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“निरन्तर प्रार्थना” क्यों करें?

“निरन्तर प्रार्थना” क्यों करें?

“निरन्तर प्रार्थना” क्यों करें?

“निरन्तर प्रार्थना में लगे रहो। हर बात में धन्यवाद करो।”—1 थिस्सलुनीकियों 5:17, 18.

1, 2. दानिय्येल ने कैसे दिखाया कि वह प्रार्थना के वरदान की दिल से कदर करता था और इसका परमेश्‍वर के साथ उसके रिश्‍ते पर कैसा असर पड़ा?

भविष्यक्‍ता दानिय्येल की यह रीति थी। वह दिन में तीन बार परमेश्‍वर से प्रार्थना करता था। अपने घर की उपरौठी कोठरी में, यरूशलेम की तरफ खुलनेवाली खिड़की के पास घुटने टेककर वह परमेश्‍वर के सामने बिनती करता था। (1 राजा 8:46-49; दानिय्येल 6:10) यहाँ तक कि जब यह सरकारी फरमान जारी किया गया कि मादी राजा, दारा को छोड़ और किसी से बिनती न की जाए तब भी इसमें रत्ती भर फेर-बदल करने की बात तक दानिय्येल के मन में नहीं आयी। चाहे उसकी ज़िंदगी खतरे में थी या नहीं, प्रार्थना में लीन रहनेवाले इस भक्‍त ने यहोवा से लगातार बिनती करना कभी नहीं छोड़ा।

2 यहोवा की नज़रों में दानिय्येल कैसा इंसान था? जब एक बार स्वर्गदूत जिब्राइल, दानिय्येल की एक प्रार्थना का जवाब देने आया तब उसने दानिय्येल को “अति प्रिय” या “बेहद प्यारा” इंसान कहा। (दानिय्येल 9:20-23; द न्यू इंग्लिश बाइबल) यहेजकेल की भविष्यवाणी में, यहोवा ने दानिय्येल को धर्मी कहा। (यहेजकेल 14:14, 20) बेशक, बरसों-बरस दानिय्येल की प्रार्थनाओं की वजह से उसका परमेश्‍वर के साथ ऐसा मज़बूत रिश्‍ता बंध चुका था जिसका लोहा राजा दारा को भी मानना पड़ा।—दानिय्येल 6:16.

3. जैसा एक मिशनरी के अनुभव से दिखाया गया है, खराई बनाए रखने में प्रार्थना कैसे हमारी मदद कर सकती है?

3 हम भी प्रार्थना में लगे रहने से कड़ी परीक्षाओं का सामना कर सकते हैं। भाई हैरल्ड किंग की मिसाल पर गौर कीजिए। वह चीन में मिशनरी सेवा कर रहे थे जहाँ उन्हें सज़ा हो गयी और उन्हें पाँच साल तक एक काल-कोठरी में बंद रखा गया। अपने इस अनुभव के बारे में भाई किंग ने कहा: “मुझे चाहे अपने भाई-बहनों से दूर किया गया, मगर कोई भी मुझे परमेश्‍वर से दूर नहीं कर सका। . . . इसलिए जैसा बाइबल में दानिय्येल के बारे में कहा गया है, मैं भी अपनी कोठरी में दिन में तीन बार घुटने टेककर बुलंद आवाज़ में प्रार्थना करता था और मेरी कोठरी के सामने से गुज़रनेवाला कोई भी इसे सुन सकता था। . . . इन पलों के दौरान परमेश्‍वर की आत्मा ने मेरा ध्यान उन बातों पर लगाया जो मेरे लिए सबसे ज़्यादा फायदेमंद थीं और मैं अपने अंदर एक अजीब-सी शांति महसूस करता था। वाकई प्रार्थना की बदौलत मुझे क्या ही ताकत और सांत्वना मिली!”

4. इस लेख में प्रार्थना के मामले में किन सवालों पर ध्यान दिया जाएगा?

