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यहोवा को हमेशा हमारी परवाह रहती है

यहोवा को हमेशा हमारी परवाह रहती है

जीवन कहानी

यहोवा को हमेशा हमारी परवाह रहती है

एनेलेस मज़ांग की ज़ुबानी

बात सन्‌ 1972 की है। एक दिन, मलावी युवा संघ के दस नौजवान ज़बरदस्ती मेरे घर में घुस आए और बेरहमी से मुझे घसीटते हुए करीब के गन्‍ने के खेत में ले गए। फिर मुझे इतना पीटा कि उन्हें लगा, मैंने दम तोड़ दिया और मुझे वहीं छोड़कर चले गए। मलावी में दूसरे कई यहोवा के साक्षियों पर भी इसी तरह के वहशियाना हमले किए गए थे। आखिर साक्षियों पर क्यों इतने ज़ुल्म ढाए जा रहे थे? किस बात ने साक्षियों को ये सारे ज़ुल्म सहने में मदद दी? इसके बारे में बताने से पहले, मैं आपको अपने परिवार की कहानी बताना चाहूँगी।

मेरा जन्म दिसंबर 31, 1921 में एक ऐसे परिवार में हुआ जो धर्म में बहुत आस्था रखता था। पिताजी सेंट्रल एफ्रीकन प्रेसबिटेरियन चर्च के पादरी थे। मैं मलावी की राजधानी लिलॉन्गवे के पास के एक छोटे-से शहर, अंगकोम में पली-बढ़ी। और पंद्रह साल की उम्र में एमास मज़ांग से मेरी शादी कर दी गयी।

एक दिन पिताजी का एक पादरी दोस्त, हमसे मिलने आया। उसने गौर किया कि हमारे घर के बिलकुल पास यहोवा के साक्षी रहते हैं, तो उसने हमें आगाह किया कि हम उनसे किसी तरह का मेल-जोल न रखें। उसने कहा कि साक्षियों में दुष्टात्मा होती है और अगर हम सावधान न रहे तो वह हममें भी समा जाएगी। इस बात से हम इतना घबरा गए कि हम वह जगह छोड़कर दूसरे गाँव में रहने चले गए। वहाँ एमास एक दुकान पर काम करने लगे। लेकिन जल्द ही हमें पता चला कि इस नए घर के पास भी यहोवा के साक्षी रहते हैं!

एमास बाइबल से बेहद प्यार करते थे और यही वजह थी कि उन्होंने जल्द ही एक साक्षी से बातचीत शुरू कर दी। उन्हें अपने कई सवालों के जवाब मिले जिससे वे पूरी तरह कायल हो गए। इसलिए वे साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन करने को राज़ी हो गए। पहले तो बाइबल अध्ययन उसी दुकान में होता था जहाँ वे काम करते थे, लेकिन बाद में हर हफ्ते हमारे घर में ही होने लगा। हर बार जब यहोवा के साक्षी हमारे घर आते तो मैं डर के मारे घर से बाहर चली जाती। फिर भी एमास ने बाइबल अध्ययन करना नहीं छोड़ा। अध्ययन शुरू करने के छः महीने बाद अप्रैल 1951 में उन्होंने बपतिस्मा ले लिया। उन्होंने मुझे इसकी भनक तक पड़ने नहीं दी। उन्हें डर था कि जिस दिन मुझे इसकी खबर मिलेगी, वह दिन हमारी शादी-शुदा ज़िंदगी का आखिरी दिन होगा।

मुश्‍किल भरे सप्ताह

लेकिन एक दिन मेरी सहेली एलन कैडज़ैलेरो ने मुझे बताया कि मेरे पति, बपतिस्मा लेकर यहोवा के साक्षी बन गए हैं। मेरे तन-बदन में तो आग लग गयी! उस दिन से मैंने उनसे बात करना तो दूर उनके लिए खाना तक बनाना छोड़ दिया। उनके नहाने का पानी लाकर गर्म करना जो हमारे रिवाज़ के मुताबिक पत्नी का धर्म माना जाता था, मैंने वह भी बंद कर दिया।

