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सभी में अच्छाई ढूँढ़ो

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सभी में अच्छाई ढूँढ़ो

“हे मेरे परमेश्‍वर! इन अच्छे कामों के लिये तू मुझे याद रख।”—नहेमायाह 13:31, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।

1. यहोवा, सभी के साथ भलाई कैसे करता है?

आसमान में कई दिनों तक घनघोर घटा छाने के बाद, जब आखिरकार धूप खिलती है तो मौसम क्या ही सुहाना लगता है। हर कहीं खुशी का आलम छा जाता है, लोगों में उमंग भर जाती है। उसी तरह, लंबे समय तक चिलचिलाती गर्मी और सूखे मौसम के बाद, जब रिमझिम बूँदें गिरती हैं तो मन को क्या ही राहत और ताज़गी मिलती है। और अगर पानी ज़ोरों पर बरसने लगे, तो बस क्या कहने! वाकई हमारे प्यारे सिरजनहार, यहोवा ने इस धरती के वातावरण को कुछ इस तरह से बनाया है कि हमें बदलते मौसम का यह नायाब तोहफा मिला है। यीशु ने भी लोगों को सिखाते वक्‍त यहोवा की इस दरियादिली के बारे में ध्यान दिलाया: “अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिये प्रार्थना करो। जिस से तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे क्योंकि वह भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मियों और अधर्मियों दोनों पर मेंह बरसाता है।” (मत्ती 5:43-45) जी हाँ, यहोवा सभी के साथ भलाई करता है। उसके सेवकों को भी उसकी मिसाल पर चलते हुए दूसरों में अच्छाई ढूँढ़ने की कोशिश करनी चाहिए।

2. (क) यहोवा किस बिनाह पर भलाई करता है? (ख) यहोवा हममें क्या गौर करता है?

2 यहोवा किस बिनाह पर भलाई करता है? जब से आदम ने पाप किया, तब से यहोवा ने उसकी संतान में हमेशा अच्छाई ढूँढ़ी है। (भजन 130:3, 4) उसका मकसद है कि वह आज्ञा माननेवाले इंसानों को फिरदौस में ज़िंदगी देगा। (इफिसियों 1:9, 10) उसकी दया की वजह से ही हमें वादा किए गए वंश के ज़रिए पाप और असिद्धता से छुटकारा पाने की आशा मिली है। (उत्पत्ति 3:15; रोमियों 5:12, 15) छुड़ौती के इंतज़ाम को कबूल करने से हमारे लिए दोबारा सिद्ध होने का मार्ग खुल जाता है। आज यहोवा हममें से हरेक पर ध्यान देता है कि उसकी दरियादिली का हम पर क्या असर हो रहा है। (1 यूहन्‍ना 3:16) हम यहोवा के उपकारों के लिए कदरदानी दिखाते हुए जो भी करते हैं, उसे वह गौर करता है। प्रेरित पौलुस ने लिखा: ‘परमेश्‍वर अन्यायी नहीं, कि तुम्हारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उसके नाम के लिये दिखाया।’—इब्रानियों 6:10.

3. हमें किस सवाल पर गौर करने की ज़रूरत है?

3 तो फिर हम यहोवा की मिसाल पर चलते हुए, दूसरों में अच्छाई कैसे ढूँढ़ सकते हैं? आइए देखें कि ऐसा हम ज़िंदगी के इन चार दायरों में कैसे कर सकते हैं: (1) मसीही सेवा में, (2) परिवार में, (3) कलीसिया में और (4) सभी के साथ पेश आने में।

प्रचार और चेला बनाने के काम में

4. किस तरह मसीही सेवा में हिस्सा लेना, दूसरों में अच्छाई ढूँढ़ने का एक तरीका है?

4 जब यीशु के चेलों ने उससे गेहूँ और जंगली दाने के दृष्टांत का मतलब पूछा, तो उसने समझाते हुए कहा कि “खेत संसार है।” आज हम भी मसीह के चेलों के नाते प्रचार करते वक्‍त इस बात की सच्चाई को अच्छी तरह जानते हैं। (मत्ती 13:36-38; 28:19, 20) प्रचार में हमें सरेआम अपने विश्‍वास का ऐलान करना होता है। आज के ज़माने में यहोवा के साक्षी, घर-घर जाकर और सड़कों पर प्रचार करने के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते हैं। यह अपने आप में एक सबूत है कि हम उन सभी लोगों को ढूँढ़ने में मेहनत कर रहे हैं जो राज्य का संदेश सुनने के योग्य हैं। दरअसल यीशु ने यह हिदायत दी थी: “जिस किसी नगर या गांव में जाओ, तो पता लगाओ कि वहां कौन योग्य है”।—मत्ती 10:11; प्रेरितों 17:17; 20:20.

