धार्मिकता की खातिर ज़ुल्म सहना
धार्मिकता की खातिर ज़ुल्म सहना
“धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं।”—मत्ती 5:10, NHT.
1. यीशु, पुन्तियुस पीलातुस के सामने क्यों हाज़िर हुआ, और उसने क्या कहा?
“मैंने इसलिये जन्म लिया, और इसलिये जगत में आया हूं कि सत्य पर गवाही दूं।” (यूहन्ना 18:37) यीशु ने ये शब्द यहूदिया के रोमी गवर्नर, पुन्तियुस पीलातुस के सामने कहे थे। यीशु वहाँ न तो अपनी मरज़ी से गया था और ना ही पीलातुस ने उसे बुलाया था। वह इसलिए वहाँ हाज़िर था क्योंकि यहूदी धर्म-गुरुओं ने उस पर यह झूठा इलज़ाम लगाया था कि उसने मौत की सज़ा के लायक संगीन जुर्म किया है।—यूहन्ना 18:29-31.
2. यीशु ने क्या किया, और उसका नतीजा क्या हुआ?
2 यीशु अच्छी तरह जानता था कि पीलातुस के पास उसे रिहा करने या मौत की सज़ा देने का अधिकार है। (यूहन्ना 19:10) फिर भी वह निडर होकर पीलातुस को राज्य के बारे में गवाही देने से पीछे नहीं हटा। हालाँकि उस वक्त यीशु की जान खतरे में थी, फिर भी उसने इस मौके का अच्छा इस्तेमाल करके उस इलाके के सबसे बड़े सरकारी अधिकारी को गवाही दी। यीशु की उस गवाही के बावजूद, उसे कसूरवार ठहराया गया और मार डाला गया। यीशु, एक यातना स्तंभ पर दर्दनाक मौत मरा और इस तरह अपने विश्वास की खातिर शहीद हो गया।—मत्ती 27:24-26; मरकुस 15:15; लूका 23:24, 25; यूहन्ना 19:13-16.
गवाह या शहीद?
3. बाइबल के ज़माने में शब्द “शहीद” का क्या मतलब था, लेकिन आज इसका क्या मतलब समझा जाता है?
3 आज कुछ भाषाओं में, शब्द “शहीद” से ऐसे लोगों का खयाल आता है, जो अपने धर्म की खातिर मर-मिटने को तैयार रहते हैं या कट्टरपंथी होते हैं, और इन्हें समाज के लिए खतरा माना जाता है। लेकिन जिस यूनानी शब्द (मार्टिस) का अनुवाद ‘शहीद’ किया गया है, बाइबल के ज़माने में दरअसल उसका मतलब था, एक “गवाह” या शहादत देनेवाला जो ज़्यादातर, अदालत में सुनवाई के वक्त उन बातों की गवाही देता था जिन्हें वह सच मानता था। आगे चलकर इस शब्द का यह मतलब निकाला गया, “ऐसा इंसान जो गवाही देने की खातिर अपनी जान कुरबान कर दे” या जो अपनी जान देकर गवाही दे।
4. यीशु, खासकर किस मायने में शहीद हुआ?
4 शब्द शहीद का पहले जो मतलब समझा जाता था, खासकर उसी मायने में यीशु शहीद हुआ। जैसे उसने पीलातुस से कहा, वह “सत्य पर गवाही” देने के लिए धरती पर आया था। उसकी गवाही सुनकर लोगों ने अलग-अलग रवैया दिखाया। यीशु की कही बातों और उसके कामों का कुछ आम लोगों पर इतना गहरा असर हुआ कि उन्होंने उस पर विश्वास किया। (यूहन्ना 2:23; 8:30) उसकी गवाही सुनकर दूसरों पर, खासकर धर्म-गुरुओं पर भी ज़बरदस्त असर हुआ, मगर उन्होंने बिलकुल गलत रवैया दिखाया। यीशु के जो रिश्तेदार उस पर विश्वास नहीं करते थे, उनसे उसने कहा: “जगत तुम से बैर नहीं कर सकता, परन्तु वह मुझ से बैर करता है, क्योंकि मैं उसके विरोध में यह गवाही देता हूं, कि उसके काम बुरे हैं।” (यूहन्ना 7:7) सच्चाई की गवाही देने की वजह से, यहूदी जाति का क्रोध यीशु पर भड़क उठा और इस वजह से वह मार डाला गया। वाकई, यह कहना गलत न होगा कि यीशु “विश्वासयोग्य, और सच्चा गवाह (मार्टिस)” था।—प्रकाशितवाक्य 3:14.
