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यहोवा, सत्य का परमेश्‍वर

यहोवा, सत्य का परमेश्‍वर

यहोवा, सत्य का परमेश्‍वर

“हे यहोवा, हे सत्यवादी ईश्‍वर, तू ने मुझे मोल लेकर मुक्‍त किया है।”—भजन 31:5.

1. जब स्वर्ग और धरती में झूठ का नामो-निशान नहीं था, तब वहाँ कैसा माहौल था?

एक समय था जब झूठ का कोई नामो-निशान नहीं था। आत्मिक लोक में रहनेवाले सिद्ध आत्मिक प्राणी अपने सिरजनहार की सेवा करते थे जो एक “सत्यवादी ईश्‍वर” है। (भजन 31:5) झूठ, धोखाधड़ी, यह सब सुनने को भी नहीं मिलता था। यहोवा अपने आत्मिक पुत्रों को सच्ची बातों की जानकारी देता था। वह इसलिए उन्हें यह जानकारी देता था क्योंकि वह उनसे प्यार करता था और सच्चे दिल से उनकी भलाई चाहता था। धरती पर भी ऐसा ही माहौल था। यहोवा ने पहले पुरुष और स्त्री को सृजा और अपने ठहराए इंतज़ाम के ज़रिए वह हमेशा उनको सच्चाई की बातें, साफ-साफ बताया करता था। सचमुच, वह क्या ही बेहतरीन समय रहा होगा!

2. झूठ की शुरूआत किसने की और क्यों?

2 लेकिन कुछ समय बाद, यहोवा के एक आत्मिक पुत्र ने उसके खिलाफ जाने की जुर्रत की और खुद को एक ईश्‍वर ठहराने की कोशिश की। यह आत्मिक प्राणी, बाद में शैतान और इब्‌लीस कहलाया। वह दूसरों की उपासना पाना चाहता था इसलिए उसने झूठ की शुरूआत की और इस झूठ के सहारे वह दूसरों को अपनी मुट्ठी में करने लगा। इस तरह वह न सिर्फ “झूठा” बल्कि “झूठ का पिता” भी बन गया।—यूहन्‍ना 8:44.

3. शैतान की झूठी बातें सुनकर आदम और हव्वा ने क्या किया और अंजाम क्या हुआ?

3 शैतान ने एक साँप को अपना ज़रिया बनाकर पहली स्त्री, हव्वा से कहा कि अगर वह परमेश्‍वर की आज्ञा को तोड़कर मना किया गया फल खा लेगी, तो वह नहीं मरेगी। यह दरअसल एक झूठ था। उसने हव्वा को यह भी बताया कि उस फल को खाने से वह भले-बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्‍वर के बराबर हो जाएगी। यह भी एक झूठ था। हालाँकि हव्वा ने इससे पहले कभी झूठ नहीं सुना था, फिर भी वह जान गयी होगी कि साँप ने उससे जो कहा और उसके पति, आदम से यहोवा ने जो कहा, दोनों बातों में फर्क है। फिर भी उसने यहोवा के बजाय शैतान की बात पर यकीन करने का चुनाव किया। वह पूरी तरह शैतान के बहकावे में आ गयी और इसलिए उसने फल तोड़कर खा लिया। बाद में आदम ने भी वह फल खाया। (उत्पत्ति 3:1-6) हव्वा की तरह, आदम ने भी इससे पहले कभी झूठ नहीं सुना था, फिर भी उसने जो पाप किया वह बहकावे में आकर नहीं किया। (1 तीमुथियुस 2:14) अपने कामों से उसने दिखाया कि उसने अपने बनानेवाले को ठुकरा दिया है। और इस बगावत का अंजाम यह हुआ कि पूरी दुनिया पर कहर टूट पड़ा। आदम के आज्ञा न मानने की वजह से, उसकी सभी संतानें, पाप और मौत की गिरफ्त में आ गयीं, साथ ही वे भ्रष्टाचार और बेहिसाब दुःख-तकलीफों से घिर गयीं।—रोमियों 5:12.

4. (क) अदन के बाग में बोले गए झूठ से किस बात पर उँगली उठायी गयी? (ख) शैतान के बहकावे में न आने के लिए हमें क्या करना होगा?

