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यहोवा बचपन से मुझे सिखाता आया है

यहोवा बचपन से मुझे सिखाता आया है

जीवन कहानी

यहोवा बचपन से मुझे सिखाता आया है

रिचर्ड एब्राहैमसन की ज़ुबानी

“हे परमेश्‍वर, तू तो मुझ को बचपन ही से सिखाता आया है, और अब तक मैं तेरे आश्‍चर्य कर्मों का प्रचार करता आया हूं।” भजन 71:17 के ये शब्द मेरे लिए खास मायने रखते हैं लेकिन किस कारण से, आइए मैं आपको बताता हूँ।

मेरी माँ फेन्‍नी एब्राहैमसन सन्‌ 1924 में बाइबल विद्यार्थियों से मिली थी, जिन्हें अब यहोवा के साक्षी कहा जाता है। उस वक्‍त मैं सिर्फ एक साल का था। माँ जो भी बाइबल सच्चाइयाँ सीखती थी, उनके बारे में वह जितनी जल्दी हो सके अपने पड़ोसियों को जाकर बताती थी। माँ ने वे बातें मुझे, मेरे बड़े भाई और मेरी बहन को भी सिखायीं। इसके पहले कि मैं पढ़ना-लिखना सीखता, माँ ने मुझे परमेश्‍वर के राज्य की आशीषों के बारे में कई वचन भी याद करवा दिए थे।

मेरा जन्म और मेरी परवरिश, अमरीका के ऑरिगन राज्य के ले ग्रान्ड शहर में हुई। वहाँ 1920 के दशक के अंत में हमारे बाइबल विद्यार्थियों के समूह में सिर्फ कुछ स्त्रियाँ और बच्चे थे। हालाँकि हमारा समूह दूर-दराज़ इलाके में था, फिर भी साल में एक या दो बार सफरी सेवक हमसे मिलने आते थे, जिन्हें उन दिनों पिल्ग्रिम कहा जाता था। ये पिल्ग्रिम हिम्मत बढ़ानेवाले भाषण देते, घर-घर की सेवा में हमारे साथ चलते और बच्चों में सच्ची दिलचस्पी दिखाते। उन प्यारे भाइयों में से कुछ थे, शील्ड टूटजीआन, जीन ऑरल और जॉन बूथ।

सन्‌ 1931 में कोलंबस, ओहायो में हुए अधिवेशन में बाइबल विद्यार्थियों ने नया नाम, यहोवा के साक्षी अपनाया। लेकिन उस अधिवेशन में हमारे समूह में से कोई नहीं जा सका। इसके अलावा, कुछ कलीसियाएँ (उन दिनों कलीसियाओं को कंपनियाँ कहा जाता था) और दूर-दराज़ इलाके के कुछ समूह भी उस अधिवेशन में हाज़िर नहीं हो सके थे। इसलिए उस साल के अगस्त में, वे अपने-अपने इलाके में मिले और इस नए नाम को कबूल करने का संकल्प किया। ले ग्रान्ड में हमारे छोटे से समूह ने भी ऐसा किया। फिर 1933 में पुस्तिका द क्राइसिस बाँटने का अभियान शुरू हुआ। मैंने बाइबल की एक पेशकश मुँह-ज़बानी याद कर ली और पहली बार अकेले घर-घर जाकर गवाही दी।

सन्‌ 1930 के दशक के दौरान हमारे काम के खिलाफ विरोध बढ़ने लगा। इसका सामना करने के लिए कुछ कंपनियों को मिलाकर छोटे-छोटे समूह बनाए गए जिन्हें डिविज़न कहा गया। ये डिविज़न छोटे सम्मेलन रखते थे और साल में एक या दो बार प्रचार अभियान में भाग लेते थे, जिसे डिविज़न अभियान कहा जाता था। इन सम्मेलनों में हमें प्रचार करने के तरीके सिखाए जाते थे और बताया जाता था कि जो पुलिसवाले इस काम में दखल देते, हम उनके साथ कैसे आदर के साथ पेश आ सकते थे। साक्षियों को अकसर, उस इलाके के पुलिस जज या कोर्ट ले जाया जाता था, इसलिए हम ‘ऑर्डर ऑफ ट्रायल’ नाम के हिदायत पर्चे में छपी जानकारी को बताने का अच्छा अभ्यास कर लेते थे। इससे हमें विरोध का सामना करने में मदद मिली।