“सब लोग तुम से बैर करेंगे”
5. यीशु ने अपनी सेवा की शुरूआत में, ज़ुल्मों के बारे में क्या कहा?
5 यीशु ने न सिर्फ भयानक ज़ुल्म सहे बल्कि अपने चेलों को आगाह किया कि उनके साथ भी ऐसा ही सलूक किया जाएगा। अपनी सेवा की शुरूआत में, यीशु ने पहाड़ी उपदेश में अपने सुननेवालों से कहा: “धन्य हैं वे जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है। धन्य हो तुम, जब लोग मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें, तुम्हें यातना दें और झूठ बोल बोल कर तुम्हारे विरुद्ध सब प्रकार की बातें कहें। आनन्दित और मग्न हो, क्योंकि स्वर्ग में तुम्हारा प्रतिफल महान् है।”—मत्ती 5:10-12, NHT.
6. यीशु ने 12 प्रेरितों को प्रचार के लिए भेजते वक्त उन्हें क्या चेतावनी दी?
6 बाद में यीशु ने अपने 12 प्रेरितों को प्रचार में भेजते वक्त उनसे कहा: “परन्तु लोगों से सावधान रहो, क्योंकि वे तुम्हें महा सभाओं में सौंपेंगे, और अपनी पंचायतों में तुम्हें कोड़े मारेंगे। तुम मेरे लिये हाकिमों और राजाओं के साम्हने उन पर, और अन्यजातियों पर गवाह होने के लिये पहुंचाए जाओगे।” लेकिन चेलों को सिर्फ धर्म के बड़े-बड़े लोग ही नहीं सताते। यीशु ने यह भी कहा: “भाई, भाई को और पिता पुत्र को, घात के लिये सौंपेंगे, और लड़केवाले माता-पिता के विरोध में उठकर उन्हें मरवा डालेंगे। मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे, पर जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा उसी का उद्धार होगा।” (मत्ती 10:17, 18, 21, 22) पहली सदी के मसीहियों ने जो-जो सहा उससे यीशु के शब्दों की सच्चाई ज़ाहिर हुई।
वफादारी से धीरज धरने का रिकॉर्ड
7. स्तिफनुस के शहीद होने से पहले कौन-सी घटनाएँ घटीं?
7 यीशु की मौत के कुछ प्रेरितों 6:8, 10) स्तिफनुस से वे इस कदर जल उठे कि वे उसे घसीटकर महासभा के सामने ले आए, जो यहूदियों की अदालत थी। वहाँ उसने दुश्मनों के झूठे इलज़ाम का सामना करते हुए भी ज़बरदस्त गवाही दी। आखिर में, दुश्मनों ने इस वफादार गवाह स्तिफनुस को मार डाला।—प्रेरितों 7:59, 60.
ही समय बाद, स्तिफनुस वह पहला मसीही था जिसे सच्चाई की गवाही देने की खातिर अपनी जान देनी पड़ी। वह “अनुग्रह और सामर्थ से परिपूर्ण होकर लोगों में बड़े बड़े अद्भुत काम और चिन्ह दिखाया करता था।” धर्म के नाम पर उसका विरोध करनेवाले, “उस ज्ञान और उस आत्मा का जिस से वह बातें करता था, . . . साम्हना न कर सके।” (8. स्तिफनुस की मौत के बाद, जब यरूशलेम में रहनेवाले चेलों को सताया जाने लगा, तो उन्होंने कैसा रवैया दिखाया?