4 इन सारी मुसीबतों के अलावा, संसार में झूठ भी फैलने लगा। हमें यह बात समझनी चाहिए कि अदन के बाग में जो झूठी बातें कही गयी थीं, उनसे दरअसल यहोवा के सत्यवादी होने पर उँगली उठायी गयी। शैतान का यह दावा था कि परमेश्‍वर ने पहले पुरुष और स्त्री से कुछ अच्छी चीज़ छिपाकर उनकी आँखों में धूल झोंकी है। लेकिन यह बात सच नहीं थी। आदम और हव्वा को बगावत करके कोई फायदा नहीं हुआ। ठीक जैसा यहोवा ने कहा था, वे मर गए। फिर भी, शैतान यहोवा के नाम पर कीचड़ उछालने से बाज़ नहीं आया। वह अपनी कोशिशों में इतना कामयाब रहा है कि आदम के पाप करने के सदियों बाद, प्रेरित यूहन्‍ना ने ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखा कि शैतान ‘सारे संसार को भरमा’ रहा है। (प्रकाशितवाक्य 12:9) आज अगर हम शैतान के बहकावे में नहीं आना चाहते हैं, तो हमें यहोवा और उसके वचन की सच्चाई पर पूरा भरोसा रखना होगा। आप यहोवा पर किस तरह भरोसा पैदा कर सकते हैं और उसे मज़बूत कर सकते हैं, साथ ही उसके दुश्‍मन के छल और झूठी बातों से खुद को कैसे बचा सकते हैं?

यहोवा सच्चाई जानता है

5, 6. (क) यहोवा के पास कितना ज्ञान है? (ख) यहोवा के ज्ञान के मुकाबले, इंसान के पास कितना ज्ञान है?

5 बाइबल में कई बार ऐसा कहा गया है कि यहोवा ‘सम्पूर्ण वस्तुओं का सृजनहार’ है। (इफिसियों 3:9, NHT) उसी ने “स्वर्ग और पृथ्वी और समुद्र और जो कुछ उन में है बनाया।” (प्रेरितों 4:24) सिरजनहार होने के नाते, यहोवा हर चीज़ के बारे में सच्चाई जानता है। उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि एक आदमी अपना घर बनाने के लिए नक्शा तैयार करता है। फिर वह अपने ही हाथों से घर का हर तख्ता बिठाता और हर कील ठोकता है। ज़ाहिर है कि वह अपने घर के कोने-कोने से वाकिफ होगा और सबसे ज़्यादा उसी को अपने घर की अच्छी समझ होगी। जी हाँ, जब एक इंसान अपने हाथ से किसी चीज़ को रचता है तो उसे उस चीज़ की पूरी जानकारी होती है। उसी तरह, सिरजनहार ने जितनी भी चीज़ों की सृष्टि की है, उनके बारे में वह हर छोटी-से-छोटी बात जानता है।

6 यहोवा के पास ज्ञान का जो भंडार है, उसे भविष्यवक्‍ता यशायाह ने बड़े ही खूबसूरत शब्दों में बयान किया। हम पढ़ते हैं: “किस ने महासागर को चुल्लू से मापा और किस के वित्ते से आकाश का नाप हुआ, किस ने पृथ्वी की मिट्टी को नपवे में भरा और पहाड़ों को तराजू में और पहाड़ियों को कांटे में तौला है? किस ने यहोवा की आत्मा को मार्ग बताया वा उसका मन्त्री होकर उसको ज्ञान सिखाया है? उस ने किस से सम्मति ली और किस ने उसे समझाकर न्याय का पथ बता दिया और ज्ञान सिखाकर बुद्धि का मार्ग जता दिया है?” (यशायाह 40:12-14) इसमें शक नहीं कि यहोवा “ज्ञानी ईश्‍वर है” और वह “ज्ञान में सिद्ध” है। (1 शमूएल 2:3; अय्यूब 36:4, NHT; 37:16) यहोवा के मुकाबले, हम तो कुछ भी नहीं जानते! इंसान ने अब तक जो ज्ञान हासिल किया है, वह हालाँकि हमें हैरत में डाल देता है, मगर सच तो यह है कि सृष्टि के बारे में हमारी समझ “[परमेश्‍वर के] मार्गों के किनारे” तक भी नहीं पहुँच पायी है। यह “सामर्थी गर्जन” की तुलना में बस एक “भनक” जैसी है।—अय्यूब 26:14, NHT.