बचपन से ही सच्चाई में मेरी तरक्की

मैं बाइबल सच्चाइयों और बाइबल में दी गयी इस आशा को अच्छी तरह समझने और कदर करने लगा कि परमेश्‍वर के स्वर्गीय राज्य में, मैं पृथ्वी पर हमेशा तक जी सकूँगा। उन दिनों जिन्हें मसीह के साथ स्वर्ग में राज्य करने की आशा नहीं होती थी, उनके बपतिस्मे के लिए इतना ज़ोर नहीं दिया जाता था। (प्रकाशितवाक्य 5:10; 14:1, 3) लेकिन, फिर भी मुझसे कहा गया कि अगर मैंने दिल से यहोवा की मरज़ी पूरी करने की ठान ली है, तो अच्छा होगा कि मैं बपतिस्मा लूँ। और अगस्त 1933 को मैंने बपतिस्मा ले लिया।

जब मैं 12 बरस का था तब मेरी टीचर को लगा कि मैं लोगों के सामने बहुत अच्छी तरह भाषण दे सकता हूँ, इसलिए उन्होंने मेरी माँ से मुझे इसके लिए और ट्रेनिंग देने का आग्रह किया। माँ को लगा इस ट्रेनिंग से मैं बेहतर तरीके से यहोवा की सेवा कर पाऊँगा। सो इस कोर्स की फीस भरने के लिए मेरी माँ ने एक साल तक मेरी टीचर के कपड़े धोए। इस ट्रेनिंग से मुझे परमेश्‍वर की सेवा करने में बहुत मदद मिली। लेकिन जब मैं 14 साल का था, तो मुझे गठिया का बुखार हो गया जिस वजह से मैं एक साल तक स्कूल नहीं जा सका।

सन्‌ 1939 में वारन हेनशल हमारे इलाके में आए जो पूरे समय के सेवक थे। * वे आध्यात्मिक रूप से मेरे लिए बड़े भाई की तरह थे जो मुझे अपने साथ सेवा में ले जाते और हम घंटों प्रचार करते। उनके बढ़ावा देने की वजह से मैंने वेकेशन पायनियर सेवा शुरू की, जो अस्थायी तौर पर पूरे समय की सेवा थी। उस साल की गर्मियों में हमारे समूह को एक कंपनी के तौर पर संगठित किया गया। भाई वारन को कंपनी सेवक बनाया गया और मुझे प्रहरीदुर्ग अध्ययन चलाने का काम सौंपा गया। जब भाई वारन यहोवा के साक्षियों के अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय, न्यू यॉर्क के ब्रुकलिन बेथेल में सेवा करने गए तब उनकी जगह मुझे कंपनी सेवक बनाया गया।

पूरे समय की सेवा की शुरूआत

जब कंपनी सेवक के तौर पर मेरी ज़िम्मेदारी बढ़ी, तो नियमित तौर पर पूरे समय की सेवा करने की मेरी इच्छा और बढ़ गयी, इसलिए हाई स्कूल का तीसरा साल खत्म करने के बाद 17 की उम्र में मैंने पूरे समय की सेवा शुरू कर दी। हालाँकि पिताजी हमारे विश्‍वास को नहीं मानते थे, लेकिन वे घर-परिवार की अच्छी देख-रेख करते थे और ऊँचे उसूलों पर चलते थे। वे चाहते थे कि मैं कॉलेज की पढ़ाई करूँ। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि अगर मैं रहने और खाने के लिए उन पर बोझ न बनूँ, तो फिर चाहे जो चुनाव करूँ उन्हें कोई एतराज़ नहीं होगा। मैंने सितंबर 1, 1940 से पायनियर सेवा शुरू कर दी।

जब मैं घर छोड़ रहा था तब माँ ने मुझे नीतिवचन 3:5, 6 पढ़ने को कहा, जहाँ लिखा है: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।” मैंने हमेशा यहोवा पर भरोसा रखा और यकीनन उसने मुझे हरदम सँभाला।