8 स्तिफनुस की हत्या के बाद, “यरूशलेम की कलीसिया पर बड़ा उपद्रव होने लगा और प्रेरितों को छोड़ सब के सब यहूदिया और सामरिया देशों में तित्तर बित्तर हो गए।” (प्रेरितों 8:1) क्या ऐसे ज़ुल्मों से डरकर मसीहियों ने गवाही देना बंद कर दिया? नहीं, बल्कि बाइबल बताती है कि “जो तित्तर बित्तर हुए थे, वे सुसमाचार सुनाते हुए फिरे।” (प्रेरितों 8:4) उनका भी इरादा प्रेरित पतरस की तरह था, जिसने पहले कहा था: “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है।” (प्रेरितों 5:29) तो उन वफादार और साहसी चेलों ने, ज़ुल्मों के बावजूद सच्चाई की गवाही देना नहीं छोड़ा। हालाँकि वे जानते थे कि ऐसा करने से उन पर और भी मुसीबतें आएँगी, फिर भी वे अपने काम में लगे रहे।—प्रेरितों 11:19-21.
9. यीशु के चेलों पर कैसे ज़ुल्मों का दौर चलता रहा?
9 मसीहियों पर होनेवाले ज़ुल्म कम नहीं हुए बल्कि लगातार बढ़ते गए। स्तिफनुस की हत्या के बाद, पहले हम शाऊल का वाकया पढ़ते हैं जिसने स्तिफनुस को पत्थरवाह करने में साथ दिया था। वह ‘अब तक प्रभु के चेलों को धमकाने और घात करने की धुन में था और वह महायाजक के पास गया। और उस से दमिश्क के आराधनालयों के नाम पर इस अभिप्राय की चिट्ठियाँ मांगी, कि क्या पुरुष, क्या स्त्री, जिन्हें वह इस पंथ पर पाए उन्हें बान्धकर यरूशलेम में ले आए।’ (प्रेरितों 9:1, 2) इसके बाद, करीब सा.यु. 44 में, “हेरोदेस राजा ने कलीसिया के कई एक व्यक्तियों को दुख देने के लिये उन पर हाथ डाले। उस ने यूहन्ना के भाई याकूब को तलवार से मरवा डाला।”—प्रेरितों 12:1, 2.
10. प्रेरितों के काम और प्रकाशितवाक्य की किताब में, हम ज़ुल्मों के बारे में क्या रिकॉर्ड पाते हैं?
10 प्रेरितों के काम के बाकी अध्यायों में इस बात का पक्का रिकॉर्ड मिलता है कि वफादार लोगों ने किन-किन परीक्षाओं को सहा, कैसे उन्हें कैद में डाला गया और बेरहमी से सताया गया। उनमें से एक था प्रेरित पौलुस, जो पहले मसीहियों पर ज़ुल्म ढाता था। सामान्य युग 65 के आस-पास, शायद वह रोमी सम्राट नीरो के हाथों शहीद हो गया। (2 कुरिन्थियों 11:23-27; 2 तीमुथियुस 4:6-8) आखिर में प्रकाशितवाक्य की किताब में, जिसे पहली सदी के आखिरी सालों में लिखा गया था, हम बुज़ुर्ग प्रेरित यूहन्ना के बारे में पढ़ते हैं। उसे “परमेश्वर . . . और यीशु की गवाही के कारण” पतमुस द्वीप में कारावास में डाल दिया गया था। प्रकाशितवाक्य में यह भी लिखा है कि “विश्वासयोग्य साक्षी अन्तिपास” को पिरगमुन में “घात किया गया” था।—प्रकाशितवाक्य 1:9; 2:13.
11. शुरू के मसीहियों पर जो बीती, उससे ज़ुल्म के बारे में यीशु के शब्द कैसे सच साबित हुए?
11 इन सारी घटनाओं से यीशु की ये बातें सच साबित हुईं, जो उसने अपने चेलों से कही थीं: “यदि उन्हों ने मुझे सताया, तो तुम्हें भी सताएंगे।” (यूहन्ना 15:20) शुरू के वफादार मसीही, सबसे बड़ी परीक्षा, मौत का भी सामना करने के लिए तैयार थे, फिर चाहे उन्हें तड़पा-तड़पाकर मार डाला जाता, जंगली जानवरों के सामने फेंक दिया जाता या किसी और तरीके से मौत के घाट उतार दिया जाता। उन्हें यह सब इसलिए मंज़ूर था ताकि वे प्रभु यीशु मसीह से मिला यह काम पूरा कर सकें: “[तुम] यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होगे।”—प्रेरितों 1:8.
