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दूसरों की सेवा से अपना दुःख कम होता है

दूसरों की सेवा से अपना दुःख कम होता है

जीवन कहानी

दूसरों की सेवा से अपना दुःख कम होता है

हूलयान आरयास की ज़बानी

सन्‌ 1988 में, मैं 40 बरस का था और उस समय मुझे अपनी नौकरी महफूज़ नज़र आ रही थी। मैं एक अंतर्राष्ट्रीय कंपनी का रिजनल डाइरेक्टर था। मोटी तनख्वाह के अलावा मुझे एक कीमती कार और शानदार ऑफिस मिला था जो स्पेन के मेड्रिड शहर के मध्य में स्थित था। इतना ही नहीं, कंपनी की तरफ से मुझे इस बात का भी अंदेशा मिला कि मैं जल्द ही अंतर्राष्ट्रीय डाइरेक्टर बना दिया जाऊँगा। मगर यह किसे मालूम था कि मेरी ज़िंदगी मुझसे रूठ जाएगी।

उसी साल, एक दिन मेरे डॉक्टर ने बताया कि मुझे मल्टिपल स्क्लेरोसिस हो गया है, जो एक लाइलाज बीमारी है। मेरे पैरों तले तो मानो ज़मीन खिसक गयी। बाद में जब मैंने पढ़ा कि यह बीमारी एक इंसान की क्या हालत बना देती है, तो मैं एकदम काँप उठा। * मुझे लगा कि अब से मुझे अपनी बची-खुची ज़िंदगी मौत के अँधेरे साए में गुज़ारनी पड़ेगी। मैं इस सोच में पड़ गया कि अपनी पत्नी मीलाग्रोस और अपने तीन साल के बेटे, ईस्माइल की देखभाल कैसे करूँगा? हम इस हालात का सामना कैसे करेंगे? मैं इन सवालों की उधेड़-बुन में ही था कि मुसीबत का एक और पहाड़ मुझ पर टूट पड़ा।

डॉक्टर से इस बीमारी की खबर मिलने के करीब एक महीने बाद मेरे सुपरवाइज़र ने मुझे अपने ऑफिस में बुलाया और कहा कि कंपनी को ऐसे लोगों की ज़रूरत है जिनकी “छवि आकर्षक” हो। मगर जिसे ऐसी खतरनाक बीमारी लगी हो वह आकर्षक नहीं हो सकता, फिर चाहे वह बीमारी की शुरूआत ही क्यों न हो। उसी दम बॉस ने मुझे नौकरी से निकाल दिया। देखते-ही-देखते, मेरा सारा कैरियर चौपट हो गया!

हालाँकि मैं अपने परिवार को यह दिखाने की कोशिश करता कि मैंने हिम्मत नहीं हारी है, मगर अंदर-ही-अंदर मैं घुला जा रहा था कि अब नए हालात का सामना कैसे करूँगा, मेरा भविष्य क्या होगा। मैं निराशा की भावनाओं से लड़ने की पुरज़ोर कोशिश कर रहा था। एक बात जिससे मुझे सबसे ज़्यादा ठेस लगी, वह यह कि पल भर में ही, मैं कंपनी की नज़रों में नाकारा हो गया।

निर्बलता में बल पाना

लेकिन शुक्र है कि मैं मायूसी के इस दौर में अकेला नहीं था, मुझे कई ज़रिए से मदद मिली जिससे मैं मज़बूत हुआ। कुछ 20 साल पहले मैं एक यहोवा का साक्षी बना था। इसलिए मैंने दिल खोलकर अपनी भावनाओं और अपने डगमगाते भविष्य के बारे में यहोवा से प्रार्थना की। मेरी पत्नी भी, जो एक साक्षी है, मेरे लिए एक मज़बूत गढ़ थी। मेरे कुछ करीबी दोस्तों ने भी मेरा साथ दिया। उनका प्यार और उनकी हमदर्दी मेरे लिए बहुत अनमोल साबित हुई।—नीतिवचन 17:17.