मैंने जल्द ही वॉशिंगटन राज्य के उत्तर-मध्य इलाके में, जो और मार्गरेट हॉर्ट के साथ मिलकर सेवा शुरू कर दी। उस इलाके में गाय-बैल और भेड़-बकरियों के फार्म थे, कुछ खास जगह अमरीकी आदिवासियों के लिए थी, साथ ही कई छोटे-छोटे कस्बे और गाँव थे। सन्‌ 1941 के वसंत में मुझे वॉशिंगटन के वनाची शहर की कलीसिया का कंपनी सेवक बनाया गया।

एक बार वॉशिंगटन के वाला-वाला शहर के एक सम्मेलन में, मैं एक अटैंडंट के तौर पर काम कर रहा था और हॉल में आनेवालों का स्वागत कर रहा था। उस समय मैंने देखा कि एक जवान भाई बड़ी देर से लाउड-स्पीकर का सिस्टम ठीक करने की कोशिश कर रहा है, मगर उससे हो नहीं रहा। तो मैंने उसे सुझाव दिया कि वह मेरा काम ले ले और मैं उसका। बाद में जब क्षेत्रीय सेवक अल्बर्ट हॉफमेन ने देखा कि मैं अपना काम नहीं कर रहा हूँ तो उन्होंने मुझे बड़े प्यार से मुस्कुराते हुए समझाया कि हमें जो ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है उसे तब तक नहीं छोड़ना चाहिए, जब तक हमसे कहा न जाए। इसके बाद से मैंने हमेशा उनकी यह सलाह याद रखी।

अगस्त 1941 में यहोवा के साक्षियों ने सॆंट लुई, मिज़ूरी में एक बड़ा अधिवेशन करने की योजना बनायी। हॉर्ट जोड़े ने अपना ट्रक पीछे से ढक दिया और उसमें कुछ बेंच लगवायीं। हम नौ पायनियर उस ट्रक में 2,400 किलोमीटर की यात्रा करके सॆंट लुई पहुँचे। हमें आने-जाने में पूरे दो हफ्ते लग गए थे। पुलिस का अनुमान था कि उस अधिवेशन में सबसे ज़्यादा हाज़िरी 1,15,000 होगी। हाज़िरी चाहे कम ही रही, मगर इतना ज़रूर था कि उस समय अधिवेशन के लिए आए लोगों की गिनती, अमरीका के 65,000 साक्षियों से ज़्यादा ही थी। इस अधिवेशन से हम आध्यात्मिक रूप से वाकई बहुत मज़बूत हुए।

ब्रुकलिन बेथेल में सेवा

जब मैं वनाची लौटा तो मेरे नाम एक खत था जिसमें मुझे ब्रुकलिन बेथेल में सेवा का न्यौता मिला था। मैं अक्टूबर 27, 1941 को ब्रुकलिन पहुँचा। उस समय नेथन एच. नॉर फैक्टरी ओवरसियर थे और मुझे उनके ऑफिस ले जाया गया। भाई नॉर ने बड़े प्यार से मुझे बेथेल के बारे में समझाया और ज़ोर देकर कहा कि अगर मैं यहाँ कामयाब होना चाहता हूँ तो मुझे यहोवा के साथ एक करीबी रिश्‍ता बनाए रखना होगा। फिर मुझे शिपिंग विभाग में ले जाया गया और साहित्य के उन बक्सों को बाँधने का काम दिया गया जो बाहर भेजे जाते थे।

जनवरी 8, 1942 को संसार भर में यहोवा के साक्षियों की अगुवाई करनेवाले भाई जोसेफ रदरफर्ड की मौत हो गयी। पाँच दिन बाद संस्था के डायरेक्टरों ने उनकी जगह भाई नॉर को चुना। जब संस्था के लंबे समय के सेक्रेटरी-ट्रेज़रर डब्ल्यू. ई. वैन एमबर्ग ने बेथेल परिवार को इसके बारे में बताया तब उन्होंने यह कहा: “मुझे याद है, जब [1916 में] सी. टी. रसल की मौत हुई थी, तब रदरफर्ड ने उनकी जगह ली। प्रभु अगुवाई करता रहा और अपने काम को आगे बढ़ाता रहा। अब मुझे पूरा यकीन है कि अध्यक्ष के तौर पर भाई नेथन एच. नॉर की निगरानी में भी काम बढ़ता रहेगा क्योंकि यह प्रभु का काम है, इंसानों का नहीं।”

