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ज़िंदगी में खुश रहने के लिए ज़रूरी है, भरोसा

ज़िंदगी में खुश रहने के लिए ज़रूरी है, भरोसा

ज़िंदगी में खुश रहने के लिए ज़रूरी है, भरोसा

फूड पॉयज़िनिंग से उलटी, दस्त होना, वाकई एक बहुत बुरा अनुभव होता है। और जो इंसान बार-बार इस वजह से बीमार पड़ चुका है, उसे अपने खाने के मामले में ज़्यादा एहतियात बरतने की ज़रूरत होती है। मगर फूड पॉयज़िनिंग के डर से अगर वह खाना खाना ही छोड़ दे तो इसे समझदारी नहीं कहा जाएगा। इससे उलटे लेने के देने पड़ सकते हैं। खाने के बगैर कोई भी इंसान ज़्यादा दिनों तक ज़िंदा नहीं रह सकता।

उसी तरह जब हमारे साथ विश्‍वासघात होता है, तो हमें बहुत तकलीफ होती है। और बार-बार धोखा खाने पर हम शायद किसी के साथ दोस्ती करने से पहले फूंक-फूंककर कदम रखें। मगर धोखा खाने के डर से लोगों से कटे-कटे रहना समस्या का हल नहीं है। क्यों नहीं? इसलिए कि दूसरों को शक की निगाह से देखनेवाला इंसान अपने अंदर खुशी महसूस नहीं कर पाता। ज़िंदगी में खुशी और संतोष पाने के लिए हमें ऐसे रिश्‍तों की ज़रूरत है जिनमें एक-दूसरे पर भरोसा किया जा सके।

किताब, यूजेन्ट 2002 कहती है: “अगर आप रोज़मर्रा ज़िंदगी में बगैर उलझनों के दूसरों के साथ बढ़िया रिश्‍ते रखना चाहते हैं, तो भरोसा, कई ज़रूरी चीज़ों में से एक है।” नॉइए स्यूरखर साइटुंग अखबार रिपोर्ट करता है: ‘हर कोई किसी-न-किसी पर भरोसा करने के लिए तरसता है। भरोसे से हमारी ज़िंदगी इस हद तक बेहतर बनती है कि इसके बगैर ज़िंदा रहना मुश्‍किल है।’ इतना ही नहीं, यह अखबार आगे कहता है कि भरोसे के बिना “एक इंसान, ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव का सामना नहीं कर सकता।”

हम सब चाहते हैं कि हम किसी पर भरोसा करें। तो फिर भरोसा टूटने की फिक्र किए बिना, हम किस पर भरोसा कर सकते हैं?

सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना

बाइबल हमसे कहती है: “सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना।” (नीतिवचन 3:5) जी हाँ, परमेश्‍वर का वचन बार-बार हमें अपने सिरजनहार, यहोवा परमेश्‍वर पर भरोसा रखने के लिए उकसाता है।

हम परमेश्‍वर पर भरोसा क्यों रख सकते हैं? एक वजह है कि यहोवा परमेश्‍वर पवित्र है। भविष्यवक्‍ता यशायाह ने लिखा: “यहोवा पवित्र, पवित्र, पवित्र है।” (यशायाह 6:3) यहोवा की पवित्रता के बारे में सोचकर क्या आप, उससे दूर रहना चाहते हैं? दरअसल पवित्रता की वजह से हमें यहोवा की ओर खिंचे चले आना चाहिए, क्योंकि यहोवा की पवित्रता का मतलब है कि वह शुद्ध है, उसमें कोई पाप नहीं और वह पूरी तरह से भरोसे के लायक है। यहोवा कभी-भी भ्रष्ट नहीं हो सकता, ना ही वह हमें किसी तरह से चोट पहुँचाने की सोच सकता है। हमारे भरोसे को तोड़ना तो उसके लिए नामुमकिन है।