12. मसीहियों पर ज़ुल्म, सिर्फ गुज़रे ज़माने की बात क्यों नहीं है?
12 अगर कोई सोचे कि यीशु के चेलों के साथ ऐसी बदसलूकी सिर्फ गुज़रे ज़माने की बात है, तो यह उसकी बहुत बड़ी गलतफहमी होगी। पौलुस ने, जिसने बहुत-सी मुश्किलों को सहा था, यह लिखा: “जितने मसीह यीशु में भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएंगे।” (2 तीमुथियुस 3:12) सताए जाने के बारे में पतरस ने कहा: “तुम इसी के लिये बुलाए भी गए हो क्योंकि मसीह भी तुम्हारे लिये दुख उठाकर, तुम्हें एक आदर्श दे गया है, कि तुम भी उसके चिन्ह पर चलो।” (1 पतरस 2:21) इस संसार के “अन्तिम दिनों” यानी आज के दिन तक, यहोवा के लोग नफरत और विरोध सहते आए हैं। (2 तीमुथियुस 3:1) दुनिया के हर कोने में, फिर चाहे वहाँ तानाशाह हुकूमत हो या लोकतंत्रीय सरकार, यहोवा के लोगों को किसी-न-किसी वक्त पर ज़ुल्मों के दौर से ज़रूर गुज़रना पड़ा है। कभी किसी एक साक्षी को सताया गया तो कभी उनके पूरे झुंड को।
नफरत और ज़ुल्म के शिकार क्यों हैं?
13. आज यहोवा के सेवकों को ज़ुल्मों के बारे में क्या बात याद रखनी चाहिए?
13 हालाँकि आज हममें से ज़्यादातर लोगों को प्रचार करने और शांति से एक-साथ इकट्ठे होने की आज़ादी है, मगर हमें बाइबल की इस चेतावनी को नहीं भूलना है कि “इस संसार की रीति और व्यवहार बदलते जाते हैं।” (1 कुरिन्थियों 7:31) हालात इतनी तेज़ी से बदल सकते हैं कि अगर हम अपने दिल और दिमाग को इसके लिए तैयार न रखें और आध्यात्मिक तरीके से मज़बूत न रहें, तो हम बड़ी आसानी से ठोकर खा जाएँगे। ऐसे में हम अपनी हिफाज़त के लिए क्या कदम उठा सकते हैं? अपना बचाव करने का एक अहम तरीका है, यह ठीक-ठीक समझ लेना कि हालाँकि मसीही अमन-पसंद लोग हैं और देश का कानून मानने में पक्के हैं, फिर भी उनसे क्यों नफरत की जाती है और उन्हें क्यों सताया जाता है।
14. पतरस ने मसीहियों के सताए जाने की कौन-सी वजह बतायी?
14 प्रेरित पतरस ने अपनी पहली पत्री में इस बारे में कुछ कहा। यह पत्री उसने सा.यु. 62-64 के आस-पास लिखी थी, जब पूरे रोमी साम्राज्य में मसीही, परीक्षाएँ और ज़ुल्म सह रहे थे। उसने कहा: “हे प्रियो, जो दुख रूपी अग्नि तुम्हारे परखने के लिये तुम में भड़की है, इस से यह समझकर अचम्भा न करो कि कोई अनोखी बात तुम पर बीत रही है।” इस बात को अच्छी तरह समझाने के लिए पतरस ने आगे कहा: “तुम में से कोई व्यक्ति हत्यारा या चोर, या कुकर्मी होने, या पराए काम में हाथ डालने के कारण दुख न पाए। पर यदि मसीही होने के कारण दुख पाए, तो लज्जित न हो, पर इस बात के लिये परमेश्वर की महिमा करे।” पतरस ने बताया कि उनके दुःख उठाने की वजह यह नहीं कि उन्होंने कोई बुरा काम किया है। दरअसल वे मसीही होने की वजह से सताए जा रहे थे। अगर वे भी अपने चारों तरफ के लोगों की तरह “भारी लुचपन में” डूबे रहते, तो दुनिया उन्हें सिर आँखों पर बिठाती, उन्हें गले लगाती। लेकिन उन्हें इसलिए क्लेश सहना पड़ा क्योंकि वे मसीह के चेले होने की ज़िम्मेदारी पूरी कर रहे थे। आज सच्चे मसीहियों के मामले में भी यही बात सच है।—1 पतरस 4:4, 12, 15, 16.