फरवरी 1942 में यह घोषणा की गयी कि “परमेश्‍वर की सेवा के लिए एडवाँस कोर्स” शुरू होगा। यह कोर्स खास बेथेल के सदस्यों को ट्रेनिंग देने के लिए तैयार किया गया था ताकि वे बाइबल विषयों पर खोजबीन कर सकें, अपनी जानकारी को सही क्रम में लिखकर असरदार तरीके से पेश कर सकें। मैंने पब्लिक स्पीकिंग में ट्रेनिंग ली थी, इसलिए मैं इस कोर्स में तेज़ी से प्रगति कर सका।

अमरीका में साक्षियों की सेवा पर निगरानी करने का काम सर्विस विभाग करता था और जल्द ही मुझे उस विभाग में काम सौंपा गया। बाद में, उसी साल के दौरान यह तय हुआ कि सफरी सेवकों को एक बार फिर साक्षियों की कंपनियों को भेंट करने का कार्यक्रम शुरू करना चाहिए। भेंट करनेवाले ये सफरी सेवक, जिन्हें भाइयों का सेवक कहा जाता था, बाद में सर्किट ओवरसियर कहलाने लगे। फिर 1942 की गर्मियों में, सफरी सेवा के लिए बेथेल के भाइयों को ट्रेनिंग देने के लिए एक कोर्स शुरू किया गया, तब मुझे भी वह ट्रेनिंग पाने का बढ़िया मौका मिला। इस कोर्स में हमारे एक शिक्षक भाई नॉर थे, जिन्होंने एक खास मुद्दे पर ज़ोर दिया था और वह मुझे अच्छी तरह याद है: “कभी इंसानों को खुश करने की कोशिश मत करो। अगर ऐसा करोगे तो आप किसी को भी खुश नहीं कर सकोगे। यहोवा को खुश करो तो आप उन सबको खुश कर सकोगे जो यहोवा से प्रेम करते हैं।”

अक्टूबर 1942 से सफरी काम शुरू हुआ। बेथेल में रहनेवाले हममें से कुछ इस काम में किसी खास शनिवार-रविवार को हिस्सा लेते थे। हम न्यू यॉर्क शहर के आस-पास 400 किलोमीटर के इलाके में कलीसियाओं का दौरा करते। हम कलीसिया के प्रचार काम और सभाओं की हाज़िरी की रिपोर्ट देखते, कलीसिया की देख-रेख करनेवालों के साथ सभा रखते, एक या दो भाषण देते और वहाँ के साक्षियों के साथ प्रचार में जाते।

सन्‌ 1944 में, सर्विस विभाग से कुछ लोगों को जिनमें मैं भी था, छः महीने के सफरी काम के लिए अलग-अलग भेजा गया। मुझे डेलवार, मेरिलैंड, पॆन्सिलवेनिया और वर्जिनिया में सफरी काम के लिए भेजा गया। मैंने बाद में कुछ महीनों के लिए कनेटीकट, मेसचूसेट्‌स और रोड द्वीप की कलीसियाओं का दौरा किया। बेथेल लौटने के बाद मैं, भाई नॉर और उनके सेक्रेटरी मिल्टन हेनशल के साथ ऑफिस में पार्ट-टाइम काम करने लगा और तब मैं संसार भर में हो रहे काम से अच्छी तरह वाकिफ हुआ। मैंने डब्ल्यू. ई. वैन एमबर्ग और उनके असिस्टेंट ग्रान्ट सूटर की निगरानी में ट्रेज़रर के ऑफिस में भी पार्ट-टाइम काम किया। फिर 1946 में मुझे बेथेल के कई ऑफिसों का ओवरसियर बनाया गया।

