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“यहोवा को अपने सुख का मूल जान”

“यहोवा को अपने सुख का मूल जान”

“यहोवा को अपने सुख का मूल जान”

“यहोवा को अपने सुख का मूल जान, और वह तेरे मनोरथों को पूरा करेगा।”—भजन 37:4.

1, 2. सच्ची खुशी सिर्फ कौन दे सकता है, और राजा दाऊद ने इस बात पर किस तरह हमारा ध्यान दिलाया?

“खुश हैं वे जो अपनी आध्यात्मिक ज़रूरतों के प्रति सचेत हैं, . . . खुश हैं वे जो दयालु हैं, . . . खुश हैं वे जो शांति के काम करते हैं।” इनके अलावा, छः बार और यीशु ने बताया कि कौन खुश हैं और इस तरह उसने अपने मशहूर पहाड़ी उपदेश की शुरूआत की। सुसमाचार के लेखक, मत्ती ने यह उपदेश अपनी किताब में दर्ज़ किया था। (मत्ती 5:3-11, NW) यीशु के शब्द हमें यकीन दिलाते हैं कि खुशी हासिल करना मुमकिन है।

2 प्राचीन इस्राएल के राजा दाऊद ने एक पवित्र भजन लिखते वक्‍त इस बात पर ध्यान दिलाया कि सच्ची खुशी सिर्फ यहोवा परमेश्‍वर दे सकता है। उसने कहा: “यहोवा को अपने सुख का मूल जान, और वह तेरे मनोरथों को पूरा करेगा।” (भजन 37:4) लेकिन, ऐसी क्या बात है जिससे यहोवा और उसके अलग-अलग गुणों को जानने में हमें “सुख” मिलेगा? अपना मकसद पूरा करने के लिए वह अब तक जो करता आया है और आगे जो करनेवाला है उस पर गौर करने से, क्यों आप यह उम्मीद कर सकते हैं कि वह आपके “मनोरथों” को पूरा करेगा? भजन 37 की 1 से 11 आयतों की गहराई से जाँच करने पर हमें इन सवालों के जवाब मिलेंगे।

“डाह न कर!”

3, 4. भजन 37:1 में जैसा दर्ज़ है, दाऊद ने क्या सलाह दी, और आज उस सलाह को मानना क्यों सही है?

3 आज हम “कठिन समय” में जी रहे हैं, क्योंकि दुष्टता दुनिया में चारों तरफ फैल गयी है। हम प्रेरित पौलुस के ये शब्द पूरे होते देख रहे हैं कि “दुष्ट, और बहकानेवाले धोखा देते हुए, और धोखा खाते हुए, बिगड़ते चले जाएंगे।” (2 तीमुथियुस 3:1, 13) और इन दुष्ट लोगों को कामयाब होता और फलता-फूलता देखकर, हमारा मन बेचैन हो उठता है। उनकी वजह से, ज़रूरी बातों से हमारा ध्यान भटक सकता है और हम आध्यात्मिक बातों को पहले की तरह अहमियत नहीं देते। ध्यान दीजिए कि भजन 37 की शुरूआत में कैसे इसके बारे में हमें सावधान किया गया है, जो हमारे लिए एक खतरा बन सकता है: “कुकर्मियों के कारण मत कुढ़, कुटिल काम करनेवालों के विषय डाह न कर!”

4 दुनिया के मीडिया से हमें आए दिन नाइंसाफी की खबरें मिलती हैं जिन्हें सुनकर हम बेचैन हो उठते हैं। बेईमान बिज़नेसमैन, धोखाधड़ी करके भी कानून के हाथों से बचे रहते हैं। अपराधी, अपने फायदे के लिए लाचार और बेसहारा लोगों को अपना शिकार बनाते हैं। खूनी अकसर पकड़े नहीं जाते, और अगर पकड़े भी जाएँ तो भी उन्हें सज़ा नहीं दी जाती। इस तरह की नाइंसाफी देखकर हमें बहुत गुस्सा आता है और हमारे मन का चैन छिन जाता है। यहाँ तक कि बुराई करनेवालों की कामयाबी देखकर हम शायद मन-ही-मन उनसे जलने लगें। लेकिन इस तरह परेशान होने से क्या हालात सुधर जाएँगे? क्या दुष्ट जनों की मौज-मस्ती से जलने-कुढ़ने से, उन्हें कोई फर्क पड़ेगा? हरगिज़ नहीं पड़ेगा! और फिर देखा जाए तो हमें अंदर-ही-अंदर ‘कुढ़ने’ की कोई ज़रूरत नहीं। क्यों नहीं?

