इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

संकट की घड़ी में यहोवा पर पूरा भरोसा रखिए

संकट की घड़ी में यहोवा पर पूरा भरोसा रखिए

संकट की घड़ी में यहोवा पर पूरा भरोसा रखिए

“परमेश्‍वर हमारा शरणस्थान और बल है, संकट में अति सहज से मिलनेवाला सहायक।”—भजन 46:1.

1, 2. (क) कौन-सी मिसाल दिखाती है कि परमेश्‍वर पर भरोसा रखने का दावा करना काफी नहीं है? (ख) सिर्फ यह कहना क्यों काफी नहीं कि हम यहोवा पर भरोसा रखते हैं?

परमेश्‍वर पर मुझे पूरा भरोसा है, ऐसा दावा करना एक बात है, मगर अपने कामों से भरोसा दिखाना अलग बात। मिसाल के लिए, लंबे अरसे से अमरीका में रुपयों और सिक्कों पर यह नारा लिखा जाता है: “हमें परमेश्‍वर पर भरोसा है।” * सन्‌ 1956 में अमरीकी कांग्रेस ने एक कानून जारी किया कि अब से यह नारा, अमरीका का राष्ट्रीय नारा होगा। मगर सच तो यह है कि न सिर्फ उस देश के लोग, बल्कि संसार-भर में ज़्यादातर लोग, परमेश्‍वर के बजाय पैसे और धन-दौलत पर अपना भरोसा रखते हैं।—लूका 12:16-21.

2 लेकिन, जहाँ तक हम सच्चे मसीहियों की बात है, हमारे लिए सिर्फ यह कहना काफी नहीं कि हम यहोवा पर भरोसा रखते हैं। जिस तरह ‘विश्‍वास कर्म बिना मरा होता है,’ ठीक उसी तरह अगर हम अपने कामों से परमेश्‍वर पर भरोसा न दिखाएँ, तो यह कहना बेकार होगा कि हम उस पर भरोसा रखते हैं। (याकूब 2:26) पिछले लेख में हमने सीखा कि यहोवा पर हमारा भरोसा तब ज़ाहिर होता है, जब हम उससे प्रार्थना करते हैं, उसके वचन से सलाह लेते हैं और मार्गदर्शन के लिए उसके संगठन की ओर देखते हैं। अब आइए देखें कि हम संकट की घड़ी में ये तीनों कदम कैसे उठा सकते हैं।

नौकरी छूट जाने या आमदनी बहुत कम होने पर

3. इस “कठिन समय” में, यहोवा के सेवक पैसे की किन तकलीफों का सामना करते हैं, और हम कैसे जानते हैं कि परमेश्‍वर हमारी मदद करना चाहता है?

3 आज के इस “कठिन समय” में, दुनिया के लोगों की तरह हम मसीहियों को भी पैसे की तकलीफ से गुज़रना पड़ता है। (2 तीमुथियुस 3:1) हो सकता है, हमें अचानक नौकरी से हाथ धोना पड़े। या फिर हमारे पास ऐसी नौकरी करने के सिवाय कोई दूसरा चारा न हो जिसमें हमें देर तक काम करना पड़ता हो, मगर वेतन न के बराबर मिलता हो। ऐसे हालात में, ‘अपने परिवार की देखभाल’ करना हमारे लिए बहुत मुश्‍किल होगा। (1 तीमुथियुस 5:8, NHT) क्या परमप्रधान परमेश्‍वर ऐसी ज़रूरत की घड़ी में हमारी मदद करना चाहेगा? बेशक! यह सच है कि यहोवा, इस संसार में आनेवाली सभी मुसीबतों से हमें महफूज़ नहीं रखता। लेकिन अगर हम उस पर भरोसा रखें, तो भजन 46:1 में कहे शब्द हमारे मामले में सच होंगे: “परमेश्‍वर हमारा शरणस्थान और बल है, संकट में अति सहज से मिलनेवाला सहायक।” तो पैसे की तंगी झेलते वक्‍त हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमें यहोवा पर पूरा-पूरा भरोसा है?

4. पैसे की तंगी झेलते वक्‍त हम किस चीज़ के लिए प्रार्थना कर सकते हैं, और ऐसी प्रार्थनाओं के बारे में यहोवा का नज़रिया क्या है?