ज़िंदगी में बड़ा बदलाव

सन्‌ 1945 के दौरान जब मैं कलीसियाओं का दौरा कर रहा था, तब रोड द्वीप के प्रॉविडेन्स शहर की जूल्या चारनॉसकस से मेरी जान-पहचान हो गयी। फिर 1947 का आधा साल बीतने पर हम शादी के बारे में गंभीरता से सोचने लगे। मुझे बेथेल सेवा से बेहद प्यार था लेकिन उस समय शादी करके किसी को बेथेल में लाने का इंतज़ाम नहीं था। इसलिए जनवरी 1948 में मैंने बेथेल छोड़ा और जूल्या (जूली) से शादी कर ली। प्रॉविडेन्स की एक सुपरमार्केट में मुझे पार्ट-टाइम नौकरी मिल गयी और हमने मिलकर पायनियर सेवा शुरू की।

सन्‌ 1949 के सितंबर में मुझे उत्तर-पश्‍चिम विसकॉन्सन में सर्किट काम के लिए बुलाया गया। हमें ज़्यादातर ऐसे छोटे कस्बों और गाँवों में प्रचार करना था, जहाँ दूध की डेरियाँ थीं। मेरे और जूली के लिए यह एक बहुत बड़ा बदलाव था। वहाँ सर्दियाँ काफी लंबी होती थीं और बहुत ज़्यादा ठंड पड़ती थी। कई हफ्ते तक तापमान -20 डिगरी या उससे भी कम होता था और खूब बर्फ गिरती थी। हमारे पास कार नहीं थी। लेकिन कोई-न-कोई हमेशा अपनी कार से हमें दूसरी कलीसिया पहुँचा देता था।

मेरे सर्किट काम शुरू करने से कुछ समय बाद ही सर्किट सम्मेलन शुरू हुआ। मुझे याद है कि मैं बहुत बारीकी से देख रहा था कि सब काम ठीक से हो रहा है या नहीं और इस वजह से कुछ लोग घबरा रहे थे। तब हमारे डिस्ट्रिक्ट ओवरसियर निकोलस कोवलक ने मुझे प्यार से समझाया कि यहाँ के भाई इन कामों को अपने तरीके से करने के आदी हो गए हैं और मुझे हर छोटी बात के लिए हद-से-ज़्यादा चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। इस सलाह से मुझे बाद में दूसरे कई कामों को अच्छी तरह से करने में मदद मिली।

सन्‌ 1950 में मुझे थोड़े समय के लिए एक नया काम मिला। न्यू यॉर्क शहर के यांकी स्टेडियम में वैसे तो हमारे बहुत-से बड़े अधिवेशन हुए हैं, लेकिन उस समय वहाँ पहली बार एक बड़ा अधिवेशन होनेवाला था, और मुझे दूसरे देश से आनेवालों के रहने का इंतज़ाम करना था। पहले दिन से लेकर आखिरी दिन तक अधिवेशन बहुत मज़ेदार रहा। इसमें 67 देशों से लोग आए थे और इसकी सबसे ज़्यादा हाज़िरी 1,23,707 थी! अधिवेशन के बाद जूली और मैं एक बार फिर अपने सफरी काम में लग गए। हम अपने सर्किट काम से बेहद खुश थे। लेकिन फिर भी हम सोच रहे थे कि हमें पूरे समय की किसी भी सेवा के लिए खुद को तैयार रखना चाहिए। इसलिए हम हर साल बेथेल और मिशनरी सेवा दोनों के लिए अर्ज़ी भेजते थे। फिर सन्‌ 1952 में हम बड़े खुश हुए जब हमें वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड की 20वीं क्लास में हाज़िर होने का न्यौता मिला, जहाँ हमें मिशनरी काम के लिए ट्रेनिंग दी गयी।

विदेश में सेवा

ग्रेजुएशन के बाद सन्‌ 1953 में हमें ब्रिटेन भेजा गया, जहाँ मैंने इंग्लैंड के दक्षिण में डिस्ट्रिक्ट ओवरसियर के नाते सेवा की। मुझे और जूली को यह काम बहुत पसंद था, लेकिन इस काम में हमने पूरा साल भी नहीं बिताया था कि अचानक हमें डेनमार्क में सेवा करने के लिए कहा गया। वहाँ ब्राँच ऑफिस में, निगरानी के लिए नए ओवरसियर की ज़रूरत थी। मैं डेनमार्क के करीब था और मुझे ऐसे काम के लिए ब्रुकलिन में ट्रेनिंग भी मिली थी, इसलिए मदद के लिए मुझे वहाँ भेजा गया। हम नाव से नेदरलैंड्‌स गए और वहाँ से हमने डेनमार्क के कोपनहेगन शहर जाने के लिए ट्रेन पकड़ी। अगस्त 9, 1954 को हम वहाँ पहुँच गए।