तीन हफ्ते तक तो एमास यह सब सहते रहे, मगर एक दिन उन्होंने मुझे बड़े प्यार से अपने पास बैठने को कहा और फिर समझाया कि उन्होंने साक्षी बनने का फैसला क्यों किया है। उन्होंने बाइबल से कई वचन पढ़कर उनके मतलब समझाए जैसे 1 कुरिन्थियों 9:16. उनकी बातों का मुझ पर इतना गहरा असर हुआ कि मुझे लगा, मुझे भी सुसमाचार का प्रचार करना चाहिए। सो मैंने फैसला कर लिया कि मैं यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन करूँगी। उस शाम मैंने अपने प्यारे पति के लिए ज़ायकेदार खाना बनाया जिससे वे बेहद खुश हुए।

परिवारवालों और दोस्तों को सच्चाई बताना

जब हमारे माता-पिता ने सुना कि हम यहोवा के साक्षियों के साथ संगति कर रहे हैं तो उन्होंने हमारा कड़ा विरोध किया। मेरे परिवारवालों ने तो चिट्ठी में यहाँ तक लिखा कि वे हमारा मुँह तक नहीं देखना चाहते! हालाँकि उनके इस रवैए से हमें बेहद दुःख हुआ मगर हमें यीशु के इस वादे पर पूरा भरोसा था कि इसके बदले हमें बहुत-से आध्यात्मिक भाई-बहन और माता-पिता मिलेंगे।—मत्ती 19:29.

मैंने बाइबल अध्ययन में तेज़ी से प्रगति की और अगस्त 1951 में अपने पति के बपतिस्मे के सिर्फ साढ़े तीन महीने बाद बपतिस्मा ले लिया। मुझे लगा कि मुझे अपनी सहेली एलन को भी सच्चाई बतानी चाहिए। खुशी की बात है कि वह मेरे साथ अध्ययन करने को राज़ी हो गयी। और मई 1952 में उसने भी बपतिस्मा लिया और मेरी आध्यात्मिक बहन बन गयी, इससे हमारी दोस्ती का बंधन और मज़बूत हुआ। और हम दोनों आज भी पक्की सहेलियाँ हैं।

सन्‌ 1954 में एमास को सर्किट ओवरसियर के तौर पर कलीसिया का दौरा करने के लिए नियुक्‍त किया गया। उस समय हमारे छः बच्चे थे। उन दिनों जिस सफरी ओवरसियर का परिवार होता था, वह एक हफ्ते कलीसिया का दौरा करता और दूसरे हफ्ते अपनी पत्नी और बच्चों के साथ बिताता। एमास जब भी सर्किट काम पर जानेवाले होते, तो वे इस बात का ज़रूर ध्यान रखते कि मैं हर हाल में पारिवारिक अध्ययन करूँ। बच्चों की खातिर हम अध्ययन को मज़ेदार बनाने की पूरी कोशिश करते। हम यहोवा के लिए अपने प्यार और उसके वचन से मिली सच्चाई के बारे में पूरे यकीन के साथ बात करते थे और पूरा परिवार साथ मिलकर प्रचार में भी जाता। इस तरह हमारे बच्चों को जो आध्यात्मिक प्रशिक्षण मिला उससे उनका विश्‍वास बहुत मज़बूत हुआ और यह उनके लिए वाकई मददगार रहा क्योंकि आगे हम पर होनेवाले अत्याचार का वे बड़ी हिम्मत के साथ सामना कर पाए।