दूसरों के प्रति ज़िम्मेदारी के एहसास ने भी मेरी मदद की। मेरी इच्छा थी कि अपने बेटे की अच्छी परवरिश करूँ और उसे बहुत कुछ सिखाऊँ। मैं उसके साथ खेलना चाहता था, उसे प्रचार काम की अच्छी ट्रेनिंग देना चाहता था। भला इतनी जल्दी मैं हार कैसे मानता? इसके अलावा, मैं यहोवा के साक्षियों की एक कलीसिया में प्राचीन था। मेरे मसीही भाई-बहनों को मेरी मदद की ज़रूरत थी। अगर मैं अपने दर्द की वजह से विश्‍वास में कमज़ोर होने लगता तो मैं दूसरों के लिए अच्छी मिसाल कैसे बनता?

बेशक मेरे शारीरिक और आर्थिक हालात में बहुत बदलाव आए। एक मायने में तो बहुत बुरा हुआ था, मगर देखा जाए तो अच्छा भी हुआ। एक बार मैंने एक डॉक्टर को कहते सुना था: “बीमारी एक इंसान को तबाह नहीं करती बल्कि उसे बदल देती है।” और मैंने गौर किया कि सभी बदलाव बुरे नहीं होते।

सबसे पहले तो मेरे ‘शरीर के कांटे’ ने मुझे दूसरों की स्वास्थ्य समस्याओं को और भी अच्छी तरह समझने और उनसे हमदर्दी जताने में मदद दी। (2 कुरिन्थियों 12:7) इसके अलावा, नीतिवचन 3:5 के शब्द जितनी अच्छी तरह अब समझ आए, उतने पहले कभी नहीं आए थे: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना।” इतना ही नहीं, मेरे नए हालात ने मुझे यह भी सिखाया कि ज़िंदगी में कौन-सी बातें ज़्यादा ज़रूरी हैं और किन बातों से सच्ची खुशी और आत्म सम्मान मिलता है। मैं अब भी यहोवा के संगठन के बहुत काम आ सकता था। मैंने यीशु के इन शब्दों का असली अर्थ समझ लिया था: “लेने से देना धन्य है।”—प्रेरितों 20:35.

एक नयी ज़िंदगी

अपनी बीमारी का पता लगे अभी ज़्यादा समय नहीं हुआ था कि मुझे मेड्रिड में एक सेमिनार के लिए बुलाया गया। वहाँ मसीही स्वयंसेवकों को सिखाया गया कि वे डाक्टरों और साक्षी मरीज़ों में आपसी सहयोग के लिए कैसे बढ़ावा दे सकते हैं। बाद में उन स्वयंसेवकों को समूहों में बाँटकर अस्पताल संपर्क समितियाँ बनायी गयीं। मेरे लिए इस सेमिनार का इंतज़ाम बिलकुल सही समय पर था। मैंने एक नया कैरियर पा लिया था जिसमें मुझे ज़्यादा संतुष्टि मिलती, जो मुझे कोई और नौकरी करने पर कभी न मिलती।

सेमिनार में हमें बताया गया कि इन नयी अस्पताल संपर्क समितियों का काम होगा अस्पतालों में जाना, डॉक्टरों से बातचीत करना और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को कुछ प्रदर्शन दिखाना। यह सब करने का मकसद है, डॉक्टरों और मरीज़ों के बीच सहयोग बढ़ाना और किसी भी तरह का मत-भेद उठने से पहले उसे रोकना। इन समितियों का काम था ऐसे डॉक्टरों को ढूँढ़ने में भाई-बहनों की मदद करना जो बिना लहू के इलाज करने को तैयार रहते हैं। मैं तो इस काम में निपट गँवार था, मुझे चिकित्सीय शब्दों, सिद्धांतों और अस्पताल के प्रबंधों के बारे में बहुत कुछ सीखना था। फिर भी, मैं इस सेमिनार के बाद एक नए मकसद और नयी चुनौती के साथ घर पहुँचा जिसकी वजह से मुझमें अनोखा जोश भरा हुआ था।