उस ब्राँच की एक समस्या यह थी कि कुछ ज़िम्मेदार भाई ब्रुकलिन मुख्यालय के निर्देशों को सही तरह से नहीं मान रहे थे। इतना ही नहीं, डेनिश भाषा में साहित्य का अनुवाद करनेवाले चार में से तीन भाइयों ने बेथेल छोड़ दिया और आखिरकार यहोवा के साक्षियों के साथ मेल-जोल भी छोड़ दिया। लेकिन यहोवा ने हमारी प्रार्थनाओं का जवाब दिया। दो पायनियर योर्न और आना लार्सन जिन्होंने पहले पार्ट-टाइम अनुवाद का काम किया था, उन्होंने पूरे समय इस काम के लिए खुद को पेश किया। इस तरह एक भी अंक छूटे बिना डेनिश भाषा की पत्रिकाओं का अनुवाद होता रहा। लार्सन जोड़ा डेनमार्क बेथेल में अब भी सेवा कर रहा है और योर्न ब्राँच कमिटी में कोऑर्डिनेटर के तौर पर काम कर रहा है।

उन सालों के दौरान जिस बात से सबसे ज़्यादा हिम्मत मिलती थी वह थी, भाई नॉर की नियमित रूप से भेंट। वे समय निकालकर, हमसे बैठकर बात करते और कुछ ऐसे अनुभव बताते जिससे हमें समस्याओं से निपटने की बेहतर समझ मिलती थी। सन्‌ 1955 में इसी तरह की भेंट के दौरान यह फैसला हुआ कि हमें एक नयी ब्राँच बनानी चाहिए जिसमें प्रिंटिंग काम के लिए भी इमारत बनायी जाए ताकि डेनमार्क में ही पत्रिकाएँ छापी जा सकें। सो कोपनहेगन के उत्तरीय उपनगर में एक जगह खरीदी गयी और 1957 की गर्मियों तक हम वहाँ बनायी गयी नयी इमारत में रहने चले गए। हेरी जॉनसन, जो अपनी पत्नी कारीन के साथ हाल ही में गिलियड की 26वीं क्लास से ग्रेजुएट होकर डेनमार्क आया था, उसने छपाई की मशीनों को बिठाने और उन्हें शुरू करने में हमारी मदद की।

अधिवेशनों के लिए हम जिस तरह से इंतज़ाम करते थे, उसमें हमने सुधार किया ताकि डेनमार्क में बड़ा अधिवेशन आयोजित कर सकें, और इसमें मेरा वह अनुभव काफी मददगार रहा जो मैंने अमरीका में अधिवेशनों के दौरान पाया था। सन्‌ 1961 में कोपनहेगन में हमारा बड़ा अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ जिसमें 30 से भी ज़्यादा देशों से प्रतिनिधि आए थे। इसमें सबसे ज़्यादा हाज़िरी 33,513 थी। फिर 1969 में, हमारे यहाँ स्कैन्डिनेविया का सबसे बड़ा अधिवेशन हुआ जिसकी सबसे ज़्यादा हाज़िरी थी 42,073!

सन्‌ 1963 में मुझे गिलियड की 38वीं क्लास में हाज़िर होने का न्यौता मिला। यह 10 महीने का खास कोर्स था, जिसमें ब्राँच की देख-रेख करनेवाले ज़िम्मेदार भाइयों को तालीम देने के लिए फेर-बदल की गयी थी। ब्रुकलिन बेथेल परिवार के सदस्यों से दोबारा मिलकर मुझे बड़ी खुशी हुई और जो सालों से मुख्यालय के काम की देख-रेख कर रहे हैं, उनके अनुभव से भी बहुत फायदा मिला।