इसके अलावा, हम परमेश्‍वर पर इसलिए भी भरोसा रख सकते हैं क्योंकि जो उसकी सेवा करता है, उसकी मदद करने की ना सिर्फ उसके पास ताकत है बल्कि इच्छा भी है। मसलन, यहोवा की महान शक्‍ति उसे कार्यवाही करने में समर्थ करती है। अपने सिद्ध न्याय और खरी बुद्धि से वह यह तय करता है कि वह किस तरीके से कार्यवाही करेगा। और उसका बेमिसाल प्रेम उसे कार्यवाही करने को उभारता है। प्रेरित यूहन्‍ना ने लिखा: “परमेश्‍वर प्रेम है।” (1 यूहन्‍ना 4:8) परमेश्‍वर के हर काम में उसका प्रेम झलकता है। यहोवा की पवित्रता और उसके बाकी अनोखे गुणों की वजह से वह एक आदर्श पिता है जिस पर हम आँख मूँदकर भरोसा कर सकते हैं। यहोवा से बढ़कर कोई चीज़ या कोई इंसान भरोसे के लायक नहीं हो सकता।

यहोवा पर भरोसा रखें और खुश रहें

औरों से कहीं ज़्यादा यहोवा हमें अच्छी तरह समझता है। उस पर भरोसा रखने की यह दूसरी ठोस वजह है। वह जानता है कि हर इंसान की बुनियादी ज़रूरत है कि वह अपने सिरजनहार के साथ एक मज़बूत और हमेशा तक कायम रहनेवाला रिश्‍ता बनाए और उस पर भरोसा रखे। परमेश्‍वर के साथ जिन लोगों का ऐसा रिश्‍ता होता है, वे ज़्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं। राजा दाऊद इस नतीजे पर पहुँचा था: “क्या ही धन्य है वह पुरुष, जो यहोवा पर भरोसा करता है।” (भजन 40:4) दाऊद की तरह आज लाखों लोगों का दिल भी इसी बात की गवाही देता है।

कुछ मिसालों पर गौर करें। डॉरिस नाम की एक स्त्री डॉमिनिकन रिपब्लिक, जर्मनी, यूनान और अमरीका जैसी जगहों में रह चुकी है। वह कहती है: “यहोवा पर भरोसा रखने की वजह से मैं बहुत खुश हूँ। वह अच्छी तरह जानता है कि मेरे तन, मेरे मन और मेरे अंदर के आध्यात्मिक इंसान के लिए क्या ज़रूरी है। किसी भी इंसान को उससे अच्छा दोस्त भला कहाँ मिल सकता है?” कानूनी मामलों में सलाह देनेवाले, वॉल्फगैंग समझाते हैं: “जो शख्स, दिल से आपकी भलाई चाहता हो, आपके लिए जो भला है उसे करने की ताकत रखता हो और करता भी हो, उसके सहारे जीना वाकई बहुत बड़ी और बहुत अच्छी बात है!” हैम, जो एशिया में पैदा हुआ था मगर अब यूरोप में रहता है, उसका कहना है: “मुझे पूरा यकीन है कि सारे मामलों की बागडोर यहोवा के हाथ में है। और वह कभी, कोई गलती नहीं करता इसलिए मैं खुश हूँ कि मेरा भरोसा उस पर है।”

मगर हममें से हरेक को सिर्फ अपने सिरजनहार पर ही नहीं बल्कि लोगों पर भी भरोसा रखने की ज़रूरत है। और यहोवा हमारा तजुर्बेकार दोस्त होने के साथ-साथ बुद्धिमान भी है, इसलिए वह हमें सलाह देता है कि हमें किस तरह के लोगों पर भरोसा करना चाहिए। बाइबल को ध्यान से पढ़ने पर हम इस मामले में उसकी सलाह पा सकते हैं।

लोग, जिन पर हम भरोसा कर सकते हैं

भजनहार ने लिखा: “तुम प्रधानों पर भरोसा न रखना, न किसी आदमी पर, क्योंकि उस में उद्धार करने की भी शक्‍ति नहीं।” (भजन 146:3) परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखी गयी यह बात हमें समझने में मदद देती है कि बहुत-से इंसान, हमारे भरोसे के लायक नहीं हैं। यहाँ तक कि इस दुनिया में जिन लोगों को किसी खास विषय का बड़ा ज्ञानी या किसी काम का माहिर समझकर इज़्ज़त दी जाती है, ऐसे ‘प्रधान’ भी खुद-ब-खुद हमारे भरोसे के हकदार नहीं बन जाते। वे अकसर गलत नसीहत देते हैं और ऐसे “प्रधानों” पर भरोसा करने से निराशा ही हाथ लगती है।

बेशक इसका यह मतलब नहीं कि हमें सभी को शक की निगाह से देखना चाहिए। मगर हमें सोच-समझकर लोगों पर भरोसा करना चाहिए। इसके लिए हमें किस कसौटी का इस्तेमाल करना चाहिए? पुराने ज़माने में इस्राएल जाति की एक मिसाल शायद हमारी मदद कर सकती है। जब इस्राएल में बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियों के लिए कुछ लोगों को चुनने की ज़रूरत आ पड़ी, तो मूसा को हुक्म दिया गया कि वह “इन सब लोगों में से ऐसे पुरुषों को छांट ले, जो गुणी, और परमेश्‍वर का भय मानने वाले, सच्चे [“विश्‍वासपात्र,” बुल्के बाइबिल], और अन्याय के लाभ से घृणा करने वाले हों।” (निर्गमन 18:21) इससे हम क्या सीख सकते हैं?