5. बुराई करनेवालों की तुलना घास से क्यों की गयी है?

5 इसका जवाब हमें भजनहार देता है: “वे घास की नाईं झट कट जाएंगे, और हरी घास की नाईं मुर्झा जाएंगे।” (भजन 37:2) हरी-हरी घास देखने में शायद अच्छी लगे, मगर ये ज़्यादा देर तक नहीं टिकती बल्कि मुरझाकर खत्म हो जाती है। बुरे काम करनेवालों का भी यही हश्र होगा। देखने में तो लग सकता है कि वे फल-फूल रहे हैं, मगर उनकी यह हालत हमेशा के लिए नहीं रहनेवाली। जब वे मर जाते हैं, तो उनकी पाप की कमाई उनके किसी काम नहीं आती। आखिरकार हर किसी के साथ वही होता है जो न्याय के मुताबिक होना चाहिए। पौलुस ने लिखा: “पाप की मजदूरी . . . मृत्यु है।” (रोमियों 6:23) बुराई करनेवालों और सभी अधर्मियों को एक-न-एक-दिन उनकी “मजदूरी” ज़रूर मिलेगी, और बस उनके लिए सबकुछ खत्म हो जाएगा। उनका इस तरह बरबादी की राह पर चलना, वाकई कितनी बड़ी बेवकूफी है!—भजन 37:35, 36; 49:16, 17.

6. भजन 37:1, 2 से हम क्या सबक सीख सकते हैं?

6 तो फिर दुष्ट लोगों की चंद दिनों की खुशहाली देखकर क्या हमें परेशान होना चाहिए? नहीं, बल्कि हमें भजन 37 की पहली दो आयतों से यह सबक सीखना चाहिए: यहोवा की सेवा करने के लिए जो रास्ता आपने चुना है, दुष्ट लोगों की कामयाबी देखकर उस रास्ते से भटक मत जाइए। इसके बजाय, अपनी नज़र आध्यात्मिक आशीषों और लक्ष्यों पर लगाए रखिए।—नीतिवचन 23:17.

“यहोवा पर भरोसा रख, और भला कर”

7. क्यों हमें यहोवा पर भरोसा रखना चाहिए?

7 भजनहार हमें उकसाता है: “यहोवा पर भरोसा रख, और भला कर।” (भजन 37:3क) जब चिंताएँ या शक हमें आ घेरते हैं, तो ऐसे में हमें यहोवा पर पूरा भरोसा रखने की ज़रूरत है। आध्यात्मिक तौर पर हमारी हिफाज़त सिर्फ वही कर सकता है। मूसा ने लिखा था: “जो परमप्रधान के छाए हुए स्थान में बैठा रहे, वह सर्वशक्‍तिमान की छाया में ठिकाना पाएगा।” (भजन 91:1) इस संसार में ज़ुल्म को बढ़ता देख जब हम परेशान हो जाते हैं, तो हमें यहोवा पर और भी ज़्यादा भरोसा रखने की ज़रूरत है। मिसाल के लिए, चलते-चलते जब हमारे पैर में मोच आ जाए, तो हमें अच्छा लगेगा कि हमारा दोस्त अपना हाथ बढ़ाकर हमें सहारा दे। उसी तरह जब हम वफादारी से यहोवा की राह पर चलने की कोशिश करते हैं, तो हमें उसके सहारे की ज़रूरत होती है।—यशायाह 50:10.

8. मसीही सेवा में हिस्सा लेने से, कैसे हम दुष्टों की खुशहाली से बहुत ज़्यादा परेशान नहीं होंगे?