5, 6. हम क्यों बार-बार लोगों के घर जाकर उनसे मिलते हैं?

5 जब हम बिन बुलाए लोगों से मिलने जाते हैं, तो हम गौर करते हैं कि वे हमारे संदेश के बारे में कैसा रवैया दिखाते हैं। कभी-कभी हम पाते हैं कि घर का एक सदस्य हमारी बात सुन रहा होता है मगर तभी अंदर से दूसरा चिल्लाता है: “जाओ, जाओ, हमें नहीं सुनना वह सब।” और बस हमारी मुलाकात खत्म हो जाती है। लेकिन हमें इस बात का दुःख होता है कि एक व्यक्‍ति के विरोध करने या दिलचस्पी न दिखाने की वजह से, दूसरा भी सुनने से रह जाता है! तो फिर हम, सभी लोगों में अच्छाई ढूँढ़ना कैसे जारी रख सकते हैं?

6 उस इलाके में अगली बार प्रचार करते वक्‍त जब हम उस घर में जाएँगे, तो शायद हमें उसी व्यक्‍ति से बात करने का मौका मिले जिसने पहले बातचीत रोक दी थी। पिछली बार के वाकये को याद रखने से हम उससे बात करने के लिए खुद को तैयार कर सकेंगे। हो सकता है, विरोध करने में उसका इरादा नेक रहा हो। शायद किसी ने उसे हमारे बारे में गलत जानकारी दी हो, इसलिए वह सोचता होगा कि अपने घर के लोगों को हमारी बात सुनने से रोकना उसका फर्ज़ बनता है। लेकिन उसका यह रवैया देखकर हमें उस घर पर राज्य का सुसमाचार सुनाने से पीछे नहीं हटना चाहिए बल्कि समझदारी से काम लेते हुए गलतफहमियाँ दूर करनी चाहिए। हम, सभी लोगों की मदद करना चाहते हैं ताकि वे परमेश्‍वर के बारे में सही ज्ञान पाएँ। ऐसा करने से हो सकता है, यहोवा उस विरोध करनेवाले को अपनी तरफ खींच ले।—यूहन्‍ना 6:44; 1 तीमुथियुस 2:4.

7. लोगों से मुलाकात करते वक्‍त उनके बारे में सही नज़रिया रखने में क्या बात हमारी मदद करेगी?

7 यीशु ने अपने चेलों को हिदायत देते वक्‍त कहा था कि एक इंसान के घरवाले भी उसका विरोध करेंगे। याद कीजिए उसने कहा था: “मैं तो आया हूं, कि मनुष्य को उसके पिता से, और बेटी को उस की मां से, और बहू को उस की सास से अलग कर दूं।” इसके बाद उसने कहा: “मनुष्य के बैरी उसके घर ही के लोग होंगे।” (मत्ती 10:35, 36) मगर लोगों के हालात और रवैए बदलते रहते हैं। अचानक पैदा हुई बीमारी, किसी रिश्‍तेदार की मौत, विपत्तियाँ, मन की वेदना, और दूसरी ढेरों समस्याओं की वजह से शायद वे बदल जाएँ और हमारा संदेश सुनें। अगर हम यह राय कायम कर लें कि हम जिनको प्रचार करते हैं, वे कभी हमारी बात नहीं सुनेंगे, तो क्या हम वाकई उनमें अच्छाई ढूँढ़ रहे होंगे? नहीं, इसलिए क्यों न खुशी-खुशी हम उनसे किसी और मौके पर मिलने जाएँ? हो सकता है अगली बार वे हमारी बात सुनें। कभी-कभी न सिर्फ हमारी बातें, बल्कि हमारे बोलने का तरीका देखकर भी लोग संदेश पर कान देते हैं। प्रचार शुरू करने से पहले, यहोवा से मन लगाकर प्रार्थना करने से हम ज़रूर लोगों के बारे में सही नज़रिया रख पाएँगे और राज्य का संदेश इस तरह सुनाएँगे कि सभी को भा जाए।—कुलुस्सियों 4:6; 1 थिस्सलुनीकियों 5:17.

8. जो रिश्‍तेदार सच्चाई में नहीं हैं, उनमें अच्छाई ढूँढ़ने से क्या प्रतिफल मिल सकता है?