अस्पतालों में जाना—संतुष्टि देनेवाला काम

हालाँकि मेरी बीमारी मुझे धीरे-धीरे और बड़ी बेरहमी से अपंग बना रही थी लेकिन अस्पताल संपर्क समिति का सदस्य होने के नाते मेरी ज़िम्मेदारियाँ बढ़ती गयीं। मुझे अपंगता की पेंशन मिलती थी और क्योंकि मेरे पास कोई नौकरी नहीं थी, इसलिए अस्पतालों में जाने के लिए मेरे पास वक्‍त होता था। इस काम में कभी-कभी निराशा हाथ लगी, मगर यह इतना मुश्‍किल भी नहीं था और यह इतना फायदेमंद रहा जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी। हालाँकि मेरी हालत ऐसी हो गयी है कि पहिएदार कुर्सी के बिना मैं कुछ नहीं कर सकता, फिर भी यह मेरे लिए बहुत बड़ी बाधा नहीं है। समिति का एक सदस्य हमेशा मेरे साथ होता है। इसके अलावा, डॉक्टरों के लिए भी पहिएदार कुर्सी पर बैठे व्यक्‍ति से बात करना कोई नयी बात नहीं बल्कि कभी-कभी जब वे देखते हैं कि मैं ऐसी हालत में भी उनसे मिलने आया हूँ, तो वे और भी ध्यान से मेरी बात सुनते हैं।

पिछले दस सालों के दौरान मैंने सैकड़ों डॉक्टरों से भेंट की। कुछ डॉक्टर तो शुरू से ही हमारी मदद करने के लिए तैयार थे। डॉ. क्वान ड्‌वारटे मेड्रिड में हृदय के सर्जन हैं। वे मरीज़ों के विवेक का आदर करने में संतुष्टि पाते हैं और जब हमने उनसे मुलाकात की तो वे तुरंत अपनी सेवा देने के लिए तैयार हो गए। तब से उन्होंने बिना लहू के 200 से भी ज़्यादा साक्षी मरीज़ों के ऑपरेशन किए हैं, जो स्पेन के अलग-अलग भागों से आए थे। समय के गुज़रते और भी बहुत-से डॉक्टरों ने बिना लहू के ऑपरेशन किए। हमें जो कामयाबी मिली, वह कुछ हद तक डॉक्टरों को नियमित तौर पर मिलने की वजह से मिली है, मगर इसमें सबसे बड़ा हाथ, चिकित्सा क्षेत्र में हुई तरक्की और बिना लहू के ऑपरेशन से मिले अच्छे नतीजों का रहा है। और हमें यकीन है कि यहोवा ने हमारी कोशिशों पर आशीष दी है।

कुछ हार्ट सर्जन जो खासकर बच्चों का ऑपरेशन करने में कुशल हैं उन्होंने जिस तरह से सहयोग दिया है, उससे खासकर मुझे बहुत हौसला मिला। हम दो साल तक दो सर्जन और उनके एनैस्थिस्योलॉजीस्ट (शरीर को सुन्‍न करनेवाले डॉक्टर) की एक टीम से मिलते रहे थे। हम उन्हें चिकित्सा से संबंधित कुछ साहित्य देते रहे, जिनमें समझाया गया था कि इस तरह के इलाज के मामले में दूसरे डॉक्टर क्या कर रहे हैं। सन्‌ 1999 में हमारी मेहनत रंग लायी जब इंफैनटाइल कार्डियोवास्कुलर (शिशुओं के हृदय और रक्‍तवाहिकी की) सर्जरी पर एक चिकित्सीय सम्मेलन आयोजित किया गया। उन दो सर्जनों ने इंग्लैंड से आए एक सर्जन के बढ़िया निर्देशन में, जो बिना लहू के ऑपरेशन करने को तैयार था, एक बहुत ही पेचीदा ऑपरेशन किया। यह ऑपरेशन एक साक्षी बच्चे का था जिसके एऑरटिक वॉल्व (महाधमनिक कपाट) में थोड़ी फेरबदल करनी थी। * ऑपरेशन के बाद उनमें से एक सर्जन ने बाहर आकर खबर दी कि परिवार के विवेक का आदर करते हुए बगैर खून ऑपरेशन किया गया और यह कामयाब रहा। यह सुनकर उस बच्चे के माता-पिता के साथ मैं भी खुशी से फूला न समाया। अब ये दोनों डॉक्टर पूरे स्पेन से आए किसी भी साक्षी मरीज़ का इलाज करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।

ऐसे मामलों में जिस बात से मुझे सबसे ज़्यादा खुशी होती है, वह यह है कि मैं अपने मसीही भाइयों की मदद करने के काबिल हूँ। अकसर जब हमारे भाई अस्पताल संपर्क समिति से संपर्क करते हैं, तो उनके लिए वह घड़ी ज़िंदगी की एक बेहद मुश्‍किल घड़ी होती है। एक तो ऑपरेशन करना ज़रूरी होता है, ऊपर से उनके इलाके के डॉक्टर बिना लहू के ऑपरेशन करने को या तो राज़ी नहीं होते, या समर्थ नहीं होते। मगर जब भाइयों को पता चलता है कि मेड्रिड शहर में ही हमारी मदद करने के लिए चिकित्सा के सभी क्षेत्रों में सहयोगी सर्जन हैं तो उन्हें बड़ी राहत मिलती है। मैंने देखा है कि अस्पताल में सिर्फ उनके साथ रहने से, कैसे उनके चेहरे पर से चिंता की लकीरें हटकर सुकून झलकने लगता है।

न्यायधीशों और चिकित्सीय सिद्धांतों की एक दुनिया

हाल के सालों में अस्पताल संपर्क समिति के सदस्यों ने न्यायधीशों से भी मुलाकात की है। इन मुलाकातों के दौरान हम उन्हें एक प्रकाशन फैमली केयर एण्ड मेडिकल मैनेजमैंट फॉर जेहोवाज़ विटनैसैस देते हैं। यह खासकर उन्हीं के लिए बनायी गयी है। इसमें लहू के बारे में हमारी राय, साथ ही बिना लहू के इलाज के तरीकों पर जानकारी दी गयी है। न्यायधीशों से मुलाकात करना बहुत ज़रूरी था क्योंकि एक वक्‍त था जब स्पेन में यह साधारण बात थी कि जज मरीज़ों की इच्छा के विरुद्ध डॉक्टरों को खून चढ़ाने की अनुमति दे देते थे।

न्यायधीशों के कक्ष, बहुत ही शानदार होते हैं। उनसे पहली मुलाकात के दौरान, अपनी पहिएदार कुर्सी पर उनके बड़े गलियारे से गुज़रते हुए मैं अपने-आपको बहुत छोटा महसूस कर रहा था। और उस वक्‍त तो मैं और भी असमंजस में पड़ गया जब अचानक किसी वजह से मैं अपनी कुर्सी से लुढ़ककर घुटनों के बल गिर पड़ा। मेरी यह दुर्दशा देखकर जब कुछ न्यायाधीश और वकील दौड़े-दौड़े मेरी मदद के लिए आए, तो मैं और भी शर्म से पानी-पानी हो गया।

हालाँकि न्यायधीशों को साफ-साफ पता नहीं था कि हम क्यों उनसे मिलने आ रहे हैं मगर ज़्यादातर लोग हमारे साथ अच्छी तरह पेश आए। जिस पहले न्यायाधीश से हमने बात की, उसके मन में पहले से ही लहू के बारे में हमारी राय पर कुछ सवाल थे इसलिए उसने कहा कि वह हमसे और भी खुलकर बात करना चाहता है। जब हम दूसरी दफे उससे मिलने गए तो वह खुद मेरी पहिएदार कुर्सी चलाकर मुझे अपने कक्ष में ले गया और बहुत ध्यान से मेरी बातें सुनीं। इस शुरूआती मुलाकात के अच्छे नतीजे देखकर मेरी और मेरे साथियों की हिम्मत बढ़ी जिससे हम अपनी घबराहट पर काबू पा सके और जल्द ही हमने और भी अच्छे नतीजे देखे।

उसी साल हमने एक और जज को फैमली केयर की एक कॉपी दी थी, जिसने प्यार से हमारा स्वागत किया था और उसे पढ़ने का वादा किया था। मैंने उसे अपना टेलिफोन नंबर भी दिया ताकि इमरजैंसी में वह मुझसे संपर्क कर सके। दो हफ्ते बाद उस जज ने मुझे फोन करके कहा कि उस इलाके का एक सर्जन एक साक्षी पर ऑपरेशन करने के लिए उससे खून चढ़ाने का कानूनी अधिकार माँग रहा है। जज चाहता था कि हम इसका हल ढूँढ़ने में उसकी मदद करें ताकि खून न लेने के साक्षी की इच्छा का वह समर्थन कर सके। हमें एक दूसरा अस्पताल ढूँढ़ने में कोई दिक्कत नहीं हुई, जहाँ के सर्जन बिना खून चढ़ाए ऑपरेशन करने में कामयाब हुए। जब जज को इसकी खबर मिली तो वह बहुत खुश हुआ और उसने यकीन दिलाया कि भविष्य में अगर ऐसी स्थिति उठी, तो वह इसी तरह के हल ढूँढ़ेगा।