4 यहोवा पर भरोसा ज़ाहिर करने का एक तरीका है, उससे प्रार्थना करना। लेकिन हम प्रार्थना में क्या माँग सकते हैं? जब हमें पैसों की तंगी होती है, उस वक्‍त हमें पहले से कहीं ज़्यादा कारगर बुद्धि की ज़रूरत होती है। इसलिए ऐसी बुद्धि के लिए ज़रूर बिनती कीजिए! यहोवा का वचन हमें यकीन दिलाता है: “यदि तुम में से किसी को बुद्धि की घटी हो, तो परमेश्‍वर से मांगे, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है; और उस को दी जाएगी।” (याकूब 1:5) जी हाँ, यहोवा से बुद्धि माँगिए। बुद्धि का मतलब है ज्ञान, समझ और परख-शक्‍ति का सही इस्तेमाल करने की काबिलीयत, जो हमें बढ़िया फैसले और सही चुनाव करने में मदद दे सकती है। स्वर्ग में रहनेवाला हमारा प्यारा पिता हमें यकीन दिलाता है कि वह ऐसी प्रार्थनाओं का जवाब ज़रूर देगा। जो पूरे दिल से उस पर भरोसा रखते हैं, उनके लिए सीधा मार्ग निकालने को वह हरदम तैयार रहता है।—भजन 65:2; नीतिवचन 3:5, 6.

5, 6. (क) पैसों की तंगी का सामना करने के लिए, हम क्यों परमेश्‍वर के वचन की सलाह लेना चाहेंगे? (ख) नौकरी छूट जाने पर होनेवाली चिंता को हम कैसे कम कर सकते हैं?

5 परमेश्‍वर के वचन से सलाह लेना एक और तरीका है जिससे हम यहोवा पर भरोसा दिखा सकते हैं। बाइबल में दर्ज़ यहोवा की बुद्धिमानी भरी सलाह “अति विश्‍वासयोग्य” साबित हुई हैं। (भजन 93:5) हालाँकि इस ईश्‍वर-प्रेरित वचन को लिखे 1,900 साल बीत गए हैं, मगर इसमें दी गयी भरोसेमंद सलाह और गहरी समझ की बातें, हमें पैसे की तंगी का सही तरह से सामना करने में मदद दे सकती हैं। बाइबल की बुद्धि भरी सलाह की कुछ मिसालों पर गौर कीजिए।

6 बुद्धिमान राजा, सुलैमान ने एक लंबे अरसे पहले कहा था: “परिश्रम करनेवाला चाहे थोड़ा खाए, या बहुत, तौभी उसकी नींद सुखदाई होती है; परन्तु धनी के धन के बढ़ने के कारण उसको नींद नहीं आती।” (सभोपदेशक 5:12) हमारे पास जो चीज़ें हैं, उनकी साफ-सफाई, उनका रख-रखाव और उनकी रक्षा करने में काफी समय और खर्च लगता है। इसलिए नौकरी छूट जाने पर हमें अपने रहन-सहन की दोबारा जाँच करनी होगी और देखना होगा कि हमें किन-किन चीज़ों की वाकई ज़रूरत है और कौन-सी चीज़ें बस अपनी ख्वाहिश पूरी करने के लिए हैं। अपनी चिंता कम करने के लिए, ज़िंदगी में कुछ तबदीलियाँ करना सही रहेगा। मसलन, क्या हम अपना घर बदलकर किसी छोटे घर में रहने या गैर-ज़रूरी चीज़ों को अपने घर से निकाल देने के ज़रिए, अपना जीवन सादा कर सकते हैं?—मत्ती 6:22.

7, 8. (क) यीशु ने कैसे ज़ाहिर किया कि वह जानता था कि असिद्ध इंसान बुनियादी चीज़ों के बारे में बेवजह चिंता करते हैं? (फुटनोट भी देखिए।) (ख) बेवजह की चिंता से दूर रहने के बारे में यीशु ने कौन-सी बुद्धि भरी सलाह दी?

