इनाम पाना है तो संयम बरतें!
इनाम पाना है तो संयम बरतें!
“खेल प्रतियोगिता में भाग लेने वाला प्रत्येक खिलाड़ी सभी प्रकार का संयम रखता है।”—1 कुरिन्थियों 9:25, Nht.
1. इफिसियों 4:22-24 में दी गयी सलाह के मुताबिक, किस तरह लाखों लोगों ने यहोवा को ‘हाँ’ कहा है?
अगर आपने यहोवा का एक साक्षी बनने के लिए बपतिस्मा लिया है, तो आपने सरेआम यह कबूल किया है कि आप ऐसी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए तैयार हैं जिसमें बतौर इनाम, हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी। आपने यहोवा की इच्छा पूरी करने के लिए ‘हाँ’ कहा था। यहोवा को अपना जीवन समर्पित करने से पहले, हममें से कइयों को अपनी शख्सियत में बड़े-बड़े बदलाव करने पड़े ताकि यहोवा हमारे समर्पण को कबूल करे। जो सलाह प्रेरित पौलुस ने मसीहियों को दी थी, उसे हमने माना: “तुम अगले चालचलन के पुराने मनुष्यत्व को जो भरमानेवाली अभिलाषाओं के अनुसार भ्रष्ट होता जाता है, उतार डालो। . . . नये मनुष्यत्व को पहिन लो, जो परमेश्वर के अनुसार सत्य की धार्मिकता, और पवित्रता में सृजा गया है।” (इफिसियों 4:22-24) दूसरे शब्दों में कहें तो, अपनी ज़िंदगी परमेश्वर को समर्पित करने के लिए ‘हाँ’ कहने से पहले, हमें अपने गलत तौर-तरीकों को ‘ना’ कहना पड़ा।
2, 3. पहला कुरिन्थियों 6:9-12 में यह कैसे बताया गया है कि परमेश्वर की मंज़ूरी पाने के लिए दो तरह के बदलाव करने ज़रूरी हैं?
2 पुराने मनुष्यत्व के कुछ कामों की बाइबल सीधे-सीधे निंदा करती है और एक इंसान के लिए यहोवा का साक्षी बनने से पहले इन्हें छोड़ना ज़रूरी है। कुरिन्थियों को लिखी अपनी पत्री में पौलुस ने इनमें से कुछ कामों का ज़िक्र किया: “न वेश्यागामी, न मूर्त्तिपूजक, न परस्त्रीगामी, न लुच्चे, न पुरुषगामी। न चोर, न लोभी, न पियक्कड़, न गाली देनेवाले, न अन्धेर करनेवाले परमेश्वर के राज्य के वारिस होंगे।” उसके बाद, यह दिखाने के लिए कि पहली सदी के कुछ मसीहियों ने अपने अंदर ज़रूरी बदलाव किए थे, उसने आगे कहा: “तुम में से कितने ऐसे ही थे।” गौर कीजिए, उसने कहा कि वे पहले ऐसे थे, न कि अब हैं।—1 कुरिन्थियों 6:9-11.
3 पौलुस ने सलाह दी कि उन्हें इसके बाद भी ज़िंदगी में कुछ बदलाव करने की ज़रूरत थी। यह उसके आगे के शब्दों से ज़ाहिर होता है: “सब वस्तुएं मेरे लिये उचित तो हैं, परन्तु सब वस्तुएं लाभ की नहीं।” (1 कुरिन्थियों 6:12) तो आज जो यहोवा के साक्षी बनना चाहते हैं, उनमें से बहुतों को ऐसे कामों को भी ‘ना’ कहने की ज़रूरत है, जो अपने आप में गलत नहीं हैं, मगर उनसे कोई लाभ नहीं होता या जो सिर्फ घड़ी भर का सुख देते हैं। ये कुछ ऐसे काम हैं जिनमें बहुत सारा वक्त ज़ाया हो सकता है और जो ज़िंदगी की अहम बातों से उनका ध्यान भटका सकते हैं।
4. समर्पित मसीही, पौलुस की तरह क्या महसूस करते हैं?
