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कुछ लोगों को कैसे याद किया जाता है

कुछ लोगों को कैसे याद किया जाता है

कुछ लोगों को कैसे याद किया जाता है

करीब तीन हज़ार साल पहले की बात है, दाऊद इस्राएल के राजा शाऊल से अपनी जान बचाकर भाग रहा था। दाऊद ने अपने आदमियों को नाबाल के पास भोजन और पानी के लिए भेजा। नाबाल दौलतमंद था जिसके पास बहुत-सी भेड़-बकरियाँ थीं। असल में नाबाल, दाऊद और उसके आदमियों का कर्ज़दार था क्योंकि उन्होंने उसके झुँडों की रक्षा की थी। फिर भी नाबाल ने उन्हें किसी भी तरह की मदद देने से इनकार कर दिया। और-तो-और, वह दाऊद के आदमियों पर चिल्लाया और उन्हें फटकारा। नाबाल असल में आग से खेल रहा था क्योंकि दाऊद कोई मामूली इंसान नहीं था कि वह उसकी इस तरह बेइज़्ज़ती करे।—1 शमूएल 25:5, 8, 10, 11, 14.

नाबाल का ऐसा रवैया दिखाना बहुत अजीब बात थी क्योंकि मध्य पूर्वी देशों में, मेहमानों और अजनबियों की आव-भगत करना एक परंपरा थी। तो नाबाल ने अपने लिए किस तरह का नाम कमाया? बाइबल वृत्तांत कहता है कि वह “कठोर, और बुरे बुरे काम करनेवाला” और “दुष्ट” था। उसके नाम का मतलब है “बुद्धिहीन” और उसने अपने जीवन में यही गुण ज़ाहिर किया। (1 शमूएल 25:3, 17, 25) क्या आप इस तरीके से याद किए जाना पसंद करेंगे? दूसरों के साथ क्या आप कठोरता से पेश आते हैं और अपनी बात पर अड़े रहते हैं, खासकर जब आप देखते हैं वे किसी हालात से मजबूर हैं या कमज़ोर हैं? या आप दयालु, मेहमाननवाज़, और दूसरों की परवाह करनेवाले हैं?

अबीगैल—एक समझदार स्त्री

अपने रूखे व्यवहार की वजह से नाबाल मुसीबत में फँस गया। दाऊद और उसके 400 आदमी तलवारों के साथ उसे सबक सिखाने निकल पड़े। इस बीच नाबाल की पत्नी, अबीगैल को खबर मिली कि उसके पति ने क्या किया। उसने भाँप लिया कि जल्द ही लड़ाई होनी तय है। अब वह क्या करती? वह फटाफट ढेर सारी खाने-पीने की चीज़ें लेकर दाऊद और उसके आदमियों से मिलने निकल पड़ी ताकि उन्हें रोक सके। दाऊद से मिलने पर उसने उससे मिन्‍नत की कि वह बिना वजह खून न बहाए। दाऊद का दिल पसीज गया और उसने अबीगैल की बिनती सुन ली। इन घटनाओं के कुछ समय बाद नाबाल की मौत हो गयी। इसके बाद, दाऊद ने अबीगैल के अच्छे गुणों को देखते हुए उसे अपनी पत्नी बना लिया।—1 शमूएल 25:14-42.

अबीगैल ने अपने लिए किस तरह का नाम कमाया? जैसा कि मूल इब्रानी पाठ में बताया गया है वह एक “बुद्धिमान” स्त्री थी। जी हाँ, वह समझदार थी और वह समस्याओं से निपटना जानती थी और यह भी कि कब क्या कदम उठाना चाहिए। उसने अपने मूर्ख पति और अपने घराने के साथ वफादारी निभाते हुए उन्हें मुसीबत से बचाया। बाद में उसकी मौत हो गयी लेकिन उसने जीते-जी एक समझदार स्त्री होने का बढ़िया नाम कमाया।—1 शमूएल 25:3.

पतरस ने कैसी पहचान बनायी?