इस कोर्स के बाद मैं डेनमार्क लौटा और एक बार फिर अपने काम में लग गया। मुझे ज़ोन ओवरसियर के तौर पर भी सेवा करने का मौका मिला। मैं पश्‍चिमी और उत्तरी यूरोप की ब्राँचों में गया और वहाँ के ज़िम्मेदार भाइयों की हिम्मत बढ़ायी ताकि वे अपनी ज़िम्मेदारी अच्छी तरह पूरी कर सकें। हाल में इसके लिए मैं पश्‍चिम अफ्रीका और कैरिबियन भी गया।

सन्‌ 1970 के दशक के आखिर में डेनमार्क के भाई एक बड़ी जगह की तलाश करने लगे थे ताकि वे बड़े पैमाने पर अनुवाद और छपाई का काम कर सकें। तो इसके लिए हमें कोपनहेगन से पश्‍चिम की तरफ 60 किलोमीटर की दूरी पर एक बढ़िया ज़मीन मिली। मैं भी दूसरों के साथ इसके प्लान और डिज़ाइन बनाने के काम में हाथ बँटाने लगा। मैं और जूली उस नए घर में बेथेल परिवार के साथ रहने की आस देखने लगे। मगर तभी हालात ने एक मोड़ लिया।

दोबारा ब्रुकलिन

नवंबर 1980 में मुझे और जूली को ब्रुकलिन बेथेल में सेवा करने के लिए बुलाया गया। हम जनवरी 1981 की शुरूआत में वहाँ पहुँच गए। उस समय हम 55 पार कर चुके थे। हमने करीब-करीब अपनी आधी ज़िंदगी डेनमार्क के प्यारे भाई-बहनों के संग गुज़ार दी थी इसलिए दोबारा अमरीका में बसना इतना आसान नहीं था। फिर भी हम क्या चाहते हैं, इसके बारे में ज़्यादा न सोचते हुए हमने मौजूदा ज़िम्मेदारी को निभाने और इसके साथ आनेवाली चुनौतियों पर अपना ध्यान लगाया।

हम ब्रुकलिन आए और नयी ज़िंदगी शुरू की। जूली को अकाउंटिंग ऑफिस में काम दिया गया। ऐसा ही काम वह डेनमार्क में करती थी। मुझे राइटिंग डिपार्टमेंट में डाला गया ताकि प्रकाशनों को समय पर तैयार करने के लिए शेड्‌यूल बनाने में मदद दे सकूँ। सन्‌ 1980 के दशक के शुरूआती सालों में ब्रुकलिन के कामों में काफी बदलाव आया क्योंकि अब टाइपराइटर और गर्म सीसे से की गयी टाइपसेटिंग के बदले कंप्यूटर और ऑफसेट प्रिंटिंग का इस्तेमाल होने लगा था। मुझे कंप्यूटर के बारे में कुछ मालूम नहीं था, लेकिन संगठन के तौर-तरीकों की और लोगों के साथ काम करने की अच्छी समझ थी।

जब हमने रंगीन ऑफसेट प्रिंटिंग और रंग-बिरंगी तसवीरों और फोटो का इस्तेमाल शुरू किया तो जल्द ही कला विभाग की व्यवस्था में सुधार करने की ज़रूरत आ पड़ी। मेरे पास कलाकार के तौर पर तो कोई अनुभव नहीं था मगर मैं इस विभाग की व्यवस्था को सुधारने में मदद दे सका। इस तरह नौ साल तक मुझे उस विभाग की निगरानी करने का सुअवसर मिला।

सन्‌ 1992 में मुझे शासी निकाय की पब्लिशिंग कमिटी में मदद देने को कहा गया और फिर ट्रेज़रर ऑफिस में काम दिया गया। यहाँ मैं यहोवा के साक्षियों के आर्थिक मामलों की देख-रेख में मदद करता रहा हूँ।

बचपन से आज तक की सेवा

बचपन से लेकर आज तक यहोवा की समर्पित सेवा में 70 साल बीत चुके हैं और यहोवा ने इस दौरान बड़े धैर्य से अपने वचन, बाइबल और अपने बेहतरीन संगठन के मददगार भाइयों के ज़रिए मुझे बहुत कुछ सिखाया है। मैंने पूरे समय की सेवा में 63 से भी ज़्यादा साल बिताए हैं और इनमें से 55 से भी ज़्यादा साल अपनी वफादार साथी जूली के साथ गुज़ारे हैं। मुझे सचमुच यह लगता है कि यहोवा ने मुझे भरपूर आशीषें दी हैं।