7 यीशु ने पहाड़ी उपदेश में यह सलाह दी: “अपने प्राण के लिये यह चिन्ता न करना कि हम क्या खाएंगे? और क्या पीएंगे? और न अपने शरीर के लिये कि क्या पहिनेंगे?” * (मत्ती 6:25) यीशु जानता था कि ज़िंदगी की बुनियादी ज़रूरतों के बारे में चिंता करना, असिद्ध इंसानों में स्वाभाविक है। लेकिन क्या किया जा सकता है जिससे हम इनके बारे में ‘चिंता करना’ छोड़ दें? यीशु ने कहा: ‘पहिले तुम उसके राज्य की खोज करो।’ हमारे सामने चाहे जो भी समस्या आए, हमें यहोवा की उपासना को हमेशा ज़िंदगी में पहली जगह देनी चाहिए। ऐसा करने से, हमें अपने स्वर्गीय पिता से वे सारी चीज़ें “मिल जाएंगी” जो रोज़मर्रा ज़िंदगी के लिए ज़रूरी हैं। यहोवा किसी-न-किसी तरीके से हमारी ज़रूरतों को पूरा करेगा।—मत्ती 6:33.

8 यीशु ने आगे यह सलाह दी: “कल की चिंता मत करो, क्योंकि कल की तो अपनी और चिंताएँ होंगी।” (मत्ती 6:34, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) कल का दिन न जाने कैसी मुसीबतें ले आएगा, यह सोचकर हद-से-ज़्यादा चिंता करना अक्लमंदी नहीं होगी। बाइबल के एक विद्वान ने लिखा: “अकसर हम कल के बारे में सोचकर बेवजह चिंता करने लगते हैं, लेकिन हकीकत में शायद ही ऐसा कुछ होता है।” तो हमें नम्रता से बाइबल की यह सलाह माननी चाहिए कि हम हमेशा ज़रूरी बातों पर ध्यान लगाएँ और अगले दिन की चिंता करने के बजाय आज का दिन, सिर्फ आज ही के बारे में सोचें। ऐसा करने से हम बेवजह की चिंताओं से दूर रहेंगे।—1 पतरस 5:6, 7.

9. तंगहाली का सामना करते वक्‍त, हम “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के साहित्य से कैसी मदद पा सकते हैं?

9 तंगहाली का सामना करते वक्‍त, “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के दिए साहित्य से सलाह लेना एक और तरीका है जिससे हम यहोवा पर भरोसा दिखा सकते हैं। (मत्ती 24:45) समय-समय पर, सजग होइए! पत्रिका में ऐसे लेख छापे गए हैं जिनमें, पैसे की समस्या का सामना करने के लिए फायदेमंद सलाह और सुझाव दिए गए हैं। अगस्त 8, 1991 के अँग्रेज़ी अंक में यह लेख था, “नौकरी छूटने पर क्या किया जाए?” इस लेख में आठ कारगर सुझाव दिए गए हैं। उन सुझावों पर अमल करने की वजह से कई लोगों ने बेरोज़गारी की हालत में भी हिम्मत नहीं हारी और वे अपना घर चलाने में कामयाब हुए। * बेशक, उन सलाहों को मानने के साथ-साथ पैसे की सच्ची कीमत के बारे में सही नज़रिया रखना भी ज़रूरी है। इसी मुद्दे पर, उस अंक के एक और लेख में चर्चा की गयी जिसका शीर्षक है, “पैसे से भी ज़रूरी एक चीज़।”—सभोपदेशक 7:12.

जब खराब सेहत आपको दुःखी करे

10. राजा दाऊद की मिसाल कैसे दिखाती है कि किसी बड़ी बीमारी का सामना करते वक्‍त, यहोवा पर भरोसा रखना समझदारी होगी?

10 जब हम किसी बड़ी बीमारी से तकलीफ उठा रहे होते हैं, तब क्या यहोवा पर भरोसा रखना समझदारी होगी? बेशक! यहोवा अपने उन सेवकों का दर्द समझता है जो बीमारी से तकलीफ उठा रहे हैं। इतना ही नहीं, वह उनकी मदद करने के लिए तैयार रहता है। राजा दाऊद की मिसाल लीजिए। उसने लिखा कि जब खराई पर चलनेवाला एक इंसान बीमार पड़ जाता है, तो यहोवा उसके साथ कैसे पेश आता है। शायद यह बात लिखते वक्‍त वह खुद भी बहुत बीमार था। उसने कहा: “जब वह व्याधि के मारे सेज पर पड़ा हो, तब यहोवा उसे सम्भालेगा; तू रोग में उसके पूरे बिछौने को उलटकर ठीक करेगा।” (भजन 41:1, 3, 7, 8) राजा दाऊद ने बीमारी के वक्‍त परमेश्‍वर पर अपना भरोसा मज़बूत बनाए रखा और आखिरकार वह ठीक हो गया। तो आज जब हम किसी बीमारी की वजह से दुःखी होते हैं, तब हम परमेश्‍वर पर भरोसा कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं?

11. जब कोई बीमारी हमें सताती है, तब हम अपने स्वर्गीय पिता से क्या माँग सकते हैं?

11 जब कोई बीमारी हमें सताती है, तब यहोवा पर भरोसा दिखाने का एक तरीका है, उससे गिड़गिड़ाकर बिनती करना कि वह हमें धीरज धरने में मदद करे। हम उससे बिनती कर सकते हैं कि वह हमें “कारगर बुद्धि” का इस्तेमाल करने में मदद दे ताकि हमसे जितना हो सकता है, हम अपनी सेहत की अच्छी देखभाल कर सकें। (नीतिवचन 3:21, NW) हम उससे यह भी बिनती कर सकते हैं कि वह हमें धीरज धरने और सहन करने में मदद दे ताकि हम अपनी बीमारी का सामना कर सकें। सबसे खास बात, हम यहोवा से यह बिनती करना चाहेंगे कि वह हमें सँभाले और मज़बूत करे ताकि हम हर हाल में उसके वफादार बने रहें और हिम्मत न हारें। (फिलिप्पियों 4:13) यहोवा के लिए अपनी खराई बनाए रखना, मौजूदा ज़िंदगी को बरकरार रखने से भी कहीं ज़्यादा मायने रखता है। अगर हम अपनी खराई बनाए रखें, तो हमें प्रतिफल देनेवाला महान परमेश्‍वर हमें सदा के लिए सिद्ध जीवन और बढ़िया सेहत की आशीष देगा।—इब्रानियों 11:6.

12. इलाज के मामले में सही फैसले करने के लिए, बाइबल के कौन-से उसूल हमारी मदद कर सकते हैं?

12 यहोवा पर भरोसा हमें उकसाएगा कि हम कारगर सलाहों के लिए उसके वचन, बाइबल में खोज करें। बाइबल में दिए उसूलों से हमें इलाज के मामले में सही फैसले करने में मदद मिलेगी। मसलन, हम जानते हैं कि बाइबल “टोना” करने को मना करती है, इसलिए हम ऐसे किसी भी तरह के इलाज से दूर रहेंगे जिसका प्रेतात्मवाद से नाता है। (गलतियों 5:19-21; व्यवस्थाविवरण 18:10-12) बाइबल की बुद्धि भरी और भरोसेमंद सलाहों की एक और मिसाल यह है: “भोला तो हर एक बात को सच मानता है, परन्तु चतुर मनुष्य समझ बूझकर चलता है।” (नीतिवचन 14:15) इसके मुताबिक, अपने लिए कैसा इलाज ठीक रहेगा, इसका फैसला करते वक्‍त “हर एक बात को सच” मान लेने के बजाय, इलाज के बारे में ठीक-ठीक जानकारी पाने की कोशिश करना अक्लमंदी होगी। इस तरह “दुरुस्त मन” से काम लेने से हम इलाज के अलग-अलग तरीकों पर गहराई से सोचेंगे और अच्छी जानकारी की बिनाह पर फैसला करेंगे।—तीतुस 2:12, NW.

13, 14. (क) प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! में सेहत के बारे में अच्छी जानकारी देनेवाले कौन-से लेख छापे गए? (पेज 17 पर दिया बक्स देखिए।) (ख) जनवरी 22, 2001 की सजग होइए! में, लंबे समय तक रहनेवाली बीमारियों से जूझने के लिए क्या सलाह दी गयीं हैं?

13 यहोवा पर भरोसा दिखाने के लिए शायद हम विश्‍वासयोग्य दास वर्ग से मिलनेवाले साहित्य में भी खोजबीन करें। प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! पत्रिकाओं में सेहत से जुड़ी बहुत-सी समस्याओं और बीमारियों के बारे में तरह-तरह के लेख छापे गए हैं और उनमें ढेर सारी जानकारी दी गयी है। * इन पत्रिकाओं के कुछ लेखों में ऐसे लोगों के अनुभव बताए गए हैं जो सेहत से जुड़ी कई तकलीफों, तरह-तरह की बीमारियों और अपंगताओं का सामना करने में कामयाब हुए। इसके अलावा, कुछ लेखों में लंबे समय तक रहनेवाली बीमारियों से जूझने के लिए कारगर सलाह और बाइबल से सुझाव दिए गए हैं।

14 मसलन, जनवरी 22, 2001 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) के शुरूआती लेख इस विषय पर थे: “बीमार लोगों के लिए दिलासा।” इन लेखों में बाइबल के ऐसे सिद्धांत बताए गए जिनसे बीमार लोगों को काफी मदद मिल सकती है। साथ ही, ऐसे लोगों से बात करने से मिली जानकारी पेश की गयी है जिन्होंने कई सालों तक गंभीर बीमारी का सामना किया। उस पत्रिका में एक लेख था: “अपनी बीमारी का सही तरह से सामना करते हुए जीना—कैसे?” इसमें ये सारी सलाह दी गयीं: अपनी बीमारी के बारे जितना हो सके, उतना जानने की कोशिश कीजिए। (नीतिवचन 24:5) ऐसे लक्ष्य रखिए जिन्हें हासिल करना आपके लिए मुमकिन हो, इसके तहत दूसरों की मदद करने का लक्ष्य भी रखिए। मगर यह भी ध्यान रखिए कि दूसरे जो लक्ष्य हासिल कर पाते हैं, वही लक्ष्य आप शायद हासिल न कर पाएँ। (प्रेरितों 20:35; गलतियों 6:4) दूसरों से कटे-कटे मत रहिए। (नीतिवचन 18:1) जब लोग आपसे मिलने आते हैं, तो उनके साथ ऐसे पेश आइए कि वे आपसे मिलकर खुश हों। (नीतिवचन 17:22) इन सबसे बढ़कर, यहोवा और कलीसिया के साथ एक नज़दीकी रिश्‍ता कायम रखिए। (नहूम 1:7; रोमियों 1:11, 12) वाकई, क्या हम यहोवा के शुक्रगुज़ार नहीं कि वह अपने संगठन के ज़रिए हमें कितनी भरोसेमंद सलाह देता है?

जब शरीर की कोई कमज़ोरी लगातार परेशान करे

15. प्रेरित पौलुस, असिद्ध शरीर की कमज़ोरियों से लड़ने में कैसे कामयाब हुआ, और हम किस बात का यकीन रख सकते हैं?

15 प्रेरित पौलुस ने लिखा: “मेरे शरीर में कोई अच्छी वस्तु बास नहीं करती।” (रोमियों 7:18) पौलुस अपने तजुर्बे से जानता था कि असिद्ध शरीर की इच्छाओं और कमज़ोरियों पर काबू पाने के लिए कितना कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। पर साथ ही उसे पक्का यकीन था कि वह अपनी कमज़ोरियों पर ज़रूर काबू पा सकेगा। (1 कुरिन्थियों 9:26, 27) वह कैसे? अपना पूरा भरोसा यहोवा पर रखने के ज़रिए। इसीलिए पौलुस कह सका: “मैं कैसा अभागा मनुष्य हूं! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा? मैं अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्‍वर का धन्यवाद करता हूं।” (रोमियों 7:24, 25) हमारे बारे में क्या? हमें भी अपने शरीर की कमज़ोरियों के खिलाफ लड़ना पड़ता है। ऐसी कमज़ोरियों पर काबू पाने के लिए संघर्ष करते वक्‍त, खुद पर से हमारा भरोसा बड़ी आसानी से टूट सकता है और हम सोच सकते हैं कि इस लड़ाई में हम कभी जीत नहीं पाएँगे। लेकिन हमें याद रखना है कि यहोवा ज़रूर हमारी मदद करेगा, बशर्ते हम पौलुस की तरह सच्चे दिल से उस पर भरोसा रखें, न कि अपनी ताकत पर।

16. जब शरीर की कोई कमज़ोरी हमें लगातार सताती है, तो हमें किस चीज़ के लिए प्रार्थना करनी चाहिए और अगर कुछ समय बाद वह कमज़ोरी हम पर दोबारा हावी होने लगे तो क्या करना चाहिए?