धर्म के कारण सताया जाना शुरू

सन्‌ 1964 में मलावी एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया। शासन करनेवाली पार्टी के अधिकारियों को जब खबर मिली कि हम राजनीतिक मामले में निष्पक्ष रहते हैं, तो वे हमसे पार्टी का सदस्यता कार्ड खरीदने की ज़बरदस्ती करने लगे। * लेकिन एमास और मैंने कार्ड खरीदने से इनकार कर दिया इसलिए युवा संघ के सदस्यों ने हमारे मक्के के खेत की पूरी फसल उजाड़ दी जो हमारे अगले साल के भोजन का मुख्य ज़रिया थी। जिस दौरान वे हमारी फसल को तहस-नहस रहे थे, वे यह गा रहे थे: “जो कामूज़ू [राष्ट्रपति बांडा] का कार्ड नहीं खरीदेगा, उसके मक्के की हरी फसल दीमक खा जाएगी और वह उस पर सिर्फ रोता रह जाएगा।” फसल का इतना बड़ा नुकसान होने के बाद भी हम निराश नहीं हुए। हमने महसूस किया कि यहोवा को वाकई हमारी परवाह है। उसने प्यार से हमें मज़बूत किया।—फिलिप्पियों 4:12, 13.

अगस्त 1964 में, एक बार काफी रात बीत चुकी थी। मैं बच्चों के साथ घर में अकेली थी। हम सभी सो रहे थे कि अचानक मुझे दूर से गाने की आवाज़ सुनायी दी और मेरी नींद खुल गयी। यह आवाज़ गूलेवैमकूलू की थी। यह कबीले के नर्तकों का एक गुप्त समाज है जिससे लोग बहुत डरते हैं। ये लोगों पर हमला करके यह जताते हैं, मानो वे मृत पूर्वजों की आत्माएँ हैं। युवा संघ ने गूलेवैमकूलू को हम पर हमला करने के लिए भेजा था। मैंने झटपट बच्चों को उठाया और इसके पहले कि वे हमारे घर तक पहुँचते हम भागकर झाड़ियों में छिप गए।

वहीं से हमने तेज़ रोशनी देखी। गूलेवैमकूलू ने हमारे घास-फूस से बने छप्परवाले घर में आग लगा दी थी। इससे घर का सारा सामान जलकर राख हो गया। जब सब कुछ खाक में मिलाकर वे वापस जा रहे थे तब हमने उन्हें यह कहते सुना, “उस साक्षी को गर्मी देने के लिए हमने बहुत बढ़िया आग लगायी है।” हम यहोवा के कितने शुक्रगुज़ार हैं कि हम सभी बच गए! यह सच है कि उन्होंने हमारी पूरी संपत्ति तबाह कर दी, मगर इंसानों के बजाय यहोवा पर भरोसा रखने के हमारे अटल इरादे को वे खत्म नहीं कर पाए।—भजन 118:8.

हमने सुना कि गूलेवैमकूलू ने हमारे इलाके के पाँच और यहोवा के साक्षियों के परिवारों के साथ वही भयानक हरकत की थी। लेकिन मदद के लिए जब पड़ोसी कलीसियाओं से भाई-बहन दौड़े आए तो हमें बेहद खुशी हुई और हम उनके बड़े आभारी थे! उन्होंने हमारे घरों को दोबारा बनाया और कई हफ्तों तक हमारे खाने-पीने का इंतज़ाम किया।

अत्याचार और बढ़ा

सितंबर 1967 में पूरे देश में यहोवा के साक्षियों को एक-साथ इकट्ठा करने का अभियान चलाया गया। युवा संघ के सदस्य और मलावी युवा पायनियर के बेरहम और वेहशी नौजवान, गँड़ासे लिए घर-घर साक्षियों की तलाश करने निकल पड़े। जब वे उन्हें ढूँढ़ निकालते तब उनसे राजनीति का पार्टी कार्ड खरीदने की ज़बरदस्ती करते।