अस्पताल में मुलाकातों के दौरान, अकसर चिकित्सीय सिद्धांतों पर सवाल खड़े हो जाते थे क्योंकि हम चाहते थे कि इलाज करते समय एक डॉक्टर मरीज़ के विवेक और हक का ध्यान रखे। मेड्रिड में एक अस्पताल में, जिससे हमें काफी सहयोग मिला था, मुझे एक कोर्स में हिस्सा लेने का आमंत्रण मिला जिसमें इन्हीं नैतिक नियमों के बारे में बताया जानेवाला था। इस कोर्स से मैं कई विशेषज्ञों को अपना बाइबल आधारित नज़रिया बताने के काबिल हो गया। साथ ही मैं उन मुश्‍किल फैसलों के बारे में भी समझ सका जो डॉक्टरों को अकसर करने पड़ते हैं।

इस कोर्स का एक टीचर प्रोफेसर ड्येगो ग्रास्या नियमित रूप से स्पेन के डॉक्टरों के लिए चिकित्सीय सिद्धांतों पर एक उम्दा कोर्स आयोजित करता है। यह प्रोफेसर रक्‍ताधान के मामले में, इलाज की पूरी जानकारी पाने और चुनाव करने के हमारे हक का पूरा-पूरा समर्थन करता है। * उसके साथ हमारी लगातार मुलाकात होने की वजह से स्पेन के यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर के कुछ प्रतिनिधियों को एक आमंत्रण मिला कि वे प्रोफेसर के पोस्ट ग्रॆजुएट विद्यार्थियों को, जिनमें से कुछ उस देश के उत्तम डॉक्टर माने जाते हैं, लहू के संबंध में हमारी राय के बारे में समझाएँ।

हकीकत का सामना

संगी विश्‍वासियों की मदद करने में बेशक मुझे संतुष्टि मिलती है, लेकिन इससे मेरी सभी निजी समस्याएँ हल नहीं हो गयीं। मेरी बीमारी ज़ोर पकड़ती जा रही है। लेकिन खुशी की बात है कि मेरा दिमाग सही तरह से काम कर रहा है। मैं अपनी पत्नी और बेटे का भी शुक्रिया अदा करता हूँ जो कभी मुझसे कोई गिला-शिकवा नहीं करते, इसलिए मैं अब भी अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभा पा रहा हूँ। उनकी मदद और साथ के बिना यह बिलकुल संभव नहीं होता। मैं तो अपनी पैंट का बटन तक नहीं लगा सकता और ना ही अपने आप कोट पहन सकता हूँ। खासकर मुझे अपने बेटे ईस्माएल के साथ हर शनिवार को प्रचार में जाना बहुत अच्छा लगता है, जो मुझे पहिएदार कुर्सी पर जगह-जगह ले जाता है ताकि मैं लोगों से बात कर सकूँ। कलीसिया के प्राचीन के तौर पर मैं अपनी ज़िम्मेदारियाँ अभी भी अच्छी तरह निभा पाता हूँ।

पिछले 12 सालों में, मैं कुछ दर्दनाक पलों से गुज़रा हूँ। मेरी अपंगता की वजह से मेरे परिवार पर जो मुसीबत आयी है, जब वह देखता हूँ तो कभी-कभी मैं इतना तड़प उठता हूँ, जितना कि अपनी बीमारी के दर्द से भी कभी नहीं तड़पा। वे भले ही कुछ न कहें, मगर वे भी दुःख झेल रहे हैं। हाल की बात है, सिर्फ एक साल के अंदर मेरी सास और मेरे पिताजी दोनों की मौत हो गयी। उसी साल, मुझे अपनी कमज़ोरी का एहसास हुआ कि बिना पहिएदार कुर्सी के मैं कहीं नहीं आ-जा सकता। मेरे पिताजी जो हमारे साथ ही रहते थे, उनकी मौत कुछ इसी तरह की जानलेवा बीमारी से हुई थी। मीलाग्रोस, जो मेरे पिता की देखभाल करती थी, उस दौरान उसने महसूस किया मानो वह मेरा ही भविष्य देख रही है।

