति या संस्कृति के लिए नफरत थी, तो वह भी दूर हो जाएगी। उदाहरण के लिए, एल्बर्ट को लीजिए जो दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना में था। सन्‌ 1942 में सिंगापुर के पतन के समय जापानियों ने एल्बर्ट को बंदी बना लिया था। बाद में एल्बर्ट ने करीब तीन साल तक “मौत का रेलमार्ग” बनाने का काम किया। यह रेलमार्ग, उस प्रांत के पास बनाया गया जो क्वाई नदी का पुल कहलाया जाने लगा। युद्ध खत्म होने पर जब एल्बर्ट रिहा हुआ, तब तक वह इतना कमज़ोर हो गया था कि उसका वज़न सिर्फ 32 किलो था। उसके जबड़े और नाक की हड्डी टूट गयी, और वह अतिसार, दाद और मलेरिया से पीड़ित था। उसके हज़ारों साथी कैदियों की हालत भी बहुत खराब थी; बहुतों ने तो दम तोड़ दिया था। एल्बर्ट ने जो भयानक ज़ुल्म देखे और सहे, उनकी वजह से उसका दिल कड़वाहट से भर गया। इसलिए सन्‌ 1945 में घर लौटने तक परमेश्‍वर और धर्म में उसकी दिलचस्पी पूरी तरह मिट गयी थी।

17 एल्बर्ट की पत्नी, आइरीन यहोवा की साक्षी बन गयी। वह अपनी पत्नी को खुश करने के लिए, यहोवा के साक्षियों की कुछ सभाओं में हाज़िर हुआ। पॉल नाम के एक जवान मसीही ने, जो पूरे समय की सेवा करता था, एल्बर्ट के साथ बाइबल अध्ययन शुरू किया। थोड़े ही समय में एल्बर्ट ने जाना कि यहोवा, एक इंसान की जाति और भाषा नहीं, बल्कि उसका दिल देखता है। उसने अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित की और बपतिस्मा ले लिया।

18 बाद में पॉल, लंदन चला गया। वहाँ उसने जापानी भाषा सीखी और उस भाषा की कलीसिया में जाने लगा। जब पॉल ने अपनी पुरानी कलीसिया के भाइयों को खबर दी कि वह कुछ जापानी साक्षियों को अपनी कलीसिया दिखाने के लिए लाना चाहता है, तो उन भाइयों को एल्बर्ट का ध्यान आया कि वह जापानी लोगों को बिलकुल पसंद नहीं करता। जब से वह ब्रिटेन लौटा था, वह किसी जापानी का मुँह तक नहीं देखना चाहता था। इसलिए भाइयों ने सोचा कि जब जापानी साक्षी वहाँ आएँगे, तो न जाने एल्बर्ट कैसे पेश आएगा। लेकिन हुआ यह कि जब जापानी भाई वहाँ आए तो एल्बर्ट ने बिना किसी भेद-भाव के दिल खोलकर उनका स्वागत किया।—1 पतरस 3:8, 9.

“अपना हृदय खोल दो”

19. अगर हमारे दिल में ज़रा भी पक्षपात की भावना है, तो प्रेरित पौलुस की कौन-सी सलाह हमारी मदद कर सकती है?

19 बुद्धिमान राजा, सुलैमान ने लिखा कि “पक्षपात करना अच्छा नहीं।” (नीतिवचन 28:21) जिन लोगों को हम अच्छी तरह जानते हैं, उनके करीब महसूस करना हमारे लिए आसान होता है। लेकिन हमारी यह कमज़ोरी होती है कि जिन्हें हम ठीक से नहीं जानते, उनमें हम कोई खास दिलचस्पी नहीं लेते। ऐसी तरफदारी करना, यहोवा के सेवकों को शोभा नहीं देता। यह ज़रूरी है कि हम सभी पौलुस की इस स्पष्ट सलाह को मानें: “अपना हृदय खोल दो।” जी हाँ, हमें प्यार के दायरे को बढ़ाना चाहिए, हमें अलग-अलग जाति-भाषा के मसीहियों से प्यार करने में अपना हृदय खोल देना चाहिए।—2 कुरिन्थियों 6:13.

20. ज़िंदगी के किन-किन दायरों में हमें अपने निष्पक्ष परमेश्‍वर, यहोवा की मिसाल पर चलना चाहिए?

20 निष्पक्ष होने की वजह से हम सभी को एक ही चरवाहे के अधीन, एक झुंड होकर काम करने की खुशी मिलती है, फिर चाहे हमें स्वर्गीय बुलावा मिला हो या हम धरती पर हमेशा जीने की आशा रखते हों। (इफिसियों 4:4, 5, 16) अगर हम अपने निष्पक्ष परमेश्‍वर, यहोवा की मिसाल पर चलने की कोशिश करें, तो मसीही सेवा, परिवार और कलीसिया में, जी हाँ, ज़िंदगी के हर दायरे में दूसरों के साथ सही तरह से पेश आने में हमें मदद मिलेगी। वह कैसे? इस बारे में हमें अगला लेख बताएगा।

आप क्या जवाब देंगे?

यहोवा ने राहाब और गिबोनियों के साथ कैसे निष्पक्ष व्यवहार किया?

यीशु ने सिखाने में किस तरह निष्पक्षता दिखायी?

अगर हमारे दिल में जाति-भाषा को लेकर किसी तरह का भेद-भाव है, तो उसे दूर करने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है?

[फुटनोट]

^ पैरा. 3 बाद में यहोवा की कीर्ति के बारे में, कई पवित्र गीत भी रचे गए।—भजन 135:8-11; 136:11-20.

^ पैरा. 11 इस आयत में शब्द “यूनानी” सभी गैर-यहूदियों को दर्शाता है।—यहोवा के साक्षियों द्वारा प्रकाशित इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्‌ भाग 1, पेज 1004.

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 13 पर तसवीर]

कनान पर इस्राएल की जीत शुरू होती है

[पेज 15 पर तसवीर]

यीशु, एक सामरी स्त्री को गवाही देने से पीछे नहीं हटा

[पेज 16 पर तसवीर]

ब्रिटेन में ऎमहैरिक भाषा में एक जन-सभा

[पेज 16 पर तसवीर]

यहोवा के लिए प्यार ने एल्बर्ट को अपने मन से भेद-भाव दूर करने में मदद दी