4 परमेश्वर को अपनी ज़िंदगी खुशी-खुशी समर्पित की जाती है, न कि कुड़कुड़ाते हुए मानो बहुत बड़ी कुरबानी देनी पड़ रही हो। समर्पित मसीही, बिलकुल वैसा ही महसूस करते हैं जैसा पौलुस ने मसीह का चेला बनने के बाद महसूस किया था: “[यीशु] के कारण मैं ने सब वस्तुओं की हानि उठाई, और उन्हें कूड़ा समझता हूं, जिस से मैं मसीह को प्राप्त करूं।” (फिलिप्पियों 3:8) पौलुस ने ऐसी चीज़ों को खुशी-खुशी ठुकरा दिया जो कूड़े के बराबर थीं, ताकि वह लगातार यहोवा की मरज़ी पूरी करता रहे।
5. पौलुस किस तरह की दौड़ में कामयाब हुआ, और हम उसकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
5 पौलुस ने आध्यात्मिक दौड़ में दौड़ते वक्त खुद पर संयम रखा, इसलिए वह आखिरकार कह सका: “मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूं मैं ने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैं ने विश्वास की रखवाली की है। भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है, जिसे प्रभु, जो धर्मी, और न्यायी है, मुझे उस दिन देगा और मुझे ही नहीं, बरन उन सब को भी, जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं।” (2 तीमुथियुस 4:7, 8) क्या किसी दिन हम भी पौलुस की तरह ऐसा कह सकेंगे? हम ज़रूर कह सकेंगे, बशर्ते हम मसीही दौड़ में संयम बरतें और बिना रुके, अंतिम रेखा तक दौड़ते रहें।
भले काम करने के लिए संयम ज़रूरी है
6. संयम का मतलब क्या है, और किन दो तरीकों से हमें यह गुण दिखाना चाहिए?
6 बाइबल में जिन इब्रानी और यूनानी शब्दों का अनुवाद “संयम” किया गया है, उनका शब्द-ब-शब्द मतलब है, खुद को काबू में रखने या खुद पर लगाम लगाने की ताकत। इन शब्दों से अकसर यह समझ में आता है कि हमें बुरा काम करने से खुद को रोकना है। लेकिन यह साफ ज़ाहिर है कि अपने शरीर को बुराई से रोकने के साथ-साथ उसे भले कामों में लगाने के लिए भी हमें काफी हद तक संयम की ज़रूरत है। असिद्ध होने की वजह से हमारे मन का झुकाव हमेशा गलत कामों की तरफ होता है, इसलिए हमें एक-साथ दो जंग लड़नी पड़ती हैं। (सभोपदेशक 7:29; 8:11) एक है बुरे काम करने से खुद को रोकना और दूसरी, भले काम करने के लिए अपने साथ सख्ती बरतना। दरअसल, बुराई करने से खुद को रोकने का सबसे बढ़िया तरीका है अपने शरीर पर काबू करके उसे भले कामों में लगाना।
7. (क) दाऊद की तरह, हमें किस चीज़ के लिए प्रार्थना करनी चाहिए? (ख) किन बातों पर मनन करने से हम संयम का गुण ज़्यादा-से-ज़्यादा बढ़ा सकेंगे?
7 इसमें शक नहीं कि अगर हम परमेश्वर को किए अपने समर्पण के मुताबिक जीना चाहते हैं, तो संयम दिखाना बेहद ज़रूरी है। हमें दाऊद की तरह प्रार्थना करनी चाहिए: “हे परमेश्वर, मेरे अन्दर शुद्ध मन उत्पन्न कर, और मेरे भीतर स्थिर आत्मा नये सिरे से उत्पन्न कर।” (भजन 51:10) हम इस बारे में गहराई से सोच सकते हैं कि जो काम नैतिक मायने में गलत हैं या शरीर को नुकसान पहुँचाते हैं, उनसे दूर रहने से हमें क्या-क्या फायदे होंगे। हमें यह भी सोचना है कि ऐसे गलत काम करने का अंजाम कितना बुरा हो सकता है: खतरनाक बीमारियाँ, रिश्तों में दरार, यहाँ तक कि वक्त से पहले मौत। दूसरी तरफ, सोचिए कि अगर हम यहोवा के बताए तरीके से ज़िंदगी बिताएँगे तो हमें कैसे बेहिसाब फायदे होंगे। इसके अलावा, हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हमारा दिल धोखेबाज़ है। (यिर्मयाह 17:9) अगर हमारा दिल हमें यह सोचने के लिए बहकाता है कि यहोवा के स्तरों को मानने या न मानने से कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा, तो हमें ऐसे खयालों को फौरन निकाल फेंकना चाहिए।
8. ज़िंदगी का तजुर्बा हमें किस हकीकत से वाकिफ कराता है? समझाइए।
8 हममें से कई लोग तजुर्बे से जानते हैं कि ना-नुकुर करनेवाला हमारा अड़ियल शरीर, अकसर हमारे दिल का जोश ठंडा करने की कोशिश करता है। जैसे, राज्य का प्रचार करने की बात लीजिए। यह एक ऐसा काम है जो लोगों की ज़िंदगी बचाता है और जब हम पूरे दिल से यह काम करते हैं, तो हमें देखकर यहोवा को बड़ी खुशी होती है। (भजन 110:3; मत्ती 24:14) लेकिन हममें से कइयों के लिए, सरेआम प्रचार करना सीखना आसान नहीं था। इसके लिए हमें अपने शरीर को ‘मारना-कूटना’ और अपने ‘वश में लाना’ पड़ा, ताकि हम उसके बहकावे में आकर प्रचार काम से बचने की कोशिश न करें। और शायद हमें आज भी प्रचार में निकलने के लिए अपनी भावनाओं से जूझना पड़ता हो।—1 कुरिन्थियों 9:16, 27; 1 थिस्सलुनीकियों 2:2.