8 दुष्टों की खुशहाली देखकर हमारे अंदर जो जलन की आग भड़क उठती है, उसे शांत करने की सबसे बढ़िया तरकीब है, भेड़ समान लोगों की खोज करने और उन्हें यहोवा के मकसद के बारे में सही ज्ञान देने में खुद को लगा देना। तेज़ी से बढ़ती जा रही बुराई को देखते हुए, हमें दूसरों की मदद करने में पूरी तरह डूब जाना चाहिए। प्रेरित पौलुस ने कहा: “भलाई करना, और उदारता न भूलो; क्योंकि परमेश्‍वर ऐसे बलिदानों से प्रसन्‍न होता है।” परमेश्‍वर के राज्य का शानदार सुसमाचार दूसरों को सुनाने के ज़रिए हम “भलाई” का सबसे महान काम कर सकते हैं। जी हाँ, लोगों को प्रचार करना वाकई हमारी तरफ से “स्तुतिरूपी बलिदान” है।—इब्रानियों 13:15, 16; गलतियों 6:10.

9. जब दाऊद ने कहा कि ‘धरती में बसा रह,’ तो वह किस बारे में बात कर रहा था?

9 दाऊद आगे कहता है: “देश [“धरती,” ईज़ी-टू-रीड वर्शन] में बसा रह और सच्चाई में मन लगाए रह।” (भजन 37:3ख) दाऊद के दिनों में “धरती,” वादा किए गए देश का इलाका था जो यहोवा ने इस्राएलियों को दिया था। सुलैमान की हुकूमत के दौरान इस देश की सरहदें, उत्तर में दान से लेकर दक्षिण में, बेर्शेबा तक फैल गयी थीं। इसी ज़मीन पर इस्राएल बसता था। (1 राजा 4:25) आज हम चाहे धरती के किसी कोने में रहते हों, हमें उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार है जब पूरी धरती, फिरदौस बन जाएगी और जो धार्मिकता की नयी दुनिया होगी। उस दिन के आने तक, हम आध्यात्मिक तौर पर एक महफूज़ जगह में हैं।—यशायाह 65:13, 14.

10. जब हम ‘सच्चाई में मन लगाए रहते हैं,’ तो इसका क्या नतीजा होता है?

10 जब हम ‘सच्चाई में मन लगाए रहते हैं,’ तो इसका क्या नतीजा होता है? परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा गया एक नीतिवचन हमें याद दिलाता है: “सच्चे मनुष्य पर बहुत आशीर्वाद होते रहते हैं।” (नीतिवचन 28:20) हम चाहे जहाँ भी रहते हों, जब हम सच्चे मन से हर किसी को सुसमाचार सुनाने में लगे रहते हैं, तो यहोवा हमें ढेरों आशीषें देता है। मिसाल के लिए, फ्रैंक और उसकी पत्नी रोज़ को लीजिए। चालीस साल पहले, उन दोनों को उत्तरी स्कॉटलैंड के एक नगर में पायनियर सेवा करने के लिए भेजा गया। उनके पहुँचने से पहले, कई लोग जिन्होंने सच्चाई में दिलचस्पी दिखायी थी, वे अब सच्चाई से धीरे-धीरे दूर जा चुके थे। फिर भी, यह पायनियर जोड़ा पीछे नहीं हटा, बल्कि वहाँ जाकर प्रचार करने और चेले बनाने के काम में जुट गया। आज उसी नगर में एक फलती-फूलती कलीसिया है। यह जोड़ा जिस तरह सच्चे मन से सेवा में लगा रहा, उस पर वाकई यहोवा की आशीष थी। फ्रैंक बड़ी नम्रता के साथ कहता है: “हमारी सबसे बड़ी आशीष यही है कि हम आज भी सच्चाई में हैं, और यहोवा के काम आ रहे हैं।” जी हाँ, जब हम ‘सच्चाई में मन लगाए रहते हैं,’ तो हम पर आशीषों की बौछार होती है और उनके लिए हमारी कदरदानी भी बढ़ती है।

“यहोवा को अपने सुख का मूल जान”

11, 12. (क) हम “यहोवा को अपने सुख का मूल” कैसे जान सकते हैं? (ख) निजी अध्ययन के लिए आप क्या लक्ष्य रख सकते हैं, और इसका क्या नतीजा निकल सकता है?