15. आज यहोवा के साक्षियों के साथ कैसा अलग-अलग तरीके से सलूक किया जा रहा है?
15 दुनिया के कई देशों में, यहोवा के साक्षियों की खुलकर तारीफ की जाती है। उनके अधिवेशनों में और निर्माण काम की जगहों पर उनकी एकता और एक-दूसरे की मदद करने की भावना, देखनेवालों को भा जाती है। साक्षियों की इसलिए भी सराहना की जाती है कि वे ईमानदार और मेहनती हैं, चालचलन और पारिवारिक ज़िंदगी में अच्छी मिसाल हैं, उनका बनाव-श्रृंगार सलीकेदार होता है और वे दूसरों के साथ गरिमा से पेश आते हैं। * मगर दूसरी तरफ, कुछ देशों में उनके काम पर पाबंदी लगा दी गयी है या उसमें बाधाएँ डाल दी गयी हैं। इस लेख को लिखते वक्त कम-से-कम 28 देशों में ऐसी समस्या थी। और कई साक्षियों को अपने विश्वास की वजह से मारा-पीटा जाता है और उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है। अब सवाल यह है कि साक्षियों के अच्छे चालचलन के बावजूद, उनके साथ ऐसी बदसलूकी क्यों की जा रही है? और परमेश्वर क्यों ऐसा होने दे रहा है?
16. किस खास वजह से परमेश्वर अपने लोगों पर ज़ुल्म होने देता है?
नीतिवचन 27:11 में बतायी गयी है, जिसे हमें याद रखना चाहिए: “हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर मेरा मन आनन्दित कर, तब मैं अपने निन्दा करनेवाले को उत्तर दे सकूंगा।” जी हाँ, साक्षियों की बदसलूकी की वजह, विश्व पर हुकूमत का मसला है जो लंबे अरसे से चला आ रहा है। हालाँकि बीती सदियों के दौरान, बेहिसाब लोगों ने यहोवा के लिए अपनी खराई साबित कर दिखायी है और देखा जाए तो ये सबूत उस मसले को सुलझाने के लिए काफी हैं, फिर भी शैतान, धर्मी पुरुष अय्यूब के दिनों की तरह आज भी यहोवा को ताने मारने से बाज़ नहीं आया है। (अय्यूब 1:9-11; 2:4, 5) इसमें शक नहीं कि शैतान आज अपने दावे को साबित करने के लिए इस आखिरी मौके का इस्तेमाल करके ज़्यादा-से-ज़्यादा वहशियाना हमले कर रहा है। क्योंकि परमेश्वर का राज्य स्थापित हो चुका है और उसे कोई हिला नहीं सकता और उसकी वफादार प्रजा और उसके शासक सारी धरती पर मौजूद हैं। क्या वे आनेवाली हर मुश्किल और संकट के बावजूद परमेश्वर के वफादार बने रहेंगे? यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब यहोवा के हर सेवक को अपने कामों से देना होगा।—प्रकाशितवाक्य 12:12, 17.
16 इसकी सबसे खास वजह17. यीशु के इन शब्दों का मतलब क्या था, “यह तुम्हारे लिये गवाही देने का अवसर हो जाएगा”?