जब वे हमारे घर आए तब उन्होंने हमसे पूछा कि क्या हमारे पास पार्टी कार्ड है। मैंने कहा: “नहीं, मैंने नहीं खरीदा। और मैं उसे खरीदनेवाली भी नहीं हूँ, ना अब और ना ही कभी भविष्य में।” इस पर वे ज़बरदस्ती मुझे और मेरे पति को पकड़कर सीधे वहाँ के पुलिस थाने ले गए और हमें अपने साथ कुछ ले जाने का मौका तक नहीं दिया। जब हमारे छोटे बच्चे स्कूल से आए तो हमें न पाकर बहुत परेशान हो गए। शुक्र है कि थोड़ी देर बाद हमारा बड़ा बेटा दानयल घर पहुँच गया और उसने पड़ोसी से मामले का पता लगाया। फिर वह तुरंत अपने छोटे भाई-बहनों को साथ लेकर थाने चला आया। वे ठीक उसी समय पहुँचे, जब पुलिस हम सबको लिलॉन्गवे ले जाने के लिए ट्रकों में बिठा रही थी। फिर बच्चे भी हमारे साथ हो लिए।

लिलॉन्गवे के पुलिस मुख्यालय में एक सिर्फ नाम के लिए मुकद्दमा चलाया गया। अफसरों ने पूछा: “क्या आप यहोवा के साक्षी बने रहेंगे?” हमने कहा: “हाँ!” और हम जानते थे कि इस जवाब का मतलब होगा, सात साल की जेल। और जो लोग संगठन “चलाते” हैं यानी ज़िम्मेदार भाइयों के लिए यह सज़ा 14 साल थी।

उस रात हमने न तो कुछ खाया, ना ही आराम किया। दूसरे दिन पुलिस हमें मैऊला जेल ले गयी। वहाँ के जेलखाने, कैदियों से इस कदर खचाखच भरे थे कि सोने के लिए ज़रा भी जगह नहीं थी! खचाखच भरे हर जेलखाने में शौचालय के तौर पर सिर्फ एक बाल्टी होती थी। खाना बहुत कम मिलता था और वह भी अधपका। दो हफ्ते बाद जेल के अफसरों को एहसास हुआ कि हम रगड़ा-झगड़ा करनेवाले लोग नहीं हैं इसलिए उन्होंने हमें जेलखाने के बाहर, कैदियाँ के कसरत करने की जगह का इस्तेमाल करने की इज़ाज़त दी। जेल में एक-साथ इतने सारे साक्षी थे, इसलिए हम सभी हर रोज़ एक-दूसरे का हौसला बढ़ा पाते थे, साथ ही हमें दूसरे कैदियों को अच्छी गवाही देने का मौका भी मिलता था। मगर करीब तीन महीने बाद अचानक हमें रिहा कर दिया गया क्योंकि दुनिया भर के देश मलावी सरकार पर दबाव डाल रहे थे।

पुलिस अफसरों ने हमें हुक्म दिया कि हम सीधे अपने घर लौट जाएँ, साथ ही हमें यह खबर भी दी कि मलावी में यहोवा के साक्षियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। यह प्रतिबंध अक्टूबर 20, 1967 से लेकर अगस्त 12, 1993 तक रहा यानी लगभग 26 साल। वे साल बड़े मुश्‍किल भरे थे, मगर यहोवा की मदद से हमने दृढ़ता से अपनी निष्पक्षता बनाए रखी।

जानवरों की तरह पीछा

अक्टूबर 1972 में सरकार की तरफ से वहशियाने तरीके से ज़ुल्म ढाने का एक नया दौर शुरू हो गया। सरकार ने एक कानून जारी किया कि सभी यहोवा के साक्षियों को नौकरियों से बरखास्त किया जाए और गाँव में रहनेवाले साक्षियों को उनके घरों से खदेड़ दिया जाए। जिस तरह जानवरों का शिकार करने के लिए उनका पीछा किया जाता है, उसी तरह साक्षियों की खोज होने लगी।