11 यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को मज़बूत करने और उस पर अपना भरोसा बनाए रखने के लिए हमें “यहोवा को अपने सुख का मूल” जानना होगा। (भजन 37:4क) यह हम कैसे कर सकते हैं? चाहे हालात मुश्‍किल-से-मुश्‍किल ही क्यों न हों, हर वक्‍त उन पर आँसू बहाने के बजाय हमारा ध्यान हमेशा यहोवा पर होना चाहिए। ऐसा करने का एक तरीका है, वक्‍त निकालकर उसका वचन पढ़ना। (भजन 1:1, 2) क्या आपको बाइबल पढ़ाई से खुशी मिलती है? यह खुशी आपको तभी हासिल होगी जब आप यहोवा के बारे में और ज़्यादा सीखने की मंशा से इसे पढ़ेंगे। बाइबल का एक हिस्सा पढ़ने के बाद क्यों न आप थोड़ा रुककर खुद से यह सवाल करें, ‘इस भाग से मैंने यहोवा के बारे क्या सीखा?’ बाइबल की पढ़ाई करते वक्‍त अच्छा होगा, अगर आप अपने साथ एक नोटबुक या कागज़ रखें। हर बार जब आप बाइबल का एक हिस्सा पढ़ने के बाद, उसके मतलब पर विचार करते हैं, तो आप बाइबल के ऐसे शब्द लिख सकते हैं जो आपको परमेश्‍वर के किसी मनभावने गुण की याद दिलाते हैं। दाऊद ने एक और भजन में कहा था: “मेरे मुंह के वचन और मेरे हृदय का ध्यान तेरे सम्मुख ग्रहण योग्य हों, [“तुझको प्रसन्‍न करेंगे,” ईज़ी-टू-रीड वर्शन] हे यहोवा परमेश्‍वर, मेरी चट्टान और मेरे उद्धार करनेवाले!” (भजन 19:14) जब हम परमेश्‍वर के वचन पर ध्यान लगाकर मनन करते हैं, तो इससे यहोवा “प्रसन्‍न” होता है और हमें भी खुशी मिलती है।

12 हम अध्ययन और मनन से खुशी कैसे पा सकते हैं? हम यह लक्ष्य रख सकते हैं कि जितना ज़्यादा हो सके, यहोवा और उसके मार्गों के बारे में सीखें। वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा और यहोवा के करीब आओ * जैसी किताबों में जानकारी का खज़ाना है जिस पर हम एहसानमंदी की भावना के साथ मनन कर सकते हैं। और जैसे दाऊद धर्मियों को विश्‍वास दिलाता है कि ऐसा करने पर यहोवा हमारे “मनोरथों को पूरा करेगा।” (भजन 37:4ख) और बेशक इसी विश्‍वास की वजह से प्रेरित यूहन्‍ना ये शब्द लिखने को प्रेरित हुआ: “हमें उसके साम्हने जो हियाव होता है, वह यह है; कि यदि हम उस की इच्छा के अनुसार कुछ मांगते हैं, तो वह हमारी सुनता है। और जब हम जानते हैं, कि जो कुछ हम मांगते हैं वह हमारी सुनता है, तो यह भी जानते हैं, कि जो कुछ हम ने उस से मांगा, वह पाया है।”—1 यूहन्‍ना 5:14, 15.

13. हाल के सालों में, बहुत-से देशों में राज्य के प्रचार काम में कैसी बढ़ोतरी देखी गयी है?