7. दाऊद ने यहोवा के ज्ञान के बारे में किस बात को समझा और इसलिए हमें क्या कबूल करना चाहिए?

7 जब यहोवा ने हमारी सृष्टि की है, तो यह कहना सही होगा कि वह हमारी रग-रग से वाकिफ है। राजा दाऊद ने इस बात को समझा था। उसने लिखा: “हे यहोवा, तू ने मुझे जांचकर जान लिया है। तू मेरा उठना बैठना जानता है; और मेरे विचारों को दूर ही से समझ लेता है। मेरे चलने और लेटने की तू भली-भांति छानबीन करता है, और मेरी पूरी चालचलन का भेद जानता है। हे यहोवा, मेरे मुंह में ऐसी कोई बात नहीं जिसे तू पूरी रीति से न जानता हो।” (भजन 139:1-4) बेशक, दाऊद यह भी जानता था कि इंसान में अपने फैसले खुद करने की काबिलीयत है यानी परमेश्‍वर ने हमें ऐसी आज़ादी दी है कि हम चाहे तो उसकी आज्ञा मान सकते हैं या उसके खिलाफ जा सकते हैं। (व्यवस्थाविवरण 30:19, 20; यहोशू 24:15) फिर भी हम खुद के बारे में जितना जानते हैं, उससे कहीं ज़्यादा यहोवा हमारे बारे में जानता है। वह हमारी भलाई चाहता है और वही हमें सही राह दिखाने के काबिल है। (यिर्मयाह 10:23) दरअसल, यहोवा से बढ़कर दुनिया में ऐसा कोई शिक्षक, कोई ज्ञानी या सलाहकार नहीं है जो हमें सच्चाई सिखाए, बुद्धिमान बनाए और एक खुशहाल ज़िंदगी दे।

यहोवा सत्यवादी है

8. हम कैसे जानते हैं कि यहोवा सत्यवादी है?

8 सच्चाई की जानकारी रखना एक बात है मगर हमेशा सच बोलना और ईमानदार रहना अलग बात है। अब इब्‌लीस के बारे में देखें, तो हालाँकि वह सच्चाई जानता है मगर उसने ‘सत्य पर स्थिर न रहने’ का फैसला किया। (यूहन्‍ना 8:44) दूसरी तरफ, यहोवा “सत्य से भरपूर” है। (निर्गमन 34:6, NHT) बाइबल में कई बार यह बताया गया है कि परमेश्‍वर सत्यवादी है। मसलन, प्रेरित पौलुस ने कहा कि “परमेश्‍वर का झूठा ठहरना अन्होना है” और कि वह “झूठ बोल नहीं सकता।” (इब्रानियों 6:18; तीतुस 1:2) सत्यवादी होना, परमेश्‍वर के व्यक्‍तित्व का एक अहम हिस्सा है। हम यहोवा पर अपना पूरा भरोसा रख सकते हैं क्योंकि वह सत्यवादी है; वह कभी अपने वफादार लोगों को धोखा नहीं देता।

9. यहोवा का नाम, सच्चाई से कैसे ताल्लुक रखता है?

9 यहोवा का नाम खुद इस बात की गवाही देता है कि वह सत्यवादी है। इस नाम का मतलब है, “वह बनने का कारण होता है।” यह दिखाता है कि यहोवा अपने सभी वादों को सिलसिलेवार ढंग से पूरा करनेवाला परमेश्‍वर है। ऐसा करने की ताकत सिर्फ उसी के पास है। यहोवा परमप्रधान है, इसलिए कोई भी चीज़ उसे अपने मकसद को अंजाम देने से नहीं रोक सकती। तो यहोवा सत्यवादी होने के साथ-साथ इतनी शक्‍ति और बुद्धि रखता है कि वह अपनी हर बात को पूरा कर सके।

10. (क) यहोशू ने यहोवा के सत्यवादी होने का सबूत कैसे देखा? (ख) आपने यहोवा के किन वादों को पूरा होते देखा है?