4 बाइबल कहती है: “निरन्तर प्रार्थना में लगे रहो। हर बात में धन्यवाद करो।” (1 थिस्सलुनीकियों 5:17, 18) इस सलाह को मन में रखते हुए, आइए हम इन सवालों पर ध्यान दें: हमें अपनी प्रार्थनाओं पर क्यों ध्यान देना चाहिए? लगातार यहोवा से प्रार्थना करते रहने की क्या वजह हैं? और अगर हम अपनी कमज़ोरियों की वजह से खुद को परमेश्‍वर से प्रार्थना करने के लायक नहीं समझते तब हमें क्या करना चाहिए?

प्रार्थना के ज़रिए दोस्ती मज़बूत कीजिए

5. प्रार्थना की मदद से हम किसके साथ दोस्ती कायम कर सकते हैं?

5 क्या आप चाहते हैं कि यहोवा आपको अपना दोस्त समझे? उसने कुलपिता इब्राहीम को अपना दोस्त माना था। (यशायाह 41:8; याकूब 2:23) यहोवा चाहता है कि उसके साथ हमारा ऐसा ही रिश्‍ता हो। दरअसल वह हमें अपने करीब आने का न्यौता देता है। (याकूब 4:8) क्या यह न्यौता पाकर हमें प्रार्थना जैसे नायाब इंतज़ाम के बारे में गंभीरता से नहीं सोचना चाहिए? दुनिया के किसी बड़े मंत्री की बात ले लीजिए। उसका दोस्त बनना तो दूर उससे मिलने का वक्‍त लेना ही भारी पड़ जाएगा! लेकिन इस जहान का बनानेवाला हमें हिम्मत देता है कि हम जब भी ज़रूरत महसूस करें, बेझिझक प्रार्थना में उसके पास जा सकते हैं। (भजन 37:5) निरंतर प्रार्थना में लगे रहने से हम यहोवा के साथ गहरी दोस्ती कायम कर पाते हैं।

6. “प्रार्थना में लगे” रहने की ज़रूरत के बारे में यीशु की मिसाल से हम क्या सीख सकते हैं?

6 लेकिन प्रार्थना के बारे में हम कितनी आसानी से लापरवाह हो जाते हैं! हर दिन की समस्याओं से जूझने में ही हम इतने डूब जाते हैं कि थोड़ा वक्‍त निकालकर परमेश्‍वर से बात करने की कोशिश नहीं करते। यीशु ने अपने चेलों को उकसाया था कि वे ‘प्रार्थना करते रहें’ और खुद वह भी प्रार्थना करता रहता था। (मत्ती 26:41) हालाँकि वह हर दिन सुबह से रात तक बहुत व्यस्त रहता था फिर भी वह बिना नागा अपने स्वर्गीय पिता से बात करने का वक्‍त निकालता था। कभी-कभी, यीशु प्रार्थना करने के लिए “भोर को दिन निकलने से बहुत पहिले” उठ जाता था। (मरकुस 1:35) और कई बार, वह शाम के वक्‍त एकांत में जाकर यहोवा से प्रार्थना करता था। (मत्ती 14:23) चाहे जो हो यीशु ने हमेशा प्रार्थना के लिए वक्‍त निकाला और हमें भी निकालना चाहिए।—1 पतरस 2:21.

7. किन हालात में हमें अपने स्वर्गीय पिता से हर दिन बात करनी चाहिए?

7 हर दिन जब हम अलग-अलग समस्याओं का सामना करते हैं, हमारे सामने आज़माइशें आती हैं, और जब हमें फैसले लेने होते हैं, तब हमारे पास प्रार्थना करने के कई अच्छे मौके होते हैं। (इफिसियों 6:18) जब हम अपनी ज़िंदगी के हर मामले में परमेश्‍वर की मरज़ी जानने की कोशिश करते हैं तो उसके साथ हमारी दोस्ती का मज़बूत होना लाज़मी है। जब दो दोस्त साथ मिलकर मुसीबतों का सामना करते हैं, तो क्या उनकी दोस्ती और पक्की नहीं हो जाती? (नीतिवचन 17:17) जब हम यहोवा पर भरोसा रखते हैं और यह महसूस कर पाते हैं कि वह हमारी मदद कर रहा है, तब हमारे साथ भी यही होता है।—2 इतिहास 14:11.