13 खराई बनाए रखनेवालों के तौर पर हमें सबसे ज़्यादा खुशी तब होगी, जब यह जग-ज़ाहिर हो जाएगा कि यहोवा ही सारे जहान का महाराजाधिराज और मालिक है। (नीतिवचन 27:11) क्या हमारा दिल खुशी से गद्‌गद नहीं हो उठता जब हमें खबर मिलती है कि हमारे भाई उन देशों में बड़े ज़ोर-शोर से प्रचार कर रहे हैं, जहाँ एक ज़माने में तानाशाह सरकारें हुकूमत करती थीं? हम यह जानने के लिए बेताब हैं कि संसार के अंत से पहले और क्या-क्या घटेगा जिससे हमें सुसमाचार प्रचार करने की शायद और ज़्यादा आज़ादी मिले। पश्‍चिमी देशों में रहनेवाले बहुत-से यहोवा के साक्षी पूरे जोश के साथ उन विद्यार्थियों, शरणार्थियों और दूसरे कई लोगों को प्रचार कर रहे हैं, जो कुछ समय के लिए पश्‍चिम में आ बसे हैं और जिन्हें अपनी मरज़ी से उपासना करने की आज़ादी है। हमारी दुआ है कि जब ये लोग वापस अपने वतन लौटें, तो वे सच्चाई की रोशनी चमकाते रहें, यहाँ तक कि उन देशों में भी जो आध्यात्मिक रूप में घोर अंधकार में हैं।—मत्ती 5:14-16.

“अपने मार्ग की चिन्ता यहोवा पर छोड़”

14. क्या सबूत हैं कि हम यहोवा पर पूरा भरोसा रख सकते हैं?

14 यह जानकर हमारे दिल को कितनी तसल्ली मिलती है कि हमारी चिंताएँ और जिस भारी बोझ तले हमारा दम घुटा जा रहा है, उस बोझ को हटाया जा सकता है! कैसे? दाऊद पहले कहता है: “अपने मार्ग की चिन्ता यहोवा पर छोड़; और उस पर भरोसा रख।” फिर वह आगे कहता है: “वही सबकुछ करेगा।” (किताब-ए-मुकद्दस) (भजन 37:5) हमारी कलीसियाओं में बहुत-से भाई-बहन इस बात का सबूत देते हैं कि यहोवा हर वक्‍त हमें सहारा देने के लिए तैयार रहता है। (भजन 55:22) पूरे समय के सेवक जैसे पायनियर, सफरी ओवरसियर, मिशनरी या बेथेल में सेवा करनेवाले स्वयंसेवक, ये सभी इस बात की गवाही दे सकते हैं कि यहोवा वाकई अपने लोगों की देखभाल करता है। क्यों न आप उनमें से ऐसे भाई-बहनों से बात करें जिन्हें आप जानते हैं और उनसे पूछें कि यहोवा ने कैसे उनकी मदद की है? इसमें कोई शक नहीं कि आप उनसे कई किस्से सुनेंगे जो दिखाते हैं कि मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात में भी उनकी मदद करने में यहोवा का हाथ कभी छोटा नहीं हुआ है। वह हरदम ज़िंदगी की हर ज़रूरत को पूरा करता है।—भजन 37:25; मत्ती 6:25-34.

15. परमेश्‍वर के लोगों की धार्मिकता किस तरह दमकेगी?

15 जब हम यहोवा को अपना आसरा बनाते हैं और उस पर पूरा-पूरा भरोसा रखते हैं, तो हम अपनी ज़िंदगी में भजनहार के अगले शब्दों का अनुभव कर सकते हैं: “वह तेरा धर्म ज्योति की नाईं, और तेरा न्याय दोपहर के उजियाले की नाईं प्रगट करेगा।” (भजन 37:6) यहोवा के साक्षी होने के नाते अकसर ऐसा होता है कि हमारे बारे में झूठी अफवाहें फैलायी जाती हैं। मगर यहोवा नेकदिल लोगों की आँखें खोल देता है ताकि वे देख सकें कि हम सब लोगों को इसलिए प्रचार करते हैं क्योंकि हमें यहोवा से और अपने पड़ोसियों से प्यार है। साथ ही, बहुत-से लोग हमारे अच्छे चालचलन पर चाहे कितना भी कीचड़ क्यों न उछालें, सच्चाई को कभी छिपाया नहीं जा सकता। हमारा विरोध करने या हमें सताने के लिए लोग चाहे कोई भी हथकंडा क्यों न अपना लें, इन सबको सहने के लिए यहोवा हमें थामे रहेगा। अगर हम ऐसा करेंगे, तो नतीजा यह होगा कि जिस तरह दोपहर में सूरज पूरे तेज के साथ आसमान में चमकता है, उसी तरह परमेश्‍वर के लोगों की धार्मिकता दमकेगी।—1 पतरस 2:12.