16 जब शरीर की कोई कमज़ोरी लगातार हमें परेशान करती है, तब हम यहोवा पर भरोसा दिखाने के लिए उससे प्रार्थना कर सकते हैं। हमें यहोवा से गुज़ारिश करनी चाहिए, यहाँ तक कि उससे गिड़गिड़ाकर बिनती करनी चाहिए कि वह हमें पवित्र आत्मा की मदद दे। (लूका 11:9-13) हम खास तौर से पूछ सकते हैं कि वह हमें संयम बरतने में मदद दे, जो उसकी आत्मा का एक फल है। (गलतियों 5:22, 23) लेकिन मान लीजिए कि हम अपनी कमज़ोरी पर काबू पा लेते हैं, मगर कुछ समय बाद वह कमज़ोरी हम पर दोबारा हावी होने लगती है। ऐसे में हमें क्या करना चाहिए? तब हमें बिलकुल भी हार नहीं माननी चाहिए। हमें अपने रहमदिल परमेश्‍वर से नम्रता के साथ लगातार प्रार्थना करनी चाहिए, और माफी और मदद माँगनी चाहिए। यहोवा ऐसे दिल को कभी नहीं ठुकराएगा जो ज़मीर के बार-बार कोसने की वजह से ‘टूटा और पिसा’ हुआ है। (भजन 51:17) अगर हम पश्‍चाताप करके सच्चे दिल से यहोवा से बिनती करें, तो वह अपनी कमज़ोरी से लड़ने में हमारी मदद करेगा।—फिलिप्पियों 4:6, 7.

17. (क) हमारी कमज़ोरी के बारे में यहोवा कैसा महसूस करता है, इस पर मनन करना क्यों मददगार होगा? (ख) अगर हम जल्दी गुस्सा होने; जीभ पर काबू पाने; या गलत किस्म के मनोरंजन की तरफ लुभाए जाने की कमज़ोरी से लड़ रहे हैं, तो हम किन आयतों को ज़बानी याद कर सकते हैं?

17 यहोवा पर अपना भरोसा दिखाने का एक और तरीका है, मदद के लिए उसके वचन में खोजबीन करना। हर साल प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! (अँग्रेज़ी) के आखिरी अंक में जो इंडैक्स दिया जाता है, उसकी मदद से या किसी बाइबल कॅनकॉर्डन्स की मदद से हम इस सवाल का जवाब ढूँढ़ सकते हैं: ‘मैं जिस कमज़ोरी के खिलाफ संघर्ष कर रहा हूँ, उसके बारे में यहोवा कैसा महसूस करता है?’ उस कमज़ोरी के बारे में यहोवा कैसा महसूस करता है, इस पर मनन करने से उसको खुश करने का हमारा इरादा मज़बूत होगा। तब हम यहोवा के जैसा महसूस करने लगेंगे और जिन कामों से वह नफरत करता है, उनसे हम भी नफरत करेंगे। (भजन 97:10) कुछ लोगों ने पाया है कि बाइबल की जो आयतें उनकी कमज़ोरी के बारे में बताती हैं, उनको मुँह-ज़बानी याद करना काफी मददगार होता है। क्या हम हर छोटी-छोटी बात पर भड़क उठने की आदत से निजात पाने के लिए कड़ा संघर्ष कर रहे हैं? अगर ऐसा है तो हम नीतिवचन 14:17 और इफिसियों 4:31 जैसी आयतों को ज़बानी याद कर सकते हैं। क्या हमें अपनी जीभ पर काबू पाना मुश्‍किल लगता है? तो हम नीतिवचन 12:18 और इफिसियों 4:29 जैसी आयतों को मुँह-ज़बानी याद कर सकते हैं। क्या हम गलत किस्म के मनोरंजन की तरफ लुभाए जाते हैं? तो हम इफिसियों 5:3 और कुलुस्सियों 3:5 जैसी आयतों को याद करने की कोशिश कर सकते हैं।

18. अपनी कमज़ोरी पर काबू पाने के लिए, हमें प्राचीनों से मदद माँगने से क्यों नहीं झिझकना चाहिए?

18 कलीसिया में परमेश्‍वर की आत्मा से ठहराए गए प्राचीनों से मदद माँगना, एक और तरीका है जिससे हम यहोवा पर भरोसा दिखा सकते हैं। (प्रेरितों 20:28) यह कदम उठाना सही होगा क्योंकि यहोवा ने ही मसीह के ज़रिए “मनुष्यों [के रूप में ये] दान” दिए हैं ताकि वे उसकी भेड़ों की हिफाज़त और देखभाल करें। (इफिसियों 4:7, 8, 11-14) माना कि अपनी कमज़ोरी का सामना करने के लिए प्राचीनों से मदद माँगना आसान नहीं होगा। शायद यह सोचकर हम शर्मिंदा महसूस करें, और हमें यह डर हो कि कहीं प्राचीन हमें नीची नज़र से न देखने लगे। लेकिन हम पक्का यकीन रख सकते हैं कि आध्यात्मिक बातों में तजुर्बा रखनेवाले ये भाई, इस बात के लिए हमारी सराहना करेंगे कि हमने उनसे मदद माँगने के लिए हिम्मत जुटायी है। इतना ही नहीं, प्राचीन झुंड के साथ पेश आते वक्‍त यहोवा के जैसे गुण दिखाने की कोशिश करते हैं। वे शायद हमें बाइबल से ठीक उसी तरह की सांत्वना, कारगर सलाहें और हिदायतें दें, जिनकी हमें सख्त ज़रूरत है। इससे हमारा इरादा इतना मज़बूत होगा कि हम अपनी कमज़ोरी पर काबू पाने में कामयाब होंगे।—याकूब 5:14-16.

19. (क) शैतान, इस दुनिया में आनेवाले जीवन के दुःखों का कैसे इस्तेमाल करने की कोशिश करता है? (ख) यहोवा पर भरोसा कैसे दिखाया जाना चाहिए, और हमारा मज़बूत इरादा क्या होना चाहिए?

19 कभी मत भूलिए कि शैतान जानता है कि उसके पास अब थोड़ा ही वक्‍त बचा है। (प्रकाशितवाक्य 12:12) वह इस दुनिया में आनेवाले जीवन के दुःखों का इस्तेमाल करके हमें निराश करना चाहता है और हमारी हिम्मत तोड़ना चाहता है। मगर आइए हम रोमियों 8:35-39 में बतायी इस बात पर पूरा-पूरा भरोसा रखें: “कौन हम को मसीह के प्रेम से अलग करेगा? क्या क्लेश, या संकट, या उपद्रव, या अकाल, या नङ्‌गाई, या जोखिम, या तलवार? . . . परन्तु इन सब बातों में हम उसके द्वारा जिस ने हम से प्रेम किया है, जयवन्त से भी बढ़कर हैं। क्योंकि मैं निश्‍चय जानता हूं, कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ, न ऊंचाई, न गहिराई और न कोई और सृष्टि, हमें परमेश्‍वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी।” इन शब्दों में यहोवा पर भरोसा क्या ही बढ़िया तरीके से ज़ाहिर किया गया है! लेकिन इस तरह का भरोसा सिर्फ एक भावना नहीं है। इसके बजाय, यह ऐसा भरोसा है जिसे हम रोज़ाना की ज़िंदगी में सोच-समझकर फैसले करके दिखा सकते हैं। तो आइए हम अपना यह इरादा मज़बूत कर लें कि हम संकट की घड़ी में यहोवा पर पूरा-पूरा भरोसा रखेंगे।

[फुटनोट]

^ पैरा. 1 राजकोष के सेक्रेट्री, सेमन पी. चेस ने नवंबर 20,1861 को, अमरीका की टकसाल को एक खत में लिखा: “कोई भी देश, परमेश्‍वर की शक्‍ति के बगैर, ताकतवर नहीं बन सकता या परमेश्‍वर के साए के बिना वह महफूज़ नहीं रह सकता। परमेश्‍वर पर हमारे देशवासियों का भरोसा राष्ट्रीय सिक्कों पर ज़ाहिर किया जाना चाहिए।” इसी वजह से सबसे पहले सन्‌ 1864 में एक अमरीकी सिक्के पर यह नारा लिखा गया: “हमें परमेश्‍वर पर भरोसा है।”

^ पैरा. 7 यहाँ जिस चिंता की बात हो रही है, वह “ऐसी चिंता और डर है जो हमारी ज़िंदगी का सुख-चैन पूरी तरह छीन लेता है।” शब्द “चिन्ता न करना” से ज़ाहिर होता है कि फिलहाल हमें चिंता नहीं है मगर आगे चलकर हमें चिंता नहीं करनी चाहिए या परेशान नहीं होना चाहिए। लेकिन, एक किताब कहती है: “यहाँ इस्तेमाल की गयी यूनानी क्रिया, वर्तमानकाल में है जो दिखाती है कि यहाँ किसी ऐसे काम को बंद करने की आज्ञा दी गयी है, जो जारी है।”

