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‘परमेश्‍वर के वचन को ठीक रीति से काम में लाइए’

‘परमेश्‍वर के वचन को ठीक रीति से काम में लाइए’

‘परमेश्‍वर के वचन को ठीक रीति से काम में लाइए’

“अपने आप को परमेश्‍वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करनेवाला ठहराने का प्रयत्न कर, जो लज्जित होने न पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो।” —2 तीमुथियुस 2:15.

1, 2. (क) एक कारीगर को औज़ारों की ज़रूरत क्यों होती है? (ख) मसीही किस काम में लगे हुए हैं और वे किन तरीकों से दिखाते हैं कि वे पहले राज्य की खोज करते हैं?

हर कारीगर को अपना काम पूरा करने के लिए औज़ारों की ज़रूरत होती है। मगर ऐसा नहीं कि किसी भी औज़ार से काम चलाया जा सकता है। कारीगर के पास सही औज़ार होने चाहिए और उसे मालूम होना चाहिए कि उनका सही इस्तेमाल क्या है। मसलन, लकड़ी का खोखा बनाते वक्‍त अगर उसे दो तख्तों को एक-साथ जोड़ना है, तो उसके पास एक हथौड़ा और कुछ कीलें होना काफी नहीं। उसे यह भी पता होना चाहिए कि किस तरह कील को ठोका जाता है ताकि ठोकते वक्‍त वह मुड़ न जाए। अगर वह कील ठोक रहा है लेकिन उसे पता नहीं कि हथौड़े से कैसे चोट की जाती है तो उसे बहुत परेशानी होगी, यहाँ तक कि वह तंग आकर सब कुछ छोड़-छाड़कर बैठ जाएगा। इसलिए अगर हमें मालूम हो कि औज़ारों का सही इस्तेमाल कैसे किया जाता है, तो हम न सिर्फ अपना काम पूरा कर पाएँगे, बल्कि बढ़िया काम करने की हमें खुशी भी मिलेगी।

2 मसीही होने के नाते हम सभी को एक काम सौंपा गया है। यह इतनी अहमियत रखता है कि इसे ज़िंदगी में सबसे पहली जगह मिलनी चाहिए। यीशु मसीह ने अपने चेलों को यह काम करने के लिए उकसाते हुए कहा कि वे ‘पहिले राज्य की खोज करें।’ (मत्ती 6:33) हम यह कैसे कर सकते हैं? एक तरीका है, पूरे जोश के साथ राज्य के प्रचार और चेला बनाने के काम में हिस्सा लेना। दूसरा तरीका है, हम जो कुछ बताएँ वह पूरी तरह परमेश्‍वर के वचन से हो। और तीसरा तरीका है, हमारा अच्छा चालचलन। (मत्ती 24:14; 28:19, 20; प्रेरितों 8:25; 1 पतरस 2:12) मसीही होने के नाते हमें जो काम सौंपा गया है, उसे सही ढंग से पूरा करने और इसमें खुशी पाने के लिए हमारे पास सही औज़ार होने ज़रूरी हैं और हमें पता होना चाहिए कि उनका ठीक-ठीक इस्तेमाल कैसे किया जाता है। इस मामले में, प्रेरित पौलुस हमारे लिए एक बढ़िया मिसाल था। उसने मसीही सेवा में बहुत मेहनत की और दूसरों को भी अपनी मिसाल पर चलने के लिए उकसाया। (1 कुरिन्थियों 11:1; 15:10) आइए जानें कि हम अपने सहकर्मी पौलुस से क्या सीख सकते हैं।

पौलुस—राज्य का जोशीला प्रचारक

3. यह क्यों कहा जा सकता है कि प्रेरित पौलुस, राज्य का एक जोशीला प्रचारक था?

3 पौलुस अपने काम में कैसा था? बेशक, वह बहुत जोशीला था। उसने दक्षिणी यूरोप, उत्तर अफ्रीका, और आस-पास के बहुत बड़े इलाके में राज्य की खुशखबरी सुनाने के लिए जी-तोड़ मेहनत की। इस प्रेरित ने कभी थकने का नाम नहीं लिया। उसने बताया कि वह क्यों इतने ज़ोर-शोर से प्रचार कर रहा था: “यदि मैं सुसमाचार सुनाऊं, तो मेरा कुछ घमण्ड नहीं; क्योंकि यह तो मेरे लिये अवश्‍य है; और यदि मैं सुसमाचार न सुनाऊं, तो मुझ पर हाय।” (1 कुरिन्थियों 9:16) मगर क्या इसका यह मतलब है कि पौलुस ने सिर्फ अपने उद्धार के लिए प्रचार किया था? जी नहीं। वह खुदगर्ज़ इंसान नहीं था, बल्कि वह दिल से चाहता था कि दूसरों को भी सुसमाचार से फायदा हो। उसने लिखा: “मैं सब कुछ सुसमाचार के लिये करता हूं, कि औरों के साथ उसका भागी हो जाऊं।”—1 कुरिन्थियों 9:23.