‘चुपचाप रह, धीरज से आस्रा रख’

16, 17. भजन 37:7 के मुताबिक यह वक्‍त क्या करने का है, और क्यों?

16 भजनहार आगे कहता है: “यहोवा के साम्हने चुपचाप रह, और धीरज से उसका आस्रा रख; उस मनुष्य के कारण न कुढ़, जिसके काम सुफल होते हैं, और वह बुरी युक्‍तियों को निकालता है!” (भजन 37:7) यहाँ दाऊद इस बात पर ज़ोर दे रहा है कि हम तब तक धीरज धरें जब तक यहोवा कार्यवाही नहीं करता। हालाँकि इस संसार का अंत अभी तक नहीं आया है, लेकिन यह कोई वजह नहीं है कि हम शिकायत करने लगें। क्या हमने यह नहीं देखा कि यहोवा की दया और धीरज की इंतिहा उससे कहीं बढ़कर है जितना हमने सोचा था? क्या आज हम भी धीरज दिखाते हुए इंतज़ार कर सकते हैं, साथ ही अंत आने से पहले सुसमाचार का प्रचार करने में पूरी तरह लगे रह सकते हैं? (मरकुस 13:10) यह वक्‍त जल्दबाज़ी से काम करने का नहीं है, क्योंकि इससे हमारी खुशी और आध्यात्मिक सुरक्षा छिन सकती है। इसके बजाय, यह वक्‍त है शैतान के संसार का डटकर मुकाबला करने का, ताकि हम उसके साँचे में ढलकर भ्रष्ट न हो जाएँ। यह वक्‍त है कि हम अपना चालचलन शुद्ध बनाए रखें और ऐसा कोई काम न करें जिससे हम यहोवा की नज़रों में गिर जाएँ और अपनी धार्मिकता खो बैठें। तो आइए हम लगातार अपने मन से गंदे खयालों को निकाल बाहर फेंकते रहें और विपरीत लिंग या फिर हमारे ही लिंग के लोगों के साथ कोई भी गलत व्यवहार न करें।—कुलुस्सियों 3:5.

17 दाऊद हमें सलाह देता है: “क्रोध से परे रह, और जलजलाहट को छोड़ दे! मत कुढ़, उस से बुराई ही निकलेगी। क्योंकि कुकर्मी लोग काट डाले जाएंगे; और जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वही पृथ्वी के अधिकारी होंगे।” (भजन 37:8, 9) जी हाँ, हम पूरे विश्‍वास के साथ उस समय की राह देख सकते हैं—जो अब इतना पास आ गया है—जब यहोवा धरती पर से हर तरह के भ्रष्टाचार के साथ-साथ इसके लिए ज़िम्मेदार लोगों को भी मिटा देगा।

“थोड़े दिन के बीतने पर”

18, 19. भजन 37:10 से आपको क्या हौसला मिलता है?

18 “थोड़े दिन के बीतने पर दुष्ट रहेगा ही नहीं; और तू उसके स्थान को भली भांति देखने पर भी उसको न पाएगा।” (भजन 37:10) इन शब्दों से हमें कितना हौसला मिलता है! क्योंकि बहुत जल्द वह घड़ी आनेवाली है, जब इस दुनिया का और उस दौर का अंत होगा जिसमें इंसान यहोवा से अलग रहकर अपने ऊपर सिर्फ संकट ही लाया है! इंसान हर तरह की सरकार आज़मा चुके हैं, मगर वे सब बुरी तरह नाकाम रही हैं। और अब वह समय आ गया है जब एक बार फिर सही मायनों में परमेश्‍वर की हुकूमत होगी, जी हाँ परमेश्‍वर का राज्य शासन करेगा जिसका राजा यीशु मसीह है। यह राज्य पूरे संसार की बागडोर अपने हाथ में ले लेगा और अपने सभी दुश्‍मनों को हटा देगा।—दानिय्येल 2:44.