8. हम कितनी लंबी प्रार्थना कर सकते हैं इस बारे में नहेमायाह, यीशु और हन्‍ना की मिसालों से हम क्या सीखते हैं?

8 कितनी खुशी की बात है कि परमेश्‍वर ने हम पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं लगायी है कि हम उससे कितनी देर प्रार्थना कर सकते हैं या कितनी बार कर सकते हैं! फारस के राजा के सामने अपनी दरख्वास्त रखने से पहले नहेमायाह ने छोटी-सी प्रार्थना की थी। (नहेमायाह 2:4, 5) यीशु ने भी लाजर को ज़िंदा करने की शक्‍ति देने के लिए यहोवा से एक छोटी-सी बिनती की। (यूहन्‍ना 11:41, 42) दूसरी तरफ हन्‍ना ने अपने दिल का हाल बताने के लिए यहोवा से “बहुत देर तक प्रार्थना की।” (1 शमूएल 1:12, 15, 16, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) हमारी निजी प्रार्थनाएँ भी ज़रूरत या हालात के मुताबिक छोटी या लंबी हो सकती हैं।

9. यहोवा हमारे लिए जो कुछ करता है, उसके लिए हमें अपनी प्रार्थनाओं में उसकी तारीफ और उसका धन्यवाद क्यों करना चाहिए?

9 बाइबल में दर्ज़ कई प्रार्थनाओं में यहोवा के महान पद और अद्‌भुत कामों के लिए उसका एहसान मानते हुए गुणगान किया गया है। (निर्गमन 15:1-19; 1 इतिहास 16:7-36; भजन 145) प्रेरित यूहन्‍ना ने, दर्शन में 24 प्राचीनों को देखा, जो स्वर्ग में अपने पदों पर काम कर रहे अभिषिक्‍त मसीहियों की कुल गिनती को दर्शाते हैं। उसने उन्हें यहोवा की स्तुति में यह कहते सुना: “हे हमारे प्रभु, और परमेश्‍वर, तू ही महिमा, और आदर, और सामर्थ के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं सृजीं और वे तेरी ही इच्छा से थीं, और सृजी गईं।” (प्रकाशितवाक्य 4:10, 11) इसी तरह हमें भी अपने सिरजनहार की हमेशा तारीफ करनी चाहिए! जब माँ-बाप अपने बच्चे के लिए कुछ करते हैं और वह उन्हें दिल से शुक्रिया कहता है तो वे कितने खुश होते हैं! उसी तरह यहोवा ने हमारे लिए जो किया है, उसके बारे में कदरदानी भरे मन से सोचना और दिल से उसका शुक्रगुज़ार होना हमारी प्रार्थनाओं को और बेहतर बना सकता है।

“निरन्तर प्रार्थना में लगे रहो”—क्यों?

10. प्रार्थना हमारे विश्‍वास को कैसे मज़बूत कर सकती है?