4. मसीही प्रचारक, सबसे ज़्यादा किस औज़ार का इस्तेमाल करते हैं?

4 प्रेरित पौलुस में नम्रता थी। वह अच्छी तरह जानता था कि अपनी काबिलीयतों के बलबूते पर वह इस काम को पूरा नहीं कर सकता। जैसे एक बढ़ई को हथौड़े की ज़रूरत होती है, ठीक उसी तरह पौलुस को भी अपने सुननेवालों के दिलों में परमेश्‍वर की सच्चाई गहराई तक बिठाने के लिए सही औज़ार की ज़रूरत थी। उसने सबसे ज़्यादा किस औज़ार का इस्तेमाल किया? परमेश्‍वर के वचन यानी पवित्र शास्त्र का। उसी तरह, आज हमारे लिए भी परमेश्‍वर का वचन, यानी पूरी बाइबल सबसे खास औज़ार है जिसकी मदद से हम चेले बनाने का काम करते हैं।

5. प्रचार काम में अच्छे नतीजे पाने के लिए, हमें आयतों का हवाला देने के साथ-साथ और क्या करना चाहिए?

5 पौलुस जानता था कि परमेश्‍वर के वचन को सही तरह से काम में लाने के लिए उससे हवाले देना काफी नहीं है। उसने लोगों को दलीलें देकर “कायल” भी किया। (प्रेरितों 28:23, NW) कैसे? पौलुस ने परमेश्‍वर के वचन का कुशलता से इस्तेमाल किया ताकि लोग राज्य की सच्चाई पर यकीन कर सकें। उसने तर्क का भी इस्तेमाल किया। मसलन, इफिसुस के एक आराधनालय में पौलुस तीन महीने तक “परमेश्‍वर के राज्य के विषय में विवाद करता और समझाता रहा।” उस वक्‍त भले ही “कितनों ने कठोर होकर उस की नहीं मानी” मगर दूसरों ने उसका संदेश कबूल किया। इफिसुस में पौलुस की सेवा की वजह से “प्रभु का वचन बल पूर्वक फैलता गया और प्रबल होता गया।”—प्रेरितों 19:8, 9, 20.

6, 7. पौलुस ने अपनी सेवा की महिमा कैसे की और हम भी यह कैसे कर सकते हैं?

6 पौलुस, राज्य का जोशीला प्रचारक था और उसने ‘अपनी सेवा की महिमा की।’ (रोमियों 11:13, NW) कैसे? उसने कभी मशहूर होने की कोशिश नहीं की; ना ही वह सबके सामने परमेश्‍वर का एक सहकर्मी कहलाने से लजाया। इसके बजाय, उसने सेवा करने की अपनी ज़िम्मेदारी को सबसे बड़े सम्मान की बात समझा। पौलुस ने कुशलता के साथ और असरदार तरीके से परमेश्‍वर के वचन का इस्तेमाल किया। प्रचार में पौलुस की कामयाबी देखकर दूसरों को यह हौसला मिला कि वे भी अपनी सेवा को अच्छी तरह से पूरा करें। इस तरह से भी, पौलुस ने अपनी सेवा की महिमा की।

7 परमेश्‍वर के सेवक होने के नाते अगर हम भी पौलुस की तरह अपनी सेवा की महिमा करना चाहते हैं, तो हमें ज़्यादा-से-ज़्यादा और कुशलता के साथ बाइबल का इस्तेमाल करना होगा। प्रचार के सभी पहलुओं में, हर बार हमें यह कोशिश करनी चाहिए कि हम ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को बाइबल से कुछ बताएँ। और हम इससे लोगों को कैसे कायल कर सकते हैं? ऐसा करने के तीन खास तरीके हैं: (1) परमेश्‍वर के वचन की तरफ उनका ध्यान इस तरह दिलाइए कि उनके मन में इसके लिए आदर पैदा हो। (2) व्यवहार-कुशलता के साथ बताइए कि किसी मामले पर बाइबल क्या कहती है और उसे कैसे ज़िंदगी में लागू किया जा सकता है। (3) बाइबल से इस तरह दलीलें दीजिए कि सामनेवाला यकीन कर सके।

8. राज्य का प्रचार करने के लिए आज हमारे पास कौन-से औज़ार हैं, और आपने उनका कैसे इस्तेमाल किया है?

8 आज के ज़माने में, राज्य के प्रचारकों के पास ऐसे औज़ार हैं जो पौलुस के ज़माने में नहीं थे। ये हैं, किताबें, पत्रिकाएँ, ब्रोशर, हैंडबिल, ट्रैक्ट, ऑडियो और वीडियो कैसेट। पिछली सदी में, टेस्टमनी कार्ड, फोनोग्राफ, लाउडस्पीकर लगी गाड़ियों और रेडियो प्रसारणों का भी इस्तेमाल किया गया था। मगर इन सभी औज़ारों में बाइबल सबसे बढ़कर है जिसके बिना हम हरगिज़ अपना काम नहीं चला सकते, और हमें इसका सही और अच्छा इस्तेमाल करने की ज़रूरत है।

हमारी सेवा की बुनियाद—सिर्फ परमेश्‍वर का वचन

9, 10. परमेश्‍वर के वचन का इस्तेमाल करने के बारे में, तीमुथियुस को दी गयी पौलुस की सलाह से हम क्या सीख सकते हैं?

9 हम परमेश्‍वर के वचन का इस्तेमाल एक असरदार औज़ार की तरह कैसे कर सकते हैं? पौलुस की यह सलाह मानकर, जो उसने अपने साथी प्रचारक तीमुथियुस को दी थी: “अपने आप को परमेश्‍वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करनेवाला ठहराने का प्रयत्न कर, जो लज्जित होने न पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो।” (2 तीमुथियुस 2:15) ‘सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाने’ का मतलब क्या है?

10 इस आयत में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद ‘ठीक रीति से काम में लाना’ किया गया है, उसका शब्द-ब-शब्द मतलब है, “सीधाई में काटना” या “काटते हुए सीधा रास्ता बनाना।” पूरे मसीही यूनानी शास्त्र में सिर्फ तीमुथियुस को दी गयी पौलुस की सलाह में इस शब्द का इस्तेमाल किया गया है। सीधी रेखा में हल चलाने का ज़िक्र करने के लिए भी यही शब्द इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर एक तजुर्बेकार किसान, आड़ा-तिरछा हल चलाए तो यह उसके लिए बड़े शर्म की बात होगी। तो पौलुस ने तीमुथियुस को ध्यान दिलाया कि अगर वह “ऐसा काम करनेवाला” होना चाहता है, “जो लज्जित होने न पाए,” तो उसे परमेश्‍वर के वचन की सच्ची शिक्षाओं से हटकर कोई बात नहीं सिखानी चाहिए। तीमुथियुस को खुद के विचार नहीं सिखाने थे। उसे पूरी कड़ाई के साथ शास्त्र के आधार पर ही प्रचार करना और सिखाना था। (2 तीमुथियुस 4:2-4) इससे उसका संदेश सुननेवाले सच्चे दिल के लोग, हर मामले में यहोवा का नज़रिया अपनाते, ना कि दुनियावी तत्त्वज्ञान। (कुलुस्सियों 2:4, 8) यही बात आज हम पर भी लागू होती है।

हमारा चालचलन अच्छा होना चाहिए

11, 12. परमेश्‍वर के वचन को ठीक रीति से काम में लाने से, हमारे चालचलन पर इसका क्या असर होता है?

11 परमेश्‍वर के वचन को ठीक रीति से काम में लाने के लिए, उसमें बतायी सच्चाइयों का सिर्फ ऐलान करना काफी नहीं। हमारे चालचलन से मालूम होना चाहिए कि हम जो सिखाते हैं उस पर खुद चलते भी हैं। हम “परमेश्‍वर के सहकर्मी हैं” इसलिए हमें ढोंगी नहीं होना चाहिए। (1 कुरिन्थियों 3:9) परमेश्‍वर का वचन कहता है: “क्या तू जो औरों को सिखाता है, अपने आप को नहीं सिखाता? क्या तू जो चोरी न करने का उपदेश देता है, आप ही चोरी करता है? तू जो कहता है, व्यभिचार न करना, क्या आप ही व्यभिचार करता है? तू जो मूरतों से घृणा करता है, क्या आप ही मन्दिरों को लूटता है।” (रोमियों 2:21, 22) आज परमेश्‍वर के सेवकों के नाते, उसके वचन को ठीक रीति से काम में लाने का एक तरीका है कि हम इस सलाह को मानें: “अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।”—नीतिवचन 3:5, 6.

12 परमेश्‍वर के वचन को ठीक रीति से काम में लाने से, हमें कैसे नतीजे मिलेंगे? ध्यान दीजिए कि परमेश्‍वर का वचन, नेकदिल लोगों की ज़िंदगी पर कैसा असर कर सकता है।

परमेश्‍वर के वचन में लोगों को बदलने की ताकत है

13. जो परमेश्‍वर के वचन को कबूल करते हैं, उन पर उसका कैसा असर हो सकता है?

13 जो लोग बाइबल को परमेश्‍वर का वचन मानकर कबूल करते हैं, इसमें दिया संदेश उनकी ज़िंदगी पर ज़बरदस्त असर करता है और इससे वे बड़े-बड़े बदलाव कर पाते हैं। पौलुस ने प्राचीन थिस्सलुनीके में खुद देखा था कि मसीही बननेवालों की ज़िंदगी पर परमेश्‍वर के वचन का कितना बढ़िया असर हुआ था। इसीलिए उसने उन्हें बताया: “हम भी सर्वदा परमेश्‍वर का धन्यवाद करते हैं कि जब हमारे द्वारा तुम्हें परमेश्‍वर के वचन का सन्देश मिला, तो तुमने उसे मनुष्यों का नहीं, परन्तु परमेश्‍वर का वचन समझ कर ग्रहण किया—सचमुच वह है भी—जो तुम विश्‍वासियों में अपना कार्य भी करता है।” (1 थिस्सलुनीकियों 2:13, NHT) उन मसीहियों की नज़र में इंसान की खोखली दलीलें, परमेश्‍वर की श्रेष्ठ बुद्धि के सामने कुछ भी नहीं थीं। (यशायाह 55:9) दरअसल, मसीह के सभी सच्चे चेले ऐसा ही नज़रिया रखते हैं। उन थिस्सलुनीकियों ने ‘बड़े क्लेश में पवित्र आत्मा के आनन्द के साथ वचन को माना’ और इस तरह वे दूसरे मसीहियों के लिए अच्छी मिसाल बने।—1 थिस्सलुनीकियों 1:5-7.

14, 15. बाइबल के संदेश में कितनी ताकत है और क्यों?

14 जैसे यहोवा परमेश्‍वर में असीम शक्‍ति है, वैसे ही उसके वचन में भी कमाल की ताकत है। यह “जीवते परमेश्‍वर” का वचन है, जी हाँ, उसी परमेश्‍वर का जिसके वचन से ‘आकाशमण्डल बना।’ और उसके ‘वचन को जिस काम के लिए भेजा जाता है’ वह हमेशा “सुफल” होता है। (इब्रानियों 3:12; भजन 33:6; यशायाह 55:11) बाइबल के एक विद्वान ने ऐसा कहा: “परमेश्‍वर अपने वचन से खुद को अलग नहीं करता। वह कभी अपने वचन से मुकरता नहीं, मानो उससे उसका कोई नाता न हो। . . . इसलिए उसका वचन कभी बेजान नहीं होता, एक बार जब यह परमेश्‍वर के मुँह से निकल जाता है तो उसे भूलना उसके लिए नामुमकिन है; क्योंकि इसका जीवित परमेश्‍वर के साथ गहरा नाता जो है।”

15 परमेश्‍वर के वचन से दिए जानेवाले संदेश में कितनी ताकत है? इसमें गज़ब की ताकत है। पौलुस ने बिलकुल सही कहा: “परमेश्‍वर का वचन जीवित, और प्रबल, और हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है, और जीव, और आत्मा को, और गांठ गांठ, और गूदे गूदे को अलग करके, वार पार छेदता है; और मन की भावनाओं और विचारों को जांचता है।”—इब्रानियों 4:12.

16. परमेश्‍वर का वचन एक इंसान को किस हद तक बदल सकता है?

16 परमेश्‍वर के वचन में दिया संदेश “हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है।” इसलिए इसमें, अंदर तक बेधने की ऐसी लाजवाब ताकत है जिसकी बराबरी इंसान का बनाया कोई भी उपकरण या औज़ार नहीं कर सकता। परमेश्‍वर का वचन, एक इंसान के सबसे अंदरूनी भागों को भी आर-पार बेधता है और उसे अंदर से पूरी तरह बदल सकता है। यानी यह उसके सोचने के तरीके और उसकी चाहतों को बदलकर उसे ऐसा सेवक बना सकता है जिसमें परमेश्‍वर को भानेवाले गुण हों। सचमुच, यह क्या ही शक्‍तिशाली औज़ार है!

17. समझाइए कि परमेश्‍वर के वचन में, लोगों को बदलने की कैसी ताकत है।

17 एक इंसान अपने बारे में चाहे जो भी सोचे या दूसरों के सामने चाहे जैसे भी पेश आए, मगर परमेश्‍वर का वचन दिखा देता है कि वह अंदर से कैसा इंसान है। (1 शमूएल 16:7) एक दुष्ट इंसान भी कभी-कभी अपनी असलियत छिपाने के लिए नेक काम कर सकता है या भक्‍त होने का ढोंग कर सकता है। दुष्ट लोग, नेकी के नकाब में अपने बुरे मंसूबों को अंजाम देने की कोशिश करते हैं। घमंडी लोग, दूसरों की वाह-वाही पाने के लिए नम्रता का ओढ़ना ओढ़ लेते हैं। लेकिन परमेश्‍वर का वचन, एक इंसान के दिल का राज़ खोल सकता है। यह एक नम्र इंसान में ऐसी ज़बरदस्त प्रेरणा जगा सकता है कि वह अपना पुराना मनुष्यत्व उतार फेंके और ‘नये मनुष्यत्व को पहिन ले, जो परमेश्‍वर के अनुसार सत्य की धार्मिकता, और पवित्रता में सृजा गया है।’ (इफिसियों 4:22-24) परमेश्‍वर के वचन की शिक्षाएँ, शर्मीले लोगों को इस कदर बदल सकती हैं कि वे यहोवा के निडर साक्षी और राज्य के जोशीले प्रचारक बन सकते हैं।—यिर्मयाह 1:6-9.

18, 19. इन पैराग्राफों में दिया अनुभव या प्रचार में आपको मिला कोई अनुभव बताकर, समझाइए कि बाइबल की सच्चाई कैसे एक इंसान का नज़रिया बदल सकती है।

18 परमेश्‍वर के वचन में इंसान को बदलने की जो ताकत है, उसका हर जगह के लोगों पर बढ़िया असर होता है। मिसाल के लिए, कम्बोडिया में पनॉम पेन शहर के साक्षी, महीने में दो बार कॉम्पाँग चाम इलाके में जाकर प्रचार करते थे। वहाँ की एक महिला पास्टर ने जब दूसरे पास्टरों को यहोवा के साक्षियों के खिलाफ बात करते सुना, तो उसने इंतज़ाम किया कि अगली बार जब साक्षी उसके वहाँ आएँ, तो वह उनसे बात करेगी। जब साक्षी वहाँ आए, तो उसने त्योहार मनाने के बारे में उन पर सवालों की बौछार कर दी। और जब साक्षियों ने बाइबल से दलीलें देकर उसे जवाब दिया तो उसने गौर से सबकुछ सुना। फिर उसने ताज्जुब करते हुए कहा: “अब मैं जान गयी कि मेरे साथी पास्टरों ने आप लोगों के बारे में जो भी कहा है वह सब झूठ है! उनका दावा था कि आप लोग बाइबल का इस्तेमाल नहीं करते, लेकिन आज सुबह आपने बाइबल से ही तो बताया।”

19 इस स्त्री ने साक्षियों के साथ बाइबल से चर्चा करना जारी रखा। उसे धमकियाँ दी गयीं कि अगर वह साक्षियों से इस तरह मिलती रहेगी, तो उसे पास्टर के काम से निकाल दिया जाएगा। फिर भी वह नहीं रुकी। वह बाइबल से जो चर्चा करती थी, उसके बारे में उसने अपनी एक सहेली को बताया। फिर उसकी सहेली ने भी साक्षियों के साथ अध्ययन करना शुरू कर दिया। बाइबल से सीखी बातों ने उसकी सहेली के दिल में इतनी उमंग भर दी कि जिस चर्च में वह जाती थी, उसमें एक बार उपासना के वक्‍त वह यह कहने से खुद को रोक नहीं पायी: “आइए, यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल का अध्ययन करें!” कुछ ही समय बाद, जो स्त्री पहले पास्टर थी उसने और दूसरे लोगों ने भी यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल का अध्ययन करना शुरू किया।

20. घाना की एक स्त्री का अनुभव कैसे दिखाता है कि परमेश्‍वर का वचन बहुत शक्‍तिशाली है?

