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प्यार नहीं तो, ज़िंदगी नहीं

प्यार नहीं तो, ज़िंदगी नहीं

प्यार नहीं तो, ज़िंदगी नहीं

प्यार एक ऐसी चीज़ है जिसे पाने की तमन्‍ना हर इंसान के दिल में होती है, फिर चाहे उसकी उम्र, संस्कृति, भाषा और जाति जो भी हो। जब तक उसकी यह चाहत पूरी न हो, वह खुश नहीं रह सकता। चिकित्सा क्षेत्र के एक शोधकर्ता ने लिखा: “हम बीमार हों या ठीक हों, उदास हों या खुश, हमें दर्द हो या हमारा दर्द मिट जाए, ये सब इस बात पर निर्भर है कि क्या हम पर प्यार और दोस्ती का साया है। अगर कोई ऐसी दवा बन जाए जो प्यार के जैसा असर करे, तो देश का हर डॉक्टर अपने मरीज़ों को वही दवा लिखकर देगा। अगर कोई डॉक्टर वह दवा न लिखकर दे, तो वह अपने फर्ज़ से मुकर रहा होगा।”

हालाँकि प्यार में इतनी ताकत है, मगर फिर भी आज दुनिया, इंसान की इस ज़रूरत यानी प्यार भरे रिश्‍तों पर नहीं बल्कि दौलत, ताकत, शोहरत और लैंगिक इच्छाओं पर ज़्यादा ज़ोर देती है। खासकर टीवी, फिल्में वगैरह और वे जानी-मानी हस्तियाँ जिन्हें लोग अपना आदर्श मानते हैं, ऐसी बातों को बढ़ावा देते हैं। बहुत-से शिक्षक, ज़िंदगी में ऊँचे लक्ष्य हासिल करने और करियर बनाने पर ज़ोर देते हैं और एक इंसान की कामयाबी यह देखकर आँकते हैं कि समाज में उसका ओहदा क्या है। माना कि शिक्षा हासिल करना और अपनी काबिलीयतों को निखारना ज़रूरी है, मगर क्या एक इंसान को इन्हीं बातों में इतना समय लगा देना चाहिए कि उसे अपने परिवार और दोस्तों के लिए ज़रा भी वक्‍त न मिले? प्राचीन समय के एक मेधावी लेखक ने, जो इंसानी फितरत पर अच्छी तरह गौर करता था, कहा कि एक इंसान चाहे कितना भी काबिल क्यों न हो, अगर उसके दिल में प्यार नहीं है, तो वह ‘ठनठनाते हुए पीतल, और झंझनाती हुई झांझ’ के बराबर होगा। (1 कुरिन्थियों 13:1) ऐसे लोग चाहे कितनी भी दौलत कमा लें और मशहूर हो जाएँ, मगर वे कभी-भी सही मायनों में खुश नहीं होंगे।

यीशु मसीह को इंसानों के बारे में गहरी समझ थी और उनसे उसका खास लगाव था। उसने लोगों को सिखाते वक्‍त हमेशा इस बात पर ज़ोर दिया कि वे परमेश्‍वर से और दूसरों से प्यार करें। उसने कहा: “तू परमेश्‍वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। . . . तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।” (मत्ती 22:37-39) जो लोग यीशु की इन आज्ञाओं को मानते हैं, सिर्फ उन्हें ही उसके सच्चे चेले कहा जा सकता है। इसीलिए उसने कहा: “यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।”—यूहन्‍ना 13:35.

लेकिन आज की इस दुनिया में एक इंसान प्यार कैसे बढ़ा सकता है? और माता-पिता अपने बच्चों को प्यार करना कैसे सिखा सकते हैं? इन सवालों का जवाब अगले लेख में दिया जाएगा।

[पेज 3 पर तसवीरें]

इस मतलबी दुनिया में रहते हुए, दूसरों के लिए दिल में प्यार बढ़ाना एक चुनौती है