10 अपने विश्‍वास को ज़िंदा रखने के लिए हमेशा प्रार्थना करना बेहद ज़रूरी है। यीशु ने उदाहरण देकर समझाया कि हमें क्यों “नित्य प्रार्थना करना और हियाव न छोड़ना चाहिए,” फिर उसने यह सवाल पूछा: “मनुष्य का पुत्र जब आएगा, तो क्या वह पृथ्वी पर विश्‍वास पाएगा?” (लूका 18:1-8) दिल से की गयी सच्ची प्रार्थनाएँ हमारे विश्‍वास को मज़बूत करती हैं। काफी बूढ़ा होने के बाद भी जब कुलपिता इब्राहीम के कोई औलाद नहीं हुई, तब उसने परमेश्‍वर के सामने अपनी चिंता ज़ाहिर की। जवाब में सबसे पहले यहोवा ने उससे कहा कि अगर वह गिन सकता है तो आसमान के तारों को गिने। उसके बाद परमेश्‍वर ने इब्राहीम को यकीन दिलाया: “तेरा वंश ऐसा ही होगा।” इसका नतीजा क्या हुआ? इब्राहीम ने “यहोवा पर विश्‍वास किया; और यहोवा ने इस बात को उसके लेखे में धर्म गिना।” (उत्पत्ति 15:5, 6) हम भी अगर प्रार्थना में यहोवा को अपनी चिंताएँ खुलकर बताएँ, बाइबल से भरोसा दिलानेवाले उसके वचनों से दिलासा पाएँ और उसका कहना मानें, तो वह हमारे विश्‍वास को भी मज़बूत करेगा।

11. समस्याओं का सामना करने में प्रार्थना कैसे हमारी मदद कर सकती है?

11 समस्याओं से निपटने में भी प्रार्थना हमारी मदद कर सकती है। क्या हमारी हर दिन की ज़िंदगी एक भारी बोझ बन गयी है और हमें बहुत मुश्‍किल हालात से गुज़रना पड़ रहा है? बाइबल हमें बताती है: “अपना बोझ यहोवा पर डाल दे वह तुझे सम्भालेगा; वह धर्मी को कभी टलने न देगा।” (भजन 55:22) जब हमें गंभीर फैसले करने होते हैं, तो हम यीशु की मिसाल पर चल सकते हैं। बारह प्रेरित चुनने से पहले, उसने सारी रात एकांत में प्रार्थना करते हुए बितायी। (लूका 6:12-16) मरने से पहले की रात को उसने ऐसी ज़बरदस्त भावना के साथ प्रार्थना की कि “उसका पसीना मानो लोहू की बड़ी बड़ी बून्दों की नाईं भूमि पर गिर रहा था।” (लूका 22:44) इसका नतीजा क्या हुआ? “भक्‍ति के कारण उस की सुनी गई।” (इब्रानियों 5:7) पूरे मन से लगातार प्रार्थनाएँ करना ज़िंदगी के बेहद मुश्‍किल हालात और बड़ी आज़माइशों का सामना करने में हमारी मदद करेगा।

12. प्रार्थना के ज़रिए हम यहोवा का प्यार कैसे महसूस कर पाते हैं?

12 प्रार्थना के ज़रिए यहोवा के करीब आने की एक और वजह यह है कि बदले में वह भी हमारे करीब आएगा। (याकूब 4:8) जब हम यहोवा के सामने अपने दिल का हाल खुलकर बताते हैं, तब क्या हम महसूस नहीं करते कि वह हमारी सुन रहा है और उसे हमारी गहरी चिंता है? हम खुद अपने लिए यहोवा का प्यार महसूस करते हैं। जब यहोवा के सेवक उसे अपना स्वर्गीय पिता जानकर प्रार्थना करते हैं, तो यहोवा उनकी हर प्रार्थना खुद सुनता है, यह काम उसने किसी और को नहीं सौंपा है। (भजन 66:19, 20; लूका 11:2) वह हमसे कहता है कि हम ‘अपनी सारी चिन्ता उसी पर डाल दें, क्योंकि उस को हमारा ध्यान है।’—1 पतरस 5:6, 7.

13, 14. निरन्तर प्रार्थना में लगे रहने की क्या वजह हैं?