19 परमेश्‍वर के राज्य के अधीन नयी दुनिया में, आप चाहे धरती का कोना-कोना छान मारें, लेकिन आपको एक भी “दुष्ट” जन नहीं मिलेगा। दरअसल, उस दौरान जो कोई यहोवा के खिलाफ बगावत करेगा, उसे उसी वक्‍त खत्म कर दिया जाएगा। ऐसा एक भी इंसान नहीं होगा जो यहोवा के हुकूमत करने के हक पर उँगली उठाए या परमेश्‍वर के ठहराए अधिकार के अधीन होने से इनकार करे। आपके सभी पड़ोसी आप ही की तरह होंगे, उनमें और आप में यहोवा को खुश करने की दिली-तमन्‍ना होगी। इस वजह से हम सब कितना सुरक्षित महसूस करेंगे—घर के दरवाज़े पर ताले या सलाखें नहीं होंगी। ऐसा कुछ नहीं होगा जो हमारे भरोसे को तोड़ेगा और हमारी खुशियों को हमसे छीनेगा।—यशायाह 65:20; मीका 4:4; 2 पतरस 3:13.

20, 21. (क) भजन 37:11 में बताए गए “नम्र” लोग कौन हैं, और उन्हें कहाँ “बड़ी शान्ति” मिलती है? (ख) अगर हम महान दाऊद के नक्शे-कदम पर चलेंगे तो हमें क्या आशीषें मिलेंगी?

20 फिर, “नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे।” (भजन 37:11क) “नम्र लोग” वे लोग हैं, जो दीनता से यहोवा के वक्‍त का इंतज़ार करते हैं कि वह उन्हें इंसाफ दिलाए और जो-जो ज़्यादतियाँ उनके साथ हुई हैं, उन्हें ठीक करे। वे “बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे।” (भजन 37:11ख) यहाँ तक कि आज सच्ची मसीही कलीसिया के साथ जुड़े आध्यात्मिक फिरदौस में भी हमें बड़ी शांति मिलती है।

21 हालाँकि अब तक हम पर से मुसीबतों का काला साया नहीं हटा है, फिर भी हम एक-दूसरे की मदद करते हैं और निराश लोगों को दिलासा देते हैं। इस तरह, यहोवा के लोगों को सच्चा अंदरूनी संतोष मिलता है। भाई, जिन्हें चरवाहे ठहराया गया है, वे प्यार से हमारी आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करते हैं। कभी-कभी तो वे हमारे खाने-कपड़े जैसी ज़रूरतों का भी खयाल रखते हैं ताकि हम उन तकलीफों को सह सकें जो धार्मिकता की खातिर हम पर आती हैं। (1 थिस्सलुनीकियों 2:7, 11; 1 पतरस 5:2, 3) है ना, ये शांति एक अनमोल खज़ाना! इसके अलावा, बहुत जल्द आनेवाले फिरदौस में हमें अनंत जीवन जीने की आशा है जहाँ हर तरफ शांति होगी। तो फिर आइए हम महान दाऊद, मसीह यीशु के नक्शे-कदम पर चलें, जिसमें यहोवा के लिए इतना जोश था कि वह मरते दम तक पूरी वफादारी के साथ उसकी सेवा करता रहा। (1 पतरस 2:21) ऐसा करने से हमारी खुशी बरकरार रहेगी और हम अपने परमेश्‍वर यहोवा की महिमा करते रहेंगे जो हमारे सुख का मूल है।

[फुटनोट]

^ पैरा. 12 इन किताबों को यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

क्या आप जवाब दे सकते हैं?

भजन 37:1, 2 से आपने क्या सबक सीखे हैं?

• हम “यहोवा को अपने सुख का मूल” कैसे जान सकते हैं?

• क्या सबूत हैं कि हम यहोवा पर पूरा भरोसा कर सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 9 पर तसवीर]

मसीही, ‘कुटिल काम करनेवालों के विषय में डाह नहीं करते’

[पेज 10 पर तसवीर]

“यहोवा पर भरोसा रख, और भला कर”

[पेज 11 पर तसवीर]

जितना ज़्यादा हो सके, यहोवा के बारे में सीखकर, उसे अपने सुख का मूल जान

[पेज 12 पर तसवीर]

“नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे”