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देने की भावना पैदा कीजिए

देने की भावना पैदा कीजिए

देने की भावना पैदा कीजिए

कोई इंसान जन्म से ही देने की भावना के साथ पैदा नहीं होता। एक शिशु के स्वभाव में देखा जाता है कि वह पहले अपनी इच्छा और ज़रूरतें पूरी करना चाहता है, यहाँ तक कि वह अपनी देख-रेख करनेवाले की ज़रूरतों से भी बेखबर होता है। लेकिन आखिरकार बच्चा सीख लेता है कि दुनिया में बस वही अकेला नहीं जिसे किसी चीज़ की ज़रूरत है, दूसरों की भी ज़रूरतें हैं। उसे दूसरों के बारे में सोचना है, और सिर्फ लेना ही नहीं बल्कि देना और बाँटना भी सीखना है। तो यह साफ है कि एक इंसान को देने की भावना पैदा करने की ज़रूरत है।

ऐसे सभी इंसान जो दान करते हैं, यहाँ तक कि दिल खोलकर देते हैं, ज़रूरी नहीं कि उनमें देने की भावना हो। कुछ लोग किसी खैराती संस्था को दान करें तो शायद अपने किसी फायदे के लिए ऐसा करें। दूसरे शायद लोगों की वाह-वाही पाने के इरादे से दान करें। लेकिन सच्चे मसीही एक अलग वजह से दान देते हैं। तो फिर, परमेश्‍वर के वचन में जिस तरह से देने के लिए उकसाया गया है, उसकी खासियत क्या है? अगर हम पहली सदी के मसीहियों के देने के बारे में थोड़ा-सा विचार करें, तो हमें अपने सवाल का जवाब मिल जाएगा।

सच्चे मसीहियों में देने के उदाहरण

बाइबल बताती है कि मसीहियों के देने में, अकसर “अपनी वस्तुओं को औरों के साथ बाँटना” शामिल था, खासकर ज़रूरतमंदों के साथ। (इब्रानियों 13:16, ईज़ी-टू-रीड वर्शन; रोमियों 15:26) लेकिन यह मजबूरी में नहीं किया जाना था। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “हर एक जन जैसा मन में ठाने वैसा ही दान करे; न कुढ़ कुढ़ के, और न दबाव से, क्योंकि परमेश्‍वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम रखता है।” (2 कुरिन्थियों 9:7) और ऐसा दान सिर्फ दिखावे के लिए भी नहीं करना था। जब हनन्याह और सफीरा ने दिखावे के लिए दान किया तो उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी।—प्रेरितों 5:1-10.

सामान्य युग 33 में, पिन्तेकुस्त के पर्व के लिए जब कई यहूदी और यहूदी मतधारक दूर-दूर से आकर यरूशलेम में इकट्ठा हुए थे, तब बड़े पैमाने पर दान की ज़रूरत पड़ी थी। उसी समय के दौरान, यीशु के चेले “पवित्र आत्मा से भर गए [थे], और जिस प्रकार आत्मा ने उन्हें बोलने की सामर्थ दी, वे अन्य अन्य भाषा बोलने लगे” थे। एक बड़ी भीड़ चेलों के आस-पास जमा हो गयी थी और उन्होंने यीशु मसीह के बारे में पतरस का ऐसा ज़बरदस्त भाषण सुना जो उनके दिल को छू गया। बाद में, लोगों ने यह देखा कि पतरस और यूहन्‍ना ने किस तरह मंदिर के फाटक के पास एक लँगड़े को ठीक किया। उस समय उन्होंने दोबारा सुना कि पतरस उनसे यीशु के बारे में और पश्‍चाताप करने की ज़रूरत के बारे में कह रहा है। हज़ारों ने पश्‍चाताप किया और मसीह के चेलों के तौर पर बपतिस्मा लिया।—प्रेरितों, अध्याय 2 और 3.