उस दौरान एक मसीही नौजवान, एमास के लिए एक ज़रूरी संदेश लेकर घर आया कि ‘युवा संघ तुम्हारा सिर उड़ाने और उसे डंडे पर लगाकर वहाँ के अधिकारियों के पास ले जाने की साज़िश रच रहा है।’ तो एमास हम सबके भागने का पूरा इंतज़ाम करके फौरन चला गया। मैंने भी जल्दी-जल्दी सभी बच्चों को रवाना किया। और मैं बस निकलने ही वाली थी कि एमास को ढूँढ़ते हुए युवा संघ के दस सदस्य पहुँच गए। वे ज़बरदस्ती घर में घुस आए और जब उन्होंने देखा कि एमास नहीं है तो आग-बबूला होकर मुझे घसीटकर करीबवाले गन्‍ने के खेत में ले गए। वहाँ उन्होंने मुझे बहुत लात-घूसे मारे और गन्‍ने के डंडे से बड़ी बेरहमी से पीटा। उन्हें लगा कि मैंने दम तोड़ दिया इसलिए मुझे वहीं छोड़कर चले गए। बाद में जब मुझे होश आया, तो मैं किसी तरह गिरते-पड़ते घर पहुँची।

उस रात, घुप अंधेरा होने पर एमास जान की बाज़ी लगाकर मेरा पता लगाने घर लौटे। उन्होंने देखा कि मुझे बुरी तरह पीटा गया है, इसलिए उन्होंने और उनके एक दोस्त ने, जिसके पास अपनी एक कार थी, मुझे बहुत सँभालते हुए उसमें चढ़ाया। फिर हम लिलॉन्गवे में एक भाई के घर रहने चले गए। मेरी हालत में धीरे-धीरे सुधार आया और फिर एमास ने देश से निकल जाने की योजना बनानी शुरू की।

शरणार्थी मगर शरण नहीं

मेरी बेटी दीनेस और उसके पति का पाँच-टन का एक ट्रक था। उन्होंने एक ड्राइवर नौकरी पर रखा था जो एक समय पर मलावी युवा पायनियर का सदस्य था। मगर अब हमारे हालात को देखकर उसे हमसे हमदर्दी हो गयी। उसी ने पहल करके हमारी और दूसरे साक्षियों की मदद की। कई दिनों तक वह शाम को, साक्षियों को उनके तय किए हुए गुप्त स्थान से लेता। फिर मलावी युवा पायनियर की वर्दी पहनकर वह साक्षियों से भरा हुआ ट्रक चलाकर ले जाता, हालाँकि जगह-जगह पर पुलिस की मोर्चाबंदी होती थी। इस तरह उसने सैकड़ों साक्षियों को सीमा पार ज़ाम्बिया तक पहुँचाने के लिए वाकई बहुत बड़ा खतरा मोल लिया था।

कुछ महीनों बाद ज़ाम्बिया के अधिकारियों ने हमें दोबारा मलावी भेज दिया; मगर हम तो अपने गाँव नहीं जा सकते थे। हमने वहाँ अपना जो कुछ बचा-खुचा छोड़ा था, वह सब भी लूट लिया गया था। घर से टीन की छत तक गायब हो गयी थी। रहने की कोई सुरक्षित जगह नहीं थी, सो हम मोज़ाम्बिक भाग गए और हमने म्लेंगेनी शरणार्थी शिविर में ढाई साल बिताए। लेकिन जून 1975 में मोज़ाम्बिक की नयी सरकार ने शिविर बंद कर दिया और हमें मजबूरन मलावी लौटना पड़ा जहाँ यहोवा के लोगों के लिए हालात अब भी नहीं सुधरे थे। अब जबकि हमारे पास कोई चारा नहीं था, हम दोबारा ज़ाम्बिया भाग आए। वहाँ हम चीगूमूकीर शरणार्थी शिविर पहुँचे।