13 जब लोगों की बेरुखी या विरोध की वजह से हम प्रचार का काम छोड़ने की सोचने लगते हैं तब प्रार्थना, प्रचार के लिए हमारे अंदर और ज़्यादा जोश भर सकती है और हमें मज़बूत कर सकती है। (प्रेरितों 4:23-31) प्रार्थना हमें “शैतान की युक्‍तियों” से खुद को बचाने में भी मदद कर सकती है। (इफिसियों 6:11, 17, 18) रोज़मर्रा ज़िंदगी की परीक्षाओं से जूझते वक्‍त हम परमेश्‍वर से लगातार मदद माँग सकते हैं कि वह हमें मज़बूती दे। यीशु ने जो प्रार्थना सिखायी थी उसमें ‘उस दुष्ट से बचाने’ यानी शैतान इब्‌लीस से बचाने की बिनती थी।—मत्ती 6:13, NHT, फुटनोट।

14 अगर हम अपनी पाप करने की ख्वाहिशों पर काबू पाने के लिए प्रार्थना करते रहेंगे, तो हम पाएँगे कि यहोवा हमारी मदद कर रहा है। हमें इस बात का यकीन दिलाया गया है: “तुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़े, जो मनुष्य के सहने से बाहर है: और परमेश्‍वर सच्चा है: वह तुम्हें सामर्थ से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, बरन परीक्षा के साथ निकास भी करेगा; कि तुम सह सको।” (1 कुरिन्थियों 10:13) खुद प्रेरित पौलुस ने अलग-अलग हालात में यहोवा की परवाह और शक्‍ति को महसूस किया था। उसने कहा: “जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।”—फिलिप्पियों 4:13; 2 कुरिन्थियों 11:23-29.

अपनी कमज़ोरियों के बावजूद प्रार्थना में नित्य लगे रहो

15. जब हमारा चालचलन परमेश्‍वर के वचन के मुताबिक नहीं होता, तब क्या हो सकता है?

15 अगर हम चाहते हैं कि हमारी प्रार्थनाएँ सुनी जाएँ, तो हमें परमेश्‍वर के वचन से मिली सलाह को ठुकराना नहीं चाहिए। प्रेरित यूहन्‍ना ने लिखा था: “जो कुछ हम मांगते हैं, वह हमें उस से मिलता है; क्योंकि हम उस की आज्ञाओं को मानते हैं; और जो उसे भाता है वही करते हैं।” (1 यूहन्‍ना 3:22) लेकिन तब क्या जब हमारा चालचलन परमेश्‍वर के वचन के मुताबिक सही न हो? जब आदम और हव्वा ने अदन की वाटिका में पाप किया था, तो उन्होंने खुद को छिपा लिया था। उसी तरह हम भी “यहोवा परमेश्‍वर से” छिपने की कोशिश कर सकते हैं और प्रार्थना करना बंद कर सकते हैं। (उत्पत्ति 3:8) एक तजुर्बेकार सफरी ओवरसियर क्लाउस का कहना है: “मैंने देखा है कि जो लोग यहोवा और उसके संगठन से धीरे-धीरे दूर चले जाते हैं, उनमें से ज़्यादातर की सबसे पहली गलती यह होती है कि वे प्रार्थना करना बंद कर देते हैं।” (इब्रानियों 2:1) होसे आँखेल के साथ भी यही हुआ था, वह कहता है: “उन आठ सालों के दौरान मुझे याद नहीं कि मैंने कभी यहोवा से प्रार्थना की हो। मैं खुद को उससे प्रार्थना करने के लायक नहीं समझता था, हालाँकि मैं उसे अपना स्वर्गीय पिता मानता था।”

16, 17. उदाहरण देकर समझाइए कि कैसे लगातार प्रार्थना करने से हम आध्यात्मिक कमज़ोरियों को दूर कर सकते हैं?