सन्‌ 1940 में जब मैंने पायनियर सेवा शुरू करने के लिए घर छोड़ा था, तब मेरे पिताजी ने मेरे फैसले का मज़ाक उड़ाते हुए कहा था: “बेटा, इस काम के लिए तुम जो घर छोड़कर जा रहे हो तो जाओ, लेकिन मुसीबत के वक्‍त फिर मुझसे मदद की कोई उम्मीद मत रखना।” और ज़िंदगी में इसकी नौबत कभी नहीं आयी। यहोवा ने अकसर मददगार भाइयों के ज़रिए दिल खोलकर मेरी ज़रूरतें पूरी कीं। बाद में मेरे पिताजी भी हमारे काम का आदर करने लगे और सन्‌ 1972 में अपनी मौत से पहले उन्होंने बाइबल की सच्चाइयाँ जानने में थोड़ी-बहुत प्रगति कर ली थी। माँ जिसके पास स्वर्ग में जीने की आशा थी, वह सन्‌ 1985 तक, यानी मरते दम तक वफादारी से सेवा करती रही। उस समय वह 102 साल की थी।

पूरे समय की सेवा में समस्याएँ ज़रूर आती हैं, लेकिन मैंने और जूली ने भूलकर भी अपनी सेवा छोड़ने की बात नहीं सोची। इस फैसले पर अटल रहने में यहोवा ने हमेशा हमारी मदद की है। जब मेरे माता-पिता बूढ़े हो चले थे और उन्हें मेरी मदद की ज़रूरत थी तब मेरी बहन विक्टोरिया मार्लन ने खुद आगे बढ़कर उनकी देखभाल की ज़िम्मेदारी उठायी। हम वाकई उसकी इस मदद के लिए एहसानमंद हैं जिसकी वजह से हम पूरे समय की सेवा जारी रख सके।

परमेश्‍वर की सेवा में मुझे जहाँ-जहाँ भेजा गया, जूली ने पूरी वफादारी से मेरा साथ दिया क्योंकि उसका मानना था कि ऐसा करके वह यहोवा को किए गए अपने समर्पण के मुताबिक जी रही है। आज मैं 80 बरस का हो गया हूँ और सेहत भी कुछ साथ नहीं देती, फिर भी मुझे लगता है कि यहोवा ने मुझे दिल खोलकर आशीषें दी हैं। इस बुढ़ापे में मुझे भजनहार के इन शब्दों से हिम्मत मिलती है जिसने यह कहने के बाद कि परमेश्‍वर ने उसे लड़कपन से सिखाया है, यह बिनती की: ‘हे परमेश्‍वर जब मैं बूढ़ा हो जाऊं, तब भी तू मुझे न छोड़, जब तक मैं सब उत्पन्‍न होनेवालों को तेरा पराक्रम सुनाऊं।’—भजन 71:17, 18.

[फुटनोट]

^ पैरा. 12 वारन, मिल्टन हेनशल के बड़े भाई थे, जिन्होंने कई साल तक यहोवा के साक्षियों के शासी निकाय के एक सदस्य के तौर पर सेवा की।

[पेज 20 पर तसवीर]

सन्‌ 1940 में अपनी माँ के साथ जब मैंने पायनियर सेवा शुरू की

[पेज 21 पर तसवीर]

जो और मार्गरेट हॉर्ट, जिनके साथ मैंने पायनियर सेवा की

[पेज 23 पर तसवीर]

जनवरी 1948 में शादी के दिन

[पेज 23 पर तसवीर]

सन्‌ 1953 में गिलियड के अपने सहपाठियों के साथ। बाएँ से दाएँ: डॉन और वर्जिनिया वार्ड, हेरटुडा स्टेहन्गा, जूली और मैं

[पेज 23 पर तसवीर]

सन्‌ 1961 में डेनमार्क के कोपनहेगन में फ्रैड्रिक डब्ल्यू. फ्रांज़ और नेथन एच. नॉर के साथ

[पेज 25 पर तसवीर]

आज जूली के साथ