दो महीने बाद, बसों और फौजी ट्रकों की एक लंबी कतार मुख्य रास्ते पर आकर खड़ी हो गयी। इसके बाद ज़ाम्बिया के सैकड़ों हथियारधारी सैनिक हमारे शिविर में घुस आए और हमसे कहने लगे कि हमारे लिए बढ़िया घर बनाया गया है इसलिए हमें वहाँ ले जाने के लिए वे गाड़ियों के साथ आए हैं। हमें मालूम था कि यह सिर्फ एक धोखा है। फिर जब सैनिक, ट्रकों और बसों में लोगों को धक्का दे-देकर चढ़ा रहे थे, तभी चारों तरफ एक आतंक-सा फैल गया। सैनिकों ने अपनी बंदूक से हवा में गोलियाँ चलानी शुरू कर दी और हमारे हज़ारों भाई-बहन दहशत के मारे यहाँ-वहाँ भागने लगे।

इस अफरा-तफरी में एमास लड़खड़ाकर गिर पड़े और लोग उन पर चढ़ने लगे लेकिन हमारे एक भाई ने उन्हें खड़े होने में मदद दी। हमें तो एक बार को लगा कि बड़ा क्लेश शुरू हो गया है। सारे शरणार्थी मलावी की तरफ भागे। ज़ाम्बिया से निकलते वक्‍त रास्ते में एक नदी पड़ी, तब भाइयों ने एक-दूसरे का हाथ पकड़कर एक-एक को बड़ी एहतियात से नदी पार करायी। लेकिन नदी के दूसरी तरफ हमें ज़ाम्बिया के सैनिकों ने फिर से घेर लिया और हमें जबरन वापस अपने देश मलावी भेज दिया।

एक बार फिर हम मलावी आ तो गए मगर सूझ नहीं रहा था कि जाएँ तो कहाँ जाएँ। हमें पता चला कि राजनीतिक रैलियों और अखबारों के ज़रिए लोगों को यह चेतावनी दी गयी है कि उनके गाँवों में अगर उन्हें कोई “नया चेहरा” दिखायी दे तो तुरंत इसकी इत्तला कर दें। वे दरअसल यहोवा के साक्षियों के बारे में कह रहे थे। सो हमने राजधानी जाने का फैसला किया, जहाँ हम इतनी आसानी से पहचाने न जाते, जितना कि गाँव में। हमने किसी तरह एक छोटा-सा घर किराए पर ले लिया और फिर एमास ने दोबारा सफरी ओवरसियर के तौर पर गुप्त रूप से कलीसियाओं का दौरा शुरू किया।

कलीसिया की सभाओं में जाना

इस दौरान अपनी वफादारी बनाए रखने में हमें किस बात ने मदद दी? कलीसिया की सभाओं ने! मोज़ाम्बिक और ज़ाम्बिया के शरणार्थी शिविरों में, हम बिना किसी रोक-टोक के सभाओं में हाज़िर होते थे। हमारा राज्यगृह बहुत साधारण था और उसकी छत घास-फूस की बनी थी। हालाँकि मलावी में सभाओं के लिए इकट्ठा होना खतरे से खाली नहीं था और बहुत मुश्‍किल भी था, फिर भी सभाओं में हाज़िर होना हमेशा फायदेमंद रहा। हम वहाँ अकसर किसी दूरदराज़ की जगह में देर रात को सभाएँ रखते थे ताकि पकड़े न जाएँ। लोगों का ध्यान आकर्षित न हो, इसके लिए हम वक्‍ता के लिए अपना आभार ताली बजाकर नहीं बल्कि अपनी हथेलियों को रगड़कर ज़ाहिर करते थे।

बपतिस्मा एकदम देर रात को दिया जाता था। हमारे बेटे ऐबीयूद ने ऐसे ही मौके पर बपतिस्मा लिया। बपतिस्मा भाषण होने के बाद, उसे और बपतिस्मा लेनेवाले दूसरे सदस्यों को अँधेरे में एक दलदली इलाके में ले जाया गया, जहाँ एक छिछला गड्ढा खोदा गया था और वहीं उन्हें बपतिस्मा दिया गया।

हमारा छोटा-सा मगर महफूज़ घर

सरकारी पाबंदी के आखिर सालों के दौरान, लिलॉन्गवे में हमारे घर को एक सुरक्षित जगह माना जाता था। ज़ाम्बिया के शाखा दफ्तर से चिट्ठियाँ और साहित्य चोरी-छिपे हमारे घर पहुँचाए जाते थे। फिर कुछ भाई जो साइकिल से कुरियर ले जाने का काम करते थे, वे ज़ाम्बिया से आए साहित्य और चिट्ठियाँ हमारे घर से ले जाकर मलावी के अलग-अलग भागों में बाँट देते थे। प्रहरीदुर्ग पत्रिकाएँ बहुत ही पतली होती थीं क्योंकि वे बाइबल छापनेवाले कागज़ों पर छापी जाती थीं। इससे कुरियरवालों को दोगुनी पत्रिकाएँ उठाकर ले जाना संभव होता था जो कि आम कागज़ पर छापने से नहीं होता। कुरियरवाले छोटे आकार में छपी प्रहरीदुर्ग पत्रिकाएँ भी बाँटते थे जिसमें सिर्फ अध्ययन लेख होते थे। यह पत्रिका एक ही पन्‍ने की होती थी इसलिए इसे कमीज़ की जेब में छिपाना बहुत आसान था।

कुरियर ले जानेवाले भाई अपनी साइकिल पर पाबंदी लगे साहित्य के कार्टनों का एक ऊँचा ढेर बाँधते थे, फिर झाड़ियों में से होकर जाते थे; कभी-कभी तो घनी अँधेरी रात में। इस तरह वे अपनी आज़ादी और जान हथेली पर रखकर जाते। रास्ते में जगह-जगह पर पुलिस के पहरों के अलावा, दूसरे ज़ोखिम भी होते थे, इसके बावजूद वे हर तरह के मौसम में सैकड़ों मील का सफर करते हुए अपने भाइयों तक आध्यात्मिक भोजन पहुँचाते थे। कुरियर का काम करनेवाले इन भाइयों की बहादुरी की वाकई दाद देनी पड़ेगी!

यहोवा को विधवाओं की फिक्र रहती है

दिसंबर 1992 में एक कलीसिया का दौरा करते वक्‍त जब एमास भाषण दे रहे थे, तो उन्हें स्ट्रोक (मस्तिष्क आघात) हो गया। इसके बाद से उन्होंने अपने बोलने की क्षमता खो दी। कुछ समय बाद उन्हें दोबारा स्ट्रोक हुआ जिससे उनके शरीर के एक हिस्से को लकवा मार गया। हालाँकि अपनी सेहत गँवाकर जीना उनके लिए बहुत मुश्‍किल था, फिर भी कलीसिया के सहयोग से हमारा दुःख काफी कम हो गया था। और नवंबर 1994 में 76 साल की उम्र में उनकी मौत तक घर पर ही मैंने उनकी देखभाल की। लेकिन एमास ने अपनी मौत से पहले यह देख लिया था कि मलावी में साक्षियों पर से पाबंदी हटा दी गयी है। हमारी शादी को 57 साल हो गए थे। हर कदम पर साथ देनेवाले ऐसे जीवन-साथी से बिछड़ने का गम मुझे आज भी है।