ये ऐसे आदमी थे जिन्होंने ज़िम्मेदारी के पद के लिए चुने जाने से पहले ही ऐसे गुण दिखाए थे जो परमेश्‍वर को पसंद हैं। उन्होंने पहले से ही इस बात का सबूत दिया था कि वे परमेश्‍वर का भय मानते हैं; सिरजनहार के लिए उनके दिल में गहरी श्रद्धा है और वे किसी भी तरह से उसे दुःख नहीं पहुँचाना चाहते। सभी इस्राएली यह साफ-साफ देख सकते थे कि उन आदमियों ने जी-जान से परमेश्‍वर के उसूलों पर चलने की कोशिश की है। वे बेईमानी की कमाई से नफरत करते थे। इससे पता चलता है कि वे उसूलों के कितने पक्के थे, जिसकी वजह से ज़िम्मेदारी के पद पर आने के बाद भी वे भ्रष्ट नहीं होते। वे दूसरों के भरोसे का नाजायज़ फायदा उठाकर अपना और नाते-रिश्‍तेदारों या दोस्तों का स्वार्थ पूरा नहीं करते।

आज, दूसरों पर भरोसा करने से पहले क्या इसी कसौटी को इस्तेमाल करना बुद्धिमानी नहीं होगी? क्या हम किसी ऐसे इंसान को जानते हैं जिसके कामों से ज़ाहिर होता है कि वह परमेश्‍वर का भय मानता है? क्या वह चालचलन के मामले में परमेश्‍वर के उसूलों को मानने का पक्का इरादा रखता है? क्या वह उसूलों का इतना पक्का है कि उसके कदम बुराई की तरफ नहीं बहकेंगे? क्या उसमें इतनी ईमानदारी है कि वह अपने फायदे के लिए या वह जो चाहता है उसे हासिल करने के लिए, ऐसे हालात पैदा न करे जिनका वह नाजायज़ फायदा उठा सकता है? जो स्त्री-पुरुष ऐसे गुण दिखाते हैं, उन पर सचमुच भरोसा किया जा सकता है।

भरोसा टूटने पर दिल छोटा न करें

किस पर भरोसा करें, इसका फैसला करते वक्‍त हमें सब्र रखना होगा क्योंकि समय के गुज़रते एक इंसान यह साबित करता है कि वह भरोसे के लायक है या नहीं। इसलिए समझदारी इसी में है कि हम किसी पर अपना भरोसा धीरे-धीरे बढ़ाएँ। कैसे? हम कुछ समय के लिए उस इंसान के बर्ताव पर गौर कर सकते हैं कि फलाँ-फलाँ हालात में वह क्या करता है। क्या वह छोटी-से-छोटी बात में भरोसेमंद है? मसलन, क्या वह माँगी हुई चीज़ों को वक्‍त पर लौटाता है या अगर वह किसी से मिलने का समय तय करता है तो क्या वह समय पर आता है? अगर वह ऐसा करता है तो शायद हमें यकीन हो जाए कि हम अपनी ज़िंदगी के बड़े-बड़े मामलों में भी उस पर भरोसा कर सकते हैं। ऐसा करना इस उसूल के मुताबिक चलना होगा: “जो थोड़े से थोड़े में सच्चा है, वह बहुत में भी सच्चा है।” (लूका 16:10) सोच-समझकर और सब्र से काम लेने पर हम बड़ी निराशाओं से बचेंगे।