जिन लोगों ने अभी-अभी मसीही धर्म को अपनाया था, वे कुछ दिन और यरूशलेम में ठहरकर यीशु के प्रेरितों से ज़्यादा शिक्षा पाना चाहते थे। लेकिन प्रेरित इतने सारे मेहमानों की ज़रूरतें कैसे पूरी करते? बाइबल का वृत्तांत बताता है: “जिन के पास भूमि या घर थे, वे उन को बेच बेचकर, बिकी हुई वस्तुओं का दाम लाते, और उसे प्रेरितों के पांवों पर रखते थे। और जैसी जिसे आवश्‍यकता होती थी, उसके अनुसार हर एक को बांट दिया करते थे।” (प्रेरितों 4:33-35) वाकई, उस समय यरूशलेम की कलीसिया जो नयी-नयी बनी थी, उसमें देने की भावना थी!

बाद में दूसरी कलीसियाओं ने भी देने की वही भावना दिखायी। मसलन, मकिदुनिया के मसीही हालाँकि खुद गरीब थे, फिर भी उन्होंने यहूदिया के ज़रूरतमंद भाइयों की मदद के लिए अपनी हैसियत के बाहर दान दिया। (रोमियों 15:26; 2 कुरिन्थियों 8:1-7) और फिलिप्पियों की कलीसिया पौलुस को उसकी सेवा में मदद देने के लिए एक बेहतरीन मिसाल थी। (फिलिप्पियों 4:15, 16) खुद यरूशलेम की कलीसिया, ज़रूरतमंद विधवाओं के लिए हर रोज़ भोजन का इंतज़ाम करती थी और प्रेरितों ने सात योग्य भाइयों को इस काम की ज़िम्मेदारी सौंपी ताकि एक भी ज़रूरतमंद विधवा छूट न जाए।—प्रेरितों 6:1-6.

जब पहली सदी के मसीहियों को मुश्‍किलों के आने का अंदेशा होता था, तब भी वे तुरंत देने की भावना दिखाते थे। मसलन, जब अगबुस भविष्यवक्‍ता ने आनेवाले बड़े अकाल के बारे में बताया तब सूरिया के अन्ताकिया की कलीसिया के चेलों ने “ठहराया, कि हर एक अपनी अपनी पूंजी के अनुसार यहूदिया में रहनेवाले भाइयों की सेवा के लिये कुछ भेजे।” (प्रेरितों 11:28, 29) उन्होंने दूसरों की ज़रूरतों के बारे में पहले से सोचकर, देने की कितनी बढ़िया भावना दिखायी!

किस बात ने शुरूआती मसीहियों को ऐसी दरियादिली और प्रेम की भावना दिखाने में मदद दी? एक व्यक्‍ति सही मायनों में देने की भावना कैसे पैदा कर सकता है? इसके बारे में हम राजा दाऊद के उदाहरण पर थोड़े में चर्चा करके बहुत कुछ सीख सकते हैं।

सच्ची उपासना के लिए दाऊद का दिल खोलकर देना

वाचा का पवित्र संदूक यहोवा की मौजूदगी को दर्शाता था और लगभग 500 साल तक उसके लिए कोई एक जगह नहीं थी। यह संदूक, तंबू या निवासस्थान में रखा जाता था और जब इस्राएली जंगल में एक जगह से दूसरी जगह जाते तो इसे साथ ले जाते और इस तरह यह वादा किए हुए देश में उनके साथ पहुँचा। राजा दाऊद की बड़ी ख्वाहिश थी कि वह यहोवा के योग्य एक भवन बनाए ताकि पवित्र संदूक को तंबू से निकालकर उस भवन में रखा जा सके। नातान से बात करते वक्‍त दाऊद ने कहा: “देख, मैं तो देवदारु के बने हुए घर में रहता हूं, परन्तु यहोवा की वाचा का सन्दूक तम्बू में रहता है।”—1 इतिहास 17:1.