20 घाना की रहनेवाली एक स्त्री, पॉलीना का किस्सा भी दिखाता है कि परमेश्‍वर का वचन कितना शक्‍तिशाली है। पूरे समय की सेवा करनेवाली एक साक्षी ने, ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है * किताब से उसके साथ बाइबल अध्ययन किया। पॉलीना के पति की एक और पत्नी भी थी। बाइबल का अध्ययन करने पर पॉलीना ने समझ लिया कि अब उसे अपनी ज़िंदगी बदलनी होगी। मगर उसके पति और सभी रिश्‍तेदारों ने उसका विरोध किया और वे उस पर ज़ुल्म करने लगे। उसके नाना ने, जो हाइ-कोर्ट का न्यायाधीश और चर्च का बुज़ुर्ग था, उसे तलाक लेने से रोकने के लिए मत्ती 19:4-6 का गलत मतलब समझाया। हालाँकि उसने आयत के बारे में पूरे यकीन के साथ समझाया, मगर पॉलीना ने जल्द ही भाँप लिया कि वह बिलकुल शैतान की तरकीब अपना रहा है जिसने यीशु को लुभाने के लिए शास्त्रवचनों का तोड़-मरोड़कर मतलब बताया था। (मत्ती 4:5-7) पॉलीना ने याद किया कि यीशु ने शादी के बारे में साफ-साफ क्या कहा था, यही कि परमेश्‍वर ने इंसानों को नर और नारी करके बनाया था, न कि नर और नारियाँ करके। इसलिए सिर्फ दो लोग मिलकर एक तन हो सकते हैं, ना कि तीन लोग। वह अपने फैसले पर अटल रही और आखिरकार उसे अपने यहाँ के दस्तूर के मुताबिक तलाक दे दिया गया। कुछ ही समय बाद उसने बपतिस्मा ले लिया और वह खुशी-खुशी राज्य का प्रचार करने लगी।

परमेश्‍वर के वचन को ठीक रीति से काम में लाते रहिए

21, 22. (क) राज्य का प्रचार करते वक्‍त हम क्या पक्का इरादा रखना चाहेंगे? (ख) हम अगले लेख में क्या चर्चा करेंगे?

21 इसमें कोई शक नहीं कि परमेश्‍वर का वचन, एक शक्‍तिशाली औज़ार है जिसका इस्तेमाल करके हम लोगों को अपनी ज़िंदगी बदलने में मदद दे सकते हैं ताकि वे यहोवा के करीब आ सकें। (याकूब 4:8) जैसे एक हुनरमंद कारीगर, अपने औज़ारों का इस्तेमाल करके बढ़िया काम करता है, उसी तरह आइए हम भी यह पक्का इरादा कर लें कि हम परमेश्‍वर से मिले राज्य के प्रचार काम में बाइबल का कुशलता के साथ इस्तेमाल करेंगे।

22 हम चेला बनाने के काम में बाइबल का कुशलता के साथ कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं? एक तरीका है, सिखाते वक्‍त दूसरों को कायल करने का हुनर पैदा करना। कृपया अगले लेख पर ध्यान दीजिए जो बताता है कि किन-किन तरीकों से हम लोगों को सिखा सकते हैं और राज्य का संदेश कबूल करने में उनकी मदद कर सकते हैं।

[फुटनोट]

^ पैरा. 20 इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

क्या आपको याद है?

• राज्य के प्रचारकों के पास कौन-से औज़ार हैं?

• पौलुस ने किन-किन तरीकों से राज्य का प्रचारक होने में अच्छी मिसाल रखी?

• परमेश्‍वर के वचन को ठीक रीति से काम में लाने में क्या शामिल है?

• यहोवा का वचन किस कदर एक शक्‍तिशाली औज़ार है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 10 पर तसवीरें]

ये कुछ औज़ार हैं जिनका इस्तेमाल करके मसीही, राज्य का प्रचार करते हैं