आइए हम पहली सदी की तरफ बढ़ें और यीशु के बारह प्रेरितों के बारे में विचार करें। इसमें कोई शक नहीं कि उन सब में पतरस या कैफा ही सबसे ज़्यादा अपनी भावनाओं को ज़ाहिर करनेवाला और उतावला इंसान था। वह पहले गलील में एक मछुआरा था। यह बात भी बिलकुल साफ है कि वह एक जोशीला इंसान था, जिसे अपने दिल की बात कहने में ज़रा भी डर नहीं लगता था। उदाहरण के लिए, एक मौके पर यीशु ने अपने सभी चेलों के पैर धोए थे। लेकिन जब पतरस की बारी आयी तो उसने क्या किया?

पतरस ने यीशु से कहा: “क्या तू मेरे पांव धोता है?” यीशु ने जवाब दिया: “जो मैं करता हूं, तू अब नहीं जानता परन्तु इस के बाद समझेगा।” तो पतरस ने कहा: “तू मेरे पांव कभी न धोने पाएगा।” गौर कीजिए कि पतरस ने कितने ज़ोरदार तरीके से अपनी बात कही, साथ ही वह कैसा उतावला था। इस पर यीशु ने क्या प्रतिक्रिया दिखायी?

यीशु ने जवाब दिया: “यदि मैं तुझे न धोऊं, तो मेरे साथ तेरा कुछ भी साझा नहीं।” इस पर शमौन पतरस ने कहा: “हे प्रभु, तो मेरे पांव ही नहीं, बरन हाथ और सिर भी धो दे।” इस तरह पतरस ने दूसरी हद पार कर दी! लेकिन फिर भी पतरस के बारे में लोग जानते थे कि वह दिल का कैसा इंसान था। पतरस में कोई छल-कपट नहीं था।—यूहन्‍ना 13:6-9.

पतरस ऐसी कमज़ोरियों के लिए भी याद किया जाता है जो इंसानों में आम होती हैं। उदाहरण के लिए, जब लोगों ने उस पर इलज़ाम लगाया कि वह नासरत के एक अपराधी यीशु का चेला है, तो उसने उनके सामने यीशु का तीन बार इनकार किया। लेकिन जब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, तो वह फूट-फूटकर रोया। वह अपने दुःख और पछतावे को ज़ाहिर करने से नहीं झिझका। यह भी गौर करनेवाली बात है कि सुसमाचार के लेखकों ने पतरस के इनकार करने का यह वृत्तांत अपनी पुस्तकों में दर्ज़ किया है। हो सकता है कि यह जानकारी खुद पतरस ने ही उन्हें दी हो। वह नम्रता से अपनी गलतियों को स्वीकार करता था। क्या अपनी कमियों को स्वीकार करने का गुण आपमें है?—मत्ती 26:69-75; मरकुस 14:66-72; लूका 22:54-62; यूहन्‍ना 18:15-18, 25-27.

यीशु का इनकार करने के कुछ ही हफ्तों बाद पिन्तेकुस्त के दिन जब पतरस पवित्र आत्मा से भर गया तो उसने निडर होकर यहूदियों की भीड़ को प्रचार किया। यह इस बात का ठोस सबूत था कि पुनरुत्थान पाए हुए यीशु को पतरस पर पूरा-पूरा भरोसा था।—प्रेरितों 2:14-21.

एक और मौके पर पतरस एक दूसरे फंदे में फँस गया। प्रेरित पौलुस बताता है कि अंताकिया में कुछ यहूदी भाइयों के आने से पहले, पतरस गैर-यहूदी मसीहियों के साथ खुलेआम मिलता-जुलता था। लेकिन अब यरूशलेम से कुछ समय पहले आए “खतना किए हुए लोगों के डर के मारे” वह उन गैर-यहूदी मसीहियों से दूर-दूर रहने लगा। पौलुस ने पतरस के इस दोगलेपन की सबके सामने आलोचना की।—गलतियों 2:11-14.

फिर भी, उस नाज़ुक घड़ी को याद कीजिए जब ऐसा लग रहा था कि यीशु के ज़्यादातर चेले उसे छोड़कर चले जाएँगे। उस वक्‍त चेलों में से किसने निडरता से अपनी राय ज़ाहिर की? यह उस समय की बात है जब यीशु ने अपना माँस खाने और लहू पीने की अहमियत के बारे में एक नयी बात ज़ाहिर की थी। उसने कहा था: “जब तक मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ, और उसका लोहू न पीओ, तुम में जीवन नहीं।” यीशु के ज़्यादातर यहूदी चेलों को इस बात से ठोकर लगी और उन्होंने कहा: “यह बात नागवार है; इसे कौन सुन सकता है?” उसके बाद क्या हुआ? “इस पर उसके चेलों में से बहुतेरे उल्टे फिर गए और उसके बाद उसके साथ न चले।”—यूहन्‍ना 6:50-66.