16 हममें से कुछ को ऐसा लग सकता है कि हम प्रार्थना करने के लायक नहीं, क्योंकि हममें आध्यात्मिक कमज़ोरी है या हम किसी पाप में पड़ गए हैं। लेकिन यही वह वक्‍त होता है, जब हमें प्रार्थना के इंतज़ाम से पूरा फायदा उठाने की सख्त ज़रूरत होती है। योना अपनी ज़िम्मेदारी छोड़कर भाग गया था। लेकिन ‘उसने संकट में पड़े हुए यहोवा की दोहाई दी, और उस ने उसकी सुन ली; अधोलोक के उदर में से वह चिल्ला उठा, और उस ने उसकी सुन ली।’ (योना 2:2) योना ने यहोवा से बिनती की और यहोवा ने उसका जवाब दिया और नतीजा यह हुआ कि योना अपनी आध्यात्मिक कमज़ोरी को दूर कर सका।

17 होसे आँखेल ने भी मदद के लिए दिल से गहरी प्रार्थना की। वह याद करता है: “मैंने दिल खोलकर यहोवा से माफी माँगी। और उसने वाकई मेरी मदद की। मुझे नहीं लगता कि प्रार्थना के बिना मैं कभी सच्चाई में दोबारा आ पाता। अब मैं हर दिन बिना नागा प्रार्थना करता हूँ, और हमेशा प्रार्थना के वक्‍त के लिए बेताब रहता हूँ।” हमें अपनी गलतियों के बारे में खुलकर परमेश्‍वर को बताना चाहिए और फिर नम्रता से उससे माँफी माँगनी चाहिए। जब राजा दाऊद ने अपने अपराध कबूल किए तब यहोवा ने उसे माफ किया। (भजन 32:3-5) यहोवा हमारी मदद करना चाहता है, ना कि हमें कसूरवार ठहराना। (1 यूहन्‍ना 3:19, 20) इसके अलावा कलीसिया के प्राचीनों की प्रार्थनाएँ आध्यात्मिक तरीके से हमारी मदद कर सकती हैं, क्योंकि उनकी ‘प्रार्थना के प्रभाव से बहुत कुछ हो सकता है।’—याकूब 5:13-16.

18. यहोवा का सेवक चाहे उससे कितना ही दूर क्यों न चला जाए, उसे क्या यकीन दिलाया गया है?

18 कौन ऐसा पिता होगा जो अपने उस बच्चे से मुँह मोड़ लेगा जो गलती करने के बाद उसके पास लौट आता और नम्रता से उससे मदद माँगता है? उड़ाऊ बेटे की कहानी यही सिखाती है कि चाहे हम कितनी ही दूर क्यों न चले गए हों, मगर जब हम वापस अपने पिता के पास लौटते हैं, तो वह खुशी से फूला नहीं समाता। (लूका 15:21, 22, 32) गुमराह होनेवाले सभी जनों से यहोवा गुज़ारिश करता है कि वे उसे पुकारें, क्योंकि ‘वह पूरी रीति से उनको क्षमा करेगा।’ (यशायाह 55:6, 7) दाऊद ने कई गंभीर पाप किए थे, लेकिन उसने मदद के लिए यह कहते हुए यहोवा को पुकारा: “हे परमेश्‍वर, मेरी प्रार्थना की ओर कान लगा; और मेरी गिड़गिड़ाहट से मुंह न मोड़!” आगे उसने यह भी कहा: “सांझ को, भोर को, दोपहर को, तीनों पहर मैं दोहाई दूंगा और कराहता रहूंगा। और वह मेरा शब्द सुन लेगा।” (भजन 55:1, 17) इन वचनों से क्या ही तसल्ली मिलती है!

19. हमें यह नतीजा क्यों नहीं निकाल लेना चाहिए कि हमारी प्रार्थनाओं का जवाब न मिलने का मतलब है कि परमेश्‍वर हमसे नाराज़ है?