मगर तब क्या अगर किसी ने हमारे भरोसे को तोड़ा है? बाइबल का अध्ययन करनेवाले शायद उस घटना को याद करें जिस रात यीशु मसीह को गिरफ्तार किया गया था, उस वक्‍त उसके प्रेरितों ने कितनी बुरी तरह से उसका भरोसा तोड़ा था। यहूदा इस्करियोती ने उसके साथ विश्‍वासघात किया और बाकी प्रेरित डर के मारे भाग गए। पतरस ने भी यीशु को पहचानने से तीन बार इनकार किया। मगर यीशु जानता था कि उनमें से सिर्फ यहूदा ने जानबूझकर उसके साथ गद्दारी की है। ऐसी नाज़ुक घड़ी में यीशु के प्रेरितों ने उसे अकेला छोड़ दिया, मगर फिर भी यीशु ने कुछ हफ्ते बाद अपने 11 प्रेरितों को यकीन दिलाया कि उसे अब भी उन पर भरोसा है। (मत्ती 26:45-47, 56, 69-75; 28:16-20) अगर हमें लगता है कि किसी ने हमारे साथ विश्‍वासघात किया है, तो यह देखना अच्छा होगा कि उस शख्स ने जो किया, क्या वह इस बात का सबूत है कि वह हमारे भरोसे के लायक नहीं या क्या पल भर के लिए उसकी कमज़ोरी उस पर हावी हो गयी थी।

क्या मैं भरोसे के लायक हूँ?

जो इंसान दूसरों पर भरोसा रखने में सोच-समझकर फैसला करता है उसके लिए खुद से यह पूछना बिलकुल सही होगा: ‘क्या मैं भरोसे के लायक हूँ? भरोसे के लायक होने के लिए मैं खुद से और दूसरों से क्या उम्मीद कर सकता हूँ?’

बेशक जो इंसान भरोसेमंद है वह हमेशा सच बोलता है। (इफिसियों 4:25) वह अपने फायदे के लिए अलग-अलग लोगों के सामने अलग-अलग बातें नहीं करता। और अगर वह कोई वादा करता है, तो उसे निभाने की पूरी कोशिश भी करता है। (मत्ती 5:37) अगर कोई उसे अपना राज़ बताता है, तो वह उसे अपने तक रखता है और उस बारे में हर किसी को बताता नहीं फिरता। एक भरोसेमंद इंसान, अपने जीवन-साथी का वफादार रहता है। वह पोर्नोग्राफी नहीं देखता, न ही अपना मन ऐसी बातों पर लगाता है जो उसमें गलत लैंगिक इच्छाएँ जगाए और न ही वह दूसरों पर डोरे डालता है। (मत्ती 5:27, 28) एक भरोसेमंद इंसान मेहनत करके अपना और अपने परिवार का पेट भरता है न कि दूसरों का खून चूसकर ऐश करता है। (1 तीमुथियुस 5:8) बाइबल में दिए ऐसे मुनासिब उसूलों को याद रखने से हम जान पाएँगे कि हम किन पर भरोसा कर सकते हैं। इसके अलावा, अगर हममें से हरेक खुद इन उसूलों पर चलेगा तो हम भी दूसरों का भरोसा जीत पाएँगे।

वह दुनिया कितनी खुशनुमा होगी जहाँ सभी लोगों पर भरोसा किया जा सकेगा और जहाँ भरोसा टूटने पर होनेवाली निराशा, गुज़री बातें बन जाएँगी! क्या यह सिर्फ एक सपना है? यह उन लोगों के लिए सपना नहीं, जो बाइबल में दिए वादों की सच्चाई पर पूरा भरोसा करते हैं। परमेश्‍वर का वचन एक ऐसी खूबसूरत “नई पृथ्वी” के बारे में बताता है जहाँ फरेब, झूठ, अन्याय, दुःख, बीमारी, यहाँ तक कि मौत का नामो-निशान नहीं रहेगा! (2 पतरस 3:13; भजन 37:11, 29; प्रकाशितवाक्य 21:3-5) ऐसे शानदार भविष्य के बारे में क्या आप और जानना नहीं चाहेंगे? इस बारे में और दूसरे अहम विषयों पर ज़्यादा जानकारी पाने में, यहोवा के साक्षियों को आपकी मदद करने में बहुत खुशी होगी।

[पेज 4 पर तसवीर]

दूसरों को शक की निगाह से देखनेवाला इंसान अपने अंदर खुशी महसूस नहीं कर पाता

[पेज 5 पर तसवीर]

यहोवा, पूरी तरह से हमारे भरोसे के लायक है

[पेज 7 पर तसवीरें]

हम सभी को ऐसे रिश्‍तों की ज़रूरत है जिनमें एक-दूसरे पर भरोसा किया जा सके