मगर बढ़िया बात यह है कि मिलकर मुश्‍किलों का सामना करते-करते हमारा पारिवारिक बंधन और मज़बूत हो गया है। हालाँकि मुझे डाइरेक्टर की कुर्सी के बदले पहिएदार कुर्सी मिली है, फिर भी मेरी यह ज़िंदगी पहले से बेहतर है क्योंकि अब यह पूरी तरह दूसरों की सेवा के लिए समर्पित है। देने से खुद अपना दुःख कम होता है, और यहोवा भी अपना वादा पूरा करते हुए ज़रूरत की घड़ी में हमारा हौसला बढ़ाता है। पौलुस की तरह मैं भी सचमुच कह सकता हूँ: “जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।”—फिलिप्पियों 4:13.

[फुटनोट]

^ पैरा. 5 मल्टिपल स्क्लेरोसिस केंद्रीय स्नायुतंत्र में होनेवाली गड़बड़ी है। यह अकसर एक इंसान के संतुलन, उसके हाथ-पैर, देखने, बोलने और समझने की काबिलीयत को धीरे-धीरे बिगाड़ देती है।

^ पैरा. 19 इस ऑपरेशन को रॉस प्रोसीजर कहा जाता है।

^ पैरा. 27 फरवरी 15,1997 की प्रहरीदुर्ग के पेज 19-20 देखिए।

[पेज 24 पर बक्स]

पत्नी का नज़रिया

उस पत्नी के लिए ज़िंदगी मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक तौर पर एक चुनौती बन जाती है जिसके पति को मल्टिपल स्क्लेरोसिस जैसी बीमारी हो। मुझे कोई भी काम बहुत सोच-समझकर और नाप-तौल कर करना पड़ता है और भविष्य के बारे में बेकार की चिंता करने से हमेशा खुद को रोकना पड़ता है। (मत्ती 6:34) लेकिन यह सच है कि दुःख-तकलीफें इंसान के बढ़िया गुणों को उजागर करती हैं। मेरी शादी का बंधन और भी मज़बूत हो गया है। मैं यहोवा के और भी करीब आ गयी हूँ। इसके अलावा, इसी तरह की परेशानियों में ज़िंदगी गुज़ारनेवालों की जीवन कहानियों से भी मेरी बहुत हिम्मत बढ़ती है। हूलयान को अपने भाइयों की अनमोल सेवा से जो खुशी मिलती है, उससे मुझे भी खुशी मिलती है। और मैंने एक बात देखी है कि यहोवा हमें हमेशा सँभाल लेता है फिर चाहे हमारी हर सुबह एक नयी चुनौती के साथ ही क्यों न शुरू हो।

[पेज 24 पर बक्स]

बेटे का नज़रिया

मेरे पिता का धीरज और ज़िंदगी के बारे में उनका अच्छा नज़रिया मेरे लिए एक बेहतरीन उदाहरण है। जब मैं उन्हें पहिएदार कुर्सी पर ले जाता हूँ तो मुझे अच्छा लगता है कि मैं उनकी मदद कर पा रहा हूँ। मैं जानता हूँ कि मैं वह सब कुछ नहीं कर सकता जो चाहता हूँ। अभी तो मैं किशोर ही हूँ, लेकिन बड़ा होने पर मैं अस्पताल संपर्क समिति का सदस्य बनना चाहूँगा। बाइबल में किए गए वादों से मैं यह जानता हूँ कि दुःख-तकलीफें ज़्यादा दिनों के लिए नहीं हैं और यह भी कि कई भाई-बहन हमसे भी ज़्यादा दुःख झेल रहे हैं।

[पेज 22 पर तसवीर]

मेरी पत्नी मेरे लिए मज़बूत गढ़ है

[पेज 23 पर तसवीर]

हार्ट सर्जन, डॉ. क्वान ड्‌वारटे से बात करते हुए

[पेज 25 पर तसवीर]

मैं और मेरा बेटा प्रचार में साथ काम करने का आनंद लेते हैं