“सभी प्रकार का”?
9, 10. “सभी प्रकार का संयम” दिखाने में क्या बात शामिल है?
9 बाइबल सलाह देती है कि हमें “सभी प्रकार का संयम” बरतना चाहिए। यह दिखाता है कि संयम दिखाने का मतलब सिर्फ अपने गुस्से को काबू में रखना और बदचलनी से दूर रहना नहीं है। हमें शायद लगे कि हमने इन मामलों में संयम बरतना सीख लिया है। अगर ऐसी बात है, तो हमें वाकई खुश होना चाहिए। लेकिन ज़िंदगी के उन मामलों के बारे में क्या जिनमें संयम की ज़रूरत शायद इतनी साफ नज़र न आए? उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि हम एक अमीर देश में रहते हैं, जहाँ के रहन-सहन का स्तर बहुत ऊँचा है। ऐसे में क्या यह अक्लमंदी नहीं होगी कि हम गैर-ज़रूरी चीज़ों पर पैसा उड़ाने की इच्छा को ‘ना’ कहना सीखें? माता-पिताओं को बच्चों को सिखाना चाहिए कि उन्हें नज़रों के सामने आनेवाली हर चीज़ को बस इसलिए नहीं खरीद लेना चाहिए क्योंकि वह बाज़ार में है, आँखों को बहुत लुभाती है या उसे पाना उनकी औकात में है। मगर हाँ, बच्चों के दिमाग में यह बात अच्छी तरह बिठाने के लिए, पहले माता-पिताओं को सही मिसाल कायम करनी होगी।—लूका 10:38-42.
10 जो चीज़ें हमारे लिए ज़रूरी नहीं हैं, उनके बिना अगर हम काम चलाना सीख लें, तो संयम बरतने का हमारा इरादा मज़बूत होगा। तब हम उन चीज़ों के लिए ज़्यादा एहसानमंद होंगे जो हमारे पास हैं। साथ ही, हम ऐसे लोगों की तकलीफ अच्छी तरह समझ सकेंगे, जिन्हें अपनी खुशी से नहीं बल्कि हालात से मजबूर होकर, कुछेक चीज़ों के बिना ही गुज़ारा करना पड़ता है। यह सच है कि सादगी भरी ज़िंदगी जीना, दुनिया में फैले आम रवैए के खिलाफ है, जहाँ लोगों से कहा जाता है, “यह आप ही के लिए बना है,” “अपने दिल की बात मानो” वगैरह-वगैरह। विज्ञापन की दुनिया, लोगों में यह भावना जगाती है कि उनका दिल जो चाहता है उसे फौरन हासिल कर लेना चाहिए। मगर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विज्ञापनों का मकसद सिर्फ मुनाफा कमाना है। ऐसे माहौल में जीने की वजह से शायद संयम बरतने की हमारी कोशिश कमज़ोर पड़ सकती है। यूरोप के एक अमीर देश की एक पत्रिका ने हाल ही में कहा: “ऐशो-आराम को बढ़ावा देनेवाली इस दुनिया में, अगर ऐसे लोगों के लिए अपनी चाहतों पर रोक लगाना कड़ा संघर्ष है जो घोर गरीबी में जीते हैं, तो उन देशों के लोगों को और कितना संघर्ष करना पड़ेगा जहाँ मानो दूध और मधु की धाराएँ बहती हैं!”