17 यीशु ने जब अपने चेलों को बताया कि “जगत के अन्त” के दौरान कैसी घटनाएँ घटेंगी, तो उसने एक और वजह बतायी कि यहोवा अपने सेवकों पर ज़ुल्म क्यों होने देता है। उसने उनसे कहा: “वे मेरे नाम के कारण तुम्हें . . . राजाओं और हाकिमों के साम्हने ले जाएंगे। पर यह तुम्हारे लिये गवाही देने का अवसर हो जाएगा।” (मत्ती 24:3, 9; लूका 21:12, 13) खुद यीशु ने भी हेरोदेस और पुन्तियुस पीलातुस के सामने गवाही दी थी। प्रेरित पौलुस को भी ‘राजाओं और हाकिमों के सामने ले जाया गया।’ प्रभु यीशु मसीह के निर्देशन में, पौलुस को अपने ज़माने के सबसे ताकतवर शासक को गवाही देने का मौका मिला जब उसने कहा: “मैं कैसर की दोहाई देता हूं।” (प्रेरितों 23:11; 25:8-12) आज के ज़माने में भी जब साक्षियों के सामने बड़ी-बड़ी मुश्किलें आयी हैं, तो अकसर उन्हें अधिकारियों और आम जनता, दोनों को बढ़िया गवाही देने का मौका मिला है। *
18, 19. (क) परीक्षाओं का सामना करने से हमें क्या फायदा होगा? (ख) अगले लेख में किन सवालों पर चर्चा की जाएगी?
18 आखिरी वजह यह है कि परीक्षाओं और क्लेश का सामना करने से खुद हमें भी फायदा होगा। वह कैसे? चेले याकूब ने अपने मसीही भाई-बहनों को यह ध्यान दिलाया: “हे मेरे भाइयो, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो, तो इस को पूरे आनन्द की बात समझो, यह जानकर, कि तुम्हारे विश्वास के परखे जाने से धीरज उत्पन्न होता है।” जी हाँ, ज़ुल्मों की आग में तपने से हमारा विश्वास और भी शुद्ध होता है और धीरज धरने का हमारा इरादा पहले से ज़्यादा मज़बूत होता है। इसलिए हम ज़ुल्म के नाम से खौफ नहीं खाते, ना ही इस तकलीफ से बचने या उसे दूर करने के लिए ऐसा कोई कदम उठाते हैं जो बाइबल के खिलाफ हो। इसके बजाय, हम याकूब की यह सलाह मानते हैं: “धीरज को अपना पूरा काम करने दो, कि तुम पूरे और सिद्ध हो जाओ और तुम में किसी बात की घटी न रहे।”—याकूब 1:2-4.
19 हालाँकि बाइबल हमें यह समझने में मदद देती है कि यहोवा के वफादार सेवकों को क्यों सताया जाता है और वह इसकी इजाज़त क्यों देता है, फिर भी यह सब जानने से ज़रूरी नहीं कि ज़ुल्म सहना हमारे लिए आसान हो जाएगा। हमें यह भी जानना होगा कि ज़ुल्मों का सामना करने के लिए क्या बात हमें मज़बूत कर सकती है। जब हम पर ज़ुल्म ढाए जाते हैं, तो हम क्या कर सकते हैं? इन अहम सवालों पर हम अगले लेख में चर्चा करेंगे।
[फुटनोट]
^ पैरा. 15 दिसंबर 15, 1995 की प्रहरीदुर्ग के पेज 27-9, अप्रैल 1, 1994 की प्रहरीदुर्ग के पेज 28-29; और दिसंबर 22, 1993 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) के पेज 6-13 देखिए।
^ पैरा. 17 अगस्त 15, 2001 की प्रहरीदुर्ग का पेज 8 देखिए।
क्या आप समझा सकते हैं?
• यीशु खासकर किस मायने में एक शहीद था?
• पहली सदी के मसीहियों पर ज़ुल्मों का क्या असर हुआ?
• पतरस ने शुरू के मसीहियों के सताए जाने की क्या वजह बतायी?
• किन वजहों से यहोवा अपने सेवकों को ज़ुल्मों के दौर से गुज़रने देता है?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 10, 11 पर तसवीरें]
पहली सदी के मसीहियों ने बुरे काम करने की वजह से नहीं बल्कि मसीही होने की वजह से दुःख सहा
पौलुस
यूहन्ना
अन्तिपास
याकूब
स्तिफनुस