इस नाज़ुक घड़ी में यीशु अपने 12 प्रेरितों से उनके दिल की बात जानने के लिए एक सवाल पूछता है: “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?” तब पतरस जवाब देता है: “हे प्रभु हम किस के पास जाएं? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं। और हम ने विश्‍वास किया, और जान गए हैं, कि परमेश्‍वर का पवित्र जन तू ही है।”—यूहन्‍ना 6:67-69.

पतरस ने अपने लिए कैसा नाम कमाया? जो कोई उसके बारे में पढ़ता है, वह इस बात से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता कि वह कितना ईमानदार और खुले दिल का इंसान था। उसकी वफादारी, और अपनी गलती कबूल करने की उसकी नम्रता काबिले-तारीफ है। अपने लिए उसने क्या ही बढ़िया नाम कमाया!

यीशु के बारे में लोगों ने क्या याद रखा?

धरती पर यीशु ने सिर्फ साढ़े तीन साल सेवा की। फिर भी उसके चेले उसे किस तरह के इंसान के तौर पर याद करते हैं? वह सिद्ध और निष्पाप था तो क्या वह लोगों से अलग-थलग रहता था? यह जानते हुए कि वह परमेश्‍वर का बेटा है, क्या उसने लोगों पर अपना अधिकार जताया? क्या उसने चेलों को डरा-धमकाकर उनसे ज़बरदस्ती अपनी आज्ञा मनवायी? क्या वह अपनी प्रतिष्ठा के बारे में इतना फिक्रमंद रहता था कि कभी मज़ाक नहीं करता था? क्या वह इतना व्यस्त था कि उसके पास कमज़ोर और बीमार लोगों या बच्चों के लिए वक्‍त नहीं था? क्या वह अपने ज़माने के ज़्यादातर पुरुषों की तरह स्त्रियों को नीची नज़र से देखता था और दूसरी जाति के लोगों को नीचा दिखाता था? यीशु के बारे में रिकॉर्ड क्या कहता है?

यीशु लोगों में दिलचस्पी लेता था। उसकी सेवा के बारे में अध्ययन करने से हम पाते हैं कि बहुत-से मौकों पर उसने लंगड़ों और बीमारों को चंगा किया। ज़रूरतमंदों की मदद करने के लिए उसने कड़ी मेहनत की। उसने बच्चों में भी दिलचस्पी दिखायी, उसने चेलों से कहा: “बालकों को मेरे पास आने दो और उन्हें मना न करो।” उसके बाद उसने “उन्हें गोद में लिया, और उन पर हाथ रखकर उन्हें आशीष दी।” क्या आप बच्चों के लिए वक्‍त निकालते हैं या आप इतने व्यस्त रहते हैं कि कभी नज़र उठाकर उन्हें देखते भी नहीं?—मरकुस 10:13-16; मत्ती 19:13-15.

यीशु के ज़माने में, यहूदी लोग धर्म के कायदे-कानूनों के बोझ तले दबे हुए थे। ये ऐसे नियम थे जिन्हें परमेश्‍वर की व्यवस्था में भी नहीं दिया गया था। उनके धार्मिक अगुवे उन पर भारी बोझ लाद रहे थे, जबकि खुद अपनी उँगली से भी उसे नहीं सरकाना चाहते थे। (मत्ती 23:4; लूका 11:46) तो हम देख सकते हैं कि यीशु उनसे कितना अलग था! उसने कहा: “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।”—मत्ती 11:28-30.