11. जो चीज़ें हमारे लिए ज़रूरी नहीं हैं उनके बिना गुज़ारा करना सीखने से क्यों फायदा होगा, मगर क्या बात ऐसा करना मुश्किल बना देती है?
11 अगर हमें यह फर्क करना मुश्किल लगता है कि कौन-सी चीज़ हमारे लिए वाकई ज़रूरी है और कौन-सी चीज़ बस हमारी ख्वाहिश पूरी करती है, तो हमें ऐसी कोई तरकीब ढूँढ़नी होगी जिससे हम किफायत बरतना सीख सकें। मिसाल के लिए, अगर हमें अंधाधुंध खर्च करने की आदत है, तो इससे छुटकारा पाने के लिए हमें ठान लेना चाहिए कि हम उधार पर कुछ नहीं खरीदेंगे। या खरीदारी के लिए जाते वक्त सिर्फ उतने ही रुपए ले जाएँगे जितने की ज़रूरत है। याद कीजिए, पौलुस ने कहा था कि “सन्तोष सहित भक्ति बड़ी कमाई है।” फिर उसने यह दलील दी: “न हम जगत में कुछ लाए हैं और न कुछ ले जा सकते हैं। और यदि हमारे पास खाने और पहिनने को हो, तो इन्हीं पर सन्तोष करना चाहिए।” (1 तीमुथियुस 6:6-8) जो हमारे पास है क्या हम उसमें संतोष कर रहे हैं? माना कि सादगी भरी ज़िंदगी जीने और किसी भी गैर-ज़रूरी चीज़ के पीछे न भागने के लिए, मज़बूत इरादा रखने और संयम बरतने की ज़रूरत है। लेकिन, अगर हमने ऐसी ज़िंदगी जीना सीख लिया, तो हमें वाकई फायदा होगा।
12, 13. (क) किन तरीकों से मसीही सभाओं के लिए संयम की ज़रूरत होती है? (ख) और किन-किन मामलों में हमें संयमी होना चाहिए?
12 मसीही सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों के मामले में भी हमें एक खास मायने में संयमी होने की ज़रूरत है। मसलन, अगर हममें संयम न हो, तो कार्यक्रम के दौरान हमारा ध्यान यहाँ-वहाँ भटकने लगेगा। (नीतिवचन 1:5) सभा के दौरान, बगल में बैठे हुओं से खुसुर-फुसुर करके दूसरों को परेशान करने के बजाय, भाषण देनेवाले पर पूरा-पूरा ध्यान देने के लिए हमें संयम की ज़रूरत है। और इन सभाओं में, वक्त पर हाज़िर होने के लिए अपने शेड्यूल में फेरबदल करना भी संयम की माँग करता है। इतना ही नहीं, सभाओं की तैयारी के लिए समय तय करने और उनमें हिस्सा लेने के लिए भी संयम का गुण होना ज़रूरी है।
13 अगर हम छोटी-छोटी बातों में संयम दिखाने की आदत डालेंगे, तो बड़े-बड़े मामलों में भी यह गुण दिखाने के लिए हममें मज़बूत इरादा पैदा होगा। (लूका 16:10) इसलिए, यह कितना बढ़िया रहेगा कि हम बाइबल को और उसकी समझ देनेवाली किताबों-पत्रिकाओं को लगातार पढ़ने, उनका अध्ययन करने और उनसे सीखी बातों पर मनन करने के लिए अपने साथ सख्ती बरतें! और यह भी कितनी अक्लमंदी होगी कि हम ऐसी नौकरियों, दोस्तों, रवैयों और आदतों से दूर रहें जो एक मसीही के लिए ठीक नहीं हैं। और खुद से सख्ती बरतते हुए ऐसे कामों के लिए ‘ना’ कहें जो परमेश्वर की सेवा में लगनेवाला हमारा कीमती समय बरबाद कर सकते हैं। यहोवा की सेवा में व्यस्त रहना, ऐसी बातों से दूर रहने का एक बढ़िया तरीका है, जो हमें दुनिया भर में फैली यहोवा की कलीसिया के आध्यात्मिक फिरदौस से दूर ले जा सकती हैं।
संयम दिखाकर सयाने बनो
14. (क) बच्चों को संयम से काम लेना कैसे सीखना चाहिए? (ख) अगर बच्चे, छुटपन से ही ऐसे सबक सीखें तो क्या फायदे हो सकते हैं?