10 बीते समय में ऐसी अनोखी घटनाएँ घटीं जिनसे यहोवा के सत्यवादी होने का सबूत मिला। और कई लोग इन घटनाओं के चश्‍मदीद गवाह थे। उन्हीं में से एक था, यहोशू। यहोशू उस वक्‍त मिस्र में था जब यहोवा उस देश पर दस विपत्तियाँ लाया। उसने देखा कि परमेश्‍वर ने कैसे एक-एक विपत्ति के बारे में पहले से बताया और फिर ऐसा ही किया। यहोशू ने यहोवा के जिन वादों को पूरा होते देखा उनमें से कुछ हैं, इस्राएलियों को मिस्र से छुड़ाना, उन्हें वादा किए गए देश में ले जाना और उनका विरोध करनेवाली ताकतवर कनानी फौजों को हराना। यहोशू ने अपनी ज़िंदगी के आखिरी दौर में, इस्राएल जाति के पुरनियों से कहा: “तुम सब अपने अपने हृदय और मन में जानते हो, कि जितनी भलाई की बातें हमारे परमेश्‍वर यहोवा ने हमारे विषय में कहीं उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही; वे सब की सब तुम पर घट गई हैं, उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही।” (यहोशू 23:14) माना कि आपने वे चमत्कार नहीं देखे जो यहोशू ने देखे थे, मगर क्या आपने अपनी ज़िंदगी में परमेश्‍वर के वादों को सच होते देखा है?

यहोवा सच्चाई ज़ाहिर करता है

11. किस बात से ज़ाहिर होता है कि यहोवा, इंसानों को सच्चाई का ज्ञान देना चाहता है?

11 एक ऐसे पिता की कल्पना कीजिए जो बहुत ज्ञानी है मगर वह अपने बच्चों से शायद ही कभी बात करता हो। क्या आप यहोवा के शुक्रगुज़ार नहीं कि वह उस पिता के जैसा नहीं है? यहोवा, सभी इंसानों से प्यार करता है इसलिए वह उनके फायदे के लिए उन्हें ज्ञान देता है और वह पूरी उदारता से ऐसा करता है। बाइबल कहती है कि यहोवा “महान उपदेशक” है। (यशायाह 30:20, NW) निरंतर प्रेम-कृपा दिखाने की वजह से यहोवा उन लोगों तक भी अपना ज्ञान पहुँचाता है जो उसकी बात सुनने को तैयार नहीं हैं। मसलन, यहेजकेल को ऐसे लोगों के पास प्रचार करने के लिए भेजा गया जिनके बारे में यहोवा पहले से जानता था कि वे उसका संदेश नहीं सुनेंगे। यहोवा ने यहेजकेल से कहा: “हे मनुष्य के सन्तान, तू इस्राएल के घराने के पास जाकर उनको मेरे वचन सुना।” फिर यहोवा ने उसे आगाह किया: ‘वे तेरी सुनने से इनकार करेंगे; वे मेरी भी सुनने से इनकार करते हैं; क्योंकि इस्राएल का सारा घराना ढीठ और कठोर मन का है।’ यहेजकेल के लिए यह काम बहुत मुश्‍किल था, फिर भी उसने वफादारी से उसे पूरा किया और ऐसा करके उसने यहोवा की दया ज़ाहिर की। अगर आप प्रचार के काम में किसी ज़िम्मेदारी को निभाना मुश्‍किल पाते हैं और परमेश्‍वर से मदद माँगते हैं, तो आप पूरा यकीन रखिए कि वह आपको मज़बूत करेगा, ठीक जैसे उसने भविष्यवक्‍ता यहेजकेल को मज़बूत किया था।—यहेजकेल 3:4, 7-9.

12, 13. परमेश्‍वर ने किन-किन तरीकों से इंसानों से बात की है?

12 यहोवा चाहता है कि “सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली भांति पहचान लें।” (1 तीमुथियुस 2:4) उसने भविष्यवक्‍ताओं, स्वर्गदूतों, और यहाँ तक कि अपने प्यारे बेटे, यीशु मसीह के ज़रिए भी इंसानों से बात की है। (इब्रानियों 1:1, 2; 2:2) यीशु ने पीलातुस से कहा: “मैं ने इसलिये जन्म लिया, और इसलिये जगत में आया हूं कि सत्य पर गवाही दूं जो कोई सत्य का है, वह मेरा शब्द सुनता है।” पीलातुस को क्या ही सुनहरा मौका मिला कि वह यहोवा के किए उद्धार के इंतज़ाम के बारे में सच्चाई, सीधे परमेश्‍वर के बेटे से सीखे। लेकिन, पीलातुस सच्चाई के पक्ष में नहीं था और वह यीशु से सीखने को तैयार नहीं था। इसके बजाय, पीलातुस ने यीशु की बात के जवाब में, सत्य का मज़ाक उड़ाते हुए पूछा: “सत्य क्या है?” (यूहन्‍ना 18:37, 38) पीलातुस ने कितना बढ़िया मौका गँवा दिया! मगर बहुत-से लोगों ने यीशु की बतायी सच्चाई को सुना था। यीशु ने अपने चेलों से कहा: “धन्य है तुम्हारी आंखें, कि वे देखती हैं; और तुम्हारे कान, कि वे सुनते हैं।”—मत्ती 13:16.