लेकिन दाऊद एक योद्धा था। इसलिए यहोवा ने आदेश दिया कि उसका बेटा सुलैमान अपने शांति के राज के दौरान मंदिर बनाएगा जिसमें वाचा का संदूक रखा जाएगा। (1 इतिहास 22:7-10) यह सुनने के बाद भी दाऊद में देने की भावना कम नहीं हुई। उसने बड़े पैमाने पर कारीगरों का इंतज़ाम किया और मंदिर के निर्माण के लिए जिन चीज़ों की ज़रूरत होती, उन्हें जमा करना शुरू किया। बाद में उसने सुलैमान से कहा: “सुन, मैं ने . . . यहोवा के भवन के लिये एक लाख किक्कार सोना, और दस लाख किक्कार चान्दी, और पीतल और लोहा इतना इकट्ठा किया है, कि बहुतायत के कारण तौल से बाहर है; और लकड़ी और पत्थर मैं ने इकट्ठे किए हैं।” (1 इतिहास 22:14) इतने से भी दाऊद संतुष्ट नहीं था इसलिए उसने निजी जमा-पूँजी से सोना-चाँदी दान किया, जिसकी कीमत आज के ज़माने में 60,00,00,00,000 रुपए से ज़्यादा है। इतना ही नहीं, हाकिमों ने भी दिल खोलकर दान किया। (1 इतिहास 29:3-9) बेशक दाऊद ने दरियादिली से देने की बढ़िया भावना दिखायी!

किस बात ने दाऊद को इस तरह दिल खोलकर देने के लिए उकसाया? उसे एहसास था कि उसके पास जो कुछ है और उसने जो भी कामयाबी हासिल की है, वह सब यहोवा की आशीष से है। अपनी प्रार्थना में उसने यह कबूल किया: “हे हमारे परमेश्‍वर यहोवा! वह जो बड़ा संचय हम ने तेरे पवित्र नाम का एक भवन बनाने के लिये किया है, वह तेरे ही हाथ से हमें मिला था, और सब तेरा ही है। और हे मेरे परमेश्‍वर! मैं जानता हूं कि तू मन को जांचता है और सिधाई से प्रसन्‍न रहता है; मैं ने तो यह सब कुछ मन की सिधाई और अपनी इच्छा से दिया है; और अब मैं ने आनन्द से देखा है, कि तेरी प्रजा के लोग जो यहां उपस्थित हैं, वह अपनी इच्छा से तेरे लिये भेंट देते हैं।” (1 इतिहास 29:16, 17) दाऊद, यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को बहुत अनमोल समझता था। उसने समझा कि परमेश्‍वर की सेवा “खरे मन और प्रसन्‍न जीव” से करना बहुत ज़रूरी है और उसने ऐसा करने में खुशी पायी। (1 इतिहास 28:9) इन्हीं गुणों ने शुरूआती मसीहियों को भी देने की भावना दिखाने के लिए उकसाया था।

यहोवा—सबसे बड़ा दाता

हमारे सामने देने के मामले में सबसे बेहतरीन उदाहरण यहोवा का है। वह इतना प्यार करनेवाला और इतनी परवाह दिखानेवाला परमेश्‍वर है कि “वह भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मियों और अधर्मियों दोनों पर मेंह बरसाता है।” (मत्ती 5:45) वह सारी मानवजाति को “जीवन और स्वास और सब कुछ देता है।” (प्रेरितों 17:25) बेशक जैसा शिष्य याकूब ने कहा: “हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से है, और ज्योतियों के पिता की ओर से मिलता है।”—याकूब 1:17.

यहोवा ने हमें जो सबसे बड़ा वरदान दिया है, वह अपने ‘एकलौते पुत्र’ को भेजकर दिया है, “ताकि जो कोई उस पर विश्‍वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” (यूहन्‍ना 3:16) कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि वह इस तोहफे के लायक है, क्योंकि “सब ने पाप किया है और परमेश्‍वर की महिमा से रहित हैं।” (रोमियों 3:23, 24; 1 यूहन्‍ना 4:9, 10) मसीह की छुड़ौती के आधार पर और उसके ज़रिए ही हमें परमेश्‍वर की ओर से ऐसा “वरदान” मिला है, “जिसका बखान नहीं किया जा सकता,” और यह ‘परमेश्‍वर का असीम अनुग्रह है।’ (2 कुरिन्थियों 9:14, 15, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) पौलुस, परमेश्‍वर के इस वरदान के लिए एहसानमंद था, इसलिए उसने अपनी ज़िंदगी में “परमेश्‍वर के अनुग्रह के सुसमाचार पर गवाही” देने के काम को पहली जगह दी। (प्रेरितों 20:24) उसने इस बात को समझा कि परमेश्‍वर की इच्छा यह थी कि “सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली भांति पहचान लें।”—1 तीमुथियुस 2:4.