14 एक नवजात शिशु से संयम दिखाने की उम्मीद नहीं की जाती। बच्चों के व्यवहार का अध्ययन करनेवाले विशेषज्ञों की लिखी एक छोटी किताब कहती है: “संयम का गुण अपने आप या अचानक नहीं पैदा होता। शिशुओं और नन्हे-मुन्ने बच्चों को, संयम का गुण सीखने के लिए माता-पिता के मार्गदर्शन और सहारे की ज़रूरत होती है। . . . और जब वे स्कूल जाने लगते हैं, तो वे यह गुण ज़्यादा-से-ज़्यादा बढ़ा पाते हैं, क्योंकि उनको घर पर माता-पिता से भी तालीम मिलती रहती है।” चार साल के बच्चों पर किए गए एक अध्ययन से पता चला कि जिन बच्चों ने काफी हद तक संयम बरतना सीखा, उनमें से “ज़्यादातर बच्चे किशोरावस्था में अलग-अलग हालात का सामना करने के काबिल बने, उन्होंने अच्छा नाम कमाया, नए-नए काम सीखे, खुद पर उनका भरोसा बढ़ा और वे दूसरों के लिए भी भरोसेमंद साबित हुए।” मगर जिन बच्चों ने संयम बढ़ाना नहीं सीखा, उनमें से कइयों को “अकेलापन सताने लगा, वे ज़िद्दी बन गए और छोटी-छोटी बात पर निराश होने लगे। वे तनाव के वक्त हिम्मत हार बैठते थे और बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ लेने से पीछे
हटते थे।” यह साफ दिखाता है कि बच्चों को छुटपन में ही संयम का गुण बढ़ाना सीखना चाहिए, तभी वे बड़े होने पर हर हालात का सामना करने के काबिल बनेंगे।15. बाइबल में हमें जिस लक्ष्य तक पहुँचने का बढ़ावा दिया गया है, उसके उलटे अगर हम में संयम न हो, तो यह क्या दिखाएगा?
15 उसी तरह, अगर हम सयाने मसीही बनना चाहते हैं तो हमें संयम से काम लेना सीखना होगा। इस गुण की कमी दिखाएगी कि हम आध्यात्मिक मायने में अब भी दूध-पीते बच्चे हैं। बाइबल हमें सलाह देती है कि हम ‘समझ में सियाने बनें।’ (1 कुरिन्थियों 14:20) हमारा लक्ष्य है, ‘विश्वास, और परमेश्वर के पुत्र की पहिचान में एक हो जाएं, और एक सिद्ध मनुष्य बन जाएं और मसीह के पूरे डील डौल तक बढ़ जाएं।’ किस मकसद से? “ताकि हम आगे को बालक न रहें, जो मनुष्यों की ठग-विद्या और चतुराई से उन के भ्रम की युक्तियों की, और उपदेश की, हर एक बयार से उछाले, और इधर-उधर घुमाए जाते हों।” (इफिसियों 4:13, 14) जी हाँ, आध्यात्मिक तरक्की करने के लिए यह बेहद ज़रूरी है कि हम संयम से काम लेना सीखें।
संयम का गुण बढ़ाना
16. यहोवा हमें कैसे मदद देता है?
16 संयम का गुण बढ़ाने के लिए हमें परमेश्वर से मदद की ज़रूरत है और यह मदद हमें मिल सकती है। परमेश्वर का वचन एक ऐसे आइने की तरह है जो एकदम साफ है। यह हमें दिखाता है कि हमें किन-किन बातों में सुधार करना चाहिए और समझाता है कि यह हम कैसे कर सकते हैं। (याकूब 1:22-25) इसके अलावा, हमारी मदद करने के लिए हमारे अज़ीज़ भाई-बहन भी तैयार हैं। मसीही प्राचीन, हममें से हरेक की मदद करते वक्त यह एहसास दिलाते हैं कि वे हमारी कमज़ोरी समझते हैं। और खुद यहोवा भी बेझिझक अपनी पवित्र आत्मा हमें देता है, बशर्ते हम उसके लिए बिनती करें। (लूका 11:13; रोमियों 8:26) इसलिए आइए हम इन सभी इंतज़ामों से खुशी-खुशी फायदा उठाएँ। ऐसा करने में पेज 21 पर दिए सुझाव हमारी मदद कर सकते हैं।
17. नीतिवचन 24:16 हमें क्या हौसला देता है?