^ पैरा. 9 वे आठ सुझाव हैं: (1) घबराइए मत; (2) उम्मीद रखिए कि सब कुछ ठीक हो जाएगा; (3) अलग-अलग किस्म के काम करने के लिए तैयार रहिए; (4) चादर देखकर पाँव पसारिए, दूसरों की बराबरी करने की कोशिश मत कीजिए; (5) उधार पर खरीदारी करते वक्‍त सावधान रहिए; (6) परिवार की एकता मज़बूत बनाए रखिए; (7) अपना आत्म-सम्मान बनाए रखिए; और (8) एक बजट बनाइए।

^ पैरा. 13 बाइबल पर आधारित इन पत्रिकाओं में किसी खास तरह के इलाज की न तो सिफारिश की जाती है, ना ही उसे बढ़ावा दिया जाता है, क्योंकि यह हरेक का निजी मामला है। जब एक लेख में किसी खास बीमारी की चर्चा की जाती है, तो उसका मकसद होता है, पाठकों को उस बीमारी के बारे में ताज़ा-तरीन जानकारी देना।

क्या आपको याद है?

• पैसे की तंगी झेलते वक्‍त, किन तरीकों से हम यहोवा पर भरोसा दिखा सकते हैं?

• जब कोई बीमारी हमें सताती है, तब हम परमेश्‍वर पर भरोसा कैसे दिखा सकते हैं?

• जब शरीर की कोई कमज़ोरी हमें लगातार परेशान करती है, तब हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम सचमुच यहोवा पर भरोसा रखते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 17 पर बक्स]

क्या आपको ये लेख याद हैं?

जब हम अपनी खराब सेहत की वजह से बहुत दुःखी हो जाते हैं, तब हमें ऐसे लोगों के बारे में पढ़ने से काफी हिम्मत मिलेगी जो बीमारियों या अपंगताओं का सामना करने में कामयाब हुए हैं। नीचे प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! में प्रकाशित ऐसे ही कुछ लेखों का ज़िक्र किया गया है।

“अंधेपन के बावजूद व्यस्त और खुश।”—सजग होइए!, मार्च 8, 1999.

“मुश्‍किलों के दौरान हमने सीखा यहोवा पर भरोसा रखना,” यह लेख बताता है कि एक-साथ कई सारी बीमारियों का सामना करते वक्‍त कैसे यहोवा पर अटल भरोसा दिखाया गया।—सजग होइए!, जनवरी 8, 2000.

“खामोशी की दुनिया से बाहर निकलने का लॉयडा का सफर,” यह लेख सेरिब्रल पैल्सी नाम की बीमारी से झूझने के बारे में है।—सजग होइए! (अँग्रेज़ी), मई 8, 2000.

‘तुम नहीं जानते कि कल तुम्हारे जीवन का क्या होगा,’ इस लेख में बाइपोलर डिसऑर्डर का सामना करने के बारे में चर्चा की गयी है।—प्रहरीदुर्ग, दिसंबर 1, 2000.

“सारी ज़िंदगी यहोवा ने मुझे सँभाला,” यह लेख ऐसे भाई के बारे में है जो लकवे का शिकार है।—प्रहरीदुर्ग, मार्च 1, 2001.

“विश्‍वास की परीक्षा के दौरान हम अकेले नहीं थे,” इस लेख में बताया गया है कि लिम्फोब्लास्टिक ल्युकीमिया नाम की बीमारी के खिलाफ कैसे संघर्ष किया गया।—प्रहरीदुर्ग, अप्रैल 15, 2001.

“यहोवा ने हमें धीरज धरना और दृढ़ रहना सिखाया।”—प्रहरीदुर्ग, फरवरी 1, 2002.

“मेरी गोद भरने से पहले ही सूनी हो गयी।”—सजग होइए!, जुलाई-सितंबर, 2002.

[पेज 15 पर तसवीर]

अगर हमारी नौकरी छूट गयी है, तो अपने रहन-सहन की जाँच करना अक्लमंदी होगी

[पेज 16 पर तसवीर]

लॉयडा की कहानी दिखाती है कि यहोवा पर भरोसा रखने से एक इंसान कैसे धीरज धर सकता है। (पेज 17 पर दिया बक्स देखिए)

[पेज 18 पर तसवीर]

अपनी कमज़ोरियों पर काबू पाने के लिए मदद माँगने से हमें शर्मिंदगी महसूस नहीं करनी चाहिए