पति के गुज़रने के बाद मेरे दामाद ने अपनी पत्नी और पाँच बच्चों के अलावा मेरी ज़िम्मेदारी भी अपने सिर ले ली। मगर अफसोस कि वह बीमार पड़ गया और कुछ ही समय बाद अगस्त 2000 को चल बसा। अब अकेली मेरी बेटी हम सबके खाने और रहने की ज़िम्मेदारी किस तरह उठाती? मैंने एक बार फिर देखा कि यहोवा वाकई हमारी परवाह करता है और वह सच में “अनाथों का पिता और विधवाओं का न्यायी है।” (भजन 68:5) यहोवा ने धरती पर रहनेवाले अपने सेवकों के ज़रिए हमारे लिए एक बहुत सुंदर घर बनाया। यह कैसे हुआ? जब हमारी कलीसिया के भाई-बहनों ने हमारी दुर्दशा देखी तो उन्होंने पाँच हफ्ते के अंदर ही हमारे लिए एक घर बनाकर खड़ा कर दिया! दूसरी कलीसियाओं के भाई, जो राजगीर थे, वे भी मदद के लिए चले आए। हमें इन भाई-बहनों का इतना प्यार मिला है कि सँभाले नहीं सँभलता। उन्होंने हमारे लिए इतना बढ़िया घर बना दिया कि कई भाई-बहनों का अपना घर भी उतना सुंदर नहीं है। कलीसिया का यह प्यार हमारे पड़ोसियों के लिए भी एक अच्छी गवाही थी। मैं जब भी रात को सोने जाती हूँ तो मुझे लगता है, मानों में फिरदौस में पहुँच गयी हूँ! जी हाँ, हमारा यह नया और खूबसूरत घर ईंट और सीमेंट का बना है, लेकिन जैसे बहुतों ने कहा है, असल में हमारा घर प्यार की बुनियाद पर खड़ा है।—गलतियों 6:10.

यहोवा की लगातार परवाह

हालाँकि कभी-कभी मैं बहुत हताश हो जाती हूँ लेकिन यहोवा ने हमेशा मुझे सँभाला है। नौ में से मेरे सात बच्चे अब भी ज़िंदा हैं और आज मेरे परिवार की संख्या 123 हो गयी है। मैं यहोवा की बहुत एहसानमंद हूँ कि उनमें ज़्यादातर लोग वफादारी से उसकी सेवा कर रहे हैं!

अब 82 की उम्र में, जब मैं देखती हूँ कि परमेश्‍वर की आत्मा ने किस तरह मलावी में अपना काम पूरा किया है तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहता। अगर मैं बस पिछले चार सालों की बात लूँ तो देखती हूँ कि जहाँ पहले सिर्फ एक राज्यगृह था, वहाँ अब 600 राज्यगृह हो गए हैं। लिलॉन्गवे में नया शाखा दफ्तर भी खोला गया है और हम बिना रोक-टोक के आध्यात्मिक भोजन का आनंद उठा पाते हैं जिससे हमारा विश्‍वास बहुत मज़बूत होता है। मैंने यशायाह 54:17 में दिए परमेश्‍वर के वादे का खुद अनुभव किया है, जो हमें यह आश्‍वासन देता है कि “जितने हथियार तेरी हानि के लिये बनाए जाएं, उन में से कोई सफल न होगा।” यहोवा की सेवा में मैंने पचास से भी ज़्यादा साल बिताए हैं और मुझे इस बात का पूरा यकीन है कि हम चाहे जिस भी परीक्षा से गुज़रें, यहोवा को हमेशा हमारी परवाह रहती है।

[फुटनोट]

^ पैरा. 16 मलावी में यहोवा के साक्षियों के इतिहास के बारे में अधिक जानकारी के लिए 1999 इयरबुक ऑफ जेहोवाज़ विटनेसेस के पेज 149-223 देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

[पेज 24 पर तसवीर]

मेरे पति, एमास का बपतिस्मा अप्रैल 1951 में हुआ

[पेज 26 पर तसवीर]

कुरियर का काम करनेवाले बहादुर भाई

[पेज 28 पर तसवीर]

प्यार की बुनियाद पर खड़ा घर