13 यहोवा ने सच्चाई को बाइबल में दर्ज़ करवाकर उसे बरकरार रखा है और दुनिया के कोने-कोने में रहनेवालों तक इसे मुहैया करवाया है। बाइबल में हर बात सच-सच बतायी गयी है। यह परमेश्‍वर के गुणों, उसके मकसदों और उसकी आज्ञाओं के बारे में समझाती है, साथ ही इंसानों की असली हालत बताती है। यीशु ने यहोवा से प्रार्थना में कहा: “तेरा वचन सत्य है।” (यूहन्‍ना 17:17) इसी वजह से बाइबल एक बेजोड़ किताब है। सिर्फ यही एक किताब है जिसे उस परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा गया, जो सब कुछ जानता है। (2 तीमुथियुस 3:16) यह इंसानों को मिला एक बेशकीमती तोहफा है, जिसे परमेश्‍वर के सेवक एक खज़ाना समझते हैं। इसे रोज़ाना पढ़ने से हमारा भला होगा।

सच्चाई को मज़बूती से थामे रहें

14. यहोवा के कुछ वादे क्या हैं और हमें क्यों उसकी बात पर यकीन करना चाहिए?

14 यहोवा अपने वचन में हमसे जो कहता है, उस पर हमें विश्‍वास करना चाहिए। वह बिलकुल वैसा ही है जैसा उसने अपने बारे में कहा है, और उसने जो वचन दिया है, उसे वह हर हाल में पूरा करेगा। हम बिना किसी संदेह के उस पर भरोसा रख सकते हैं। हम यहोवा की इस बात पर यकीन रख सकते हैं कि ‘जो परमेश्‍वर को नहीं पहचानते, और हमारे प्रभु यीशु के सुसमाचार को नहीं मानते उन से वह पलटा लेगा।’ (2 थिस्सलुनीकियों 1:8) हम यहोवा की इस बात पर भी भरोसा रख सकते हैं कि वह धार्मिकता के मार्ग पर चलनेवालों से प्यार करता है, साथ ही यह कि अपना विश्‍वास ज़ाहिर करनेवालों को वह अनंत जीवन देगा और दुःख-दर्द, आँसू और यहाँ तक कि मौत को मिटा देगा। इस आखिरी वादे की सच्चाई को पुख्ता करने के लिए, यहोवा ने प्रेरित यूहन्‍ना को यह हिदायत दी: “लिख ले, क्योंकि ये वचन विश्‍वास के योग्य और सत्य हैं।”—प्रकाशितवाक्य 21:4, 5; नीतिवचन 15:9; यूहन्‍ना 3:36.

15. ऐसे कुछ झूठ क्या हैं जो शैतान फैलाता है?

15 शैतान, यहोवा से हर मायने में अलग है। वह लोगों को सही जानकारी देने के बजाय, उन्हें गुमराह करता है। लोगों को सच्ची उपासना से दूर ले जाना उसका लक्ष्य है और इसे हासिल करने के लिए वह हज़ारों झूठ फैलाता है। मिसाल के लिए, वह हमें यकीन दिलाना चाहता है कि यहोवा हमसे कोई नाता नहीं रखना चाहता और इंसान जो तकलीफें सह रहे हैं, उनके बारे में उसे ज़रा भी परवाह नहीं है। लेकिन बाइबल दिखाती है कि यहोवा अपने हाथ की बनायी सृष्टि यानी इंसानों की बहुत परवाह करता है और संसार में फैली बुराई और दुःख-तकलीफें देखकर उसका दिल तड़प उठता है। (प्रेरितों 17:24-30) शैतान, लोगों को यह भी यकीन दिलाना चाहता है कि आध्यात्मिक बातों के लिए मेहनत करना, समय की बरबादी है। लेकिन बाइबल हमें भरोसा दिलाती है कि ‘परमेश्‍वर अन्यायी नहीं, कि हमारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो हम ने उसके नाम के लिये दिखाया।’ और यह साफ बताती है कि वह “अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है।”—इब्रानियों 6:10; 11:6.