17 यह जानकर हमें कितना सुकून मिलता है कि हम यहोवा को खुश करने के लिए जो मेहनत करते हैं, उसकी वह बहुत कदर करता है! इस बात से हममें यह जोश पैदा होना चाहिए कि हम ज़्यादा-से-ज़्यादा संयम बढ़ाने की कोशिश करेंगे। यह गुण दिखाने में हम चाहे जितनी बार भी चूक जाएँ, फिर भी हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। “धर्मी चाहे सात बार गिरे तौभी उठ खड़ा होता है।” (नीतिवचन 24:16) जब भी हम यहोवा को खुश करने में कामयाब होते हैं, तो हमें खुद पर गर्व महसूस करना चाहिए। हम इस बात का भी यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमसे खुश होता है। एक साक्षी कहता है कि वह अपना जीवन यहोवा को समर्पित करने से पहले, जब भी एक हफ्ते के लिए सिगरेट से परहेज़ करने में कामयाब होता, तो वह खुद को शाबाशी देने के लिए उन पैसों से कोई अच्छी चीज़ खरीदता था जो उसके संयम दिखाने से बचते थे।
18. (क) संयम का गुण बढ़ाने के लिए हमें क्या करना चाहिए? (ख) यहोवा हमें क्या यकीन दिलाता है?
18 सबसे बढ़कर, हमें याद रखना चाहिए कि संयम बरतने के लिए हमें अपने दिमाग और अपनी भावनाओं को काबू में रखना होगा। यह हम यीशु के इन शब्दों से समझ सकते हैं: “जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उस से व्यभिचार कर चुका।” (मत्ती 5:28; याकूब 1:14, 15) जिसने अपने दिमाग और अपनी भावनाओं को काबू में रखना सीख लिया है, वह अपने पूरे शरीर को भी काबू में रख पाएगा। इसलिए आइए हम अपना यह इरादा मज़बूत कर लें कि हम न सिर्फ गलत काम करने से बल्कि उनके बारे में सोचने तक से दूर रहेंगे। अगर कभी मन में गलत विचार उठते हैं, तो उन्हें तुरंत निकाल दीजिए। प्रार्थना की मदद से अपनी नज़र यीशु पर लगाए रखने से, हम बुरे कामों में फँसने से दूर रहेंगे। (1 तीमुथियुस 6:11; 2 तीमुथियुस 2:22; इब्रानियों 4:15, 16) संयम का गुण बढ़ाने में जब हम अपनी तरफ से हर मुमकिन कोशिश करेंगे, तो हम भजन 55:22 की यह सलाह मान रहे होंगे: “अपना बोझ यहोवा पर डाल दे वह तुझे सम्भालेगा; वह धर्मी को कभी टलने न देगा।”
क्या आपको याद है
• किन दो तरीकों से हमें संयम दिखाना चाहिए?
• “सभी प्रकार का संयम” बरतने का मतलब क्या है?
• इस अध्ययन के दौरान, संयम बढ़ाने के बारे में दिए गए किन सुझावों पर आपने खासकर अमल करने की सोची?
• संयम का गुण बढ़ाना कहाँ से शुरू होता है?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 21 पर बक्स/तसवीरें]
संयम का गुण ज़्यादा-से-ज़्यादा कैसे बढ़ाएँ
• छोटी-छोटी बातों में भी संयम दिखाइए
• यह गुण दिखाने से अभी और भविष्य में मिलनेवाले फायदों के बारे में सोचिए
• परमेश्वर जिन कामों को मना करता है, उन्हें करने के बजाय वे काम कीजिए जिनका वह बढ़ावा देता है
• गलत खयालों को फौरन मन से निकाल फेंकिए
• अपने दिमाग में ऐसे आध्यात्मिक विचार भरिए जिनसे उन्नति हो
• तजुर्बेकार मसीही भाई-बहन जो मदद देते हैं, उसे कबूल कीजिए
• ऐसे हालात से दूर रहिए जिनमें आप गलत कामों में फँस सकते हैं
• जब आप बुराई की तरफ लुभाए जाते हैं, तो परमेश्वर से मदद के लिए प्रार्थना कीजिए
[पेज 18, 19 पर तसवीरें]
संयम का गुण हमें भले काम करने के लिए उकसाता है