जब लोग यीशु के साथ होते थे तो वे बहुत तरोताज़ा महसूस करते थे। उसने अपने चेलों को डरा-धमकाकर नहीं रखा था जिससे कि वे उसे अपनी भावनाएँ न बता सकें बल्कि उनकी भावनाएँ जानने के लिए उसने उनसे सवाल पूछे। (मरकुस 8:27-29) मसीही ओवरसियरों को अपने आपसे यह पूछना चाहिए: ‘क्या मैं अपने संगी विश्‍वासियों के साथ ऐसे ही व्यवहार करता हूँ? क्या दूसरे प्राचीन मुझे अपने विचार खुलकर बताते हैं या झिझकते हैं?’ उन ओवरसियरों से दूसरों को कितनी ताज़गी मिलती है, जो मिलनसार होते हैं, दूसरों की सुनते हैं और हमेशा परिस्थिति के हिसाब से अपने आपको ढालते हैं! जो समझदारी से पेश नहीं आते, उनसे दिल खोलकर बात करने में झिझक महसूस होती है।

हालाँकि यीशु, परमेश्‍वर का बेटा था मगर उसने कभी-भी अपनी ताकत और अधिकार का गलत इस्तेमाल नहीं किया। इसके बजाय वह अपने सुननेवालों को दलीलें देकर समझाता था। मसलन, उसने फरीसियों को उस वक्‍त तर्क देकर समझाया जब उन्होंने यह सवाल पूछकर उसे फँसाने की कोशिश की: “कैसर को कर देना उचित है, कि नहीं”? यीशु ने उन्हें एक सिक्का दिखाने के लिए कहा और पूछा: “यह मूर्त्ति और नाम किस का है?” उन्होंने कहा: “कैसर का।” फिर यीशु ने उनसे कहा: “जो कैसर का है, वह कैसर को; और जो परमेश्‍वर का है, वह परमेश्‍वर को दो।” (मत्ती 22:15-21) उनके सवाल का जवाब देने के लिए आसान-सा तर्क काफी था।

क्या यीशु कभी मज़ाकिया अंदाज़ में बात करता था? शायद कुछ लोग जब बाइबल के उस वृत्तांत को पढ़ेंगे जहाँ यीशु ने कहा था कि सुई के छेद से ऊँट का निकलना तो आसान है, मगर एक धनवान का परमेश्‍वर के राज्य में जाना आसान नहीं, तो वे महसूस करेंगे कि यीशु कभी-कभी मज़ाकिया अंदाज़ में भी बात करता था। (मत्ती 19:23, 24) एक सचमुच की सुई के छेद से ऊँट के निकलने की बात बढ़ा-चढ़ाकर कही गयी बात लगती है। यीशु की बतायी अतिशयोक्‍ति का एक और उदाहरण है, अपने भाई की आँख में तिनका देखना मगर अपनी आँख का लट्ठा न देखना। (लूका 6:41, 42) यह दिखाता है कि यीशु हमेशा चेहरे पर शिकन ओढ़े कायदे-कानूनों के पीछे नहीं पड़ा रहता था वह स्नेही और दोस्ताना था। आज मसीही भी तनाव के वक्‍त, अगर हँसने-हँसाने की कोशिश करें, तो वे अपने आपमें थोड़ा हल्का महसूस कर सकते हैं।

स्त्रियों के लिए यीशु की करुणा

यीशु की संगति से स्त्रियाँ कैसा महसूस करती थीं? इसमें दो राय नहीं कि उसके चेलों में बहुत-सी वफादार स्त्रियाँ थीं, जिनमें से एक उसकी माँ मरियम भी थी। (लूका 8:1-3; 23:55, 56; 24:9, 10) स्त्रियाँ इस कदर बेझिझक यीशु के पास जाती थीं कि एक मौके पर एक स्त्री जिसे “पापिनी” समझा जाता था, उसने उसके पाँव अपने आँसुओं से धोए और उन पर इत्र मला। (लूका 7:37, 38) एक और स्त्री जो बारह साल से लहू बहने से पीड़ित थी, उसने ठीक होने के लिए भीड़ में से आगे बढ़कर यीशु का वस्त्र छुआ। यीशु ने उसके विश्‍वास की सराहना की। (मत्ती 9:20-22) जी हाँ, स्त्रियों ने पाया कि यीशु मिलनसार है।

एक और मौके पर यीशु ने कुएँ के पास एक सामरी स्त्री से बात की। इससे उस स्त्री को इतना अचंभा हुआ कि उसने कहा: “तू यहूदी होकर मुझ सामरी स्त्री से पानी क्यों मांगता है?” उसे इसलिए हैरानी हुई क्योंकि यहूदी, सामरियों के साथ कोई लेन-देन नहीं रखते थे। इस पर यीशु ने उस स्त्री को ऐसे “जल” के बारे में बेहतरीन सच्चाई बतायी ‘जो अनंत जीवन देने के लिए उमड़ता’ है। यीशु ने स्त्रियों से बात करने में किसी तरह का संकोच नहीं महसूस किया। उसने ऐसा नहीं सोचा कि स्त्रियों से बात करना उसकी शान के खिलाफ है।—यूहन्‍ना 4:7-15.

यीशु अपने बहुत-से भले गुणों के लिए याद किया जाता है, जिनमें आत्म-त्याग की भावना भी शामिल है। परमेश्‍वर के प्रेम की वह जीती-जागती मिसाल था। यीशु ने उन सभी के लिए एक स्तर कायम किया जो उसके चेले बनना चाहते हैं। आप उसके उदाहरण पर कितनी करीबी से चलते हैं?—1 कुरिन्थियों 13:4-8; 1 पतरस 2:21.

आज के मसीही कैसे याद किए जाते हैं?

हमारे समय में हज़ारों वफादार मसीहियों की मौत हो चुकी है, बहुतों की बुढ़ापे में तो दूसरों की कम उम्र में। लेकिन वे अपने पीछे एक अच्छा नाम छोड़ गए हैं। क्रिस्टल की तरह, कुछ वफादार मसीही जिनकी मौत बुढ़ापे में हुई है, वे अपने प्यार और दोस्ताना व्यवहार के लिए याद किए जाते हैं। दूसरे डर्क की तरह हैं, जिनकी मौत 40-45 साल की उम्र में हुई है। उन्हें उनके खुशमिज़ाज़ और मदद करने की भावना के लिए याद किया जाता है।

स्पेन का होसे एक और मिसाल है। सन्‌ 1960 के दशक में, जब स्पेन में यहोवा के साक्षियों के काम पर पाबंदी थी, उस वक्‍त होसे शादी-शुदा था और उसकी तीन बच्चियाँ थीं। बार्सेलोना में उसकी एक पक्की नौकरी थी। लेकिन उस वक्‍त दक्षिणी स्पेन में प्रौढ़ मसीही प्राचीनों की ज़रूरत आ पड़ी। होसे ने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपने परिवार के साथ मालगा जाकर बस गया। वहाँ उन्हें आर्थिक तंगी में जीना पड़ा, कभी-कभी तो उसे कोई काम भी नहीं मिलता था।

फिर भी होसे, वफादारी से परमेश्‍वर की सेवा करने और अपनी पत्नी कारमला की मदद से बेटियों की बढ़िया परवरिश करने के लिए जाना गया। जब कभी मसीही अधिवेशनों का इंतज़ाम करने के लिए किसी की ज़रूरत होती तो होसे उसके लिए हमेशा तैयार रहता। अफसोस की बात है कि जब वह 50-55 के बीच था, तब एक गंभीर बीमारी की वजह से उसकी मौत हो गयी। लेकिन उसने अपनी पहचान एक विश्‍वसनीय, परिश्रमी प्राचीन और एक स्नेही पति और पिता के रूप में बनायी।

ऊपर दी गयी जानकारी को ध्यान में रखते हुए, आप किस तरह से याद किए जाएँगे? अगर आपकी मौत कल हो चुकी होती तो लोग आज आपको कैसे याद करते? यह एक ऐसा सवाल है जो हम सभी को अपने व्यवहार में सुधार करने की प्रेरणा दे सकता है।

अच्छा नाम बनाने के लिए हम क्या कर सकते हैं? हम हमेशा पवित्र आत्मा के फल और अच्छी तरह दिखाने की कोशिश कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, प्रेम, धीरज, कृपा, नम्रता, और संयम जैसे गुणों को और बढ़ा सकते हैं। (गलतियों 5:22, 23) जी हाँ इसमें शक नहीं कि “अच्छा नाम अनमोल इत्र से और मृत्यु का दिन जन्म के दिन से उत्तम है।”—सभोपदेशक 7:1; मत्ती 7:12.

[पेज 5 पर तसवीर]

अबीगैल को उसकी समझदारी के लिए याद किया जाता है

[पेज 7 पर तसवीर]

पतरस को उसके उतावलेपन के बावजूद ईमानदार होने के लिए याद किया जाता है

[पेज 8 पर तसवीर]

यीशु ने बच्चों के साथ वक्‍त बिताया