16. मसीहियों को क्यों हमेशा चौकस रहना और सच्चाई को मज़बूती से थामे रहना चाहिए?

16 शैतान के बारे में प्रेरित पौलुस ने लिखा: ‘इस संसार के ईश्‍वर ने अविश्‍वासियों की बुद्धि को अन्धा कर दिया है, ताकि मसीह जो परमेश्‍वर का प्रतिरूप है, उसके तेजोमय सुसमाचार का प्रकाश उन पर न चमके।’ (2 कुरिन्थियों 4:4) हव्वा की तरह आज कुछ लोग, पूरी तरह शैतान के बहकावे में आ जाते हैं। दूसरे लोग आदम के नक्शे-कदम पर चलते हैं। उसे बहकाया नहीं गया था मगर उसने जानबूझकर बगावत का रास्ता इख्तियार किया। (यहूदा 5, 11) इसलिए मसीहियों को हमेशा चौकस रहना चाहिए और सच्चाई को मज़बूती से थामे रहना चाहिए।

यहोवा “कपटरहित विश्‍वास” चाहता है

17. यहोवा का अनुग्रह पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

17 यहोवा अपने सभी कामों में सत्यवादी होने की वजह से चाहता है कि उसकी उपासना करनेवाले भी सत्यवादी हों। भजनहार ने लिखा: “हे परमेश्‍वर तेरे तम्बू में कौन रहेगा? तेरे पवित्र पर्वत पर कौन बसने पाएगा? वह जो खराई से चलता और धर्म के काम करता है, और हृदय से सच बोलता है।” (भजन 15:1, 2) जब यहूदी इस गीत को गाते, तो यहोवा के पवित्र पर्वत का ज़िक्र सुनते ही ज़रूर उनके दिमाग में सिय्योन पर्वत का खयाल आता, जहाँ पर राजा दाऊद ने एक तंबू खड़ा किया था और वाचा का संदूक वहाँ ले आया था। (2 शमूएल 6:12, 17) उस पर्वत और तंबू से यहूदियों को वह जगह याद आती जहाँ पर यहोवा एक लाक्षणिक अर्थ में निवास करता था। लोग उस जगह पर आकर यहोवा के अनुग्रह के लिए उससे बिनती कर सकते थे।

18. (क) यहोवा से दोस्ती करने के लिए किस माँग को पूरा करना ज़रूरी है? (ख) अगले लेख में किस बात पर चर्चा की जाएगी?

18 जो भी यहोवा का दोस्त बनना चाहता है, उसे चाहिए कि वह न सिर्फ होठों से, बल्कि “हृदय से” भी सच बोले। सच्चाई के काम दिल से किए जाते हैं इसलिए सिर्फ वे लोग परमेश्‍वर के सच्चे दोस्त बन सकते हैं जिनका दिल साफ है और जो “कपटरहित विश्‍वास” का सबूत देते हैं। (1 तीमुथियुस 1:5; मत्ती 12:34, 35) एक कपटी या छली इंसान यहोवा का दोस्त नहीं हो सकता क्योंकि “यहोवा . . . छली मनुष्य से घृणा करता है।” (भजन 5:6) संसार भर में रहनेवाले यहोवा के साक्षी, अपने परमेश्‍वर की मिसाल पर चलते हुए सत्यवादी होने के लिए जी-तोड़ कोशिश करते हैं। वे यह कैसे करते हैं, इस बारे में अगले लेख में चर्चा की जाएगी।

आपका जवाब क्या होगा?

• यहोवा हर चीज़ के बारे में सच्चाई क्यों जानता है?

• क्या दिखाता है कि यहोवा सत्यवादी है?

• यहोवा ने सच्चाई कैसे ज़ाहिर की है?

• सच्चाई के मामले में, हमसे क्या माँग की जाती है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 10 पर तसवीरें]

सत्य का परमेश्‍वर, अपने हाथ की बनायी सृष्टि के बारे में सबकुछ जानता है

[पेज 12, 13 पर तसवीरें]

यहोवा के वादे ज़रूर पूरे होंगे