8 कुछ कलीसियाओं में ऐसे परिवार हैं जिनके ज़्यादातर सदस्य यहोवा की सेवा करते हैं। ऐसे कई परिवारों में, सच्चाई में आने से पहले जब अविश्‍वासी सदस्यों ने देखा कि घर का एक सदस्य जो उनसे उम्र में बड़ा है और सच्चाई में है, वह कैसे मुश्‍किलों के बावजूद परिवार में दूसरों के साथ और अपने जीवन-साथी के साथ अच्छा रिश्‍ता बनाए रखता है, तो उनके मन में उसके लिए आदर की भावना पैदा हुई। इसी बात ने उन्हें बदलाव करने और सच्चाई को अपनाने के लिए उकसाया। प्रेरित पतरस की सलाह मानने की वजह से बहुत-सी मसीही पत्नियाँ, “वचन बिना ही” अपने-अपने पति को सच्चाई की ओर आकर्षित कर पायी हैं।—1 पतरस 3:1, 2, NHT.

परिवार में

9, 10. किस तरह याकूब और यूसुफ, दोनों ने अपने परिवार के लोगों में अच्छाई ढूँढ़ी?

9 परिवार के सभी सदस्य प्यार की मज़बूत डोरी से बंधे होते हैं। यह एक और क्षेत्र है जिसमें हम दूसरों में अच्छाई ढूँढ़ सकते हैं। ध्यान दीजिए कि याकूब ने जिस तरह अपने बेटों के साथ बर्ताव किया, उससे हम क्या सीख सकते हैं। उत्पत्ति के अध्याय 37 की आयत 3 और 4 में बाइबल कहती है कि याकूब, अपने सब बच्चों से ज़्यादा यूसुफ को प्यार करता था। यह देखकर यूसुफ के भाई उससे जल उठे, यहाँ तक कि उन्होंने उसे मार डालने की भी साज़िश रची। मगर फिर भी, ध्यान दीजिए कि याकूब और यूसुफ बाद में उनके साथ कैसे पेश आए। दोनों ने अपने परिवार के लोगों में अच्छाई ढूँढ़ी।

10 मिस्र में जब अकाल पड़ा, तब यूसुफ वहाँ का प्रधान खाद्य प्रबंधक था और उसने अपने भाइयों का वहाँ स्वागत किया। हालाँकि उसने फौरन अपनी पहचान ज़ाहिर नहीं की, मगर उसने घटनाओं का रुख कुछ इस तरह मोड़ा कि उसके सभी भाइयों की अच्छी खातिरदारी हो और अपने बूढ़े पिता के पास ले जाने के लिए उनके पास अन्‍न हो। जी हाँ, यूसुफ ने अपने भाइयों के साथ भलाई की, जबकि पहले उसके भाई उससे नफरत करते थे। (उत्पत्ति 41:53–42:8; 45:23) उसी तरह, याकूब ने अपनी मौत से पहले भविष्यवाणी करते वक्‍त सभी बेटों को आशीष दी। यह सच है कि उन्हें अपने बुरे कामों की वजह से कुछ आशीषें नहीं मिलीं, लेकिन उनमें से हरेक को देश में अपने हिस्से की ज़मीन विरासत में ज़रूर दी गयी। (उत्पत्ति 49:3-28) याकूब ने क्या ही बढ़िया तरीके से दिखाया कि अपनी औलाद के लिए उसका प्यार आखिर तक बरकरार था!

11, 12. (क) भविष्यवाणी के रूप में दिखायी गयी किस मिसाल से ज़ाहिर होता है कि परिवार के लोगों में अच्छाई ढूँढ़ना अहमियत रखता है? (ख) उड़ाऊ पुत्र के दृष्टांत में पिता ने जो मिसाल कायम की, उससे हम क्या सीखते हैं?

11 यहोवा ने अविश्‍वासी इस्राएली जाति के साथ जिस तरह व्यवहार किया, उससे हमें और भी गहरी समझ मिलती है कि वह कैसे अपने लोगों में अच्छाई ढूँढ़ता है। यहोवा ने भविष्यवक्‍ता होशे के परिवार के हालात की मिसाल देकर दिखाया कि वह अपनी जाति से हमेशा प्यार करता है। होशे की पत्नी, गोमेर ने कई बार व्यभिचार किया था। फिर भी यहोवा ने होशे को यह हिदायत दी: “अब जाकर एक ऐसी स्त्री से प्रीति कर, जो व्यभिचारिणी होने पर भी अपने प्रिय की प्यारी हो; क्योंकि उसी भांति यद्यपि इस्राएली पराए देवताओं की ओर फिरे, और दाख की टिकियों से प्रीति रखते हैं, तौभी यहोवा उन से प्रीति रखता है।” (होशे 3:1) यहोवा ने ऐसी हिदायतें क्यों दीं? यहोवा जानता था कि जो जाति उसके मार्गों से भटक गयी है, उसमें से कुछ लोग उसका धीरज देखकर ज़रूर सही कदम उठाएँगे। होशे ने कहा: “उसके बाद वे अपने परमेश्‍वर यहोवा और अपने राजा दाऊद को फिर ढूंढ़ने लगेंगे, और अन्त के दिनों में यहोवा के पास, और उसकी उत्तम वस्तुओं के लिये थरथराते हुए आएंगे।” (होशे 3:5) जब हमारे परिवार में कोई समस्या उठती है, तब इस मिसाल पर मनन करना हमारे लिए बहुत मददगार होगा। अपने परिवार के सदस्यों में अच्छाई ढूँढ़ते रहने का कम-से-कम एक फायदा यह होगा कि आप धीरज धरने में बढ़िया मिसाल कायम कर रहे होंगे।

12 उड़ाऊ पुत्र के बारे में यीशु के दृष्टांत से हमें और भी गहरी समझ मिलती है कि हम अपने परिवार के लोगों में अच्छाई कैसे ढूँढ़ सकते हैं। उस दृष्टांत में बताया गया छोटा बेटा अपनी बदचलन ज़िंदगी छोड़ने के बाद, घर लौट आया। तब पिता ने उस पर दया दिखायी। और जब बड़ा बेटा, जो कभी घर छोड़कर नहीं गया था, अपने छोटे भाई के बारे में शिकायत करने लगा तो पिता ने क्या किया? पिता ने अपने बड़े बेटे से कहा: “पुत्र, तू सर्वदा मेरे साथ है; और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा ही है।” इस तरह पिता ने गुस्से में आकर उसे झिड़का नहीं बल्कि उसे अपने प्यार का यकीन दिलाया। उसने अपने बड़े बेटे से यह भी कहा: “अब आनन्द करना और मगन होना चाहिए क्योंकि यह तेरा भाई मर गया था फिर जी गया है; खो गया था, अब मिल गया है।” उस पिता की तरह हम भी हमेशा दूसरों में अच्छाइयाँ ढूँढ़ सकते हैं।—लूका 15:11-32.

मसीही कलीसिया में

13, 14. मसीही कलीसिया में प्रेम की राज्य व्यवस्था पर चलने का एक तरीका क्या है?

13 मसीही होने के नाते हम प्रेम की राज्य व्यवस्था या सबसे बड़ी आज्ञा पर चलने की कोशिश करते हैं। (याकूब 2:1-9) हो सकता है, हम अपनी कलीसिया के उन भाई-बहनों के साथ सही तरह से पेश आएँ, जिनकी माली हालत हमारे जैसी नहीं है। मगर क्या हम जाति, संस्कृति या जिस धर्म में हम पहले थे, उसे लेकर आपस में “भेद भाव” करते हैं? अगर ऐसा है, तो हमें याकूब की सलाह पर कैसे चलना चाहिए?

14 हमें मसीही सभाओं में आनेवाले सभी लोगों का प्यार से स्वागत करना चाहिए। यह दिखाएगा कि हम कितने दिलदार हैं। जब हम किंगडम हॉल में आनेवाले नए लोगों के पास खुद जाकर उनसे मुलाकात करेंगे, तो उन्हें अच्छा लगेगा। शुरू-शुरू में अगर उन्हें संकोच होता है या बेचैनी महसूस होती है, तो वह भी दूर हो जाएगी। कुछ लोगों ने तो मसीही सभाओं में पहली बार हाज़िर होने के बाद ऐसा कहा: “वहाँ सभी लोग कितने दोस्ताना थे! ऐसा लग रहा था मानो वे पहले से मुझे जानते थे। मुझे वहाँ बहुत अच्छा लगा।”

15. कलीसिया के बच्चों को, बड़ों में दिलचस्पी दिखाना कैसे सिखाया जा सकता है?

15 कुछ कलीसियाओं में, सभा खत्म होने पर, कुछ बच्चे किंगडम हॉल के अंदर या बाहर एक समूह बना लेते हैं और आपस में बात करते रहते हैं। इस तरह वे बड़ों से मेल-जोल नहीं रखते। इस चलन को रोकने के लिए क्या किया जा सकता है? बेशक, पहला कदम तो यह है कि माता-पिता को घर पर अपने बच्चों को तालीम देनी चाहिए और उन्हें सिखाना चाहिए कि वे सभाओं में कैसे पेश आएँ। (नीतिवचन 22:6) उन्हें यह काम सौंपा जा सकता है कि वे सभा के लिए ज़रूरी साहित्य तैयार रखें ताकि वहाँ सबके पास पढ़ने के लिए साहित्य हों। माता-पिता, बच्चों को यह भी बढ़ावा दे सकते हैं कि वे किंगडम हॉल में बड़ों से और बीमार भाई-बहनों से मुलाकात करें और उनसे कुछ फायदेमंद बातें करें। बड़ों के साथ ऐसी बातें करने से बच्चों को भी खुशी मिलेगी।

16, 17. किस तरह कलीसिया के बड़े लोग, बच्चों में अच्छाई ढूँढ़ सकते हैं?

16 कलीसिया में बड़ों का यह फर्ज़ बनता है कि वे बच्चों में दिलचस्पी दिखाएँ। (फिलिप्पियों 2:4) वे खुद बच्चों के पास जाकर उनसे बात कर सकते हैं और उनका उत्साह बढ़ा सकते हैं। अकसर सभाओं में कुछ बढ़िया मुद्दे सिखाए जाते हैं। तो बड़े लोग, बच्चों से पूछ सकते हैं कि क्या उन्हें सभा अच्छी लगी और उसमें बताए गए कौन-से मुद्दे उनको खास तौर से पसंद आए और किन मुद्दों पर वे अमल कर सकते हैं। बच्चे कलीसिया का एक ज़रूरी हिस्सा हैं, इसलिए जब वे सभाओं में ध्यान से सुनते हैं और जवाब देते या कोई भाग पेश करते हैं, तो उनकी तारीफ की जानी चाहिए। वे कलीसिया में बड़ों के साथ जिस तरह से पेश आते हैं, या घर के छोटे-मोटे काम जिस तरीके से करते हैं, उनसे ज़ाहिर होगा कि वे ज़िंदगी में आगे चलकर बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ निभाने के भी काबिल होंगे।—लूका 16:10.

17 कुछ जवान, ज़िम्मेदारियों को कबूल करके इतनी अच्छी तरक्की करते हैं कि वे अपने आध्यात्मिक गुणों की वजह से और भी अहम ज़िम्मेदारियाँ निभाने के काबिल बनते हैं। इस तरह काम में व्यस्त रहने से वे गलत चालचलन से भी बचे रहते हैं। (2 तीमुथियुस 2:22) हो सकता है, ऐसी ज़िम्मेदारियाँ देकर उन भाइयों की योग्यता ‘परखी जाए’ जो सहायक सेवक बनने का लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं। (1 तीमुथियुस 3:10) जब वे सभाओं में बेझिझक हिस्सा लेते, जोश से सेवा करते और कलीसिया के सभी लोगों की परवाह करते हैं तो प्राचीन यह तय कर पाते हैं कि क्या उन्हें और भी ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ दी जा सकती हैं।

सभी में अच्छाई ढूँढ़ना

18. न्याय करते वक्‍त प्राचीनों को किस फँदे से बचना चाहिए और क्यों?

18 नीतिवचन 24:23 कहता है: “न्याय में पक्षपात करना, किसी रीति भी अच्छा नहीं।” परमेश्‍वर की बुद्धि यह माँग करती है कि प्राचीन, कलीसिया में न्याय करते वक्‍त किसी की तरफदारी न करें। याकूब ने साफ-साफ कहा: “जो ज्ञान ऊपर से आता है वह पहिले तो पवित्र होता है फिर मिलनसार, कोमल और मृदुभाव और दया, और अच्छे फलों से लदा हुआ और पक्षपात और कपट रहित होता है।” (याकूब 3:17) बेशक, प्राचीनों को न्याय करते वक्‍त, दूसरों में अच्छाई ढूँढ़ने के साथ-साथ, इस बात का भी ध्यान रखना है कि रिश्‍ते-नाते और जज़बात उन्हें सही फैसला करने से न रोकें। भजनहार आसाप ने लिखा: “परमेश्‍वर की सभा में परमेश्‍वर ही खड़ा है; वह ईश्‍वरों [“ईश्‍वर जैसे लोगों,” जिसका मतलब है इंसानी न्यायियों] के बीच में न्याय करता है। तुम लोग कब तक टेढ़ा न्याय करते और दुष्टों का पक्ष लेते रहोगे?” (भजन 82:1, 2) इसलिए जब मसीही प्राचीन अपने किसी दोस्त या रिश्‍तेदार से जुड़े मामले में न्याय करते हैं, तो उनमें तरफदारी की ज़रा सी भनक भी नहीं पड़नी चाहिए। तभी वे कलीसिया की एकता कायम रख पाएँगे और उस पर यहोवा की आत्मा बिना किसी रुकावट के काम करती रहेगी।—1 थिस्सलुनीकियों 5:23.

19. किन तरीकों से हम दूसरों में अच्छाई ढूँढ़ सकते हैं?

19 जब हम अपने भाई-बहनों में अच्छाई ढूँढ़ते हैं, तो हम पौलुस का वह नज़रिया दिखाते हैं जो उसने थिस्सलुनीके की कलीसिया को लिखते वक्‍त दिखाया था। उसने कहा: “और हमें प्रभु में तुम्हारे ऊपर भरोसा है, कि जो जो आज्ञा हम तुम्हें देते हैं, उन्हें तुम मानते हो, और मानते भी रहोगे।” (2 थिस्सलुनीकियों 3:4) अगर हम दूसरों में अच्छाई ढूँढ़ें, तो उनकी खामियों को नज़रअंदाज़ करना हमारे लिए आसान होगा। हम भाइयों की सराहना करने के लिए उनमें अच्छी बातें खोज निकालेंगे और कभी-भी उनकी नुक्‍ताचीनी नहीं करेंगे। पौलुस ने लिखा: “भण्डारी में यह बात देखी जाती है, कि विश्‍वास योग्य निकले।” (1 कुरिन्थियों 4:2) न सिर्फ वे लोग जिन्हें कलीसिया में भंडारी का काम सौंपा गया है, बल्कि हमारे सभी मसीही भाई-बहन विश्‍वासयोग्य हैं इसलिए वे हमें बहुत अज़ीज़ लगते हैं। यही वजह है कि हम उनकी तरफ खिंचे चले आते हैं, और हमारी दोस्ती का बंधन मज़बूत होता जाता है। जैसे पौलुस अपने समय के भाइयों के बारे में सोचता था, वैसा ही हम भी सोचते हैं। हम मानते हैं कि वे ‘परमेश्‍वर के राज्य के लिये हमारे सहकर्मी’ और हमारे लिए “शान्ति का कारण” हैं। (कुलुस्सियों 4:11) इस तरह हम यहोवा जैसा नज़रिया दिखाते हैं।

20. जो लोग सभी में अच्छाई ढूँढ़ते हैं, उन्हें कौन-सी आशीषें मिलेंगी?

20 नहेमायाह की तरह बेशक हमारी भी यही दुआ है: “हे मेरे परमेश्‍वर! इन अच्छे कामों के लिये तू मुझे याद रख।” (नहेमायाह 13:31, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि यहोवा, इंसानों की अच्छाइयों पर गौर करता है! (1 राजा 14:13) आइए हम भी दूसरों के साथ व्यवहार करते वक्‍त ऐसा ही नज़रिया दिखाएँ। तब हम उद्धार पाने और उस नयी दुनिया में जीने की आशा रख सकते हैं जो बस आने ही वाली है।—भजन 130:3-8.

आप क्या जवाब देंगे?

यहोवा, किस बिनाह पर सबके साथ भलाई करता है?

हम ज़िंदगी के इन दायरों में दूसरों की अच्छाइयों पर कैसे गौर कर सकते हैं

अपनी सेवा में?

अपने परिवार में?

अपनी कलीसिया में?

सभी के साथ पेश आने में?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 18 पर तसवीर]

हालाँकि यूसुफ के भाई पहले उससे नफरत करते थे, फिर भी उसने उनमें अच्छाई ढूँढ़ी

[पेज 19 पर तसवीर]

विरोध के बावजूद, हम सभी की मदद करने से पीछे नहीं हटते

[पेज 20 पर तसवीर]

हालाँकि याकूब के बेटों ने पहले बुरे काम किए थे, फिर भी उन सभी को आशीषें मिलीं

[पेज 21 पर तसवीर]

मसीही सभाओं में सबका स्वागत कीजिए