आज परमेश्‍वर की इच्छा, बड़े पैमाने पर प्रचार काम और सिखाने के काम से पूरी हो रही है। यह काम अब दुनिया के 234 देशों में फैल गया है। यीशु ने पहले से इस बढ़ोतरी के बारे में कहा था: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।” (मत्ती 24:14) जी हाँ, “अवश्‍य है कि पहिले सुसमाचार सब जातियों में प्रचार किया जाए।” (मरकुस 13:10) पिछले साल 60 लाख से भी ज़्यादा सुसमाचार के प्रचारकों ने इस काम में 1,20,23,81,302 घंटे बिताए और 53,00,000 से ज़्यादा बाइबल अध्ययन चलाए। सिखाने का यह काम बेहद ज़रूरी है क्योंकि लोगों की ज़िंदगी और मौत का सवाल है।—रोमियों 10:13-15; 1 कुरिन्थियों 1:21.

जो लोग बाइबल सच्चाई को जानने के लिए तरस रहे हैं, उनकी मदद के लिए हर साल लाखों प्रकाशन छापे जाते हैं जिसमें बाइबल, किताबें और ब्रोशर शामिल हैं। इसके अलावा, प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! की एक अरब से ज़्यादा कापियाँ छापी जाती हैं। लोग सुसमाचार को कबूल कर रहे हैं, इसलिए यहोवा के साक्षियों के ज़्यादा-से-ज़्यादा किंगडम हॉल और असेंबली हॉल बनाए जा रहे हैं जहाँ बाइबल से सिखाया जाता है। हर साल सर्किट सम्मेलन और खास सम्मेलन दिन, साथ ही ज़िला अधिवेशन आयोजित किए जाते हैं। इसके अलावा, मिशनरियों, सफरी ओवरसियरों, प्राचीनों, और सहायक सेवकों को समय-समय पर ट्रेनिंग भी दी जाती है। इन सारे इंतज़ामों के लिए जो यहोवा ने “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए किए हैं, हम यहोवा का बहुत धन्यवाद करते हैं। (मत्ती 24:45-47) इसके लिए हम तहेदिल से यहोवा को अपना एहसान ज़ाहिर करना चाहते हैं!

यहोवा के लिए एहसान दिखाना

इन सारे इंतज़ामों के लिए पैसों का इंतज़ाम स्वेच्छा से दिए गए दान से किया जाता है, ठीक जिस तरह मंदिर बनाने और पहली सदी की मसीही कलीसियाओं की ज़रूरतें पूरी की गयी थीं। लेकिन यह बात याद रखनी चाहिए कि यहोवा तो सब चीज़ों का मालिक है, इसलिए हम उसे दान देकर धनी नहीं बना सकते। (1 इतिहास 29:14; हाग्गै 2:8) इसलिए जब हम दान करते हैं, तो हम दरअसल यहोवा के लिए अपने प्यार का एक सबूत देते हैं और इससे हम सच्ची उपासना को बढ़ावा देने की इच्छा ज़ाहिर करते हैं। पौलुस कहता है कि इस तरह से दरियादिली दिखाना, “परमेश्‍वर का धन्यवाद” करना है। (2 कुरिन्थियों 9:8-13) यहोवा इस तरह से देने के लिए उकसाता है क्योंकि यह दिखाता है कि हममें देने की सही भावना है और हमारे दिल में यहोवा के लिए प्यार है। जो उदार हैं और यहोवा पर भरोसा रखते हैं, यहोवा उन्हें आशीष देगा और आध्यात्मिक रूप से बढ़ाएगा। (व्यवस्थाविवरण 11:13-15; नीतिवचन 3:9, 10; 11:25) इस तरह देने से खुशी मिलती है, इसका आश्‍वासन यीशु ने हमें दिया, जब उसने कहा: “लेने से देना धन्य है।”—प्रेरितों 20:35.