19 लेकिन तब क्या जब प्रार्थना करने पर भी हमें जल्द जवाब नहीं मिलता? तब हमें जाँचना चाहिए कि क्या हमारी प्रार्थनाएँ परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक हैं और यीशु के नाम से की गयी हैं। (यूहन्‍ना 16:23; 1 यूहन्‍ना 5:14) चेले याकूब ने ऐसे कुछ मसीहियों का ज़िक्र किया जिनकी प्रार्थनाएँ नहीं सुनी गयी थीं, क्योंकि वे ‘बुरी इच्छा से मांग’ रहे थे। (याकूब 4:3) दूसरी तरफ, जब हमें लगता है कि हमारी प्रार्थनाएँ नहीं सुनी जा रहीं तब हमेशा जल्दबाज़ी में इस नतीजे पर नहीं पहुँच जाना चाहिए कि परमेश्‍वर हमसे नाराज़ है। यहोवा कई बार ऐसा होने देता है कि उसके वफादार उपासक कुछ वक्‍त तक किसी मामले के बारे में प्रार्थनाएँ करते रहें, उसके बाद उन्हें उसका जवाब मिलता है। इसलिए यीशु ने कहा था: “परमेश्‍वर से माँगते रहो, [तो] तुम्हें दिया जायेगा।” (मत्ती 7:7, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) इसलिए हमें “प्रार्थना में नित्य लगे” रहने की ज़रूरत है।—रोमियों 12:12.

हमेशा प्रार्थना कीजिए

20, 21. (क) इन “अन्तिम दिनों” में हमें निरन्तर प्रार्थना में क्यों लगे रहना चाहिए? (ख) अगर हम हर दिन यहोवा के अपार अनुग्रह के सिंहासन के सामने आएँ, तो हमें क्या मिलेगा?

20 इन “अन्तिम दिनों” में जब “कठिन समय” चल रहा है, दबाव और समस्याएँ दिनों-दिन बढ़ती जा रही हैं। (2 तीमुथियुस 3:1) कोई भी परीक्षा हमारा सुख-चैन छीन सकती है। लेकिन लंबे अरसे तक कायम रहनेवाली समस्याओं, आज़माइशों और निराशाओं के बावजूद निरन्तर प्रार्थना में लगे रहना हमें आध्यात्मिक मार्ग पर बने रहने में मदद करेगा। यहोवा से रोज़ प्रार्थना करना, हमें ऐसी ताकत दे सकता है जिसकी हमें सख्त ज़रूरत है।

21 यहोवा ‘प्रार्थना का सुननेवाला’ है, ऐसा कभी नहीं हो सकता कि उसके पास हमारी फरियाद सुनने की फुरसत न हो। (भजन 65:2) इसलिए हमें भी अपनी ज़िंदगी में इतना उलझ नहीं जाना चाहिए कि हमारे पास उससे बात करने का वक्‍त ही न हो। परमेश्‍वर के साथ हमारी दोस्ती ही हमारे लिए दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है। हमें कभी-भी इसमें लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। “इसलिये आओ, हम अनुग्रह के सिंहासन के निकट हियाव बान्धकर चलें, कि हम पर दया हो, और वह अनुग्रह पाएं, जो आवश्‍यकता के समय हमारी सहायता करे।”—इब्रानियों 4:16.

आप क्या जवाब देंगे?

• प्रार्थना की अहमियत के बारे में हम भविष्यवक्‍ता दानिय्येल से क्या सीखते हैं?

• हम यहोवा के साथ अपनी दोस्ती को कैसे मज़बूत कर सकते हैं?

• हमें निरन्तर प्रार्थना में क्यों लगे रहना चाहिए?

• जब हम खुद को इस काबिल न समझें तब भी हमें क्यों यहोवा से प्रार्थना करना नहीं छोड़ना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 16 पर तसवीर]

राजा से दरख्वास्त करने से पहले नहेमायाह ने मन-ही-मन एक छोटी-सी प्रार्थना की

[पेज 17 पर तसवीर]

हन्‍ना ने यहोवा से “बहुत देर तक प्रार्थना की”

[पेज 18 पर तसवीर]

अपने 12 प्रेरितों को चुनने से पहले यीशु ने पूरी रात प्रार्थना करने में बितायी

[पेज 20 पर तसवीर]

हर दिन हमें प्रार्थना करने के ढेरों मौके मिलते हैं