जिन मसीहियों में देने की भावना होती है, वे ज़रूरत की घड़ी का ही इंतज़ार नहीं करते। इसके बजाय वे ‘सब के साथ भलाई करने, विशेष करके विश्‍वासी भाइयों के साथ’ भलाई करने के मौके ढूँढ़ते हैं। (गलतियों 6:10) जो उदारता परमेश्‍वर को भाती है, वैसी उदारता के लिए उकसाते हुए पौलुस ने लिखा: “भलाई करना, और उदारता न भूलो; क्योंकि परमेश्‍वर ऐसे बलिदानों से प्रसन्‍न होता है।” (इब्रानियों 13:16) हमारे पास जो है, यानी हमारा समय, पैसा और हमारी ताकत, इन्हें जब हम दूसरों की मदद करने और शुद्ध उपासना को बढ़ावा देने में लगाते हैं, तो यहोवा परमेश्‍वर बहुत खुश होता है। सचमुच, यहोवा देने की भावना को बहुत पसंद करता है।

[पेज 28, 29 पर बक्स/तसवीर]

कुछ लोग इन तरीकों से दान करते हैं

दुनिया भर में होनेवाले काम के लिए दान

बहुत-से लोग एक निश्‍चित रकम दान पेटी में डालते हैं, जिस पर लिखा होता है, “दुनिया भर में होनेवाले काम के लिए अंशदान—मत्ती 24:14.”

हर महीने कलीसियाएँ यह रकम यहोवा के साक्षियों के ब्राँच ऑफिस को भेजती हैं, जो उनके देश में संस्था के काम पर निगरानी रखता है। आप चाहें तो पैसों का दान सीधे उन ऑफिसों को भी भेज सकते हैं। इस पत्रिका के पेज 2 पर ब्राँच ऑफिसों के पते पाए जा सकते हैं। अगर चेक के ज़रिए दान किया जाना है, तो चेक “Watch Tower” को देय किए जाने चाहिए। गहने या दूसरी कीमती चीज़ें भी दान की जा सकती हैं। मगर इसके साथ एक छोटा-सा पत्र भी भेजना चाहिए जिसमें यह लिखा हो कि हम इसे एक तोहफे के रूप में भेज रहे हैं।

सशर्त दान का इंतज़ाम

कुछ देशों में एक खास इंतज़ाम के तहत पैसों का दान किया जा सकता है। इसमें दान करनेवाला व्यक्‍ति अगर दान वापस चाहता है, तो उसे लौटाया जा सकता है। अधिक जानकारी के लिए कृपया आप अपने इलाके के ब्राँच ऑफिस से संपर्क कीजिए।

दान देने की योजनाएँ

पैसों की भेंट करने और सशर्त दान देने के अलावा, आप अपने देश के नियमों के मुताबिक दूसरे तरीकों से भी, दुनिया भर में हो रहे राज्य के काम को बढ़ाने के लिए दान कर सकते हैं। ये हैं:

बीमा: द वॉच टावर सोसाइटी को जीवन बीमा पॉलिसी या रिटाएरमेंट/पॆंशन योजना का बॆनेफीशयरी बनाया जा सकता है।

बैंक खाते: बैंक खाते, डिपॉज़िट के सर्टिफिकेट या निजी रिटायरमेंट खाते, अपने इलाके के बैंक के नियमों के मुताबिक वॉच टावर सोसाइटी के लिए ट्रस्ट में रखे जा सकते हैं या फिर मृत्यु पर देय किए जा सकते हैं।

स्टॉक्स और बॉन्ड्‌स: स्टॉक्स और बॉन्ड्‌स, द वॉच टावर सोसाइटी को भेंट किए जा सकते हैं।

ज़मीन-जायदाद: बेचने लायक ज़मीन-जायदाद है तो उसे या तो सीधे भेंट किया जा सकता है या अगर वह आपके रहने की जगह है तो उसे सोसाइटी के नाम लिखा जा सकता है। और जीते-जी आप उसका इस्तेमाल कर सकते हैं। मगर अपनी ज़मीन-जायदाद सोसाइटी के नाम लिखने से पहले आपको अपने देश के ब्राँच ऑफिस से संपर्क करना चाहिए।

गिफ्ट एन्युटी: गिफ्ट एन्युटी एक ऐसा इंतज़ाम है जिसमें एक व्यक्‍ति अपना पैसा या श्‍येर्स वगैरह में लगायी अपनी पूँजी वॉच टावर सोसाइटी के नाम करता है। बदले में, दान करनेवाले को या फिर जिसे उसने चुना है, उसको ज़िंदगी भर के लिए हर साल एन्युटी की निश्‍चित रकम मिलती है। जिस साल गिफ्ट एन्युटी शुरू की जाती है, उस साल दान करनेवाले को कर में रियायत मिलती है।

वसीयतनामा और ट्रस्ट: वसीयत करने के द्वारा आप अपनी संपत्ति या पैसा कानूनी तौर पर वॉच टावर सोसाइटी के नाम कर सकते हैं या वॉच टावर सोसाइटी को ट्रस्ट एग्रीमैंट का बॆनेफीशयरी बना सकते हैं। जो ट्रस्ट किसी धार्मिक संगठन को फायदा पहुँचाता है उसे कर के मामले में कुछ खास फायदे हो सकते हैं।

जैसा कि “दान देने की योजनाएँ” शब्द ज़ाहिर करते हैं, इसमें दान देनेवाले व्यक्‍ति को कुछ योजनाएँ बनाने की ज़रूरत होती है। तो जो इसमें बताए किसी-न-किसी तरीके से, संसार भर में किए जानेवाले यहोवा के साक्षियों के काम को फायदा पहुँचाना चाहता है, उसकी मदद करने के लिए अँग्रेज़ी और स्पेनिश भाषा में एक ब्रोशर तैयार किया गया है, जिसका शीर्षक है दुनिया भर में राज्य सेवा को फायदा पहुँचाने के लिए दान देने की योजनाएँ। यह ब्रोशर इसलिए लिखा गया क्योंकि तोहफे, वसीयतनामे और ट्रस्ट के बारे में बहुत-से सवाल पूछे गए थे। इसमें ज़मीन-जायदाद, रुपए-पैसे और कर योजना के बारे में भी ज़्यादा जानकारी दी गयी है जो आपके लिए फायदेमंद है। ब्रोशर में उन अलग-अलग तरीकों के बारे में बताया है कि एक व्यक्‍ति कैसे अभी या मौत होने पर वसीयत के ज़रिए भेंट कर सकता है। इसे पढ़ने और अपने कानूनी या कर सलाहकार और चैरिटेबल प्लैनिंग ऑफिस से विचार-विमर्श करने के बाद, कई लोग दुनिया भर में हो रहे यहोवा के साक्षियों के काम में मदद दे पाए हैं और साथ ही ऐसा करने से उन्हें कर के मामले में ज़्यादा-से-ज़्यादा फायदे भी मिले हैं।

अधिक जानकारी के लिए, आप नीचे दिए पते पर यहोवा के साक्षियों के ऑफिस को खत लिखकर या फोन के ज़रिए संपर्क कर सकते हैं या आपके देश में साक्षियों के काम की निगरानी करनेवाले ऑफिस से संपर्क कर सकते हैं।

Jehovah’s Witnesses of India,

Post Box 6440,

Yelahanka,

Bangalore 560 064,

Karnataka.

Telephone: (080) 8468072

[पेज 26 पर तसवीर]

किस बात ने शुरूआती मसीहियों को दरियादिल होने के लिए उकसाया?